Saturday, April 20, 2024
Homeविचारराजनैतिक मुद्देकाशी कब चल रहे हो? महसूस कीजिए शताब्दियों की उपेक्षा, अनदेखी और लूट के...

काशी कब चल रहे हो? महसूस कीजिए शताब्दियों की उपेक्षा, अनदेखी और लूट के बाद पैदा हुई इस नवीनता, उत्साह और आशा को

विश्व के सबसे प्राचीन जीवित और जिंदादिल शहर का जीर्णोंद्धार कब से लंबित था। गंगा अगर इसके प्राण हैं तो भोलेनाथ इसका हृदय। इस नगरी को सुंदर, साफ़ और भव्य बनाकर प्रधानमंत्री मोदी ने उस टीस को दूर किया है जो हर काशीवासी को ही नहीं, बल्कि हर भारतीय को सदियों से सालती रही है।

“काशी कब चल रहे हो?”

दूसरी ओर से फोन पर कपिल भाटी थे। मूलतः राजस्थान के रहने वाले कपिल भाटी एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी के भारत में सीईओ हैं। अब परिवार सहित दिल्ली में रहते हैं। बड़े उत्साह से मुझे बता रहे थे कि काशी में क्या-क्या परिवर्तन हुए हैं।

केवल वही नहीं, पिछले तीन दिनों में मेरी तीन मित्रों से फोन पर बात हुई है। इन सबने बातों-बातों में काशी में जो हो रहा है उसका बखान किया। इनमें एक राजस्थान के हैं, दूसरे दक्षिण में आंध्र के और तीसरे गुजरात के। तीनों ने अलग-अलग तरह से एक ही बात कही कि अब तो काशी जाना है।

मेरे गुजराती मित्र तो ने तो काशी जाने का कार्यक्रम भी बना लिया है। यह लेख जब प्रकाशित हो रहा होगा तब वे वहीं होंगे। एक अन्य मित्र ने मुझसे वादा भी लिया है कि 2022 की पहली यात्रा मुझे उनके साथ काशी की ही करनी है। आखिर काशी में ऐसा क्या हो रहा है जो ये सब वहाँ जाने को इतना आतुर हैं?

असल में इनमें से कोई भी तीर्थ यात्री किस्म के लोग नहीं हैं जो आम तौर से धर्मस्थानों की यात्रा करते रहे हैं। ये सब अपेक्षाकृत शहरी, युवा और संपन्न हैं जो तीर्थ यात्रियों की आम श्रेणी में नहीं आते। काशी इन सबके लिए सिर्फ एक धर्मस्थली मात्र नहीं है। ये सब विश्व के प्राचीनतम शहर की काया पलट से अभिभूत हैं। वे अपनी आँखों से वहाँ हुए परिवर्तन को देखना चाहते हैं। ये उस भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपने पुराने शहरों की गंदगी, अव्यवस्था और बेहाली से त्रस्त था और ये मान बैठा था कि वहाँ कुछ नहीं हो सकता। इस निराश भारत को काशी के कायापलट ने आशा की एक डोर थमाई है। उसे अब वो अपनी आँखों से देखना, समझना और आत्मसात करना चाहता है।

बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी को जो लोग सिर्फ एक धार्मिक स्थल के रूप में देखकर काशी कॉरिडोर की आलोचना कर रहे हैं, उन्हें आँखें होते हुए भी अँधा कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी। विश्व के सबसे प्राचीन जीवित और जिंदादिल शहर का जीर्णोंद्धार कब से लंबित था। गंगा अगर इसके प्राण हैं तो भोलेनाथ इसका हृदय। इस नगरी को सुंदर, साफ़ और भव्य बनाकर प्रधानमंत्री मोदी ने उस टीस को दूर किया है जो हर काशीवासी को ही नहीं, बल्कि हर भारतीय को सदियों से सालती रही है।

काशीवासियों के इस दर्द और तकलीफ का ज़िक्र कवि और साहित्यकार सदियों से करते आए हैं। काशी के प्रति शासकों की उदासीनता और उससे उत्पन्न पीड़ा को महान हिंदी साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने अपनी कविता ‘देखी तुमरी कासी, लोगों, देखी तुमरी कासी’ में खूब अच्छी तरह से व्यक्त किया था। इतना ही नहीं, गोस्वामी तुलसीदास की कविताओं में भी यहाँ की तकलीफों का सजीव चित्रण हैं। तो आज जो लोग काशी के पुनुरोद्धार तथा उसकी भव्यता को स्थापित करने के प्रयासों को ‘सांप्रदायिक’ और ‘चुनावी स्टंट’ बता रहे हैं, उन्हें इस साहित्य को पढ़ने की जरूरत है। चुनाव के समय कमीज के ऊपर जनेऊ पहनने वाले, रोज़ा इफ्तारों के ज़रिए वोट बटोरने वाले और मौलवियों को पेंशन देकर राजनीति साधने वालों को तो अपने गिरेबान में झाँकने की जरूरत है। उन्हें समझने की जरूरत है, काशी के चित्त को और उससे समस्त भारत में उत्पन्न होने वाले नाद को।

काशी एक शहर मात्र नहीं है। यह हमारी सभ्यता की जीवंतता और चिरंतनता का जीता-जागता प्रमाण है। जहाँ तुलसीदास ने रामचरितमानस का सृजन किया हो, जहाँ कबीर ने अपने शब्दों को धार दी हो, जिस माटी से भारतेन्दु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद और मुंशी प्रेमचंद्र सरीखे रचयिता जन्मे हों, जिसे उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई ने गुँजायमान किया हो तथा जहाँ महामना मालवीय ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना कर एक नया इतिहास रचा हो, उसे महज हिंदू-मुस्लिम के खाँचे में डालकर सांप्रदायिक नजरिए से देखना इस धरोहर का अपमान करना है।

विरोध की टिटहरी बजाने वालों से एक सवाल तो बनता है। काशी के आराध्य महादेव की पूजा और उनके मंदिर क्षेत्र के जीर्णोंद्धार में भी आखिर क्या गलत है? जहाँ लाखों श्रद्धालु हर साल आते हों और जो करोड़ों की श्रद्धा का केंद्र हो क्या उसे बदहाल स्थिति में ही रहना चाहिए? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो वहाँ से सांसद है। उनका तो दायित्व ही है कि वे अपने क्षेत्र का विकास करें और यदि उन्होंने फिर चुनाव जीतने के लिए कॉरिडोर बनवाया है तो भी इसमें बुरा क्या है। यदि देश का हर सांसद और विधायक अपने-अपने क्षेत्र में ऐसा करे तो देश का ही कायापलट हो जाए। काश चुनाव जीतने के लिए हर नेता और दल ऐसा ही करे।

शताब्दियों की उपेक्षा, अनदेखी और लूट के बाद आज काशी के दिन फिरे हैं। सारे भारत में उसका शोर है। देश के अनेक पुराने शहरों और तीर्थस्थलों में रहने वालों की भी उम्मीद जगी है कि अब उनके भी दिन फिर सकते हैं। वे भी सोचने लगे हैं कि उनके तीर्थस्थलों की जन्मकुंडली सदा के लिए गंदगी, दीनता और अव्यवस्था में रहने के लिए अभिशप्त नहीं है। इस नूतन काशी, नए उत्साह से भारत में उत्पन्न नई आशा का तहेदिल से स्वागत और हार्दिक अभिनन्दन है। पूरा भारत ही अब काशी सा ही चलन चाहता है। इसीलिए तो अब तो काशी चलना ही है।

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘PM मोदी की गारंटी पर देश को भरोसा, संविधान में बदलाव का कोई इरादा नहीं’: गृह मंत्री अमित शाह ने कहा- ‘सेक्युलर’ शब्द हटाने...

अमित शाह ने कहा कि पीएम मोदी ने जीएसटी लागू की, 370 खत्म की, राममंदिर का उद्घाटन हुआ, ट्रिपल तलाक खत्म हुआ, वन रैंक वन पेंशन लागू की।

लोकसभा चुनाव 2024: पहले चरण में 60+ प्रतिशत मतदान, हिंसा के बीच सबसे अधिक 77.57% बंगाल में वोटिंग, 1625 प्रत्याशियों की किस्मत EVM में...

पहले चरण के मतदान में राज्यों के हिसाब से 102 सीटों पर शाम 7 बजे तक कुल 60.03% मतदान हुआ। इसमें उत्तर प्रदेश में 57.61 प्रतिशत, उत्तराखंड में 53.64 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe