Tuesday, November 12, 2024
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‘एक बार इस्लाम अपना लिया तो हमेशा के लिए मुस्लिम बन गए’: अपने मूल ईसाई धर्म में लौटना चाहता था शख्स, मलेशिया की शरिया कोर्ट ने नहीं दी इजाजत

ऐसा ही एक फैसला इस साल अगस्त में आया था, जब अपने शौहर से तलाक के बाद एक महिला अपने मूल धर्म ईसाई में जाने के लिए आवेदन किया तो उसे खारिज कर दिया गया। महिला ने साल 1995 में इस्लाम अपना कर एक मुस्लिम शख्स से निकाह किया था। इसके बाद साल 2013 में दोनों का सहमति से तलाक हो गया।

इस्लामी मुल्क मलेशिया की अदालत ने क्रिश्चियन से मुस्लिम बने एक शख्स को वापस अपने मूल धर्म में जाने पर रोक लगा दी है। मलेशिया की हाईकोर्ट ने इस्लाम त्यागने के शख्स के आवेदन को खारिज कर दिया। ऐसा ही एक और मामला अगस्त में भी आया था।

दरअसल, 45 वर्षीय व्यक्ति ने साल 2010 में एक मुस्लिम महिला से शादी की। महिला से शादी करने के लिए उसने इस्लाम अपनाया था। निकाह के पाँच साल बाद ही यानी 2015 में दोनों का तलाक हो गया। इसके बाद 2016 में उस शख्स ने इस्लाम छोड़ने के लिए शरिया अदालत में एक आवेदन दायर किया।

शख्स की याचिका के बाद उसे इस्लाम के ‘परामर्श सत्र’ में भाग लेने का आदेश दिया गया। उसने सत्र में भाग लिया। इसके बाद भी वह इस्लाम छोड़ना चाहता था। इसके बाद मुल्क की शरिया अदालत ने इस्लाम छोड़ने के उसके आवेदन को खारिज कर दिया। साथ ही आदेश दिया कि व्यक्ति को आगे भी परामर्श सत्र से गुजरना होगा।

शरिया अदालत के इस फैसले पर व्यक्ति ने अपील की। शरिया अपील अदालत में उस व्यक्ति की अपील भी खारिज कर दी गई। इसके बाद उसने शरिया अदालत के फैसलों को रद्द करने की माँग करते हुए सिविल अदालतों का रुख किया। उसने कहा कि वह अपने मूल धर्म ईसाई को मानने का हकदार है।

इस पर फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति वान अहमद फरीद वान सलेह ने कहा कि सिविल अदालतें शरिया अदालतों द्वारा दिए गए फैसलों की समीक्षा नहीं कर सकती हैं। न्यायाधीश ने कहा, “मैं अपील न्यायालय के फैसले से बँधा हुआ हूँ। यह (शरिया अदालत का फैसला) गैर-न्यायसंगत है।”

इस साल की शुरुआत में अपील अदालत द्वारा दिए गए इसी तरह के फैसले का हवाला देते हुए न्यायाधीश ने कहा कि अपील अदालत ने फैसला सुनाया था कि सिविल अदालत के पास स्पष्ट रूप से शरिया अदालत के फैसले की समीक्षा करने की कोई शक्ति नहीं है। इसे उलटने या उससे अलग होने या फिर से मुकदमा करने की तो बात ही छोड़ दें।

बता दें कि ऐसा ही एक फैसला इस साल अगस्त में आया था, जब अपने शौहर से तलाक के बाद एक महिला अपने मूल धर्म ईसाई में जाने के लिए आवेदन किया तो उसे खारिज कर दिया गया। महिला ने साल 1995 में इस्लाम अपना कर एक मुस्लिम शख्स से निकाह किया था। इसके बाद साल 2013 में दोनों का सहमति से तलाक हो गया।

महिला ने सिविल हाईकोर्ट से छह आदेशों की माँग की थी, जिसमें यह घोषणा भी शामिल थी कि वह ईसाई धर्म को मानने वाली व्यक्ति है और राज्य के इस्लामी कानून उस पर लागू नहीं होते हैं। देश की शरिया अदालत ने भी उसकी माँग को खारिज कर दिया था। इसके बाद महिला ने सिविल हाईकोर्ट से शरिया अदालत के फैसले को रद्द करने की माँग की थी।

महिला ने कहा कि उसने 30 मार्च 1995 को पेनांग इस्लामिक धार्मिक मामलों के विभाग में मुस्लिम बनने की शपथ ली थी, क्योंकि यह उसके लिए एक मुस्लिम व्यक्ति से शादी करने के लिए आवश्यक था, न कि इस्लाम में विश्वास के कारण। इस्लाम अपनाने के बाद उसने मुस्लिम नाम अपना लिया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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