सीलमपुर के ब्रह्मपुरी इलाके में अल-मतीन मस्जिद का मामला फिर से गरमा गया है। यहाँ के हिंदुओं का कहना है कि मुस्लिम पहले चुपके से आते हैं, फ्लैट खरीदते हैं, फिर घर लेते हैं, मस्जिद बनाते हैं और धीरे-धीरे पूरे इलाके पर कब्जा कर लेते हैं। फिर मौका मिलते ही पूरी कौम एकजुट होकर हिंदुओं पर हमला कर देती है।
साल 2020 के हिंदू-विरोधी दंगों में इसी मस्जिद से गोलियाँ चली थीं, जिसके बाद हिंदुओं का डर गहरा गया। अब मस्जिद को गली नंबर-12 में शिव मंदिर के सामने तक बढ़ाने की कोशिश हो रही है। MCD के नियमों को ठेंगा दिखाते हुए बिना नक्शा पास कराए काम शुरू हुआ। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि इसके लिए पैसा कहाँ से आ रहा है? ₹40 लाख की जमीन दान करने वाला शख्स चप्पल की दुकान चलाता है। क्या विदेशी फंडिंग का खेल है? ये कहानी सिर्फ मस्जिद की नहीं, बल्कि संदिग्ध फंडिंग, साजिश और हिंदुओं के डर की है। आइए, इसे विस्तार से समझते हैं।
सबसे पहले जड़ को समझना जरूरी, कहाँ से खेल हुआ शुरू
ब्रह्मपुरी में अल-मतीन मस्जिद की कहानी 2013 से शुरू होती है। स्थानीय निवासी पंडित लाल शंकर गौतम बताते हैं, “2013 में मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने गली नंबर-13 में एक फ्लैट खरीदा था। वहाँ नमाज शुरू हुई। किसी को कोई परेशानी नहीं थी। लेकिन धीरे-धीरे उस फ्लैट को चार मंजिल की मस्जिद में बदल दिया गया।”
गौतम कहते हैं कि ये सब सोच-समझकर किया गया। पहले एक छोटी सी जगह ली गई, फिर उसे बढ़ाते गए। उनका मानना है कि मुस्लिम इस तरह इलाकों में घुसते हैं। पहले एक फ्लैट लेते हैं, फिर आसपास के घर खरीदते हैं और मस्जिद बना लेते हैं। शुरू में सब ठीक लगता है, लेकिन बाद में माहौल बदल जाता है। 2013 में जब मस्जिद शुरू हुई, तब गली नंबर-12 और 13 में हिंदू बहुमत में थे। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं।
साल 2020 के फरवरी महीने में दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाकों में दंगे भड़के। ब्रह्मपुरी और सीलमपुर में हिंसा ने 53 लोगों की जान ले ली। इस दौरान अल-मतीन मस्जिद का नाम खास तौर पर सामने आया। गौतम बताते हैं, “25 फरवरी को मस्जिद से निकली भीड़ ने गोलियाँ चलाई थीं। वीडियो सबूत भी सामने है। अचानक हजारों की भीड़ जमा हो गई। मस्जिद में आग लगाने की झूठी अफवाह फैलाई गई। फिर गली नंबर-13 में गोलीबारी हुई, जिसमें तीन हिंदू लड़के घायल हुए।”
हिंदुओं का कहना है कि ये सब सोचा-समझा था। मुस्लिम पूरी कौम एकजुट होकर हिंदुओं पर टूट पड़े। गौतम कहते हैं, “उस दिन हमें समझ आ गया कि मस्जिद सिर्फ नमाज के लिए नहीं है। ये उनकी ताकत दिखाने का अड्डा है।” दंगों के बाद हिंदुओं में डर बैठ गया। कई परिवार इलाका छोड़ गए। लोगों को लगने लगा कि मस्जिद के बहाने कुछ बड़ा खेल चल रहा है।
प्लानिंग के तहत मस्जिद को किया जा रहा बड़ा
साल 2020 के हिंदू विरोधी दंगों के बाद मस्जिद को बड़ा करने की कोशिश शुरू हुई। 2023 में मस्जिद वालों ने गली नंबर-12 में दो प्लॉट खरीदे। दोनों प्लॉट 75-75 गज के थे, यानी कुल 150 गज। एक प्लॉट कुलभूषण शर्मा का था, जो 1967 से उनके परिवार के पास था। दूसरा कुलदीप कुमार का था। गौतम कहते हैं, “पहले घर खरीदे, फिर तोड़ दिए। अब वहाँ मस्जिद का हिस्सा बन रहा है।”
योजना थी कि मस्जिद का नया गेट गली नंबर-12 में खोला जाए, जो 1984 से बने शिव मंदिर के ठीक सामने पड़ता है। हिंदुओं को ये बिल्कुल मंजूर नहीं। गली नंबर-12 में करीब 60 हिंदू परिवार रहते हैं। हिंदुओं को डर है कि मस्जिद बड़ी हुई तो भीड़ बढ़ेगी और 2020 जैसा हमला फिर हो सकता है। शंकर लाल गौतम कहते हैं, “अगर मस्जिद दो गुनी बड़ी हो गई तो सोचो, कितने लोग यहाँ जमा होंगे। फिर हमें कौन बचाएगा?”
मस्जिद के विस्तार के पीछे पूरा तंत्र सक्रिय, खास पैटर्न दिखा
अब बात फंडिंग की, जो इस कहानी का सबसे बड़ा सवाल है। गली नंबर-12 में दो प्लॉटों की खरीद का तरीका संदिग्ध है। पहला प्लॉट कुलभूषण शर्मा से जनवरी 2023 में खरीदा गया। सैय्यद मुबश्शिर हुसैन, उबैद उर रहमान और अब्दुल खालिक ने 40 लाख 70 हजार रुपये में सौदा किया। ये प्रॉपर्टी कुलभूषण के पास 2013 से थी, जिसे उनके पिता किशन चंद ने 1967 में खरीदा था। उस वक्त यहाँ हिंदू बहुमत में थे। लेकिन 2013 में जब गली नंबर-13 में अल-मतीन मस्जिद शुरू हुई, तभी मुस्लिमों की नजर इस जमीन पर पड़ गई।
सौदे का तरीका ऐसा था-13 लाख 50 हजार रुपये तीन बार में बैंक ट्रांसफर से दिए गए। उबैद उर रहमान ने 30 दिसंबर 2022 को यूनियन बैंक से, अब्दुल खालिक ने 2 जनवरी 2023 को स्टेट बैंक से, और मुबश्शिर हुसैन ने 5 जनवरी 2023 को बैंक ऑफ बड़ौदा से 13 लाख 50 हजार रुपये ट्रांसफर किए। सिर्फ 20 हजार रुपये नकद दिए गए। रजिस्ट्री जनवरी 2023 में पूरी हुई। फिर 20 मार्च 2024 को ये जमीन अल-मतीन वेलफेयर सोसाइटी को दान कर दी गई, जिसके अध्यक्ष अब्दुल अलीम हैं। उनका पता निजामुद्दीन का है, जो ब्रह्मपुरी से काफी दूर है।
दूसरा प्लॉट अप्रैल 2023 में कुलदीप कुमार से खरीदा गया। समीर अहमद, मोहम्मद अलफहद और जहीन अहमद ने 40 लाख 70 हजार रुपये में सौदा किया। यहाँ भी वही पैटर्न था। 13 लाख 50 हजार रुपये तीन बार में ट्रांसफर हुए। 3 अप्रैल 2023 को यूनियन बैंक से, 5 अप्रैल 2023 को सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया से चेक से, और 27 अप्रैल 2023 को पंजाब नेशनल बैंक से RTGS के जरिए पैसे गए। 20 हजार रुपये नकद दिए।
दोनों सौदों में कुल 81 लाख 40 हजार रुपये कुलदीप और कुलभूषण को मिले। रजिस्ट्री में 2 लाख 44 हजार 200 रुपये स्टांप ड्यूटी लगी। गिफ्ट डीड से जमीन ट्रांसफर करते वक्त 2 लाख 85 हजार 600 रुपये की स्टांप ड्यूटी दी गई, जिसमें 6% स्टांप के 2 लाख 4 हजार और 2% कारपोरेशन टैक्स के 81 हजार 600 रुपये शामिल थे। इस तरह 40 लाख 70 हजार की हर प्रॉपर्टी करीब 45-46 लाख में पड़ी। दोनों प्लॉटों के लिए 90 लाख से ज्यादा खर्च हुए।
दबी जुबान में कहा जा रहा है कि ये प्रॉपर्टी करीब ढाई करोड़ में खरीदी गई, चूँकि जमीन सौदों में बड़ी रकम नकद में दी जाती है, ताकि टैक्स का झंझट कम से कम हो। हालाँकि हम अभी सिर्फ ऑन रिकॉर्ड मौजूद राशि की ही बात कर रहे हैं।

चप्पल की दुकान से 13 लाख 50 हजार का जकात?
सबसे चौंकाने वाली बात जहीन अहमद उर्फ गुड्डू की है। वो साप्ताहिक बाजार में चप्पल की दुकान लगाता है। उसने 13 लाख 70 हजार रुपये जमीन में लगाए और सालभर में दान कर दिए। गौतम कहते हैं, “चप्पल बेचने वाला इतना पैसा कहाँ से लाया? ये किसी को हजम नहीं होता।” जहीन के दस्तखत हिंदी में हैं, बाकी सबके अंग्रेजी में। मामला भाषा का नहीं, उसके बैकग्राउंड का है। चप्पल बेचकर घर चलाने वाला शख्स इतनी बड़ी रकम कैसे दे सकता है? हिंदुओं को शक है कि इसके पीछे विदेशी फंडिंग हो सकती है। अल-मतीन वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष का पता निजामुद्दीन में होना भी सवाल उठाता है। क्या ये कोई बड़ा नेटवर्क है?
फंडिंग में विदेशी हाथ?
इस 90 लाख से ज्यादा की जमीन को खरीदने और दान करने का पैसा कहाँ से आया? जहीन जैसे चप्पल बेचने वाले का इतना पैसा देना संदिग्ध है। हिंदुओं को लगता है कि विदेशी फंडिंग हो सकती है। अल-मतीन वेलफेयर सोसाइटी और निजामुद्दीन का कनेक्शन शक बढ़ाता है। गौतम कहते हैं, “पैसे की जड़ तक जाना जरूरी है। सरकारी एजेंसियाँ क्या कर रही हैं?” मस्जिद में बच्चों को दीनी तालीम दी जाती है। सरकार से मदद नहीं मिलती। रजिस्ट्रेशन भी शायद नहीं है। फिर इतना पैसा कहाँ से?
ये सारी बातें ब्रह्मपुरी में रहने वाले हिंदुओं को डराती हैं। उन्हें समझ में आ रहा है कि किसी भी इलाके में मुस्लिम एक पैटर्न से काम करते हैं। ब्रह्मपुरी में पहले फ्लैट, फिर घर, फिर मस्जिद। 2018 का तनाव, 2020 का हमला और अब संदिग्ध फंडिंग से विस्तार इसका सबूत है। ऐसे में अगर फंडिंग का रहस्य सुलझा लिया जाए, तो साजिश की परतें भी साफ हो ही जाएँगी।
ब्रह्मपुरी की अल-मतीन मस्जिद केस से जुड़ी अन्य ग्राउंड रिपोर्ट्स पढ़ें-
1- मस्जिद को बढ़ाना, शिव मंदिर के सामने उसका गेट खोलना… दिल्ली सीलमपुर (ब्रह्मपुरी) की इसी अल-मतीन मस्जिद से 2020 हिंदू-विरोधी दंगों में चली थी गोलियाँ: समझिए हिंदू क्यों लगा रहे ‘मकान बिकाऊ’ के पोस्टर
2- ब्रह्मपुरी की अल मतीन मस्जिद भी धोखे से बनी, अब मंदिर के सामने गेट खोलने की कोशिश: MCD का बोर्ड लगा मामले को दबाने की कोशिश, आखिर क्यों मस्जिद को बड़ा करने की जिद?
3- सीलमपुर के अल-मतीन मस्जिद मामले से समझिए, कैसे मुस्लिम आपके इलाके में घुसते हैं… खुद को फैलाते हैं और एक दिन आपको लगाना पड़ता है ‘मकान बिकाऊ’ का पोस्टर