केंद्र सरकार 10 हज़ार करोड़ रूपए देगी जबकि गुजरात और महाराष्ट्र की राज्य सरकारों को इसके लिए सिर्फ 5 हज़ार करोड़ रूपए देना है, 81 फीसदी रकम जापान की एक कम्पनी वहन करेगी।
14 साल की लड़की और उसका दोस्त डांडिया बाज़ार की एक मस्जिद के उर्स समारोह में शामिल होने गए थे। वहाँ से, वे लगभग 8 बजे नवलाखी परिसर में घूमने गए। यहीं पर स्केच में दिख रहे आरोपितों की शक्ल के जैसे दो लोगों ने खुद को पुलिसवाला बता कर...
पत्रकार जनक दवे ने वीडियो शेयर करते हुए बताया है कि गायक शराब पीकर गाना गा रहा था। इस दौरान उसका न सुर मिल रहा था और न ताल। इसके बाद वहाँ मौजूद लोगों ने उसकी धुनाई कर दी।
मो. रउफ़, कयूम शेख, परवेज़ ख़ान, मो. परवेज़ अब्दुल, मो. फ़ारूक, शाहनवाज़, मो. सैफ़ुद्दीन, मो. यूनुस सरेसवाला, कलीम अहमदा, रेहान पुथवाला, अनीज़ माचिस वाला, मो. रियाज़ सरेसवाला - CBI ने आरोप लगाया था कि ये सारे पाकिस्तान के ISI द्वारा ट्रेनिंग लेकर आए थे।
शिक़ायत में फ़िल्म हेलारों के निर्देशक अभिषेक शाह, निर्माता आशीष सी पटेल, नीरव सी पटेल, आयुष पटेल, मीट जानी के साथ-साथ संवाद लेखक सौम्या जोशी और संपादक प्रतीक गुप्ता के ख़िलाफ़ सरकार द्वारा कथित रूप से 'समुदाय का अपमान करने और भावनाओं को आहत करने' से प्रतिबंधित 'शब्द' का उपयोग करने के ख़िलाफ़ कार्रवाई किए जाने की माँग की गई है।
इस कानून की खासियत यह है कि टैप की हुई टेलीफोन बातचीत को अब एक वैध सबूत माना जाएगा। इससे शराब की तस्करी, फिरौती, जालसाजी जैसे संगठित अपराधों पर शिकंजा कसने की उम्मीद है।
गुजरात दंगों में कई ऐसे लोगों को फँसाया गया, जो बाद में निर्दोष साबित हुए। लेकिन तब तक उनकी ज़िंदगी, उनका परिवार और करियर- सब तबाह हो चुका था। शशिकांत को निजी खुन्नस में फॅंसाया गया और बाद में हर्ट अटैक से उनकी मौत हो गई।
गुजरात एटीएस के उप महानिदेशक हिमांशु शुक्ल ने मीडिया को बताया कि पैसे खत्म हो गए तो रिश्तेदारों को फ़ोन कर पैसे के लिए सम्पर्क किया, लेकिन पुलिस के डर से किसी ने उनके खाते में पैसे नहीं डाले।
मोईनुद्दीन और अशफाक दोनों ही सूरत के रहने वाले थे और अपने साथ लाया हुआ पैसा खत्म हो जाने के बाद परिवार और दोस्तों से आर्थिक सहायता लेने की कोशिश कर रहे थे। गुजरात पुलिस के एटीएस ने गुजरात-राजस्थान बॉर्डर पर गिरफ्तार कर लिया और लखनऊ पुलिस ने दोनों को सीजेएम की अदालत में पेश किया।
गुजरात पुलिस और योगी की पुलिस को शक की नज़र से देखने वाले यह भी कह सकते हैं कि सबूत मैन्युफैक्चर्ड है। ऐसे लोगों के लिए राँची के काँके में बिरसा मुंडा के नाम पर एक अस्पताल है। वहाँ अच्छी व्यवस्था है।