Tuesday, June 10, 2025
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जब हिमांशी नरवाल के बयान से मिली नैरेटिव को धार, तो वामपंथी मीडिया ने बनाया हीरो: अब अब्बू-बेटे की जोड़ी ने बनाई अश्लील AI वीडियो तो सिले होठ

दरअसल बात यह यह है कि वर्तमान खबर भले ही हिमांशी नरवाल से जुड़ी हो, उनके सम्मान से जुड़ी हो, लेकिन यह वामपंथी मीडिया के एजेंडे के खिलाफ है। वामपंथी मीडिया यह खबर इसलिए दबा कर बैठ गई, क्योंकि इस बार आरोपित मुस्लिम हैं।

22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम में एक आतंकी हमला हुआ। इस हमले की पहचान बनी वो तस्वीर, जिसमे एक महिला अपने मृत पति के पास बैठी है। यह फोटो लेफ्टिनेंट विनय नरवाल और उनकी नवविवाहिता पत्नी हिमांशी नरवाल की थी। फोटो में विनय जमीन पर पड़े थे और हिमांशी वहाँ बैठी थीं। इस फोटो ने पूरे देश में शोक और रोष भर दिया। हिमांशी की पीड़ा, इस फोटो के चलते पूरे देश की पीड़ा बन गई।

हमले के बाद स्वाभाविक तौर पर लोगों ने कश्मीरी आतंकियों और पाकिस्तान के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर किया आतंकियों के स्थानीय मददगारों पर भी लोगों का गुस्सा फूटा। इसके कुछ दिनों बाद हिमांशी ने मीडिया को एक बयान दिया।

उन्होंने कहा, “मुस्लिम और कश्मीरी लोगों का विरोध नहीं होना चाहिए।” उनका ये बयान कुछ लोगों को बहुत भाया। बयान को वामपंथी और कथित उदारवादी मीडिया ने खूब सराहा। ट्विटर से लेकर टीवी डिबेट तक इस बात की खूब सराहना भी की गई।

इस बयान को ‘अमन की आशा’ और पाकिस्तान से दोस्ती के राग गाने वाला गैंग भी खूब प्रचारित करता रहा। जिन मीडिया चैनल ने उस समय पर पाकिस्तान की सच्चाई विश्व के सामने दिखाना जारी रखा उन्हें ‘कट्टर’ और ‘हेट स्प्रेडर’ का टैग दे दिया गया। कुछ दक्षिणपंथी सोशल मीडिया अकाउंट्स ने हिमांशी का JNU से कनेक्शन भी निकाला।

इस पूरे विवाद के लगभग डेढ़ महीने बाद हिमांशी नरवाल से जुड़ी एक और खबर सामने आई। हाल ही में हिमांशी नरवाल का एक कथित अश्लील वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो में हिमांशी का चेहरा इस्तेमाल कर उनकी इज्जत तार-तार करने का प्रयास किया गया।

जब पुलिस ने जाँच की तो पता लगा कि यह अश्लील वीडियो AI का इस्तेमाल करके बनाया गया था। पुलिस को यह भी पता चला कि इसे बनाने के पीछे बिहार के दो मुस्लिम थे। यह दोनों बाप-बेटे हैं। उनको पुलिस ने बिहार के गोपालगंज से गिरफ्तार कर लिया गया। इनका नाम मोहिबुल हक़ और गुलाब जिलानी है।

लेकिन पिछले मामले के उलट इस बार मीडिया ने इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। ना तो हिमांशी नरवाल की खबर पर कोई डिबेट हुई ना इस पर किसी पत्रकार को ट्वीट करने की सूझी। उन खबरी समूहों ने तो और भी दूरी बरती, जो खुद को लिबरल बताते हैं।

सवाल उठता है कि जो हिमांशी नरवाल पहले वामपंथी मीडिया की ‘आज़ादी की आवाज़’ थी, उनके लिए अब कोई आवाज़ क्यों नहीं उठा रहा? न कोई बड़ी बहस हो रही है, न कोई हेडलाइन, न कोई लंबा चौड़ा ट्वीट। वामपंथी पत्रकारों और एक्टिविस्ट की टाइमलाइन इस मुद्दे पर बिल्कुल खामोश हो गई है। इससे पहले हिमांशी को लोकतंत्र का चेहरा घोषित करने वाले राजदीप सरदेसाई भी शांत रहे।

दरअसल बात यह यह है कि वर्तमान खबर भले ही हिमांशी नरवाल से जुड़ी हो, उनके सम्मान से जुड़ी हो, लेकिन यह वामपंथी मीडिया के एजेंडे के खिलाफ है। कल तक हिमांशी को आजादी का उदाहरण बताने वाली वामपंथी मीडिया यह खबर इसलिए दबा कर बैठ गई, क्योंकि इस बार आरोपित मुस्लिम हैं।

अगर वामपंथी मीडिया यह खबर चलाता तो उसे मुस्लिमों का नाम लिखना पड़ता, उसे बताना पड़ता कि मोहिबुल और उसके बेटे गुलाब ने एक बलिदानी की विधवा का अपमान किया है। ना सिर्फ उसने अपमान किया है बल्कि अश्लील वीडियो बनाई है, जो निकृष्टतम अपराध है।

वामपंथी मीडिया को यह हिम्मत ही नहीं है कि वह ऐसी खबरें चलाए। ऐसे मामले में वह समुदाय विशेष, मैन या कोई और जानकारी लिख लेता है और मुस्लिमों के अपराध बताने से कन्नी काटता है। याद रखिए कि इसी वामपंथी मीडिया ने हाल ही में नैनीताल में 70 वर्ष के मुस्लिम के 12 वर्षीय बच्ची के साथ रेप करने को ‘लव अफेयर’ बताया था।

असल में वामपंथी मीडिया को प्रेम ना तो हिमांशी नरवाल से है और ना उसे उनकी कोई चिंता है। उसे बस अपने नैरेटिव की चिंता है। पुरानी खबर नैरेटिव के हिसाब से थी, इसलिए उसको तवज्जो दी और अब मामला अपने हिसाब से नहीं दिखा तो किनारे हो लिए।

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पूजा राणा
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