कर्नाटक में एक बार फिर जातिगत जनगणना का मुद्दा सियासत का केंद्र बन गया है। कॉन्ग्रेस, जो पिछले कुछ सालों से इस मुद्दे को अपने ‘सामाजिक न्याय’ के एजेंडे का चेहरा बनाती रही, अब खुद अपने ही बनाए जाल में फँसती नजर आ रही है। इस मुद्दे के दम पर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी सियासी पहचान को मजबूत करने की कोशिश में लगे राहुल गाँधी भी कर्नाटक में इस मुद्दे के उलझने से मुश्किल में पड़ गए हैं।
अब डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के ताजा बयानों और कॉन्ग्रेस हाईकमान के यू-टर्न से साफ है कि पार्टी बैकफुट पर है। दूसरी तरफ, बीजेपी इसे कॉन्ग्रेस की नाकामी और ध्यान भटकाने की साजिश करार दे रही है।
आखिर ये नौबत क्यों आई? 2015 की जातिगत जनगणना की रिपोर्ट में ऐसा क्या था कि कॉन्ग्रेस को पलटना पड़ रहा है? कॉन्ग्रेस का वादा क्या था और अब क्यों उसे अपने कदम पीछे खींचने पड़ रहे हैं? और सबसे अहम, राहुल गाँधी का ‘जाति ब्रेकिंग न्यूज’ वाला नैरेटिव अब उनके लिए जंजाल क्यों बन रहा है? चलिए, इस पूरे मसले को विस्तार से समझते हैं।
क्यों फिर से उठा जातिगत जनगणना का मुद्दा?
10 जून 2025 को कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार ने ऐलान किया कि वो राज्य में फिर से जातिगत जनगणना करवाएगी। डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने कहा, “90 दिनों के भीतर इसकी टाइमलाइन तय हो जाएगी और प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी होगी।” लेकिन सवाल ये है कि जब 2015 में करवाया गया सर्वे पहले ही तैयार है, तो दोबारा जनगणना की जरूरत क्यों पड़ी? कॉन्ग्रेस तो इस सर्वे को ‘कर्नाटक मॉडल’ के तौर पर प्रचारित करती रही थी। फिर अब अचानक यू-टर्न क्यों?
इसके पीछे कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है 2015 की जातिगत जनगणना की रिपोर्ट, जिसे एच. कांथराज की अगुआई में कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग ने तैयार किया था। इस रिपोर्ट को फरवरी 2024 में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को सौंपा गया था।
इसमें सुझाव दिया गया था कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का आरक्षण 32% से बढ़ाकर 51% और मुस्लिमों का आरक्षण 4% से 8% किया जाए। कुल मिलाकर अगर ये सिफारिशें लागू होतीं, तो कर्नाटक में कुल आरक्षण 85% तक पहुँच जाता – 51% OBC, 24% SC-ST और 10% EWS के लिए।
लेकिन इस रिपोर्ट ने कर्नाटक की दो सबसे प्रभावशाली जातियों लिंगायत और वोक्कालिगा को नाराज कर दिया। इन समुदायों का दावा है कि उनकी आबादी को इस सर्वे में कम करके आँका गया। सर्वे के मुताबिक, लिंगायतों की आबादी कुल जनसंख्या का करीब 11% और वोक्कालिगा की 10% से थोड़ा ज्यादा थी।
ये आँकड़े उनके अपने अनुमानों से बहुत कम थे। कर्नाटक की सियासत में बड़ा रोल अदा करने वाले लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय इस बात से भड़क गए कि उनकी गिनती कम दिखाई गई, जबकि मुस्लिमों की आबादी में 1984 से 2015 के बीच 94% की बढ़ोतरी दिखाई गई। सर्वे में मुस्लिम OBC में सबसे बड़ा समूह बन गए थे और उनकी हिस्सेदारी 18.08% बताई गई।
साल 2015 की जातिगत जनगणना की रिपोर्ट में क्या था?
साल 2015 की जातिगत जनगणना, जिसे कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग ने एच. कांथराज के नेतृत्व में शुरू किया और 2020 में के. जयप्रकाश हेगड़े ने पूरा किया, कर्नाटक की सियासत में भूचाल ला देने वाली थी। इस सर्वे में कई चौंकाने वाले आँकड़े सामने आए-
मुस्लिम आबादी में 94% की बढ़ोतरी: 1984 के वेंकटस्वामी कमीशन के सर्वे में मुस्लिम आबादी 39.63 लाख थी, जो 2015 में बढ़कर 76.9 लाख हो गई। यानी 30 साल में उनकी आबादी लगभग दोगुनी हो गई। उनकी हिस्सेदारी 1984 में 10.97% थी, जो 2015 में बढ़कर 18.08% हो गई।
लिंगायत और वोक्कालिगा की आबादी: 1984 में लिंगायतों की आबादी 61.14 लाख (16.92%) और वोक्कालिगा की 42.19 लाख (11.68%) थी। 2015 में लिंगायतों की आबादी 8.50% बढ़कर करीब 66 लाख और वोक्कालिगा की 46% बढ़कर करीब 61 लाख हो गई। लेकिन उनकी हिस्सेदारी में कमी आई, क्योंकि मुस्लिम और OBC समुदायों की आबादी तेजी से बढ़ी।
OBC की हिस्सेदारी: सर्वे के मुताबिक, कर्नाटक की कुल आबादी में OBC की हिस्सेदारी 69.60% थी। इस आधार पर आयोग ने OBC आरक्षण को 32% से बढ़ाकर 51% करने की सिफारिश की। इसमें मुस्लिमों का आरक्षण 4% से बढ़ाकर 8% करने की बात थी।
कुल आरक्षण 85% तक: अगर ये सिफारिशें लागू होतीं, तो कर्नाटक में कुल आरक्षण 85% हो जाता – 51% OBC, 24% SC-ST और 10% EWS के लिए। यह सुप्रीम कोर्ट के इंद्रा साहनी मामले में तय 50% की सीमा को पार करता, जिसके लिए कॉन्ग्रेस ने झारखंड और तमिलनाडु का उदाहरण दिया, जहाँ क्रमशः 77% और 69% आरक्षण लागू है।
इस रिपोर्ट ने कॉन्ग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दीं। लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों ने इसे ‘अन्याय’ करार दिया और कहा कि उनकी आबादी को जानबूझकर कम दिखाया गया। वहीं, सिद्धारमैया की कुरुबा जाति को ‘अधिक पिछड़ा’ से ‘सबसे पिछड़ा’ श्रेणी में डालने की सिफारिश ने भी विवाद खड़ा किया।
कॉन्ग्रेस का वादा और यू-टर्न
कॉन्ग्रेस ने 2013 में सिद्धारमैया के पहले कार्यकाल में जातिगत जनगणना शुरू की थी। तब इसे ‘सामाजिक न्याय’ का ऐतिहासिक कदम बताया गया था। राहुल गाँधी ने भी इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया और बार-बार कहा कि वो सुप्रीम कोर्ट की 50% आरक्षण की सीमा को तोड़ना चाहते हैं। कॉन्ग्रेस ने इसे ‘कर्नाटक मॉडल’ के तौर पर पेश किया और दावा किया कि ये पिछड़े वर्गों, दलितों और मुस्लिमों के लिए गेम-चेंजर होगा।
लेकिन जब 2024 में ये रिपोर्ट सामने आई, तो कॉन्ग्रेस के सामने दोहरी चुनौती थी। पहली – लिंगायत और वोक्कालिगा जैसे प्रभावशाली समुदायों का विरोध, जो कर्नाटक की सियासत में बड़ा रोल अदा करते हैं। दूसरी – पार्टी के भीतर का अंतर्विरोध। सिद्धारमैया इसे लागू करने के पक्ष में थे, क्योंकि ये उनकी ‘अहिन्दा’ (अल्पसंख्यक, OBC और दलित) रणनीति को मजबूत करता। लेकिन डीके शिवकुमार जो खुद वोक्कालिगा हैं, और लिंगायत नेताओं ने इसका विरोध शुरू कर दिया।
17 अप्रैल 2025 को हुई कैबिनेट बैठक में इस रिपोर्ट पर चर्चा तो हुई, लेकिन कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया। कॉन्ग्रेस हाईकमान को लगा कि ये मुद्दा पार्टी के लिए सियासी नुकसान कर सकता है। नतीजा? दिल्ली में मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गाँधी के साथ बैठक के बाद फैसला लिया गया कि पुराने सर्वे को या तो पूरी तरह स्क्रैप किया जाए या उसमें संशोधन किया जाए।
डीके शिवकुमार बोले- ‘सबको साथ लेकर चलेंगे’
डीके शिवकुमार ने 10 जून 2025 को दिल्ली में मीडिया से बात करते हुए कहा, “जाति जनगणना का डेटा करीब 10 साल पुराना है। हमारे बुजुर्गों ने सुझाव दिया है कि हर वर्ग के नेताओं को इस बारे में बोलने का मौका देकर सामाजिक न्याय सुनिश्चित किया जाए। इसलिए हम विचार कर रहे हैं कि सभी को मौका दिया जाए ताकि किसी भी वर्ग को कोई असुविधा न हो और किसी के साथ नाइंसाफी न हो। हम कैबिनेट में इस पर चर्चा करेंगे और दोबारा जनगणना की तारीख तय करेंगे। इस बार इसे ऑनलाइन भी करवाएंगे। ये एक लंबी प्रक्रिया है। जल्द ही हम बताएँगे कि ये कब शुरू होगी और कैसे होगी।”
शिवकुमार ने आगे कहा, “हम लोगों की भावनाओं को समझते हैं, हम हर जिंदगी का सम्मान करते हैं। हमने समाज के अलग-अलग वर्गों से जानकारी ली है। कुछ लोग मानते हैं कि ये 10 साल पुराना सर्वे है, जिसमें बहुत खर्चा हुआ था। लेकिन हम उस रिपोर्ट से सहमत हैं, जो भी उसमें है। हम सिर्फ आँकड़ों को लेकर चिंतित हैं। 22 जून को हम इस पर अंतिम फैसला लेने वाले थे, लेकिन उससे पहले हाईकमान ने हमें बुलाया। उन्होंने डिटेल्स माँगी हैं। उन्होंने मीडिया लीडर्स से सलाह ली और हमें निर्देश दिया कि आप अपनी नीति के मुताबिक चलें, जो बैकवर्ड क्लास कमीशन कहता है, उसी के हिसाब से करें। किसी को नाराज नहीं होना चाहिए।”
#WATCH | Delhi | On the issue of caste survey, Karnataka Deputy CM DK Shivakumar says, "We know the sentiment of people, we respect every life. We have collected information from various sections of society. Some of them feel that it is a 10-year-old survey which has been done,… pic.twitter.com/tENZm2vmnq
— ANI (@ANI) June 11, 2025
शिवकुमार का ये बयान साफ दिखाता है कि कॉन्ग्रेस अब हर तरफ से दबाव में है। एक तरफ वो अपने ‘सामाजिक न्याय’ के नैरेटिव को बचाना चाहती है, दूसरी तरफ लिंगायत और वोक्कालिगा जैसे प्रभावशाली समुदायों को नाराज नहीं करना चाहती।
बीजेपी ने बताया ‘कॉन्ग्रेस की साजिश’
बीजेपी ने इस मुद्दे को कॉन्ग्रेस की नाकामी और सियासी ड्रामेबाजी करार दिया। कर्नाटक बीजेपी के अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र ने कहा, “जब भी कॉन्ग्रेस सरकार अपनी प्रशासनिक नाकामियों के चलते संकट में आती है, वो जातिगत जनगणना का प्रस्ताव लाती है। ये सामाजिक चिंता से नहीं, बल्कि लोगों का ध्यान भटकाने की साजिश है। बेंगलुरु में चिन्नास्वामी स्टेडियम के पास हाल की स्टैम्पेड में 11 लोगों की मौत हुई। लेकिन कॉन्ग्रेस सरकार जो पब्लिसिटी के जुनून में डूबी है और लोगों के गुस्से का सामना कर रही है, इस जनगणना को फिर से लाकर अपनी नाकामियों को छिपाने की कोशिश कर रही है।”
उन्होंने सवाल पूछा है कि क्या कॉन्ग्रेस सरकार ये मान रही है कि 160 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करके की गई जनगणना पूरी तरह बेकार थी? उन्होंने कहा, “डिप्टी सीएम का बयान यही दिखाता है। अब समय आ गया है कि लोग कॉन्ग्रेस की चालाकी, गैर-जिम्मेदारी और जनता को तंग करने की नीति को सबक सिखाएँ।”
ರಾಜ್ಯದ ಕಾಂಗ್ರೆಸ್ ಸರ್ಕಾರ ತನ್ನ ಆಡಳಿತ ವೈಫಲ್ಯದಿಂದ ಬಿಕ್ಕಟ್ಟಿಗೆ ಸಿಲುಕಿದಾಗಲೆಲ್ಲಾ, ಜಾತಿ ಜನಗಣತಿಯನ್ನು ಪ್ರಸ್ತಾಪಿಸುತ್ತದೆ ಅದು ಸಾಮಾಜಿಕ ಕಾಳಜಿಯಿಂದಲ್ಲ, ಬದಲಾಗಿ ನಾಡಿನ ಜನರ ಗಮನವನ್ನು ಬೇರೆಡೆಗೆ ಸೆಳೆಯಲು ಸದಾ ಸಂಚು ರೂಪಿಸುತ್ತಿರುತ್ತದೆ.
— Vijayendra Yediyurappa (@BYVijayendra) June 10, 2025
ಬೆಂಗಳೂರಿನ ದುರಂತದ ಕಾಲ್ತುಳಿತದ 11 ಅಮಾಯಕರ ಸಾವುಗಳಿಗೆ ರಾಜ್ಯವಷ್ಟೇ ಅಲ್ಲ ದೇಶವೇ… https://t.co/ym4xJMrHB2
बीजेपी के महासचिव सुनील कुमार कारकला ने कहा, “कॉन्ग्रेस हाईकमान ने कर्नाटक सरकार की तैयार की गई जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को रद्द कर दिया है। ये रिपोर्ट नंदी हिल्स में कैबिनेट बैठक में मंजूरी के लिए तय थी। लेकिन हाईकमान ने इसे खारिज कर दिया और डेटा में गड़बड़ी का हवाला देकर दोबारा सर्वे का आदेश दिया। कॉन्ग्रेस और सीएम सिद्धारमैया को समुदायों में असंतोष पैदा करने के लिए माफी माँगनी चाहिए।”
राहुल गाँधी का जंजाल
राहुल गाँधी ने पिछले कुछ सालों में जातिगत जनगणना को अपनी सियासी रणनीति का केंद्र बनाया था। वो बार-बार कहते रहे कि उनकी पार्टी सुप्रीम कोर्ट की 50% आरक्षण की सीमा को तोड़ना चाहती है। 2024 में उन्होंने कहा था, “हम भारत में सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए 50% की दीवार को तोड़ देंगे।” कर्नाटक में उनकी पार्टी ने इस दिशा में कदम भी उठाया। लेकिन अब वही मुद्दा उनके लिए जंजाल बन रहा है।
कर्नाटक में लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों का विरोध कॉन्ग्रेस के लिए सियासी नुकसान का सबब बन सकता है। ये दोनों समुदाय परंपरागत रूप से बीजेपी और जेडी(एस) के वोटर रहे हैं। कॉन्ग्रेस की ‘अहिन्दा’ रणनीति (अल्पसंख्यक, OBC और दलित) इन समुदायों को पहले ही नजरअंदाज करती रही है। अब अगर कॉन्ग्रेस 2015 की रिपोर्ट को लागू करती है, तो लिंगायत और वोक्कालिगा और नाराज होंगे। और अगर नहीं करती तो उसका ‘सामाजिक न्याय’ का नैरेटिव कमजोर पड़ जाएगा।
राहुल गाँधी की मुश्किल ये है कि वो राष्ट्रीय स्तर पर तो जातिगत जनगणना का ढोल पीट रहे हैं, लेकिन कर्नाटक में उनकी अपनी सरकार इसे लागू करने में नाकाम रही है। इससे बीजेपी को मौका मिल गया है कि वो कॉन्ग्रेस को ‘वोटबैंक की राजनीति’ करने वाली पार्टी करार दे।
कॉन्ग्रेस की रणनीति में अहिन्दा वोटबैंक
कर्नाटक में कॉन्ग्रेस की रणनीति हमेशा से ‘अहिन्दा’ (अल्पसंख्यक, OBC और दलित) वोटबैंक को मजबूत करने की रही है। ये शब्द सबसे पहले कॉन्ग्रेस के नेता देवराज उर्स ने दिया था और सिद्धारमैया ने इसे अपनी सियासी पहचान बनाया। 2015 की जनगणना में OBC और मुस्लिम आरक्षण बढ़ाने की सिफारिश इसी रणनीति का हिस्सा थी। कर्नाटक में मुस्लिम आबादी 18.08% है और वो OBC में सबसे बड़ा समूह हैं। कॉन्ग्रेस को लगता है कि अगर वो मुस्लिमों और OBC को ज्यादा आरक्षण देगी, तो उसका वोटबैंक और मजबूत होगा।
लेकिन ये रणनीति अब उलटी पड़ रही है। लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों का विरोध कॉन्ग्रेस के लिए सिरदर्द बन गया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट की 50% आरक्षण की सीमा को तोड़ने की बात भी कानूनी पचड़े में फंस सकती है। कॉन्ग्रेस ने झारखंड और तमिलनाडु का उदाहरण तो दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का इंद्रा साहनी फैसला अभी भी लागू है।
कर्नाटक में जातिगत जनगणना का मुद्दा कॉन्ग्रेस के लिए दोधारी तलवार बन गया है। एक तरफ पार्टी अपने ‘सामाजिक न्याय’ के नैरेटिव को बनाए रखना चाहती है, जिसके तहत वो OBC, मुस्लिम और दलित वोटबैंक को साधने की कोशिश कर रही है। दूसरी तरफ लिंगायत और वोक्कालिगा जैसे प्रभावशाली समुदायों का विरोध उसे बैकफुट पर ले आया है। डीके शिवकुमार का बयान कि “हम हर समुदाय को साथ लेकर चलेंगे” कॉन्ग्रेस की मजबूरी को दिखाता है।
राहुल गाँधी, जो जातिगत जनगणना को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी सियासी पहचान का हिस्सा बनाना चाहते थे, अब खुद इस जंजाल में फँसते जा रहे हैं। उनकी पार्टी न तो 2015 की रिपोर्ट को लागू कर पा रही है, न ही इसे पूरी तरह खारिज कर पा रही है। बीजेपी इसे कॉन्ग्रेस की नाकामी और सियासी ड्रामेबाजी बता रही है और कर्नाटक की जनता के बीच ये सवाल उठ रहा है कि क्या कॉन्ग्रेस वाकई सामाजिक न्याय की बात करती है, या ये सिर्फ वोटबैंक की राजनीति है?
कुल मिलाकर राहुल गाँधी का ‘जाति ब्रेकिंग न्यूज’ वाला ड्रामा अब उनके लिए जंजाल बन गया है। और कर्नाटक में कॉन्ग्रेस की ये उलझन आने वाले दिनों में और गहरा सकती है।