दिल्ली हाईकोर्ट ने संपत्ति के बँटवारे मामले में सुनवाई के दौरान एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि केवल मुस्लिम व्यक्ति से विवाह कर लेने मात्र से कोई हिंदू धर्म का व्यक्ति इस्लाम में स्वत: धर्मांतरित नहीं हो जाता।
कोर्ट की यह टिप्पणी ‘डॉक्टर पुष्पलता एवं अन्य बनाम रामदास HUF एवं अन्य’ केस में की गई। मामला, दरअसल ये था कि फ्रेंड्स कॉलोनी में रहने वाले व्यक्ति राम दास ने दो शादियाँ (एक बीवी के गुजरने के बाद दूसरी) की थीं। पहली पत्नी से उनकी 2 बेटियाँ थीं और दूसरी पत्नी से 2 बेटे।
हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 के 9 सितंबर 2005 के लागू होने के बाद से बेटियाँ भी पिता की संपत्ति में अधिकारी थीं। ऐसे में 2007 में मुकदमा दायर हुआ। पहली पत्नी से हुई बड़ी बेटी ने मुकदमा व्यक्ति की दूसरी पत्नी के दोनों बेटो पर किया।
आरोप लगाया गया कि ये लोग उनसे बिन पूछे या बिन सहमति लिए उनके पिता की संपत्ति बेचने, उसे अलग करने और उसे निपटाने की कोशिश कर रहे थे। जबकि बेटियों के पास मुकदमे की संपत्तियों में से प्रत्येक का 1/5 हिस्सा था।
पिता ने उस समय इस आधार पर बेटी द्वारा दायर किए गए मुकदमे का विरोध किया कि बेटी ब्रिटेन में पाकिस्तान मूल के किसी मुस्लिम व्यक्ति से निकाह कर चुकी थी और वहीं रहती थी। पिता का कहना था कि बेटी अब हिंदू नहीं है इसलिए उनकी संपत्ति में उनका अधिकार नहीं है।
बाद में केस की सुनवाई के बीच ही दिसंबर 2008 में व्यक्ति की मौत हो गई और उनका केस बेटों ने लड़ा। कोर्ट ने अब इसी मामले में ये पाया कि प्रतिवादियों को ये साबित करना था कि वादी की बड़ी बेटी अब हिंदू नहीं है, लेकिन वो लोग ऐसा नहीं कर पाए।
ऐसे में कोर्ट ने कहा प्रतिवादी अपना दायित्व पूरा करने में असफल रहे, क्योंकि इस दावे को प्रमाणित करने के लिए कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया कि सबसे बड़ी बेटी ने हिंदू धर्म त्याग दिया था या औपचारिक रूप से इस्लाम धर्म अपना लिया था।
अदालत ने कहा कि महिला ने हलफनामे के माध्यम से अपने साक्ष्य में स्पष्ट रूप से कहा है कि उस व्यक्ति के साथ अपने नागरिक विवाह के बाद भी वह अपने धर्म अर्थात हिंदू धर्म का पालन करती रही है।
जस्टिस जसमीत सिंह मामले की सुनवाई करते हुए बोले- “मेरे विचार से, किसी मुस्लिम से विवाह करने मात्र से हिंदू धर्म से इस्लाम में स्वतः धर्मांतरण नहीं हो जाता। वर्तमान मामले में, प्रतिवादियों द्वारा किए गए मात्र कथन के अलावा, प्रतिवादियों द्वारा कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया है जिससे यह साबित हो सके कि वादी संख्या 1 ने इस्लाम में धर्मांतरण की मान्यता प्राप्त प्रक्रिया अपनाई है।”
न्यायालय ने कहा कि चूँकि महिला ने अपना धर्म नहीं बदला है, इसलिए वह एचयूएफ संपत्तियों में अपना हिस्सा “दावा करने की हकदार” है। कोर्ट ने माना कि नियमानुसार बेटियाँ एचयूएफ के नाम पर पीपीएफ खाते में जमा राशि में से प्रत्येक को केवल 1/4 हिस्सा पाने की हकदार थीं। वहीं प्रॉपर्टी में 2 संपत्तियों की हकदार हैं।