Friday, July 4, 2025
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इंडियन स्टेट से लड़ाई, आरक्षण खत्म और 6 हफ्ते विदेश में… ये है राहुल गाँधी के नेता प्रतिपक्ष के तौर पर एक साल का ब्यौरा: हरियाणा, दिल्ली, महाराष्ट्र भी हारे, चुनाव आयोग-भारत के लोकतंत्र को भी किया बदनाम

संसद में राहुल की उपस्थिति औसत से भी कम रही, जिसे बीजेपी ने गैर-जिम्मेदाराना बताया। कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता हताश हैं, और विपक्षी एकता टूट रही है। सवाल ये है कि क्या राहुल के भरोसे कॉन्ग्रेस बचेगी

राहुल गाँधी को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बने एक साल से ज्यादा हो गया, लेकिन उनका कार्यकाल विवादों, नाकामियों, और कॉन्ग्रेस की हार से भरा रहा। 40+ दिन विदेश में बिताने, तथ्यहीन और जहरीले बयानों और संसद में औसत से कम उपस्थिति ने उनकी लीडरशिप पर सवाल खड़े किए। दिल्ली, हरियाणा और महाराष्ट्र में हार ने साबित किया कि राहुल का चेहरा अब कॉन्ग्रेस के लिए बोझ बन चुका है। उनके बयानों ने ना सिर्फ पार्टी की साख को ठेस पहुँचाई, बल्कि भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुकसान पहुँचाया।

राहुल गाँधी ने विदेश यात्राओं में बिताए 40+ दिन

पिछले एक साल में राहुल गाँधी ने 40+ दिन विदेश में बिताए। ये वो नेता हैं, जिन्हें कॉन्ग्रेस ने विपक्ष का चेहरा बनाया, लेकिन वो बार-बार देश छोड़कर विदेशी हवाओं में सैर-सपाटा करने निकल पड़ते हैं। बीजेपी और सोशल मीडिया पर लोग उन्हें ‘पार्ट-टाइम पॉलिटिशियन’ कहकर तंज कसते हैं। आइए, उनकी कुछ प्रमुख विदेश यात्राओं पर नजर डालते हैं-

लंदन यात्रा (जून 2025): राहुल जून 2025 में लंदन गए। कॉन्ग्रेस ने दावा किया कि वो अपनी भतीजी मिराया वाड्रा के ग्रेजुएशन समारोह में शामिल होने गए। बीजेपी ने इसे गैर-जिम्मेदाराना रवैया करार दिया। अमित मालवीय ने X पर लिखा कि राहुल बार-बार ‘गायब’ हो जाते हैं और जनता को जवाब देना चाहिए। सोशल मीडिया पर अफवाहें उड़ीं कि राहुल बहरीन गए, लेकिन कॉन्ग्रेस ने स्पष्ट किया कि उनकी फ्लाइट का रूट दिल्ली-बहरीन-लंदन था। ये यात्रा तब हुई जब कॉन्ग्रेस गोवा में दलबदल की घटनाओं से जूझ रही थी। क्या ये वक्त था विदेश जाने का? इस यात्रा ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया।

वियतनाम यात्रा (मार्च 2025): होली के मौके पर राहुल वियतनाम में थे। बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में तंज कसा कि राहुल की ‘गुप्त’ यात्राएँ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं। कॉन्ग्रेस ने बचाव में कहा कि राहुल वियतनाम के आर्थिक मॉडल का अध्ययन करने गए। लेकिन सवाल ये है कि क्या नेता प्रतिपक्ष को हर बार विदेशी मॉडल सीखने की जरूरत पड़ती है? क्या भारत में बैठकर कुछ नहीं सीखा जा सकता? अमित मालवीय ने X पर दावा किया कि राहुल ने वियतनाम में 22 दिन बिताए, जबकि अपने रायबरेली क्षेत्र में इतना वक्त नहीं दिया। इस यात्रा ने उनकी प्राथमिकताओं पर सवाल उठाए।

अमेरिका यात्रा (सितंबर 2024): ये यात्रा सबसे ज्यादा विवादों में रही। टेक्सास, वर्जीनिया और वाशिंगटन में राहुल ने बीजेपी, आरएसएस और पीएम मोदी पर तीखे हमले किए। लेकिन उनके बयानों ने कॉन्ग्रेस को मुश्किल में डाल दिया। उन्होंने भारत के लोकतंत्र को सीरिया और इराक जैसे युद्धग्रस्त देशों से जोड़ा, जिस पर बीजेपी ने उन्हें ‘देशद्रोही’ तक करार दिया। वो अमेरिकी सांसद इल्हान उमर से भी मिले, जिन्हें भारत विरोधी माना जाता है। इस मुलाकात ने सियासी हंगामा मचा दिया। राहुल ने सिख समुदाय और आरक्षण पर भी बयान दिए, जिन्हें सिख संगठनों और मायावती ने अपमानजनक बताया। इस यात्रा ने कॉन्ग्रेस की छवि को भारी नुकसान पहुँचाया।

इन 40+ दिनों में राहुल ने क्या हासिल किया? क्या कोई नीति बनाई? क्या कॉन्ग्रेस को नया रास्ता दिखाया? जवाब है – कुछ भी नहीं। उनकी यात्राएँ निजी कारणों, पारिवारिक समारोहों और विवादित बयानों तक सीमित रहीं। देश की जनता को जवाब देने की बजाय वो विदेशी मंचों पर भारत की छवि खराब करने में व्यस्त रहे। क्या ऐसा नेता प्रतिपक्ष देश की आवाज बन सकता है?

झूठ और जहरीले बयान बने कॉन्ग्रेस के लिए शर्मिंदगी के सबब

राहुल गाँधी के बयानों ने पिछले एक साल में कॉन्ग्रेस को बार-बार बैकफुट पर ला खड़ा किया। उनके बयान ना सिर्फ तथ्यहीन थे, बल्कि देश के खिलाफ जहर उगलने वाले भी साबित हुए। कुछ प्रमुख बयानों पर गौर करते हैं-

मैन्युफैक्चरिंग पर झूठ: सितंबर 2024 में अमेरिका में राहुल ने कहा कि भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर कमजोर है और ‘मेक इन इंडिया’ बुरी तरह से हो चुका है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने इसका जवाब देते हुए कहा कि राहुल विदेश में जाकर भारत को बदनाम कर रहे हैं। तथ्य ये है कि भारत का रक्षा निर्यात 19 लाख करोड़ से बढ़कर 75 लाख करोड़ रुपये हो गया है। 2024 में भारत ने 4.5 मिलियन गाड़ियों की बिक्री की, जो वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा बाजार है। राहुल का ये बयान ना सिर्फ झूठा था, बल्कि भारत की प्रगति को कमतर दिखाने की साजिश भी था।

गाड़ी बिक्री पर गलत दावा: राहुल ने दावा किया कि भारत में ऑटोमोबाइल सेक्टर ठप्प है। लेकिन हकीकत ये है कि 2024 में भारत में कारों की बिक्री 4.5 मिलियन यूनिट्स यानी 45 लाख से अधिक गाड़ियों की बिक्री की संख्या को पार कर गई। क्या राहुल को इतने बुनियादी तथ्य भी नहीं पता? उनके इस बयान ने उनकी आर्थिक समझ की पोल खोल दी। बीजेपी ने इसे ‘झूठ का कारखाना’ करार दिया।

आरक्षण पर विवाद: अमेरिका में राहुल ने कहा कि भारत में आरक्षण खत्म हो सकता है। इस बयान पर बीएसपी सुप्रीमो मायावती भड़क गईं और कॉन्ग्रेस पर आरक्षण विरोधी होने का आरोप लगाया। राहुल ने बाद में सफाई दी कि वो जातिगत जनगणना की बात कर रहे थे, लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था। बीजेपी ने इसे दलित-विरोधी बयान करार दिया।

लोकतंत्र की सीरिया-इराक से तुलना: सितंबर 2024 में अमेरिका में राहुल ने भारत के लोकतंत्र को सीरिया और इराक जैसे युद्धग्रस्त देशों से जोड़ा। बीजेपी ने इसे देशद्रोह करार दिया और कहा कि राहुल विदेशी मंचों पर भारत को बदनाम कर रहे हैं। क्या कोई जिम्मेदार नेता अपने देश की तुलना ऐसे देशों से करेगा? ये बयान राहुल की अपरिपक्वता और गैर-जिम्मेदाराना रवैये का जीता-जागता सबूत है।

सिख समुदाय पर टिप्पणी: अमेरिका में राहुल ने सिखों के अधिकारों पर बयान दिया, जिसे सिख संगठनों ने अपमानजनक माना। बीजेपी ने इसे सिख-विरोधी बयान करार दिया, जिसके बाद कॉन्ग्रेस को सफाई देनी पड़ी। इस बयान ने पंजाब में कॉन्ग्रेस की स्थिति को और कमजोर किया।

विदेश नीति पर बेतुके सवाल: मई 2025 में राहुल ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर पर निशाना साधते हुए कहा कि भारत की विदेश नीति ‘ध्वस्त’ हो चुकी है। उन्होंने पूछा कि भारत को पाकिस्तान के साथ क्यों जोड़ा जा रहा है। जयशंकर ने जवाब में राहुल के बयानों को ‘झूठ’ करार दिया और उनकी समझ पर सवाल उठाए। ये बयान राहुल की अंतरराष्ट्रीय मामलों में अज्ञानता को उजागर करता है।

चुनाव आयोग पर हमला: बोस्टन में राहुल ने महाराष्ट्र चुनावों में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग पर सवाल उठाए। राहुल गाँधी ने बोस्टन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ‘कंप्रोमाइज्ड‘ है। उन्होंने यह भी कहा कि इसके सिस्टम में कुछ तो ‘बहुत गलत’ है। राहुल गाँधी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों का उदाहरण देते हुए दावा किया कि दो घंटे में 65 लाख वोट जुड़ गए। उन्होंने कहा कि यह ‘फिजिकली इंपॉसिबल’ है। चुनाव आयोग ने उनके दावों को खारिज किया। ये बयान उनकी हार को जायज ठहराने की कोशिश थी।

यही नहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गाँधी ने अमेरिका के नेशनल प्रेस क्लब में कहा कि ‘भारत में लोकतंत्र पिछले 10 सालों से टूटा (ब्रोकेन) हुआ था, अब यह लड़ रहा है।’ दरअसल, इन चुनावों में 10 साल बाद कॉन्ग्रेस को लोकसभा चुनावों में विपक्ष के नेता का पद हासिल हो पाया था, क्योंकि वह 99 सीटों पर पहुँची थी। ऐसे में राहुल पर यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या 2014 और 2019 में देश में जो चुनाव हुए, उसमें देश की जनता ने वोट नहीं डाला था?

इन बयानों से साफ है कि राहुल गाँधी ना तो तथ्यों की परवाह करते हैं, ना ही देश की छवि की। उनके बयान कॉन्ग्रेस को बार-बार मुश्किल में डालते हैं और विपक्ष की एकता को कमजोर करते हैं। विदेशी मंचों पर भारत को बदनाम करने की उनकी आदत ने कॉन्ग्रेस की बची खुची साख को तार-तार कर दिया।

राहुल की नाकामियाँ रही कॉन्ग्रेस की हार के लिए जिम्मेदार

राहुल गाँधी के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस ने पिछले एक साल में कई महत्वपूर्ण चुनावों में करारी हार झेली। दिल्ली, हरियाणा, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कॉन्ग्रेस का प्रदर्शन इतना खराब रहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट गया।

हरियाणा विधानसभा चुनाव (2024): हरियाणा में कॉन्ग्रेस को बीजेपी के सामने मुँह की खानी पड़ी। राहुल गाँधी ने कई रैलियाँ कीं, लेकिन उनकी सिखों और आरक्षण पर टिप्पणियों ने कॉन्ग्रेस को नुकसान पहुँचाया। बीजेपी ने 48 सीटें जीतीं, जबकि कॉन्ग्रेस 37 पर सिमट गई। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल ने हरियाणा की 12 विधानसभाओं को कवर किया था, लेकिन इनमें से सिर्फ 4 पर जीत मिली। क्या ये राहुल की लीडरशिप की हकीकत नहीं दिखाता?

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (2024): महाराष्ट्र में कॉन्ग्रेस इंडिया गठबंधन का हिस्सा थी, लेकिन राहुल की अगुवाई में गठबंधन बुरी तरह हारा। बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने 230+ सीटें जीतीं, जबकि कॉन्ग्रेस को 40 से भी कम सीटें मिलीं। राहुल की रणनीति और बयानबाजी ने गठबंधन को कमजोर किया। उनकी अनुपस्थिति और विवादित बयानों ने कार्यकर्ताओं का जोश ठंडा कर दिया।

दिल्ली (MCD और अन्य चुनाव): दिल्ली में कॉन्ग्रेस का प्रदर्शन MCD चुनावों में भी निराशाजनक रहा। 2022 में ही पार्टी का सबसे खराब प्रदर्शन दर्ज हुआ था और 2024 में भी स्थिति नहीं सुधरी। राहुल की अनुपस्थिति और कमजोर नेतृत्व ने कॉन्ग्रेस को AAP और बीजेपी के सामने बौना बना दिया। दिल्ली में कॉन्ग्रेस का संगठन पूरी तरह बिखर चुका है।

अन्य राज्यों में हार: राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 2023 के चुनावों में कॉन्ग्रेस की हार ने भी राहुल की रणनीति पर सवाल उठाए। हालांकि ये हार 2024 से पहले की हैं, लेकिन राहुल की लीडरशिप की कमजोरी उस वक्त भी साफ दिखी।

इन हार के लिए राहुल गाँधी की रणनीति और उनकी अनुपस्थिति को जिम्मेदार ठहराया गया। उनकी विदेश यात्राएँ और विवादित बयान कॉन्ग्रेस के लिए भारी पड़े। पार्टी कार्यकर्ता अब खुलकर सवाल उठाने लगे हैं कि क्या राहुल गाँधी वाकई नेतृत्व के काबिल हैं?

लोकसभा में अटेंडेंस औसत से भी कम

नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल गाँधी की संसद में उपस्थिति इतनी कम रही कि ये किसी मजाक से कम नहीं। न्यूज रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनकी अटेंडेंस सामान्य सांसदों के औसत से भी कम थी। जब देश के गंभीर मुद्दों पर चर्चा हो रही थी, राहुल गाँधी या तो विदेश में थे या संसद से गायब। यही नहीं, संसद में राहुल गाँधी ने सिर्फ 8 बहसों में हिस्सा लिया, जबकि राष्ट्रीय औसत 15 बहसों का है। वहीं, एक भी प्राइवेट मेंबर बिल तक नहीं ला सके। इसके अलावा सवाल पूछने के मामले में भी राहुल गाँधी औसत से बहुत पीछे रहे।

संसद सत्रों में अनुपस्थिति: मॉनसून सत्र और शीतकालीन सत्र में राहुल की उपस्थिति 50% से भी कम रही। बीजेपी ने इसे गैर-जिम्मेदाराना रवैया करार दिया। ऐसे में जब राहुल संसद में ही नहीं आते, तो जनता के मुद्दे कैसे उठाएँगे?

महत्वपूर्ण बहसों से दूरी: रक्षा, विदेश नीति, और आर्थिक मुद्दों पर बहस के दौरान राहुल अक्सर गायब रहे। जब वो आए, तो उनके बयान तथ्यहीन और विवादित ही रहे। X पर एक यूजर ने लिखा कि राहुल संसद में ‘सोते’ हैं और ‘पाकिस्तान की भाषा’ बोलते हैं।

संसद का अपमान: राहुल ने उपराष्ट्रपति और राज्यसभा अध्यक्ष की नकल उतारकर वीडियो बनवाए, जिसे बीजेपी ने अपमानजनक बताया। ये हरकत उनकी गैर-गंभीरता को दर्शाती है।

क्या ऐसा नेता प्रतिपक्ष देश की आवाज बन सकता है, जो संसद में ही ना दिखे? जो इंडियन स्टेट से ही लड़ाई की बात करता हो। यही नहीं, राहुल गाँधी ने बीजेपी के सांसद को ऐसा धक्का दिया कि उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। राहुल गाँधी की ये हरकतें कॉन्ग्रेस के लिए शर्मिंदगी का सबब बनी हुई हैं।

  • चुनावी नतीजों पर असर नहीं: हरियाणा में भारत जोड़ो यात्रा के बावजूद कॉन्ग्रेस हारी। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी कोई फायदा नहीं हुआ।
  • महँगा प्रचार: यात्रा पर करोड़ों रुपये खर्च हुए, लेकिन इसका असर सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित रहा। कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ा, लेकिन वोटर तक बात नहीं पहुँची।
  • विवादों का हिस्सा: यात्रा के दौरान राहुल के सावरकर पर बयान ने महाराष्ट्र में कॉन्ग्रेस को नुकसान पहुँचाया।

यात्रा ने राहुल को प्रचार तो दिलाया, लेकिन कॉन्ग्रेस की हार ने साबित किया कि ये सिर्फ दिखावा था। अगर इतने बड़े अभियान का कोई चुनावी असर नहीं हुआ, तो सवाल उठता है कि ये यात्रा किस काम की थी?

पतन की राह पर कॉन्ग्रेस

कार्यकर्ताओं का टूटता मनोबल: हरियाणा और महाराष्ट्र में हार के बाद कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता हताश हैं। राहुल की रणनीति पर सवाल उठ रहे हैं।
विपक्षी एकता में दरार: राहुल के बयानों ने विपक्षी गठबंधन को भी कमजोर किया। मायावती और अन्य नेताओं ने कॉन्ग्रेस से दूरी बना ली।
संगठनात्मक कमजोरी: कॉन्ग्रेस का संगठन कई राज्यों में बिखर चुका है। दिल्ली, हरियाणा, और महाराष्ट्र में पार्टी का आधार लगातार कमजोर हो रहा है।
आंतरिक कलह: कॉन्ग्रेस में राहुल के नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं। कई नेता खुलकर कहने लगे हैं कि पार्टी को नया चेहरा चाहिए।

राहुल की लीडरशिप ने कॉन्ग्रेस को एक डूबती नाव बना दिया है। अगर पार्टी को बचाना है, तो उसे कठोर फैसले लेने होंगे।

राहुल गाँधी के बयानों ने ना सिर्फ कॉन्ग्रेस को कमजोर किया, बल्कि देश की कानून-व्यवस्था पर भी सवाल खड़े किए। उनके भारत के लोकतंत्र को सीरिया-इराक से जोड़ने और चुनाव आयोग पर अनियमितताओं के आरोप लगाने जैसे बयानों ने सियासी अस्थिरता को बढ़ावा दिया। बीजेपी ने इसे ‘अराजकता फैलाने की साजिश’ करार दिया। राहुल की गैर-जिम्मेदाराना बयानबाजी ने विपक्ष की विश्वसनीयता को भी ठेस पहुँचाई। जब नेता प्रतिपक्ष ही विदेश में जाकर देश की व्यवस्था पर सवाल उठाएगा, तो जनता का भरोसा कैसे बनेगा? उनकी अनुपस्थिति और विवादित बयानों ने कानून-व्यवस्था को कमजोर करने का काम किया।

कॉन्ग्रेस के लिए बोझ बन चुके हैं राहुल गाँधी

राहुल गाँधी का एक साल का कार्यकाल बतौर नेता प्रतिपक्ष एक फ्लॉप शो रहा। 43 दिन विदेश में बिताने वाले राहुल ने ना तो संसद में कोई प्रभाव छोड़ा, ना ही कॉन्ग्रेस को जीत दिलाई। उनके झूठे और जहरीले बयानों ने भारत की छवि को नुकसान पहुँचाया और कॉन्ग्रेस को बार-बार बैकफुट पर ला खड़ा किया। दिल्ली, हरियाणा और महाराष्ट्र में हार ने साबित किया कि राहुल का चेहरा अब कॉन्ग्रेस के लिए बोझ बन चुका है। उनकी संसद में अनुपस्थिति और गैर-जिम्मेदाराना रवैये ने जनता का भरोसा तोड़ा।

ऐसे में अब सवाल ये है कि क्या कॉन्ग्रेस इस ‘शहजादे’ के भरोसे अपनी साख बचा पाएगी? राहुल गाँधी की हरकतों ने साबित किया कि वो ना तो नेतृत्व के काबिल हैं, ना ही देश की जनता के भरोसे के। कॉन्ग्रेस को अगर बचना है तो उसे राहुल से छुटकारा पाना होगा, वरना ये डूबती नाव और गहरे समंदर में समा जाएगी। राहुल गाँधी की नाकामियाँ कॉन्ग्रेस के लिए एक सबक हैं – या तो नेतृत्व में बदलाव या फिर रहो खत्म होने को तैयार।

नेतृत्व में बदलाव से मतलब है कि मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे रिमोट कंट्रोल से चलने वाले नेता की जगह सचिन पायलट, डीके शिवकुमार या शशि थरूर जैसे नेताओं को पार्टी की कमान सौंपी जाए, जो इस ग्रैंड ओल्ड पार्टी को फिर से चुनावी राजनीति में कम से कम प्रासंगिक तो बना सकें।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
I am Shravan Kumar Shukla, known as ePatrakaar, a multimedia journalist deeply passionate about digital media. Since 2010, I’ve been actively engaged in journalism, working across diverse platforms including agencies, news channels, and print publications. My understanding of social media strengthens my ability to thrive in the digital space. Above all, ground reporting is closest to my heart and remains my preferred way of working. explore ground reporting digital journalism trends more personal tone.

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