Friday, February 14, 2025
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लव जिहाद को बरेली कोर्ट ने बताया था अंतरराष्ट्रीय साजिश, मुस्लिम शख्स समुदाय के खिलाफ बताते हुए पहुँचा सुप्रीम कोर्ट: शीर्ष न्यायालय बोला- तथ्यों पर आधारित है टिप्पणी, सनसनीखेज मत बनाइए

बरेली जिला के अपर सत्र न्यायाधीश (फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट प्रथम) रवि कुमार दिवाकर ने अवैध मतांतरण को देश की एकता व सम्प्रभुता के लिए खतरा बताया था। इसके साथ ही उन्होंने इस तरह की गतिविधियों में विदेशी फंडिंग होने की भी आशंका जाहिर की थी। उन्होंने यह भी आशंका जाहिर की थी कि अगर भारत में इस पर अंकुश नहीं लगा तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (2 जनवरी) को बरेली कोर्ट की टिप्पणियों को ‘सनसनीखेज’ बनाने का प्रयास करने के लिए एक व्यक्ति को फटकार लगाई। दरअसल, बरेली कोर्ट ने मोहम्मद आलिम (या अलीम) नामक व्यक्ति को लव जिहाद मामले में दोषी ठहराते हुए पाकिस्तान और बांग्लादेश शैली के धर्मांतरण को लेकर चेतावनी दी थी। कोर्ट के इन टिप्पणियों को हटाने के लिए अनस नामक शख्स ने जनहित याचिका दायर की थी।

अनस ने अधिवक्ता मनस पी हमीद के माध्यम से दायर अपनी जनहित याचिका में कहा था कि बरेली कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियाँ मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हैं। जस्टिस हृषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की पीठ ने अनस की याचिका को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिका दायर करने वाला उस मामले में पक्षकार नहीं था और वह इस विषय को ‘सनसनीखेज’ बना रहा था।

अधिवक्ता हमीद ने भी माना कि उनका मुवक्किल उत्तर प्रदेश के संबंधित मामले में पक्षकार नहीं था। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए जस्टिस रॉय ने कहा, “आप एक व्यस्त व्यक्ति हैं… बस किसी ऐसी चीज़ में हस्तक्षेप कर रहे हैं, जो आपके लिए बिल्कुल भी काम की नहीं है। आप इस तरह के मामले के लिए अनुच्छेद 32 याचिका दायर नहीं कर सकते हैं।”

जस्टिस भट्टी ने सवाल उठाया कि अदालत इस तरह के स्वतंत्र मुकदमे से जुड़ी टिप्पणियों को कैसे हटा सकती है। उन्होंने कहा, “यह मानते हुए कि सत्र न्यायालय के समक्ष साक्ष्य से एक विशेष निष्कर्ष की पुष्टि होती है और एक निष्कर्ष दर्ज किया जाता है जो हमारे समक्ष याचिकाकर्ता से नहीं है, क्या इसे इस तरह के स्वतंत्र मामले में हटा दिया जाना चाहिए? मामले को इस तरह से सनसनीखेज बनाना सही नहीं है।”

शीर्ष न्यायालय ने स्पष्ट किया कि साक्ष्य के आधार पर की गई टिप्पणियों को अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका के आधार पर हटाया नहीं जा सकता। संविधान का अनुच्छेद 32 कहता है कि नागरिक अपने मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए कोर्ट जा सकते हैं। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता यह दावा नहीं कर सकता कि साक्ष्य के आधार पर की गई टिप्पणियों ने उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है।

क्या कहा था बरेली कोर्ट ने?

बरेली कोर्ट ने 30 सितंबर 2024 को अपने फैसले में मोहम्मद आलिम को एक हिंदू महिला के साथ लव जिहाद करने के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। उस पर 1 लाख रुपए का जुर्माना भी ठोंका था। अपने बेटे की करतूत में सहयोगी बने आलिम के अब्बा साबिर को भी 2 साल की कैद की सजा गई है। अदालत ने भारत में पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसी हालात पैदा करने की साजिश चलने की आशंका जताई थी।

मोहम्मद आलिम ने आनंद बनकर हिंदू महिला को फाँसा था और उसके साथ यौन संबंध बनाकर धर्मांतरण कर निकाह करने के लिए दबाव बनाया था। इसके लिए वह महिला के साथ हिंसा भी करता था। अपने फैसले में बरेली कोर्ट ने लव जिहाद को भारत में कुछ धर्म विशेष के लोगों द्वारा जनसंख्या वृद्धि का हथियार बताया था। साथ ही इसे धर्मान्तरण की एक अंतरराष्ट्रीय साजिश करार दिया था।

बरेली जिला के अपर सत्र न्यायाधीश (फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट प्रथम) रवि कुमार दिवाकर ने अवैध मतांतरण को देश की एकता व सम्प्रभुता के लिए खतरा बताया था। इसके साथ ही उन्होंने इस तरह की गतिविधियों में विदेशी फंडिंग होने की भी आशंका जाहिर की थी। उन्होंने यह भी आशंका जाहिर की थी कि अगर भारत में इस पर अंकुश नहीं लगा तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।

क्या था पूरा मामला?

बरेली जिले का यह पूरा मामला साल 2022 का है। तब आलिम ने खुद को आनंद बताते हुए हिन्दू लड़की से दोस्ती की थी। वह हाथ में कलावा बाँधता था और मंदिर भी जाता था। पीड़िता कम्प्यूटर की कोचिंग करने जाती थी जहाँ अ उसका पीछा करता था। किसी तरह उसने लड़की को अपने झाँसे में ले लिया। उसके बाद शादी का झाँसा देते हुए 13 मार्च 2022 को आलिम ने एक मंदिर में पीड़िता की माँग भरी।

शादी का दिखावा करने के बाद आलिम ने लड़की से कई बार रेप किया। इसके कारण पीड़िता गर्भवती हो गई। उसने आलिम पर घरवालों के मुताबिक शादी का दबाव बनाया तो आलिम इससे मुकरने लगा। उसने पीड़िता का गर्भपात भी करवा दिया। मई 2023 में पीड़िता आलिम के घर पहुँच गई। यहाँ पर उसे पता चला कि जिसे वह आनंद समझ रही थी, वह मुस्लिम है और उसका नाम आलिम है।

इसके बाद पीड़िता ने आलिम के परिजनों को इसके बारे बताई तो उन्होंने पीड़िता की ही पिटाई शुरू कर दी। पिटाई के साथ आलिम के अब्बा साबिर ने निकाह के लिए पीड़िता को इस्लाम कबूल करने का विकल्प दिया। लड़की ने ऐसा करने से इनकार कर दिया और पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई। पुलिस ने केस दर्ज कर आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया था। कुछ ही दिनों में कोर्ट में चार्जशीट पेश कर दी गई थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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