Thursday, October 10, 2024
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ममता बनर्जी के पैर देखे तो इंदिरा गाँधी की नाक याद आ गई, बंगाल में दीदी की ‘नाक’ बचेगी क्या?

राजनीति की सामान्य समझ रखने वाला व्यक्ति भी जानता है कि लहर नहीं होने कि स्थिति में चुनाव मतदान के ऐन वक्त तक बदलता रहता है। इस स्थिति में अमूमन फायदा उस दल को होता है जो तेजी से आगे बढ़ रही होती है। बंगाल में इस स्थिति में बीजेपी है और चुनाव भी आठ चरणों में होने हैं।

‘जय श्रीराम’ के नारे से बिदकने वाली नेता ने जब नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला किया तो यह कोई मास्टरस्ट्रोक नहीं था। करीब सवा दो लाख मतदाताओं वाले इस सीट में तकरीबन 62 हजार मतदाता मुस्लिम हैं। जो सरकार चुनाव अचार संहिता लागू होने से चंद घंटे पहले फुरफुरा शरीफ दरगाह के लिए खजाना खोल दे, उसके मुखिया को अपने कोर वोटर (मुस्लिम, जिन्हें तुष्टिकरण की राजनीति में अल्पसंख्यक मतदाता कहते हैं) को छिटकने से रोकने के लिए इसी तरह के किसी सीट की तलाश होती है।

लेकिन, चुनाव किसी एक खास वर्ग को लुभाकर नहीं जीते जाते। भारतीय राजनीति में मोदी के अभ्युदय के बाद से यह भी देखने को मिला है कि जब-जब मुस्लिमों वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश की जाती है तो उसकी प्रतिक्रिया में दूसरी तरफ भी वोटर लामबंद हो जाते हैं। हालिया बिहार चुनाव में भी यह देखने को मिला था। नतीजतन, प​हले चरण की सीटों पर राजद गठबंधन से पिछड़ने के बाद अगले दो चरणों में एनडीए ने न केवल नुकसान की भरपाई की, बल्कि सरकार बनाने लायक संख्याबल भी हासिल करने में कामयाब रही।

लिहाजा, ममता बनर्जी का शिव पूजा और चंडी पाठ भी चौंकाने वाला नहीं था। यह कुछ-कुछ ऐसा ही था, जैसा हमने पिछले गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल गाँधी को करते देखा था। लेकिन, दो नावों की सवारी आसान नहीं होती। इसलिए नंदीग्राम में जिस दिन ममता बनर्जी ने नामांकन दाखिल किया, इस कहानी में नया ट्विटस्ट आ गया।

ममता बनर्जी ने दावा किया, “जब मैं गाड़ी के पास थी तो 4-5 लोगों ने मुझे धक्का दिया। मेरा पैर कुचलने की कोशिश की गई। मेरे पैर मैं सूजन है। मैं अब कोलकाता जा रही हूँ, डॉक्टर को दिखाने के लिए। बहुत दर्द है। बुखार भी आ गया है। कोई पुलिसकर्मी नहीं था। 4-5 लोगों ने जान-बूझकर यह किया है। यह साजिश है।”

बाद में टीवी9 भारतवर्ष ने चश्मदीदों के हवाले से बताया कि ममता बनर्जी पर किसी ने हमला नहीं किया। उनकी गाड़ी पिलर से टकराई थी। उनके साथ कई सारे पुलिसकर्मी थे। पुलिसकर्मी ने ममता बनर्जी के पैर पर बर्फ लगाया। ममता बनर्जी 5 मिनट रूकी और फिर चली गईं। 4-5 लोगों द्वारा धकेलने की बात झूठी है।

इस घटना को लेकर दो तरह की प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल रही हैं। एक खेमा इसे ममता बनर्जी पर हमले की साजिश बता रहा है, तो दूसरा राजनीतिक स्टंट। चुनाव आयोग ने भी इस मामले पर रिपोर्ट माँग ली है। फिलहाल टीएमसी ममता बनर्जी के जख्मी पैर का फायदा उठाने की हरसंभव कोशिश में लगी है।

इस घटना ने फरवरी 1967 में ओडिशा में एक चुनावी सभा के दौरान इंदिरा गाँधी पर पथराव की याद दिला दी। ईंट का एक टुकड़ा उनकी नाक पर आकर लगा और खून बहने लगा। टूटी नाक पर पट्टी लगवाकर अगले दिन इंदिरा ने कोलकाता में जनसभा को संबोधित किया और बाद में नाक का ऑपरेशन करवाया। इस घटना को लेकर आज तक दावा किया जाता है कि यह सब प्रायोजित था।

इंदिरा पर पत्थर फेंके जाने की घटना को लेकर ‘दिनमान’ में प्रकाशित रिपोर्ट

उस चुनाव में कॉन्ग्रेस को इंदिरा को लगी चोट का लाभ नहीं मिल पाया था। कई राज्यों में कॉन्ग्रेस को सत्ता गँवानी पड़ी थी। अब सवाल है कि क्या ममता कामयाब होंगी?

यहाँ यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि ममता बनर्जी उस राज्य की मुख्यमंत्री हैं जो राजनीतिक हिंसा के लिए कुख्यात रहा है। भाजपा से जुड़े लोगों को निशाना बनाने की घटनाएँ लगातार सामने आती रही हैं। यह सब तब हो रहा है जब किसी दौर में ममता बनर्जी खुद इस तरह की हिंसा में बाल-बाल बचीं थी। 16 अगस्त 1990 को ममता पर तत्कालीन वामपंथी सरकार के गुंडों ने हमला किया था। ममता बनर्जी को इतनी बेरहमी से पीटा गया कि उनके सिर में 16 टाँके लगे थे। बाँह पर प्लास्टर चढ़ा था। ममता के सिर पर लाठियों की बरसात करने का आरोप सीपीएम के बाहुबली वर्कर लालू आलम पर लगा, जो तत्कालीन सरकार के नंबर दो बुद्धदेव भट्टाचार्य (जो बाद में मुख्यमंत्री भी बने) का खास बताया जाता था। इस घटना के वक्त टीएमसी का जन्म भी नहीं हुआ था और ममता कॉन्ग्रेस की युवा नेत्री थीं। ममता पर हुए इस हमले का कॉन्ग्रेस को बंगाल में कभी लाभ नहीं मिला।

यानी, इस तरह के स्टंट राजनीतिक तौर पर लाभ दे जाएँ, इसकी कोई गारंटी नहीं है।

वैसे जबर्दस्त बगावत के बावजूद हालिया सर्वे ममता बनर्जी को चुनाव में आगे बता रहे हैं। लेकिन राजनीति की सामान्य समझ रखने वाला व्यक्ति भी जानता है कि लहर नहीं होने कि स्थिति में चुनाव मतदान के ऐन वक्त तक बदलता रहता है। इस स्थिति में अमूमन फायदा उस दल को होता है जो तेजी से आगे बढ़ रही होती है। बंगाल में इस स्थिति में बीजेपी है और चुनाव भी आठ चरणों में होने हैं।

इस कहानी में अभी कई और पटकथा लिखी जानी बाकी हैं। लेकिन ममता बनर्जी के पैरों को शायद एहसास हो चुका है कि हैट्रिक की डगर बेहद मुश्किल है!

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अजीत झा
अजीत झा
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