आमिर जावेद नाम के एक वकील ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की है। इस याचिका में उन्होंने कहा है कि हज यात्रा के दौरान जेद्दा में तैनाती पर भेजा जाना केंद्र और राज्य सरकार के प्रत्येक मुस्लिम कर्मचारी का ‘संवैधानिक अधिकार’ है।
इस याचिका में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के 20 मार्च 2023 को दिए गए ज्ञापन को चुनौती दी गई है। इस ज्ञापन में कहा गया है कि अस्थायी प्रतिनियुक्ति पर केवल सीएपीएफ (केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल) कर्मचारियों को शामिल किया गया।
वकील जावेद ने याचिका में तर्क दिया है कि यात्रा में शामिल काम प्रशासनिक है और इसलिए कोई कारण नहीं है कि केवल सीएपीएफ अधिकारियों को ही तैनात किया जाए। याचिका में दलील दी गई कि हज ड्यूटी पर तैनाती मुस्लिम कर्मचारियों का ‘संवैधानिक अधिकार’ है।
याचिका में आगे दलील दी गई है कि मंत्रालय का आदेश उन मुस्लिम कर्मचारियों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, जो हज तीर्थयात्रियों की सेवा करना चाहते हैं। बता दें कि साल 2023 मे लगभग 1.4 लाख भारतीय तीर्थयात्रियों के हज जाने उम्मीद है। इसकी पहली उड़ान 21 मई 2023 को निर्धारित की गई है।
वकील आमिर जावेद ने अपनी याचिका में कहा कि मौजूदा ज्ञापन संविधान के अनुच्छेद 14 में दिए गए समानता के अधिकार की गारंटी का उल्लंघन करता है। इसके बाद उच्च न्यायालय ने बुधवार (5 अप्रैल 2023) को स्मृति ईरानी के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय से इस पर जवाब माँगा।
न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने हज डिवीजन को सुनवाई की अगली तारीख से पहले अपना जवाब अदालत के सामने प्रस्तुत करने के लिए कहा है। इस मामले की अगली सुनवाई कोर्ट ने 10 मई 2023 को सुनिश्चित की है।
दरअसल, सऊदी अरब ने स्पष्ट रूप से कहा है कि हर देश अपने तीर्थयात्रियों की देखभाल के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं। इसलिए भारत भी हज यात्रियों की देखभाल के लिए अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रतिनियुक्ति पर भेजता है। गैर-मुस्लिमों को मक्का में घुसने की अनुमति नहीं है। ऐसे में सरकार मुस्लिमों को ही भेजती है।
इससे पहले केंद्र सरकार, राज्य सरकार और केंद्र शासित प्रदेशों के 900 से अधिक मुस्लिम कर्मचारी थे, जिन्हें जेद्दा में प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया था। उनके पास समस्या यह थी कि जिन लोगों भेजा गया था, उनके पास तीर्थयात्रा के दौरान उत्पन्न होने वाली स्थितियों से निपटने के लिए कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं था।
उदाहरण के लिए, यदि भगदड़ मची थी, तो 900 प्रतिनिधि ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए सुसज्जित नहीं थे, क्योंकि इनमें से अधिकांश प्रतिनियुक्त क्लर्क, शिक्षक और इसी तरह के लिए की गई थी। इसको देखते हुए स्मृति ईरानी ने साल 2023 के लिए नियम बदला है, ताकि पेशेवरों को वहाँ भेजा जा सके।
(मूल रूप से यह रिपोर्ट अंग्रेजी में नुपूर जे शर्मा ने लिखी है। विस्तार से इसे इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।)