Friday, May 9, 2025
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गिलमैन, क्रिटिकल, फुलब्राइट… क्यों अमेरिकी विश्वविद्यालयों की स्कॉलरशिप बंद कर रहे हैं ट्रंप, क्यों हजारों भारतीय छात्रों के भविष्य पर भी संशय: जानिए सब कुछ

अमेरिका में पढ़ाई और रहने का खर्च सालाना 40 से 50 लाख रुपये तक होता है। अब स्कॉलरशिप्स बंद होने और वीजा रद्द होने से कई छात्रों को पढ़ाई छोड़ने की नौबत आ गई है।

अमेरिका में पढ़ाई का सपना देखने वाले भारतीय छात्रों के लिए हाल के महीने किसी बुरे सपने से कम नहीं रहे। ट्रंप सरकार के विदेश विभाग ने फुलब्राइट, गिलमैन और क्रिटिकल लैंग्वेज जैसे स्कॉलरशिप प्रोग्रामों को अचानक बंद कर दिया, जो भारतीय छात्रों को अमेरिका के नामी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई और रिसर्च का सुनहरा मौका देते थे। इसके साथ ही अप्रैल 2025 में हजारों भारतीय छात्रों के F-1 और J-1 वीजा बिना स्पष्ट कारण रद्द कर दिए गए।

इन फैसलों ने लाखों भारतीय छात्रों के सपनों को चकनाचूर कर दिया, उनकी पढ़ाई को अधर में लटका दिया और उन्हें आर्थिक संकट में धकेल दिया। उन्हें यह समझ नहीं आ रहा कि आखिर ऐसा क्यों हुआ। न तो उन्होंने कोई गलती की और न ही किसी नियम का उल्लंघन किया। अब वे इमेग्रेशन वकीलों से मदद माँग रहे हैं। अमेरिका के वकीलों के पास ऐसी परेशानियों से जुड़े कई फोन रोजाना आ रहे हैं।

इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एजुकेशन की 2024 ओपन डोर्स रिपोर्ट के मुताबिक, 2023-24 में अमेरिका में 3,31,602 भारतीय छात्र पढ़ रहे थे, जो किसी भी देश के छात्रों की सबसे बड़ी संख्या थी। इनमें से ज्यादातर छात्र स्कॉलरशिप्स और स्टाइपेंड पर निर्भर थे, क्योंकि अमेरिका में पढ़ाई और रहने का खर्च सालाना 40 से 50 लाख रुपये तक होता है। अब स्कॉलरशिप्स बंद होने और वीजा रद्द होने से कई छात्रों को पढ़ाई छोड़ने की नौबत आ गई है। कुछ छात्र बड़े स्टूडेंट लोन लेने को मजबूर हैं, जिससे वे लंबे समय तक कर्ज के बोझ तले दब सकते हैं।

भारतीय छात्र वीज़ा रद्द होने से परेशान

रिपोर्ट के अनुसार, “अमेरिका में भारतीय छात्रों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन F-1 छात्र वीज़ा मिलने में कमी आई है। कुछ रिपोर्ट्स से पता चलता है कि 2024 के पहले नौ महीनों में भारतीय छात्रोंं को मिलने वाले वीज़ा में 2023 की तुलना में 38% तक की गिरावट आई है।” बता दें कि F-1 और J-1 वीज़ा अमेरिका में पढ़ने वाले छात्रों के लिए जरूरी होते हैं।

(फोटो साभार : NBC News)

बोस्टन के एक इमिग्रेशन वकील मैथ्यू मैओना ने बताया कि उन्हें हर दिन करीब छह छात्रों के फोन जरूर आते हैं। जो घबराए हुए होते हैं। छात्र बताते हैं कि उन्होंने अपना कानूनी दर्जा खो दिया है और उन्हें इस संबंध में सहायता की ज़रूरत है। वकील ने कहा, “हमें लगा कि यह असामान्य होने वाला है। लेकिन अब ऐसा लगता है कि यह बहुत तेज़ी और उग्र रूप से आ रहा है।”

दिल्ली के 24 साल के रोहन शर्मा (बदला हुआ नाम) जैसे कई भारतीय छात्रों की कहानी दिल दहला देने वाली है। रोहन ने फुलब्राइट स्कॉलरशिप के जरिए न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में पीएचडी प्रोग्राम में दाखिला लिया था। लेकिन स्कॉलरशिप बंद होने और वीजा रद्द होने की खबर ने उनके सारे सपनों पर पानी फेर दिया। रोहन ने बताया, “मैंने दिन-रात मेहनत करके यह स्कॉलरशिप हासिल की थी। अब मेरे पास न फंडिंग है, न वीजा, और न ही घर वापस जाने के पैसे।” रोहन जैसे हजारों छात्र इस समय अनिश्चितता के भंवर में फँसे हैं।

मुंबई की 22 साल की प्रिया मेहता (बदला हुआ नाम) ने गिलमैन स्कॉलरशिप के जरिए कैलिफोर्निया में ग्रेजुएट प्रोग्राम में दाखिला लिया था। प्रिया ने बताया, “मेरे परिवार ने मेरी पढ़ाई के लिए कर्ज लिया था, क्योंकि स्कॉलरशिप से ज्यादातर खर्चे पूरे हो रहे थे। अब स्कॉलरशिप बंद हो गई और मेरा वीजा भी रद्द कर दिया गया। मैं अपने परिवार को क्या जवाब दूँ?” प्रिया जैसे कई छात्र अब इमिग्रेशन वकीलों से मदद माँग रहे हैं, लेकिन कानूनी प्रक्रिया महँगी और जटिल है।

अमेरिकी सरकार का कहना है कि यह कार्रवाई राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए जरूरी थी। विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने घोषणा की कि ‘Catch and Revoke’ अभियान के तहत उन विदेशी नागरिकों के वीजा रद्द किए जा रहे हैं, जो अमेरिका के हितों के खिलाफ काम कर रहे हैं, जैसे गाजा युद्ध में इजराइल का विरोध करने वाले। 27 मार्च 2025 तक 300 से अधिक छात्रों के वीजा रद्द किए गए, जिनमें भारतीय छात्रों की संख्या काफी थी। लेकिन सरकार ने इन रद्दीकरणों के पीछे स्पष्ट कारण नहीं बताए, जिससे छात्रों में गुस्सा और निराशा बढ़ रही है।

Associated Press की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ हफ्तों में 90 से अधिक कॉलेजों के 600 से ज्यादा छात्रों का वीजा रद्द हुआ, जिनमें भारतीय और चीनी छात्र सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। मिशिगन के दो संस्थानों के चार भारतीय छात्रों ने ट्रंप प्रशासन के खिलाफ मुकदमा दायर किया है। उनके वकील रामिस वदूद ने कहा, “छात्रों को कोई ठोस कारण नहीं बताया गया। यह अनिश्चितता उन्हें डरा रही है।”

इस संकट का असर भारतीय छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। बेंगलुरु की 26 साल की अनन्या राव (बदला हुआ नाम) ने बताया, “मैं हर रात सो नहीं पाती, क्योंकि मुझे नहीं पता कि कल क्या होगा। मेरे पास नौकरी नहीं है, न फंडिंग है, और मेरा वीजा भी खतरे में है।” कई छात्र अपनी पर्सनल सेविंग्स से खर्च चला रहे हैं, जबकि कुछ यूनिवर्सिटी से अस्थायी मदद की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन बढ़ती महंगाई में यह लंबे समय तक संभव नहीं है।

वीज़ा रद्द होने के फैसले पर विशेषज्ञ क्या बोले ?

शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति भारतीय छात्रों के लिए वैकल्पिक रास्ते खोल सकती है। Eduabroad Consulting की प्रतिभा जैन ने कहा, “अगर स्कॉलरशिप्स बंद रहती हैं, तो छात्र जर्मनी, नीदरलैंड, ब्रिटेन या ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों का रुख कर सकते हैं, जहाँ 50% तक स्कॉलरशिप मिलती है।” वनस्टेप ग्लोबल की अरित्रा घोषाल ने सुझाव दिया कि भारतीय छात्रों को वीजा नीतियों की जानकारी रखनी चाहिए और उसी हिसाब से निर्णय लेने चाहिए।

कुछ अमेरिकी यूनिवर्सिटीज ने आपातकालीन ग्रांट्स और प्राइवेट स्कॉलरशिप्स की पेशकश शुरू की है, लेकिन ये सभी छात्रों की जरूरतें पूरी नहीं कर सकते। Career Mosaic की मनीषा ज़ावेरी ने सलाह दी, “छात्रों को वीजा नियमों की जानकारी रखनी चाहिए, अपने वित्तीय दस्तावेज तैयार रखने चाहिए और यूनिवर्सिटी सलाहकारों से संपर्क में रहना चाहिए।”

बहरहाल, इस बदलाव का असर केवल छात्रों पर नहीं पड़ा है बल्कि उन मिड-कैरियर प्रोफेशनल्स, रिसर्च साइंटिस्ट्स और सोशल साइँस के छात्रों पर भी पड़ा है जो अमेरिका में अकादमिक एक्सपोजर की उम्मीद लेकर आए थे। अब उन्हें अपने लिए दूसरे विकल्प तलाशने पड़ रहे हैं।

इस बीच, ट्रंप प्रशासन ने विश्वविद्यालयों पर भी दबाव बढ़ाया है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग ने चेतावनी दी कि अगर वह कुछ वीजा धारकों की जानकारी नहीं देता, तो उसे अंतरराष्ट्रीय छात्रों को स्वीकार करने का अधिकार खोना पड़ सकता है। कोलंबिया और जॉन्स हॉपकिन्स जैसे विश्वविद्यालयों की संघीय फंडिंग में भी कटौती हुई है।

यह संकट भारतीय छात्रों के लिए सिर्फ आर्थिक या शैक्षणिक नहीं, बल्कि भावनात्मक भी है। ForeignAdmits के निखेल जैन ने कहा, “ये स्कॉलरशिप्स भारतीय छात्रों के लिए सिर्फ फंडिंग नहीं थीं, बल्कि उनके समर्पण और सपनों की पुष्टि थीं। अब वे अपने भविष्य को एक धागे से लटकता देख रहे हैं।” iSchoolConnect के वैभव गुप्ता ने चेतावनी दी कि यह कटौती अमेरिका की सॉफ्ट पावर और इनोवेशन क्षमता को भी नुकसान पहुँचाएगी।

IIT-IIM जैसों संस्थानों के लिए बदलाव का सही समय

Collegify के आदर्श खंडेलवाल ने सुझाव दिया कि यह भारतीय संस्थानों के लिए मौका है। “IIT और IIM जैसे संस्थान अपनी रिसर्च सुविधाएँ बढ़ाएँ, स्कॉलरशिप्स शुरू करें और इंडस्ट्री के साथ साझेदारी करें ताकि होनहार छात्र देश में ही पढ़ाई करें।” लेकिन अभी के लिए, हजारों भारतीय छात्र अनिश्चितता, आर्थिक संकट और टूटे सपनों से जूझ रहे हैं। उनके लिए यह सिर्फ एक नीतिगत बदलाव नहीं, बल्कि जिंदगी का सबसे बड़ा झटका है।

प्रवासन नीति संस्थान के अनुसार, 1949-50 में अमेरिकी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में लगभग 26 हज़ार विदेशी छात्र थे। जबकि 2019-20 तक यह संख्या बढ़कर 1.1 मिलियन हो गई। इसी दौरान अमेरिका के उच्च शिक्षा संस्थानों में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की भागीदारी 1% से बढ़कर 6% तक पहुँच गई। हालाँकि ट्रंप सरकार के फैसलों के बाद इसमें क्या बदलाव होगा, ये देखने वाली बात होगी।

मूल रूप से ये रिपोर्ट अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित की गई है। मूल रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

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ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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