Sunday, September 29, 2024
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मोदी-शाह की सत्ता में वापसी के लिए ‘केवल राहुल गाँधी’ होंगे ज़िम्मेदार: केजरीवाल

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आज (25 अप्रैल, 2019) आम आदमी पार्टी का घोषणा-पत्र (मैनिफिस्टो) जारी कर दिया है। अपने मेनिफैस्टो में उनका सबसे पहला एजेंडा है केंद्र में मोदी-शाह की जोड़ी को सरकार बनाने से रोकना।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को कहा, “अगर मोदी सरकार सत्ता में लौटती है, तो इसके लिए ‘सिर्फ़ राहुल गाँधी’ जिम्मेदार होंगे”। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि इसके पीछे सबसे बड़ी वजह कमज़ोर विपक्ष का होना है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि वो दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए लड़ेंगे। केजरीवाल के मुताबिक़ कॉन्ग्रेस ने पिछले बुधवार को अपना फैसला सुनाया, जिसके अनुसार वो दिल्ली के अलावा किसी अन्य राज्य में AAP के साथ सीट शेयर करने में कोई दिलचस्पी नहीं रखते।

AAP पार्टी ने वर्तमान परिस्थितियों पर एक दो-पृष्ठ का नोट भी जारी किया और अंतिम घोषणा की कि किसी भी तरह का कोई गठबंधन नहीं होगा। AAP मुख्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में केजरीवाल ने बताया कि वर्तमान में जो परिस्थितियाँ है, उन पर लेख तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि अगर सत्ता में मोदी-शाह की वापसी होगी तो उसके लिए ‘केवल राहुल गाँधी’ ही ज़िम्मेदार होंगे। उन्होंने राहुल को यूपी, बंगाल, दिल्ली, हरियाणा, गोवा में विपक्ष के कमजोर करने का दोषी भी ठहराया।

AAP सुप्रीमो ने कहा कि पार्टी के कार्यकर्ताओं की नाराज़गी के बावजूद लोकतंत्र को बचाने के लिए वो हर संभव प्रयास कर रहे हैं। AAP पार्टी अनिवार्य रूप से कॉन्ग्रेस के भ्रष्टाचार से लड़ते हुए शुरू हुई थी। हम एक समय में कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन का सपना भी नहीं देख सकते थे। लेकिन देश में मौजूदा परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, हमने एक तरह के टाई-अप के लिए कॉन्ग्रेस से संपर्क किया। केजरीवाल ने कहा कि हमने कॉन्ग्रेस को समझाया कि मोदी-शाह को हराना क्यों महत्वपूर्ण है। और हमने सभी प्रयास किए। लेकिन वे हमारी बातों पर कोई रुचि नहीं ले रहे हैं।

कॉन्ग्रेस पर पलटवार करने का आरोप लगाते हुए केजरीवाल ने कहा कि पिछले मंगलवार को कॉन्ग्रेस के गुलाम नबी आज़ाद ने पार्टी के फैसले से अवगत कराया कि वो दिल्ली और हरियाणा में गठबंधन के लिए तैयार हैं, लेकिन एक दिन के भीतर ही वो इससे मुकर गए। जानकारी के मुताबिक़, पिछले मंगलवार को लगभग 11 बजे, AAP राज्यसभा सांसद संजय सिंह को गुलाम नबी आज़ाद द्वारा उनके स्थान पर बुलाया गया था। उन्होंने कहा कि वो AAP के साथ दिल्ली, हरियाणा और चंडीगढ़ में गठबंधन करेंगे। संजय सिंह इस पर मान गए थे। इसके बाद यह निर्णय लिया गया कि अगले दिन एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर इसकी घोषणा कर दी जाएगी।

केजरीवाल ने कहा, “अगले दिन, हम इंतज़ार करते रहे। उन्होंने कुछ शर्तों को बदलते हुए शाम को हमें फोन किया। हमने नई शर्तों को भी स्वीकार कर लिया। लेकिन वो अपनी बातों से मुकर गए।”

दिल्ली के सीएम पर ‘यू-टर्न’ लेने का आरोप लगाने वाले राहुल गाँधी के ट्वीट का जिक्र करते हुए केजरीवाल ने कहा, “मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि दुनिया में ट्विटर पर कहाँ-कहाँ गठबंधन हुए हैं।”

केजरीवाल ने कॉन्ग्रेस पर तीखा हमला करते हुए कहा, “मैं उन सभी लोगों से अपील करता हूँ जो मोदी को पराजित देखना चाहते हैं, वो मतों को विभाजित न होने दें। कॉन्ग्रेस को हिन्दू वोट नहीं मिल रहे हैं। मुस्लिमों में भ्रम की स्थिति है। कॉन्ग्रेस देश भर में भाजपा-विरोधी गठबंधन को नुकसान पहुँचा रही है।”

इसके अलावा सीएम केजरीवाल ने कहा कि अगर कॉन्ग्रेस जीतने की स्थिति में होती, तो मैं सभी सात सीटें कॉन्ग्रेस को दे देता। इसलिए दिल्ली-विशेष गठबंधन का कोई मतलब नहीं है क्योंकि आज हम सभी सात सीटों पर भाजपा को हराने की स्थिति में हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिल्ली लोकसभा के AAP पार्टी के सभी सात उम्मीदवार भी शामिल थे।

बदले की राजनीति पर उतरी कॉन्ग्रेस, RSS से जुड़े लोगों को बर्खास्त करने की धमकी

लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे हैं, कॉन्ग्रेस नेताओं के बयानों का स्तर गिरता ही जा रहा है। पूर्व में विदेश मंत्री जैसा महत्वपूर्ण और गरिमामय पद संभाल चुके फर्रूखाबाद के लोकसभा प्रत्याशी सलमान खुर्शीद ने सुप्रीम कोर्ट के सामने एफआईआर फाड़ देने की धमकी दी। अब राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के अध्यक्ष रहे सैम पित्रोदा ने सरकारी संस्थानों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे कर्मचारियों को चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि अगर कॉन्ग्रेस की सरकार बनी तो प्राथमिकता से पहला काम सरकारी संस्थाओं और संस्थानों को ‘संघ-मुक्त’ करने का किया जाएगा। इसके लिए संघ से जुड़ाव रखने वाले लोगों को पहले 100 दिन के भीतर निकाल बाहर किया जाएगा।

घोषणापत्र बाद में, संघी-निकालो अभियान पहले

कॉन्ग्रेस की घोषणापत्र समिति के सदस्य पित्रोदा के अनुसार ‘संघियों’ को निकाल बाहर करना इतना जरूरी है कि कॉन्ग्रेस का घोषणापत्र लागू करना भी उसके सामने गौण है। पहले संघियों की सफाई का काम शुरू करेगी कॉन्ग्रेस, उसके बाद अपना घोषणापत्र लागू करना शुरू करेगी। उन्होंने शिकागो के भारतीय महावाणिज्य दूतावास के बारे में आरोप लगाया कि वहाँ लोगों को दिक्कत इसलिए हो रही है क्योंकि संघ की पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्ति को वहाँ नियुक्त कर दिया गया था

बाकी मुद्दों के लिए समय-सीमा,अफस्पा-राष्ट्रद्रोह पर ‘मैं विशेषज्ञ नहीं’

अपनी पार्टी के घोषणापत्र के बारे में उन्होंने दावा किया कि हर मुद्दे पर किए गए वादे को पूरा करने के लिए एक समय-सीमा निश्चित की जाएगी। कुछ मुद्दों के लिए तो यह 50, 100 और 150 दिनों तक भी हो सकती है। पर जब कॉन्ग्रेस से सबसे विवादास्पद मुद्दों अफस्पा हटाने और राष्ट्रद्रोह पर ‘पुनर्विचार’ करने के बारे में पूछा गया तो पित्रोदा ने अपने को इन मामलों का विशेषज्ञ न होने का हवाला देकर पल्ला झाड़ लिया।

उन्होंने यह भी दावा किया कि कॉन्ग्रेस सरकार बनाने में सफल होगी, पर सीटों की संख्या का अनुमान लगाने से इंकार कर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि अंत में गठबंधन की जो भी तस्वीर उभरेगी, प्रधानमंत्री का निर्णय उसके भागीदार दल करेंगे।

पहले भी हो चुका है राज्य सरकारों में

पिछले साल तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान का विधानसभा चुनाव जीतने वाले कॉन्ग्रेसी मुख्यमंत्री पहले भी ऐसा कर चुके हैं। शासन के महत्वपूर्ण पदों पर अपने करीबी अफसरों को बैठाने के लिए इन तीनों राज्यों की नवगठित कॉन्ग्रेस सरकारों ने बड़े पैमाने पर तबादले किए थे।

शशि थरूर ने भाजपा पर लगाया था नौकरशाही के राजनीतिकरण का आरोप

अपनी किताब ‘The Paradoxical Prime Minister’ में कॉन्ग्रेस के ही नेता शशि थरूर प्रधानमंत्री मोदी पर आरोप लगाते हैं कि मोदी ने गुजरात कैडर के कुछ अफसरों को केन्द्रीय काडर में बुलाकर नौकरशाही का राजनीतिकरण करने की कोशिश की है (तीसवाँ अध्याय, ‘सिविलाइज़िन्ग द सिविल सर्विसेज़?’)। यह सवाल ऐसे में लाजमी है कि अपनी पार्टी की उस नीति के बारे में शशि थरूर क्या कहना चाहेंगे जहाँ उनकी पार्टी एक सांस्कृतिक और गैर-राजनीतिक संगठन से अतीत में रहे जुड़ाव के आधार पर लोगों को हटाने की बात करती है।

CJI यौन शोषण मामले में SC का फैसला: रिटायर्ड जस्टिस पटनायक करेंगे साजिश की जाँच

बीते दिनों अपने ऊपर लगे यौन शोषण के आरोप को चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई ने कोर्ट के ख़िलाफ़ साजिश करार दिया था। जिसके मद्देनज़र सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए जाँच कमेटी का गठन कर दिया है। इस मामले पर जस्टिस पटनायक हलफनामे और सबूतों के आधार पर मामले की जाँच करेंगे। दिल्ली पुलिस, सीबीआई और आईबी को जस्टिस पटनायक को जाँच में सहयोग करने के लिए कहा गया है।

कोर्ट का कहना है कि प्रधान न्यायाधीश गोगोई पर लगाए गए आरोप इस जाँच से बाहर होंगे। ये कमेटी केवल साजिश की जाँच के लिए है। आजतक की ख़बर के अनुसार जस्टिस पटनायक सीलबंद लिफ़ाफे में जाँच की रिपोर्ट अदालत को सौंपेंगे।

उल्लेखनीय है कि आज गुरुवार (अप्रैल 25, 2019) की सुबह वकील उत्सव बैंस ने अतिरिक्त हलफनामा और सीलबंद सबूत अदालत को दिए। विशेष पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनी। कोर्ट ने इस मामले में बड़ी साजिश का इशारा करते हुए कहा कि इसके पीछे बड़े और ताक़तवर लोग हो सकते हैं, लेकिन वे (साजिशकर्ता) जान लें कि वे आग से खेल रहे हैं।

इस सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी कहा कि उनके पास दस्तावेजों का निरीक्षण करने का अधिकार है। साथ ही कोर्ट ने विशेषाधिकार वाले दस्तावेजों पर अटॉर्नी जनरल से अपना कानूनी तर्क देने को भी कहा है। जिस पर अटॉरनी जनरल ने कोर्ट स्टाफ की नियुक्ति और व्यवहार के नियम बताए।

केके वेणुगोपाल (अटॉर्नी जनरल) ने इस दौरान कोर्ट में कहा कि अदालत से निलंबित हुए कर्मचारियों ने वकील से संपर्क किया था और वो प्रेस क्लब में प्रेस कॉन्फ्रेंस करना चाहते थे। उन्होंने बताया कि उत्सव के हलफनामे के अनुसार अजय उनके पास आता था और कहता था कि प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए उसे 50 लाख रुपए देगा। उत्सव द्वारा दिए हलफनामे की मानें तो अजय क्लाइंट नहीं था, लेकिन कौन था ये भी नहीं पता चल पाया।

वहीं इंदिरा जयसिंह (वरिष्ठ वकील) ने कोर्ट को दी अपनी दलीलों में कहा कि यौन उत्पीड़न के आरोप को नकारा गया है। उसकी जाँच अभी होनी है। लेकिन इसके साथ ही साजिश का भी मुद्दा जुड़ा हुआ है, इसलिए दोनों मामलों की जाँच एकसाथ होनी चाहिए।

इंदिरा की दलील पर अदालत ने कहा कि दोनों मामलों की जाँच हो रही है। इंदिरा जय सिंह ने पूछा कि बिना स्टिकर की गाड़ी सुप्रीम कोर्ट पार्किंग में कैसे आई? इसकी जाँच कराई जाए। साथ ही उत्सव की विश्वसनीयता की भी पड़ताल हो। गौरतलब है कि इंदिरा जयसिंह ने यह भी कहा है कि सरकार संस्थानों को कंट्रोल कर रही है। जैसे ही किसी बड़े विवाद का मामला हमारे पास आता है किताबें छपने लगती हैं। रिपोर्ट बनने लगती हैं।

बता दें कि इस मामले की सुनवाई न्यायाधीश अरुण मिश्रा, न्यायाधीश आर एफ नरिमन और न्यायाधीश दीपक गुप्ता की पीठ कर रही थी। एनडीटीवी इंडिया में छपी खबर के अनुसार अरूण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की इस विशेष पीठ ने कहा कि शीर्ष न्यायालय की पीठ में ‘फिक्सिंग’ के बारे में अधिवक्ता उत्सव सिंह बैंस द्वारा दाखिल हलफनामे में लगाए गए आरोप और कुछ नामों का खुलासा बहुत ही गंभीर पहलू है।

पीठ ने कहा, “यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि अदालत को पाक-साफ रखा जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि इस तरह के आरोपों से इस संस्था की छवि धूमिल ना हो…”

मामले में जाँच का आश्वासन देते हुए पीठ ने कहा, “हम जाँच करेंगे और फिक्सरों के सक्रिय होने और न्यायपालिका के साथ हेराफेरी करने के कथित दावों की तह तक जाएँगे। यदि वे अपना काम करते रहे तो हममें से कोई भी नहीं बचेगा। इस व्यवस्था में ‘फिक्सिंग’ की कोई भूमिका नहीं है। हम इसकी जाँच करेंगे और इसे अंतिम निष्कर्ष तक ले जाएँगे।”

Faking News का Fact Check कर के दे रहा है ‘दी लल्लनटॉप’ मारक मजा, पाठकों ने गरिया दिया

मम्मी कसम खाकर मारक मजा देने की गेरेंटी देने वाला कथित समाचार पोर्टल ‘दी लल्लनटॉप’ हर आए दिन पत्रकारिता में नए कीर्तिमान रचते हुए नजर आता है। हिटलर के लिंग की नाप-छाप का ब्यौरा 21वीं सदी में देने वाला यह खोजी पत्रकारों का गिरोह आज तब चर्चा में आ गया जब इसने ‘Faking news’ नामक प्रैंक वेबसाइट की एक खबर का फैक्ट चेक कर डाला। जब सम्पादकीय नीतियों में खुला ध्येय वाक्य ‘बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा’ जैसी टैगलाइन हो, तो इस तरह के प्रोपेगैंडा बनाकर बेचना सामान्य-सी बात नजर आती है।

सामान्य से भी निम्न श्रेणी मानसिक क्षमता का व्यक्ति भी शायद ही कोई ऐसा होगा जो Faking News की वेबसाइट पर खुद जाकर, उस पर प्रकाशित खबर को खुद ही फेक (फर्जी) घोषित कर के, खुद ही उसका फैक्ट चेक कर लोगों के बीच लाकर उसे सनसनी बना सके। लेकिन सम्पादक के अंतिम निर्णय को भी इस मामले में नजरअंदाज करना मुश्किल है।

हेडलाइन में ‘यादव’ होना तो नहीं है वजह?

दी लल्लनटॉप ने Faking News की खबर को फैक्ट चेक यानी, उसकी सच्चाई लोगों के सामने लाने का ‘प्रयास’ किया है। इसमें लिखा गया है, “मोदीजी के इशारे पर हो रही है IPL में यादव बॉलरों की पिटाई!” – अखिलेश यादव।”

सामान्य-सी बात है कि सोशल मीडिया यूज़र्स ने इस खबर को हास्य के लिए व्हाट्सएप्प, फेसबुक से लेकर ग्रुप और आपस में शेयर किया। लेकिन दी लल्लनटॉप ने इसमें जातिगत नजरिया तलाश कर फ़ौरन लपक लिया और इसके सम्पादक ने आम चुनावों के बीच में इस खबर को प्रकाशित करने का निर्णय लिया। इंडिया टुडे समूह के इस समाचार वेबसाइट ने अपने पाठकों को मारक मजा देने की मम्मी कसम खाई है। हो सकता है, इसी कारण अपने दैनिक ‘कट्टर पाठकों’ की सोचने की क्षमता को भाँपते हुए ही उन्होंने इस रिपोर्ट  समझाने का एक प्रयास किया हो।

ये भी याद दिला दें कि इसी मीडिया गिरोह ने विगत वर्ष होली के त्यौहार पर लड़कों द्वारा कंडोम में वीर्य भरकर लड़कियों पर मारने की झूठी घटना को हवा देने का काम किया था। यहाँ तक कि इस खबर की गलत होने पुष्टि हो जाने के बाद भी दी लल्लनटॉप ने इस वर्ष भी होली के दिन ही इस खबर को दोबारा प्रकाशित किया था ताकि हिन्दुओं की आस्था पर प्रहार करने का इनका एजेंडा साँस लेता रहे। आज जब ऐसे मीडिया गिरोह ‘फैक्ट चेक’ जैसे ट्रेंड्स को भुनाने के लिए फर्जी ख़बरों को बेनकाब करने का दावा करते हैं तो ये अपने आप में एक व्यंग्य हो जाता है।

सबसे ज्यादा हास्यास्पद बात यह है कि इस खबर के नीचे दी लल्लनटॉप के पाठकों ने ही सम्पादक को ये बताने की कोशिश की है कि ये Faking News है और कम से कम उन्हें, यानी पाठकों को, यह बात अच्छे से पता है।

सामाजिक चिंतन के नाम पर ‘गंदी बात’ जैसे कॉलम के माध्यम से अपने पुराने और बेहद अप्रासंगिक लेखों को अपने कट्टर पाठकों को मजा देने के लिए बार-बार पढ़ाने में इस मीडिया गिरोह के सम्पादक शायद इतने व्यस्त रहे हैं कि उन्हें यह तक जानने की फुरसत नहीं हो पाती है कि वो Faking News के तात्पर्य को जान सकें।

बेहद रोचक कैप्शन के साथ ‘अबोध सम्पादक’ ने लिखा है कि ये खबर किसी न्यूज़ पोर्टल के स्क्रीन शॉट सी दिखती है
Faking News वेबसाइट पर जाकर खुद लाया है ‘क्रांतिकारी पोर्टल’ फैक्ट चेक का ‘कच्चा माल’, इनाम तो बनता है बॉस !

दी लल्लनटॉप को उनके पाठकों ने ही ‘मारक राय’ देकर ले लिए मारक मजे

लल्लनटॉप नामक इस मीडिया गिरोह के पाठकों में ये खबर देखकर उल्टे मजे लेते हुए प्रतिक्रिया देते हुए लिखा है, “लल्लनटॉप को बस अपनी दुकान चलाने से मतलब है, इसके लिए चाहे फेक न्यूज़ का ही फैक्ट चेक क्यों ना करना पड़े।”

वहीं लल्लनटॉप द्वारा अपने पाठकों को हल्के में लेने से नाराज कुछ पाठकों ने अपना रोष प्रकट करते हुए लिखा है, “हमने लल्लनटॉप पर विश्वास किया, लेकिन तूने हमें बेवकूफ समझ रखा है क्या एडमिन? हमको पता है कि यह झूठी न्यूज़ है, तुमको नहीं मालूम खाली।”

कुछ अन्य निराश पाठकों की ‘मारक राय’

MEME और Faking News का फैक्ट चेक करना AltNews से सीख रहे हैं मीडिया गिरोह

‘वायरल’ और व्हाट्सएप्प पर घूमने वाली फर्जी ख़बरों की प्रमाणिकता का दावा कर चर्चा में आई Pro Congress प्रोपेगैंडा वेबसाइट Altnews ने पत्रकारिता में यह नई कला विकसित की है। ट्रैफिक, TRP और चर्चा के लिए जूझते हुए ये समाचार पोर्टल्स सस्ती लोकप्रियता के लिए इस प्रकार के हथकंडे अपनाते हैं। लेकिन, पाठक होने के नाते यह हमें जानना चाहिए कि यह समाचार और पत्रकारिता के मानकों की खुली हत्या है।

हो सकता है कि अपने ‘कट्टर पाठकों’ को बेवकूफ समझने का इन मीडिया गिरोहों का ये नया तरीका फिलहाल इन्हें खूब लोकप्रियता दे भी रहा हो, लेकिन हमें समझना आना चाहिए कि ऐसा ये सिर्फ अपने पाठक वर्ग की क्षमताओं को ही कमतर आँकते हुए कर रहे हैं।

हमारी राय

मारक मजा देने का कच्चा सामान यदि दी लल्लनटॉप नहीं जुटा पा रहा है तो उसे Faking News की ही कुछ अन्य ख़बरों का फैक्ट चेक कर लेना चाहिए। जैसे कि सनी पाजी का हाथ ढाई किलो का वाकई में है या नहीं?

इस खबर का फैक्ट चेक तो बनता है बॉस , वैसे भी तारा पाजी का हाथ अब भाजपा के साथ है

हास्य-व्यंग्य और ‘गड़बड़ समाचार’ बनाने के लिए फेमस है Faking News

फ़ेकिंग न्यूज़ एक हास्य-व्यंग्य लिखने वाली वेबसाइट है, जिसका उद्देश्य मात्र समसामयिक घटनाओं के आधार बनाकर व्यंग्य करना है। ऐसा पहली बार नहीं है, जब मेनस्ट्रीम मीडिया ने Faking News की ख़बरों को सच मानकर अपनी वेबसाइट पर प्रकशित किया हो।

मुलायम का प्यारा ‘राक्षस’ जिससे डरते थे जेल और जज भी, कहानी ‘188 केस वाले’ अतीक अहमद की

उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य रहा है, जहाँ मुख़्तार अंसारी, राजा भैया, अमरमणि त्रिपाठी जैसे कई ऐसे ‘गुंडे’ हुए हैं जिन्हें बाहुबली का नाम देकर न सिर्फ़ मीडिया बल्कि राजनीति के एक धड़े ने भी इनका महिमामंडन किया। ऐसा ही एक नाम है अतीक अहमद का। अतीक अहमद मुलायम सिंह यादव के ज़माने में उनके ख़ास रहे थे। जब यूपी में मुलायम-माया मुख्यमंत्री बना करते थे, तो उसके पीछे ऐसे कई आपराधिक पृष्ठभूमि से आने वाले नेताओं का हाथ होता था। इन्हें पार्टी में न सिर्फ़ रखा जाता था बल्कि प्रशासन को भी इन पर कार्रवाई करने से रोक दिया जाता था। ये अपराधी बनते, उसके बाद नेता बनते और फिर सरकार में भी शामिल होते। योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद यूपी के अपराधियों में जो ख़ौफ़ है, ऐसा वहाँ पहली बार हो रहा है। सपा-बसपा द्वारा लगातार गुंडों को संरक्षण दिए जाने के कारण तंग जनता ने योगी सरकार के आने के बाद हुए चुनाव में अतीक अहमद को ऐसा मज़ा चखाया कि उसके सारे स्वप्न टूट गए।

अतीक अहमद देखने से ही खूँखार लगता है। जिस भी जेल में जाता है, वो जेल उसे रखना नहीं चाहता। वो जेल से ही आपराधिक धंधे शुरू कर देता है। उसके गुर्गे कभी भी, कहीं भी कोहराम मचाने के लिए तैयार रहते हैं। वो जेल में हो या बाहर, उसका सन्देश उसके गुर्गों तक पहुँच ही जाता है। उस पर नज़र रखने वाले पुलिसकर्मी कहते हैं कि उसका भयावह चेहरा, क़द-काठी और अंदाज़ ऐसा है कि किसी को भी असहज महसूस होने लगे। उसकी आँखें ऐसी हैं कि शायद ही कोई उससे नज़रें मिला कर बात करता हो। वह ख़ुद को मुस्लिमों का रहनुमा मानता है। देवरिया जेल में जब उसे संभालना मुश्किल हो गया तब उसे बरेली स्थित जेल में भेज दिया गया। वहाँ इसके पहुँचते ही अतिरिक्त सुरक्षा की व्यवस्था की गई और पुलिसकर्मियों की संख्या भी बढ़ा दी गई। लेकिन सब बेकार। अब आपको बताते हैं कि उसके बरेली जेल में शिफ्ट होने से पहले क्या हुआ था?

सपा मुखिया रहे मुलायम सिंह यादव के साथ अतीक अहमद

बरेली के व्यापारी मोहित जायसवाल ने कृष्णा नगर पुलिस स्टेशन में एक एफआईआर दर्ज कराई। इसमें उन्होंने अपने साथ हुए अन्याय का ज़िक्र किया। मोहित ने बताया कि उन्हें अतीक अहमद के गुर्गे टांग कर ले गए और पिटाई की। अतीक अहमद और उसके बेटे उमर अहमद के सामने उन्हें मारा-पीटा गया। ये सब और कहीं नहीं बल्कि देवरिया जेल के भीतर हुआ। अहमद ने मोहित के पाँच व्यापार जबरन अपने नाम करा लिए। इसकी क़ीमत 45 करोड़ रुपए आँकी गई है। अगर जेल में रहने वाले अतीक से जब एक करोड़पति व्यापारी सुरक्षित नहीं है सोचिए उसके चरम दिनों में आम जनता की क्या हालत होती होगी? इतना ही नहीं, मोहित के फॉर्च्यूनर कार को भी लूट लिया गया। अतीक ने मोहित से 2 वर्ष पहले भी कई लाख रुपए जबरन वसूले थे। वो पिछले 4 महीनों से उनसे और रुपयों की माँग कर रहा था। उसने जेल में ही क़ानून को धता बताते हुए मोहित के दाहिने हाथ की दो उँगलियाँ तुड़वा डाली थीं।

मोहित के अलावा एक अन्य व्यापारी ने भी उस पर प्रताड़ना का आरोप लगाया था। प्रयागराज के व्यापारी मोहम्मद ज़ाएद ख़ालिद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पुलिस प्रशासन को पत्र लिखकर बताया कि उसे अतीक अहमद के दर्जन भर गुंडे जबरन टांग कर देवरिया जेल ले गए। वहाँ अतीक ने उससे गाली-गलौज किया और विष्णुपुर में उसके किसी ज़मीन को अपने आदमी के नाम ट्रांसफर करने को कहा। जब ये सब किया जा रहा था तब जाएद की मदद के लिए जेल का कोई भी अधिकारी या पुलिसकर्मी नहीं आया। अब आप ज़रूर सोच रहे होंगे कि देवरिया जेल सचमुच में जेल है या फिर कोई कबाड़खाना जहाँ अतीक जब जिसे मन करे, किसी को भी उठवा कर मँगा लेता है। ऐसा आपने फ़िल्मों में देखा होगा जहाँ अपराधी-राजनीति का नेक्सस जो चाहे वो कर सकता है। अतीक अहमद का भी कुछ ऐसा ही मामला है। राजनीतिक गलियारों में उसकी पहुँच यूँ ही नहीं है। आइए उसके आपराधिक इतिहास से पहले उसके राजनीतिक इतिहास की बात करते हैं क्योंकि ऐसे लोगों को कौन संरक्षण देते हैं, ये जानना ज्यादा ज़रूरी है।

अतीक अहमद पहली बार इलाहाबाद पश्चिम से 1989 में जीत कर विधानसभा पहुँचा। उसे 25,000 (33%) से अधिक वोट मिले थे। 1991 में इलाहाबाद पश्चिम से अतीक अहमद ने अपना दूसरा चुनाव लड़ा। 51% मत पाकर उसने भारी जीत दर्ज की। उसे इस चुनाव में 36,000 से अधिक वोट मिले थे। 1993 के विधानसभा चुनाव में उसे 56,000 मत मिले और उसे मिला मत प्रतिशत 49% रहा। 1996 में न सिर्फ़ उसे मिलने वाले मतों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ बल्कि मत प्रतिशत भी बढ़ गया। उसे कुल मतों का 53% यानी 73,000 के क़रीब वोट मिले। 2002 में उसे मिलने वाले मत और मत प्रतिशत में भारी कमी दर्ज की गई और ये उसके दूसरे चुनाव में मिले मतों के आसपास ही रहा लेकिन फिर भी वो जीत दर्ज करने में कामयाब रहा। इस तरह उसने इलाहबाद पश्चिम को पाँच बार जीता।

देखने से ही खूँखार लगता है अतीक अहमद

पहले तीन चुनाव उसने निर्दलीय लड़ा। 1996 में मुलायम सिंह यादव के क़रीब आने के बाद उसने सपा के टिकट पर चुनाव जीता था। इसी तरह 2002 में उसने अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल का विश्वस्त बन कर इसके टिकट पर चुनाव जीता। वो अपना दल का अध्यक्ष भी रहा। अब आपको राजू पाल के बारे में जानना ज़रूरी है। 2004 में अतीक अहमद के फूलपुर से सपा के टिकट पर सांसद बन जाने के बाद इलाहाबाद पश्चिम में हुए उपचुनाव में उन्होंने अतीक के भाई अशरफ को हरा दिया था।गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने जाते समय उनकी दिन-दहाड़े हत्या कर दी गई। हत्या का आरोप अतीक अहमद पर लगा। बाद में जब जब अतीक को सपा से निकाला गया तब बसपा ने उसे टिकट नहीं दिया क्योंकि मायावती अपने विधायक की हत्या वाली बात भूली नहीं थी। राजू पाल की हत्या के बाद हुए उपचुनाव में अतीक के भाई ने फिर से चुनाव लड़ा। 2004 में उसने समाजवादी पार्टी के टिकट पर ही फूलपुर से लोकसभा चुनाव जीता था।

अब बात करते हैं अतीक के आपराधिक इतिहास की। जब किसी पर कोई केस दर्ज होता है और उसे अदालतों, थानों व जेल के चक्कर लगाने पड़ते हैं तो यह उसके लिए परेशानी वाली बात होती है लेकिन अतीक अहमद के मामले में ऐसा नहीं है। उसे अपने ऊपर चल रहे मामलों पर गर्व है। वह इसके बारे में छाती चौड़ी कर ढोल पीटता है। 2014 में सपा उम्मीदवार के रूप में उसने दावा किया था कि उसके ऊपर 188 मामले चल रहे हैं और उसने अपनी आधी ज़िंदगी जेल में व्यतीत की है, जिस पर उसे गर्व है। सीना तान कर उसने कहा था कि वह अपने समर्थकों के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, चाहे उसके जो भी परिणाम हों। ये सोचा जा सकता है कि जिस प्रदेश में नेताओं को अपने आपराधिक पृष्ठभूमि पर गर्व हो और 188 मामलों का आरोपित (उसी के शब्दों में) खुले साँढ़ की तरह घूमे, वहाँ क़ानून व्यवस्था की क्या हालत होगी? ये सपा-बसपा का उत्तर प्रदेश था।

अतीक अहमद पर तभी हत्या का आरोप लग गया था, जब वो सिर्फ़ 17 वर्षों का था। इसके बाद उसने अपराध की दुनिया में ऐसा नाम बनाया कि मुंबई के अंडरवर्ल्ड डॉन भी उसके सामने फीके पड़ जाएँ! 2016 में कृषि विश्वविद्यालय (SHUATS) के कर्मचारियों की उसने बुरी तरह पिटाई की थी। इस घटना के बाद अखिलेश सरकार की ख़ूब भद्द पिटी थी। कर्मचारियों को पीटते हुए उसका वीडियो भी वायरल हो गया था। अभी आपने देखा कि कैसे यूपी के जेल और अधिकारी उससे डरते हैं। जब किसी को न्याय चाहिए होता है तो अदालत उसके लिए आख़िरी दरवाजा होता है लेकिन ऐसे व्यक्ति का क्या किया जाए जिसका केस सुनने से अदालत भी इनकार कर देती है। जब उसने ज़मानत के लिए आवेदन दिया था तब एक-एक कर 10 जजों ने उसका केस सुनने से मना कर दिया था। 11वें जज ने आख़िर में उसका केस उठाया और उसे ज़मानत मिली

जिसे अपने ऊपर चले रहे मामलों पर गर्व हो, जिस व्यक्ति का केस हाईकोर्ट के जज भी सुनने से इनकार कर देते हों, जिसे सपा जैसी राजनीतिक पार्टी का संरक्षण प्राप्त हो (पूर्व में), जिस पर नज़र रखने वाले पुलिसकर्मी भी डर जाएँ और जिसे कोई जेल अपने परिसर में नहीं रखना चाहता हो, ऐसे व्यक्ति के लिए कौन सा विशेषण प्रयोग किया जा सकता है? जिस इलाहबाद कोर्ट ने कभी इंदिरा गाँधी तक की चुनावी जीत को रद्द कर दिया था, वही कोर्ट अतीक अहमद के मामले में नहीं पड़ना चाहता। इससे समझा जा सकता है कि अतीक का क्या प्रभाव है! आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कड़ा रुख अपनाया है। सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने न सिर्फ़ उसे गुजरात के जेल में हस्तांतरित करने को कहा है बल्कि सीबीआई से जाँच कराने का भी निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद उसे गुजरात ले जाया जाएगा।

ये सोचने वाली बात है कि कारोबारियों को जेल बुला-बुला कर पीटा जाए, जेल में उसके बैरक में उसके गुर्गों सहित सगे-सम्बन्धी मौजूद हों और उसके मामलों में कोई अधिकारी दखल देने की भी हिम्मत न करे! इसमें जेल अधिकारियों की भी अच्छी-ख़ासी संलिप्तता सामने आई है और उन पर विभागीय कार्रवाई की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को उस पर चल रहे 26 मामलों के अलावा 80 अन्य मामलों में भी रिपोर्ट पेश करने का निर्देश कियाअदालत में इस बात का भी ज़िक्र किया गया कि उस पर 102 मामले अब तक दर्ज किए जा चुके हैं। अतीक अहमद के भाइयों पर भी कई मामले दर्ज हैं और उसके परिवार, गुर्गों व सगे-सम्बन्धियों पर चल रहे आपराधिक मामलों को मिला दें तो संभव है कि आपराधिक मामलों की संख्या उस आँकड़े को भी पार कर जाए, जैसा उसने दावा किया था।

हमने यूपी-बिहार व अन्य राज्यों का ट्रेंड देखा है कि कैसे आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग राजनीति में आने के बाद सार्वजनिक जीवन में स्वच्छ दिखने के लिए अपराध से दूरी बना लेते हैं। ऐसे कई राजनेता हुए हैं जिन पर कई मामले दर्ज थे लेकिन बाद में उन्होंने अपराध से किनारा कर लिया और नेतागिरी एवं उद्योगपति के रूप में उन्होंने कार्य करना शुरू कर दिया। अतीक अहमद के मामले में ऐसा नहीं है। उसने 6 बार चुनाव जीतने के बावजूद आपराधिक जगत में व्यक्तिगत रूप से दबदबा जारी रखा। वो चुनाव लड़ता गया, समय बदलता गया लेकिन उस पर दर्ज होनेवाले आपराधिक मामलों में कोई कमी नहीं आई। इसे लोकतंत्र की धज्जियाँ उड़ाना ही कहेंगे जहाँ एक व्यक्ति राजनीति में धमक रखता है, न्यायपालिका को मज़बूर कर देता है, अपराध की दुनिया में बादशाहत हासिल करता है, पुलिस प्रशासन उसे संभाल नहीं पाती और मीडिया उसके संरक्षकों से सवाल नहीं पूछती।

भारत में ऐसे लोग चुनाव भी काफ़ी आसानी से जीत जाते हैं और न सिर्फ़ जीतते हैं बल्कि वे अच्छे से जीतते हैं। एक अच्छी बात यह है कि 2004 में सांसद बनने के बाद उसने जो भी चुनाव लड़ा, उन सब में उसे हार मिली। 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में भी उसे हार मिली। जनता को भी इस बारे में सोचने की ज़रूरत है क्योंकि जनता के लिए स्थापित सारी संवैधानिक संस्थाएँ जनता के वोटों से ही जीतने वाले व्यक्तियों के समाने असहज और निःसहाय महसूस करती हैं। जब उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में इस व्यक्ति का प्रभाव इतना है, तो जरा सोचिए कि उस दौरान क्या होता होगा, जब न सिर्फ़ यह सांसद था बल्कि जिस पार्टी का सांसद था, उसके लिए मुस्लिम वोट जुटाने का कार्य भी करता था। अब लगातार चुनावों में हुई उसकी हार के बाद साफ़ हो गया है कि लोग डर के मारे ही उसे वोट किया करते थे। तभी तो मुख़्तार अंसारी हो या अतीक अहमद, 2014 के बाद से इनका राजनीतिक करियर ढलान पर है।

7 दिन में 18 छात्रों ने की खुदकुशी: निजी कंपनी की गलती ने किया 3.28 लाख छात्रों को फेल

बोर्ड की परीक्षा छात्र जीवन में सबसे महत्वपूर्ण परीक्षाओं में से एक होती है। हर बच्चा चाहता है कि वह अपनी बोर्ड परीक्षा में अच्छे से अच्छे अंक प्राप्त करे और सुनहरे भविष्य की ओर अग्रसर हो। लेकिन क्या हो अगर बच्चों को उनकी कड़ी मेहनत का परिणाम फेल होकर मिले? तेलंगाना में कुछ ऐसा ही हुआ है। जहाँ बोर्ड की परीक्षा में बैठे 9.74 लाख बच्चों में से 3.28 लाख छात्रों को फेल कर दिया गया।

18 अप्रैल को तेलंगाना बोर्ड ऑफ इंटरमीडिएट एजुकेशन (टीएसबीआईई) ने 11वीं और 12वीं के परीक्षा परिणामों की घोषणा की थी। जिसके बाद से अब तक फेल हुए 18 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। छात्र समूहों और अभिभावकों के विरोध-प्रदर्शन के बाद बुधवार (अप्रैल 24, 2019) को राज्य सरकार ने उन 3.28 लाख बच्चों की उत्तर-पुस्तिकाएँ दोबारा से जाँचने का आदेश दिया।

जानकारी के अनुसार, तेलंगाना की सरकार ने परीक्षा नामांकन और परिणामों की प्रक्रिया का कॉन्ट्रैक्ट एक प्राइवेट कंपनी (Globarena Technologie) को दिया था। जिसकी तकनीकी गलतियों के कारण छात्रों को फेल कर दिया गया या फिर उन्हें परीक्षा में उपस्थित होने के बावजूद भी अनुपस्थित दिखाया गया।

इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक, जिन छात्रों ने फेल होने के बाद खुदकुशी की है, उनमें से एक नाम जी नागेंन्द्र का भी है। नागेंद्र ने परीक्षा परिणाम देखने के बाद अपने घर में फाँसी लगा ली। नागेंन्द्र गणित में फेल हो गया था, जबकि गणित उसका पसंदीदा विषय था। दूसरी ओर वेनेल्ला नामक छात्र ने 18 अप्रैल को कीटनाशक खाकर आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसे दो विषयों में फेल कर दिया गया था।

तेलंगाना पेरेंट्स असोसिएशन के अध्यक्ष एन नारायण का कहना है कि उत्तर-पुस्तिका की मूल्याँकन प्रणाली में तकनीकी गड़बड़ी होने के कारण मेधावी छात्रों को कुछ विषयों में 5 से 10 अंक भी मिले हैं और परीक्षा में सैकड़ों छात्रों के उपस्थित होने के बावजूद उन्हें अनुपस्थित दिखाया गया।

शर्मनाक बात यह है कि जब परीक्षा के परिणाम घोषित हुए तो निजी कंपनी ने तकनीकी गड़बड़ी वाली बात को स्वीकार किया था, लेकिन बाद में कहा गया कि गड़बड़ी में सुधार कर लिया गया। पर अब ऐसा लगता है जैसे पूरी मूल्याँकन प्रक्रिया में ही गड़बड़ी हुई है। इसके कारण सुनहरे भविष्य की कल्पना करने वाले छात्रों ने खुद को अंधकार के हवाले कर दिया।

निजी कंपनी की हुई इस गलती पर विशुवर्धन नामक अभिभावक ने कहा, “जो छात्र ग्याहरवीं कक्षा में 95 प्रतिशत अंक लाए, वो बाहरवीं कक्षा में फेल कर दिए गए। अगर यह बच्चे पिछले साल कम अंक लाए होते तो बात समझ में आती है, लेकिन इन मेधावी छात्रों के एक से अधिक विषयों में फेल हो जाने की स्थिति कई सवाल खड़े करती है।”

बता दें कि बुधवार को अभिभावकों और छात्रों के विरोध प्रदर्शन ने उस समय ज़ोर पकड़ा जब जी नव्या (G Navya) नाम की एक छात्रा को तेलगू विषय में शून्य अंक प्राप्त हुए, लेकिन जब दोबारा मूल्याँकन किया गया तो उस छात्रा ने 99 अंक प्राप्त किए।

इस तरह की तकनीकी गलतियों के शिकार जब नव्या जैसे प्रतिभाशाली छात्र होते हैं तो इसे उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ न कहा जाए तो और क्या कहा जाए। वो 18 छात्र जिन्होंने ख़ुदकुशी जैसा क़दम उठाया उनकी मानसिक स्थिति का तो अंदाज़ा लगाना भी असंभव है। इसलिए प्रशासन को इस तरह की तकनीकी गड़बड़ियों को समय रहते देख लेना चाहिए जिससे छात्रों के भविष्य को संवारने के मायने सही अर्थों में सार्थक हो सकें।

सलमान खुर्शीद ने दी धमकी, कहा सुप्रीम कोर्ट के सामने FIR की धज्जियाँ उड़ा देंगे

लोकसभा चुनाव 2019 में ज़ुबानी जंग की रफ़्तार लगातार आगे बढ़ती जा रही है। विवादित बयान देने में पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद का नाम भी जुड़ चुका है। उनके एक के बाद एक आपत्तिजनक बयान उनकी मानसिकता को उजागर करने का काम कर रहे हैं। इस बार उन्होंने बीजेपी के ख़िलाफ़ कड़ा रुख़ अपनाते हुए FIR और सुप्रीम कोर्ट को लेकर आपत्तिजनक बयान दे डाला।

ख़बर के अनुसार, सलमान खुर्शीद ने कहा कि बीजेपी डरी हुई है और वो FIR करवा रही है। उन्होंने FIR करवाने वालों को चुनौती देते हुए कहा कि वो प्रेस को बुलाकर उसकी धज्जियाँ उड़ा देंगे। खुर्शीद इतने पर ही नहीं रुके, इसके आगे उन्होंने कहा कि वो सुप्रीम कोर्ट के सामने उस FIR के टुकड़े कर देंगे।

दरअसल, उनके ऊपर एक आपत्तिजनक बयान को लेकर ही की गई थी। उन्होंने ख़ुद को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ‘बाप’ बताया था और योगी को ‘एक नकारा’ बेटा कहा था। इस बयान की कड़ी निंदा करते हुए विश्व हिन्दू महासंघ के कार्यकर्ताओं ने फ़र्रुख़ाबाद पुलिस स्टेशन में शिक़ायत दर्ज की थी। इसके अलावा खुर्शीद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर गायों को खिलाए जाने वाले चारे में भी गड़बड़ी करने का आरोप भी लगाया था। बता दें कि सलमान खुर्शीद फ़र्रुख़ाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।

इससे पहले वो पीएम मोदी पर भी निशाना साध चुके हैं। उन्होंने कहा था, “मैं ऐलान करता हूँ कि मोदी से मेरी लड़ाई में जो मेरे सामने आएगा और मुझे रोकने की कोशिश करेगा वो गठबंधन का नाम ले या हाथी का नाम ले, मैं उसको वार करके चूर-चूर कर दूँगा।” इसके अलावा खुर्शीद ने कहा कि बीजेपी सिर्फ़ जुमलों के माध्यम से वोट की फसल काटने में जुटी हुई है। किसानों और युवाओं का हवाला देकर खुर्शीद ने पीएम मोदी को जमकर खरी-खोटी सुनाई थी।


Fact Check: साध्वी प्रज्ञा को बदनाम करने के लिए वायरल हो रही RSS की फर्जी चिट्ठी, MediaVigil का षड्यंत्र

चुनाव के मौसम में फर्जी खबर परोसने का धंधा ज़ोरों पर है। इसी क्रम में मीडिया विजिल वेबसाइट पर एक पत्र प्रकाशित किया गया जिसके बारे में यह कहा जा रहा है कि इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी ने लिखा है। यह पत्र सोशल मीडिया में भी वायरल हो रहा है। वायरल हो रहे पत्र में दावा किया गया है कि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को प्रत्याशी बनाए जाने के कारण संघ भाजपा से नाराज़ है। पत्र में 20 अप्रैल की तारीख पड़ी हुई है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम बड़े अक्षरों में लिखा है जिससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इसे आरएसएस के आधिकारिक लेटर हेड पर लिखा गया है।

वायरल हो रहे इस पत्र में लिखा है, “भोपाल की महिला प्रत्‍याशी के शहादत के खिलाफ अनावश्‍यक बयानबाजी से पुलवामा हमले से जो राजनीतिक लाभ निर्मित की गई थी वो अब समाप्‍त हो चुकी है इसलिए समय रहते ही प्रत्‍याशी बदलना उपयुक्‍त होगा।”

इसका अर्थ यह निकाला जा रहा है कि सुरेश सोनी भाजपा से कह रहे हैं कि भोपाल से भाजपा की प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को बदल कर कोई दूसरा प्रत्याशी चुनाव में उतारा जाए। पत्र और उसमें लिखी सामग्री प्रामाणिक है या नहीं इसकी जाँच करने के लिए हमने संघ की आधिकारिक वेबसाइट खंगाली तो वहाँ सुरेश सोनी द्वारा लिखित ऐसा कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ। इसके अलावा संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नरेंद्र कुमार ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी कि वायरल हो रहा पत्र फर्जी है।

मीडिया विजिल वेबसाइट ने उस पत्र को लेकर जो स्टोरी लिखी है उसमें नीचे लिख दिया है कि ‘मीडियाविजिल सूत्र से प्राप्‍त हुए इस पत्र की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं करता है’ लेकिन प्रश्न यह उठता है कि जब उस पत्र की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं की जा सकती तो मीडिया विजिल ने बिना पत्र की सच्चाई जाने एक भड़कीली और भ्रामक हेडलाइन के साथ स्टोरी किस आधार पर बना दी?

जब संघ के एक अधिकारी ने स्वयं ट्वीट कर जानकारी दी है कि वायरल हो रहा पत्र फेक है तब भी मीडिया विजिल ने उस पत्र के ज़रिए एक भ्रामक खबर फैलाने का काम किया।

तृणमूल कॉन्ग्रेस बांग्लादेश में कर रही है चुनाव प्रचार, फेसबुक पर जारी है वोटों की अपील

ममता सरकार का विवादों से गहरा नाता है, जिसे निभाने में वो कोई कोर-कसर नहीं छोड़ती। ऐसा ही एक और विवाद वीडियो के रूप में सामने आया है।


इस वीडियो में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली TMC (तृणमूल कॉन्ग्रेस) के आधिकारिक फेसबुक पेज पर सूचना और विज्ञापनों पर जब क्लिक किया जाता है, तो आप उन देशों को देख सकते हैं जहाँ TMC लोकसभा चुनाव में वोट देने की अपील कर रही है। ड्रॉप-डाउन वाले विकल्प पर क्लिक करने पर जब एक देश के रूप में ‘बांग्लादेश’ का चयन किया जाता है तो वहाँ TMC अपने पक्ष में वोट माँगने की अपील करती नज़र आ रही है। इससे साफ़ पता चलता है कि TMC अपने देश के अलावा दूसरे देश में भी प्रचार कर रही है। भारत में प्रचार करना तो समझ में आता है, लेकिन पड़ोसी देश बांग्लादेश में प्रचार करने का भला क्या मतलब हो सकता है?

जानकारी के मुताबिक, ममता की TMC फेसबुक पर ऐसे 13 विज्ञापन चला रही है, जिसमें एक विज्ञापन ऐसा भी शामिल है जिसमें ममता, कृष्णानगर लोकसभा क्षेत्र में लोगों से अपील कर रहीं हैं कि वे चुनावों में TMC को वोट दें। ममता फेसबुक के ज़रिए बांग्लादेश में वोट की अपील क्यों कर रही हैं, इसके पीछे क्या कारण है यह कोई नहीं जानता। यह सर्वविदित है कि भारतीय चुनावों में केवल भारतीय नागरिक ही वोट कर सकते हैं।

बांग्लादेश में वोट की अपील करने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को सोशल मीडिया पर यूज़र्स ने आईना दिखाने का काम किया।

बांग्लादेश में वोट की अपील करने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को सोशल मीडिया पर यूज़र्स ने आईना दिखाने का काम किया। इस बात की पुष्टि करने के लिए ऑपइंडिया ने जब उनसे सम्पर्क साधा, तो जवाब मिला कि तृणमूल बांग्लादेश में ऐसा कोई विज्ञापन नहीं कर रही है।

यह पहली बार नहीं है कि ममता ने पड़ोसी देश बांग्लादेश में वोट की अपील की हो। इस महीने की शुरुआत में, दो बांग्लादेशी अभिनेताओं को पश्चिम बंगाल में ममता की TMC के लिए प्रचार करते हुए पाया गया था। बांग्लादेशी अभिनेता फिरदौस अहमद और गाज़ी अदबुन नूर बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में TMC के लिए प्रचार कर रहे थे। जबकि फिरदौस के वीज़ा को विदेश मंत्रालय द्वारा ब्लैकलिस्ट किया गया था। बाद में पता चला था कि अदबुन नूर के वीज़ा की अवधि भी समाप्त हो चुकी थी।

पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश के साथ एक ऐसी अंतरराष्ट्रीय सीमा शेयर करता है जिसके ज़रिए बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ होती है, जो भारत की सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है। ममता बनर्जी के पास क्या अपने देश में वोट की अपील करने के लिए कोई मुद्दा ही नहीं है, जो बांग्लादेश में वोट की अपील कर वह अपनी राजनीति के गिरते स्तर की नुमाइश कर रहीं हैं?


Fake News: मुस्लिम आतंकियों को बचाने और बौद्धों को दोषी ठहराने के लिए कॉन्ग्रेस समर्थकों ने लगाया जोर

जैसा कि हमने एक लेख में बताया था, कुछ वामपंथी और लिबरल किस्म के लोग श्री लंका हमलों के बाद सिर्फ़ इसीलिए सक्रिय हो गए क्योंकि उन्हें इन हमलों के पीछे किसी तरह बौद्धों का हाथ साबित करना था। अगर घटना भारत की होती तो ये लोग ऐसे हमलों के पीछे हिन्दुओं का हाथ ढूँढ़ते लेकिन श्री लंका की घटना होने के कारण इन्होंने ज़बरन इसमें बौद्धों का हाथ होने की बात कही। इतना ही नहीं, अब इन प्रोपेगेंडाबाज़ों ने अपनी इस कोशिश को सफल बनाने के लिए फेक न्यूज़ का सहारा लिया है।

कॉन्ग्रेस समर्थक महिला ने शेयर किया फेक न्यूज़ (पोस्ट नीचे देखें)

सोशल मीडिया पर लगातार फेक न्यूज़ चलाए जा रहे हैं कि इसमें बौद्धों का हाथ है। अब जबकि श्री लंका की सरकार इस मामले के पीछे नेशनल तौहीद जमात का हाथ देख रही है और खूँखार इस्लामिक आतंकी संगठन ISIS द्वारा इस हमले की ज़िम्मेदारी लेने की ख़बर आई गई है, तब धर्मनिरपेक्षता के इन ठेकेदारों को साँप सूंघ गया।

कट्टर कॉन्ग्रेस समर्थक ने पुराने वीडियो को शेयर कर फैलाई फेक न्यूज़

अब इन्होंने ‘मुस्लिम महिलाओं के भेष में बौद्ध’ वाला नैरेटिव गढ़ा और इसे साबित करने के लिए झूठा वीडियो वायरल कर दिया। इस वीडियो को कॉन्ग्रेस समर्थकों, भाजपा के ख़िलाफ़ आग उगलने वालों और कन्हैया कुमार का गुणगान करने वालों ने ख़ूब शेयर किया। क़रीब 30 सेकेंड के इस वायरल वीडियो में बुर्क़ा पहने एक शख़्स दिखाई देता है, जिसे पुलिस ने गिरफ़्तार कर रखा है और उससे पूछताछ की जा रही है। वीडियो में बताया जा रहा है कि मुस्लिम महिला के लिबास में यह कोई बौद्ध है, जिसे श्री लंका हमलों में संलिप्तता के लिए गिरफ़्तार किया गया है।

फेसबुक और ट्विटर पर इस वीडियो को हज़ारों लोगों द्वारा शेयर किया गया। ज्ञात हो कि 21 अप्रैल को श्री लंका में हुए सीरियल बम धमाकों में अब तक क़रीब 360 लोगों के मरने की ख़बर आई है और 550 से भी अधिक लोग अभी भी घायल हैं। सरकार स्थानीय जिहादी गुट नेशनल तौहीद जमात व अन्य संदिग्ध संगठनों के सरगनाओं पर कार्रवाई कर रही है और घटना के बाद अब तक 38 लोग गिरफ़्तार किए जा चुके हैं। बीबीसी ने अपनी पड़ताल में इस वीडियो को फेक पाया लेकिन यह बताने से चूक गए कि आखिर इसे फैला कौन रहा है। इस पड़ताल में पाया गया कि इस वीडियो का श्री लंका ब्लास्ट्स या उसके बाद हुईं गिरफ्तारियों से कुछ भी लेना-देना नहीं है।

दरअसल, ये वीडियो अगस्त 2018 का है। श्री लंका के नेथ न्यूज़ ने ये वीडियो तब पोस्ट किया था, जब उक्त शख़्स को किसी कारण से पुलिस ने गिरफ़्तार किया था। नेथ न्यूज़ ने भी इस वीडियो के वायरल होने के बाद स्पष्टीकरण देते हुए साफ़ कर दिया है कि इस वीडियो का ताज़ा ब्लास्ट्स से कोई सरोकार नहीं है। ये पुरानी वीडियो है।

ऊपर दिए गए तीन सिर्फ उदाहरण मात्र हैं। फेसबुक पर ‘a buddhist dressed as a muslim woman was caught by’ इससे सर्च कीजिए। आपको अंदाजा लग जाएगा कि किस तरह से इस झूठ को फैलाया जा रहा है। कुछ पेज ऐसे भी हैं, जिसके लगभग 10 लाख फॉलोअर हैं और वहाँ से यह फेक न्यूज हजारों लोगों ने 24 घंटे के अंदर देख लिया, इसे सत्य भी मान लिया। न जाने कितने लोग फिर इसे वॉट्सऐप-वॉट्सऐप खेल रहे होंगे।