प्रीति ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन 9 और 5 साल के अपने बच्चों को उसे छत से फेंकना होगा ताकि उनकी जिंदगी बच जाए। सोचा तो विवेक ने भी नहीं होगा कि एक मजहबी उन्मादी भीड़ उसके सिर में ड्रिल मशीन से छेद कर देगी। दिलबर नेगी ने ही कब सोचा होगा कि उसके हाथ-पैर काट एक दिन जिंदा उसे आग में झोंक दिया जाएगा।
ठीक ऐसे ही एकता ने भी नहीं सोचा होगा कि वह जिसे अमन समझ रही, वह असल में शाकिब है। जिसके साथ वह खुशहाल जिंदगी के सपने बुन रही, वही उसे एक दिन काट डालने वाला है।
आपने भी तो कभी सोचा नहीं होगा कि ऐसे गुनाहों से उसी पहचान वाले लोगों के हाथ क्यों रंगे हैं, जिसकी हालत सच्चर कमिटी ने दलितों से भी बदतर बताई है। वजह साफ है कि आप शुतुरमुर्ग की तरह जमीन में सिर गाड़े बैठे हैं और इस उम्मीद में हैं कि अगली एकता आपके परिवार की नहीं होगी। आपको लगता है कि कश्मीरी पंडितों के साथ जो हुआ, वह मैथिल ब्राह्मणों के साथ नहीं हो सकता। इसलिए, जरूरी है कि इस खतरे को सिलसिलेवार तरीके से समझिए।
पहले कुछ हेडलाइन पर गौर करें;
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- ‘गौमांस खा, तब जाकर तू पक्की मु#$%न बनेगी’, हिंदू महिला ने लगाए प्रताड़ना, धर्मांतरण के आरोप
ये 10 हेडलाइन तो लव जिहाद के चुनिंदा मामले को बयाँ करते हैं। आप कहीं ज्यादा बड़े खतरे से घिरे हैं। इसे समझने के लिए पाँच कहानियाँ,
पहली कहानी: उस कुत्ते को ईश्वर पंडित ने देखा न होता तो शायद ही पता चलता एकता मार डाली गई
आजकल सोशल मीडिया में एकता देशवाल मर्डर सुर्खियों में है। लव जिहाद का ताजातरीन उदाहरण। मीडिया रिपोर्टों की भरमार है जो बताती है कि कैसे शाकिब ने अमन बनकर उसे फँसाया। फिर एक दिन लुधियाना से बीकॉम की छात्रा एकता को लेकर भागा और ईद के दिन उसकी हत्या कर दी। पुलिस ने हत्या की गुत्थी कैसे सुलझाई। वगैरह, वगैरह।
लेकिन, मेरठ के लोइया गॉंव में एकता को मारकर गाड़ देने की बात एक साल भी शायद ही खुलती, यदि 13 जून 2019 को ईश्वर पंडित ने शबी अहमद के खेत से एक कुत्ता को मानव अंग लेकर भागते न देखा होता। पंडित ने पुलिस को खबर की। खेत की खुदाई हुई तो एक लाश मिली, जिसका सिर और दोनों हाथ गायब थे। पुलिस ने कड़ियों को जोड़ना शुरू किया। आखिर में एक सुराग मिला कि पंजाब के लुधियाना से एक लड़की गायब है।
तफ्तीश के बाद राज खुला कि 5 जून 2019 को शाकिब ईद वाले दिन एकता को लेकर लोइया गॉंव के अपने घर पहुँचा। यहाँ एकता को पहली बार पता चला कि वह अमन नहीं शाकिब है। दोनों में इस बात को लेकर झगड़ा हुआ। फिर शाकिब पूरे परिवार को घुमाने की बात कहकर घर से बाहर ले जाता है। रास्ते में एकता को नशीली कोल्डड्रिंक पिलाई जाती है। खेत में ले जाकर रेशमा और इस्मत (दोनों शाकिब की भाभी) ने उसके कपड़े उतारे। शाकिब ने सिर काटे। हाथ भी, क्योंकि एकता ने अपने एक हाथ पर अपना नाम और दूसरे पर प्यारे ‘अमन’ का नाम गुदवा रखा था। फिर खेत लाश को गाड़कर नमक डाल दिया, ताकि वह जल्दी गल जाए।
25 लाख के जो गहने लेकर एकता अपने घर से भागी थी उसे रख लिया। उसके परिजनों को झॉंसा देने के लिए शाकिब समय-समय पर उसके व्हाट्सएप के फोटो बदलता रहता। एकता बनकर उसके परिजनों से चैटिंग करता रहा। ताकि किसी को यह खबर न लगे कि एकता अब इस दुनिया में नहीं रही।
दूसरी कहानी: डॉक्टर बनना था जिस निमिषा को वह फातिमा बन काबुल की जेल में सड़ रही है
उत्तर से दक्षिण के राज्य केरल चलते हैं। निमिषा आपके पड़ोस की आम लड़की जैसी ही थी। आँखों में बड़े सपने पलते थे। डॉक्टर बनना चाहती थी। लेकिन पड़ गई सज्जाद सलीम के इश्क में। 2012 में निकाह के बाद धर्म बदला तो नाम मिला फातिमा। जब गर्भवती हुई तो सज्जाद ने तलाक दे दिया। फिर एक मजहबी संगठन ने मदद के नाम पर दोबारा निकाह करवाया। गर्भवती फातिमा फिदायीन बम बनाकर अफगानिस्तान भेज दी गई।
2016 से लापता निमिषा उर्फ फातिमा की खबर 2020 में सामने आई। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने बताया कि और अब वह आईएसआईएस आतंकी होने के आरोप में काबुल की जेल में बंद है। निमिषा की मॉं बिंदु बताती हैं, “मेरी बेटी को बहकाया गया। उस पर दबाव डाला गया। ये सब उसी सज्जाद सलीम ने किया। वो भी उसी कॉलेज से MBBS कर रहा था। सज्जाद अपनी माँ और पूरे परिवार के साथ 2012 से मेरी बेटी से मिल रहा था। उसकी माँ ने कहा कि अगर तुम इस्लाम कबूल कर लो, तो मैं तुम्हारे परिवार से बात करूँगी और अपने बेटे से शादी करवा दूँगी। मेरी बेटी की गलती यही थी कि उसने मुझे कुछ नहीं बताया। अगर उसने मुझे बताया होता तो मैं कुछ करती। उन्होंने जबरन शादी करवाई, उसे बाहर ले जाया गया। वो गर्भवती हो गई, तो उसे तलाक दे दिया।”
तीसरी कहानी: अपने बच्चों की ऊँगली भी आतंकी को थमा देते हैं ताकि वे आँखों में धूल झोंक सकें
उनके गुनाह कैसे भी हों, मजहब के नाम पर मददगार हर जगह मौजूद हैं। ऐसे ढेरो मामले आपने देखे, पढ़े और सुने होंगे। कमलेश तिवारी के मर्डर की प्लानिंग से लेकर हत्यारों को सुरक्षित भगाने में आपने अलग-अलग प्रदेशों और शहरों में फैला इनका यह नेटवर्क बीते साल भी उजागर हुआ था।
लेकिन यह कहानी जलीस अंसारी की है जो आज जेल में बंद है। बम बनाने के अपने हुनर के कारण वह डॉ. बम के नाम से ज्यादा जाना जाता है। जलीस 50 से अधिक बम धमाकों में शामिल रहा है। 1993 मुंबई सीरियल ब्लास्ट मामले में उम्रकैद की सजा काट रहा है। सिमी और हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकियों को बम बनाना सिखा चुका है।
मुंबई धमाकों का गुनहगार जलीस पिछले साल के अंत में 21 दिनों के परोल पर अजमेर के केंद्रीय कारागार से निकला। मुंबई अपने घर पहुॅंचा। नियम के अनुसार उसे परोल के दौरान रोज थाने में एक बार हाजिरी लगानी थी। वह ऐसा कर भी रहा था। 17 जनवरी 2020 को उसकी परोल खत्म होनी थी। अचानक 16 जनवरी को वह लापता हो गया। तलाश शुरू हुई तो घरवालों ने कहा कि नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद जाने की बात कहकर निकला था।
मुंबई पुलिस की अपराध शाखा और महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ता उसकी तलाश में जुटी। उसे कानपुर के एक मस्जिद से बाहर निकलते गिरफ्तार किया गया। मस्जिद के बाहर सादे कपड़ों में खड़े एसटीएफ अधिकारी ने जब आवाज दी- अंसारी चच्चा कैसे हो… तो एक बच्चा आतंकी जलीस अंसारी की ऊँगली थामे चल रहा था। ये बच्चा कौन था? किसका बच्चा था? इस बच्चे की पहचान जानने से ज्यादा जरूरी यह समझना है कि दूर-दूर तक इस बच्चे से जलीस अंसारी का कोई रिश्ता नहीं था।
गिरफ्तारी के बाद जब एनआईए ने उससे पूछताछ की तो पता चला कि जलीस अपनी पहचान बदलकर पाकिस्तान जाने वाला था। वहॉं से लौट असम में ठिकाने बनाता, जहॉं से देश के बड़े शहरों में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया जाता। मस्जिद के बाहर वह धराया न होता तो उसके सम्पर्क सूत्रों ने उसके फरार होने की पूरी तैयारी कर रखी थी।
चौथी कहानी: आप की आँखों के सामने एक जिला बन गया ‘मिनी पाकिस्तान’
नागरिकता संशोधन कानून (CAA) लागू होने के साथ कई आँकड़े हमारे सामने आए। इन आँकड़ों से पता चला कि किस तरह पाकिस्तान और बांग्लादेश में प्रताड़ना की वजह से हिंदुओं की आबादी सिमटती गई। कुछ ऐसा ही हाल हरियाणा के मेवात का है, जो देश की राजधानी दिल्ली से करीब 100 किमी ही दूर है। महिलाओं को अगवा करना, दुष्कर्म और जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाओं से यह ‘मिनी पाकिस्तान’ बन गया है।
खास समुदाय बहुल मेवात में हिंदुओं खासकर दलितों पर हो रहे अमानवीय अत्याचारों को उजागर किया है पूर्व जस्टिस पवन कुमार की अगुवाई वाली 4 सदस्यीय टीम की जाँच की रिपोर्ट ने। इस जॉंच कमिटी का गठन हरियाणा की श्री वाल्मीकि महासभा ने किया था। कमिटी की रिपोर्ट बताती है कि मेवात के 103 गाँव हिंदू विहीन हो चुके हैं। 84 गॉंव में केवल 4-5 हिंदू परिवार बचे हैं। स्कूल में हिंदू बच्चों का धर्म परिवर्तन हो या नमाज पढ़ने के लिए दबाव बनाना, समुदाय विशेष द्वारा हिंदुओं की जमीन पर कब्जा करना हो या फिर उनके घर में घुस कर गैंगरेप करना या फिर संतों पर हमले। मेवात जब भी सुर्खियों में होता है वजहें यही होती हैं।
पाँचवीं कहानी: एक जिहाद ऐसा भी कि 26 साल में शहर में 3 से 100 हो गए मस्जिद
कश्मीर घाटी से हिंदुओं को भगाने और उनके साथ हुई बर्बरता की फेहरिस्त लंबी है। कुछ ऐसी ही साजिशें जम्मू शहर और उसके कई जिलों में डेमोग्राफिक चेंज के लिए भी चल रही हैं। ‘एकजुट जम्मू’ नामक संगठन ने कुछ महीने पहले ही इससे जुड़े सनसनीखेज तथ्य सामने रखे हैं।
मसलन, जम्मू में 1990 के बाद 1,00,000 घरों का निर्माण हुआ। 50 लाख कनाल सरकारी जमीन पर अतिक्रमण हुआ। एक कनाल 505.857 वर्गमीटर के बराबर होता है। 1994 में जम्मू शहर में केवल 3 मस्जिद थे। लेकिन अब 100 से ज्यादा हैं। भटिंडी, नरवाल, सुंजवाम, कालुचक, पीर बाबा मोहल्ला, पूँछी मोहल्ला, छन्नी रामा, छन्नी हिम्मत, रायका, सिधरा, रंगूरा, खानपुर, नगरोटा, गुज्जर मोहल्ला, कासिम नगर जैसे इलाकों में देखते ही देखते जनसंख्या का अनुपात बदल गया। आज छन्नी हिम्मत और कासिम नगर में हिंदू और दूसरे मजहब का अनुपात 50-50 का है। अन्य इलाको में अब 80 प्रतिशत से ज्यादा आबादी समुदाय विशेष की है। जम्मू-श्रीनगर हाईवे और जम्मू-पूँछ हाईवे पर ढाबा, रेस्तरां, सब्जी की दुकान, हैंडक्राफ्ट शॉप, होटल के व्यवसायों से भी डेमोग्राफिक तौर पर व्यापक बदलाव आया है।
इस लैंड जिहाद को सुनियोजित तरीके से अब केंद्र शासित प्रदेश में बदल चुके जम्मू-कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों फारूक अब्दुल्ला और गुलाम नबी आजाद की छत्रछाया में अंजाम दिया गया। रिपोर्ट कहती है कि दोनों नेताओं ने हिंदू बहुसंख्यक इलाकों में मजहबी आबादी को स्टेट स्पॉन्सर्ड तरीके से लाकर बसाया। देखते ही देखते अपने ही इलाकों में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए।
सोचिएगा… क्योंकि वक्त जमीन से आपके सिर निकालने का इंतजार नहीं करेगा
नजर दौड़ाएँगे तो पता चलेगा कि आपके पड़ोस में भी कई ‘मिनी पाकिस्तान’ हैं। आपके शहर के कई मोहल्लों का डेमोग्राफी आपके देखते-देखते बदल गया होगा और हिंदू बहुसंख्यक से अल्पसंख्यक हो गए होंगे। आपके पड़ोस की किसी निमिषा को डॉक्टर की जगह फिदायीन बम बनाने के लिए एक नेटवर्क सक्रिय होगा। कोई अब्दुल अपने बच्चे को लेकर खड़ा होगा ताकि किसी डॉक्टर बम के हाथ उसे थमा दे।
सोचिएगा! क्योंकि वक्त आपका इंतजार नहीं करेगा। यदि करता तो वह केरल जहॉं 300 साल पहले तक 99% हिन्दू निवास करते थे, उसकी मौजूदा आबादी में आप केवल 54.7% ही न हो गए होते। उस मल्लपुरम में जहाँ की 70% फीसदी आबादी मूर्ति पूजा को हराम मानती है, वहॉं एक गर्भवती हथिनी को पटाखे खिलाकर उसकी जान लेने वाले की निंदा करने के लिए ‘हिन्दुओं की आस्था’ का सहारा न लिया जाता। न यह बताया जाता कि आप गणेश को पूजते हैं और न यह कि उस हथिनी का नाम उमा था, जो देवी पार्वती का भी एक नाम है।
यदि आपको लगता है कि यह सब कश्मीर, केरल, असम जैसे कुछ जगहों तक ही सीमित है, तो दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों में दाखिल चार्जशीट की एक-एक लाइन पढ़ लीजिएगा। मौकापरस्त राजनीति, सिकुलरों और लिबरलों की जमात जब देश की राजधानी को जला सकती है, तो भला आपका घर उनकी लपटों से कितना महफूज होगा? सोचिएगा!!!