Saturday, April 19, 2025
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खतरे में है हर हिंदू, सरकारी सुरक्षा के भरोसे हम जीवनभर नहीं बैठ सकते… पर कवर्धा का ‘सुरक्षा मॉडल’ आत्मसात तो कर ही सकते हैं

इस्लामी कट्टरपंथ के खतरे को कम करना ही हमारे हाथ में है। एक-दूसरे का सुरक्षा कवच बनना ही हमारे हाथ में है। क्योंकि जब तक इस्लाम है, जब तक हिंदू काफिर हैं, इस खतरे को कम ही किया जा सकता है, उसका समूल नाश संभव नहीं है।

यदि आपको लगता है कि कासगंज के चंदन गुप्ता का ही परिवार खतरे में है तो आप गलत हैं। यदि आपको लगता है कि खतरा केवल नुपुर शर्मा तक ही सीमित है तो आप गलत हैं। यदि आपको लगता है कि कमलेश तिवारी, कन्हैया लाल तेली, उमेश कोल्हे की हत्या के बाद ‘सर तन से जुदा’ का खतरा आपके ऊपर से टल चुका है तो भी आप गलत हैं।

खतरा तो कथित गंगा-जमुनी तहजीब का राग अलापने वाले, जय भीम-जय मीम का नारा लगाने वाले, मुगलों में सेकुलरिज्म का अब्बा देखने वाला हिंदुओं को भी है। क्योंकि सारे हिंदू काफिर हैं। लिबरल, वामपंथी, दलित चिंतक, सेकुलर जैसे टैग्स की भूमिका उनकी सूची में आपका नाम थोड़ा नीचे दर्ज करवाने तक ही सीमित है।

यह खतरा केवल कुछ गलियों, गाँवों, शहरों, जिलों, प्रांतों तक भी सीमित नहीं है। वे गह-गह पसरे हुए हैं। आपसे यह खतरा उतना ही दूर है, जितना एक मुस्लिम को मुस्लिम भीड़ का हिस्सा बनने में लगना है। इस खतरे को भाँपकर, हमें सुरक्षित रखने के लिए सरकारें (यदि वह तुष्टिकरण वाली न हो तो) सख्त कानून बना सकती हैं। किसी व्यक्ति/परिवार पर खतरों का आकलन कर उन्हें सुरक्षा उपलब्ध करवा सकती है।

पर यह संभव नहीं है कि हर हिंदू को सरकार सुरक्षा दे। यह भी संभव नहीं है कि जो व्यक्ति/परिवार ऐसे खतरों में घिरा हो उसे जीवनभर सुरक्षा दी जाए। ऐसा करना उस व्यक्ति/परिवार के जीवन को भी कठिन बना देगा।

ऐसे में सवाल उठता है कि हम हिंदू क्या करें? वह व्यक्ति/परिवार क्या करे जिसका शिकार करने को इस्लामी कट्टरपंथी घात लगाए बैठे हैं? इसका मुकम्मल जवाब दे पाना तो कठिन है। पर कवर्धा के हिंदुओं ने जिस तरह दुर्गेश देवांगन के परिवार की सुरक्षा की है, उस मॉडल को आगे बढ़ाकर हम काफी हद तक इस खतरे को कम अवश्य कर सकते हैं।

कवर्धा में क्या हुआ था?

2021 में छत्तीसगढ़ के कवर्धा में करमा माता मंदिर पर लगे भगवा ध्वज को इस्लामी कट्टरपंथियों ने फाड़कर फेंक दिया था। इसका विरोध करने पर दुर्गेश देवांगन नाम के युवक को बेरहमी से पीटा गया। हिंदुओं पर पत्थरबाजी हुई। उस समय राज्य में भूपेश बघेल के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस की सरकार चल रही थी। स्थानीय विधायक मोहम्मद अकबर उस सरकार का प्रभावशाली मंत्री था।

इसका असर पुलिसिया कार्रवाई में भी दिखा। कथित तौर पर थाने लाकर भी हिंदुओं को पीटा गया। दुर्गेश देवांगन का तो कई दिनों तक पता भी नहीं चला था। यह भी आरोप है कि पुलिस के साथ तलवार लेकर इस्लामी कट्टरपंथी सड़कों पर घूम रहे थे। कर्फ्यू और जबरन बल प्रयोग कर हिंदू संगठनों के नेताओं को कवर्धा पहुँचने से रोका गया। स्थानीय हिंदुओं की मानें तो हिंदुओं के इस दमन को मोहम्मद अकबर का पूर्ण समर्थन था। मोहम्मद अकबर को भूपेश बघेल का संरक्षण था। कवर्धा से लेकर रायपुर तक व्यवस्था में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था, जो हिंदुओं की व्यथा सुने। सुनी भी नहीं गई।

हिंदुओं के आत्मबल का प्रतीक है धर्म ध्वजा चौक

आज छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार है। कवर्धा के विधायक विजय शर्मा राज्य के उप मुख्यमंत्री हैं। मोहम्मद अकबर और उसको संरक्षण देने वाले भूपेश बघेल की हनक 2023 के विधानसभा चुनावों में जनता निकाल चुकी है। ऐसे में आपको शायद यह अनुभूति न हो कि 2021 की उस घटना के बाद से चुनाव के नतीजे आने तक, कवर्धा के हिंदू किस खतरे के बीच रह रहे थे। किन तरह के खतरों के बीच दुर्गेश देवांगन और उसका परिवार एक-एक दिन काट रहा था।

मैं 2021 की उस घटना के करीब एक साल बाद कवर्धा गया था। उस समय हिंदुओं ने अपने आत्मबल से करमा माता मंदिर के पास धर्म ध्वजा चौक बना ली थी। 108 फीट ऊँचा भगवा ध्वज लहरा रहा था। इससे कुछ ही कदमों की दूरी पर दुर्गेश देवांगन के पिता की आलू, प्याज और मसालों की दुकान थी। दुकान के शटर पर बजरंगबली विराजमान थे तो साइनबोर्ड पर राम का नाम अंकित था। दुकान पर पहुँचते ही मेरा अभिवादन ‘जय श्रीराम’ के साथ हुआ था। यकीन मानिए मुझे भी उस समय वहाँ के हिंदुओं पर मंडरा रहे खतरों की अनुभूति नहीं हो पाई थी। मुझे भी लगा कि 2021 की घटना शायद उतनी भयावह नहीं थी, जैसा वहाँ से आए वीडियो को देखकर और कवर्धा के लोगों से फोन पर बातचीत से प्रतीत होती थी।

हिंदू ही हिंदू का बना सुरक्षा कवच

लेकिन जब मैंने दुर्गेश देवांगन के परिवार और स्थानीय हिंदुओं से बातचीत करना प्रारंभ किया तो पता चला कि हमारी जानकारी से कहीं अधिक बुरे तरीके से 2021 में हिंदुओं का दमन किया गया था। उनकी आवाज कुचल दी गई थी। साल भर बाद भी हिंदुओं को डराने धमकाने का सिलसिला जारी था। पुलिस तमाशबीन बनी हुई थी।

दुर्गेश के पिता संतोष देवांगन ने ऑपइंडिया को बताया था, “विधायक का करनी है पूरा। जब मेरा लड़का मार खाया तो पीटने वालों के साथ अकबर (विधायक मोहम्मद अकबर) का लड़का भी था। अब हम पर राजीनामे का दबाव बनाया जा रहा है।” संतोष देवांगन ने बताया कि उस घटना के बाद एक तरफ उनके बेटे का पता नहीं चल रहा था, दूसरी तरफ उनके घर के बाहर पुलिस का पहरा बिठा दिया गया। परिवार की सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि पीड़ित परिवार के लोग न किसी से मिल सके और न कोई उनसे मिल सके।

विश्व हिंदू परिषद के कबीरधाम जिले के कार्यकारी अध्यक्ष कैलाश शर्मा ने ऑपइंडिया को बताया था कि पहले सुनियोजित तरीके से हिंदुओं पर हमले की घटना को अंजाम दिया गया। फिर स्थानीय स्तर पर जो भी हिंदुओं के पक्ष में खड़ा हुआ मोहम्मद अकबर के इशारे पर उसका दमन किया गया। इसका असर यह था कि सालभर बाद भी हिंदू भयभीत थे।

जिन हिंदुओं की उस समय गिरफ्तारी हुई थी उनमें आज के डिप्टी सीएम विजय शर्मा भी थे। जब हम दुर्गेश के परिवार से बातचीत कर रहे थे, उस समय भी वे अचानक से उस परिवार का हाल जानने के लिए आए थे। संतोष देवांगन ने बताया कि जब से शर्मा जेल से बाहर आए है, कवर्धा में रहते हुए कोई भी ऐसा दिन नहीं बीतता, जब वे उनके परिवार का हाल जानने खुद नहीं आते। कवर्धा से बाहर रहने पर भी वे फोन के जरिए उनके परिवार के संपर्क में बने रहते हैं।

देवांगन के मुताबिक विहिप और अन्य हिंदू संगठनों के पदाधिकारी भी नियमित रूप से उनका और उन जैसे पीड़ितों की इसी तरह चिंता करते हैं। उन्होंने ऑपइंडिया को बताया था कि धमकियों और खतरों के बीच हिंदुओं का यह सहयोग उनके परिवार के लिए बड़ा बल है। इसके कारण ही उनका जीवन सामान्य हो पाया है। वे निश्चिंत होकर दुकान चला पा रहे हैं। ऑपइंडिया से बातचीत में कुछ और पीड़ित हिंदुओं ने भी इसी तरह का सहयोग मिलने की पुष्टि की थी।

कवर्धा का यह सुरक्षा मॉडल हमें क्या बताता है?

कवर्धा के इस सुरक्षा मॉडल में हम हिंदुओं के लिए सीधा संदेश यह है कि सरकार और तंत्र के भरोसे बैठे रहना ठीक नहीं है। बाहरी मदद की उम्मीद नहीं रखनी है। स्थानीय स्तर पर ही यदि हम नियमित रूप से केवल एक-दूसरे की सुरक्षा की चिंता करने लगे तो कैसी भी प्रतिकूल परिस्थिति में हम परिस्थिति बदल सकते हैं। खतरे से घिरे हिंदू परिवार का जीवन सामान्य कर सकते हैं। मार डाले जाने के भय से घर बैठने की जगह, उन्हें अपने परिवार की जीविका चलाने के लिए उसी बाजार में निश्चिंत होकर व्यवसाय करने को प्रेरित कर सकते हैं, जहाँ से वे कट्टरपंथियों के निशाने पर आए थे।

वैसे भी सत्य यही है कि इस्लामी कट्टरपंथ के खतरे को कम करना ही हमारे हाथ में है। एक-दूसरे का सुरक्षा कवच बनना ही हमारे हाथ में है। क्योंकि जब तक इस्लाम है, जब तक हिंदू काफिर हैं, इस खतरे को कम ही किया जा सकता है, उसका समूल नाश संभव नहीं है।

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अजीत झा
अजीत झा
देसिल बयना सब जन मिट्ठा

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