Thursday, May 2, 2024
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कोरोना वैक्सीन लेने में झिझक रहे महाराष्ट्र के मुस्लिम, सलमान खान की मदद लेगी सरकार: उद्धव के मंत्री ने बताया

महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने बताया है कि राज्य के मुस्लिम बहुल इलाकों में अब भी कोरोना वैक्सीन लेने से लोग झिझक रहे हैं। उनका डर दूर करने के लिए राज्य सरकार ने बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान की मदद लेने का फैसला किया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र के सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने कहा कहा, “मुस्लिम बहुल इलाकों में कोविड वैक्सीन को लेकर अभी भी कुछ झिझक बाकी है। हमने मुस्लिम समुदाय को वैक्सीन लेने के लिए प्रोत्साहित करने के मकसद से सलमान खान और मौलानाओं की मदद लेने का फैसला किया है।” मंत्री के मुताबिक, मजहबी नेताओं और एक्टर्स का लोगों पर बहुत अधिक प्रभाव होता है और लोग उन्हें सुनते हैं।

उन्होंने राज्य में वैक्सीनेशन को लेकर जानकारी देते हुए कहा कि महाराष्ट्र में लोगों को वैक्सीन की 10.25 करोड़ से अधिक डोज दिए जा चुके हैं। नवंबर के अंत तक सभी पात्र व्यक्तियों को वैक्सीन की कम से कम पहली डोज दे दी जाएगी। मंत्री ने कहा कि टीकाकरण के मामले में महाराष्ट्र के आगे होने के बावजूद कुछ क्षेत्रों में टीकाकरण रफ्तार काफी धीमी है।

महाराष्ट्र में कोरोना की तीसरी लहर की आशंका को लेकर टोपे ने बताया कि विशेषज्ञों के अनुसार, महामारी का सात महीने का चक्र होता है और बड़े पैमाने पर टीकाकरण को देखते हुए अगली लहर कमजोर होगी। इसके साथ ही उन्होंने लोगों से कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने और टीका लगवाने की अपील की।

मुस्लिम समुदाय में कोरोना की वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट सर्वविदित है। इसके कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ा है। इस साल के शुरुआत में ही हुए एक सर्वे में यह बात निकलकर सामने आई थी कि मुस्लिम समुदाय वैक्सीनेशन को लेकर हिचकिचा रहा है। उल्लेखनीय है कि मुस्लिम समुदाय केवल कोरोना के टीके का विरोध नहीं कर रहा है, बल्कि इससे पहले मुस्लिमों ने पोलियो के टीके का भी विरोध किया था, जिस कारण खासी अड़चनों का सामना करना पड़ा था।

किस कानून के तहत मस्जिदों में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल: कर्नाटक हाईकोर्ट का सरकार से सीधा सवाल

कर्नाटक हाईकोर्ट ने मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर मामले में 16 नवंबर 2021 को सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस ऋतु राज अवस्थी (Ritu Raj Awasthi) और जस्टिस सचिन शंकर मागादुब (Sachin Shankar Magadum) ने इस केस की सुनवाई करते हुए कर्नाटक सरकार से पूछा कि आखिर अनुमति से पहले 16 मस्जिदों द्वारा लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किस प्रावधान के तहत हुआ और ध्वनि प्रदूषण को देखते हुए इन्हें प्रतिबंधित करने के लिए क्या कार्रवाई की जा रही है।

इस मामले में बता दें कि थानिसंद्रा मेन रोड स्थित आइकॉन अपार्टमेंट के 32 निवासियों ने लाउडस्पीकर और माइक से हो रहे ध्वनि प्रदूषण को लेकर 16 मस्जिदों के खिलाफ जनहित याचिका दायर की थी। कोर्ट में राकेश पी और अन्य की ओर से पेश हुए वकील श्रीधर प्रभु ने कहा कि लाउडस्पीकर और माइकों के इस्तेमाल को हमेशा चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

उन्होंने अपनी याचिका में नियम 5 (3) का हवाला दिया। ये नियम लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को प्रतिबंधित करता है। ये राज्य सरकार को अधिकार देता है कि वो रात में होने वाले किसी धार्मिक, सांस्कृतिक या त्योहार पर कुछ समय के लिए लाउडस्पीकर को अनुमति दे दें। लेकिन ये सब भी साल में 15 दिन से ज्यादा के लिए नहीं।

वकील ने बताया कि कर्नाटक वक्फ बोर्ड को ऐसे मामलों में अनुमति देने का अधिकार नहीं है, जिनका सर्कुलर दिखाकर कहा जा रहा है कि इस कारण से उन्होंने (मस्जिदों) लाउडस्पीकर लगाए। वहीं मस्जिद पक्ष से इस याचिका का विरोध किया गया और कहा गया कि उन्होंने पुलिस से परमिशन ली थी। उनके मुताबिक लाउडस्पीकर ऐसे डिवाइस के साथ लगाए गए हैं जिससे किसी एक तय जगह से ज्यादा आवाज नहीं जाएगी। इसके अलावा लाउडस्पीकर प्रतिबंधित समय यानी कि 10 से 6 बजे के बीच भी नहीं बजाया जाता।

गौरतलब है कि इसी केस में कोर्ट ने मस्जिदों को Noise Pollution Act 2000 के तहत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था। कोर्ट के निर्देश थे कि वे तब तक लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं करेंगे, जब तक कि उन्हें शोर के अनुसार अधिकारियों से लिखित में सहमति नहीं मिल जाती।

कर्नाटक हाईकोर्ट से पहले मस्जिदों के लाउडस्पीकर को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी टिप्पणी की थी। अदालत ने माना था कि लाउडस्पीकर से अजान पर प्रतिबंध वैध है, क्योंकि यह इस्लाम का हिस्सा नहीं है। उन्होंने कहा था कि किसी भी मस्जिद से लाउडस्पीकर से अजान करना दूसरे लोगों के अधिकारों में दखल देना है। दूसरों को सुनने के लिए मजबूर करने का अधिकार किसी को नहीं है।

वो कार्टूनिस्ट थे, ये कार्टून डालने पर पीटते हैं: ‘नीच मानुष’ के साथ सत्ता भोग रहे उद्धव, पिता को जेल भेजने वाले को बना रखा है मंत्री

बाला साहब ठाकरे उर्फ़ बाल ठाकरे ने आज से 56 वर्ष पहले 19 जून, 1966 को शिवसेना की स्थापना की थी। ‘मराठा मानुष’ को अपने हक़ दिलाने और महाराष्ट्र में ‘बाहरी लोगों’ के प्रभाव को कम करने के लिए बने इस राजनीतिक दल का जन्म तब बॉम्बे में चल रहे एक आंदोलन से हुआ था। धनुष-तीर इसका चुनाव चिह्न है, जो इसकी विचारधारा से भी मेल खाता था। 70 के दशक में शिवसेना ने हिंदुत्व की विचारधारा अपनाई और 80 के दशक के अंत में इसका भाजपा के साथ गठबंधन हुआ।

लेकिन, उद्धव ठाकरे की शिवसेना अलग है। 2014 में महाराष्ट्र में जो विधानसभा चुनाव हुए थे, उसमें भी भाजपा-शिवसेना का गठबंधन टूट गया था और दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। हालाँकि, चुनाव के बाद देवेंद्र भाजपा के फडणवीस मुख्यमंत्री बने और शिवसेना भी सरकार में साथ रही। लेकिन, दोनों दलों के रिश्ते काफी तनातनी भरे रहे। 2019 में ये गठबंधन फिर से पूरी तरह टूट गया, जब शिवसेना ने अपने राजनीतिक दुश्मनों NCP और कॉन्ग्रेस के साथ मिल कर सरकार बना ली।

यहाँ हम बात करेंगे कि कैसे उद्धव ठाकरे ने अपने पिता की विचारधारा को ताक पर रख दिया और उनकी पार्टी ने कैसे बाल ठाकरे की विरासत का बार-बार अपमान किया। भगवा वस्त्र और रुद्राक्ष पहनने वाले बाल ठाकरे एक जननेता थे और साथ ही निडर होकर बोलने में न हिचकने वाले भी। हिंदुत्व के मुद्दों पर वो खुल कर बोलते थे। मुख्यमंत्री का पद जब शिवसेना को मिला तो उन्होंने पहले मनोहर जोशी और फिर नारायण राणे को चुना, खुद अपने परिवार के लिए ये पद नहीं लिया।

बाल ठाकरे ने अपने जीवन में कोई चुनाव नहीं लड़ा। उनके बेटे उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनने के बाद कुर्सी सुरक्षित रखने के लिए विधान पार्षद बने। आदित्य ठाकरे को वर्ली विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाया गया और अपने पिता की सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया। उन्हें पर्यावरण विभाग मिला। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बैठकों में उनकी पत्नी के भाई के बेटे की मौजूदगी को लेकर भी बवाल हो चुका है। इस तरह शिवसेना भी अब कॉन्ग्रेस से अलग नहीं है, जहाँ एक परिवार को ही सब कुछ चाहिए और बाकियों का कोई मान नहीं।

हम आगे बढ़ेंगे, लेकिन उससे पहले जरा त्रिपुरा में मस्जिद जलाए जाने की झूठी अफवाह के कारण जलते महाराष्ट्र को याद कीजिए, जहाँ ‘रजा एकेडमी’ के आह्वान पर मुस्लिम भीड़ सड़कों पर उत्पात मचा रही है। फिर सोचिए, कि क्या बाल ठाकरे के रहते इस्लामी भीड़ की आगजनी की हिम्मत होती? बाल ठाकरे सत्ता में रहते या विपक्ष में, फर्क नहीं पड़ता। सत्ता में होते तो किसी की ऐसे निकलने की हिम्मत नहीं होती और जो उत्पात करता वो जेल में होता। विपक्ष में रहते, तो अपने संसाधनों के साथ प्रतिकार करते, सड़क पर उतर जाते।

कार्टूनिस की पार्टी के कार्यकर्ता कार्टून बनाने पर करते हैं पिटाई

जैसा कि अधिकतर लोग जानते हैं, बाल ठाकरे का ‘सेन्स ऑफ ह्यूमर’ जबरदस्त था और इसका कारण ये भी था कि वो एक कार्टूनिस्ट थे। जनवरी 1926 में मुंबई में उन्होंने ‘फ्री प्रेस जर्नल’ में कार्टून बनाने के साथ अपने करियर की शुरुआत की थी। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ अख़बार के रविवार संस्करण में भी उनके कार्टून प्रकाशित होते थे। 1960 में अपने भाई के साथ मिल कर उन्होंने ‘मार्मिक’ नामक साप्ताहिक कार्टून पत्रिका की स्थापना की। गरीबी, महँगाई, कॉन्ग्रेस, वामपंथियों और ‘बाहरी’ प्रवासियों – इन सब पर तंज कसते हुए वो कार्टून्स बनाते थे।

वहीं उनकी पार्टी अब क्या करती है? सितंबर 2020 में मुंबई में शिवसेना कार्यकर्ताओं ने सेवानिवृत्त नेवी ऑफिसर मदन शर्मा पर हमला बोल दिया। उनका गुनाह क्या था? उन्होंने शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे का एक कार्टून सोशल मीडिया पर फॉरवर्ड कर दिया था। शिवसेना के स्थानीय ‘शाखा प्रमुख’ ने पूर्व नेवी अधिकारी को संपर्क किया और उन्हें उनकी बिल्डिंग से नीचे आने को बोला। जैसे ही वो अपनी बिल्डिंग से नीचे उतरे, करीब 8 लोगों ने उन्हें मारना शुरू कर दिया

क्या एक कार्टूनिस्ट द्वारा स्थापित पार्टी इतनी ज्यादा असहिष्णु हो गई है कि उसे अब कार्टूनों से भी दिक्कत होने लगी? कोई व्हाट्सएप्प से उसके नेता का कार्टून किसी को भेज भर दे तो ये उग्र हो जाते हैं। ऊपर से क्या बाल ठाकरे अभी होते तो वो एक पूर्व सैन्य अधिकारी पर इस हमले को बर्दाश्त करते? बाल ठाकरे तो कहते थे कि अगर उन्हें सेना का नियंत्रण मिल गया तो वो देश की सारी समस्याएँ ख़त्म कर देंगे। 86 वर्ष की उम्र में उनका ये बयान बताता है कि इन मामलों में वो कितने कड़े थे। उन्होंने कहा था कि मुस्लिम कट्टरवादियों को वो नहीं बख्शेंगे।

जिस शरद पवार को उन्होंने कहा था ‘नीच मानुष’, बेटे ने उन्हें के आशीर्वाद से बना ली सरकार

शिवसेना-NCP-कॉन्ग्रेस के गठबंधन वाली ‘महा विकास अघाड़ी’ सरकार के ‘सुपर सीएम’ के रूप में शरद पवार का नाम लिया जाता है। ‘राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी (NCP)’ के संस्थापक इस सरकार के संकटमोचक भी हैं, जो बिना किसी संवैधानिक पद ने पुलिस-प्रशासन के बड़े से बड़े अधिकारियों को तलब करते हैं और विभिन्न मुद्दों पर कार्रवाई की दिशा तय करते हैं। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत और पत्रकार अर्णब गोस्वामी की गिरफ़्तारी के समय उनकी पार्टी के नेता अनिल देशमुख राज्य के गृह मंत्री थे।

अब जब अनिल देशमुख हवालात काट रहे हैं, NCP के ही दिलीप वलसे पाटिल गृह मंत्री हैं। आर्यन खान ड्रग्स मामले में भी उनके ही आवास पर शरद पवार ने पुलिस अधिकारियों की बैठक बुलाई थी। उन्हें इस गठबंधन का शिल्पकार कहा जाता है, जिनकी बदौलत शिवसेना और कॉन्ग्रेस आपस में जुड़े हुए हैं। लेकिन, क्या आपको पता है कि बाल ठाकरे और शरद पवार की कभी नहीं जमी। राजनीति के दाँवपेंच में माहिर जो शरद पवार 2029 विधानसभा चुनाव के बाद विपक्ष में बैठने की बातें कर रहे थे, उन्होंने सरकार भी बना ली।

शरद पवार ने शिवसेना को मजबूर किया कि वह मोदी कैबिनेट के अपने इकलौते मंत्री अरविंद सावंत का इस्तीफा दिलवाए। फिर हिंदुत्व का पहरेदार होने का दंभ भरने वाली पार्टी को अपना रुख नरम करने को मजबूर किया। चर्चा यह भी थी कि सरकार बनाने के लिए शिवसेना मुस्लिमों को आरक्षण देने और वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मॉंग से भी पीछे हट गई। सत्ता भोगना साधारण काम नहीं था। बाल ठाकरे क़रीबी सम्बन्ध होने के बावजूद राजनीतिक रूप से पवार से दूरी बना कर ही चलते थे।

उन्होंने साफ़-साफ़ कहा था कि शरद पवार जैसे ‘लुच्चे’ के साथ तो वो कभी नहीं जा सकते। बाल ठाकरे के भाषण सुन कर राजनीतिक में आए छगन भुजबल ने 1990 में शिवसेना तोड़ दी थी। मनोहर जोशी को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के बाद कॉन्ग्रेस में आए भुजबल को मंत्री बनाया गया था। ठाकरे को लगा कि पवार व्यक्तिगत संबंधों के कारण इस टूट के ख़िलाफ़ होंगे लेकिन पवार ने चुप्पी साध ली। बाल ठाकरे ने इस धोखे को याद रखा। ये वही शरद पवार हैं, जिन्होंने 1978 में वसंतदादा पाटिल की सरकार तोड़ दी और राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने थे। ठाकरे मानते थे कि शरद पवार ने अपने मेंटर यशवंतराव चव्हाण को भी धोखा दिया है।

तभी तो बालासाहब ने शरद पवार से चिढ कर उन्हें ‘नीच मानुष’ करार दिया था। आज छगन भुजबल उन्हीं बाल ठाकरे के बेटे उद्धव की सरकार में मंत्री हैं, जिन्होंने 2000 में गृह मंत्री रहते बाल ठाकरे को गिरफ्तार करवाया था। उन्हें उपभोक्ता एवं उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय सौंपा गया है। NCP के ही मंत्री नवाब मलिक पिछले कई सप्ताह से अपने सरकार की फजीहत करा रहे हैं। पहले वो कहते थे बाल ठाकरे के दाऊद से सम्बन्ध हैं। इस सरकार में वही NCP हावी है, जिसके संस्थापक को बाल ठाकरे ने ‘नीच मानुष’ कहा था। उद्धव ठाकरे की मजबूरी है कि सत्ता के लिए उन्हें इन लोगों का साथ और शरद पवार का ‘आशीर्वाद’ चाहिए ही चाहिए।

उस शिवसेना ने ओढ़ लिया सेक्युलरिज्म का चोला, जिसके संस्थापक भगवा वस्त्र पहनते थे

बाल ठाकरे खुलेआम मानते थे कि अयोध्या में बाबरी ढाँचे के विध्वंस में उनका और उनकी पार्टी का हाथ है। भगवा वस्त्र और रुद्राक्ष में उन्होंने कभी अपनी हिन्दू पहचान छिपाई नहीं, उलटा इस पर गर्व किया। कभी संविधान से ‘धर्मनिरपेक्षता (Secularism)’ शब्द हटाने की माँग करने वाले शिवसेना के मुखिया अब सत्ता मिलने के बाद कहते हैं कि ‘संविधान में जो है, सो है।’ जो बाल ठाकरे कहते थे कि सोनिया गाँधी के सामने ‘हिजड़े’ झुकते हैं, आज उनकी ही पार्टी के साथ शिवसेना सरकार में है।

शिवसेना ने जनवरी 2020 में ही ‘फ्री कश्मीर’ का प्लेकार्ड लहराने वाली महिला का समर्थन किया था। इस महिला का बचाव करने के लिए संजय राउत ने कहा था कि केंद्र सरकार ने कश्मीर में कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं और इन प्रतिबंधों से मुक्त कराने के भाव से ही वह पोस्टर लहराया गया था। बाल ठाकरे क्या कभी इस चीज को बर्दाश्त करते? पालघर में साधुओं की भीड़ द्वारा हत्या पर क्या बाल ठाकरे चुप बैठते? ये पार्टी पूरी तरह से बाल ठाकरे के आदर्शों के विरुद्ध चल रही है।

आज उद्धव ठाकरे के लिए सत्ता ही सब कुछ है अपने परिवार को मिलने वाले पद ही सब कुछ है। मीडिया को दबाना, सेक्युलरिज्म का समर्थन, कार्टून बनाने पर पूर्व सैन्य अधिकारी की पिटाई, कॉन्ग्रेस-NCP के साथ गठबंधन, साधुओं के हत्या आरोपितों को जमानत, ड्रग्स गिरोह को बचाने की कोशिश, हिंदुत्व का समर्थन करने वालों से लड़ाई, कहीं मस्जिद जलने की झूठी अफवाह पर अपने राज्य को जलने देना – ये सब वो घटनाएँ हैं, जो बताती हैं कि ये अब बाल ठाकरे वाली शिवसेना नहीं रही।

‘हाँ, ट्रांसफर के लिए देने पड़ते हैं पैसे’: CM गहलोत के सवाल का शिक्षकों ने एक सुर में दिया जवाब, फजीहत के बाद मुस्कुराते दिखे

राजस्थान की राजधानी जयपुर के बिड़ला ऑडिटोरियम में मंगलवार (16 नवंबर, 2021) को शिक्षक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने संबोधन में वहाँ मौजूद शिक्षकों के ट्रांसफर को लेकर एक सवाल किया, लेकिन उन्हें क्या पता था कि वह इस सवाल को लेकर खुद ही घिर जाएँगे।

दरअसल, गहलोत ने राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए शिक्षकों से सवाल किया, ”कई बार तो हमने सुना है कि ट्रांसफर के लिए पैसे देने पड़ते हैं? दुख की बात है कि शिक्षक को पैसे देकर ट्रांसफर करवाना पड़ता है। मैं समझता हूँ कि कोई ऐसी पॉलिसी बन जाए ताकि आपको पता हो कि आपका ट्रांसफर 2 साल में होगा।” सीएम के सवाल ‘ट्रांसफर के लिए पैसे देने पड़ते हैं?’ पर वहाँ मौजूद टीचरों ने एक स्वर में ‘हाँ’ का जबाव दिया।” ये जवाब सुनकर मुख्यमंत्री के चेहरे की रंगत उड़ गई।

गहलोत ने दबी आवाज में ‘कमाल है’ कहा और आगे बढ़ गए। जैसे मानो वह इस सवाल को करने के बाद पछता रहे हो। गहलोत ने कहा कि कोरोना काल में टीचरों का योगदान काफी सराहनीय रहा है। कार्यक्रम समाप्त होने के बाद सीएम गहलोत ने सम्मान पाने वाले शिक्षकों को ट्वीट कर बधाई दी और कहा कि शिक्षक ही समाज निर्माता होते हैं।

‘मंदिर के दैनिक मामलों में दखल नहीं दे सकती अदालत’: भक्त की याचिका पर बोला सुप्रीम कोर्ट, TTD बोर्ड पर अनियमितता के आरोप

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (16 नवंबर 2021) को तिरुमला के तिरुपति बालाजी मंदिर परिसर में पूजा-अर्चना की विधि और अनियमितताओं के आरोपों को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतें किसी मंदिर के दैनिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं। चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि संवैधानिक अदालतें यह नहीं बता सकती कि किसी मंदिर में कैसे पूजा और अनुष्ठान किए जाएँ, कैसे नारियल तोड़े जाएँ या देवी-देवता को किस तरीके से माला पहनाई जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट ऐसे मामलों में कैसे हस्तक्षेप कर सकता है कि रीति-रिवाज कैसे चलाए जाएँगे। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा मंदिर के दैनिक मामलों में हस्तक्षेप करने की माँग की गई है, इस पर कोई संवैधानिक न्यायालय गौर नहीं कर सकती। चीफ जस्टिस एनवी रमणा ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाई और कहा कि इन मुद्दों को एक रिट याचिका में तय नहीं किया जा सकता है।

पीठ, जिसमें जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली भी शामिल थीं, ने कहा कि ये मुद्दे याचिका के जरिए तय नहीं किए जा सकते हैं। याचिकाकर्ता श्रीवरी दद्दा ने कहा कि यह एक सार्वजनिक मंदिर है। इस पर पीठ ने कहा, “कोर्ट इस मामले में कैसे दखल देगा..कैसे अनुष्ठान किए जाएँ?” पीठ ने माना कि याचिका में जो राहत माँगी गई है वह मंदिर के दैनिक कामकाज के मामलों में हस्तक्षेप वाली हैं। अदालतें इसमें दखल नहीं दे सकती हैं। अगर परंपरा से कुछ अलग होने की बात हो और उसके संबंध में सुबूत हों तब अदालत मामले पर विचार कर सकती है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि मंदिर प्रशासन याचिकाकर्ता की शिकायतों पर ध्यान दे और इसके बाद भी कुछ शिकायतें रह जाती हैं तो याचिकाकर्ता उचित प्लेटफॉर्म पर अपनी बात रख सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पूजा के अलावा अगर प्रशासन नियमों की अनदेखी कर रहा है या किसी अन्य व्यवस्था का उल्लंघन कर रहा है तो उस मामले में कोर्ट देवस्थानम बोर्ड से स्पष्ट करने के लिए कह सकते हैं। इसके अलावा सेवा में हस्तक्षेप करना संभव नहीं होगा।

दरअसल भगवान वेंकटेश्वर स्वामी के एक भक्त श्रीवरी दद्दा ने तिरुपति मंदिर के पूजा पाठ में अनियमितता का आरोप लगाया था। 29 सितंबर की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर का प्रबंधन करने वाले तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) को हफ्ते भर के भीतर शिकायत पर जवाब देने को कहा था। इससे पहले आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने भी यह याचिका यह कहते हुए रद कर दी थी कि वह पूजा करने के तौर तरीकों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। हाई कोर्ट ने कहा था कि यह मामला देवस्थानम के अधिकार क्षेत्र में आता है।

‘दूसरा गाल आगे करने से भीख मिलती है, आज़ादी नहीं’: कंगना का ‘बापू’ पर वार, कहा- ‘गाँधी चाहते थे भगत सिंह की फाँसी, नेताजी को नहीं किया सपोर्ट’

बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत ने ‘1947 में भीख में आज़ादी’ वाले अपने बयान का फिर से बचाव किया है। उन्होंने एक पुरानी खबर शेयर की, जिसमें लिखा है कि किस तरह महात्मा गाँधी इस बात को लेकर राज़ी हो गए थे कि अगर सुभाष चंद्र बोस मिलते हैं तो उन्हें अंग्रेजों को सौंप दिया जाएगा। कंगना रनौत ने लिखा, “जिन्होंने सच में आज़ादी की लड़ाई लड़ी, उन्हें उन लोगों ने अपने मालिकों को सौंप दिया, जिनके खून में वो साहस, गर्मी और आग नहीं ही कि वो स्वतंत्रता के लिए लड़ सकें।”

‘थलाईवी’ की अभिनेत्री ने लिखा कि भारतीयों पर अत्याचार करने वालों के विरुद्ध लड़ने का साहस न रखने वाले कुछ नेता सत्ता के भूखे थे, धूर्त थे। उन्होंने लिखा कि ऐसे ही लोगों ने हमें सिखाया कि अगर कोई तुम्हारे एक गाल पर तमाचा मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो, ऐसे ही आज़ादी मिलेगी। कंगना रनौत ने लिखा कि आज़ादी ऐसे नहीं मिलती है, बल्कि इस तरह से सिर्फ भीख ही मिल सकती है। साथ ही उन्होंने लोगों को अपने नायकों को अच्छे से चुनने की सलाह दी।

कंगना रनौत ने दावा किया कि महात्मा गाँधी ने कभी भी भगत सिंह या नेताजी सुभाष चंद्र बोस का समर्थन नहीं किया। उन्होंने दावा किया कि ऐसे सबूत मौजूद हैं, जो बताते हैं कि महात्मा गाँधी चाहते थे कि भगत सिंह को फाँसी पर चढ़ाया जाए। उन्होंने लोगों से कहा कि आपको चुनने की ज़रूरत है कि आप किसे अपना नायक मानते हैं, किसका समर्थन करते हैं। कंगना रनौत ने लिखा कि इन सभी को अपनी याद में एक साथ रखना और हर साल उनकी जयंती पर याद करना पर्याप्त नहीं है।

इंस्टाग्राम पर कंगना रनौत की ‘स्टोरी’

कंगना रनौत ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी में लिखा, “उन सभी को एक साथ अपनी यादों में रखना और हर साल जयंती पर याद करना केवल बेवकूफाना ही नहीं है, बल्कि गैर-जिम्मेदाराना और सतही भी है। लोगों को न सिर्फ अपना इतिहास पता होना चाहिए, बल्कि अपने नायकों के बारे में भी ज्ञान होना चाहिए।” बता दें कि ‘टाइम्स नाउ’ के एक शो में ‘1947 में भीख में आज़ादी मिली’ वाले उनके बयान का लिबरल और सेक्युलर गिरोह विरोध कर रहा है। कंगना ने कहा था कि हमें वास्तविक आज़ादी 2014 में मिली।

कंगना ने लोगों को दी सोच-समझ कर अपना नायक चुनने की सलाह

बता दें कि

मराठी और हिंदी फिल्मों के दिग्गज अभिनेता विक्रम गोखले ने अभिनेत्री कंगना रनौत के ‘भीख में आजादी’ वाले बयान का समर्थन किया था। उन्होंने कहा था कि कंगना रनौत ने जो कहा वह उससे सहमत हैं। मराठी थिएटर और सिनेमा के सबसे बेहतरीन कलाकारों में से एक माने जाने वाले विक्रम गोखले ने कहा था कि भारत को कभी भी ‘हरा’ नहीं होना चाहिए और इसे ‘भगवा’ बनाए रखने के प्रयास किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा था, “बहुत से स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें फाँसी दी गई थी, बड़े-बड़े लोगों ने उन्हें बचाने की कोशिश नहीं की। वे मूकदर्शक बने रहे।”

हैदरपोरा में मारे गए आतंकवादियों के लिए फिर उमड़ा महबूबा मुफ्ती का प्यार, सेना के एनकाउंटर पर उठाए सवाल

जम्मू कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती की पीड़ा एक बार फिर से आतंकियों के समर्थन में छलकी है। हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने आतंकियों के बचाव में कुतर्कों का सहारा लिया है। महबूबा ने मंगलवार (16 नवंबर) को श्रीनगर के हैदरपोरा इलाके में सुरक्षाबलों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ के दौरान दो स्थानीय लोगों के मारे जाने पर चिंता व्यक्त की है।

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, उन्होंने कहा, ”हैदरपोरा मुठभेड़ में स्थानीय लोग (मालिक और एक डॉक्टर) मारे गए हैं। इस तरह से लोगों को एनकाउंटर में शील्ड बनाकर ले जाना ये गलत है। जम्मू-कश्मीर के लोगों के जो दिल हैं वो हमसे और दूर होते जा रहे हैं, लोगों को ज्यादा गुस्सा आ रहा है, जिससे हालात सुधरने की जगह खराब हो रहे हैं।”

जबकि चिनार कोर के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल डीपी पांडे ने कहा, ”पुलिस के अनुसार, श्रीनगर के हैदरपोरा में सोमवार को हुई एक मुठभेड़ के दौरान आतंकवादियों की फायरिंग में एक डॉक्टर मारा गया था। ऐसे लोगों को सफेदपोश आतंकवादियों द्वारा चलाए जा रहे आंतकी गतिविधियों से सर्तक होना चाहिए।”

वहीं, कश्मीर पुलिस ने अपने बयान में कहा कि श्रीनगर के हैदरपोरा में एक निजी इमारत में चल रहे अवैध कॉल सेंटर में आतंकवादियों के छिपे होने की सूचना मिलते ही पुलिस, 2RR और CRPF ने संयुक्त अभियान चलाकर आतंकियों को घेर लिया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुठभेड़ में एक पाकिस्तानी आतंकवादी और उसके स्थानीय सहयोगी समेत चार लोग मारे गए। मृतकों में मकान मालिक और एक डॉक्टर भी शामिल हैं, जिन्हें पुलिस ने आतंकी का सहयोगी बताया है। हालाँकि, उनके परिवार वालों ने पुलिस के आरोप से इनकार किया है।

मालूम हो कि जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर के हैदरपोरा इलाके में ने सोमवार की शाम को मुठभेड़ में दो आतंकियों को मार गिराया। कश्मीर के आईजी विजय कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेस में इसकी जानकारी दी। उन्होंने मीडियाकर्मियों से बताया कि बीते रविवार को जिस आतंकी ने श्रीनगर के डाउन टाउन इलाके में पुलिसकर्मी पर हमला किया था, उसे भी मुठभेड़ में मार गिराया गया है।

बता दें कि जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का इससे पहले भी देश की सेना के खिलाफ विवादित बयान सामने आ चुका है। पिछले महीने एक वायरल वीडियो में महबूबा ने कहा था, ”ये कैसा सिस्टम है इनका। कोई हमारे मुल्क की गोली से मरे तो ठीक, लेकिन आतंकी की गोली से मरे तो गलत कैसे?”

‘हिन्दू धर्म का अपमान करने वाले कॉन्ग्रेस नेता सलमान खुर्शीद के किताब पर नहीं लगा प्रतिबंध तो करूँगा आत्मदाह’: संत परमहंस

कॉन्ग्रेस नेता सलमान खुर्शीद द्वारा लिखे गए पुस्तक ‘सनराइज ओवर अयोध्या’ को लेकर विवाद जारी है। इस पुस्तक में हिंदुत्व को मानने वाले रामभक्तों और हिंदू धर्म की तुलना आईएसआईएस और बोको हराम जैसे आतंकी संगठन से सलमान खुर्शीद ने की है। जिसके बाद वे अयोध्या के संतों के निशाने पर आ गए हैं। पुस्तक में हिंदू धर्म को लेकर किए गए टिप्पणी से नाराज तपस्वी छावनी के संत परमहंस दास ने आमरण अनशन और आत्मदाह करने की चेतावनी दी है।

न्यूज18 की रिपोर्ट के मुुताबिक संत परमहंस दास ने प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री से माँग की है कि सलमान खुर्शीद की किताब पर प्रतिबंध लगाया जाए और उनके खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज किया जाए। ऐसा नहीं होने पर वह आत्मदाह कर सकते हैं। परमहंस दास ने कहा कि 100 करोड़ भारतीय की तुलना आतंकी संगठन से करना यह राष्ट्र की अवमानना है। उन्होंने कहा कि बहसंख्यक समाज के देवी-देवताओं के ऊपर अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है। आस्था पर चोट की जा रही है। यह बहुत ही चिंताजनक है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि प्रधानमंत्री इसे गंभीरता से लेंगे और कड़ी कार्रवाई करेंगे।

बता दें कि परमहंस ने पिछले दिनों अयोध्या कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराने के लिए तहरीर दी थी। परामहंस दास ने बताया कि कॉन्ग्रेस के नेता सलमान खुर्शीद ने एक पुस्तक सनराइज ओवर अयोध्या में 113 नंबर पृष्ठ पर लिखा है कि हिंदुत्व आईएसआईएस संगठन जैसे हैं। हिंदुत्व कहने से जितने भी सनातन को मानने वाले हिंदू हैं। सभी की तुलना उन्होंने आतंकवादी संगठन आईएसआईएस किया है। और जितने भी हिंदू चाहे वह शंकराचार्य हो, महामहिम राष्ट्रपति हो या प्रधानमंत्री इसके अलावा कोई अन्य व्यक्ति हो जितने भी हिंदू हैं सभी को उन्होंने आतंकवादी बताया है।

इससे वो बहुत आहत हैं। इसलिए उन्होंने अयोध्या कोतवाली में सलमान खुर्शीद के खिलाफ तहरीर दिया। उन्होंने कहा कि जो कॉन्ग्रेस के नेता चाहे वह राशिद अल्वी हो जो हिंदुओं को राक्षस बता रहे हैं या पी चिदंबरम सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना कर रहे हैं। अराजकता पूर्ण माहौल में समाज में विद्वेष की भावना को फैलाना चाहते हैं। इन पर सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए।

‘FOE की आड़ में किसी की प्रतिष्ठा को हानि नहीं पहुँचा सकते’: न्यूजलॉन्ड्री को कोर्ट की फटकार, हटाएगा सुनवाई पर कमेंट्री के वीडियो

‘इंडिया टुडे ग्रुप’ ने प्रोपेगंडा पोर्टल न्यूजलॉन्ड्री के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था। मंगलवार (16 नवंबर, 2021) को दिल्ली उच्च-न्यायालय में इसकी सुनवाई हुई। 2 करोड़ रुपए के इस नोटिस में मीडिया समूह ने न्यूजलॉन्ड्री पर अपने पत्रकारों और एंकरों के अलावा प्रबंधन की मानहानि और कॉपीराइट का मामला भी ठोका है। सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने न्यूजलॉन्ड्री से कहा कि पैरोडी क्रिएटिव होनी चाहिए, लेकिन ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ के जरिए किसी की प्रतिष्ठा को ठेस नहीं पहुँचाया जाना चाहिए।

न्यूजलॉन्ड्री ने अपने बचाव में तर्क दिया कि ये मानहानि नहीं है, बल्कि पैरोडी है। वहीं ‘टीवी टुडे’ ने अपने वकील के माध्यम से दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि मीडिया एक विकसित हो रही इंडस्ट्री है और इसका हिस्सा होने के कारण दोनों एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हुए, ऐसे में न्यूजलॉन्ड्री अपने बारे में कुछ भी कह सकता है और खुद को सर्वश्रेष्ठ बता सकता है, लेकिन दूसरों के विरुद्ध दावे करने का अधिकार उसे नहीं है। साथ ही कहा कि वीडियो में न्यूजलॉन्ड्री ने ये दिखाने की कोशिश की कि ‘टीवी टुडे’ विज्ञापनदाताओं की दया पर टिका हुआ है, जो FOE के अंतर्गत नहीं आता।

साथ ही ये भी कहा गया कि न्यूजलॉन्ड्री वालों ने जिस क्षण ‘इंडिया टुडे’ के कंटेंट्स चलाए, उसी क्षण ये कॉपीराइट उल्लंघन का मामला बन गया। ‘टीवी टुडे’ ने कहा कि इस कंटेंट का प्रयोग करना सिर्फ हमारी कंपनी का अधिकार है। न्यूजलॉन्ड्री ने दावा किया कि उन्होंने इस कंटेंट का ‘स्वच्छ तरीके से प्रयोग’ किया है, जबकि ‘टीवी टुडे’ ने कहा कि ये आलोचना के भी अंतर्गत नहीं आता, ये उससे भी बढ़ कर है। ‘टीवी टुडे’ ने आरोप लगाया कि उसके कार्यक्रमों के आधार पर न्यूजलॉन्ड्री वाले अपना शो बना रहे हैं।

‘टीवी टुडे’ के काउंसल ने कहा कि चैनल ने इतनी मेहनत कर के और संसाधन लगा कर कंटेंट तैयार किया, जबकि वो एक पुरुष और एक महिला को बिठा कर इसका इस्तेमाल कर के वीडियो बना रहे हैं। न्यूजलॉन्ड्री ने कहा कि ये ‘कमेंट्री’ है, इसीलिए उनका कंटेंट दिखाना ज़रूरी है। उसने कहा कि वो ये दिखाने की कोशिश कर रहा था कि ‘टीवी टुडे’ के पत्रकार अपना काम ठीक से नहीं कर रहे। न्यूजलॉन्ड्री पर कोर्ट की सुनवाई के वीडियो बनाने के भी आरोप लगे।

फटकार लगने के बाद प्रोपेगंडा पोर्टल ने ‘बार एंड बेंच’ और ‘लाइव लॉ’ की तरह कोर्ट की सुनवाई की बिना कमेंट्री के रिपोर्टिंग की अनुमति माँगी। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ के चोले में आप किसी की प्रतिष्ठा को हानि नहीं पहुँचा सकते। उच्च-न्यायालय ने कहा कि टिप्पणी देना, सूचना नहीं है। हाईकोर्ट ने कहा कि पैरोडी क्रिएटिव होनी चाहिए। न्यूजलॉन्ड्री ने कहा कि ‘इंडिया टुडे’ के पास इसे बर्दाश्त करने की क्षमता है, क्योंकि हम एक-दूसरे की आलोचना कर सकते हैं।

साथ ही ये भी दावा किया कि ‘इंडिया टुडे’ रोज नेताओं की आलोचना करता है। न्यूजलॉन्ड्री ने कहा कि वो कोर्ट की रिपोर्टिंग पर टिप्पणी किए गए वीडियोज को हटाएगा और आगे से बिना किसी प्रतिक्रिया के रिपोर्टिंग करेगा। इसके बाद सुनवाई ख़त्म हो गई। असल में न्यूजलॉन्ड्री के बारे में ‘टीवी टुडे’ के काउंसल ने ही बताया था कि वो न सिर्फ कोर्ट की सुनवाई पर वीडियो बना-बना कर डाल रहे हैं, बल्कि उस पर टिप्पणियाँ और प्रतिक्रियाएँ भी दे रहे हैं।

बता दें कि न्यूजलॉन्ड्री के सीईओ अभिनंदन सेखरी, डायरेक्टर प्रशांत सरीन और रूपक कपूर, कार्यकारी संपादक मनीषा पांडे और अतुल चौरसिया, प्रबंध संपादक रमन कृपाल, संवाददाता आयुष तिवारी और स्तंभकार हृदयेश जोशी को इस मामले में पक्षकार बनाया गया है। साथ ही सोशल मीडिया दिग्गज ट्विटर, फेसबुक और गूगल को भी इस मुकदमे में पक्षकार बनाया गया है। आरोप है कि चैनल के समाचार, रिपोर्टिंग, प्रबंधन और न्यूज एंकरों के बारे में अनुचित, अपमानजनक और दुर्भावनापूर्ण रूप से अपमानजनक टिप्पणी की गई है।

समलैंगिक सीनियर वकील सौरभ कृपाल को दिल्ली HC का जज बनाने के लिए कॉलेजियम ने की सिफारिश, विदेशी पार्टनर होने से केंद्र चिंतित

सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने सीनियर वकील सौरभ कृपाल को दिल्ली हाई कोर्ट का जज बनाने की सिफारिश की है। चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम की 11 नवंबर की बैठक में यह फैसला लिया गया। इसमें सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस यूयू ललित और एएम खानविलकर के तीन सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सौरभ कृपाल को दिल्ली हाई कोर्ट का जज बनाने की सिफारिश की है। अगर 49 वर्षीय सौरभ कृपाल को जज के पद पर नियुक्त किया जाता है, तो वह भारत में हाई कोर्ट के पहले गे (समलैंगिक) जज होंगे।

खास बात यह है कि अक्टूबर 2017 में दिल्ली हाई कोर्ट कॉलेजियम ने सर्वसम्मति से जज के लिए उनके नाम की सिफारिश की थी। इसके बाद से सुप्रीम कोर्ट चार बार उनकी सिफारिश का फैसला टाल चुका था। आखिरी बार अगस्त 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सिफारिश का फैसला टाल दिया था।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, सौरभ कृपाल खुले तौर पर गे होने की बात स्वीकार कर चुके हैं। कृपाल के पार्टनर ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट निकोलस जर्मेन बाकमैन हैं और स्विट्जरलैंड के रहने वाले हैं। इसलिए केंद्र को राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंता सता रही है। पिछले साल एक इंटरव्यू में कृपाल ने कहा था कि शायद उनके सेक्शुअल ओरिएंटेशन की वजह से ही उन्हें जज बनाने की सिफारिश का फैसला टाला गया है।

बता दें कि सौरभ कृपाल वरिष्ठ वकील और पूर्व चीफ जस्टिस बीएन कृपाल के बेटे हैं। कृपाल ने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन की है और लॉ की डिग्री ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पूरी की है। सौरभ पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के साथ बतौर जूनियर काम कर चुके हैं। इसके साथ ही वह यूनाइटेड नेशंस के साथ जेनेवा में भी काम कर चुके हैं। कृपाल समलैंगिक हैं और LGBTQ के अधिकारों के लिए मुखर रहे हैं। वह ‘सेक्स एंड द सुप्रीम कोर्ट’ किताब के लेखक भी हैं।