समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने भाजपा प्रत्याशी जया प्रदा की तरफ इशारा करते हुए खाकी अंडरवियर वाला बयान दिया था। इश पर क्या मीडिया, क्या सोशल मीडिया… हर तरफ उनकी थू-थू हो गई। चौतरफा निंदा से बचने के लिए सपा ‘प्रमुख’ अखिलेश की तरफ से ये कहा गया कि आजम खान ने ये बयान जया प्रदा के लिए नहीं, बल्कि अमर सिंह के लिए दिया था।
अब इस मामले पर अमर सिंह ने आजम खान पर पलटवार किया है। उन्होंने आजम खान पर भड़कते हुए कहा कि आजम खान की इतनी औकात हो गई है कि वो हमारी चड्डी के बारे में बात करेगा। उन्होंने कहा कि आजम खान न तो उनके गुरू हैं और न ही उनकी ऊँगली पकड़कर वो (अमर सिंह) रामपुर गए थे। इसके साथ ही अमर सिंह ने कहा कि रामपुर में 10 साल तक जया प्रदा सांसद थी ना कि वो। अमर सिंह इतने पर ही नहीं रूके, उन्होंने समाजवादी पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि दुष्ट लोगों की नजर में महिलाओं की कोई ईज्जत नहीं है। इस दौरान उन्होंने पार्टी संरक्षक मुलायम सिंह यादव के उस बयान का भी जिक्र किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि अच्छी आकर्षक महिला को देखकर युवाओं का मन मचल जाता है।
अमर सिंह ने कहा कि आजम पापी है, उनका संहार होगा। उन्होंने आगे कहा कि जया प्रदा उनकी छाया की तरह हैं, इसलिए आजम खान को खुजली हो रही है। वहीं, जया के प्रचार के लिए रामपुर जाने के सवाल पर अमर सिंह ने कहा कि पार्टी का हर कार्यकर्ता अमर सिंह है और वो जया प्रदा के लिए काम कर रहा है।
गौरतलब है कि आजम खान ने रामपुर में लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि उन लोगों ने 17 सालों में उनको (जया प्रदा) को नहीं पहचाना, जबकि उन्होंने केवल 17 दिन में उनकी वास्तविकता को पहचान लिया। उन्होंने कहा, “उसकी असलियत समझने में आपको 17 साल लग गए। मैं तो 17 दिन में ही पहचान गया कि इनके नीचे का जो अंडरवियर है, वो भी खाकी रंग का है।”
आजम खान के इस विवादित बयान पर चुनाव आयोग ने संज्ञान लिया और कड़ा कदम उठाते हुए आजम खान पर तीन दिन के लिए चुनाव प्रचार पर रोक लगा दी। इसके साथ ही आजम खान के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई है।
अभी अभी आई फ़िल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ को आम दर्शकों का ख़ूब प्यार मिल रहा है। जैसा कि हमने पिछले कुछ दिनों में देखा, फ़िल्म की रिलीज रोकने की हरसंभव कोशिश की गई लेकिन फ़िल्म अंततः सिनेमाघरों तक पहुँचने में कामयाब रही। तमाम विवादों के बावजूद फ़िल्म 250 स्क्रीन्स पर रिलीज होने में सफल रही और इसके साथ ही एक अलग ही खेल शुरू हुआ। ‘द ताशकंद फाइल्स’ का जब निर्माण हो रहा था, तब कुछ तथाकथित इतिहासकारों व बुद्धिजीवियों ने इसे भ्रामक, तथ्यों से भटकाने वाला और इतिहास से छेड़छाड़ बताया। जब उन्होंने जी भर खेल लिया और फ़िल्म का ट्रेलर रिलीज हुआ तो राजदीप सरदेसाई जैसे गिद्धों ने खेलना शुरू किया। फ़िल्म को प्रोपेगंडा बताने से लेकर इसकी रिलीज की टाइमिंग पर ऐसे सवाल खड़े किए गए, जैसे फ़िल्म के प्रोड्यूसर नरेंद्र मोदी ही हों।
समीक्षकों का कुटिल दुष्प्रचार, रिव्यु से किया इनकार
तमाम कुटिल खेलों के बावजूद जब फ़िल्म रिलीज हुई तो कुछ समीक्षकों ने अपना गंदा खेल शुरू कर दिया। राजा सेन जैसे तथाकथित समीक्षकों ने इस फ़िल्म की समीक्षा करने से मना कर दिया। राजा सेन जब ‘रामगोपाल वर्मा की आग’ की समीक्षा कर सकता है और उसे पसंद करने की कोशिश कर सकता है तो ‘द ताशकंद फाइल्स’ तो एक वास्तविक और संजीदा मूवी है, जिसे बनाने के लिए गहन रिसर्च का सहारा लिया गया है। ये हमारे दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निधन/हत्या के पीछे रहे कारणों की खोज करती है। ना इस फ़िल्म में कहीं भाजपा को वोट देने की अपील की गई है और न ही इसमें कॉन्ग्रेस को सत्ता से दूर रखने की बात कही गई है, फिर भय कैसा?
एनडीटीवी ने फ़िल्म को आधा स्टार दिया। स्क्रॉल ने इसे नेगेटिव रिव्यु दिया। लेकिन, इन सारे पक्षपाती समीक्षाओं की पोल तो तब खुली जब दर्शकों और सजग लोगों ने आईएमडीबी पर इसे रेट किया। आईएमडीबी सिनेमा का एक वैश्विक डेटाबेस है, जिसकी रेटिंग पर न सिर्फ़ भारत बल्कि दुनियाभर के दर्शक भरोसा जताते हैं। आज से 10 वर्ष बाद जब ‘द ताशकंद फाइल्स’ का नाम सामने आएगा, तब एनडीटीवी, स्क्रॉल और राजा सेन की समीक्षाएँ कहाँ पड़ी होगी नहीं पता लेकिन आईएमडीबी रेटिंग गूगल सर्च के पहले पन्ने पर दिखेगी। ये रिपोर्ट लिखे जाने तक आईएमडीबी पर हज़ार से भी अधिक लोगों ने मिलकर फ़िल्म को 10 में से 8.4 औसत रेटिंग दी है। ये अपनेआप में बड़ी बात है क्योंकि इस पोर्टल पर 8 की रेटिंग पार करनेवाली फ़िल्मों का एक अलग ही क्लब है।
यहाँ सबसे बड़ा सवाल यह है कि आख़िर इस फिल्म से किसे भय है? कॉन्ग्रेस पार्टी के इशारे पर इसके नेताओं ने फ़िल्म की रिलीज रोकने के लिए निर्देशक विवेक अग्निहोत्री को लीगल नोटिस भेजा और धमकाया। तथाकथित समीक्षकों ने इसकी समीक्षा करने से इनकार कर दिया। एनडीटीवी के लिए इस फ़िल्म की समीक्षा करते हुए सैबल चटर्जी ने इसे जंक यानी कचरा बताया। आगे बढ़ने से पहले जान लेते हैं कि इसी चटर्जी ने एनडीटीवी में ‘उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक’ की समीक्षा करते वक़्त इसके बारे में क्या कहा था। चटर्जी ने कहा था कि उरी फ़िल्म एक ऐसे ग्रेनेड की तरह है जो फकफकाता तो है लेकिन फटता नहीं है।
इतनी छोटी सी फ़िल्म से इतना ज्यादा भय?
चटर्जी अकेला नहीं है, ताशकंद फाइल्स को ख़राब रेटिंग देने वाले अधिकतर समीक्षकों का इतिहास यही है। क्या राजकुमार हिरानी पर ‘मी टू’ का आरोप लगने के बाद इन समीक्षकों ने ऐसे फ़िल्मों की समीक्षा करना छोड़ा, जिनसे वो जुड़े हुए थे? क्या इन समीक्षकों ने गोलमाल और धमाल सीरीज की समीक्षा करना छोड़ा जो दर्शकों को ग्रांटेड लेकर सचमुच का जंक दिखाते हैं? क्या इन समीक्षकों ने माँ दुर्गा के नाम पर बनी आपत्तिजनक फ़िल्म की समीक्षा करने से रोका? सीधा जवाब है, नहीं। क्या ये समीक्षक इतिहास से जुड़ी हर ऐसी फ़िल्म की समीक्षा नहीं करेंगे जिसमे सत्य ढूँढने की कोशिश की गई हो? अभिनेत्रियों के ‘ऊप्स मोमेंट’ अपनी वेबसाइट पर चलाने वाले इन समीक्षकों को किसका भय सता रहा है?
ये भय है नैरेटिव के बदल जाने का। ये भय अच्छा है क्योंकि जब केवल 250 स्क्रीन्स में रिलीज होने वाली एक छोटी सी फ़िल्म इन्हे इतना भयभीत कर सकती है तो सोचिए उस दिन क्या होगा जब ऐसे विषयों पर कोई बहुत बड़ी फ़िल्म बनेगी? तब क्या ये समीक्षक देश छोड़कर भाग जाएँगे? अभी तो ये बस शुरुआत है। ‘द ताशकंद फाइल्स’ उस कार्य में सफल रही है जो उसे करना था। लोग लाल बहादुर शास्त्री में नए सिरे से इंटेरेस्ट ले रहे हैं। उनसे जुड़ी पुस्तकें खंगाली जा रही हैं, उनके बारे में युवा पढ़ रहा है। फ़िल्म का जो मोटिव था, जो विवेक अग्निहोत्री का विजन था, जो इस फ़िल्म के निर्माण के पीछे का उद्देश्य था, वो सफ़ल हुआ है।
वीकेंड पर फ़िल्म ने क़रीब सवा 2 करोड़ रुपए बटोरे। कम स्क्रीन्स मिलने के बावजूद जहाँ भी फ़िल्म लगी, उसे अच्छा रिस्पांस मिला। लेकिन बॉक्स ऑफिस से भी बढ़कर फ़िल्म ने आम दर्शकों और युवाओं के बीच जो इम्पैक्ट क्रिएट किया है, वो क़ाबिले तारीफ़ है। रिलीज से पहले निर्देशक और पूरी टीम ने युवाओं के साथ बातचीत की, उनके सवालों के जवाब दिए। आज अगर लाल बहादुर शास्त्री के बारे में नई चर्चा निकल पड़ी है, लोग उनके बारे में और जानने को उत्सुक हो रहे हैं, सोशल मीडिया में उनका नाम गूँज रहा है, इससे अधिक श्रद्धांजलि उस महान आत्मा के लिए और क्या हो सकती है? समीक्षकों के कुटिल संकीर्ण दायरों से आगे निकल चुकी ‘द ताशकंद फाइल्स’ की सफ़लता अब दर्शक तय कर रहे हैं।
अभी तो तुम लोगों (कुटिल समीक्षकों) को और ज़लील होना है
ऑपइंडिया ने फ़िल्म की समीक्षा प्रकाशित की जिसमे बताया गया था कि कैसे ये फ़िल्म सभी पक्षों को सामान रूप से रखकर तथ्यों से छेड़छाड़ किए बिना सच्चाई दिखाने की कोशिश करती है। फ़िल्म के ट्रेलर लॉन्च के मौके पर विवेक अग्निहोत्री ने पूछा था कि अगर मुंबई के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ने वाला उनका बेटा शास्त्रीजी के बारे में नहीं जानता, तो क्या ये हमारे शिक्षा व्यवस्था के लिए बुरी बात नहीं? इस दौरान लाल बहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री ने पीएम मोदी से अपने पिता की तुलना की। शास्त्रीजी के नाती संजय नाथ सिंह ने बताया कि कैसे उनकी मृत्यु के बाद उनके पार्थिव शरीर के चेहरे पर किसीने चन्दन मल दिया था। विवेक अग्निहोत्री ने ऑपइंडिया को एक्सक्लूसिव इंटरव्यू देते हुए वामपंथियों को ये फ़िल्म देखने का निमंत्रण दिया था। इन सभी लेखों से गिरोह विशेष को तगड़ा झटका लगा।
अभी वीडियो स्ट्रीमिंग पोर्टल्स का ज़माना है और एक बड़े दर्शक वर्ग तक पहुँचने के लिए ‘द ताशकंद फाइल्स’ जब वहाँ रिलीज होगी तब ऐसे समीक्षकों, रोमिला थापर छाप इतिहासकारों व देश से खेल रहे नेताओं व उनके परिवारों में जो खलबली मची हुई है, वो और बढ़ जाएगी। असर हुआ है, दूर तक हुआ है और सबसे बड़ी बात कि ‘द ताशकंद फाइल्स’ जैसी छोटी फ़िल्म ने मात्र 250 स्क्रीन्स में रिलीज होकर ऐसा असर कर दिया है। ये एक ऐसा ग्रेनेड साबित हुआ है जिसके फटने से बहुत कुछ फटा। सबसे बड़ा फायदा तो यह हुआ कि मनोरंजन की दुनिया में पाँव जमाकर बैठे भेड़ की खाल में भेड़ियों की कलई खुल गई।
एक तरफ़ बंगाल में जहाँ ममता बनर्जी द्वारा कॉन्ग्रेस पर चुनाव जीतने के लिए भाजपा की मदद लेने का आरोप लगाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर ओवैसी कॉन्ग्रेस पर आरोप मढ़ रहे हैं कि वो जनता में बीजेपी का डर दिखाकर लोगों से वोट की गुहार लगा रही है।
सोमवार (अप्रैल 15, 2019) को चुनाव प्रचार के दौरान बिहार के किशनगंज में एक जनसभा को संबोधित करते हुए एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दिन ओवैसी ने अपनी पार्टी के उम्मीदवार अख्तरुल इमान को वोट करने के लिए लोगों से अपील की।
इस दौरान उन्होंने वादा किया कि वह सीमांचल के सड़क से लेकर पुल-पुलिया का विकास तथा गरीबों की आवाज को सरकार तक पहुँचाने का काम करेंगे। साथ ही उन्होंने इस दौरान राहुल गाँधी, नरेंद्र मोदी और नीतीश पर जमकर निशाना साधा।
जनसभा को संबोधित करने के दौरान उन्होंने कॉन्ग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि आज कॉन्ग्रेस भाजपा का डर दिखाकर कथित अल्पसंख्यकों से वोट माँग रही है, जबकि उसके खुद के शासन काल में भागलपुर के दंगे और बाबरी मस्जिद जैसी घटनाएँ हुईं थीं।
ओवैसी ने संसदीय सीट किशनगंज में अपनी पार्टी की रैली को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार की बिहार में जीत पर भी बात की। उन्होंने कहा, ”मैंने आप लोगों को 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान आगाह किया था कि तथाकथित महागठबंधन के वादों के झाँसे में ना आएँ, आपने ध्यान नहीं दिया था। आपने नीतीश कुमार को वोट दिया जो अब भाजपा की गोद में बैठे हैं आपको वही गलती दोबारा नहीं करनी चाहिए।”
इस दौरान उन्होंने जनता के समक्ष तीन तलाक मुद्दे पर की भी बात उठाई। ओवैसी ने दावा किया कि ट्रिपल तलाक का बिल लोकसभा जब पहुँचा था तो उस वक्त उन्होंने ही इसका विरोध किया था।
उन्होंने लोकसभा चुनावों को जनता के लिए सुनहरा मौका बताते हुए कहा कि यदि वहाँ की जनता अख्तरुल इमान को जिताकर लोकसभा तक भेजती है, तो वहाँ पर उनकी ताकत दोगुनी हो जाएगी। ओवैसी ने जनता से अपील की है कि इस बार गफलत का शिकार न हों। उनकी मानें तो जबसे नरेंद्र मोदी पीएम बनें हैं, तबसे गरीबों, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के मामले काफ़ी बढ़ोतरी हुई है।
पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख़्यकों के क्या हालात हैं इस पर कई घटनाएँ सामने आती रहती हैं। अभी पाकिस्तान में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। जिसके आँकड़े चौकाने वाले हैं। पाकिस्तान के एक स्वतंत्र मानवाधिकार संगठन ने देश में हिन्दू एवं ईसाई लड़कियों के जबरन धर्मांतरण और निकाह पर सोमवार को चिंता जाहिर की और कहा कि पिछले साल अकेले सिंध प्रांत में ऐसे तकरीबन 1000 मामले सामने आए हैं।
अपनी वार्षिक रिपोर्ट में पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) ने कहा, “सरकार ने ऐसी जबरन शादियों को रोकने के लिए अतीत में बहुत कम कोशिशें की हैं।” इस कारण से एचआरसीपी ने सांसदों से इस चलन को खत्म करने के लिए प्रभावी कानून बनाने की गुजारिश की।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, आयोग ने 335 पन्नों की 2018 में मानवाधिकार की स्थिति रिपोर्ट में कहा है कि 2018 में सिर्फ सिंध प्रांत में ही हिन्दू एवं ईसाई लड़कियों से संबंधित अनुमानित 1000 मामले सामने आए। जिन शहरों में बार-बार ऐसे मामले हुए हैं, उनमें उमरकोट, थरपारकर, मीरपुरखास, बदीन, कराची, टंडो अल्लाहयार, कश्मोर और घोटकी शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान में जबरन धर्मांतरण और जबर्दस्ती निकाह का कोई प्रमाणिक आँकड़ा मौजूद नहीं है। उसमें बताया गया है कि ‘सिंध बाल विवाह रोकथाम अधिनियम 2013’ को प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया गया और जबरन निकाह पर सरकार की प्रतिक्रिया चलताऊ ही रही।
रिपोर्ट के मुताबिक, अगर पुलिस की मिली-भगत नहीं रही तो भी अधिकतर मामलों में उसका रवैया असंवेदनशील और बेरूखी भरा रहा। रिपोर्ट में कहा गया कि 2018 में पाकिस्तान में अपनी आस्था के मुताबिक जिदंगी गुजारने पर अल्पसंख्यकों ने उत्पीड़न का सामना किया, उन्हें गिरफ्तार किया गया। यहाँ तक की कई मामले में उनकी मौत भी हुई।
कुछ समय पहले सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर काफ़ी विवाद खड़ा किया गया था। इस दौरान मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यताओं को दरकिनार करके हर जगह से सवाल उठाए जा रहे थे। सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश निषेध को महिलाओं के अधिकारों का दमन बताया जा रहा था। उस समय अनेकों तर्क देने के बाद भी कुछ तथाकथित फेमिनिस्टों का जोश ठंडा नहीं हुआ था, उस दौरान उन्हें किसी भी प्रकार से मंदिर में प्रवेश की लड़ाई लड़नी थी। चाहे फिर उस मंदिर से जुड़ी सभी मान्यताएँ ही क्यों न तार-तार हो जाएँ।
सबरीमाला के विवादों में घिरे रहने के बीच एक ऐसा ही मामला सामने आया है। इस मामले में और सबरीमाला में फर्क सिर्फ़ इतना है कि ये मुद्दा उस समुदाय के ठेकेदारों से जुड़ा है, जिन पर आवाज़ उठाने का मतलब ट्रोल हो जाना है। हुआ यह कि पुणे के एक मजहबी दंपति ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर करते हुए न्याय व्यवस्था से गुहार लगाई कि भारत के मस्जिदों में औरतों की रोक को अवैध और असंवैधानिक घोषित किया जाए।
आगे बात करने से पहले बता दूँ कि भारत में अधिकांश मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश पर रोक है, जिसके मद्देनज़र इस दंपति ने याचिका दायर की है। याचिका में यासमीन जुबेर अहमद पीरजादे और जुबेर अहमद पीरजादे नामक दंपति ने जिक्र किया है कि कुरान और हदीस में ऐसे किसी बात का उल्लेख नहीं है, जो लिंग भेद को जरूरी बताए। इसके अलावा संविधान में प्राप्त अधिकारों को रखते हुए दंपति ने अपनी याचिका में धारा 14, 15, 21 और 25 का हवाला देते हुए इस प्रैक्टिस को महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है।
दंपति ने याचिका में इस बात का भी जिक्र किया है कि देश में बहुत सी औरतें इस भेदभाव से पीड़ित हैं लेकिन वो कोर्ट तक अपनी आवाज़ पहुँचाने की हालत में नहीं हैं। याचिका में इस बात का भी उल्लेख किया है कि लिंग भेद को लेकर विभिन्न जगहों पर अलग-अलग मान्यताएँ हैं। एक ओर जहाँ कनाडा के अहमद कुट्टी के अनुसार लिंगभेद की इस्लाम में कोई आवश्यकता नहीं है। वहीं दूसरी ओर सउदी अरब के अब्दुल रहमान अल-बराक इस्लाम में लैंगिक भेदभाव को मिटाने की बात करने वाले लोगों पर फतवा (डेथ वारंट) जारी कर चुके हैं।
मतभेदों के बीच दंपति की याचिका में इस बात का भी उल्लेख है कि जमात-ए-इस्लामी और मुजाहिद वर्ग के लोग महिलाओं को मस्जिदों में नमाज पढ़ने की अनुमति देते हैं जबकि सुन्नी समुदाय में महिलाओं के मस्जिद में जाने पर प्रतिबंध है। हालाँकि जिन मस्जिदों में महिलाओं को जाने दिया जाता है वहाँ पर उनके प्रवेश द्वार से लेकर उनके नमाज पढ़ने वाले स्थान को अलग रखा जाता है। जबकि समुदाय के सबसे पाक स्थल मक्का में इस तरह का भेदभाव नहीं किया जाता है। काबा में महिलाएँ और पुरूष दोनों गोले में बैठकर नमाज़ अदा करते हैं।
दंपति द्वारा दर्ज याचिका में दिए तर्कों से जाहिर होता है कि महिलाओं का मस्जिदों में प्रवेश निषेध होना कुरान या अल्लाह के बताए रास्तों में से एक तो बिलकुल भी नहीं हैं। बावजूद इसके कभी भी इस मुद्दे पर सवाल उठाने का प्रयास किसी तथाकथित प्रोग्रेसिव फेमिनिस्ट टाइप लोगों ने नहीं किया। गलती उनकी भी नहीं है। बीते कुछ सालों में हमारे इर्द-गिर्द जिस माहौल का निर्माण किया गया है, वो हमें अपनी छवि को बूस्ट करने के लिए हिंदू धर्म पर सवाल उठाने का ही एकमात्र विकल्प देता है। सोशल मीडिया पर ऐसे तमाम लोगों की जमात है, जो दंपति के समर्थन में अपना एक पोस्ट तक लिखना जरूरी नहीं समझेंगे, न ही उनकी इस कोशिश को सराहेंगे, लेकिन वहीं अगर बात हिंदू धर्म और किसी मंदिर से जुड़ी होगी, तो उनके अधिकारों का हनन भी होगा और समाज असहिष्णु भी हो जाएगा।
याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि विधानमंडल आम महिलाओं और मजहबी महिलाओं की गरिमा और उनके समानता के अधिकार सुनिश्चित करने में विफल रहा है, विशेष रूप से तब जब बात महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश को लेकर हो या फिर उनके बुर्के पहनने को लेकर हो।
याचिका में सबरीमाला मंदिर विवाद का भी हवाला दिया गया है, जिसका फैसला सुनाते समय शीर्ष अदालत ने कहा था कि महिलाओं को पूजा-अर्चना के अधिकारों से वंचित रखने के लिए धर्म का उपयोग नहीं किया जा सकता है। साथ ही यह भी उदाहरण स्वरूप बताया गया है कि सऊदी अरब, यूएई, मिस्र, अमेरिका, ब्रिटेन और सिंगापुर की मस्जिदों में महिलाओं को जाने की अनुमति है। याद दिला दिया जाए कि सबरीमाला विवाद के दौरान महिलाओं को समानता का अधिकार दिलाने के लिए ह्यूमन चेन तक बनाई गई थी, जिसमें समुदाय की महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर महिलाओं के साथ हो रहे भेद-भाव के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी।
अब ऐसे में देखना ये है कि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई करते हुए किसके पक्ष में फैसला करेगा, और मजहबी महिलाएँ अपने अधिकारों के लिए कहाँ तक आवाजें बुलंद कर पाएँगी? या फिर मज़हब की बात आने पर कुरान (फर्जी मजहबी धर्म गुरुओं द्वारा परिभाषित) द्वारा दर्शाए मार्ग पर आश्रित हो जाएँगी। शाइस्ता अम्बर का कहना है, “महिलाएँ मस्जिद में नमाज पढ़ सकती हैं। महिलाएँ इमामत करते हुए दूसरी महिलाओं को नमाज पढ़ा भी सकती हैं। लेकिन एक महिला पुरुषों की इमामत कर सकती है या नहीं, पुरुष महिला के पीछे नमाज पढ़ सकते हैं या नहीं इस मामले में हमें शरियत का पालन करना चाहिए। कुरान की रोशनी में मुफ्ती हजरात क्या कहते हैं, उसी को मानना चाहिए।”
एक ओर मक्का का उदाहरण देने वाले दंपति हैं। जिन्होंने तर्कों के आधार पर अपनी याचिका की बुनियाद रखी। तो दूसरी ओर इस्लामिक पीस ऐंड डेवलपमेंट फाउंडेशन के अध्यक्ष मोहम्मद इकबाल के तर्क भी जरा पढ़ लीजिए। वो कहते हैं, “महिलाओं के नमाज पढ़ने के लिए देश में कई मस्जिदें हैं। कुछ जगहों पर एक महिला दूसरी महिलाओं की इमामत भी कर रही है। मालेगाँव, महाराष्ट्र के मदरसे जामिया मोहम्मदिया के परिसर में बनी एक मस्जिद में लड़कियाँ नमाज पढ़ती हैं। उनकी नमाज महिला इमाम ही पढ़ाती हैं।”
बात अगर सभी मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश की हो रही है तो यह कैसा तर्क कि फलां-फलां में चले जाओ! फिर सबरीमाला मामले में मजहबी महिलाओं की वायरल होती तस्वीर क्या थी? क्या भारत के हर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक है? नहीं। इसीलिए बहनो! यह सही वक्त है चोट करने का। मस्जिद में पल रही मर्दवादी सोच पर प्रहार करने का। एक साथ उठ खड़ी हो, हजारों किलोमीटर लंबी ह्यूमन चेन बनाओ। अल्लाह ने चाहा तो सुप्रीम कोर्ट भी आपके हक में फैसला सुनाएगा!
जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आ रही है नेताओं की भाषा शैली उसी तरह बिगड़ती चली जा रही है। नेताओं के होने वाले भाषण मर्यादा को तार-तार कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान के द्वारा रामपुर से भाजपा प्रत्याशी जया प्रदा के ऊपर ‘खाकी अंडरवियर’ वाले बयान के बाद अब सपा के एक और नेता ने जया को लेकर एक विवादित बयान दे दिया है। पार्टी के नेता विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह ने आजम खान द्वारा रामपुर की भाजपा प्रत्याशी जया प्रदा पर की गई अश्लील टिप्पणी का समर्थन करते हुए कहा कि अगर आजम खान साहब ने बयान दिया है तो ये उनकी अपनी सोच है। और जब मीडिया वालों ने उनसे पूछा कि आपको नहीं लगता है कि एक महिला के लिए इस तरह से बोलना गलत है, तो उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा, “आपको लगता है कि वो महिला है, वो महिला नहीं है, उनका बहुत ऊँचा है सोच।”
OUTRAGEOUS: Now, Samajwadi Party leader Pandit Singh says Jaya Prada is NOT even a WOMAN.
“Aapko lagta hai ki wo Mahila hain, wo mahila nahi hain.”
This bigot has been a former minister and now a SP candidate from Gonda in 2019.
गौरतलब है कि आजम खान ने रविवार (अप्रैल 14, 2019) को रामपुर में लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि उन लोगों ने 17 सालों में उनको (जया प्रदा) को नहीं पहचाना, जबकि उन्होंने केवल 17 दिन में उनकी (जया प्रदा) वास्तविकता को पहचान लिया। उन्होंने कहा, “उसकी असलियत समझने में आपको 17 साल लग गए। मैं तो 17 दिन में ही पहचान गया कि इनके नीचे का जो अंडरवियर है, वो भी खाकी रंग का है।”
इस महिला विरोधी बयान देने के बाद आजम ने डीएम से मायावती की जूती साफ करवाने की बात कही। आजम यहीं पर नहीं रूके, इन विवादित बयान के बाद उन्होंने एक पत्रकार से बदसलूकी करते हुए कहा, “आपके वालिद की मौत में आया था, आपके वालिद मर गए हैं उसमें आया था।” दरअसल मध्य प्रदेश के विदिशा में दिवंगत सांसद मुनव्वर सलीम के अंतिम क्रिया-कर्म से लौटते वक्त जब आजम से मीडिया वालों ने जयाप्रदा के बारे में सवाल किया तो वो भड़क गए और इस तरह का विवादित बयान दे दिया।
वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने आजम के महिला-विरोधी ‘अंडरवियर बयान’ पर उनका बचाव करते हुए कहा था, “आजम खान के बयान को गलत परिपेक्ष्य में पेश किया गया। उन्होंने ऐसा किसी और के लिए कहा था। संघ के कपड़ों को लेकर दिया गया उनका बयान किसी और के लिए था। मीडिया इस मामले में गलती कर रही है, कुछ और ही दिखाया जा रहा है।” इतना ही नहीं, अखिलेश यादव ने आजम खान के साथ एक फोटो ट्वीट कर भी यह दिखाया कि कि वो उनके साथ खड़े हैं। हालाँकि, मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव ने आजम खान के बयान की निंदा की है। उन्होंने निर्वाचन आयोग और सपा प्रमुख अखिलेश से इस मामले में त्वरित कार्रवाई करने की अपील की थी। चुनाव आयोग ने आजम खान पर कार्रवाई करते हुए उन्हें 72 घंटे चुनाव प्रचार करने से रोक दिया है।
भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक अलग मुक़ाम बनाने के बाद अब प्रकाश राज ने अपनी कमाई इज्जत पर बट्टा लगाने की कसम खा ली है। यह और बात है कि बेइज्जती के कीचड़ में भी वो लोट-पोट होकर गर्व महसूस कर रहे हैं। पहले के प्रकाश राज को राजनीति में कोई ख़ास रूचि नहीं थी। लेकिन 2014 में मोदी सरकार के सत्ता संभालने के साथ ही उन्हें देश में सब कुछ बिगड़ता सा नज़र आने लगा। वैसे तो इस जमात में और भी कई लोग हैं लेकिन प्रकाश राज इसके नेतृत्वकर्ताओं में से एक हैं। इस पर आगे चर्चा होती रहेगी लेकिन शुरुआत करते हैं उनके नवंबर 2017 में दिए गए बयान से। प्रकाश राज ने उस दौरान अभिनेताओं के राजनीति में आने को देश का दुर्भाग्य बताते हुए कहा था कि वो अभिनेताओं के राजनीति में आने को सही नहीं मानते। उन्होंने यह भी कहा था कि वो किसी भी राजनीतिक पार्टी से नहीं जुड़ेंगे।
प्रकाश राज उस समय अप्रत्यक्ष रूप से तमिल अभिनेता कमल हासन पर निशाना साध रहे थे। तमिलनाडु में राजनीति और सिनेमा के संगम को आगे बढ़ाते हुए सुपरस्टार रजनीकांत और कमल हासन राजनीति में एंट्री की घोषणा कर चुके हैं। प्रकाश राज को अपने उस बयान को भूलने में बस 1 साल से कुछ ही महीने अधिक लगे। नवंबर 2017 में अभिनेताओं की राजनीति में एंट्री को देश का दुर्भाग्य बताने वाले प्रकाश राज ने जनवरी 2019 में घोषणा कर दी कि वो लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उतरेंगे। अभिनय के लिए नेशनल अवॉर्ड जीत चुके प्रकाश राज ने वास्तविकता में भी ऐसा ही किरदार निभाया, जैसा वो फ़िल्मों में निभाते आ रहे हैं।
बेंगलुरु सेंट्रल से चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे प्रकाश राज ने अब कहा है कि चुनाव एक धंधा बन चुका है और वो अभिनेता और स्थानीय होने के कारण इतिहास बदलने की क्षमता रखते हैं। प्रकाश राज ने ख़ुद को सेक्युलर इंडिया की आवाज़ बताते हुए आगे कहा कि आज की चुनाव प्रणाली एक ब्रांडिंग बन चुकी है, मार्केटिंग टूल बन चुकी है। बकौल राज, वो नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ नहीं हैं, सिर्फ़ सत्ता से सवाल पूछ रहे हैं। वॉन्टेड, सिंघम और दबंग-2 में मुख्य विलेन की भूमिका निभा चुके प्रकाश राज वास्तविक दुनिया में लीड हीरो बनने की फ़िराक़ में हैं, भले ही उनकी कथनी और करनी में कोई मेल नहीं हो।
Prakash Raj who is contesting from Bengaluru Central LS seat as an independent candidate,says,”I’m not fighting against anyone.I’m fighting for the people. It’s we who are the majority. In democracy,if you choose the right leader,people win,if you choose wrong leader,people lose” pic.twitter.com/LYA1keGpT2
वामपंथी पार्टियों के दुलारे प्रकाश राज को आम आदमी पार्टी का भी समर्थन मिल रहा है। भाजपा और संघ को भर-भर कर गालियाँ देने वाले प्रकाश राज यू-टर्न लेने के मामले में अपने साथी अरविन्द केजरीवाल को भी पीछे छोड़ चुके हैं। वामपंथी पार्टियों के सम्मेलनों में उनके चेहरे को ख़ूब भुनाया गया। कहने को तो वो निर्दलीय मैदान में हैं लेकिन उन्हें किन पार्टियों का समर्थन प्राप्त है, यह किसी से छिपा नहीं है। गाय और गोमूत्र को लेकर भी उनके बयान ख़ासे चर्चा में रहे। उन्होंने अपने आलोचकों को गोमूत्र में गोबर मिलाकर कपड़े साफ़ करने को कहा था। खैर, उनकी यू-टर्न की एक और बानगी देखिए।
प्रकाश राज नरेंद्र मोदी की आलोचना में इतने खो गए कि उन्होंने अपना नेशनल अवॉर्ड वापस करने तक की भी घोषणा कर दी थी। लेकिन फिर शायद उन्होंने अपने घर में रखे पाँच नेशनल अवॉर्ड्स को जी भर देखने के बाद यू-टर्न लेने की योजना बनाई। बाद में उन्होंने कहा कि वो इतने भी बड़े मूर्ख नहीं हैं कि अपने अवॉर्ड्स वापस कर दें। उन्हें पता भी नहीं चला कि उन्होंने अनजाने में ही सही, अवॉर्ड वापसी करने वाले अपने साथियों को मूर्ख ठहरा दिया। अभी से ही यू-टर्न ले रहे प्रकाश राज शायद वो सारे दाँव-पेंच आज़मा रहे हैं जो उन्होंने फ़िल्मों में एक्टिंग के दौरान सीखे हैं।
वैसे बहुत लोगों को पता नहीं है लेकिन ये बात जानने लायक है कि प्रकाश राज पहले ऐसे एक्टर हैं, जिन्हें तेलुगू फ़िल्म इंडस्ट्री (टॉलीवुड) द्वारा बैन किया गया था। कई तेलुगू फ़िल्मों में काम कर चुके प्रकाश राज को उनकी ही इंडस्ट्री ने प्रतिबंधित कर दिया था। माँ दुर्गा के नाम पर बनी एक आपत्तिजनक टाइटल वाली फ़िल्म का भी उन्होंने समर्थन किया था। आलम यह है कि दिखावा के चक्कर में वो विदेशों में छुट्टियाँ मनाने के दौरान भी अपने आलोचकों के बारे में ही सोचते रहते हैं और अपनी लक्ज़री वाली लाइफस्टाइल से जुड़ी चीजें सोशल मीडिया पर पोस्ट कर तथाकथित ‘ट्रॉल्स’ को डेडिकेट करते हैं। कई ट्वीटर यूजर्स ने तो कहा भी है कि प्रकाश राज 24 घंटे आलोचकों को नीचा दिखाने के तरीके के बारे में ही सोचते रहते हैं।
Prakash Raj who is contesting from Bengaluru Central LS seat as an independent candidate,says,”I’m not fighting against anyone.I’m fighting for the people. It’s we who are the majority. In democracy,if you choose the right leader,people win,if you choose wrong leader,people lose” pic.twitter.com/LYA1keGpT2
अगर अभिनेताओं का राजनीति में आना ग़लत है, देश का दुर्भाग्य है तो प्रकाश राज आज ख़ुद राजनीति में क्यों हैं? अगर अवॉर्ड वापसी सही था तो उन्होंने ये क्यों कहा कि अवॉर्ड वापस करना उनके लिए मूर्खता है? अगर उनका व्यवहार अच्छा रहा है तो जिस इंडस्ट्री में उन्होंने कई हिट फ़िल्में दीं, उसने ही उन्हें क्यों प्रतिबंधित कर दिया? उमर ख़ालिद, कन्हैया कुमार और शेहला रशीद के साथ फोटो खिंचवा कर उन्हें प्रोत्साहित करने वाले प्रकाश राज भाजपा और केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ किसी भी तरह के कृत्य का समर्थन कर अपने-आप को लोकतंत्र का सबसे बड़ा हीरो मानते हैं। और तो और, स्टैचू ऑफ यूनिटी से भी उन्हें ख़ासी दिक्कत थी।
इन अभिनेताओं के साथ असल दिक्कत यह है कि ये पहले तो सामाजिक कार्यकर्ता होने का ढोंग रचते हैं और फिर धीमे-धीमे राजनीति को गंदगी बताते-बताते कैसे उसी में उतर जाते हैं, पता ही नहीं चलता। ये ग़रीबों के लिए कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता नहीं होते, ये ख़ुद को एक्टिविस्ट कहलाना पसंद करते हैं और उसके लिए एकमात्र क्राइटेरिया है, वर्तमान मोदी सरकार को गालियाँ देना और इस जमात के अन्य लोगों का समर्थन करना, चाहे वो कोई भी हो। प्रकाश राज ने भी देखा कि जब करुणानिधि, अन्नादुराई, जयललिता और एनटीआर जैसे फ़िल्मों से जुड़े लोग मुख्यमंत्री बन सकते हैं और अम्बरीष, चिरंजीवी, विजयकांत जैसे अभिनेता अच्छे पदों पर पहुँच सकते हैं तो वो क्यों नहीं!
शायद इसी लालच से प्रकाश राज का मन डोल गया होगा। कर्णाटक में वामपंथी दलों व मोदी विरोधी खेमे के पोस्टर बॉय तो वो हैं ही। वो अलग बात है कि कॉन्ग्रेस ने ख़ूब कोशिश की कि वो बेंगलुरु सेंट्रल से न उतरें क्योंकि पार्टी ने वहाँ से एक मुस्लिम को टिकट दिया है और उसे अंदेशा है कि प्रकाश राज उसी का वोट काट बैठेंगे। ऐसे में, कॉन्ग्रेस को डर है कि कहीं भाजपा सांसद पीसी मोहन जीत की हैट्रिक न लगा बैठें। अब देखना यह है कि राजनीति को गाली देकर राजनीति में उतरे ‘एक्टिविस्ट’ प्रकाश राज का राजनीतिक करियर कितना लम्बा चलता है।
चीन का आतंकवाद के प्रति दोहरा रवैया भारत समेत पूरी दुनिया के लिए बड़ा खतरा और समस्या बना हुआ है। ऐसा इसलिए क्योंकि चीन जहाँ पाकिस्तान में बैठे मसूद अजहर को आतंकी नहीं मानता है, वहीं अपने यहाँ के उइगर उसको आतंकी दिखाई देते हैं। चीन ने उइगर समुदाय पर कई तरह की पाबंदियाँ लगा रखी हैं। लाखों उइगरों को हिरासत केंद्रों में रखा गया है और चीन इन हिरासत केंद्रों को व्यावसायिक शिक्षा केंद्र कहता है। चीन उनके ऊपर नियंत्रण का जाल बिछा रहा है, जो कम्युनिस्ट पार्टी के स्वचालित तानाशाह के दृष्टिकोण को दर्शाता है। इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी निंदा की जा रही है।
दरअसल, चीन के उत्तर-पश्चिम में काशगर नामक एक प्राचीन शहर है। जहाँ लाखों उइगर और अन्य अल्पसंख्यकों को कैम्पों में एक बंदी की तरह रखा जाता है। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, उन्होंने काशनगर के लोगों की स्थिति जानने के लिए वहाँ का कई बार दौरा किया, लेकिन वो लोग स्थानीय लोगों का इंटरव्यू ले पाए, क्योंकि ये काफी जोखिम भरा था। पुलिस लगातार पीछा कर रही थी और हर जगह प्रतिबंधित था। हर 100 गज की दूरी पर पुलिसकर्मी बंदूकों के साथ चेकपॉइंट्स पर मौजूद थे। वहाँ से निकलने के लिए कतार में लगे अल्पसंख्यकों के चेहरे पर कोई भाव नहीं था, वे अपने आधिकारिक आईडी कार्ड को स्वाइप करने के लिए कतारबद्ध थे। बड़े चेकपॉइंट पर उन्होंने अपना सिर ऊपर उठाया ताकि उनकी तस्वीरें मशीन द्वारा ली जा सकें। उनकी पुष्टि हो जाने के बाद उन्हें जाने दिया गया।
इतना ही नहीं, पुलिस कभी-कभी जरूरी सॉफ्टवेयर जाँचने के बहाने उइगरों का फोन ले लेती है, ताकि उनके कॉल और मैसेज पर नज़र रखी जा सके। शिनजियांग चीन के सुदूर पश्चिम में मौजूद है, लेकिन यह मध्य एशिया का हिस्सा ज्यादा लगता है। उइगर, कजाख और ताजिक जनसंख्या के मामले में यहाँ के हॉन समुदाय से ज्यादा हैं। वे ज्यादातर सुन्नी समुदाय के लोग हैं जिनकी अपनी संस्कृति और भाषा है।
उइगरों की निगरानी के लिए पड़ोसियों को छोड़ रखा गया है। निगरानी कर रहे लाखों पुलिस और अधिकारी उइगरों से कभी भी पूछताछ कर सकते हैं और उनके घरों की छानबीन कर सकते हैं। सर्विलांस कैमरा हर तरफ है चाहे वह सड़क हो, दरवाजा, दुकान या मस्जिद। एक रास्ते पर 20 कैमरे मौजूद हैं। बंदियों के बच्चों को अनाथालय उससे दूर ले जाते हैंं। सरकार का कहना है कि पिछले साल अनाथालय में 7,000 बच्चे काशनगर के ही थे।
शुक्रवार समुदाय के लोगों के लिए प्रार्थना के लिए खास दिन होता है। इस दिन जहाँ मस्जिदों में काफी भीड़ होती है, वहीं यहाँ पर इस दिन भी मस्जिद में केवल कुछ ही लोग आए, जबकि कुछ सालों पहले यहाँ पर हजारों लोग नमाज अदा करने के लिए इकट्ठा हुए थे। इस मस्जिद में नमाज पढ़ने आए लोगों का रजिस्ट्रेशन होता है और फिर वो मस्जिद के अंदर कैमरे की निगरानी में नमाज पढ़ते हैं, ताकि पुलिस उन पर नजर रख सके। इस दौरान बच्चों से भी उनके माता-पिता के कुरान पढ़ने को लेकर सवाल किए जाते हैं।
शहर को नियंत्रित करने के लिए आसान बनाने के लिए काशगर की वास्तुकला को बदल दिया गया है। मिट्टी से बने ज्यादातर घरों को नष्ट कर दिया गया है। सरकार ने कहा कि यह सुरक्षा और स्वच्छता के लिए था। पुनर्निर्माण में अच्छी सड़कें भी बनाई हैं, जिससे मानीटरिंग और पेट्रोलिंग करने में आसानी होती है। कुछ क्षेत्रों में अभी भी पुनर्निर्माण का कार्य चल रहा है। ईंट से बने नए घर देखने में काफी अच्छे लगते हैं, लेकिन उइगर आज भी अपने उसी पुराने दर्द से गुजर रहा है। यहाँ घूमने आए पर्यटक अक्सर उन प्राचीन गलियों से अनजान होते हैं, जिन्हें बदल दिया गया है। इसके साथ ही आगंतुकों को शहर के किनारे पर स्थित आवास शिविरों से दूर रखा जाता है।
अगस्त 2016 में दक्षिणी काशगर का एक टुकड़ा खाली था। आज यह लगभग 20,000 लोगों की क्षमता वाला एक पुन: शिक्षा शिविर है। सरकार का कहना है कि यह एक व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र है। एक हालिया उपग्रह चित्र से पता चलता है कि शिविर 2 मिलियन वर्ग फुट से अधिक का है। इस तरह से आगे बढ़ने वाला यह शिविर अकेला नहीं है। पिछले साल काशगर में तेरह शिविर 10 मिलियन वर्ग फीट से अधिक तक पहुँच गए थे। वहाँ पर घूमने पर्यटक तो आ रहे हैं, लेकिन अभी भी वहाँ पर लाखों उइगर भय में जीने को मजबूर हैं।
चुनाव जीतने के लिए से इन दिनों हर राजनैतिक पार्टियों के बीच आरोप-प्रत्यारोपों का दौर जारी है। इसी कड़ी में कभी विपक्ष को एकजुट करके रैली निकालने वाली ममता बनर्जी आज खुद कॉन्ग्रेस पर चुनाव जीतने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मदद लेने का आरोप लगा रही है। साथ ही जनता से अनुरोध कर रही हैं कि वह कॉन्ग्रेस, भाजपा और वामपंथी दलों के ‘घातक गठबंधन’ को पराजित करके उन्हें विजयी बनाएँ।
सोमवार (अप्रैल 15, 2019) को तृणमूल कॉन्ग्रेस की अध्यक्ष ने नागपुर(2018) में RSS के एक कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के शामिल होने को आधार बनाकर संघ पर आरोप लगाया कि वह लोग पूर्व राष्ट्रपति के बेटे और कॉन्ग्रेस पार्टी के नेता अभिजीत मुखर्जी के लिए प्रचार में जुटे हुए हैं।
मुस्लिम बहुल मुर्शिदाबाद जिले के बेलडांगा गाँव में एक चुनावी सभा में कॉन्ग्रेस के विषय पर बात करते हुए ममता ने कहा, “भानुमति का पिटारा खोलने के लिए मुझे बाध्य मत कीजिए, नहीं तो प्रदेश में कॉन्ग्रेस की समूची योजना का खुलासा हो जाएगा।”
ममता के मुताबिक बहरामपुर और जंगीपुर में कॉन्ग्रेस उम्मीदवारों के लिए संघ द्वारा प्रचार किया जा रहा है। बनर्जी का कहना है कि बहरामपुर कॉन्ग्रेस उम्मीदवार अधीर चौधरी की वामपंथी दलों और बीजेपी के सहयोग से चुनाव जीतने की रणनीति इस बार सफल नहीं होगी। उन्होंने इस दौरान लोगों से अपील की है कि ऐसे संदिग्ध चरित्र वाली पार्टी को वोट नहीं करना चाहिए।
गौरतलब है कि ममता के अनुसार राष्ट्रीय सेवक संघ, जंगीपुर में अभिजीत मुखर्जी के लिए और बहरामपुर में अधीर चौधरी के लिए प्रचार कर रही है। उनकी मानें तो सीपीएम पहले ही बीजेपी के हाथों बिक चुकी है।
बता दें कि इससे पहले भी ममता बनर्जी ने शनिवार (अप्रैल 13, 2019) को भाजपा पर जमकर हमला बोला था। इस दौरान उनका आरोप था कि वह (भाजपा) जनता को गुमराह करने के लिए धर्म का इस्तेमाल करके राजनैतिक लाभ इस्तेमाल करने की कोशिश में हैं।
वर्ल्ड कप टीम में चयन होने के कुछ घंटे बाद ही भारतीय क्रिकेट टीम के ऑलराउंडर रवींद्र जडेजा ने भारतीय जनता पार्टी के समर्थन का ऐलान कर दिया है। लोकसभा चुनाव के बीच जडेजा ने सोमवार (अप्रैल 15, 2019) को अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, “ मैं बीजेपी का सपोर्ट करता हूँ, जय हिंद।” इस ट्वीट में उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी को टैग करने के साथ ही अपनी पत्नी रिवाबा का हैशटैग भी इस्तेमाल किया है। जडेजा ने ट्वीट में बीजेपी का सिंबल भी शेयर किया है।
बता दें कि, रवींद्र जडेजा का पूरा परिवार हाल ही में सक्रिय राजनीति में आया है। उनकी पत्नी रिवाबा जडेजा ने 3 मार्च को बीजेपी का दामन थामा था। रिवाबा ने जामनगर में गुजरात के कृषि मंत्री आरसी फालदू और सांसद पूनम मदाम की उपस्थिति में पार्टी ज्वाइन की थी। क्रिकेटर की पत्नी के बाद रविवार (अप्रैल 14, 2019) को उनके पिता अनिरुद्ध सिंह और बहन नैना जडेजा भी राजनीति में उतर आए हैं। हालाँकि उन्होंने भाजपा के मुख्य विरोधी दल कॉन्ग्रेस का हाथ थाम लिया है। जडेजा के पिता और बहन जामनगर जिले के कलवाड शहर में एक रैली के दौरान कॉन्ग्रेस नेता हार्दिक पटेल की मौजूदगी में पार्टी में शामिल हुए। इस मौके पर जामनगर लोकसभा सीट से कॉन्ग्रेस उम्मीदवार मुलु कंडोरिया भी उपस्थित थे।
Gujarat: Naina Jadeja, sister of cricketer Ravindra Jadeja, joined Congress in Rajkot earlier today. Ravindra Jadeja’s wife Rivaba Jadeja had joined BJP last month pic.twitter.com/k2jlO3WYY3
नैना महिलाओं को सशक्त करने की दिशा में काम करना चाहती हैं और उन्हें लगता है कि कॉन्ग्रेस पार्टी महिलाओं, किसानों और युवाओं के अधिकार के लिए लड़ती है, इसलिए उन्होंने कॉन्ग्रेस में शामिल होने का फैसला किया।
गौरतलब है कि रवींद्र जडेजा और उनकी पत्नी रिवाबा जडेजा ने पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जामनगर में मुलाकात की थी। जिसके बाद पीएम मोदी ने ट्विटर पर तस्वीर जारी करते हुए लिखा था कि क्रिकेटर रविंद्र सिंह जडेजा और उनकी पत्नी रिवाबा के साथ शानदार बातचीत हुई।