Friday, October 4, 2024
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बालाकोट एयर स्ट्राइक में निशाने पर लगे 80% बम, IAF ने मोदी सरकार को सौंपे सबूत

पुलवामा आत्मघाती हमले का बदला लेने के लिए, 26 फरवरी को भारतीय वायुसेना ने बालाकोट में पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के ठिकानों पर हवाई हमले किए। तभी से कॉन्ग्रेस पार्टी और कुछ अन्य तथाकथित लिबरल पत्रकारों ने हवाई हमलों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाने शुरू कर दिए थे।

अब एयर स्ट्राइक पर एक बड़ा अपडेट सामने आया है कि बुधवार (मार्च 6, 2019) को वायु सेना ने केंद्र सरकार को एयर स्ट्राइक से जुड़े सभी दस्तावेज सौंप दिए हैं। इन सबूतों में एयर स्ट्राइक की तस्वीरें भी शामिल हैं। साथ ही इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि किस तरह उनके अधिकतर निशाने अचूक रहे हैं।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट है कि भारतीय वायु सेना ने मोदी सरकार को, भारतीय वायु क्षेत्र में उड़ान भरने वाले एक खुफिया विमान प्लेटफ़ॉर्म से एकत्र किए गए ‘हाई-रिज़ॉल्यूशन तस्वीरों’ और ‘सिंथेटिक एपर्चर रडार’ इमेजरी के 12 पृष्ठ की रिपोर्ट IAF द्वारा किए गए हवाई हमले के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं।

इंडिया टुडे के शिव अरूर ने बताया कि इंडियन एयर फोर्स के मिराज-2000 फाइटर जेट्स, जिसने बालाकोट में आतंकी अड्डों को उड़ाया था, भारतीय वायुसेना ने इस एयरस्ट्राइक के दौरान ‘Israeli Spice 2000 precision bombs’ का प्रयोग किया। यह बम “penetration warheads” से सुसज्जित था, अर्थात हर बाधा को पार करते हुए सीधा, अचूक निशाना।

वायु सेना की रिपोर्ट के अनुसार बालाकोट में उनके 80% निशाने सही लगे हैं। जिन बमों को दागा गया वह वहाँ मौजूद बिल्डिंगों के सीधे अंदर गए हैं। यही कारण है कि जो भी तबाही हुई है वह अंदर ही हुई है।

रिपोर्ट की मानें तो जिन मिसाइलों का इस्तेमाल हुआ है, उन्होंने सीधे छत को भेदा और अपने टारगेट पर वार किया। एयर फोर्स की इस रिपोर्ट के अनुसार बालाकोट में मौजूद सभी टारगेट को तबाह कर दिया गया है।

बता दें कि 26 फरवरी को की गई एयर स्ट्राइक के बाद से ही इसके सबूत सामने रखने की बात शुरू हो गई थी। पाकिस्तान लगातार यह दावा कर रहा था कि उनका कोई नुकसान नहीं हुआ है, सिर्फ कुछ पेड़ ही गिरे हैं। हालाँकि, जब पेड़ ही गिरे हैं तो पाकिस्तान में  भारतीय सेना को लेकर इतनी दहशत क्यों है, इसका जवाब पाकिस्तान ने नहीं दिया।

जबकि, वायु सेना ने अपने आधिकारिक बयान में कहा था कि उनका मिशन पूरी तरह से सफल रहा है, ऐसे में सबूतों को सामने रखने का फैसला सरकार को ही करना है। वायु सेना के प्रमुख एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ ने कहा था कि अगर पाकिस्तान का कुछ नुकसान नहीं हुआ है तो उनकी वायु सेना हमारे इलाके में क्यों आई और वहाँ इस तरह की हलचल क्यों है?

ज्ञात हो कि यह पहली बार नहीं है, इससे पहले 2016 में जब सर्जिकल स्ट्राइक हुआ था तब भी विपक्ष की बयानबाजी ऐसे ही जारी रही, जिसका पाकिस्तान ने अपने समर्थन में खूब फ़ायदा उठाया। इस बार भी विपक्ष के कई नेता इस बात की माँग कर चुके हैं कि केंद्र सरकार को पाकिस्तान में की गई एयर स्ट्राइक के सबूतों को सामने रखना चाहिए।

कॉन्ग्रेस की ओर से दिग्विजय सिंह, मनीष तिवारी के अलावा एनडीए में बीजेपी की साथी शिवसेना ने भी एयर स्ट्राइक की सच्चाई को जनता के सामने रखनी की बात कही थी। कुछ लिबरल पत्रकारों और अर्बन नक्सल ने भी एयरस्ट्राइक के बाद सबूत माँगे थे, जिसका प्रयोग इस बार भी पाकिस्तान अपने समर्थन में करने से नहीं चूका। हालाँकि, सरकार की ओर से हर बार कहा गया कि विपक्षी पार्टियाँ सेना का मनोबल गिराने का काम रही हैं।

कर्मचारियों के विवादित टिप्पणी के लिए फेसबुक ने संसदीय समिति से मांगी माफी, 10 दिन में देगा जवाब

आगामी लोकसभा चुनावों में सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लेकर सरकार बेहद सतर्कता से काम ले रही है। सूचना प्रोद्यौगिकी पर बनी संसद की स्टैंडिंग कमिटी ने फेसबुक, व्हॉट्सएप और इंस्टाग्राम के अधिकारियों से सीधे शब्दों में कहा है कि चुनाव, राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिकों के डेटा की सुरक्षा देश की पहली प्राथमिकता है। कंपनी से इस विषय पर 10 दिन के भीतर लिखित जवाब सौंपने को कहा है। संसदीय स्टैंडिंग कमिटी ने फेसबुक के अधिकारियों से पूछा, “आपका मंच समाज के काम आ रहा है या समुदायों को बांटने का काम कर रहा है?”

इस पर फेसबुक ने कहा कि वो एक हायब्रिड कंपनी है। फेसबुक की सामग्री, विज्ञापन और मार्केटिंग से जुड़े कामकाज पर कौन सी नीतियाँ लागू होती हैं, इसका जवाब देने में कंपनी असमर्थ रही। पेशी के दौरान फेसबुक के वैश्विक नीति प्रमुख ने अपने कुछ कर्मचारियों द्वारा पुलवामा हमले और आतंकवाद को लेकर की गई असंवेदनशील टिप्पणियों पर स्टैंडिग कमिटी से माफी भी माँगी।

कमिटी के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने कहा, “हमने उनसे कहा वो ये सुनिश्चित करें कि उनके मंच का इस्तेमाल समाज को बांटने, हिंसा भड़काने, भारत की सुरक्षा से खिलवाड़ या विदेशी ताकतों के भारतीय चुनाव में दखल को लेकर न हो। उन्होंने माना कि कुछ सुधारों की जरूरत है और वो उसके लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा है कि वो चुनाव आयोग के संपर्क में रहेंगे और संबंधित मंत्रालयों की सूचना पर काम करेंगे।”

इससे पहले 25 फरवरी को ट्विटर के कॉलिन क्रॉवेल भी अनुराग ठाकुर की अध्यक्षता वाले पैनल के सामने पेश हो चुके हैं। पैनल ने ट्विटर अधिकारियों से, चुनाव आयोग के साथ मिलकर काम करने को कहा है। उनसे तमाम मुद्दों को जल्द से जल्द सुलझाने को कहा गया है।

एंटोनी साहब, आपने राष्ट्रहित नहीं, ‘कॉन्ग्रेस-हित’ के कारण राफेल सौदे में देरी की

भारत के पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटोनी ने राफेल सौदे को लेकर ऐसा बयान दिया है, जो उनके ही 2014 वाले बयान को काटता है। एंटोनी ने आज दो बातें कही। उन्होंने कहा कि राजग सरकार ने राफेल सौदे में देरी की। उन्होंने ख़ुद के बारे में कहा कि उन्होंने भी इस सौदे में देरी की। लेकिन, बड़ी सफाई से उन्होंने ख़ुद के फ़ैसले को ‘राष्ट्रहित’ से जोड़ दिया। बकौल एंटोनी, उन्होंने राष्ट्रहित में राफेल सौदे में देरी की। ये नेशनल इंटरेस्ट से ज्यादा कॉन्ग्रेस इंटरेस्ट प्रतीत होता है। अगर राफेल सौदा उसी समय निपट गया होता तो शायद आज राहुल गाँधी के पास केंद्र सरकार का विरोध करने के लिए कोई मुद्दा ही नहीं होता। अगर राफेल हमारे पास होता तो आज भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच एक अहम रोल निभाता।

जब सत्ता में थे, तब अलग ही सुर अलापा था

स्वयं तत्कालीन केंद्रीय रक्षा मंत्री एंटोनी ने 2014 में यह स्वीकार किया था कि यूपीए सरकार के पास वित्त की कमी है, जिस कारण वे चालू वित्त वर्ष में राफेल सौदे को आगे नहीं बढ़ा पाएँगे। फरवरी 6, 2014 को ज़ी न्यूज़ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में एंटोनी के बयान का जिक्र था। उस रिपोर्ट में कहा गया था:

“पाँच साल की लंबी प्रक्रिया के बाद भारत ने राफेल लड़ाकू विमानों के लिए फ्रांसीसी दसौं एवियेशन का चयन किया किया है। भारतीय रक्षा ख़रीद प्रक्रिया के अनुसार जो कम्पनियाँ सेनाओं की विशिष्ट आवश्यकता और निर्धारित मानकों पर खरे साजो-सामान को सबसे सबसे कम क़ीमत पर पेशकश करने को तैयार होती है उन्हें उसकी आपूर्ति का ठेका दिया जाता है।”

नीचे संलग्न किए गए ट्वीट में एंटोनी का 2014 वाला वीडियो है जिसमे वे राफेल में देरी का कारण वित्तीय कमी को बता रहे हैं।

जिस कम्पनी का चयन यूपीए काल में ही हो चुका था, उसे लेकर अब हो-हंगामा मचाया जा रहा है। एक और ग़ौर करने वाली बात यह है कि आज के हिट-जॉब विशेषज्ञ अख़बारों और मामले को बिना समझे कुछ भी आक्षेप लगाने वाले नेता राजग सरकार द्वारा फाइनल की गई राफेल डील की तुलना उस डील से कर रहे हैं, जो कभी मूर्त रूप ले ही न सकी। यूपीए काल के दौरान ये डील ‘नेगोशिएशन स्टेज’ में थी जिस पर काफ़ी सुस्त काम हो रहा था। मोदी सरकार ने सारी प्रकिया पूर्ण कर इसे मूर्त रूप प्रदान किया। इस तरह एक अपूर्ण डील से एक पूर्ण डील की तुलना की जा रही है।

कर के दिखाना सबसे मुश्किल कार्य होता है

बहुत आसान होता है किसी ऐसी चीज से तुलना करना, जो कभी अस्तित्व में भी न आई हो। ‘तुमने ऐसा किया, लेकिन मैंने तो वैसा कर दिया था’, ”तुमने इत्ते रुपए ख़र्च कर दिए, मैं तो बस इतने ही ख़र्च करने वाला था।’- यह सब बोल कर डींगें हाँकना बड़ा आसान है। मुश्किल है कर के दिखाना, जो राजग सरकार ने किया। उस समय धन की कमी की बात कहने वाले एंटोनी आज देरी पर राष्ट्रहित का बहाना मार रहे हैं। आपने देरी की तो राष्ट्रहित हो गया, किसी ने उसे पूरा कर दिया तो वो राष्ट्रविरोधी हो गया। वाह रे कॉन्ग्रेसी लॉजिक।

कॉन्ग्रेस ने मीडिया के एक वर्ग से लेकर अन्य सत्तालोलुप विपक्षी पार्टियों तक- सबको राफेल के रूप में एक ऐसा हथियार थमा दिया है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मामले के साथ खिलवाड़ है। मीडिया लगातार हिटजॉब में संलग्न है और रक्षा मंत्रालय के काग़ज़ात चुराए जा रहे हैं। नेतागण न्यायपालिका को ही बुरा-भला कह रहे हैं। कैग सहित अन्य संवैधानिक संस्थाओं की रिपोर्ट्स की धज्जियाँ उड़ाई जा रही है। यह सबकुछ सिर्फ़ और सिर्फ़ राफेल विमान सौदे के राजनीतिकरण के कारण हो रहा है, जिसकी जिम्मेदार कॉन्ग्रेस है।

सबसे बड़ा विरोधाभास यहीं प्रकट होता है। कॉन्ग्रेस द्वारा राफेल सौदे पर आक्षेप लगाने का आधार है कि नरेंद्र मोदी ने कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा नेगोशिएट की गई डील को बदल दिया। उन्होंने विमानों की संख्या घटा दी और प्रति राफेल विमान ज्यादा दाम दिए। एंटोनी का कहना है कि उन्होंने जान-बूझ कर राष्ट्रहित में डील में देरी की। जब डील में देरी हो रही थी तो कॉन्ग्रेस का ये आरोप कहाँ तक सही है कि उसे बदल दिया गया? उसी यूपीए सरकार ने वित्तीय संकट का बहाना मार कर राफेल सौदे को अगले वित्त वर्ष के लिए टाल दिया था और आज वही कॉन्ग्रेस विपक्ष में बैठ कर डील को बदल देने के आरोप मढ़ रही है।

अब सौदों में कोई मामा-फूफा दलाल शामिल नहीं होता

क्या कॉन्ग्रेस को इस बात की चिंता सता रही है कि राफेल सौदे में पार्टी के प्रथम परिवार से जुड़ा कोई मामा या फूफा नहीं शामिल नहीं है? क्या दलालों के बिना सौदे का सफलतापूर्वक संपन्न हो जाना पार्टी को अखर रहा है? जहाँ दुनिया भर के देश रक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर सरकार और सेना के साथ खड़े होते हैं, यहाँ एक महत्वकांक्षी रक्षा सौदे को ही राजनीति में घसीट लाया गया।

ऐसे कई प्रोजेक्ट्स हैं जिसे कॉन्ग्रेस द्वारा शुरू किया गया था लेकिन उसे मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद ही पूरा किया जा सका। इसमें से कुछ प्रोजेक्ट्स तो ऐसे हैं जिन्हे नेहरू के प्रधानमंत्री रहते शिलान्यास किया गया था (जैसे- नर्मदा डैम)। उसे पूरा होने में पाँच दशक से भी अधिक लगे। क्या समय के साथ उनकी बनावट और योजना के स्वरूप में बदलाव नहीं आता? सालों से नेगोशिएट हो रही राफेल डील में अगर कुछ बदलाव कर उसे पूर्ण किया गया है तो इसमें दिक्कत क्या है? सितम्बर 2018 में मिन्हाज मर्चेंट के एक लेख में इस बारे में विस्तृत रूप में बताया गया था।

कौन है संजय भंडारी? कहाँ है वो?

इस लेख में उन्होंने बताया था कि कैसे रॉबर्ट वाड्रा से जुड़ी एक कम्पनी ने 2012 में राफेल ऑफसेट करार के लिए आवेदन दिया था। दसौं ने उसे अयोग्य पाया और रिजेक्ट कर दिया। क्या एंटोनी बताएँगे कि उस कम्पनी का मालिक संजय भंडारी आज कहाँ छिपा हुआ है? दरअसल, वह अब एक भगोड़ा है जिसकी तलाश भारतीय एजेंसियों को है। ऐसे लोगों के इस करार में शामिल न हो पाने से कॉन्ग्रेस बेचैन है। उसके हाथ से 2जी, कोलगेट, कॉमनवेल्थ की तरह एक और सोने की चिड़िया हाथ लग सकती थी लेकिन सत्ता परिवर्तन ने उन्हें हिला कर रख दिया है।

हमारी देरी राष्ट्रहित और आपकी गति भी राष्ट्रविरोधी! केरल के मुख्यमंत्री रहे एके एंटोनी को अक्सर कॉन्ग्रेस के ईमानदार नेताओं में से एक माना जाता है। वैसे ईमानदार, डॉक्टर मनमोहन सिंह भी रहे। अगर किसी मुद्दे को झूठ के आधार पर जबरदस्ती घसते रहने से वह घोटाला बन जाता है तो कॉन्ग्रेस को यह प्रयोग मुबारक। इस चक्कर में सरकार को घेरने के लिए जो असली ज़मीनी मुद्दे हैं, उनसे वो दूर होते जा रहे हैं।

राहुल, सोनिया, प्रियंका के तिलक से डर नहीं लगता साहब, डर तो असली हिन्दुओं का है: सिद्धारमैया

मुद्दाविहीन कॉन्ग्रेस का न रफ़ाल चला और न ही अन्य कोई सॉलिड मुद्दा मिला जिससे मोदी को घेरा जाए, रही सही कसर एयर स्ट्राइक ने पूरी कर दी, फिर भी घूम-फिरकर लगातार बेकार बयानों से ही चुनावी माहौल गर्माने की कोशिश जारी है।

ख़ैर, ताजा मामला कर्नाटक के पूर्व कॉन्ग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का है। उन्हें अब तिलक और भभूत लगाए सामान्य हिन्दुओं डर लगने लगा है। अपने तथाकथित डर को कर्नाटक के बदामी के एक कार्यक्रम में ज़ाहिर करते हुए सिद्धारमैया ने कहा, “मुझे उन लोगों से बहुत डर लगता है जो कुमकुम और भस्म का लम्बा टीका लगाते हैं।”

हालाँकि, ऐसा कहते हुए सिद्धारमैया अपनी ख़ुद की तिलक लगाने की घटना भूल जाते हैं। या उन्हें अपनी ही पार्टी के अन्य आलाकमान नेता याद नहीं आते जो ख़ुद को जनेऊधारी रामभक्त और शिवभक्त साबित करने के लिए लगातार लम्बा टीका लगाए घूम रहे हैं।

लम्बा टीका लगाए स्वयं सिद्धारमैया

नीचे उनकी ही पार्टी कॉन्ग्रेस के आलाकमान नेताओं की कुछ तस्वीरें हैं, जिसे आप देख सकते हैं। अभी तक सिद्धारमैया का इस पर कोई बयान नहीं आया है कि अपने ही पार्टी के इन नेताओं के लम्बे टीके को देखकर उन्हें कैसा लगता है?

पार्टी की सर्वेसर्वा सोनिया गाँधी
प्रियंका गाँधी
मंदिर-मंदिर टहलते लम्बा टीका लगाए कॉन्ग्रेस पार्टी अध्यक्ष राहुल गाँधी
टीकाधारी राहुल गाँधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ

यह सभी तस्वीरें वास्तविक हैं। फ़िलहाल, देखना यह है कि सिद्धारमैया अब अपने बयान पर कायम रहते हैं या अब अपने ही पार्टी के नेताओं के लम्बे टीके को देखते हुए, उनसे भी डरना शुरू कर देते हैं।

टीवी ने रवीश को जो काम था सौंपा, इस शख़्स ने उस काम की माचिस जला के छोड़ दी (भाग २)

पत्रकारिता के साथ ही, तमाम तरह की नौकरियों और व्यवसायों में एथिक्स का एक हिस्सा होता है। एथिक्स यानी नैतिकता। पत्रकारिता में नैतिक तो ख़ैर बहुत ही कम लोग हैं, और जो हैं उनके नाम कोई नहीं जानता। लेकिन, कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने इस चैप्टर पर किरासन तेल डालकर आकर लगाया और 2014 की जलती गर्मियों में तन-बदन सेंक लिया। ऐसी गर्मी में आग से देह सेंका और शरीर जलने पर मोदी को गरियाना शुरु किया, जो अभी तक नहीं रुका है। 

पिछले लेख की कड़ी से आगे बढ़ते हुए, दूसरे हिस्से में हम बात करेंगे कि किस तरह से रवीश कुमार ने अपनी पूरी स्पीच के दौरान एक के बाद एक लगातार ऐसे झूठ बोले जो कि किसी भी तर्क, सर्वेक्षण या आँकड़ों पर आधारित नहीं है, बल्कि वह एक विचार है जिसकी बुनियाद में खोखलापन है। आप कहेंगे कि आदमी विचार रखने को स्वतंत्र है। आप सही कह रहे हैं, लेकिन जो व्यक्ति एक ऊँचे प्लेटफ़ॉर्म से झूठ बोलता है, तो वो महज़ अभिव्यक्ति नहीं रह जाती, वो अजेंडा या प्रोपेगेंडा कहलाता है।

रवीश का अजेंडा किसी से छुपा नहीं है: अजेंडा और प्रोपेगेंडा चिल्लाते हुए खुद ही गोएबल्स की नीति का अनुसरण करना। उन्होंने कहा कि मीडिया में लगातार एक नज़रिया बनाया जा रहा है कि ‘देश में ही ग़द्दार छुपे हुए हैं’। उनका इशारा इस तरफ था जहाँ सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया में पाकिस्तान की तरफ़दारी करने वाले लोगों को आम जनता और कुछ एंकर ग़द्दार कहते नज़र आते हैं। 

ये होता है, और आम जनता की भावना पाक अकुपाइड पत्रकारों के लिए कमोबेश यही रही है। लेकिन हाँ, ग़द्दार कहना गलत है। ये लोग ग़द्दार नहीं हैं। ग़द्दार लोगों की ईमानदारी कम से कम दूसरे देश के लिए तो होती है, ये लोग ठीक से ग़द्दारी भी नहीं कर पा रहे। इनका पूरा फ़ोकस किसी एक व्यक्ति या पार्टी के विरोध में हर वो बात कह देनी है, जिसके कारण विरोध होता रहे। इस विरोध के चक्कर में ऐसे व्यक्ति अपने देश, देश की जनता, वहाँ के लोकतंत्र के चुने हुए प्रधानमंत्री या फिर अपने अंदर के विवेक आदि सब के विरोध में हो जाते हैं। ये अपने आप को विरोध में दिखाकर ही अपनी निष्पक्षता के सिक्के बनाते हैं, जबकि विरोध में होना ही आपको निष्पक्ष नहीं बनाता। 

आगे रवीश जी ने भाजपा को अंग्रेज़ों से भी बदतर बताते हुए कहा है कि न्यूज चैनल पर भाजपा का ही अजेंडा चल रहा होता है। यहाँ पर उन्होंने बताया कि भारत में लगभग 900 न्यूज चैनल हैं, और लगभग सब भाजपा का ही अजेंडा चला रहे हैं। मज़े की बात यह है कि उन्होंने स्वयं ही कहा कि उन्हें तो बस चार-पाँच ही दिखते हैं। फिर ये 900 पर, या जो चैनल खोलिएगा ‘पता चलेगा कि भाजपा का अजेंडा चल रहा है’, का सर्वेक्षण कहाँ से किया?

फिर उन्होंने वही किया जो उन्होंने ‘आपातकाल’ जैसे भयावह दौर के साथ किया। उस समय की भयावहता को इतना नीचे गिरा दिया कि अब ‘आपातकाल’ सुनकर लोग मज़े लेने लगते हैं। रवीश जी ने कहा कि मीडिया में इस तरह का हस्तक्षेप अंग्रेज़ों के दौर में भी नहीं था। ये तर्क इतना बेहूदा और घटिया है कि आप चुप हो जाएँगे। चुप इसलिए हो जाएँगे कि ग़ुलामी के उस दौर को रवीश बेहतर बता रहे हैं जब हमारे सारे संस्थानों को बेकार बनाया गया; बोलने, चलने, इकट्ठा होने की आज़ादी नहीं थी; अख़बारों के संपादकों, प्रकाशकों और लिखने वालों को जेल में डाल दिया जाता था। 

आज रवीश कुमार बिना किसी पुख़्ता तर्क के, बिना किसी आधार के, सरेआम अपनी बात कह रहे हैं, लगभग हर शाम सरकार को कोसते हैं, और फिर भी उन्हें ये दौर अंग्रेज़ों के दौर से भी बदतर लग रहा है। ये किस तरह का प्रोपेंगेंडा है जहाँ ग़ुलामी के दिनों में सकारात्मकता ढूँढी जा रही है? और ऐसे में आपको कोई ग़द्दार या भारत विरोधी कहता है, तो आप ‘डर का माहौल’ करने लगते हैं! ये पत्रकारिता नहीं, लूसिफर को अपनी आत्मा बेचने जैसा कृत्य है।  

“इन्फ़ॉर्मेशन को हटाकर परसेप्शन ला दिया है” कहते हुए रवीश ने अगला ब्रह्मज्ञान दिया। जबकि, ये बात नकारात्मक तो बिलकुल नहीं। हाँ, कुछ लोगों के वन-वे विचारों को अब जवाब मिलने लगा है, और परसेप्शन के खेल में वो अकेले नहीं रह गए, तो इसे अब ऐसे बताया जा रहा है मानो कुछ गलत हो रहा हो। शाम के प्राइम टाइम आखिर किस कार्य के लिए होते हैं? अख़बारों के सम्पादकीय पन्नों पर लिखे गए स्तम्भ क्या हमेशा विश्लेषण ही होते हैं, या उसमें भी नज़रिया होता है?

फिर आज कई चैनल जब अपने विचारधारा को पकड़कर चल रहे हैं तो ऐसी कौन सी आग लग गई? या, माओवंशी कामपंथियों की ये सामंती सोच कि वामपंथ ही एकमात्र सही विचारधारा है, ऐसा मानकर आप लोग चलते रहेंगे? या फिर, आप जैसों को लगता है कि जो स्पेस सिर्फ आप जैसों का था, वहाँ फेसबुक पर पोस्ट लिखने वाले लोग आ गए हैं, और आप से तथ्यों के साथ जिरह करते हैं तो आप उन्हें शाखा जाने को कहते हैं। आखिर शाखा जाने वालों से आपको क्या समस्या है? क्या कुछ प्रचारित वाक्यों का सहारा लेकर आप लोगों की रिडिक्यूल मशीनरी चलती रहेगी, या कभी इस पर कुछ तथ्य भी आएँगे कि शाखा वाले दंगे करा रहे हैं, उन पर केस चल रहा है। और फिर ये भी बताइएगा कि मदरसे वालों पर कितने केस हैं, कितने दंगों के नाम हैं, कितने बम विस्फोट हैं, कितने आतंकी हमले हैं। 

परसेप्शन के खेल में जब आप पिछड़ रहे हैं तो आप नई शब्दावली रचे जा रहे हैं। आपने कहा कि अब दर्शक नहीं, समर्थक आ गए हैं। आ ही गए हैं, तो क्या दिक्कत है? क्या भारत की तमाम जनता के दिमाग में रवीश कम्पनी का चिप लगा दिया जाए कि भैया आप देखिए सब, लेकिन सोचिए वही जो रवीश कहेंगे। ज़ाहिर तौर पर आप मीडिया की वर्तमान स्थिति पर क्षुब्ध हैं क्योंकि वहाँ जो आपके गिरोह के लोगों का एकतरफ़ा संवाद चल रहा था, उसे बंद किया जा रहा है। 

आपके अवसाद के स्तर की झलक, और पत्रकारिता छोड़कर हर तरह के बेकार सवालों को उठाते हुए आपने दर्शकों को यह सलाह दी कि लोगों को सवाल पूछना चाहिए। यहाँ तक तो आपका कहा ठीक लगा क्योंकि पत्रकारिता और नागरिकों की चर्चा में सवाल पूछना नितांत आवश्यक बात है। लेकिन आपने जो उदाहरण दिए उससे खीझ और निराशा दिखी, “आप मोदी से सवाल पूछिए कि कितने कपड़े पहने थे, रैलियों के डिज़ायनर कपड़े कहाँ से आते हैं।” 

मतलब, पत्रकारिता जिसे ‘वॉचडॉग’ कहा जाता है, उसके पास मुद्दों के नाम पर मोदी के कपड़ों की क़ीमत की बात बची है? मोदी के कपड़ों की क़ीमत या डिज़ाइनर का नाम जान लेने से समाज या देश का क्या हित हो जाएगा? क्या मोदी नाड़ा वाला धारीदार चड्डी पहनकर घूमे ताकि आपको लगे कि गरीब देश का प्रधानमंत्री ग़रीबों की तरह रहता है? ये कैसे सवाल हैं जो पूछने को उकसा रहे हैं आप?

ये आप इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आपके द्वारा उठाए गए तमाम फर्जी प्रश्नों और प्रोपेगेंडा का कुल जमा निकल कर शून्य ही आया है। आपने जिन ख़बरों को अपने इंटरव्यू के अगले हिस्से में कालजयी टाइप का स्टेटस दिया है, उनमें से एक भी भारतीय न्याय व्यवस्था के प्रांगण में टिक नहीं सके। इसीलिए आप बहुत ही सहजता से कोर्ट पर भी उँगली उठा गए कि आखिर जजों ने आपके फ़ेवरेट पत्रकारों और संस्थानों पर किए गए मानहानि के दावों पर केस को मान्यता ही क्यों दे दी? मतलब, आप यही कहना चाह रहे हैं कि सारी संस्थाएँ बर्बाद हैं क्योंकि वो आपके गुर्गों की पत्रकारिता पर होते सवालों पर चर्चा करने को तैयार हैं?

आपकी स्थिति दयनीय होती जा रही है। आप उन बातों के लिए दूसरों के घेर कर विक्टिम कार्ड खेल लेते हैं, जो आप हर बार खुद ही करते हैं। आपने पूरे इंटरव्यू के दौरान जो किया, वही कोई और करता है, तो आप विलाप की स्थिति में आ जाते हैं। ये पब्लिक स्पेस है, सोशल मीडिया है, जहाँ किसी को कुछ पसंद नहीं आता तो वो बोलता है कि आप कॉन्ग्रेस का अजेंडा चला रहे हैं, कोई नक्सली है, कोई अर्बन नक्सल है। 

ये लोकतंत्र है, इसमें हर व्यक्ति की अभिव्यक्ति का मूल्य बराबर है। आपने बहुत ख़ूबसूरती से ये कह दिया था कि मानहानि सवा रुपए की होनी चाहिए सबकी, चाहे वो अम्बानी हों या रवीश। फिर अभिव्यक्ति के मामले में आपकी अभिव्यक्ति किसी सामान्य नागरिक की अभिव्यक्ति से ऊपर कैसे हो जाएगी? आपको लगता है कि जो ज्ञानधारा आप बहाते हैं, वही निर्मल है, और आम जनता सीवेज़ का पानी फेंक रही है। 

आप दिन में हर बारहवें साँस पर आईटी सेल बोल देते हैं, किसी को शाखा भेज देते हैं, मोदी का अजेंडा कहते रहते हैं, तो फिर उन लोगों से भिन्न कैसे हैं जो किसी को कॉन्ग्रेसी अजेंडा चलाने वाला, नक्सल या शहरी नक्सल कहता है? 

ऐसे काम नहीं होता साहब, सोशल मीडिया ने सबको आवाज दी है। हर व्यक्ति सवाल कर सकता है। मोदी से भी सवाल होंगे, आपसे भी होंगे। सवाल पूछने की, उसे डिज़ाइन करने की, उसे बार-बार दोहराने की कलाकारी आपको ही नहीं आती। ‘जाँच करवाने में क्या जाता है’ कहकर आप जिस धूर्तता से ये कह देते हैं, उसके बाद की बात आपको पता है कि सुप्रीम कोर्ट से आगे जाँच हो नहीं सकती और संसदीय समिति के अधिकार क्षेत्र से यह बाहर है। 

आपने इस चर्चा में नैतिकता के जो प्रतिमान तोड़े हैं, उन्हें अगले हिस्सों में लोगों तक लाया जाएगा।  

SC ने AAP के संजय सिंह से कहा: आपकी दलील नहीं सुनी जाएगी, आपके साथ जो करना है, वो करेंगे

CJI गोगोई की अध्यक्षता में राफेल मामले में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने विचार करने से इंकार कर दिया है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि संजय सिंह के खिलाफ कार्रवाई पर भी विचार किया जा सकता है। CJI ने अपने वक्तव्य में कहा, “संजय सिंह ने राफेल मामले में कोर्ट के फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की है, जिस कारण हम उनकी याचिका पर सुनवाई नहीं करेंगे। हम बाद में संजय सिंह के खिलाफ कार्रवाई पर भी विचार कर सकते हैं।”

कोर्ट ने संजय सिंह के वकील संजय हेगड़े से कहा कि कोर्ट संजय सिंह के बयान को गंभीरता से ले रही है और इस पर उचित कार्रवाई भी की जाएगी। CJI ने कहा, “आपने हमारे फैसले पर अवांछित टिप्पणी की थी। हम निश्चित रूप से इस बारे में कोई कार्रवाई करेंगे।”

कोर्ट ने पिछले साल 14 दिसंबर के अपने आदेश में राफेल डील की जाँच की माँग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था। इसके बाद फैसले के खिलाफ रिव्‍यू पेटिशन दायर की गई थी। अब सुप्रीम कोर्ट राफेल डील को लेकर 14 दिसंबर 2018 के अपने फैसले के खिलाफ दायर रिव्यू पेटिशन पर सुनवाई कर रहा है।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली बेंच इस पर सुनवाई कर रही है। राफेल डील को लेकर विपक्षी दल, खासकर कॉन्ग्रेस और उसके अध्यक्ष राहुल गाँधी, सरकार पर लगातार आरोप लगाते रहे हैं कि इस रक्षा सौदे में भ्रष्‍टाचार हुआ है। हालाँकि, मोदी सरकार साफ कर चुकी है कि इस रक्षा सौदे में कोई भ्रष्‍टाचार नहीं हुआ है और यूपीए के दौर में हुई डील से सस्‍ते में राफेल विमान खरीदे जा रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि राफेल सौदे के मामले में सुप्रीम कोर्ट 14 दिसंबर को केंद्र सरकार को क्लीन चिट दे चुकी है। राफेल सौदे को लेकर फाइल किए गए रिव्यु पेटिशन पर कोर्ट ने आज से सुनवाई शुरू की। इससे पहले ओपन कोर्ट में सुनवाई करते हुए हुए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने वकील प्रशांत भूषण को भी फटकारा। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण द्वारा किसी भी प्रकार की अतिरिक्त एफिडेविड लेने से मना कर दिया। कोर्ट ने कहा कि वह ऐसे किसी भी प्रकार की अतिरिक्त एफिडेविड या डॉक्यूमेंट को को स्वीकार नहीं करेगा, जो उसके समक्ष फाइल नहीं किए गए हों।

सबूत माँगने वाले नेताओं को जेट के नीचे बाँध कर अगले मिशन पर ले जाएँ: जनरल वीके सिंह

पूर्व सेना प्रमुख और केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह ने ट्विटर पर IAF द्वारा आतंकवादियों पर की गई एयर स्ट्राइक के सबूत माँग रहे लोगों पर कटाक्ष किया है। अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा है, “रात 3:30 बजे मच्छर बहुत थे, तो मैंने HIT मारा। अब मच्छर कितने मारे, ये गिनने बैठूँ, या आराम से सो जाऊँ?”

वीके सिंह ने यह भी कहा, “अगली बार जब भारत कोई कार्रवाई करे तो जो विपक्षी नेता प्रश्न उठाते हैं, उन्हें फाइटर प्लेन के नीचे बाँध के ले जाएँ। जब बम गिराया जाएगा तो उन्हें वहीं से टारगेट दिख जाएगा। इसके बाद उनको वहीं पर उतार दें। वे लोग टारगेट की जगहों को गिन लें और वापस आ जाएँ।”

ये पूछे जाने पर कि उनके इस ट्वीट का क्या मतलब था? जनरल वीके सिंह ने कहा, “क्या आप मारे गए आतंकियों को गिन सकते हैं? बमों ने इमारतों को निशाना बनाया। क्या 1000 kg बमों के धमाके से मौतें नहीं होंगी? अगर मौतें हुईं तो आप उसका अनुमान लगा सकते हैं। मुझे नहीं पता कि कौन इसकी गिनती कर सकता है। इस तरह की बातें करना दुर्भाग्यपूर्ण है।”

कॉन्ग्रेस नेता दिग्विजय सिंह जैसे कई विपक्षी नेता भारतीय सेना और IAF का मजाक बनाते नजर आ रहे हैं। दिग्विजय सिंह ने पुलवामा हमले को ‘दुर्घटना’ बताया तो वहीं नवजोत सिंह सिद्धू जैसे कुछ नेता तो एयर स्ट्राइक पर ही यह कहकर सवाल उठा रहे हैं कि आतंकी मारने गए थे या पेड़ गिराने? बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह द्वारा एयर स्ट्राइक में 250 से अधिक आतंकियों के मारे जाने के दावे के बाद से विपक्ष हमलावर है कि उनके पास यह आँकड़ा कहाँ से आया?

आतंकी अफजल के बेटे को भारतीय होने में शर्म, ‘आधार कार्ड सिर्फ फायदे के लिए करता हूँ यूज’

आतंकवादी अफजल गुरु के बेटे को टाइम्स ऑफ इंडिया ने ‘प्राउड इंडियन’ बताते हुए एक रिपोर्ट की थी। लेकिन वो कहीं से भी भारत पर गर्व करने लायक इंसान नहीं है – यह बात उसने खुद स्वीकारी है, पूरे होशो-हवास में, 2 मिनट 20 सेकंड के वीडियो में। 5 मार्च 2019 की शाम को सोशल मीडिया पर शेयर हुए इस वीडियो में आतंकी अफजल के बेटे गालिब गुरु ने इस रिपोर्ट पर आश्चर्य जताया। उसने कहा कि रिपोर्ट को न सिर्फ गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया बल्कि उसमें ‘अजीब बातें’ भी लिखीं गई हैं।

ऊपर के वीडियो में गालिब ने कहा, “ये इनका बेसिक इशू था कि मेरे पासपोर्ट के बारे में उन्होंने बोला था कि बाइट निकालेंगे आपके पासपोर्ट के बारे में। लेकिन जब उनका आर्टिकल सुबह में पढ़ा था तो उसमें क्लेअरली डिफरेंट चीजें थीं। मैंने सिम्पली… मेरा प्रोपेगेंडा एक ही था कि अगर मेरे पास आधार कार्ड है तो व्हाई कांट आई हैव अ पासपोर्ट? ये मेरे लिए प्रोपेगेंडा था। उनको मैंने इसलिए बोला था कि, फॉर एक्ज़ाम्पल, इस साल मेरा NEET का सेकंड ट्राय है, अगर नहीं होता तो टर्की मुझे स्कॉलरशिप देती है इसलिए मैंने उनको बोला था कि मेरा पासपोर्ट होना चाहिए। लेकिन उन्होंने क्लेअरली डिफरेंट लिखा है इसके बारे में। उन्होंने थोड़ी अजीब चीजें भी लिखी हैं इनके बारे में। मिक्स अप किया है कि मैं इंडियन सिटिज़न प्राउड हूँ। एक चीज मैं बोलना चाहता हूँ कि हाउ केन आई बी प्राउड इंडियन सिटिज़न? (मैं एक भारतीय नागरिक होने पर गर्व कैसे कर सकता हूँ?) उन्होंने मेरे पापा को मारा है। उन्होंने मेरे पूरे परिवार के साथ अन्याय किया है। तो मैं भारत पर गर्व कैसे कर सकता हूँ? मेरा यही प्रोपेगेंडा था कि जब मेरे पास आधार कार्ड है तो पासपोर्ट क्यों नहीं हो सकता?”

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की ओर से यह रिपोर्ट पत्रकार आरती सिंह टीकू और रोहन दुआ ने की थी। 5 मार्च को प्रकाशित हुए इस रिपोर्ट में गालिब को ऐसे पेश किया गया है, जिसे अपने आधार कार्ड पर गर्व है और वो अब इंडियन पासपोर्ट बनवाना चाहता है, जो उसकी भारतीय पहचान को और सशक्त बनाएगा। इस रिपोर्ट को जब गालिब ने पढ़ा तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ और इसी के विरोध में उसने ऊपर के वीडियो में अपने ‘दिल की बात’ कही।

रिपोर्ट में गालिब के लिए लिखी गई बात और उसके वीडियो में आसमान-जमीन का अंतर है। गालिब ने वीडियो में कहा कि वह भारतीय होने में गर्व कैसे कर सकता है जबकि भारत की सरकार ने न केवल उसके पिता की हत्या की बल्कि कश्मीर के साथ भी अन्याय भी किया। गालिब ने स्पष्ट किया कि उसने एक प्रोपेगेंडा के तहत टाइम्स ऑफ इंडिया को बाइट दिया। इसके पीछे उसका एकमात्र मकसद भारतीय पासपोर्ट प्राप्त करना था।

इस बात की पूरी संभावना है कि गालिब बाद में अपने इस वीडियो वाले बयान से पलट जाए। लेकिन सच्चाई यही है कि लुटियन मीडिया गिरोह आतंकी अफजल की छवि को उसके बेटे के माध्यम से बदलना चाहता है। यह आरोप नहीं है, बल्कि इसका पुख्ता सबूत नीचे का ट्वीट है। पढ़िए सागरिका घोष को और समझिए ‘गैंग’ कैसे काम करता है।

आतंकी अफजल गुरु को दिसंबर 2001 में हुए संसद हमले का दोषी पाया गया था। इस अपराध के लिए उसे 9 फरवरी 2013 को फाँसी दी गई थी।

आज़म ख़ान के बनवाए अवैध उर्दू गेट पर चला प्रशासन का बुलडोजर, 3 घंटे में ढाह दिया

उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री आज़म ख़ान द्वारा बनवाए गए उर्दू गेट को प्रशासन ने बुलडोजर चलवा कर ढाह दिया। यह उर्दू गेट मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी के स्वार रोड पर बनवाया गया था। आज़म ख़ान ने इसे अपने विधायक फंड से बनवाया था। सपा शासनकाल में बने इस गेट की ऊँचाई बहुत कम थी लेकिन तब आज़म के मंत्री होने के कारण कई शिकायतों के बाद भी इस पर कार्रवाई नहीं की गई। अब योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद जनता की शिकायतों का संज्ञान लिया गया। इस गेट की ऊँचाई इतनी कम थी कि यहाँ से बस और ट्रक भी नहीं निकल पाते थे। ऐसे में, हमेशा दुर्घटना का ख़तरा बना रहता था। कई दुर्घटनाएँ हुई भी थी।

इस गेट को गिराने के लिए प्रशासन ने पूरी मुस्तैदी से काम लिया। भारी पुलिस फोर्स की मौजूदगी में यह कार्रवाई की गई। ऐसा नहीं है कि शिकायत मिलने के बाद अचानक से इस गेट को गिरा दिया गया। शासन ने इसके लिए एसआईटी की जाँच बिठाई थी, जिसमे इसे अवैध पाया गया। शहरी क्षेत्र में होने के बावजूद इसके निर्माण के लिए रामपुर विकास प्राधिकरण से अनुमति तक नहीं ली गई थी। अपर जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने पाया कि स्वार रोड पीडब्ल्यूडी की है लेकिन बिना उसकी अनुमति के इसे बनवाया गया था। इसे नियम के विरुद्ध माना गया।

आज बुधवार (मार्च 6, 2019) सुबह बड़ी संख्या में पुलिस फोर्स और प्रशासनिक अधिकारी पहुँचे और 6 बुलडोजर का प्रयोग कर के गेट को 3 घंटे की मशक्कत के बाद ढाह दिया गया। सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। गेट के आसपास के आधा किलोमीटर तक के क्षेत्र में चप्पे-चप्पे पर पुलिस की तैनाती की गई थी। इस गेट का निर्माण कराने वाले अधिकारियों से भी वसूली की जाएगी। वहीं आज़म ख़ान ने कहा कि इस रस्ते से ओवरलोड ट्रक गुजरते थे, इसी कारण दुर्घटनाएँ होती थी। उन्होंने कहा कि हादसों को रोकने के लिए ही उन्होंने इस गेट का निर्माण करवाया था।

इस गेट को बनवाने में ₹40 लाख ख़र्च किए गए थे। आज़म खान उत्तर प्रदेश की सपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं। वे उत्तर प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद भी संभाल चुके हैं। अक्सर विवादों में रहने वाले आज़म ख़ान को सपा सरकार के दौरान प्रदेश की सबसे ताक़तवर शख्सियतों में गिना जाता था।

राफेल सुनवाई: प्रशांत भूषण और ‘द हिन्दू’ ने लिया चोरी किए डाक्यूमेंट्स का सहारा, होगी जाँच

राफेल सौदे के मामले में सुप्रीम कोर्ट 14 दिसंबर को केंद्र सरकार को क्लीन चिट दे चुकी है। राफेल सौदे को लेकर फाइल किए गए रिव्यु पेटिशन पर कोर्ट ने आज से सुनवाई शुरू की। ओपन कोर्ट में सुनवाई करते हुए हुए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने वकील प्रशांत भूषण को फटकारा। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण द्वारा किसी भी प्रकार की अतिरिक्त एफिडेविड लेने से मना कर दिया। कोर्ट ने कहा कि वह ऐसे किसी भी प्रकार की अतिरिक्त एफिडेविड या डॉक्यूमेंट को को स्वीकार नहीं करेगा, जो उसके समक्ष फाइल नहीं किए गए हों।

वहीं केंद्र सरकार ने वकील प्रशांत भूषण की प्रारंभिक याचिकाओं पर आपत्ति जताई। केंद्र सरकार की तरफ से पेश वरिष्ठ अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि प्रशांत भूषण व उनके पक्ष के अन्य वकीलों ने जिन डाक्यूमेंट्स का सहारा लिया, वो चोरी के हैं। उन्होंने कहा कि इन डाक्यूमेंट्स को मंत्रालय के वर्तमान या पूर्व अधिकारियों द्वारा धोखे से चोरी कर लिया गया था। जब अदालत ने पूछा कि सरकार इसको लेकर क्या कर रही है, तो वेणुगोपाल ने बताया कि इस मामले की जाँच बिठाई गई है।

सुनवाई के बीच में ही लंच का समय हो जाने के कारण 2 बजे दोपहर तक सुनवाई स्थगित कर दी गई। इसके बाद वेणुगोपाल कोर्ट को बताएँगे कि इस मामले में सरकार ने क्या स्टेप्स लिए हैं। वेणुगोपाल ने कहा कि समाचारपत्रों में प्रकाशित और रिव्यु पेटिशन के साथ जोड़े गए रिपोर्ट्स विशेषाधिकृत हैं और इस पर नोट नहीं लिया जा सकता। उन्होंने याद दिलाया कि यह मामला रक्षा सौदे से जुड़ा है और इसमें देश की सुरक्षा शामिल है। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि ‘द हिन्दू’ द्वारा प्रकाशित किए गए राफेल सम्बंधित काग़ज़ात ‘ऑफिसियल सीक्रेट ऐक्ट’ के तहत आते हैं।

अटॉर्नी जनरल ने दिलाया कि हालिया घटनाओं से हमें इस बात का एहसास हो गया है कि यह कितना महत्वपूर्ण और संवेदनशील सौदा है। उन्होंने कहा कि इस तरह की स्क्रूटनी भविष्य में होने वाले सौदों पर भी प्रभाव डालेगी। कोई भी देश भारत के साथ इस तरह के सौदों में शामिल होने से हिचकिचाएगा। उन्हें ऐसा लगेगा कि भारत को इस प्रकार के सौदों को पूरा करने के लिए टीवी चैनल्स, संसद और फिर अदालत से होकर गुजरना ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि उन दोनों पेपर और पेटिशन के साथ उनकी रिपोर्ट्स जोड़ने वाले वकीलों के ख़िलाफ़ अभियोजन चलाया जाएगा।