Thursday, May 2, 2024
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जरा थमिए, कहीं नहीं जा रहा रेनॉल्ड्स 045: सचिन तेंदुलकर के लिए था कामयाबी का रंग, हमारी पीढ़ी के लिए है बचपन का प्यार

भारतीय शिक्षा प्रणाली में लिखने की अनोखी ज़रूरतें हैं। आपको हर दिन, हर वक्त लिखना होता है। आपको क्लास नोट्स, होमवर्क, असाइनमेंट और एग्जाम में लिखना होता है। ऐसे में रेनॉल्ड्स पेन बगैर स्याही फैलाए आपको खूबसूरत तरीके से लिखने की सुविधा देता था।

क्या आपको अपने बचपन का पढ़ाई-लिखाई का वह दौर याद है, जब हम सबका एक पंसदीदा पेन हुआ करता था? याद है दोस्तों के बीच अपनी पेन को लेकर शेखी बघारना? अपने हाथों में लेकर दोस्तों को बताना कि फलाँ कंपनी का है, इतने का है… और भी न जाने क्या-क्या?

बचपन की कलम वाली स्मृतियाँ लोगों के मन से लेकर सोशल मीडिया तक तब अचानक प्रस्फुटित होने लगीं, जब यह खबर आई कि रेनॉल्ड्स 045 फाइन कार्बर बॉल पेन (Reynolds 045 Fine carbure ball pen) अब बंद होने जा रहा है। वैसे इस पेन की बाजार में आमाद पिछले काफी समय से कम है। आसानी से अब मिलती नहीं। तो लोगों ने भी इस खबर को सत्य ही मान लिया। लेकिन सच्चाई इसके उलट है। रेनॉल्ड्स ने बयान जारी करने 045 बॉल पेन को बंद किए जाने की खबरों को खारिज किया है।

इस पेन पर 045 इसलिए लिखा होता था क्योंकि अमेरिकी कंपनी ने इसे 1945 में शुरू किया था। भले आज की पीढ़ी के लिए 045 बॉल पेन जाना-पहचाना नाम न हो, लेकिन रेनॉल्ड्स का बयान आने से पहले हमारी पी​ढ़ी (जिनका बचपन 80-90 के दशक में बीता है) के लोगों को वह बचपन याद आ गया, जिसके पिटारे में चेलपार्क इंक, टैंक वाली कलम और भी बहुत कुछ सहेजा हुआ है। उस स्याही, दवात वाली कलम के दौर में रेनॉल्ड्स 045 बॉल पेन का आना जैसे एक सुखद एहसास था। सस्ता किफायती और लिखने को आसान कर देने वाला रेनॉल्ड्स पेन उन दिनों हर दिल अजीज हो चला था।

ट्यूशन हो, क्लास हो या फिर किसी को गिफ्ट देना हो तो सफेद रंग पर नीली कैप वाला महज 5 रुपए का ये पेन बेहद खास होता था। अमेरिकी रेनॉल्ड्स इंटरनेशनल कंपनी का बनाया यह पेन भारत के एजुकेशन सिस्टम में ऐसा रचा-बसा की यहीं का होकर रह गया।

चेलपार्क की स्याही की तरह ही अब रेनॉल्ड 045 बॉल पेन का इस्तेमाल सीमित होता जा रहा है। कलम कहें या पेन ये हमारी वर्ड, डॉक्स और पीडीएफ की दुनिया में धीरे-धीरे दम तोड़ता जा रहा है। अभी भी एक कसक सी होती है ये सुनते हुए कि बाजार में रेनॉल्ड्स पेन आसानी से नहीं मिलते। भले ही इस दौर के टेबलेट, मोबाइल फोन वाले बच्चे रेनॉल्ड्स को न जाने, लेकिन हमारे जैसे 80 के दशक के बच्चों में इसका क्रेज अभी भी बना हुआ है।

भारत में 1980 से लेकर 2010 तक हर स्टूडेंट का अजीज रहा रेनॉल्ड्स पेन अमेरिकी कंपनी का था, लेकिन इसकी सरलता हम जैसे बच्चों को भा गई थी और ‘045’ धीरे-धीरे भारत में आइकन बन गया। ये पेन दशकों तक भारतीय शिक्षा और नौकरी प्रणाली का हिस्सा रहा।

आपके जेहन में भी शायद साल 2006 में क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर का वो एड अभी घूम रहा हो जिसमें वो कहते हैं बल्यू और व्हाइट मेरा रेनॉल्ड्स 045 कामयाबी का रंग दुनिया में। तब महान बल्लेबाज रेनॉल्ड्स के ब्रांड एंबेसडर बने थे।

उस वक्त पेन की दुनिया में अन्य पेन का इस्तेमाल करना मुश्किल लगता था, भले ही वो बहुत महँगे ही क्यों न हो, क्योंकि वे लगातार लीक करते रहते थे, जिससे जेब और स्कूल बैग पर नीले धब्बे लग जाया करते थे, और कभी-कभी तो स्कूल यूनिफॉर्म पर भी ये अपनी अमिट छाप छोड़ देते थे। मशहूर महँगे पार्कर, पायलट और मित्सुबिशी जैसे पेन भारतीय शिक्षा प्रणाली का बोझ नहीं झेल पाते थे।

भारतीय शिक्षा प्रणाली में लिखने की अनोखी ज़रूरतें हैं। आपको हर दिन, हर वक्त लिखना होता है। आपको क्लास नोट्स, होमवर्क, असाइनमेंट और एग्जाम में लिखना होता है। इसके अलावा लेटर, एप्लीकेशन और डायरियों के साथ ही सजा के तौर पर लिखने के लिए दिया गया सुलेख हो तो कहने ही क्या! ऐसे में रेनॉल्ड्स पेन बगैर स्याही फैलाए आपको खूबसूरत तरीके से लिखने की सुविधा देता था।

भारतीय शिक्षा प्रणाली की मुश्किल लिखावट की जरूरतों को पूरा करने के लिए अन्य ब्रांडों के पास एक या दो पेन थे। लेकिन रेनॉल्ड्स के पास पूरा बेड़ा था। इसमें 045 बेहद खास था। ये सचिन तेंदुलकर पेन कहा जाता था। इसकी रिफ़िल कभी लीक नहीं हुई और स्याही कभी फैली नहीं।

हल्का होने की वजह से इसे ‘रबर-बैंड रॉकेट प्रोपेलर’ के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है तो इसके कैप का इस्तेमाल ‘कैप-फाइट’ के लिए किया जा सकता है। ‘देशभक्त छात्र’ पेन पर लिखे अक्षरों को मिटाकर ‘इंडिया’ लिखवा लेते थे। इस पेन के असली पारखी ही जान सकते हैं कि जब इस पेन की बैंगनी, हरे और भूरे रंगों की सिरीज आई तो कितनी खुशी हुई थी।

फिर जेटर पेन आया जिसका इस्तेमाल अक्सर टीचर किया करते थे। ये जोर की ‘क्लिक-क्लैक’ आवाज करता था। इसका ट्राइमैक्स एग्जाम के लिए चैंपियन पेन था। हो सकता है कि पेन ने आपको सबसे अच्छे नंबर लाने में मदद न की हो, लेकिन इसने निश्चित रूप से बगैर किसी झंझट के आपको एग्जाम जल्दी खत्म करने और जल्दी बाहर निकलने में मदद की होगी। फिर रेसर जेल पेन आया जो लिखने और डूडलिंग दोनों के लिए सबसे आसान जेल पेन था। यह ट्रिपी डिजाइनों के साथ भी आया।

लेकिन अब आम तौर पर वर्ड, डॉक्स और पीडीएफ़ की दुनिया में पेन का अस्तित्व खत्म होता जा रहा है। अब दुकानदार कहते हैं कि रेनॉल्ड्स पेन बाज़ार में मौजूद नहीं हैं। रेनॉल्ड्स के कुछ पुराने पेन अमेज़न पर हैं। आज के बच्चे जब रेनॉल्ड्स वर्ड पढ़ेंगे तो शायद एक्टर रयान के बारे में सोचेंगे, लेकिन हमारी उम्र के लोगों के लिए रेनॉल्ड्स हमेशा बचपन का दोस्त ही रहेगा।

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रचना वर्मा
रचना वर्मा
पहाड़ की स्वछंद हवाओं जैसे खुले विचार ही जीवन का ध्येय हैं।

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