Saturday, May 3, 2025
Homeराजनीतिएक चौथाई जातियाँ ही ले रहीं 97% आरक्षण का मजा... क्या है रोहिणी आयोग,...

एक चौथाई जातियाँ ही ले रहीं 97% आरक्षण का मजा… क्या है रोहिणी आयोग, जाति जनगणना के बाद जिसकी सिफारिशें लागू होने के चर्चे: ये होगा असर

रोहिणी आयोग ने ओबीसी की 3000 जातियों को 4 वर्गों में विभाजित करने का सुझाव दिया है। इन वर्गों में आरक्षण का पूरा लाभ, अधूरा लाभ, बिल्कुल लाभ न ले पाने वाली और बिल्कुल अक्षम जातियों का वर्ग तैयार हो सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना की घोषणा कर दी है। राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति ने शुक्रवार (30 अप्रैल, 2025) को इसकी मंज़ूरी दी है। इसके बाद जनगणना को लेकर नई नई अटकलें लगनी शुरू हो गई हैं। साथ ही एक बार फिर रोहिणी आयोग की चर्चा सुर्खियों में है। इसके सुझावों और सिफारिशों पर चर्चा चल रही है, जिन्हें जनगणना के बाद लागू किया जा सकता है।

रोहिणी आयोग पर हम विस्तार से बात करेंगे पर उससे पहले आपको ये बताते हैं कि भारत में जातिगत जनगणना कितनी बार और कब-कब हुई। आपको जानकर हैरत होगी कि असल में जातिगत जनगणना सबसे पहले ब्रिटिश जमाने में हुई और आखिरी बार भी। स्वतंत्रता के बाद से अब तक में पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना सर्वेक्षण किया जाएगा।

पहली बार कब हुई जाति जनगणना

भारत में पहली बार जनगणना ब्रिटिश शासन काल में सन 1881 में हुई थी। उस समय भारत की कुल जनसंख्या 25.38 करोड़ थी। तब से प्रति 10 वर्षों पर भारत में जनगणना हो रही है। सन 1901 में पहली बार जनगणना को पेशे और वर्ण के आधार पर जातियों को बाँटा गया। इस में कुल 1642 जातियाँ दर्ज हुईं। स्वतंत्रता से पहले अंतिम बार 1931 में जातिगत जनसंख्या सर्वेक्षण हुआ जिसमें 4147 जातियाँ दर्ज हुईं।

इसके बाद 1941 में जातिगत जनगणना तो हुई मगर उस समय द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। इस वजह से जनगणना के जुटाए गए आँकड़े पूरे नहीं हो पाए और अंततः सार्वजनिक नहीं किए गए।

स्वतंत्रता के बाद भारत में 1951 में पहली बार जनगणना हुई। सरकार ने तय किया कि जाति के हिसाब से सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आँकड़े जुटाए जाएँगे। यह फैसला राष्ट्रीय एकता को ध्यान में रख कर लिया गया था।

1991 में सभी राज्यों को आदर बैकवर्ड कास्ट (OBC) की सूची तैयार करने के लिए सर्वेक्षण करने की अनुमति दी गई। ऐसा जातियों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए किया गया था, लेकिन तब भी राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना नहीं हुई।

भारत में आखिरी बार जनगणना 2011 में हुई थी। उसके बाद 2021 में जनगणना की जानी थी, लेकिन कोरोना महामारी के चलते वह नहीं हुई। तब भी विपक्ष में जातिगत जनगणना की बात उठ रही थी। उस समय सत्ता पक्ष में रहे भाजपा और RSS जातिगत जनगणना के विरोध में थे।

यहाँ तक कि 2011 में जब राष्ट्रीय जनगणना हुई तो जातिगत जनगणना करवाने के वादे से कॉन्ग्रेस सरकार साफ-साफ मुकर गई। उस समय कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ मंत्रियों प्रणब मुखर्जी और P चिदंबरम ने डॉ मनमोहन सिंह की सरकार को जातिगत जनगणना करने से रोक दिया। हालाँकि, बाद में OBC और दलित नेताओं का दबाव बढ़ा तो दिखाने भर के लिए मनमोहन सरकार ने 2012-13 के बीच एक जातिवाद सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण करवाया था। यह राष्ट्रीय जनगणना का हिस्सा नहीं था और इसकी रिपोर्ट भी आज तक सार्वजनिक नहीं हुई।

ये बात और है कि 2 अक्तूबर, 2023 को बिहार की जातिगत जनगणना की रिपोर्ट सामने आई तो कॉन्ग्रेस के सांसद और नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी ने अपनी पार्टी की तरफ से एक बार फिर ऐलान कर दिया था कि सरकार में आते ही राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना की जाएगी।

ना से हाँ तक

कुछ समय पहले तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना था कि वह सिर्फ चार जातियों को मानते हैं और वह हैं- गरीब, युवा, महिला और किसान। RSS के संचालक भी हमेशा से कहते रहे हैं कि वह सभी को हिंदू मानते हैं। जातिगत जनगणना का विचार गलत है। संसद में भी सरकार ने कहा था कि जातिगत जनगणना करने से समाज में जातिवाद फैलेगा। इसके बाद 30 अप्रैल, 2025 को मोदी सरकार ने अचानक जातिगत जनगणना करने की घोषणा कर दी। 1931 के बाद अब पहली बार राष्ट्रीय जनगणना के साथ लोगों की जातिगत जनगणना भी होगी।

जातिगत जनगणना की इस घोषणा के बाद से राजनीतिक बहस तो तेज हो ही रही है, क्योंकि इससे आगामी चुनाव के समीकरणों और रणनीतियों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। इसके साथ ही यह सर्वेक्षण आरक्षण, संसाधनों के वितरण और सामाजिक नीतियों की दिशा भी बदल सकता है।

क्यों हो रही ‘रोहिणी आयोग’ की चर्चा

अब आते हैं रोहिणी आयोग पर। 2023 में बिहार में जातिगत जनगणना की गई। उसके आँकड़े सार्वजनिक होने से पहले मोदी सरकार ने कालेलकर आयोग और मंडल आयोग की तर्ज पर रोहिणी आयोग का गठन किया था।

2 अक्तूबर, 2017 को दिल्ली हाईकोर्ट की रिटायर्ड चीफ जज जस्टिस G रोहिणी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया था। भारत के संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत इस आयोग का गठन हुआ जिसका काम अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का उप-वर्गीकरण करना था। इसे ही रोहिणी आयोग के रूप में जाना जाता है। आइए, पहले जानते हैं कि ये आयोग कैसे और क्यों बनता है।

भारत के संविधान में अनुच्छेद 340 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों में सुधार की ज़रूरत पर जाँच के लिए एक आयोग की नियुक्ति का प्रावधान है। इसके तहत राष्ट्रपति भारत के पिछड़े वर्गों की स्थितियों और पृष्ठभूमि की जाँच के लिए एक आयोग नियुक्त करने का आदेश दे सकते हैं। इस अनुच्छेद के तहत 3 बार आयोग का गठन हो चुका है।

रोहिणी आयोग से पहले 1979 में मंडल कमीशन बनाया था। इस आयोग ने OBC वर्ग को आरक्षण देने की सिफारिश की थी। उनकी सिफारिश को 1980 से 1989 तक इंदिरा और राजीव गाँधी की सरकारों ने इसे अधर में रखा। 1990 में VP सिंह की सरकार ने इसे लागू किया।

और सबसे पहली बार अनुच्छेद 340 के तहत 1953 में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने काका कालेलकर की अध्यक्षता में पिछड़ा आयोग बनाया था। इस आयोग ने भी पिछड़ी जातियों पर अपनी रिपोर्ट सरकार को दी थी लेकिन नेहरू सरकार ने इस आयोग के सुझाव नहीं माने थे।

रोहिणी आयोग की सिफारिशें

2017 में रोहिणी आयोग बनने के बाद आयोग का कार्यकाल 13 बार बढ़ाया गया। आखिरकार 31 जुलाई, 2023 को आयोग ने अपनी 1100 पन्नों की रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष पेश की।

रोहिणी आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में OBC की 2633 जातियाँ हैं। 983 जातियों यानी लगभग 37% को अब तक आरक्षण का लाभ नहीं मिला है।

2018 में आयोग ने पाँच साल में केंद्र सरकार की ओर से OBC कोटे में दी गई 1.30 लाख सरकारी नौकरियों और तीन साल में IIT और IIM जैसे संस्थानों के प्रवेश के आँकड़ों का अध्ययन किया।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आयोग की रिपोर्ट में ये आँकड़ा सामने आया कि नौकरियों और शिक्षा में 97% ओबीसी आरक्षण का लाभ सिर्फ 25% ओबीसी जातियाँ ही उठा रही हैं। शेष 75 प्रतिशत जातियों की भागीदारी सिर्फ 3% ही है। 983 ओबीसी जातियों की हिस्सेदारी शून्य है।

कुछ रिपोर्ट्स कहती हैं कि रोहिणी आयोग ने ओबीसी की 3000 जातियों को 4 वर्गों में विभाजित करने का सुझाव दिया है। इन वर्गों में आरक्षण का पूरा लाभ, अधूरा लाभ, बिल्कुल लाभ न ले पाने वाली और बिल्कुल अक्षम जातियों का वर्ग तैयार हो सकता है। इन्हें 10%, 5%, 8% और जो भी डाटा इस आयोग की सिफारिश के साथ होगा, उन्हें मिल जाएगा।

रोहिणी आयोग की सिफारिशों को अगर लागू किया जाए तो कई ताकतवर OBC जातियों का कोटा कम हो जाएगा। इसके अलावा जिन जातियों को आरक्षण का लाभ अभी तक नहीं मिला या बहुत कम मिला है, उनका कोटा बढ़ जाएगा।

लागू होने का क्या होगा असर

रोहिणी आयोग की सिफारिशें और जातिगत जनगणना के फायदा कई वंचित समूहों को मिल सकता है। आयोग कि रिपोर्ट से यह पता लगाया जा सकता है कि कौन सी जातियाँ शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य सेवाओं में सबसे ज्यादा वंचित हैं। इससे कल्याणकारी योजनाओं को और प्रभावी बनाया जा सकता है।

आयोग की सिफारिशें लागू किए जाने पर नए तरीके से आरक्षण नीतियों को लागू करना और संसाधनों का उचित तरह से वितरण करना आसान हो जाएगा।

इसके अलावा उन समुदायों की पहचान सामने आ सकेगी जो हमेशा से असमानता और हाशिए पर हैं। इससे सरकार को उनके मुद्दों पर काम करने का मौका मिलेगा। अगर किसी विशेष जाति में शिक्षा और आय का स्तर राष्ट्रीय औसत से भी कम है, तो उसमें सुधार लाया जा सकता है और नई नीतियां बनाई जा सकती हैं।

‘आरक्षण में आरक्षण’ को सुप्रीम कोर्ट ने भी माना सही

एक अगस्त 2024 को CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में 7 सदस्यों की बेंच ने 6-1 से निर्णय दिया कि राज्य SC-ST को मिलने वाले आरक्षण में भी ऐसी जातियों को ऊपर रख सकते हैं जो सामाजिक और आर्थिक रूप से अधिक पिछड़ गई हैं। SC-ST में भी क्रीमी लेयर पहचानी जाए और जिन जातियों को लाभ मिल चुका है उन्हें इससे बाहर किया जाए।

इस फैसले के बाद तेलंगाना सरकार ने 14 अप्रैल 2025 को राज्य में अनुसूचित जाति आरक्षण व्यवस्था में वर्गीकरण लागू कर दिया है। आरक्षण का लाभ ज़रूरतमंदों तक सही तरीके से पहुँचाने के लिए SC वर्ग के लिए पहले से मौजूद 15% आरक्षण को अब इन तीन समूहों में बाँट दिया गया है।

इसके तहत सबसे पिछड़े 15 समुदायों को 1% आरक्षण, मध्यम रूप से लाभान्वित 18 समुदायों को 9% आरक्षण और अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति वाले 26 समुदाय को 5% आरक्षण दिया है।

राजनीति में क्या होंगी मुश्किलें?

रोहिणी आयोग की सिफारिशें राजनीतिक उठापटक लेकर आ सकती हैं। इसकी सिफारिशों को अगर मान लिया जाता है तो एक बड़ा OBC वोटर समूह कई वर्गों में बँट जाएगा।

आरक्षण को लेकर दशकों से ही कॉन्ग्रेस समेत देश भर की क्षेत्रीय पार्टियाँ OBC आरक्षण के नाम पर अपनी अपनी राजनीति कर रही हैं। फिर चाहे वो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (BSP), रालोद, अपना दल, सुभासपा हों या फिर बिहार में JDU, RJD, या फिर विकासशील इंसान पार्टी (VIP) और या फिर हरियाणा की इनेलो समेत अन्य जाट, पटेल इत्यादि।

सभी पार्टियाँ आरक्षण और उपजातियों के बँटवारे पर बिलबिलाती नजर आएंगी क्योंकि अब तक जनगणना में अलग कॉलम न होने का फायदा ये सभी आराम से उठाती आ रही हैं।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

रामांशी
रामांशी
लखनऊ विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर। आकाशवाणी के साथ रेडियो प्रसारण का अनुभव। स्थानीय टीवी चैनल लखनऊ टुडे के साथ टेलीविज़न की बारीकियां सीखीं। नवभारत टाइम्स के साथ भी प्रिंट मीडिया कार्य का अनुभव। करीब तीन वर्षों तक ईटीवी भारत जैसे नये प्लेटफ़ॉर्म के साथ जुड़ाव में व्यापक स्तर पर रिपोर्टिंग। भारत सरकार के संस्थान विज्ञान प्रसार के मंच पर क़रीब एक वर्ष विज्ञान संचारक की भूमिका। देश के सबसे बड़े हिन्दी दैनिक दैनिक जागरण के लिए लखनऊ में स्वास्थ्य, संस्कृति एवं शिक्षा सहित कई महत्वपूर्ण बीट्स पर गहन रिपोर्टिंग। जर्मन ब्रॉडकास्टर DW के साथ जुड़ाव रहा।

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

उस्मान ने किया रेप तो सहम गई नैनीताल की हिन्दू पीड़िता, स्कूल छोड़ा-TC तक कटवाई: धामी सरकार उठाएगी काउंसलिंग और पढ़ाई की जिम्मेदारी

नैनीताल में उस्मान के रेप करने के बाद पीड़ित हिन्दू बच्ची इतना डर गई है कि उसने स्कूल से भी नाम कटा लिया और टीसी भी मँगवा ली।

हर साल बचेंगे ₹1800+ करोड़, दुबई-सिंगापुर पर खत्म होगी निर्भरता: जानिए कैसे केरल के विझिंजम बंदरगाह से बदल गया समंदर का सीन, PM मोदी...

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केरल के तिरुवनंतपुरम में विझिंजम पोर्ट को देश को समर्पित किया। यह भारत का पहला ट्रांसशिपमेंट पोर्ट है।
- विज्ञापन -