Saturday, May 4, 2024
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नाच रहा चीन अपनी 500 बड़ी कंपनियों के ग्रोथ पर, इंडिया के वामपंथी अभी भी मजदूरों-किसानों का हक मार खुद करते हैं अय्याशी

चीन की सरकार अपनी प्राइवेट कंपनियों को कैसे करती है सपोर्ट? गूगल/ट्विटर/ऐमेजॉन जैसी वैश्विक कंपनियों को चीन में घुसने नहीं देती। उनके टक्कर की पैरेलल कंपनी खड़ी करती है। इसके उलट चीन को अब्बा मानने वाले इंडिया के वामपंथी क्या करते हैं? मजदूरों-किसानों को बरगला कर उनकी कमाई को खत्म कर देते हैं।

चीन की टॉप 500 कंपनियों ने साल 2022-23 में 5.46 ट्रिलियन डॉलर का बिजनेस किया। मतलब 452824008000000 रुपए, थोड़े और आसान शब्दों में कहें तो 4,52,824 अरब रुपया का बिजनेस। यह रिपोर्ट ऑल-चाइना फेडरेशन ऑफ इंडस्ट्री एंड कॉमर्स ने जारी की है। चाइनीज प्राइवेट कंपनियों के लिए काम करने वाली इस संस्था के अनुसार वहाँ की टॉप 500 कंपनियों की जो औसत वार्षिक विकास दर है, वो है – 3.94 प्रतिशत।

इस लिस्ट में आम भारतीयों के लिए जानी-पहचानी कंपनियों की बात करें तो ई-कॉमर्स कंपनी JD, अलीबाबा, टेक्नॉलजी कंपनी टेन्सेंट, बायडु आदि ने सबसे ज्यादा बिजनेस किया है। पिछले साल JD ने अकेले 1.05 ट्रिलियन युआन (12128 अरब रुपए) के बिजनेस को पार कर लिया। अलीबाबा भी कुछ ज्यादा पीछे नहीं रहा। 864.53 बिलियन युआन (9981 अरब रुपए) के साथ यह दूसरे नंबर पर रहा।

बिजनेस के इतने बड़े आँकड़े को देख कर चौंकिए मत। चौंकने वाली खबर इससे भी बड़ी है। अनुसंधान एवं विकास मतलब रिसर्च और डेवलपमेंट (R&D) करने के लिए टॉप 500 चायनीज कंपनियों में से 326 ने 3 प्रतिशत से ज्यादा कर्मचारी रखे हैं। जबकि 414 कंपनियाँ तो ऐसी हैं, जिन्होंने अपने उत्पाद से संबंधित मूल तकनीक को खुद ही विकसित किया है।

वामपंथ मतलब लाल सलाम/मजदूर/किसान/हड़ताल/पूंजी का विरोध/उद्योग-धंधों के खिलाफ प्रदर्शन आदि से अगर अपनी समझ बना बैठे हैं तो चौंकाने वाले आँकड़े अभी और हैं। वो आँकड़ा है पंचवर्षीय योजना का। भारत की तरह वहाँ भी पंचवर्षीय योजना बनाई जाती है, उस पर काम किया जाता है। 2021-25 की चीन वाली पंचवर्षीय योजना के तहत वहाँ की सरकार ने रिसर्च और डेवलपमेंट खर्च को 7 प्रतिशत वार्षिक तक ले जाने का लक्ष्य रखा है।

रिसर्च और डेवलपमेंट पर 7 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि खर्च कितना होता है, यह कम है या ज्यादा… इसको वैश्विक स्तर पर समझते हैं। मकिन्ज़ी एंड कंपनी (McKinsey & Company) एक कंसल्टिंग फर्म है। इसके अनुसार रिसर्च और डेवलपमेंट खर्च में 7 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि के लक्ष्य को अगर चीन पा लेता है तो वह आरएंडडी पर दुनिया का सबसे अधिक खर्च करने वाला देश बनने की ओर अग्रसर हो जाएगा।

चायनीज प्राइवेट कंपनियाँ और चीनी सरकार

  • चीन में जो वामपंथी सरकार है, वो वहाँ के मजदूरों-किसानों की सरकार है।
  • बिजनेसमैन के सारे पैसों को कब्जे में लेकर वो आम नागरिकों में बाँट देती है।

ऊपर जो 2 लाइनें लिखी हैं, कुछ ऐसी सोच है अगर आपकी तो आप वामपंथी प्रोपेगेंडा में फँसे हुए हैं। सच्चाई इससे कोसों दूर है। क्यों? क्योंकि चीन की जो पंचवर्षीय योजना बनाई जाती है, वो वहाँ की सरकार बनाती है न की प्राइवेट कंपनी। इस योजना के तहत चीनी सरकार प्राइवेट कंपनियों को भरपूर सपोर्ट करती है। गूगल/ट्विटर/ऐमेजॉन जैसी वैश्विक कंपनियों को चीन में घुसने नहीं देना, उनके टक्कर की पैरेलल कंपनी खड़ी करना… यह चीनी सरकार के सपोर्ट से ही संभव है।

चीन की सरकार अपनी प्राइवेट कंपनियों को कैसे करती है सपोर्ट? ऑल-चाइना फेडरेशन ऑफ इंडस्ट्री एंड कॉमर्स के महासचिव झाओ जियांग के शब्दों से समझते हैं। इस रिपोर्ट के आने के बाद जियांग ने कहा:

“आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच चीन की टॉप 500 प्राइवेट कंपनियों की गुणवत्ता बढ़ी है, इनसे जुड़ी तकनीकी नई और उन्नत हुई है। प्राइवेट कंपनियों के बिजनेस को बढ़ाने के लिए लक्ष्य बनाकर सरकार ने जो योजनाएँ चलाईं, उसका धन्यवाद।”

साल 2022 में चायनीज प्राइवेट कंपनियों को आगे बढ़ाने के लिए चीन की सरकार ने कई प्रयास किए। इनमें से दो प्रमुख प्रयास हैं – (i) प्राइवेट कंपनियों के बिजनेस और उससे जुड़ी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर टॉप-लेवल दिशा-निर्देश जारी किया गया। (ii) एक विशेष ब्यूरो की स्थापना की गई, जिसका काम सिर्फ यही था कि हर एक प्राइवेट कंपनी को कैसे लक्ष्य बनाकर सहयोग दिया जाए, उनके बिजनेस को आगे बढ़ाया जाए।

इन सबका फायदा क्या हुआ? किसे हुआ? पिछले साल के इन आँकड़ों से समझिए। चीन की जितनी भी बाजार संस्थाएँ हैं, उनमें से 97 प्रतिशत से ज्यादा प्राइवेट ही हैं। मतलब सरकारी संस्थाएँ 3 प्रतिशत से भी कम हैं। और इनसे चीन की सरकार को कितना फायदा होता है? चायनीज उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार उनके देश को मिलने वाला टैक्स से राजस्व इन्हीं प्राइवेट कंपनियों से लगभग 50 प्रतिशत आता है, सकल घरेलू उत्पाद में इनका हिस्सा 60 प्रतिशत है, जबकि तकनीकी नवाचार में इन कंपनियों ने 70 प्रतिशत योगदान दिया है।

वामपंथी चीन की पूंजीवादी नीति, कब से?

9 सितंबर 1976 को माओ जेदोंग (माओ से-तुंग) की मौत होती है। इसके बाद चीन में जो सत्ता आई, उसने माओवादी विचारधारा से तौबा कर लिया। क्यों? क्योंकि इसके एक से अधिक कारण तात्कालिक चायनीज नेताओं ने देखा-समझा।

(i) माओ की नीतियों के कारण साल 1950 से 1973 तक साल-दर-साल चीन की जीडीपी 3 प्रतिशत से भी कम बढ़ी। जबकि आर्थिक विकास दर में इसी दौरान चीन के निकटवर्ती देश जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, ताइवान काफी आगे निकल गए थे।
(ii) 1970 के दशक के अंत तक चीन में खाद्य आपूर्ति और कृषि-उत्पादन इतना कम हो गया था कि सरकारी दस्तावेजों में 1959-61 के भयंकर अकाल की बातें लिखी जाने लगी थीं, सरकारी अधिकारी इसके लिए आवश्यक कदम उठाने की माँग करने लगे थे।
(iii) माओ की नीतियों के कारण चीन में 1959-61 के दौरान जो अकाल आया, उसमें 1.5 करोड़ से लेकर 5.5 करोड़ लोग भूख के कारण मर गए थे।

इन बड़े कारणों के अलावे और भी तात्कालिक कारण थे, जो माओवादी विचारधारा को चीनी सत्ता से दूर ले गए। माओ की मौत की बाद डेंग जियोपिंग या देंग शियाओ पिंग (Deng Xiaoping) ने जब सत्ता संभाली तो उन्होंने चीन के राष्ट्रीय आर्थिक विकास को अपनी राजनीति में सर्वोच्च प्राथमिकता दी। इसके लिए उन्होंने किसी एक राह पर चलने के बजाय अलग-अलग रास्ते चुने। एक तरफ रूस के स्टाइल को कॉपी करते हुए बड़े-बड़े उद्योग-धंधे-कारखानों को प्रोत्साहन दिया तो दूसरी ओर पहली बार चीन में विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone) खोला गया। विदेशियों (बिजनेस) के लिए जो चीन पहले बिल्कुल बंद था, 1976 के बाद उसी चीन ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करना शुरू कर दिया।

खेती-किसानी से लेकर उद्योग-धंधों में प्रयोग, दूसरे देशों के सफल बिजनेस मॉडल को देखने के लिए हजारों चीनी अधिकारियों को भेजने से लेकर विदेशी बिजनेसमैन को चीन में पैसा लगाने के लिए पहली बार जॉइंट वेंचर संबंधी कानून के बनाने तक… डेंग जियोपिंग ने कई काम किए। विरोध भी बहुत झेला। लेकिन यह सारे काम किताबी/थ्योरी-बेस्ड न होकर प्रयोग के आधार पर था, इसलिए रिजल्ट जल्द दिखने लगे। साल 1979 से 1984 आते-आते तक चीन की पॉलिसी आर्थिक विकास की पॉलिसी बन चुकी थी।

1984 के बाद से चीन में डेंग जियोपिंग की सत्ता ने आर्थिक व्यवस्था के सुधार पर निर्णय लेना शुरू कर दिया था। इसमें सबसे बड़ा निर्णय था – प्राइवेट कंपनियों पर सरकारी हस्तक्षेप और नियंत्रण कम से कम करना। 1997 में डेंग जियोपिंग की मौत के बाद भी जियांग जेमिन और झू रोन्गजी की सत्ता ने उनकी नीतियों को ही आगे बढ़ाया। 1997-98 में वहाँ बड़े पैमाने पर निजीकरण हुआ। कुछेक बड़े और महत्वपूर्ण राज्य-समर्थित उद्योगों को छोड़कर सभी की संपत्तियों को निजी निवेशकों को बेच दिया गया। यह इतने बड़े स्केल पर किया गया कि 2001 से 2004 आते-आते वहाँ राज्य-समर्थित या स्वामित्व वाले उद्योगों की संख्या में 48 प्रतिशत की कमी आ गई।

2005 में पूरे चीन की GDP का 50 प्रतिशत प्राइवेट कंपनियों से आया। ऐसा पहली बार हुआ था। 2005 में ही क्रय शक्ति समता (purchasing power parity) के आधार पर चीन एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका था। इसके पहले जापान एशिया का सुपर पावर था। इसी रास्ते पर चलते हुए 5 साल के बाद 2010 में जापान को पीछे छोड़ चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका था।

प्राइवेट कंपनी के लिए आर्मी कैंट की भी सुविधा

चीता मोबाइल नाम की एक बड़ी कंपनी है चीन में। क्लिन मास्टर नाम का ऐप जिन लोगों ने यूज किया है, वो इस कंपनी के बारे में जानते होंगे। इसने भारत में न्यूज ऐग्रिगेटर बिजनेस में हाथ आजमाया था। इंस्टा न्यूज, न्यूज रिपब्लिक इसी चीता मोबाइल के ऐप थे। मैंने भी लगभग 3 साल यहाँ काम किया है। काम-ट्रेनिंग के सिलसिले में चीन भी जाना हुआ। इस कंपनी का हेड क्वॉर्टर बीजिंग के शाओयांग जिले में है, हमारी ट्रेनिंग यहीं हुई थी।

पहले दिन हेड क्वॉर्टर के कैंपस में खो गया। सड़क से ऑफिस के मेन गेट तक जाने में हाँफ गया। कुछ खाने-पीने के लिए पूछता हुआ मेस गया तो 20 मिनट से ज्यादा लग गए। मेस से आते वक्त ऑफिस का रास्ता ही भूल गया। आखिर एक प्राइवेट कंपनी का कैंपस इतना बड़ा-लंबा-चौड़ा कैसे? हमारे साथ हिंदी बोलने वाला एक चायनीज लड़का काम करता था। अभी भी दोस्ती है। उसने बताया कि जिस जगह पर चीता मोबाइल का ऑफिस है, वो आर्मी की जगह है। लीज पर दी गई है।

इसलिए फिर से ऊपर का 2-3 लाइन लिख रहा हूँ:

  • चीन में जो वामपंथी सरकार है, वो वहाँ के मजदूरों-किसानों की सरकार है।
  • बिजनेसमैन के सारे पैसों को कब्जे में लेकर वो आम नागरिकों में बाँट देती है।

ऊपर जो 2 लाइनें लिखी हैं, कुछ ऐसी सोच है अगर आपकी तो आप वामपंथी प्रोपेगेंडा में फँसे हुए हैं।

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चंदन कुमार
चंदन कुमारhttps://hindi.opindia.com/
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