Monday, September 30, 2024
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‘भीम आर्मी को मिलती है RSS फंडिंग’ कहने वाली मायावती नहीं उठा रही ‘रावण’ का फोन

उत्तर प्रदेश में खुद को दलित वोटबैंक की ‘फर्स्ट लेडी’ मानने वाली नेता BSP प्रमुख मायावती के सामने एक नया चेहरा चिंता बनता जा रहा है। वर्ष 2017 में यूपी के सहारनपुर में दलितों भड़का कर उत्पात मचाने से हुई हिंसा में एक दलित नेता का नाम बड़ी तेजी से उभरा है। वह नाम है ‘भीम आर्मी’ चीफ चंद्रशेखर आजाद (रावण)।

सहारनपुर में हुई इस हिंसा में 2 लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हुए थे। करीब 3 हफ्ते बाद यह हिंसा पूरी तरह से रुक सकी थी। इस हिंसा के दौरान दलित समुदाय का नेतृत्व इसी चंद्रशेखर आजाद ने किया था। बाद में उत्तर प्रदेश सरकार ने चंद्रशेखर आजाद को गिरफ्तार कर राष्ट्रदोह के मुकदमे के तहत जेल में डाल दिया था। हालाँकि, बाद में चंद्रशेखर पर लगा राष्ट्रदोह का मुकदमा हटा दिया गया था और 16 माह बाद चंद्रशेखर की जेल से रिहाई हुई। अब चंद्रशेखर आजाद और उनकी भीम आर्मी पब्लिक रैलियाँ कर भाजपा और मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन मायावती फिर भी चिंतित नजर आ रही हैं।

BSP नेता मायावती, चंद्रशेखर ‘रावण’ की बढ़ती हुई लोकप्रियता से थोड़ी संशकित नजर आती हैं। मायावती लगातार चंद्रशेखर आजाद को BJP का एजेंट बता रही हैं और उनका आरोप है कि भीम आर्मी की फंडिंग RSS द्वारा की जाती है। मायावती का कहना है कि अगर वह (चंद्रशेखर आजाद) दलित एकता और उनके अधिकारों के लिए इतना ही गंभीर है, तो उसे अलग से भीम आर्मी बनाने के बजाए BSP में शामिल हो जाना चाहिए था।

वहीं, दूसरी तरफ भीम आर्मी चीफ ‘रावण’ के अनुसार, “मोदी-योगी के कार्यकाल में उन्हें 16 महीने के लिए जेल में डाला गया, मेरे खिलाफ 43 झूठे केस लगाए गए। ऐसे में मैं कैसे उस पार्टी के लिए काम कर सकता हूंँ, जिसने मुझे तबाह करने की कोशिश की।”

चंद्रशेखर ने कहा, “मैं मायावती की बहुत इज्जत करता हूंँ और ऐसा कुछ भी नहीं करूँगा, जिससे उनका या बहुजन समाज का नाम खराब हो, लेकिन उन्हें मुझमें विश्वास दिखाना होगा।” चंद्रशेखर का कहना है कि वो मायावती को समर्थन के लिए 5 बार फोन चुके हैं, लेकिन अभी तक उनकी तरफ से कोई भी जवाब नहीं आया है।

हाल ही में जमीन घोटाला मामले में रोजाना ED ऑफिस के चक्कर काट रहे रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका गाँधी ने भी चंद्रशेखर से अस्पताल में मुलाकात की थी, इसके बाद भी मायावती की नाराजगी सामने आयी थी। माना जा रहा है कि कॉन्ग्रेस, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलित वोटबैंक में सेंध लगाने के लिए चंद्रशेखर को अपने पाले में करना चाहती है।

कश्मीर: आतंकियों ने 12 साल के नाबालिग को बनाया ढाल, फिर गला घोंटकर की हत्या

कश्मीर के हाजिन में एनकाउंटर के दौरान 12 वर्षीय आतिफ मीर की हत्या कर दी गई, जिसे आतंकियों ने बंधक बना लिया था। आतंकियों ने पहले तो उसे ढाल के रूप में इस्तेमाल किया, फिर तालिबानी अंदाज़ में गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी।

मामले से जुड़ा एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस वीडियो में एक बुजुर्ग लश्कर-ए-तैयबा के दो आतंकवादियों से आतिफ मीर को रिहा करने की अपील कर रहा है। वो आतंकियों से कहता है कि वो जो कुछ भी कर रहा है, वो ‘जिहाद’ नहीं, ‘जहालत’ है। मगर आतंकियों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है। बता दें कि ये वीडियो नाबालिग आतिफ की हत्या से पहले की है।

पुलिस अधिकारियों ने बताया कि यह घटना श्रीनगर से 33 किमी दूर हाजिन के मीर मोहल्ला में हुई, जहाँ आतंकवादियों ने बंदूक का डर दिखाकर बच्चे के घर में पनाह ली थी। उन्होंने बताया कि आतंकवादी उसकी बहन से जबरन शादी करना चाहता था, लेकिन परिवार वाले उसे भगाने में कामयाब रहे। इससे बौखलाए आतंकियों ने आतिफ और उनके एक बुजुर्ग रिश्तेदार हमीद सहित परिवार के सदस्यों को पीटना शुरू कर दिया।

परिवार के चिल्लाने की आवाज सुन स्थानीय लोगों ने पुलिस को इसकी जानकारी दी। जिसके बाद पुलिस ने परिवार को बचाने का काम शुरू किया। आतंकवादियों के उन पर हमला करने तक आतिफ के माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों को बचा लिया गया, मगर बच्चा और उसके चाचा अब्दुल हमीद अंदर ही रह गए। बाद में पुलिस हमीद को बाहर निकालने में कामयाब हो गई, लेकिन बच्चे को नहीं बचा पाई।

पुलिस ने बताया कि आतंकवादियों पर दबाव बढ़ने पर उन्होंने आतिफ की हत्या कर दी। जिसके बाद पुलिस ने अभियान तेज कर दोनों पाकिस्तानियों को मार गिराया। पुलिस के एक प्रवक्ता ने कहा कि लश्कर-ए-तैयबा के दो आतंकवादी हाजिन मुठभेड़ में मारे गए।

Video: 10 सालों में राहुल गाँधी की आय 1600% कैसे बढ़ी? FTIL और Unitech से क्या है सम्बन्ध?

राहुल गाँधी की संपत्ति 2004 में 55,38,123 रुपए से बढ़कर 2009 में 2 करोड़ और आखिरकार, 2014 में 9 करोड़ रुपए से अधिक हो गई। यहाँ यह भी बताना ज़रूरी है कि 2011-12 में, राहुल गाँधी आय से अधिक इनकम के एक मामले में आरोपित थे। राहुल को AJL के माध्यम से 155 करोड़ रुपए के मामले में, आईटी विभाग ने राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी को 100 करोड़ रुपए का टैक्स नोटिस भेजा था।

ऑपइंडिया द्वारा राहुल गाँधी के खुलासे के बाद, कॉन्ग्रेस ने स्वीकार किया था कि राहुल गाँधी ने एचएल पाहवा से जमीन खरीदी थी। हालाँकि, उन्होंने कहा था कि भूमि तब प्रियंका गाँधी वाड्रा को उपहार में दी गई थी। प्रियंका के पास एचएल पाहवा के साथ कई जमीन सौदे और भी हैं जो प्रियंका को कम दाम पर जमीन बेचता था और फिर उसी जमीन को बहुत ऊँचे मूल्य पर खरीद लेता था। Backops की डायरेक्टरशिप भी उस समय प्रियंका गाँधी को हस्तांतरित की गई थी।

क्या प्रियंका गाँधी वाड्रा 2019 में चुनाव इसलिए नहीं लड़ रही हैं, क्योंकि चुनाव शपथ पत्र में ये सारी बातें बाहर आ जाएँगी?

अमेठी के समीकरणों से परेशान कॉन्ग्रेस, राहुल को केरल से भी लड़ाने की अटकलें

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने दो सीटों से चुनाव लड़ा था ठीक उसी तर्ज पर इस बार कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी दो सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। राहुल गाँधी के केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ने की जानकारी केरल के कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मुल्लापल्ली रामचंद्रन ने दी।

उन्होंने बताया कि राहुल गाँधी द्वारा दूसरी सीट से चुनाव लड़ने पर पिछले क़रीब एक महीने से विचार किया जा रहा था। हालाँकि इस बात का ख़ुलासा हुआ है कि दो सीट से चुनाव लड़ने के लिए राहुल तैयार नहीं थे, लेकिन काफ़ी समझाने-बुझाने के बाद राहुल इस सीट से लड़ने के लिए तैयार हो गए।

बता दें कि लोकसभा का परिसीमन होने के बाद साल 2008 में केरल की वायनाड सीट अस्तित्व में आई थी। यह सीट कन्नूर, मलाप्पुरम और वायनाड संसदीय क्षेत्र को मिलाकर बनी है। इससे पहले कॉन्ग्रेस के एमएल शाहनवाज़ इस सीट पर दो बार अपनी जीत दर्ज कर चुके हैं।

राहुल के अलावा उनकी दादी इंदिरा गाँधी और माँ सोनिया गाँधी दोनों ही दक्षिण से लोकसभा चुनाव लड़ चुकी हैं। 1978 में इंदिरा गाँधी ने केरल की चिकमगलूर से लोकसभा चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी। अपनी सास के नक्शेक़दम पर चलते हुए, राजनीति में आने के तुरंत बाद, सोनिया गाँधी ने 1999 का लोकसभा चुनाव दो सीटों- कर्नाटक की बेल्लारी और उत्तर प्रदेश में अमेठी से लड़ा। उन्होंने बेल्लारी से भाजपा नेता सुषमा स्वराज और अमेठी से संजय सिंह को हराया था।

फ़िलहाल, राहुल द्वारा केरल की सीट पर चुनाव लड़ने को एक डर की तरह देखा जा रहा है कि कहीं उन्हें अपने गढ़ में हारने की संभावना तो नहीं जिससे कॉन्ग्रेस उन्हें दो जगहों से चुनाव लड़ने की जुगत की जा रही है।

कॉन्ग्रेस ने बचपन के दिन याद दिलाए, फिर भी सलमान ने MP में चुनाव प्रचार से किया इनकार

मध्य प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी ने अभिनेता सलमान खान के ट्वीट पर स्पष्टीकरण जारी किया है, जिसमें किसी भी राजनीतिक पार्टी में शामिल होने की अटकलों को ख़ारिज किया गया है। लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले मुख्यमंत्री कमलनाथ और सलमान खान के बीच एक बैठक के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि अभिनेता कॉन्ग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले हैं और राज्य में पार्टी के प्रचार में भी शामिल होंगे।

नई दुनिया की ख़बर के अनुसार, मुख्यमंत्री कमलनाथ ने लोकसभा चुनाव की तारीखों के घोषणा से पहले फिल्म अभिनेता सलमान खान से बात की थी। इस बारे में उन्होंने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर बताया था कि उन्होंने सलमान और मध्य प्रदेश से उनके रिश्ते को याद कराया और मध्य प्रदेश के विकास में उनके योगदान की अपील की थी। योगदान के रूप में सलमान खान को मध्य प्रदेश में पर्यटन प्रमोशन का काम ऑफ़र किया गया था। सीएम कमलनाथ की घोषणा ने अटकलों को हवा दे दी थी कि सलमान खान कॉन्ग्रेस में शामिल होंगे और इंदौर की लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे।

कॉन्ग्रेस नेता पंकज चतुर्वेदी ने दावा किया था कि पार्टी नेताओं ने इंदौर में चुनाव प्रचार के लिए सलमान खान से बात की है। बता दें कि सलमान का जन्म इंदौर के पलासिया इलाक़े में हुआ था और उन्होंने बचपन के कुछ साल इसी शहर में गुजारे थे। 2009 में, सलमान ने एक रोड शो में भाग लिया था और कॉन्ग्रेस के महापौर उम्मीदवार के लिए प्रचार किया था।

इसके बीच मध्य प्रदेश के मांडू शहर में सलमान खान के पहुँचने की ख़बर वायरल हुई तो कयास तेज़ हो गए कि सलमान कॉन्ग्रेस में शामिल हो गए हैं और वो वहाँ चुनाव प्रचार के लिए आए हैं। हालाँकि, बाद में यह स्पष्ट किया गया कि मांडू में वो केवल शूटिंग शेड्यूल के लिए थे। इन अफ़वाहों पर सलमान खान ने ख़ुद ट्वीट के ज़रिए विराम लगाया और राजनीति में आने संबंधी अफ़वाहों को ख़ारिज किया।

इसके बाद, मध्य प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी ने एक स्पष्टीकरण भी जारी किया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि सलमान खान को पार्टी से चुनाव लड़ने और चुनाव प्रचार में हिस्सा लेने के लिए कोई भी प्रस्ताव नहीं दिया गया। बता दें कि सुमित्रा महाजन इंदौर से भाजपा की मौजूदा सांसद हैं।

TMC ने कॉन्ग्रेस को किया ‘डिलीट’, नया लोगो जारी

1998 में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (INC) से अलग अपनी नई पार्टी खड़ी करने वाली ममता बनर्जी ने अब एक बार फिर कॉन्ग्रेस से रिश्‍ता तोड़ लिया है। करीब 21 साल के बाद TMC पार्टी ने अपनी पार्टी के नाम तृणमूल कॉन्ग्रेस से ‘कॉन्ग्रेस’ को अलग कर लिया है। ममता बनर्जी की पार्टी ने नया लोगो जारी किया है, जिसमें पार्टी का नाम सिर्फ ‘तृणमूल’ ही दिया गया है।

पार्टी के नए लोगो में हरे रंग से ‘तृणमूल’ लिखा है, जिसके ऊपर नीले बैकग्राउंड पर दो फूल बने हुए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि इसे अगले एक हफ्ते तक प्रयोग किया जाएगा। पार्टी के नेताओं के अनुसार अब समय बदल रहा है, 21 साल के बाद पार्टी अपने नए नाम के साथ सामने आ रही है।

पार्टी ने अपने सभी बैनर, पोस्‍टर और सभी संचार के साधनों से कॉन्ग्रेस का नाम हटा दिया है। पार्टी के आधिकारिक फेसबुक एवं ट्विटर पेज, मुख्‍यमंत्री, उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी और तृणमूल नेता डेरेक ओ ब्रायन ने अपने सोशल मीडिया पेज पर नया लोगो लगा लिया है। हालाँकि, चुनाव आयोग में फिलहाल पार्टी तृणमूल कॉन्ग्रेस के नाम से ही रजिस्‍टर रहेगी।

वर्ष 1998 में वर्तमान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कॉन्ग्रेस से अलग हो गई थी और तत्कालीन सत्तारूढ़ सीपीआई (एम) के साथ मतभेद पर TMC का गठन कर लिया था। करीब 21 साल बाद TMC को अब तृणमूल किया जा रहा है।

NDA बिहार की 40 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान: रवि शंकर प्रसाद अंदर, शत्रुघ्न सिन्हा बाहर

बिहार में एनडीए ने लोकसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है। बिहार भाजपा प्रभारी भूपेंद्र यादव ने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की। इस मौके पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय, जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण यादव और एलजेपी के प्रदेश अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस मौजूद थे।

इस लिस्ट के मुताबिक भाजपा और जदयू 17-17 सीटों पर जबकि लोजपा 6 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। पूर्वी चंपारण से राधामोहन सिंह, दरभंगा से गोपाल जी ठाकुर, बेगूसराय से गिरिराज सिंह, भागलपुर से अजय कुमार मंडल, पटना साहिब से रवि शंकर प्रसाद, औरंगाबाद से सुशील कुमार सिंह, नवादा से संजय कुमार और जमुई से चिराग कुमार पासवान चुनावी मैदान में उतरेंगे।

बता दें कि बिहार बीजेपी के बड़े चेहरे शाहनवाज हुसैन का टिकट इस बार कट गया है। इसके साथ ही पटना साहिब से भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा का टिकट काटते हुए केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद को चुनावी मैदान में उतारा गया है। वहीं गिरिराज सिंह की सीट नवादा से बदलकर बेगूसराय कर दिया गया है। उनकी जगह नवादा से संजय कुमार को टिकट दिया गया है।

बिहार एनडीए की तरफ से जारी की गई उम्मीदवारों की लिस्ट

गौरतलब है कि इससे पहले बीजेपी ने 36 प्रत्याशियों की दूसरी लिस्ट जारी की थी, जिसमें बड़े नाम के तौर पर भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा का नाम सामने आया, जो ओडिशा के पुरी से चुनाव लड़ेंगे। वहीं भाजपा की पहली लिस्ट में प्रमुख उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की गई। इस लिस्ट के मुताबिक पीएम मोदी वाराणसी से चुनाव लड़ेंगे। पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के स्थान पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह गांधीनगर से मैदान में उतरेंगे। गृह मंत्री राजनाथ सिंह अपनी पुरानी सीट लखनऊ से ही लड़ेंगे, जबकि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी नागपुर से प्रत्याशी होंगे। वहीं स्मृति ईरानी अमेठी से चुनाव लड़ेंगी।

डॉ. लोहिया के साथ विश्वासघात करने वालों से हम देश सेवा की उम्मीद कैसे कर सकते हैं : PM मोदी

23 मार्च को डॉ. राम मनोहर लोहिया की जयंती है। 1936 में, उन्हें जवाहरलाल नेहरू द्वारा A.I.C.C. के विदेश विभाग के सचिव के रूप में चुना गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज डॉ. लोहिया के साथ-साथ भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को भी श्रद्धांजलि दी, जिन्हें 1931 में इस दिन फाँसी दी गई थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘डॉ. लोहिया की याद में’ शीर्षक से लिखा गया ब्लॉग:—

आज का दिन देश के महान क्रांतिकारियों के सम्मान का दिन है।

माँ भारती के अमर सपूतों वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को उनके सर्वोच्च बलिदान के लिए देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

इसके साथ ही अद्वितीय विचारक, क्रांतिकारी तथा अप्रतिम देशभक्त डॉ. राम मनोहर लोहिया को उनकी जयंती पर सादर नमन।

प्रखर बुद्धि के धनी डॉ. लोहिया में जन सरोकार की राजनीति के प्रति गहरी आस्था थी।

जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान देश के शीर्ष नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया था, तब युवा लोहिया ने आंदोलन की कमान संभाली और डटे रहे। उन्होंने भूमिगत रहते हुए अंडरग्राउंड रेडियो सेवा शुरू की, ताकि आंदोलन की गति धीमी न पड़े।

गोवा मुक्ति आंदोलन के इतिहास में डॉ. लोहिया का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है।

जहाँ कहीं भी गरीबों, शोषितों, वंचितों को मदद की ज़रूरत पड़ती, वहाँ डॉ. लोहिया मौजूद होते थे।  

डॉ. लोहिया के विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं। उन्होंने कृषि को आधुनिक बनाने तथा अन्नदाताओं के सशक्तीकरण को लेकर काफी कुछ लिखा। उनके इन्हीं विचारों के अनुरूप एनडीए सरकार प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, कृषि सिंचाई योजना, e-Nam, सॉयल हेल्थ कार्ड और अन्य योजनाओं के माध्यम से किसानों के हित में काम कर रही है।   

डॉ. लोहिया समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था और महिलाओं एवं पुरुषों के बीच की असमानता को देखकर बेहद दुखी होते थे। ‘सबका साथ, सबका विकास’ का हमारा मंत्र तथा पिछले पाँच सालों का हमारा ट्रैक रिकॉर्ड यह दिखाता है कि हमने डॉ. लोहिया के विजन को साकार करने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है। अगर आज वे होते तो एनडीए सरकार के कार्यों को देखकर निश्चित रूप से उन्हें गर्व की अनुभूति होती।

जब कभी भी डॉ. लोहिया संसद के भीतर या बाहर बोलते थे, तो कॉन्ग्रेस में इसका भय साफ़ नज़र आता था।

देश के लिए कॉन्ग्रेस कितनी घातक हो चुकी है, इसे डॉ. लोहिया भलीभाँति समझते थे। 1962 में उन्होंने कहा था, “कॉन्ग्रेस शासन में कृषि हो या उद्योग या फिर सेना, किसी भी क्षेत्र में कोई सुधार नहीं हुआ है।”

उनके ये शब्द कॉन्ग्रेस की बाद की सरकारों पर भी अक्षरश: लागू होते रहे। बाद के कॉन्ग्रेस शासनकालों में भी किसानों को परेशान किया गया, उद्योगों को हतोत्साहित किया गया (सिर्फ़ कॉन्ग्रेस नेताओं के दोस्तों और रिश्तेदारों के उद्योगों को छोड़कर) और राष्ट्रीय सुरक्षा की अनदेखी की गई।

कॉन्ग्रेसवाद का विरोध डॉ. लोहिया के हृदय में रचा-बसा था। उनके प्रयासों की वजह से ही 1967 के आम चुनावों में सर्वसाधन संपन्न और ताकतवर कॉन्ग्रेस को करारा झटका लगा था। उस समय अटल जी ने कहा था – डॉ. लोहिया की कोशिशों का ही परिणाम है कि हावड़ा-अमृतसर मेल से पूरी यात्रा बिना किसी कॉन्ग्रेस शासित राज्य से गुजरे की जा सकती है !

दुर्भाग्य की बात है कि राजनीति में आज ऐसे घटनाक्रम सामने आ रहे हैं, जिन्हें देखकर डॉ. लोहिया भी विचलित, व्यथित हो जाते।  

वे दल जो डॉ. लोहिया को अपना आदर्श बताते हुए नहीं थकते, उन्होंने पूरी तरह से उनके सिद्धांतों को तिलांजलि दे दी है। यहाँ तक कि ये दल डॉ. लोहिया को अपमानित करने का कोई भी कोई मौका नहीं छोड़ते।

ओडिशा के वरिष्ठ समाजवादी नेता श्री सुरेन्द्रनाथ द्विवेदी ने कहा था,“डॉ. लोहिया अंग्रेजों के शासनकाल में जितनी बार जेल गए, उससे कहीं अधिक बार उन्हें कॉन्ग्रेस की सरकारों ने जेल भेजा।”

आज उसी कॉन्ग्रेस के साथ तथाकथित लोहियावादी पार्टियाँ अवसरवादी महामिलावटी गठबंधन बनाने को बेचैन हैं। यह विडंबना हास्यास्पद भी है और निंदनीय भी है।

डॉ. लोहिया वंशवादी राजनीति को हमेशा लोकतंत्र के लिए घातक मानते थे। आज वे यह देखकर ज़रूर हैरान-परेशान होते कि उनके ‘अनुयायी’ के लिए अपने परिवारों के हित देशहित से ऊपर हैं।

डॉ. लोहिया का मानना था कि जो व्यक्ति ‘समता’, ‘समानता’ और ‘समत्व भाव’ से कार्य करता है, वह योगी है। दु:ख की बात है कि स्वयं को लोहियावादी कहने वाली पार्टियों ने इस सिद्धांत को भुला दिया। वे ‘सत्ता’, ‘स्वार्थ’ और ‘शोषण’ में विश्वास करती हैं। इन पार्टियों को जैसे तैसे सत्ता हथियाने, जनता की धन-संपत्ति को लूटने और शोषण में महारत हासिल है। गरीब, दलित, पिछड़े और वंचित समुदाय के लोगों के साथ ही महिलाएँ इनके शासन में ख़ुद को सुरक्षित महसूस नहीं करतीं, क्योंकि ये पार्टियाँ अपराधी और असामाजिक तत्त्वों को खुली छूट देने का काम करती हैं।

डॉ. लोहिया जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों और महिलाओं के बीच बराबरी के पक्षधर रहे। लेकिन, वोट बैंक की पॉलिटिक्स में आकंठ डूबी पार्टियों का आचरण इससे अलग रहा। यही वजह है कि तथाकथित लोहियावादी पार्टियों ने तीन तलाक़ की अमानवीय प्रथा को ख़त्म करने के एनडीए सरकार के प्रयास का विरोध किया।

इन पार्टियों को यह स्पष्ट करना चाहिए कि इनके लिए डॉ. लोहिया के विचार और आदर्श बडे़ हैं या फिर वोट बैंक की राजनीति?

आज 130 करोड़ भारतीयों के सामने यह सवाल मुँह बाए खड़ा है कि – जिन लोगों ने डॉ. लोहिया तक से विश्वासघात किया, उनसे हम देश सेवा की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?

ज़ाहिर है, जिन लोगों ने डॉ. लोहिया के सिद्धांतों से छल किया है, वे लोग हमेशा की तरह देशवासियों से भी छल करेंगे।

PM नरेंद्र मोदी ने Pak के ‘नेशनल डे’ पर नहीं दी बधाई: झूठ बोल रहे इमरान खान

जेहादियों को गोद में बिठाकर पाकिस्तान अपना ‘नेशनल डे’ मना रहा है जिसका भारत ने सभी मंचों से बॉयकॉट करने का निर्णय लिया है। फिर भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने ट्वीट कर यह कहा कि नरेंद्र मोदी ने नेशनल डे की बधाई दी है। इसकी सच्चाई को जानने के लिए थोड़ी ऐतिहासिक जानकारी आवश्यक है।

पाकिस्तान प्रतिवर्ष 23 मार्च को उसी प्रकार नेशनल डे मनाता है जैसे भारत में 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। भारत में गणतंत्र दिवस इसलिए मनाया जाता है क्योंकि 26 जनवरी 1929 को पूर्ण स्वराज की घोषणा हुई थी और 1950 में उसी दिन संविधान भी लागू हुआ था।

पाकिस्तान भी अपना नेशनल डे उसी तर्ज पर मनाता है। 23 मार्च 1940 को ऑल इंडिया मुस्लिम लीग द्वारा लाहौर प्रस्ताव पास किया गया था जिसमें भारत के उत्तर पश्चिमी और पूर्वी भाग के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के लिए अलग स्वायत्त राज्य की मांग की गई थी। सन 1956 में 23 मार्च के दिन ही पाकिस्तान का संविधान भी लागू हुआ था। लेकिन इतने कानूनी तामझाम करने के बाद भी विश्व का पहला इस्लामिक रिपब्लिक सभ्य और प्रगतिशील नहीं हो पाया। भारत के विरुद्ध आतंकवाद की नीति जारी रखने के कारण आज पाकिस्तान से लगभग सभी देश किनारा कर रहे हैं।

भारत ने पुलवामा हमले का बदला एयर स्ट्राइक से लेने के बाद अब पाकिस्तान के नेशनल डे का भी बहिष्कार कर दिया है क्योंकि पाकिस्तान ने नेशनल डे पर हुर्रियत के नेताओं को भी निमंत्रण दिया था। भारत ने नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी हाई कमीशन में नेशनल डे पर आमंत्रित सभी लोगों से आग्रह किया है कि वे पुलवामा हमले के आलोक में पाकिस्तानी नेशनल डे का बहिष्कार करें।

पाकिस्तानी उच्चायोग के बाहर सरकारी अधिकारी सभी को इस बात की सूचना दे रहे हैं कि भारत पाकिस्तान के नेशनल डे का बहिष्कार करता है और जो भी इस आयोजन में आमंत्रित हैं वे अपने विवेकानुसार निर्णय करें कि उन्हें पुलवामा हमले के दोषी देश के समारोह में जाना चाहिए या नहीं।

इमरान खान का ट्वीट पढ़कर मीडिया ने खबर उड़ाई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को नेशनल डे की बधाई व्यक्तिगत रूप से दी है। लेकिन इसमें कोई सच्चाई नज़र नहीं आती क्योंकि नरेंद्र मोदी ने अपने आधिकारिक ट्वीट से ऐसा कोई ट्वीट अभी तक नहीं किया है।

हालाँकि पाकिस्तान स्थित भारतीय उच्चायोग ने औपचारिकता निभाने के लिए बिना हस्ताक्षर का एक पत्र पाकिस्तान सरकार को भेजा था जिसे इमरान खान ने नरेंद्र मोदी की तरफ से बधाई के तौर पर प्रचारित किया। ध्यान रहे कि विदेशों में स्थित भारतीय दूतावास और उच्चायोग के अधिकारियों को इस प्रकार की औपचारिकताएँ निभानी पड़ती हैं लेकिन इमरान खान ने इसे भारतीय प्रधानमंत्री की ओर से प्राप्त हुई बधाई के रूप में प्रचारित करते हुए ट्वीट किया। उस पत्र में दक्षिण एशिया में आतंकवाद को समाप्त करने की बात भी लिखी थी जिसे छिपाकर इमरान खान ने अपने हिसाब से व्याख्या की और बधाई स्वीकार करने का नाटक किया।

न्यूज़ीलैंड की मस्जिद पर हमले से दु:खी बांग्लादेशी क्रिकेटर ने अपनी ‘Cousin’ से किया निकाह

बांग्लादेश में क्रिकेट का मैदान मानो शादी की शहनाई से गूँज उठा हो क्योंकि पेसर मुस्तफ़िज़ुर रहमान ने ढाका विश्वविद्यालय की छात्रा सामिया परवीन के साथ निकाह के बंधन में बंध गए जो रिश्ते में उनकी कज़िन लगती हैं। चूँकि कज़िन (cousin) शब्द का अर्थ चचेरा, ममेरा, फुफेरा कुछ भी हो सकता है इसलिए यह निश्चित नहीं है कि सामिया के साथ मुस्तफिजुर का रिश्ता क्या कहलाता है। बता दें कि इस्लाम में कज़िन के साथ निकाह किया जाना जायज़ माना जाता है।

जानकारी के मुताबिक़ निकाह शुक्रवार शाम को बांग्लादेश के सातखिरा के हादीपुर में सम्पन्न हुआ, जहाँ दूल्हा दुल्हन के परिवार समेत अन्य रिश्तेदार भी मौजूद थे। मुस्तफिजुर के भाई, महफ़ूज़ुर रहमान मिठू ने देशवासियों से नव-दंपत्ति के लिए प्रार्थना करने की अपील की।

मिठू ने कहा, “न्यूज़ीलैंड में हुई घटना के बाद मुस्तफिजुर घर आने के बाद बहुत परेशान था। इसीलिए हमने उससे शादी करने के लिए कहा। निकाह का यह निर्णय मेरी माँ ने लिया था। फ़िलहाल निकाह का रिसेप्शन विश्व कप के बाद होगा।”

बांग्लादेशी क्रिकेटर पेसर मुस्तफ़िज़ुर रहमान के निकाह की ख़बर जैसे ही लोगों की नज़र में आई वैसे ही सोशल मीडिया पर इसकी जमकर तफ़री ली गई। किसी ने लिखा कि ख़ुशी में शायद तलाक़ लेंगे और किसी ने लिखा कि ये क्या सच में कोई न्यूज़ है, या कोई मज़ाक है वरना ”ऐसा कौन करता है भई”।

बता दें कि बीते शुक्रवार (15 मार्च) की सुबह न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च शहर के अल नूर मस्जिद में गोलीबारी हुई थी जिसमें कई लोगों के हताहत होने की ख़बर थी। इस घटना के बारे में न्यूज़ीलैंड पुलिस ने अपने बयान में क्राइस्टचर्च में गंभीर स्थिति पैदा होने की स्थिति को स्वीकारा था हमले से बिगड़ते हालात में शहर के सभी स्कूलों को बंद कर दिया गया था और भीड़भाड़ वाले इलाक़े से बचने की सलाह दी गई थी।