Tuesday, May 6, 2025
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राम मंदिर और हिन्दू राष्ट्र से घृणा, EWS का विरोधी, राहुल गाँधी का सलाहकार… जिसे वक्फ कानून का विरोधी ‘हिन्दू संगठन’ बता रहा मीडिया, चौंका देगा उसके मुखिया का काला सच

प्रोपेगंडा पोर्टल 'The Wire' के कार्यक्रम में G मोहन गोपाल ने यहाँ तक कह दिया था कि न्यायपालिका को उखाड़ फेंकने की साजिश रची जा रही है और सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा अपने लोग भरे जा रहे हैं।

जैसा कि हम सबको पता है, हाल ही में केंद्र सरकार वक़्फ़ संशोधन क़ानून लेकर आई। न केवल इस विधेयक पर संसद के दोनों सदनों में आधी-आधी रात तक चर्चाएँ हुईं, बल्कि इससे पहले इसे ‘संयुक्त संसदीय समिति’ (JPC) के पास भी भेजा गया था जिसने दर्जनों हितधारकों से बातचीत की व ग्राउंड जीरो पर जाकर भी स्थिति का अध्ययन किया। इसके बावजूद विपक्षी दलों से लेकर तमाम इस्लामी-लिबरल संगठन इस क़ानून के विरोध में आ गए। सुप्रीम कोर्ट तक में मामला दायर कर दिया गया।

अब एक और संगठन है, जो वक्फ संशोधन क़ानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुँचा है। “हिन्दू संगठन वक़्फ़ संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट पहुँचा, कहा – इससे मुस्लिमों के अस्तित्व को ख़तरा” – इस शीर्षक को पढ़कर आपको क्या लगता है? ऐसा प्रतीत होगा जैसे हिन्दुओं और हिन्दू हित के लिए कार्य करने वाली कोई संस्था केंद्र सरकार से ख़ुश नहीं है, अब हिन्दू संगठन भी वक़्फ़ बोर्ड के समर्थन में उतर आए हैं। वो वक़्फ़ बोर्ड, जो लगातार हिन्दुओं की जमीनें निगलता ही चला जा रहा है।

नए वक़्फ़ क़ानून से कैसे चिढ़ सकता है कोई हिन्दू संगठन?

अब ये बताने की आवश्यकता नहीं है कि कैसे तिरुचिरापल्ली में कावेरी नदी के किनारे स्थित तिरुचेंथुरई गाँव में पूरे के पूरे गाँव पर वक़्फ़ बोर्ड ने अपना दावा ठोक दिया। पटना के फतुहा में पीढ़ियों से रह रहे हिन्दुओं के घरों पर वक़्फ़ बोर्ड ने नोटिस चिपका दिया। केरल के मुनंबम में 600 ईसाई परिवारों की 404 एकड़ जमीन वक़्फ़ बोर्ड ने कब्ज़ा ली, जिनमें से अधिकतर मछुआरे हैं। किसी भी गली-मोहल्ले में मजार-दरगाह-मस्जिद-मदरसे बनाकर उसे वक़्फ़ की संपत्ति बता देना और फिर आस-पड़ोस की जमीनें हड़पने एक प्रकार का उद्योग बन गया था।

डेमोग्राफी बदलने के लिए ऐसा किया जा रहा था। इसीलिए, केंद्र सरकार ने वक़्फ़ बोर्ड में सुधार करते हुए ये प्रावधान किया कि वक़्फ़ की संपत्ति के मामले में स्थानीय कमिश्नर फ़ैसले ले सकेंगे। साथ ही सेन्ट्रल व राज्यों के वक़्फ़ बोर्ड्स में ग़ैर-मुस्लिमों को सदस्य बनाए जाने का प्रावधान लाया गया क्योंकि ये मजहब नहीं बल्कि संपत्ति का मामला है। बिना पंजीकरण वक़्फ़ की संपत्ति नहीं मानी जाएगी। वक़्फ़ भारत में रक्षा मंत्रालय व रेलवे के बाद सबसे बड़ा संपत्ति मालिक बन गया था, ऐसे में लिबरल गिरोह को उसमें सुधार पसंद नहीं आया।

फ़िलहाल नए क़ानून के कुछ प्रावधानों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के कारण रोक लग रखी है। अब आते हैं ताज़ा ख़बर पर। ‘श्री नारायण मानव धर्म ट्रस्ट’ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि श्री नारायण गुरु की शिक्षा के हिसाब से सभी व्यक्ति व समाज के हित एक-दूसरे पर निर्भर हैं, ऐसे में संस्था इस प्रकरण पर मुँह बंद करके सिर्फ़ तमाशा नहीं देख सकती। उसने इस क़ानून को सच्चाई के विरुद्ध बताते हुए कहा कि मुस्लिम समाज व सामाजिक न्याय पर इसका भयानक असर पड़ेगा।

‘श्री नारायण मानव धर्म ट्रस्ट’ और G मोहन गोपाल की याचिका में क्या

असल में इस ‘श्री नारायण मानव धर्म ट्रस्ट’ का न तो नारायण से कुछ लेना-देना है, न ही ‘श्री’ से और न ही धर्म से। श्री नारायण गुरु के नाम पर ये अपना धंधा चला रहे हैं। श्री नारायण गुरु तो स्वामी श्रद्धानन्द से भी मिले थे, जिनकी अब्दुल रशीद ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। स्वामी श्रद्धानंद पूरे देश में घर-वापसी का अभियान चला रहे थे और उनके नेतृत्व में आर्य समाज ने केरल में मोपला मुस्लिमों द्वारा हिन्दुओं के नरसंहार के बाद पुनर्जागरण का अभियान चलाया, इसी क्रम में वो श्री नारायण गुरु से मिले थे।

अब आते हैं इस संस्था पर। इसका मुखिया है G मोहन गोपाल, जो कि अधिवक्ता है। G मोहन गोपाल ने 2023 में इसकी स्थापना की थी। जब लिबरल विचारधारा वाला कोई व्यक्ति अचानक से हिन्दुओं के नाम पर कोई संस्था लेकर आ जाए, तो शक होना लाजिमी है। फिर उसे ऐसे प्रचारित किया जाए कि मोदी सरकार के वक़्फ़ क़ानून के ख़िलाफ़ कोई हिन्दू संगठन खड़ा हो गया है, तब तो ये शक यकीन में बदल जाता है। आइए, अब आपको बताएँगे कि ये G मोहन गोपाल है कौन, लेकिन उससे पहले जानिए सुप्रीम कोर्ट में इसने क्या तर्क दिए हैं।

याचिका में कहा गया है, “ये विवादित क़ानून मजहबी स्थल को ग़ैर-मजहबी घोषित करते हुए इस्लामी क़ानून के ऊपर अपने नियम थोपता है। यह क़ानून संसद के अधिकार क्षेत्र से बाहर है और संविधान का उल्लंघन है। ये मुस्लिमों को मिले अधिकारों का उल्लंघन करता है। वक़्फ़ वर्षों से उनके आर्थिक आधार का प्रमुख स्रोत रहा है। नए क़ानून से ये ख़त्म हो जाएगा।” सोचिए, यहाँ इस्लामी क़ानून अर्थात शरिया को बचाने के लिए ‘हिन्दू संगठन’ की आड़ में वक़्फ़ को सही ठहराया जा रहा है।

इन दावों की पोल खोलना बड़ी बात नहीं है क्योंकि अब सारी चीजें जगजाहिर हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बता चुके हैं कि कैसे पट्टे पर दी गई वक्फ बोर्ड की 20,000 संपत्तियाँ अचानक से शून्य हो गईं। ये किसने बेचीं, पैसे कहाँ गए? फिर ग़रीब मुस्लिमों को इसमें से क्या मिला? जब कमाई हो ही नहीं रही थी, फिर ‘आर्थिक आधार’ ख़त्म होने का थोथा कुतर्क क्यों? दूसरा, आप एक साथ संविधान की वकालत और शरिया क़ानून का बचाव नहीं कर सकते हैं।

कौन है G मोहन गोपाल: ‘हिन्दू राष्ट्र’ का विरोधी, राम मंदिर से घृणा

अब आते हैं G मोहन गोपाल पर, कथित हिन्दू संगठन का मुखिया। ये व्यक्ति ‘हिन्दू राष्ट्र’ का मजाक उड़ाता रहा है और कहता रहा है कि ये न्यायपालिका को भी अपने कब्जे में ले रहा है। उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जब दिल्ली हाईकोर्ट के जज के घर भारी मात्रा में कैश मिलने को लेकर बयान दिया तब G मोहन गोपाल ने इसे ‘राजा कुछ भी कर सकता है’ वाली पुरानी मानसिकता को बढ़ावा देना करार दिया। यहाँ तक कि उसने ‘हिन्दू राष्ट्र’ को RSS का एक शताब्दी पुराना प्रोजेक्ट बताया, जिसमें अधिनायकवाद और वर्णक्रम के आधार पर व्यवस्था होगीएक सदी पुराना यह प्रोजेक्ट, जिसकी अगुवाई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कर रहा है, भारत में एक धर्म आधारित, अधिनायकवादी और वर्णक्रम पर आधारित हिंदू राष्ट्र स्थापित करने की कोशिश है।

The Leaflet’ पर छपे एक लेख में उसने लिखा कि भाजपा शासित राज्यों को हिन्दू राष्ट्र वालों ने विधायिका और कार्यपालिका पर कब्ज़ा कर रखा है। सोचिए, ‘हिन्दू संगठन’ का संस्थापक जो ‘हिन्दू राष्ट्र’ और RSS का विरोध करता है। वक़्फ़ का समर्थन करता है। उसने लिखा था कि न्यायपालिका का नियंत्रण ‘हिन्दू राष्ट्र’ ताक़तों का अगला क़दम होगा। उसने लिखा कि ‘हिन्दू राष्ट्र’ वाले ऐसी व्यवस्था चाहते हैं जहाँ ब्राह्मण सबकुछ शास्त्रों और सनातन धर्म के हिसाब से फ़ैसले लें।

क्या इसी भाषा का इस्तेमाल हिन्दू विरोधी गिरोह नहीं करता है? अब आगे बढ़ते हैं। आप ये जानकर चौंक जाएँगे कि ये एक ऐसा ‘हिन्दू संगठन’ है जो राम मंदिर से भी घृणा करता है। जब ‘श्री नारायण धर्म परिपालन योगम’ के जनरल सेक्रेटरी वेल्लापल्ली नतेशन ने जब राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन (22 जनवरी, 2024) के दिन सभी हिन्दुओं को अपने घर में दीये जलाने की अपील की थी, तब भी G मोहन गोपाल की संस्था ने इसका विरोध किया था।

श्री नारायण गुरु के नाम पर चलाता है अपना प्रपंच

उसका कहना था कि ये नारायण गुरु की विचारधारा के विरुद्ध है। इस दौरान ये लोग ये भूल जाते हैं कि श्री नारायण गुरु ने अपने ग्रन्थ ‘अनुकम्पा दशकम’ में जगद्गुरु शंकराचार्य की प्रशंसा की है। उनके दर्शन की जड़ें अद्वैत वेदांत में ही थीं। शंकराचार्य ने माँ दुर्गा की स्तुति के रूप में ‘महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत्र’ की रचना की, वो केरल में ही जन्मे थे, ऐसे में केरल में उनके या उनकी विचारधारा से प्रेरित संतों का नाम लेकर हिन्दू विरोधी प्रपंच चलाया जाता है और मीडिया बिना फैक्ट-चेक किए इसे धड़ल्ले से छापता भी है।

नारायण गुरु ने आदि शंकराचार्य को अपना गुरु बताया है। नारायण गुरु ज्ञान भक्ति मार्ग की बात करते हुए भी जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलने की सलाह देते हैं। अतः, ये साफ़ है कि G मोहन गोपाल की संस्था न तो केरल का प्रतिनिधित्व करती है, न हिन्दुओं का, न श्री नारायण गुरु का और न जगद्गुरु शंकराचार्य का। ये वो संस्था है जिसने राम मंदिर ध्वस्त कर बनाए गए बाबरी ढाँचे में कारसेवा का विरोध करते हुए कहा था कि मुस्लिमों को मस्जिद से वंचित कर दिया गया।

उसने मंदिर के बजट को लेकर भी सवाल उठाया था कि, जबकि सच्चाई ये है कि राम मंदिर बनवाने के लिए केंद्र सरकार ने मात्र एक रुपए का चन्दा दिया। 5000 करोड़ रुपए से भी अधिक की रकम हिन्दुओं ने चंदे के जरिए जुटाई। केरल में हिन्दू समुदाय का एक बड़ा हिस्सा ‘ईळवा’ समुदाय का है, राज्य की जनसंख्या का एक चौथाई। इन्हें प्रभावित करने के लिए इसी समुदाय से आने वाला G मोहन गोपाल असल में कॉन्ग्रेस के लिए बल्लेबाजी कर रहा है।

ग़रीबों को आरक्षण का विरोधी, चुनी हुई सरकार से भी दिक्कत

G मोहन गोपाल EWS आरक्षण का भी विरोधी है। उसने कहा था कि जिन दलों ने इस आरक्षण का समर्थन किया, ख़ुद उन्हीं दलों में SC/ST का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। यानी, अब कौन से दल में कौन अध्यक्ष बनेगा और कौन महासचिव, ये भी G मोहन गोपाल की मर्जी से तय होगा। वो बार-बार भारत में Oligarchy (अल्पमत का प्रतिनिधित्व) होने की बात करता है। वो आरक्षण को भी ख़तरनाक विचारधारा बताता रहा है और इसके लिए डॉ आंबेडकर को उद्धृत करता रहा है।

वैसे जो व्यक्ति प्रशांत भूषण जैसों के साथ मंच साझा करता हो और बाबरी ढाँचा ध्वस्त किए जाने को मुस्लिमों साथ हुआ अन्याय बताता हो, उसकी विश्वसनीयता क्या हो सकती है समझ जाइए। प्रशांत भूषण जबतक पीएम मोदी और भाजपा को गाली न दे दे, तबतक उसके पेट में नाश्ता नहीं पचता है। प्रोपेगंडा पोर्टल ‘The Wire’ के कार्यक्रम में G मोहन गोपाल ने यहाँ तक कह दिया था कि न्यायपालिका को उखाड़ फेंकने की साजिश रची जा रही है और सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा अपने लोग भरे जा रहे हैं।

वो कॉलेजियम को भी सलाह देता है कि किस तरह से जज चुने जाने चाहिए और किस तरह के नहीं, यानी उसे जुडिशरी पर भी भरोसा नहीं है। उसे लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रिया पर भी भरोसा नहीं है, तभी उसे भारत की चुनी हुई सरकार ‘अल्पमत प्रतिनिधत्व वाली’ नज़र आती है। वो हिजाब का भी समर्थन करता है। सोचिए, जी व्यक्ति को देश के किसी तंत्र पर भरोसा नहीं है, वक़्फ़ क़ानून से लेकर EWS तक से चिढ़ है – उस व्यक्ति का क्या इलाज है? वो तो कुंठित ही कहलाएगा न।

इसी तरह, ‘साउथ फर्स्ट’ के कार्यक्रम में भी उसने संविधान के ख़तरे में होने का रोना रोते हुए EWS आरक्षण का विरोध किया था। उसका कहना था कि कोई भी पिछड़ा समाज आरक्षण में रुचि नहीं रखता है बल्कि उसे प्रतिनिधित्व चाहिए। उसने कहा था कि कुछ ही समूह मिलकर सरकार चला रहे हैं। G मोहन गोपाल का मानना है कि ‘सवर्णों’ के अलावा बाकी सब जाति से बाहर हैं, इसीलिए जाति जनगणना की जगह सामाजिक जनगणना शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

NSUI का पूर्व अध्यक्ष, राहुल गाँधी का क़रीबी सलाहकार

अबतक आपने जान लिया होगा कि कॉन्ग्रेस का ही एजेंडा G मोहन गोपाल आगे लेकर चलता है। आपने बिलकुल ठीक समझा है, लेकिन इसे और पुख्ता कर देते हैं। G मोहन गोपाल कॉन्ग्रेस पार्टी के छात्र संगठन NSUI का अध्यक्ष रहा है। NSUI ने उसकी एक तस्वीर भी साझा की थी, जिसमें वो संगठन के मंच पर दिखाई दे रहा है। उसके पीछे लगे पोस्टर पर लिखा है – “इंदिरा देश की नेता है, देश का मस्तक ऊँचा है।” NSUI के गठन के बाद G मोहन गोपाल संगठन का दूसरा अध्यक्ष ही बना था।

हो सकता है कई लोगों को लगे कि ये सब तो पिछली बातें हैं, उनकी शंका का समाधान भी किए देते हैं। वो कॉन्ग्रेस पार्टी के वर्तमान सर्वेसर्वा राहुल गाँधी का भी करीबी है। वो ‘राजीव गाँधी इंस्टिट्यूट ऑफ कंटेम्पररी स्टडीज’ का डायरेक्टर था, साथ ही ‘इंडिया टुडे’ ने मार्च 2014 में उसे राहुल गाँधी का करीबी सलाहकार बताया था। केरल प्रदेश कॉन्ग्रेस कमिटी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार के रूप में उसके नाम का भी प्रस्ताव रखा था

वो एक अमीर परिवार से आता है, उसके पिता पुलिस में IGP रहे हैं। वो सनातन शास्त्रों का भी विरोधी है। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद उसने BBC से कहा था कि भारत में धर्मनिरपेक्षता को लेकर संविधान सभा से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कन्फ्यूज्ड है। उसका कहना है कि सभी धर्मों से समान दूरी बनाने का विचार भी ब्राह्मणवादी ग्रंथों से लिया गया है। 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने वैदिक सिद्धांत ‘सर्व धर्म समभाव’ को लेकर Secularism को परिभाषित किया था। इसे G मोहन गोपाल ने अजीब बताया था, यानी वो वेदों का भी विरोधी है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
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