दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने सोमवार (30 जून 2025) को JNU के स्टूडेंट रहे नजीब अहमद की गुमशुदगी के मामले में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को मान लिया है। कोर्ट ने साफ-साफ कहा है कि मामले की पूरी जाँच हुई, कोई भी ऐसा सबूत नहीं मिला जिससे यह साबित हो कि नजीब के साथ किसी ने मारपीट की, उसे अगवा किया या उसे जानबूझकर गायब किया गया।
कोर्ट ने साफ कहा कि सीबीआई ने हर पहलू से जाँच की, लेकिन नजीब का कोई सुराग नहीं मिला। फिर भी इस्लामिक कट्टरपंथी, वामपंथी छात्र संगठन और उनका राजनीतिक इकोसिस्टम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठा रहा है। सोशल मीडिया पर हंगामा मचा है और कोर्ट को गलत ठहराने की कोशिश की जा रही है।
कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि नजीब अहमद 15 अक्टूबर 2016 से गायब है और आज तक उसके बारे में कोई जानकारी सामने नहीं आई है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि CBI ने 173(2) CrPC के तहत जो क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल की है, उसमें यह बताया गया है कि सभी संभावित कोणों से गहन जाँच की गई, लेकिन नजीब की लोकेशन या उससे जुड़ी कोई भी निर्णायक जानकारी सामने नहीं आ सकी।
क्या हुआ था 2016 में?
नजीब अहमद जेएनयू का छात्र था और एमएससी बायोटेक्नोलॉजी का पहला साल पढ़ रहा था। 15 अक्टूबर 2016 को वह अपने माही-मांडवी हॉस्टल के रूम नंबर 106 से अचानक गायब हो गया।
घटनाक्रम के मुताबिक, नजीब अहमद 14 अक्टूबर 2016 की रात JNU के माही-मांडवी हॉस्टल के रूम नंबर 106 में थे, जब ABVP से जुड़े छात्रों ने -जो छात्र संघ चुनाव के लिए प्रचार कर रहे थे, उसके कमरे का दरवाजा खटखटाया। इनमें विक्रांत कुमार, सुनील प्रताप सिंह और अंकित कुमार रॉय शामिल थे।
जब नजीब ने दरवाजा खोला तो उन्होंने नजीब से मतदान की अपील की। इसी दौरान कथित रूप से नजीब ने विक्रांत को थप्पड़ मार दिया और उसकी कलाई में बंधे कलावे (हिंदू धार्मिक धागे) पर आपत्ति जताई। इसके बाद विक्रांत और नजीब के बीच झगड़ा हुआ और ABVP कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी शुरू कर दी।
सुरक्षा गार्डों की मौजूदगी में नजीब को वॉर्डन ऑफिस ले जाया गया, जहाँ उसने मारपीट की बात स्वीकार की और माफी भी माँगी। उसे हॉस्टल से निकाले जाने का फैसला लिया गया, जिसे अगले दिन वापस ले लिया गया। हालाँकि अगली सुबह 15 अक्टूबर 2016 को नजीब लापता हो गया। आखिरी बार हॉस्टल वॉर्डन अरुण श्रीवास्तव (LW-4) ने उसे सुबह 11:30 बजे देखा, जब वह एक ऑटो में बैठता दिखा। CBI की रिपोर्ट के अनुसार नजीब बिना किसी समान के गया और यह ‘स्वेच्छा से गायब होने’ का मामला हो सकता है। उसके मोबाइल और लैपटॉप कमरे में ही मिले।
वामपंथी संगठनों ने बिना जाँच के आरोप लगा दिया कि एबीवीपी ने नजीब को गायब करवाया। जेएनयू, जामिया, एएमयू और देशभर के कैंपस में नारे लगे कि “हिंदूवादी संगठनों ने मुस्लिम छात्र को गायब किया।”
उस समय मीडिया खासकर अंग्रेजी चैनल्स ने इसे ‘हिंदुत्व की हिंसा का मामला बना दिया। लेकिन हकीकत यह थी कि झगड़े की शुरुआत नजीब ने की थी। नजीब ने तीन छात्रों पर हमला किया था, जिनमें दो दलित थे, फिर भी उसे यानी नजीब को ‘मासूम’ दिखाया गया।
ये वही गैंग है, जो 2016 में अचानक नजीब की गुमशुदगी के बाद सड़कों पर उतर आया था। जेएनयू से लेकर जामिया, एएमयू और देशभर के यूनिवर्सिटी कैंपस में नारे लगे कि ‘हिंदूवादी संगठनों ने एक मुस्लिम छात्र को गायब कर दिया’। जबकि अब कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि यह पूरी तरह झूठा और मनगढ़ंत प्रोपेगेंडा था। सीबीआई की जाँच में न सिर्फ सबूतों की गहराई से जाँच हुई, बल्कि जिन 9 छात्रों पर आरोप लगाए गए थे, उनके खिलाफ एक भी ऐसा सबूत नहीं मिला जिससे कोई कानूनी कार्रवाई की जा सके।
सीबीआई की जाँच और कोर्ट का रुख
दिल्ली पुलिस ने पहले जाँच की, लेकिन कुछ पता नहीं चला। बाद में दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश से यह केस सीबीआई को सौंपा गया। सीबीआई ने 2018 में जाँच बंद करने की बात कही क्योंकि नजीब का कोई ठोस सुराग नहीं मिला। दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट के अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ज्योति महेश्वरी ने 30 जून 2025 को नजीब अहमद गुमशुदगी मामले में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट और फातिमा नफीस की प्रोटेस्ट पिटीशन पर विस्तार से सुनवाई के बाद सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को मंजूरी दे दी।
कोर्ट ने विस्तार से कहा –
- सीबीआई ने 560 गवाहों से पूछताछ की।
- मोबाइल डेटा, सीसीटीवी फुटेज, बैंक रिकॉर्ड, कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) और इंटरपोल की मदद से जाँच हुई।
- 9 छात्रों (जिन पर आरोप था) की गहन जाँच हुई, लेकिन कोई सबूत नहीं मिला कि उन्होंने नजीब को नुकसान पहुँचाया।
- नजीब खुद हॉस्टल से गया था, कोई मारपीट, अगवा होने या जानलेवा हमले का सबूत नहीं मिला।
- नजीब की मानसिक हालत ठीक नहीं थी, जिसकी बात डॉक्टरों और उसकी माँ फातिमा नफीस ने भी मानी। रिपोर्ट में डिप्रेशन का जिक्र है।
- कोर्ट ने माना कि नजीब की गुमशुदगी रहस्यमई है, लेकिन एबीवीपी या किसी अन्य की इसमें कोई भूमिका साबित नहीं हुई।

कोर्ट ने अपने फैसले में साफ साफ कहा है कि ABVP के कार्यकर्ताओं का नजीब की गुमशुदगी से कोई लेना-देना नहीं। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर भविष्य में कोई नया सबूत मिलता है, तो जाँच फिर शुरू हो सकती है। कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा, “सच हमसे छिपा हो सकता है, लेकिन उसकी खोज अडिग और अडचनों से परे जारी रहनी चाहिए।”
दरअसल, 2018 में ही सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी, लेकिन उसका विरोध किया गया था। फातिमा नफीस की ओर से दाखिल प्रोटेस्ट पिटीशन में CBI की जाँच को ‘भ्रामक’, ‘आधे अधूरे तथ्यों पर आधारित’ और ‘पूर्वाग्रह से ग्रसित’ बताया गया था। उनका कहना था कि CBI ने जानबूझकर यह थ्योरी बनाई कि नजीब JNU से खुद चला गया था, जबकि इससे जुड़े कई अहम सबूतों और संभावित संदिग्धों की भूमिका की उचित जाँच नहीं की गई।
फातिमा नफीस शुरू से कहती रही हैं कि उनके बेटे को एबीवीपी ने गायब करवाया और यह राजनीतिक साजिश है। उन्होंने मीडिया और वामपंथी संगठनों के जरिए इस मुद्दे को हवा दी। लेकिन कोर्ट ने उनकी आपत्तियों को खारिज कर दिया और कहा कि सीबीआई ने हर पहलू से जाँच की है।
प्रोपेगेंडा गैंग का हंगामा जारी
कोर्ट के साफ फैसले के बावजूद अब इस्लामी कट्टरपंथी, वामपंथी गैंग और कॉन्ग्रेसी इकोसिस्टम सोशल मीडिया पर हंगामा मचा रहा है। SDPI ( बैन किए गए आतंकी संगठन PFI के राजनीतिक मुखौटे) ने इस केस को जारी रखने की माँग करते हुए ऑफिसियल एक्स हैंडल से ट्वीट भी किया है।
एसडीपीआई का कहना है कि यह सच्चाई से मुँह मोड़ने और न्याय को बाधित करने वाला कदम है। उसके पोस्ट में लिखा है कि मुकदमा बंद नहीं होना चाहिए।
जेएनयू के छात्र नजीब अहमद की गुमशुदगी मामले में 30 जून 2025 को राउस एवेन्यू कोर्ट द्वारा सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट स्वीकार करना, एक मां के नौ वर्षों के दर्द को और बढ़ाने वाला निर्णय है। यह सच्चाई से मुंह मोड़ने और न्याय को बाधित करने वाला कदम है। #NajeebAhmed pic.twitter.com/2ViSfrjy7U
— SDPI (@sdpofindia) July 1, 2025
जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष नीतीश कुमार की तरफ से बाकायदा पोस्टर तक जारी किया गया है। इसके साथ ही एक्स पर लिखा है, “दिल्ली पुलिस और सीबीआई ने जिस तरीके से इस पूरे केस को डील किया है वो साफ़ दिखाता है कि अब तक नहीं पता है की नजीब कहाँ गया। जिन परिषद के लोगों ने उसके साथ मारपीट की उसे कभी गिरफ़्तार नहीं किया गया। हम लोग रिपोर्ट पढ़ रहे हैं, और अम्मी के साथ मिलकर जिस तरीक़े से वो इस लड़ाई को लड़ना चाहती ह, जेएनयू का स्टूडेंट्स और जेएनयूएसयू उनके साथ खड़ा रहेगा।”
जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे पूर्व वामपंथी और बाद में कॉन्ग्रेसी नेता कन्हैया कुमार भी मामले को हवा देने में जुट गया। कन्हैया ने नजीब की माँ के हवाले से इमोशनल पोस्ट लिखकर आम लोगों की भावनाओं को भड़काने की कोशिश की। वो ये लिखकर मामले पर राजनीतिक रोटियाँ सेंक रहा है कि वो नजीब की माँ के साथ खड़ा है।
सुहैल आजाद नाम के व्यक्ति ने लिखा, “हम दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए, लेकिन अफसोस कि एक माँ को उसका बेटा नहीं लौटा सके।” ऐसी ही कोशिश गुरप्रीत वालिया जैसे एक्स हैंडल कर रहे हैं, जो खुलेआम विचारधारा के स्तर पर राष्ट्रवादियों के विरोध में हमेशा रहते हैं।
मोहम्मद शादाब खान नाम का व्यक्ति लिखता है, “आज जब अदालत कहती है कि CBI ने अपनी ‘पूरी कोशिश’ की, तो यह सवाल लाज़िमी है: क्या राज्य की कोशिशें भी नागरिक की धार्मिक और वैचारिक पहचान देखकर तय होती हैं? क्या एक ‘अस्वीकार्य विचारधारा’ रखने वाला छात्र इस देश में ‘लापता’ हो जाना डिजर्व करता है?” वहीं गोविंद प्रताप सिंह नाम के कथित वामपंथी पत्रकार ने लिखा, “सॉरी नजीब”
नजीब केस बंद!!
— Govind Pratap Singh | GPS (@govindprataps12) July 1, 2025
9 साल बाद भी कुछ अता-पता नहीं
JNU में पढ़ाई कर रहे थे नजीब pic.twitter.com/jw5ccK4PiG
अंग्रेजी और वामपंथी मीडिया बनाना चाहते थे दूसरा ‘रोहित वेमुला’ केस
2016 में अंग्रेजी और वामपंथी मीडिया ने इस मामले को हिंदुत्व की हिंसा बता दिया था। नजीब को ‘मासूम मुस्लिम छात्र’ और एबीवीपी को खलनायक दिखाया गया। ये कोशिशें अब भी जारी हैं। लेकिन अब जब कोर्ट ने कहा कि कोई दोष नहीं है, तो वही मीडिया चुप है। ऑपइंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, नजीब ने खुद तीन छात्रों पर हमला किया था, जिनमें दो दलित थे। फिर भी उसे पीड़ित और उन छात्रों को गलत दिखाया गया। यह मीडिया का दोहरा चेहरा है।
इनका मकसद सच जानना नहीं, बल्कि राजनीतिक फायदा उठाना और हिंदू संगठनों को बदनाम करना है। वे नजीब के नाम पर एक नया ‘रोहित वेमुला‘ बनाना चाहते हैं।
राजनीतिक बयानबाजी में फँस गई फातिमा नफीस
नसीब अहमद की अम्मी फातिमा नफीस का दुख समझ में आता है। कोई माँ अपने बेटे को खोने का गम कैसे भूले? वह लगातार कहती रही हैं कि उन्हें उनका बेटा चाहिए और जाँच एजेंसियाँ नाकाम रहीं। उन्होंने कहा, “मैं आखिरी साँस तक लड़ूंगी।” लेकिन उनका गुस्सा एबीवीपी और हिंदू संगठनों पर गलत है। कोर्ट ने साफ कहा कि कोई सबूत नहीं मिला। उन्हें अब कोर्ट के फैसले को मान लेना चाहिए और सच को स्वीकार करना चाहिए। उनके दुख का इस्तेमाल प्रोपेगेंडा के लिए नहीं होना चाहिए।
नजीब अहमद का केस अब कानूनी तौर पर बंद हो गया है। कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट स्वीकार कर ली है। सीबीआई ने 9 छात्रों को क्लीन चिट दे दी है। लेकिन वामपंथी-इस्लामिक कट्टरपंथी गैंग अब इस पर भी राजनीति कर रहा है। इनका मकसद नजीब को इंसाफ दिलाना नहीं, बल्कि हिंदू संगठनों को बदनाम करना और राजनीति चमकाना है। इस गैंग को न सच्चाई से मतलब है, न न्याय से। इन्हें बस एक नया ‘रोहित वेमुला’ चाहिए, ताकि वे अपने झूठे एजेंडे को आगे बढ़ा सकें।
कोर्ट ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया है। अब लोगों को सच समझना चाहिए और प्रोपेगेंडा से बचना चाहिए। अब जरूरत है कि लोग सच्चाई को समझें और सवाल पूछें – कि नजीब का इस्तेमाल क्यों किया गया? उसके नाम पर हिंदू संगठनों को क्यों बदनाम किया गया? और क्यों एक माँ के दुख को राजनीतिक औजार बना दिया गया?
बरहराल, अगर कोई नया सबूत मिलता है, तो जाँच फिर शुरू हो सकती है, लेकिन अभी के लिए यह मामला खत्म हो गया है। लेकिन वामपंथियों, कॉन्ग्रेसी इकोसिस्टम और इस्लामी कट्टरपंथियों के लिए ये एक नई शुरुआत है।