Sunday, September 29, 2024
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माओवंशियों के लिए तो ‘मिसेज़ गाँधी’ कस्तूरबा हुईं, और ‘R’ से उनका पुत्र रामदास गाँधी

माओ को अपना परमपिता बनाने के लिए नित नए साक्ष्य लानेवाले कामभक्त वामपंथी और उनका धूर्त गिरोह विचित्र-विचित्र काम करता रहता है। जैसे कि भाजपा शासित प्रदेशों को तो छोड़िए, सपा-बसपा-कॉन्ग्रेस-तृणमूल-विलुप्तप्राय तथाकथित वामपंथी पार्टियों के प्रदेशों में होनेवाले ग़ैरक़ानूनी कामों और जघन्य अपराधों के लिए हर बार अमित शाह और मोदी दोषी हो जाते हैं, क्योंकि प्रदेश में हो न हो, केन्द्र में तो उनकी सरकार है ही। 

ऐसे ही जब घोटालों पर घेरा न जा सका, तो लगातार हिंसक घटनाएँ करवाई गईं व्हाट्सएप्प पर अफ़वाह फैलाकर। इनमें से अप्रैल में हुए तथाकथित दलितों के द्वारा किए दंगों में 14 लोगों की मौत और सार्वजनिक सम्पत्ति का नुकसान प्रमुख है। चाहे जयपुर में पुलिस चौकी को जलाना हो, बंगाल में होने वाले तमाम साम्प्रदायिक दंगे हों, कश्मीर में पत्थरबाज़ों को इकट्ठा करना हो, सबकी जड़ में व्हाट्सएप्प से भीड़ जुटाने का नुस्ख़ा दिख जाता है। और गलती किसकी? मोदी की। मतलब मोदी अब समुदाय विशेष को इकट्ठा कराकर हिन्दुओं के ख़िलाफ़ दंगे कराता है। ज़ाहिर है कि दिमाग से तो नहीं ही सोचते हैं ये चम्पू। 

फिर रक्षा सौदे में दलाली करने वाला क्रिश्चियन मिशेल भारत लाया गया। इसका काम दलाली का है, जिसे अंग्रेज़ी में ‘लॉबीयिस्ट’ या ‘मिडिलमेन’ कहा जाता है, लेकिन करते दलाली ही हैं। दलाल को पैसा मिलता रहे, तो वो सबका है, पैसा मिलना बंद हो, गर्दन फँसने लगे तो वो किसी का नहीं। दलाल मिशेल पर यूपीए सरकार के दौर में अगस्ता-वेस्टलैंड नामक कम्पनी द्वारा वीवीआईपी हेलिकॉप्टर के लिए सरकार द्वारा दलाली (पढें घूस) लेने का आरोप है। 

पूरा सौदा ₹3,700 करोड़ रुपए का था, और दलाल मिशेल के साथ एक और दलाल को यूपीए सरकार की तरफ से 58 मिलियन यूरो (₹463 करोड़) घूस में दिया गया। भारतीय जाँच एजेंसियों ने बताया कि उनके पास लगभग ₹431 करोड़ के भुगतान के डॉक्यूमेंट्स हैं। ये कोई छोटा आँकड़ा नहीं है, हालाँकि यूपीए सरकार के ‘लाख करोड़’ रूपए के घोटालों का नाम सुनने के बाद हमें लगता है कि सौ-दो सौ करोड़ में तो कमला पसंद गुटखे की पुड़िया के छल्ले आते हैं।

अब, इसी घोटाले की जाँच के दौरान जो बातें सामने आईं वो चौंकाने वाली थी। राफ़ेल मामले पर राहुल गाँधी ने जो बवाल काटा था कि HAL (हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड) को क्यों नहीं बनाने दिया फ़ाइटर जेट, उन्हीं की पार्टी की मुखिया रहीं उनकी माता सोनिया गाँधी, और कैबिनेट के लोगों ने यही हेलिकॉप्टर बनाने का काम इसी HAL को नहीं दिया था। ये बात तो ख़ैर अलग ही है कि पिछले पाँच वर्षों में यही संस्था जो हेलिकॉप्टर नहीं बना पाती थी, राफ़ेल जैसे जेट बना लेगी। 

तो, राहुल गाँधी को इस बात पर भी देश के हर जिले में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताना चाहिए कि आखिर HAL पर जो हाल में हड़कम्प उन्होंने मचाया था, उसे हेलिकॉप्टर बनाने का ऑर्डर क्यों नहीं दिया गया। क्या यूपीए, अपने ही लॉजिक के अनुसार, भारतीय संस्था को एक हेलिकॉप्टर बनाने लायक नहीं समझती? लेकिन इसका जवाब न तो राहुल गाँधी से आएगा, न ही कॉन्ग्रेस प्रवक्ताओं से, न ही कामभक्त वामपंथी गिरोह के सरगनाओं से। शायद, ये राज भी RDX अंकल के बेटे लकी के साथ ही चला गया! 

दलाल मिशेल के नोट्स और कोडवर्ड्स को तो जाँच एजेंसियाँ तोड़ ही लेंगी, लेकिन लाजवाब बात यह है कि ED (एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट) को जाँच के दौरान जो बातें जानने को मिलीं, उसे लम्पटों का धूर्त गिरोह नहीं मान रहा। ये वही गिरोह है जो गौरी लंकेश हो या डभोलकर, पनसरे या कलबुर्गी, इनकी हत्या के आधे घंटे में बता देता है कि कैसे मोदी और अमित शाह ये काम करवा रहा है। ये वही गिरोह है जो प्रशांत पुजारी, डॉक्टर नारंग, अंकित श्रीवास्तव जैसी हत्याओं के हत्यारों का नाम जानने के बाद भी चुप रहता है। 

यही कारण है कि दलाल मिशेल द्वारा ‘मिसेज़ गाँधी’ और ‘इटैलिएन महिला का पुत्र R’ वाला संकेत किसी को समझ ही में नहीं आया कि आखिर इस देश में ‘मिसेज़ गाँधी’ है कौन! और यह भी कि इटालिएन लेडी का पुत्र, जिसका नाम अंग्रेज़ी के ‘आर’ से शुरु होता है!

न तो घटना के होने के दस मिनट बाद से तीन दिन बाद तक में कोई प्राइम टाइम हो रहा है, जैसा कि अमूमन हो जाता है, न ही कोई ट्वीट करते हुए ये पूछ रहा है कि मिशेल ने आखिर जो नाम लिया उसका क्या मतलब है। सवाल यह भी नहीं आ रहे कि जो डॉक्यूमेंट्स ईडी आदि एजेंसियों के पास हैं, उनके आधार पर राहुल गाँधी से ये पूछा जाए कि HAL के बारे में अब क्या ख़्याल है? 

ये पूरा इकोसिस्टम है जो सोचता है कि अगर वो इस पर बात नहीं करेंगे तो देश की जनता को लगेगा कि ‘मिसेज़ गाँधी’ तो महात्मा गाँधी की पत्नी कस्तूरबा ही होंगी क्योंकि बाकी तो कोई असली गाँधी है नहीं। दूसरी बात यह भी है कि गाँधी के एक बेटे का नाम भी रामदास गाँधी था, तो लोगों के लिए ये समझना मुश्किल है कि यहाँ ‘मिसेज़ गाँधी’ कौन है। वैसे भी, देश में जैसे-जैसे नरगधों और नरगधियों ने इतिहास लिखे हैं, कोई लक्ष्मणसूर्य पोहा ये न कह दे कि कस्तूरबा गाँधी वाक़ई में इतालवी महिला थी जो महात्मा गाँधी से दक्षिण अफ़्रीका प्रवास के दौरान मिली थी और दोनों में प्रेम हो गया। 

ऐसे मुद्दों पर सहज शांति बताता है कि सत्ता से बाहर जाने के बावजूद इनके चाटुकारों की फ़ौज की पैठ कितनी है। सरकार बदलते ही भीड़ हत्या के मामलों की रिपोर्टिंग में ऐसे बदलाव आता है कि कल तक का ‘गौरक्षकों ने पहलू खान को घेरकर मार डाला’, परसों के मिरर नाउ में, उसी इलाके में उसी तरह की हुई हिंसा पर ‘नवयुवक को भीड़ें ने घेरकर पीटा’ कहकर बताया जाता है। पहले वो नवयुवक मुस्लिम हुआ करता था, अब वो बस नवयुवक है। 

ये सब बहुत ही सूक्ष्म तरीके से किये जाने वाले कार्य हैं जहाँ हेडलाइन में पहचान जोड़कर आप किसी राज्य की पुलिस को ‘मजहब’ विरोधी दिखा सकते हैं, और कभी उस ख़बर को ऐसे लिखेंगे कि आपकी ध्यान ही नहीं जाएगा। वैसे ही, बंगाल चुनाव के दौरान तृणमूल काडरों द्वारा भाजपाइयों की हत्या और लगातार हो रही हिंसा पर रवीश कुमार जैसे लोग ममता बनर्जी का नाम तक नहीं लिख पाते, लेकिन किसी भाजपा शासित प्रदेश के पंचायत चुनावों में होने वाली झड़प पर इतना लिखते हैं कि बिहार का आदमी पढ़कर सोच में पड़ जाए कि वो जहाँ है, वहाँ कितनी हिंसा हो रही है। 

कमलनाथ जैसे नेता को मुख्यमंत्री बनने पर ‘कोर्ट के फ़ैसले’ का इंतज़ार करने को कहा जाता है, लेकिन मोदी तो 2002 से ही कुर्ते में तलवार छुपाए घूम रहा है जबकि हर कोर्ट और जाँच एजेंसी से वो बरी किया जा चुका है। इन सब पर न तो नैरेटिव बनता है, न लेख लिखे जाते हैं, न ट्वीट होता है, नो फ़ेसबुक पोस्ट आते हैं। 

अच्छी बात यह है कि अब नैरेटिव वन-वे नहीं है कि पुरोधा ने लिख दिया, हमने मान लिया। न तो कोई विरोध का ज़रिया, न ही प्लेटफ़ॉर्म कि आम आदमी अपनी बात कह सके। अब जनता को दिखने लगा है कि नंगे लोग नंगई पर उतर आएँ तो एक परिवार की सेवा में रोआँ तो झाड़ेंगे ही, एक्सट्रा नंबर के लिए अपनी चमड़ी भी छील सकते हैं। ये लोग लाइन में लगकर ‘मिसेज़ गाँधी’ और उनके सुपुत्र ‘आर’ के लिए अपने कपड़े उतार कर उनके घरों के पर्दे बनवा रहे हैं। लेकिन जनता उस पर जल्द ही पेट्रोल छिड़ककर आग लगाएगी क्योंकि फिर से सस्ता हो गया है।  

वामपंथी लम्पट गिरोह चुप रहता है जब ‘गलत’ भीड़ ‘गलत’ आदमी की हत्या करती है

ग़ाज़ीपुर में निषाद जाति के लोगों ने सुरेश वत्स नाम के पुलिसवाले को डंडों से पीट कर मार दिया। पुलिसवालों की गलती यह थी कि वो कहीं से ड्यूटी करके लौट रहे थे। निषाद आरक्षण माँगनेवालों ने दिन भर कुछ ढंग का किया नहीं था, तो पीएम की रैली से लौटते पुलिस की गाड़ी पर धावा बोल दिया। पहले पत्थरबाज़ी की, और जब पुलिसवाले बाहर आए रास्ता क्लियर कराने तो डंडों से बुरी तरह से पीटा। इसमें एक की मौत हो गई, कई घायल हैं। 

अप्रैल में ऐसे ही कॉन्ग्रेस-सपा-बसपा-वामपंथी पार्टियों के फैलाई गई अफ़वाह के बाद जब भारत के सताए हुए, वंचितों और आरक्षितों ने जब अपना रूप दिखाया तो चौदह लोगों की जानें गई थीं। अफ़वाह एक सुनियोजित षड्यंत्र था जिसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बिलकुल ही मरोड़कर ऐसा बताया गया कि आरक्षण की व्यवस्था खत्म की जा रही है। व्हाट्सएप्प का सहारा लिया गया और देश को शोषितों, वंचितों, और आरक्षितों का एक और रूप दिख गया कि इन्हें भी इकट्ठा करके दंगा कराया जा सकता है। 

हाल ही में बुलंदशहर में भी एक ऐसी ही भीड़ ने कई गौहत्यायों के मद्देनज़र पास के पुलिस स्टेशन के सामने धरना दिया। उसी में किसी ने भीड़ में होने का फायदा उठाया और गोली चलने से एक पुलिस अफसर की मौत हो गई। इसके साथ ही, एक नवयुवक की भी मृत्यु हो गई। 

बुलंदशहर वाले कांड पर बहुत बवाल हुआ जब योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गौहत्या करनेवालों को सजा दी जाएगी और अफसर की हत्या की जाँच होगी। इसमें से पहले हिस्से को वामपंथी लम्पट पत्रकार और तथाकथित बुद्धिजीवी गिरोह के सरगनाओं ने ऐसे पोस्ट करना शुरु किया जिसमें ऐसा दिखा कि योगी आदित्यनाथ को गायों से मतलब है, पुलिसवाले से नहीं। जबकि ऐसा कहीं नहीं कहा गया कि पुलिसवाले की मौत की जाँच नहीं होगी। 

निषाद पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा की गई इस भीड़ हत्या पर इसी गिरोह का कोई व्यक्ति कुछ नहीं बोल रहा क्योंकि इसमें न तो गाय का एंगल है, न ही मरने वाला समुदाय विशेष से या दलित है। इस भीड़ हत्या, या लिंचिंग, में वैसे विशेषण नहीं हैं जिससे कुछ ढंग की ख़बर मैनुफ़ैक्चर की जा सके। इसलिए ऐसी भीड़ से न तो नसीरुद्दीन शाह जैसे लोगों को डर लगेगा, न ही माओवंशी कामपंथी वामभक्तों को। 

अप्रैल वाला आंदोलन एक दंगा था, जो कराया गया। यहाँ खाली बैठी जनता पाँच सौ रुपए लेकर सेना की गाड़ियों पर पत्थरबाज़ी के लिए हर शुक्रवार पत्थर लेकर मस्जिदों से बाहर निकलती है। वैसी ही खाली जनता हर जगह उपलब्ध है। बड़े नेताओं की लिस्ट में अपना नाम ऊपर उठाने के लिए, समाज पर उसके प्रभाव की चिंता किए बिना, छुटभैये नेता ‘इंतज़ाम हो जाएगा’ के नाम पर गाँव-घर के नवयुवकों को गाड़ी में पेट्रोल के नाम पर इकट्ठा करके आग लगवाते हैं। 

जातिगत आरक्षण एक ऐसा कोढ़ है जो हर समझदार आदमी को दिखता ज़रूर है, लेकिन उसी समझदार आदमी को पब्लिक में ये स्वीकारने में समस्या होती है क्योंकि अगर वो नेता है तो उसका करियर खत्म है। अवसर देकर बेहतर बनाने की जगह कमतर लोगों को आगे धक्का देने की परम्परा ने ऐसी भीड़ तैयार कर दी है जहाँ हर कोई अपने को दूसरे से ज़्यादा नकारा दिखाने की होड़ में है। यहाँ हालत यह है कि एक के बाद एक जातियाँ अपनी बेहतरी के लिए शिक्षा का लाभ लेने की जगह, अपने आप को बेकार साबित करने पर तुली हुई है। 

चूँकि, बाकी तरह के आरोपों से भाजपा सरकार बरी हो जा रही है तो अब हिंसा का ही रास्ता बचा है जिसका सहारा लेकर अव्यवस्था फैलाई जा सकती है। अख़लाक़ की मौत को कैसे भुनाया गया वो सबको पता है। रोहित वेमुला की माँ को चुनावों के दौरान कितना घुमाया गया ये उसकी आत्मा जानती है। नजीब अहमद को कहाँ गायब कर दिया गया किसी को पता नहीं लेकिन उसकी माँ हर मंच पर घसीटी गई। जुनैद का नाम लेता रहा गया जबकि सीट के झगड़े की लड़ाई थी। ऐसे ही कई मामले हुए जो सामाजिक थे, निजी झगड़ों का नैसर्गिक परिणाम, लेकिन उसे राजनैतिक रंग देकर चुनावों में बढ़त ली गई। एक पूरे समाज को बताया गया कि तुम्हारे ख़िलाफ़ साज़िश चल रही है। 

ये आज़माया हुआ हथियार है। इसका परीक्षण कई बार करके देख लिया गया है। अफ़वाहों का इस्तेमाल हिंसा भड़काने के लिए सबसे ज़रूरी होता है। कुछ ऐसा कह देना जिस पर विश्वास करना मुश्किल हो पर जाति और धर्म के नाम पर कश्मीर में हुई बात सुनाकर कन्याकुमारी के लोगों को सड़क पर रॉड लेकर उतारा जा सकता है। 

रेल की पटरियों कभी जाटों की भीड़ आ जाती है, कभी गूजरों की भीड़ दिल्ली पर चढ़ाई कर देती है, कभी SC/ST एक्ट के बारे में अफ़वाह फैलाकर दंगा करा दिया जाता है। इन सबके बाद केन्द्र की सरकार को हर जाति के विरोध में दिखाया जाता है। हर धर्म के विरोध में केन्द्र सरकार को विरोधी बताते हैं, कभी ये कहकर कि समुदाय विशेष को अपने हिसाब से चलने दो, कभी ये कहकर कि राममंदिर क्यों नहीं बन रहा! जबकि सारे मामलों में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश या आदेश होते हैं जड़ में। 

घोटालों पर इस सरकार को खींचना असंभव हो गया, और सुप्रीम कोर्ट ने राफ़ेल पर फ़ैसला दे ही दिया तो अब अंतिम शस्त्र छोटे समूहों को भड़काना है। पहले इन्हें भड़काया जाएगा कि तुम दूसरी जातियों से ज़्यादा बुरी स्थिति में हो, भीड़ इकट्ठा होगी किसी बैनर तले, फिर पुलिस सुरक्षा व्यवस्था को सुचारु रखने के लिए हथकंडे अपनाएगी तो उससे होने वाले नुकसान का दोषी भी पुलिस और सरकार को ही ठहराया जाएगा। उसके बाद सरकार हर उस अनियंत्रित भीड़ के विरोध में खड़ी दिखेगी, जो हिंसक होकर आग लगाने से लेकर, जान लेने के लिए सक्षम है, और लेती रही है। 

ये इंतज़ार है कि कैसे एक ‘सही’ भीड़, ‘सही’ व्यक्ति की हत्या कर दे। क्योंकि ‘गलत’ (मजहब विशेष/दलित) भीड़ो ने ‘गलत’ (हिन्दू/सवर्ण) लोगों की जानें खूब ली हैं, लेकिन उस पर बात नहीं होती। ‘सही’ व्यक्ति की हत्या के बाद देश में ऐसा माहौल बनाया जाएगा जिससे लगेगा कि हर जगह पर वैसा व्यक्ति असुरक्षित है। अभी आनेवाले दिनों में भीड़ हिंसा बढ़ सकती है क्योंकि राजस्थान और मध्यप्रदेश में नई सरकारों के आते ही भीड़ लगनी शुरु हो गई है। यूरिया से लेकर गैस सिलिंडर के लिए लोग अब लाइनों में खड़े हो रहे हैं। ऐसी भीड़ों को किसी भी उपाय से केन्द्र की तरफ मोड़ा जाएगा कि तुम्हारे हर समस्या की जड़ में मोदी है। 

जब तक ‘सही’ भीड़, ‘सही’ व्यक्ति की हत्या नहीं करती है तब तक पुलिसकर्मी की मौत पर लोग चुप रहेंगे। क्योंकि यहाँ ‘गलत’ भीड़ ने ‘गलत’ आदमी की जान ले ली। यहाँ अगर पुलिस के लोग जान बचाने के चक्कर में गाड़ी से किसी को धक्का भी मार देते तो इस्तीफा मोदी से ही माँगा जाता। यहाँ न तो दलित मरा, न समुदाय विशेष का शख्स। उल्टे तथाकथित दलितों ने पुलिस वाले की जान ले ली क्योंकि उन्हें लगा कि वो जान ले सकते हैं। ये मौत तो ‘दलितों/वंचितों’ का रोष है जो कि ‘पाँच हज़ार सालों से सताए जाने’ के विरोध में है। है कि नहीं लम्पटों? 

‘ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करो’ – चंद्रबाबू नायडू की नागरिकों को अजीबोगरीब सलाह

आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने चौंका देने वाला निर्णय लेते हुए दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले जोड़ों को सरकार द्वारा प्रोत्साहन और सहायता देने की घोषणा की है। साथ ही उन्होंने आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में उस नियम पर भी रोक लगा दी जिसमे दो से ज्यादा बच्चे वाले उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। ये कदम उठाकर नायडू पन्द्रहवें वित्तीय आयोग द्वारा जनसंख्या के आधार पर राज्यों को दिए जाने वाले अतिरिक्त लाभ का मौका नहीं गंवाना चाहते हैं। इतना ही नहीं, नायडू ने राज्य में जनसंख्या की बढ़ोतरी को प्रोत्साहित के लिए योजनाएं बनाने बनाने को भी तैयार दिखे।

मानव संसाधन विकास पर श्वेत पत्र जारी करते हुए चंद्रबाबू नायडू ने कहा;

“राज्य ने पिछले दस वर्षों में जनसँख्या में 1.6% की गिरावट देखी है। जनसंख्या से जुड़े असंतुलन के रुझानो को ठीक करने का ये सही समय है। कहीं ऐसा न हो कि राज्य अगले दस सालों में ज्यादा खाने वाले मुंह और कम काम करने वाले हाँथ की वजह से पहचाना जाये।”

उन्होंने कहा कि अभी राज्य में करीब 50% लोग युवा हैं और साथ ही ज्यादा बच्चे पैदा कर राज्य को हमेशा जवान बनाये रखने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि कम जन्म दर का कारण राज्य में जनसंख्या नियोजन के लिए किये जाने वाले उपायों का क्रियान्वयन था जिस से कि राज्य की जनसंख्या में कमी देखी गई है। साथ ही नायडू ने कहा कि राज्य सरकार शिशु मृत्यु दर की जांच कर रही है, और ये 2014 में 3.7 प्रतिशत से घटाकर 2018 में 1.051% पर आ गया है।

जब पूरा देश जनसंख्या के में बढ़ोतरी के संकट से जूझ रहा है, ऐसे समय में नायडू का ऐसा कहना हास्यास्पद ही नहीं बल्कि खतरनाक भी है। भारत जनसंख्या के मामले में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है और विश्लेषकों का मानना है कि 2014 तक हमारा देश दुनिया का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश हो जायेगा। ऐसे में किसी एक राज्य को देश से अलग कर के देखना एक खतरनाक ट्रेंड को जन्म दे सकता है। महज कुछ वित्तीय लाभ के लिए पहले से ही बेकाबू जनसंख्या वृद्धि की दर को और बढ़ाने की बात करना बिलकुल भी सही नही है। वो भी ऐसे राज्य में जहां की जनसंख्या पांच करोड़ से भी अधिक हो और जो जनसंख्या के आधार पर भारत के शीर्ष दस राज्यों में शामिल हो।

आन्ध्र प्रदेश की जनसंख्या 2011 के जनगणना के मुताबिक़ लगभग पांच करोड़ है। ये एक बहुत बड़ी आबादी है। क्योंकि अगर आन्ध्र को दुनिया की सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले देशों की श्रेणी में रख कर देखें तो ये तालिका में शीर्ष-30 में आयेगा। यानी 200 से अधिक देश ऐसे हैं जहां की जनसंख्या आन्ध्र प्रदेश से कम है। और ऐसा आन्ध्र ही नहीं बल्कि पूरे भारत के साथ है। जहां पूरे भारत में जनसंख्या नियंत्रण की बात हो रही है, वहां उलटी गंगा बहाना कहाँ तक उचित है, ये चंद्रबाबू नायडू से पूछा जाना चाहिए। नायडू दलील देते हैं कि राज्य की जनसंख्या में 1.6% की गिरावट आई है। लेकिन ऐसा कहते हुए वो यह भूल जाते हैं कि 2001 के जनगणना के दौरान राज्य का जनसंख्या घनत्व 277 था जो 2011 में बढ़ कर 300 के पार हो गया।


अगर सच बोलने से कोई संघी हो जाता है तो सभी को संघी बनाना चाहिए: पूर्व डीजीपी, केरल

केरल के पूर्व डीजीपी टीपी सेनकुमार ने शुक्रवार को कहा कि अगर सच बोलने और सच्चाई के लिए पूछने से कोई संघी हो जाता है तो सभी लोगों को संघी बनाना चाहिए। अन्य पार्टियों से भाजपा में आये लोगों के लिए रखे गए स्वागत समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही। बता दें कि सेनकुमार को 2016 में पिनाराई विजयन ने मुख्यमंत्री का कार्यभार सम्भालते ही डीजीपी के पद से हटा दिया था लेकिन शीर्ष अदालत के एक फैसले के बाद उन्हें फिर से डीजीपी बना दिया गया था।

अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि वो लगभग सभी पार्टियों के कार्यक्रमों में उपस्थित रहे हैं लेकिन कुछ दिनों से उनके साथ अछूत जैसा बर्ताव किया जा रहा है जो कि उन्होंने पहले कभी अनुभव नहीं किया। उन्होंने कहा कि वो इस कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने इसीलिए आये हैं क्योंकि वो इस छुआछूत पर विराम लगाना चाहते हैं। सेवा भारती संगठन के कार्यक्रम में जाने को लेकर कई लोगों की आलोचना का सामना कर रहे सेनकुमार ने कहा कि भारत में ऐसा कोई संगठन नहीं है जो सेवा भारती की तरह निःस्वार्थ भाव से काम करता हो। साथ ही उन्होंने ये भी दोहराया कि वह इस संगठन के कार्यक्रमों में शामिल होते रहेंगे।

“नरेन्द्र मोदी को अगले दस सालों तक प्रधानमंत्री बने रहना चाहिए।”

-टीपी सेनकुमार, पूर्व डीजीपी, केरल

साथ ही पूर्व पुलिस महानिरीक्षक ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भी जम कर तारीफ़ करते हुए कहा कि मोदी को कम से कम अगले दस सालों तक प्रधानमंत्री बने रहना चाहिए। उन्होंने कहा;

“मोदी दस साल तक प्रधानमंत्री रहे तभी देश में ऐसी स्थिति बन पायेगी जहां गरीब आदमी भी रह सके। केंद्र में वर्तमान सरकार ही बनी रहनी चाहिए। ये हमारे प्रधानमंत्री की ही दें है कि आज कोई भी भारतीय गर्व के साथ विदेश में यात्रा कर सकता है। लोगों को देश में पिछले साढ़े चार सालों में हुए विकास के बारे में सोंचना चाहिए।”

उन्होंने साथ ही ये भी कहा कि भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने का उनका अभी कोई प्लान नहीं है क्योंकि वह एक पार्टी कार्यकर्ता के नियमों और अनुशासन का पालन करने के लिए अभी तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वो सिर्फ एसएनडीपी योगम और लोकल आवासीय संघ के सदस्य हैं और इसके अलावा उनके पास किसी भी दल या संगठन की सदस्यता नहीं है।बता दें कि सेनकुमार 2017 में पुलिस महानिरीक्षक के पद से सेवानिवृत हो चुके हैं। उसके बाद उनके एक बयान को लेकर पुलिस ने केस भी दर्ज किया था लेकिन उच्च न्यायलय ने उन्हें इन आरोपों से बरी कर दिया था। 2009 में उन्हें पुलिस में विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति मैडल के लिए भी नवाजा जा चुका है।

गगनयान से अंतरिक्ष में भेजे जायेंगे 3 भारतीय; मोदी कैबिनेट ने मंजूर किया दस हजार करोड़ का बजट

आपको याद होगा कि इस साल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 15 अगस्त 2018 को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऐलान किया था कि 2022 में देश की स्वतंत्रता के 75वीं वर्षगांठ पर भारत का कोई नागरिक अंतरिक्ष में जायेगा। प्रधानमंत्री ने अपने महत्वपूर्ण सबोधन में इस प्रोजेक्ट का जिक्र करते हुए घोषणा की थी कि इसके बाद भारत अंतरिक्ष में मानव पहुंचाने वाला चौथा देश बन जायेगा। उन्होंने कहा था;

“आज लाल किले की प्राचीर से मैं देशवासियों को एक खुशखबरी सुनाना चाहता हूं। हमारा देश अंतरिक्ष की दुनिया में प्रगति करता रहा है। हमने सपना देखा है कि 2022 में आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर या उससे पहले भारत की कोई संतान, चाहे बेटा हो या बेटी, वह अंतरिक्ष में जाएगा। हाथ में तिरंगा लेकर जाएगा। आजादी के 75 साल पूरे होने से पहले इस सपने को पूरा करना है। भारत के वैज्ञानिकों ने मंगलयान से लेकर अब तक ताकत का परिचय कराया है।”

अब ये घोषणा धरातल पर उतरने को तैयार है क्योंकि केंद्रीय कैबिनेट ने शुक्रवार को इस महत्वकांक्षी योजना के लिए दस हजार करोड़ रुपये के बजट की मजूरी दे दी है और इसके साथ ही तीन भारतीय नागरिकों को सात दिन के लिए अंतरिक्ष में भेजने की उलटी गिनती भी शुरू हो गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इन तीन नागरिकों में एक महिला भी शामिल होगी। ज्ञात हो कि भारत से पहले सिर्फ तीन देश- अमेरिका, रूस और चीन ही इस मुकाम तक पहुँच पाए हैं। इस सम्बन्ध में अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय राकेश शर्मा से भी सलाह-मशविरा किये जाने की सम्भावना है। 2022 तक का समय भी काफी कम है और इसके लिए इस से जुड़े एजेंसियों को तत्परता से काम करना पड़ेगा।

इस योजना को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा अंजाम तक पहुंचाया जायेगा। इसके लिए इसरो को अंतरिक्ष में यान भेजने और उसे सफलतापूर्वक धरती पर वापस उतारने के लिए कड़ी तैयारियां करनी होगी। मालूम हो कि इसरो द्वारा विकसित किया गया राकेट जीएसएलवी मार्क-2 अब तक दो बार उड़ान नभर चुका है लेकिन मानव को अंतरिक्ष में भेजने के लिए जरूरी रेटिंग पाने के लिए उसे कम से कम चार बार सफलतापूर्वक उड़ान भरनी पड़ेगी। इसके अलावा इसरो एक क्रू एस्केप सिस्टम भी विकसित करने में लगा हुआ है जो किसी भी गड़बड़ी की सूचना पहले ही दे देता है। इसी मिशन के क्रम में नवंबर में इसरो ने रॉकेट जीएसएलवी मार्क 3डी 2 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया था.

विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले तीन लोगों का चुनाव भी काफी कठिन प्रक्रिया द्वारा किया जायेगा। सम्भावना है कि भारतीय वायुसेना के पायलट्स को इसके लिए मौक़ा मिल सकता है। इस प्रक्रिया के तहत 200 इ भी अधिक पायलट्स का टेस्ट लिए जाने की संभावना है। ऐसा इसीलिए क्योंकि उनमे अपना काम ख़त्म कर के वापस आने की काबिलियत कहीं अधिक होती है। उनकी ट्रेनिंग भी कुछ इस प्रकार की ही होती है कि वो इस काम के लिए फिट बैठते हैं। क्रू सदस्यों के चुनाव के बाद उन्हें सबसे अलग एकांत में रखा जायेगा ताकि उन्हें अंतरिक्ष वाले माहौल में रहने का प्रशिक्षण दिया जा सके। ये प्रशिक्षण कम से कम दो साल तक चलेगा।

इस मिशन की कमान एक ऐसी महिला के हाथों में दी गई है जिन्हें कई अंतरिक्ष मिशन सफलतापूर्वक पूरा करने का अच्छा-ख़ासा अनुभव हासिल है। केरल की 56 वर्षीय वीआर ललिताम्बिका को इस मिशन का निदेशक नियुक्त किया गया है। जब भारत ने एक साथ 104 सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में छोड़े the तब ललिताम्बिका ने अपनी टीम के साथ उसमे अहम योगदान दिया था। इस मिशन के बाद दुनियाभर में इसरो की तारीफ़ हुई थी। ललिताम्बिका गगनयान मिशन में यह सुनिश्चित करेंगी कि अंतरिक्ष में इंसान को ले जाने वाले सिस्टम को तैयार किया जाए और उनका परीक्षण हो।

कुल मिलाकर देखें तो अंतरिक्ष योजनाओं में बढ़ रही पर्तिस्पर्धा के लिए भारत अब तैयार दिख रहा है। इसरो के इस तरह के मिशन से भारतीय युवाओं की भी इस क्षेत्र के प्रति दिलचस्पी बढ़ेगी और वो संगठन में भर्ती होने के लिए प्रेरित होंगे। इसके अलावा इसके सफल समापन के बाद विश्व में भारत की प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी। बता दें कि इसरो ने अगले साल 20 से भी ज्यादा मिशन को पूरा करने का लक्ष्य रखा है। सरकार ने भी ऐसी योजनाओं के लिए दिए जाने वाले बजट में वृद्धि की है जिसका परिणाम हम कई सफल मिशन के रूप में देख चुके हैं।


सोहराबुद्दीन-प्रजापति एनकाउंटर मामला; अदालत ने कहा सीबीआई नेताओं को फंसाना चाहती थी

सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति एनकाउंटर मामले में एक नया मोड़ आया है। विशेष अदालत ने सीबीआई पर तल्ख़ टिपण्णी करते हुए कहा है कि जांच एजेंसी का मकसद सच्चाई तक पहुंचना नहीं बल्कि नेताओं को फंसाना था। अदालत ने कहा कि मुठभेड़ की जांच शुरू करने से पहले ही सीबीआई ने सबकुछ तय कर लिया था कि किस तरह से और कौन से राजनितिक व्यक्तियों को इस मामले में घसीटना है। मालूम हो कि 2121 दिसम्बर को सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एसजे शर्मा ने इस मामले में सभी आरोपियों को बरी करने का निर्णय सुनाया था। अपने 350 पन्नो वाले फैसले में उन्होंने ये तल्ख़ टिपण्णी की।

अदालत के फैसले में कहा गया है;

“मेरे समक्ष पेश किए गए तमाम सबूतों और गवाहों के बयानों पर करीब से विचार करते हुए मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि सीबीआई जैसी एक शीर्ष जांच एजेंसी के पास एक पूर्व निर्धारित सिद्धांत और पटकथा थी, जिसका मकसद राजनीतिक नेताओं को फंसाना था। सीबीआई ने मामले की अपनी जांच के दौरान सच्चाई को सामने लाने के बजाय किसी अन्य चीज पर काम किया।”

आगे इसी फैसले में अदालत ने सीबीआई पर सख्त टिपण्णी करते हुए कहा;

“पूरी जांच एक किसी तरह राजनेताओं को फंसाने के क्रम में गढ़ी गई कहानी पर केंद्रित थी। सीबीआई ने किसी तरह साक्ष्य तैयार किया और आरोपपत्र में गवाहों का बयान आपराधिक दंड प्रकिया की धारा 161 या धारा 164 के तहत दर्ज किया गया झूठा बयान पेश किया।”

अदालत के बयान से ये साफ़ है कि उसकी नजर में केंद्रीय जांच एजेंसी ने जांच की बजाय एक कहानी गढ़ी और कुछ लोगों को इस मामले में घसीटने के लिए उन्हें आरोपित बनाया गया। अदालत का सीबीआई पर गवाहों के झूठे बयान पेश करने वाली टिपण्णी भी जाँच एजेंसी के कार्यप्रणाली पर काफी सवाल खड़ी करती है। अदालत का मानना था कि जांच में गवाहों के गलत बयान रिकॉर्ड किये गए।

ज्ञात हो कि इस मामले की सुनवाई के दौरान करीब 92 गवाह अदालत में अपने पुलिस को दिए गए बयानों से मुकर गए थे। न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि उन्हें साफ़-साफ़ प्रतीत हो रहा था कि ये गवाह अदालत के सामने सच बोल रहे हैं।

“मुझसे पहले वाले जज ने आरोपित नंबर 16 (अमित शाह) को आरोपमुक्त करते हुए ये साफ़-साफ़ कहा था कि जांच राजनीति से प्रेरित थी।”

– न्यायमूर्ति एसजे शर्मा, विशेष अदालत

बता दें कि इसी मामले में अमित शाह सहित 15 अन्य आरोपियों को 2014 में आरोपमुक्त कर बरी किया जा चुका है जबकि बाँकी के सभी आरोपियों को विशेष अदालत ने इस महीने बरी कर दिया। ये मामला पुलिस और अपराधियों में हुए मुठभेड़ों से जुड़ा है। नवम्बर 2015 में गुजरात और राजस्थान की एसटीएफ ने अपराधी सोहराबुद्दीन शेख को एक मुठभेड़ में मार गिराया था और इनके लगभग एक साल बाद उसके सहयोगी तुलसीराम प्रजापति को भी एक एनकाउंटर में मार गिराया गया था। सीबीआई के अनुसार ये फर्जी मुठभेड़ थे। इस मामले में अधिकतर अभियुक्त नेता और पुलिस अधिकारी थे जिनमे सभी बरी हो चुके हैं।

इसी महीने दिए गये अपने निर्णय में न्यायमूर्ति एसजे शर्मा ने अपने कार्यकाल का अतिम फैसला सुनाते इस मुठभेड़ को फर्जी मानने से इनकार कर दिया था और कहा था कि सीबीआई द्वारा पेश किये गए सबूत अभियुक्तों को दोषी ठहरानी के लिए काफी नहीं हैं। शर्मा इस महीने के अंतिम तारीख को रिटायर हो रहे हैं।

त्रिपुरा निकाय चुनावों में भाजपा का क्लीन स्वीप, अमित शाह जनवरी में करेंगे दौरा

भारतीय जनता पार्टी ने त्रिपुरा में हुए निकाय चुनावों में भारी जीत दर्ज की है। पार्टी ने राज्य के सभी 11 नगरपालिकाओं पर जीत का परचम लहराया है। वहीं राजधानी अगरतला महानगरपालिका की सभी चार सीटों पर क्लीन स्वीप करते हुए भाजपा ने विपक्षी दलों को चारों खाने चित कर दिया है। पार्टी के त्रिपुरा प्रभारी सुनील देवधर ने एक ट्वीट के माध्यम से इसकी जानकारी देते हुए भाजपा की राज्य इकाई को बधाई दी। उन्होंने लिखा;

“फिर से! त्रिपुरा से बहुत अच्छी खबर आ रही है। त्रिपुरा की 11 में से 11 नगरपालिकाओं पर जीत के लिए त्रिपुरा भाजपा एवं बिप्लब देव को हार्दिक बधाई। कांग्रेस और सीपीआईएम की लगभग सभी सीटों पर जमानत जब्त।”

वहीं त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देव ने भी इस जीत के लिए कार्यकर्ताओं का धन्यवाद किया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि इस जीत से यह साबित हो गया है कि राज्य की जनता ने प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों में फिर से भरोसा जताया है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने कहा कि अब 20 में से 11 नगरपालिकाओं पर भाजपा का कब्जा है।

राम माधव ने लिखा;

“निकाय चुनावों में 11 नगरपालिका सीटों पर जीत के लिए बिप्लब देव और त्रिपुरा भाजपा को हार्दिक बधाई। करारी हार को सामने देखते हुए सीपीएम कल दोपहर बीच चुनावों में से ही भाग कड़ी हुई। अब राज्य की 20 में से 11 नगरपालिका सीटों पर भाजपा का कब्जा है।”

याद हो कि इसी साल हुए चुनावों में भाजपा ने वाम का गढ़ माने जाने वाले त्रिपुरा में बड़ी जीत दर्ज की थी। बीस सालों से वहां सत्ता सम्भाल रहे माणिक सरकार की सीपीएम को हार का सामना करना पड़ा।

उधर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी की तैयारियों का जायजा लेने पांच जनवरी को त्रिपुरा का दौरा करने वाले हैं। पार्टी के मुख्या प्रवक्ता अशोक सिन्हा ने अधिक जानकारी देते हुए कहा;

‘अमित शाह जी का पांच जनवरी को विवेकानंद ग्राउंड पर ‘पृष्ठ प्रमुख सम्मेलन’ को संबोधित करने के लिए राज्य का दौरा करने का कार्यक्रम है। सम्मेलन के दौरान वह संगठन के प्रदर्शन की समीक्षा करेंगे और 2019 के आम चुनावों के लिए ‘पृष्ठ प्रमुखों’’ को कुछ कार्य सौंपेंगे।’’

NIA द्वारा पकड़े आतंकी 25 किलो ‘मसाले’ से चिकन मैरिनेट करने वाले थे

माओ की नाजायज़ वामपंथी कामभक्त औलादों को यूँ ही गाली नहीं पड़ती है, ये मोदी-विरोध में इतना गिर चुके हैं कि कल को कोई कह दे कि बच्चे अपने माँ-बाप की पैदाइश होते हैं, तो ये कहने लगेंगे कि ‘नहीं, हम तो माओ के प्रीजर्व्ड सेमेन से जन्मे हैं’।

NIA की टीम ने ISIS के कुछ आतंकी पकड़े और उनसे बरामद की गई वस्तुओं को पब्लिक में दिखाया। उसमें, यूँ तो वैसे भी हथियार थे ही, लेकिन बने-बनाए बम या शायद न्यूक्लियर मैटेरियल नहीं मिलने से इन लम्पटों में खासा रोष है। रोष इसलिए कि कट्टे, रॉकेट लॉन्चर, और 25 किलो बारूद के साथ सौ से ज़्यादा अलार्म क्लॉक और सिम कार्ड तथा फोन मिले।

ज़ाहिर तौर पर इन सब चीजों से सब्जी बनाई जाती है, और अलार्म क्लॉक का प्रयोग गरीब बच्चों को पढ़ाई के लिए जल्दी जगाने के लिए किया जाता है। वामपंथी पत्रकार सब परेशान हो गए कि विद्यार्थियों को पकड़ लिया, वो तो रसायन विज्ञान का प्रोजेक्ट बना रहे थे। इन बुद्धिजीवियों ने सुतली बम पर अपना फ़ोकस लगातार बनाए रखा जैसे कि आतंकी सुतली बम नए साल का स्वागत करने के लिए रखे हुए थे।

एक टर्म आपलोग हमेशा सुनते होंगे ‘IED’, जिसका शब्दशः मतलब है: जुगाड़ से बनाया गया बम। इसमें आप डायनामाइट या टीएनटी जैसे परम्परागत विस्फोटक का प्रयोग नहीं करते, बल्कि बारूद बनाने का रॉ मैटेरियल ले आते हैं, और उसे अलग-अलग ज़रूरतों के अनुसार प्रयोग करते हैं। ये रॉ मेटैरियल कहीं से भी लिया जा सकता है।

सुतली बम से भी बारूद मिलता है, और बाकी बारूद का कैमिकल पहले से निकाल कर रखा हुआ था। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि अगर आप एक बड़ी मात्रा में बारूद ख़रीदते हैं, या परम्परागत विस्फोटक सामान ख़रीदते हैं तो आपके पकड़े जाने की संभावना बढ़ जाती है।

लेकिन वामपंथी पत्रकार, और मोदी-विरोधी गिरोह के दोमुँहे फेसबुकिया विश्लेषक, सारी चीज़ों को दरकिनार करते हुए कि आखिर सौ से ज़्यादा अलार्म घड़ियों और सिम कार्ड का ये लोग अचार ही तो डालने वाले थे, ये लिखते पाए गए कि देखो मोदी सरकार ने कट्टे चलाने वाले आतंकी पकड़े हैं।

ये लोग इतने गिरे हुए हैं कि पुल बनने पर नाव चलाने वालों की आजीविका की बात करते हैं, और पुल न बने तो केले के तनों पर नदी पार करके स्कूल जाते बच्चों की तस्वीर लगाकर सरकार से सवाल पूछते हैं। इसलिए, इन गंदी नाली के कीड़ों को वही सड़ाँध वाले दिन चाहिए जब हर त्योहार पर बम फटा करते थे।

ये जो फ़ेसबुकिया स्मार्टी पैन्ट्स हैं, और जो ट्विटर पर अँगूठों से विष्ठा करते रहते हैं, वो एके सैंतालिस भी देख लेंगे तो कहेंगे कि ये तो लोहे के कल-पुर्ज़े हैं, भारत के जेम्स बॉन्ड ने लोहा पकड़ा है! इन्होंने बिलकुल वही किया है। 25 किलो पोटेशियम नाइट्रेट, अमोनिया नाइट्रेट, सल्फ़र आदि तो चिकन को मैरिनेट करने के लिए रखा था आतंकियों ने।

अपने ही देश की सुरक्षा एजेंसियों और क़ाबिल अफ़सरों को इस तरह से नीचा दिखाना इनका टी-टाइम टाइमपास है। वामपंथी चिरकुट पत्रकार गिरोह लगातार ये देख रहा है कि अगर ये सरकार रही तो आतंकी घटनाएँ तो बंद होंगी ही, नक्सलियों का भी शिकार चलता रहेगा। यही कारण है कि प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िश रचनेवाला व्यक्ति कभी एक्टिविस्ट हो जाता है, तो कभी कवि कहलाता है।

इनकी छटपटाहट देखते ही बनती है जब एक के बाद एक आतंकी, नक्सली आतंकवादी और आतंकियों के हिमायती लगातार पकड़े जा रहे हैं, और रात के दो बजे भी सुप्रीम कोर्ट खुलवाने के बावजूद वो तथाकथित एक्टिविस्ट जेल में बंद किए जा रहे हैं।

यही कारण है कि आतंकी हमला हो जाने पर यही माओवंशी ‘कड़ी निंदा’ का मजाक बनाते हैं जैसे कि विश्व के किसी भी जगह के राजनेता ने ऐसी घटनाओं पर प्रेस कॉन्फ़्रेंस में ‘कड़ी निंदा’ और ‘बदला लेंगे’ के अलावा कुछ और कहा हो। आखिर और क्या कहा जा सकता है प्रेस से? जहाँ तक करने की बात है, तो वो तो राजनाथ सिंह ने कितना किया है, वो सबके सामने है।

कोई इतने विस्फोटक लेकर पकड़ा जाता है तो वो इसका मजाक बनाते हैं, और अगर कल को राजनाथ सिंह प्रेस कॉन्फ़्रेंस में एक रॉकेट लॉन्चर लेकर पहुँच जाएँ कि ‘इसी से हम आतंकियों का ख़ात्मा करेंगे’ तो यही चिरकुट कहेंगे कि ‘अरे गृहमंत्री पद की गरिमा बनाए रखिए!’

कुल मिलाकर बात बस इतनी है कि जब भी आतंकी पकड़े जाते हैं, इन बेचारों के गुर्दों में जलन होती है। क्योंकि कहीं न कहीं ऐसे लोग, जो भारत को तोड़ना चाहते हैं, यहाँ की जनता में डर भरना चाहते हैं, हनुमान के स्टिकर को धार्मिक आतंक कहते हैं, गाय की रक्षा करनेवालों को आतंकवादी कहते हैं, बम पकड़े जाने पर उसकी क्वालिटी और क्वांटिटी पर डिबेट करते हैं, ये मानते हैं कि पुराना सिस्टम वापस लौट आए जहाँ से इनकी फ़ंडिंग होती थी, और ऑलिव ब्रान्च धरा दिया जाता था।

अब इनको बुद्धिजीवी बनने के पैसे नहीं मिलते, इनके एनजीओ पर ताले लग रहे हैं जो कि कन्वर्जन से लेकर आतंकी गतिविधियों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल रहे हों, तो ज़ाहिर है कि अंदर का कफ ऐसे ही दुर्गंध फेंकता मवाद बनकर बाहर आएगा। ये इनकी सोच और लिखे हुए पोस्ट में छन-छनकर बाहर आता रहा है, आता रहेगा।

लेकिन अब बात यह है कि इनके गुर्दे छीलने के लिए और पिछले कुछ सालों में इनकी नंगई को एक्सपोज करनेवाले बहुत आ गए हैं। अब इनको पोस्ट पर इनको गाली ही पड़ती है। जो इनकी बड़ाई करते हैं, उनके नामों पर सरसरी निगाह डालने से पता चल जाता है कि इनकी विचारधारा कोई भी पंथ नहीं, बल्कि धर्म के नाम पर आतंकियों को प्रोत्साहन देना है।

ये जो सारे आतंकवादी पकड़े गए हैं, सब के सब समुदाय विशेष के हैं, लेकिन इनका फ़ोकस ‘इस्लामी आतंक’ से कहीं दूर, ‘ये तो सुतली बम है’ पर है। अभी ये इस्लामी आतंक नहीं है क्योंकि शायद आईसिस के झंडे पर ‘अल्लाहु अकबर’ दूसरी भाषा में होने के कारण ये पहचान नहीं पा रहे। हनुमान तो खैर हर जगह दिखते हैं, तो उनका पोस्टर लगाना हिन्दू आतंक है। तो ऐसा है लम्पटो, सुतली बम के सिरे जोड़ लो, आग लगाकर बैठ जाओ, उसी से तुम्हारी जलन मिटेगी क्योंकि न रहेगा वो, न होगी जलन।

अलीगढ में दर्जन भर गायों को दफनाने का मामला; नाराज ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन

अलीगढ के इगलास थाना इलाके में मथुरा रोड पर अज्ञात लोगों ने नहर किनारे एक गड्ढे में जिंदा गायों को दफन करने का मामला सामने आया है। कहा जा रहा है कि सुबह जब लोग खेत में पहुंचे तो उन्हें इसकी भनक लगी और फिर उन्होंने उन गायों को नकालने के लिए जद्दोजहद शुरू कर दी। इतने में वहां सैकड़ों ग्रामीण इकट्ठे हो गए और उन्होंने पुलिस तथा प्रसाशन के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। ख़बरों के अनुसार पुलिस ने मौके पर पहुँच कर लोगों को समझा-बुझा कर शांत कराया। पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) मणिलाल पाटीदार ने इस बारे में विशेष जानकारी देते हुए कहा;

“हो सकता है यह गोवंश पूर्व में नहर किनारे दफन कर दी गई हों, जो आज कुछ लोगों को दिखाई दे गई हैं। लोगों ने इसे बढ़ाचढ़ाकर पेश किया और उपद्रव किया है। उपद्रवियों पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।”

एसपी के बयान से लग रहा है कि पुलिस का मानना है कि गायों को काफी पहले मरने के बाद यहाँ दफ़न किया गया होगा और कुछ लोगों ने इसके मद्देनजर अफवाह फैला दी। दरअसल ये मामला टीकापुर गावं का है जहां नहर के किनारे बुधवार की रात कई गायों को मृत समझ कर दफनाया गया था। ऐसे में सुबह खेतों में काम करने पहुंचे किसानों ने ये देखा और फिर ग्रामीणों को इसकी सूचना दी जीके पाद प्रदर्शन और नारेबाजी चालू हो है। लोगों का कहना है कि करीब एक दर्जन गायों को ज़िंदा दफना दिया गया है। ताजा सूचना मिलने तक पुलिस ने मृत गायों को पोस्टमोर्टेम के लिए अस्पताल भेज दिया है।

पुलिस का दावा ग्रामीणों के उलट है। पुलिस ये मान कर चल रही है कि यहाँ ज़िंदा नहीं बल्कि मृत गायों को ही दफनाया गया था। मालूम हो कि अलीगढ़ में बुधवार को सैकड़ों किसानों द्वारा गायों से अपनी फसलें बचाने के लिए गायों को एक प्राइमरी स्कूल में बंद करने की खबर आई थी। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि उन्होंने नहर किनारे गाय के शरीर के कुछ टुकड़े देखे और ताजा बंद किये गए गड्ढों को देख कर उन्होंने खुदाई का फैसला लिया। बाद में मशीन से भी खुदाई की गई। ग्रामीणों ने कहा कि एक ज़िंदा गाय को भी गड्ढे ने निकाला गया जो कि कुछ देर बाद ही मर गई। गोरक्षा वाहिनी ने इसे हिन्दू धर्म पर चोट करने की साजिश करार दिया है।

मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. केवी वार्ष्णेय ने इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए कहा;

“कुल 12 गायों का पोस्टमॉर्टम किया गया। उन गायों की मौत दम घुटने के कारण हुई थी। पांच गायों का इलाज अस्पताल में चल रहा है। मुझे नहीं पता कि वे गायें उसी जगह से खोदकर लाई गई थीं या कहीं और से यहां लाई गई हैं।”

वहीं डीएम सीबी सिंह ने दावा किया कि जिन्गायों का इलाज चल रहा है वो खुदाई वाली जगह के पास बैठी हुई मिली थी। उन्होंने ये भी कहा कि मृत गायों को ही दफनाया गया और लोग अफवाह फैला रहे हैं। कई थानों की पुलिस घटनास्थल पर कैम्प कर रही है और लोगों को समझाने-बुझाने का काम जारी है।

‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’: कांग्रेस ने दी फिल्म की रिलीज़ रोकने की धमकी

कल अनुपम खेर और अक्षय खन्ना अभिनीत फिल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ का ट्रेलर जारी किया गया जिसे दर्शकों और विश्लेषकों की काफी अच्छी प्रतिक्रया मिली। ये फिल्म पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के कार्यकाल के बारे में है और डॉक्टर सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू की इसी नाम की किताब पर आधारित है। वहीं कांग्रेस की तरफ से इस फिल्म कोल लेकर काफी तीखी प्रतिक्रिया आई है और फिल की रिलीज़ रोकने की धमकी दी गई है। महाराष्ट्र युवा कांग्रेस ने फिल्म के निर्माता को एक चिट्ठी लिखी है जिसमे फिल्म को उन्हें दिखाने की मांग की गई है।

महाराष्ट्र युवा कांग्रेस के अध्यक्ष सत्यजीत ताम्बे पाटिल ने कहा कि अगर फिल्म से कथित विवादित सीन को हटाया नहीं गया तो कांग्रेस पूरे देश में कहीं भी इसका प्रदर्शन नहीं होने देगी। साथ ही उन्होंने फिल्म की से पहले पहले कांग्रेस नेताओं के लिए स्पेशल स्क्रीनिंग किये जाने की मांग भी रखी। यूथ कांग्रेस ने अपने धमकी भरे पत्र में लिखा;

“ट्रेलर देखकर लगता है कि तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की गई है और उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस पार्टी को नुकसान पहुंचाने के लिए गलत तरीके से पेश किया गया है जोकि अस्वीकार्य है।”

फिल्म में मनमोहन सिंह को काफी लाचार हालत में दिखाया गया है और गाँधी परिवार को उनपर हावी होता दिखाया गया है। फिल्म में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह का किरदार राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेता अनुपम खेर ने निभाया है वहीं संजय बारू के किरदार में अक्षय खन्ना दिख रहे हैं। ये फिल्म 11 जनवरी से सिनेमाघरों में प्रदर्शित की जाएगी। राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्मकार हंसल मेहता ने फिल्म का स्क्रीनप्ले लिखा है। भारतीय जनता पार्टी ने भी अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल से इन फिल्म के ट्रेलर को ट्वीट किया और इसकी प्रसंशा की।

वैसे बता दें कि यह पहला मौका नहीं है जब कांग्रेस ने किसी फिल्म का विरोध किया हो। कांग्रेस सरकारों के कार्यकाल के दौरान राजनीती पर आधारित कई फिल्मों को बैन भी किया जा चुका है। 1975 में रिलीज़ हुई गुलजार द्वारा निर्देशित फिल्म ‘आंधी’ का भी कांग्रेस ने कड़ा विरोध किया था। कांग्रेस द्वारा इस फिल्म को तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गाँधी पर आधारित बताया गया था। श्रीमती गाँधी के दो स्टाफ ने इस फिल्म को देखा जिसके बाद इसके प्रदर्शन की इजाजत दी गई लेकिन बाद में इस फिल्म को सरकार द्वारा बैन कर दिया गया। इसी तरह 1975 में रिलीज़ के लिए तैयार शबाना आजमी अभिनीत फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ को लेकर कांग्रेस ने आपत्ति जताई थी। इतना ही नहीं, तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा इस फिल्म के प्रिंट्स और नेगटिव्स भी जला दिए गए गए थे।

अभी हाल ही में आपातकाल को लेकर बनी मधुर भंडारकर की फिल्म ‘इंदु सरकार’ को लेकर भी कांग्रेस ने कड़ा विरोध जताया था और इसके प्रदर्शन को रोकने की धमकी दी थी। इन धमकियों के मद्देनजर उस समय डायरेक्टर भंडारकर की सुरक्षा भी बढ़ानी पड़ी थी। नागपुर के एक होटल में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने फिल्म की प्रेस कांफ्रेंस को रोक दिया था जी कारण से टीम को आधे रास्ते से ही लौटना पड़ा था। वहीं 2010 में आई प्रकाश झा की फिल्म ‘राजनीती’ को लेकर भी कांग्रेस पार्टी ने आपत्ति जताई थी। ऐसे में ताजा धमकियों के बाद अब देखना पड़ेगा कि ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ को लेकर आगे कांग्रेस पार्टी का क्या रुख रहता है।