उत्तर प्रदेश के झाँसी में शाहनाज और खुशनुमा नाम की दो महिलाओं ने 16 साल की एक हिंदू नाबालिग लड़की को बहला-फुसलाकर धर्मांतरण करने की कोशिश की थी। उन्होंने नाबालिग को झाँसा दिया था कि रोजा रखने से वह अमीर हो जाएगी। इसके बाद नाबालिग लड़की ने 2-3 दिन तक रोजा भी रखा। अब इस मामले को वामपंथी प्रोपेंगडा न्यूज पोर्टल ‘द वायर’ ने आरोपितों की जमानत याचिका के हवाले से पैसे का मामला बताकर एक अलग एंगल देने की कोशिश की है।
दरअसल, यह मामला झाँसी के कोतवाली थाना क्षेत्र के भांडेरी गेट बाहर मोहल्ले से जुड़ा है। एक व्यक्ति ने अपनी पड़ोसी 40 वर्षीया शहनाज उर्फ सना और खुशनुमा पर आरोप लगाया था कि दोनों ने उसकी 16 साल की नाबालिग बेटी का इस्लाम में धर्मांतरण करने की कोशिश की। इसके लिए दोनों ने उसकी बेटी को बहकाया और रोजा रखने और नमाज पढ़ने के लिए उकसाया।
पिता का कहना था कि दोनों मुस्लिम महिलाओं ने उसकी बेटी को झाँसा दिया कि अगर वह मुस्लिमों के पाक महीने में रोजा रखने और नमाज पढ़ने से उसके परिवार की तरक्की होगी और वह अमीर हो जाएगी। चूँकि, दोनों पड़ोसी हैं तो नाबालिग ने शहनाज की बातों पर विश्वास कर लिया। नाबालिग लड़की ने रोजा रखना शुरू कर दिया और घर में नमाज पढ़ने लगी। तीन-चार दिन तक उसने ऐसा किया।

एक दिन उसके परिजनों ने उसे ऐसा करते हुए देख लिया। उन्होंने नाबालिग लड़की को समझाया। जब शहनाज को पता चला कि नाबालिग के घर वालों ने उसका विरोध किया है तो वह उनके घर पहुँच गई।शहनाज नाबालिग लड़की के चाचा के कमरे में घुस गई और दरवाजा बंद करके आत्महत्या कर परिवार को फँसाने की धमकी देने लगी। इससे घबरा कर पीड़िता के चाचा ने पुलिस को फोन करके बुलाया।
शहनाज उन्हें झूठे मुकदमे में फँसाने की धमकी देते हुए वहाँ से भाग गई। घटना की जानकारी हिंदू संगठनों को मिली तो उन्होंने इसे धर्मांतरण का मुद्दा बताकर विरोध प्रदर्शन किया। नाबालिग लड़की के पिता ने 13 मार्च को कोतवाली थाने जाकर शिकायत दी। इसके आधार पर पुलिस ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की धारा 3 और 5 (1) मुकदमा दर्ज कर लिया।
सीओ सिटी स्नेहा तिवारी ने कहा था कि शहनाज के खिलाफ नाबालिग लड़की को धर्म परिवर्तन के लिए उकसाने का केस दर्ज किया गया है। बाद में पुलिस ने दोनों महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद दोनों महिलाओं को कोर्ट में पेश करके जेल भेज दिया गया। पुलिस ने शांति भंग करने, जान से मारने या गंभीर चोट पहुँचाने और संपत्ति को नष्ट करने की धमकी देने, आपराधिक धमकी देने जैसी धाराएँ जोड़ीं।
इसके बाद दोनों महिलाओं ने जमानत के लिए कोर्ट में अर्जी दी। इस पर 26 मार्च को कोर्ट ने सुनवाई की। झाँसी के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विजय कुमार वर्मा ने शहनाज़ को ज़मानत देने से इनकार कर दिया। जज विजय कुमार वर्मा ने कहा कि शहनाज़ जाँच के दौरान गवाहों या सबूतों को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि वह पीड़िता के बगल में रहती है। इस आधार पर शहनाज की जमानत याचिका खारिज हो गई।
वामपंथी प्रोपेंगेडा पोर्टल वायर ने दिया नया एंगल
सिद्धार्थ वरदराजन द्वारा संचालित वामपंथी प्रोपगेंडा वेब पोर्टल इस खबर को शहनाज की जमानत याचिका के आधार पर एक अलग एंगल देने की कोशिश की है। जमानत की याचिका दायर होने से पहले धर्मांतरण की कोशिश वाली इस खबर को विस्तार से वायर ने अपने पोर्टल पर जगह भी नहीं दी। अब इस पोर्टल पर उमर राशिद ने इसे धर्मांतरण को वित्तीय विवाद के रूप में दिखाने की कोशिश की है।
उमर राशिद ने ‘रोज़ा या आर्थिक विवाद: यूपी में एक मुस्लिम महिला को रमज़ान के दौरान ‘धर्मांतरण’ के लिए क्यों गिरफ़्तार किया गया?’ शीर्षक वाले अपनी खबर में आरोपितों के दावों को आधार बनाया है। जाहिर है कि कोई भी अपराधी ये नहीं कहता है कि उसने अपराध किया है। वह अक्सर यही कहता है कि सामने वाले ने उसे झूठे केस में फँसाया है और मामला कुछ दूसरा है।

इस मामले में भी राशिद ने आरोपित शहनाज के हवाले से धर्मांतरण के प्रयास वाले आरोपों को वित्तीय विवाद बनाने की कोशिश की और बड़ी चालाकी से मीडिया में सामने आया धर्मांतरण एंगल धूमिल करने का प्रयास किया। उसने आरोपित शहनाज के हवाले से रिपोर्ट में कहा कि कर्ज चुकाने से बचने की कोशिश में धर्मांतरण के केस में फँसाने के लिए झूठी कहानी रची है। शहनाज का कहना है कि शिकायकर्ता हिंदू व्यक्ति कुछ समय पहले बीमार पड़ गया था और उसकी पत्नी ने उससे 50,000 रुपए उधार लिए थे।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि शिकायतकर्ता की पत्नी ने शहनाज से 10 दिनों में पैसे लौटाने का वादा किया था। जब वह पैसे वापस नहीं किए तो वह माँगने के लिए उसके घर जाने लगी, लेकिन शिकायतकर्ता की पत्नी किसी ना किसी बहाने से उसे टालती रही। घटना के दिन वह पैसे माँगने के लिए ही शिकायतकर्ता के घर गई थी, लेकिन शिकायतकर्ता के भाई ने उसे घर में बंद कर दिया।
उमर राशिद ने इस आरोप को बताने के लिए प्रोपगेंडा वेबसाइट के आर्टिकल में आधार शहनाज की बेल को रखा है जो हिंदू बच्ची से नमाज पढ़वाने, रोजा रखने के केस में आरोपित है। जाहिर है कि वह अपने-आप को पाक-साफ बताएगी ही और वो क्यों स्वीकारेगी कि उसने वो काम किया है। इस पूरे मामले में द वायर के पत्रकार ने पूर्व में क्या केस था इस पर तो बात रखी है, लेकिन इन वित्तीय लेन-देन के आरोप में पीड़ित या पुलिस जाँच का क्या कहना है इसे नहीं जाना। पूरी रिपोर्ट बेल याचिका पर बनाई गई। अगर पक्ष जाना भी होगा तो रिपोर्ट देख मालूम पड़ता है मामले को अलग मोड़ देने के उद्देश्य से या पाठकों के मन में भ्रम पैदा करने के उद्देश्य से उस पक्ष को रिपोर्ट में शामिल नहीं किया होगा।
वायर का यह रवैया कोई नया नहीं है। वह हिंदू विरोधियों और वामपंथियों के पक्ष में ऐसे ही तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करने के लिए जाना जाता है। इस तरह की एक पक्षीय रिपोर्ट को लेकर द वायर मीडिया सर्किल में काफी बदनाम भी है। इस मामले में भी पोर्टल ने कुछ ऐसा ही करने की कोशिश की है।