भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणियों के बाद देश में न्यायिक प्रक्रिया पर चर्चाएँ जोर-शोर से चल रही हैं। निशिकांत दुबे इस बीच पीछे हटाने के मूड में नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व CJI के बारे में जिक्र किया है, जिनके पास कानून की कोई डिग्री नहीं थी।
उन्होंने एक्स (पहले ट्विटर) पर जस्टिस कैलाशनाथ वांचू के विषय में लिखा है। जस्टिस वांचू देश के 10वें CJI थे और उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान एक बड़ा फैसला भी सरकार के हक़ में दिया था।
क्या आपको पता है कि 1967-68 में भारत के मुख्य न्यायाधीश कैलाशनाथ वांचू जी ने क़ानून की कोई पढ़ाई नहीं की थी ।
— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) April 21, 2025
कौन थे जस्टिस कैलाशनाथ वांचू?
सुप्रीम कोर्ट के कामकाज और जजों के विषय में जानकारी देने वाली वेबसाIइट सुप्रीम कोर्ट आब्जर्वर के अनुसार, कैलाशनाथ वांचू का जन्म 1903 में मध्य प्रदेश में हुआ था। वह पढ़ाई में कुशाग्र थे और उन्होंने 1924 में तब नौकरशाही के लिए करवाई जाने वाली परीक्षा इंडियन सिविल सर्विसेज (ICS) पास की थी।
जस्टिस वांचू इसके बाद अपनी ट्रेनिंग के लिए इंग्लैंड गए थे। उन्होंने इंग्लैंड में 1926 तक ट्रेनिंग ली थी। उनकी शुरुआती तैनातियाँ कलेक्टर के तौर पर हुई थीं। उन्हें सबसे पहले उत्तर प्रदेश (तब संयुक्त प्रांत) में तैनाती दी गई थी। 11 वर्षों तक वह इन्हीं पदों पर काम करते रहे थे। उन्हें 1937 में जिला स्तर के जज के तौर पर पहली तैनाती मिली थी।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में भी बने जज
जस्टिस वांचू जिला जज बनने के लगभग 10 वर्ष बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुँच गए थे। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट बताती है कि जस्टिस वांचू को फरवरी, 1947 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में तैनाती मिली थी। वह इसके बाद 1951 तक इलाहाबाद हाई कोर्ट में काम करते रहे थे।
जस्टिस वांचू को राजस्थान हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस भी बनाया गया था। उन्हें 1951 में राजस्थान हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बना कर भेजा गया था। यहाँ उन्होंने 1958 तक अपनी सेवाएँ दी थीं। उन्हें इस दौरान और भी कई जगह पर जिम्मेदारियां दी गई थीं।
CJI कैसे बने जस्टिस वांचू?
राजस्थान हाई कोर्ट में 7 वर्ष काम करने के बाद जस्टिस कैलाशनाथ वांचू को सुप्रीम कोर्ट में जज बना दिया। उन्हें यहाँ 12 अप्रैल, 1967 को CJI बनाया गया था। इसके पीछे एक विशेष कारण था। बताया गया कि 1967 में तत्कालीन CJI जस्टिस K सुब्बाराव ने एकाएक इस्तीफ़ा दे दिया।
सुब्बाराव के इस्तीफे के पीछे का कारण उनका राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने का फैसला था। हालाँकि, जस्टिस K सुब्बाराव यह चुनाव जाकिर हुसैन से हार गए थे। जस्टिस सुब्बाराव के इस्तीफे के चलते ही जस्टिस कैलाशनाथ वांचू को CJI बनाया गया था।
इसी के साथ वह पहले और अकेले ऐसे CJI बन गए थे, जिसके पास ना वकालत की डिग्री थी और ना ही वह वकील रहे थे। उनकी नियुक्ति का आधार उनका पहले का अनुभव था। वह निचली अदालत में भी जज इस आधार बनाए गए थे कि उनका आपराधिक कानूनों को लेकर ज्ञान अच्छा था। उन्होंने या ज्ञान ICS की ट्रेनिंग के दौरान हासिल किया था।
जस्टिस वांचू 10 महीने CJI के पद पर रहे थे। उनका कार्यकाल फरवरी, 1968 में खत्म हुआ था।
सरकार के पक्ष में भी हुए थे खड़े
जस्टिस वांचू ने कई महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई की थी। इनमें कई संवैधानिक मामले भी शामिल थे। इन्हीं में से एक मामला गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य का था। इसे भारतीय संविधान और कानूनी इतिहास में महत्वपूर्ण मामला माना जाता था।
1967 में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि संसद संविधान में दिए गए मूल अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती। यह सुनवाई जस्टिस सुब्बाराव की बेंच ने की थी। इसी बेंच में जस्टिस वांचू भी शामिल थे। उन्होंने इस फैसले से अपना मतभेद प्रकट किया था। जस्टिस वांचू की राय बाकी बेंच से लगा थी।
उनका मानना था कि संसद संविधान में देश के नागरिकों को दिए गए मूल अधिकारों में बदलाव कर सकती है। उनका यह कदम सरकार का पक्ष लेने वाला माना गया था। उनके इस कदम के कुछ ही दिनों बाद उन्हें CJI बनाया गया था।