Wednesday, May 1, 2024
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‘बिना अधिकार मुलायम सरकार ने ज्ञानवापी में रोक दिया पूजा-पाठ’: जानिए वाराणसी कोर्ट के आदेश में क्या-क्या, तहखाने में मूर्ति और पूजा सामग्री भी

अदालत ने ये भी माना है कि हिन्दू धर्म से संबंधित कई सामग्रियाँ एवं प्रतिमाएँ आज भी उक्त तहखाने में मौजूद हैं। मूर्तियों की नियमित रूप से पूजा की जानी आवश्यक है।

काशी में जब मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब का कहर बरपा था, तब उसने बाबा विश्वनाथ के मंदिर को तोड़ कर उसके ऊपर एक ढाँचा बना दिया और उसे मस्जिद कहा जाने लगा। इसकी संरचना में स्पष्ट देखा जा सकता है कि ये कभी मंदिर हुआ करता था, लेकिन इसके ऊपर मस्जिद बना दी गई। भीतर वजूखाना के नाम पर शिवलिंग के ऊपर हाथ-पाँव धोए गए। अब कोर्ट ने हिन्दुओं को ज्ञानवापी के भीतर पूजा-पाठ करने की अनुमति दे दी है। इसे हिन्दू पक्ष की एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है।

इस संबंध में शैलेन्द्र कुमार पाठक ने मस्जिद कमिटी के विरुद्ध याचिका दायर की थी। वाराणसी के जिला न्यायाधीश अजय कृष्ण विश्वेश ने इस मामले में फैसला सुनाया। बता दें कि अदालत ने 17 जनवरी, 2024 को ही वाराणसी के DM को ज्ञानवापी ढाँचे के दक्षिण की तरफ स्थित इस तहखाने का सिसीवर नियुक्त किया था। इसी संपत्ति को लेकर याचिका दायर की गई थी। जिलाधीश को आदेश दिया गया कि वो इस तहखाने को अपनी अभिरक्षा एवं नियंत्रण में लें।

साथ ही उसे सुरक्षित रखने और अंतिम फैसला आने तक उसकी यथास्थिति बनाए रखने के लिए भी अदालत ने उन्हें कहा था। याचिका में कहा गया था कि उक्त तहखाने में मूर्तिपूजा की जाती थी। अदालत ने माना कि दिसंबर 1993 में पुजारी सोमनाथ व्यास को तहखाने में घुसने से रोक दिया गया था और इसकी बैरिकेडिंग कर दी गई थी। ब्रिटिश काल से ही वो वहाँ पूजा करते आ रहे थे। उन्हें रोके जाने के बाद राग-भोग आदि संस्कार भी रुक गए। बाद में तहखाने का दरवाजा रोक दिया गया।

अदालत ने ये भी माना है कि हिन्दू धर्म से संबंधित कई सामग्रियाँ एवं प्रतिमाएँ आज भी उक्त तहखाने में मौजूद हैं। मूर्तियों की नियमित रूप से पूजा की जानी आवश्यक है। अदालत ने बड़ी बात ये कही कि राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने बिना किसी विधिक अधिकार के दिसंबर 1993 में पूजा बंद करवा दी थी। उसी महीने में मुलायम सिंह यादव ने बसपा सुप्रीमो कांशीराम के समर्थन से सरकार बनाई थी और मुख्यमंत्री बने थे। ‘मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम’ का नारा लगाया गया था।

जबकि मुस्लिम पक्ष का दावा है कि व्यास द्वारा उक्त तहखाने में कभी पूजा की ही नहीं गई। साथ ही वहाँ कोई मूर्ति होने की बात भी नकार दी गई। अदालत ने आदेश दिया कि 7 दिनों के भीतर वहाँ लोहे के बाड़ में पूजा-पाठ की व्यवस्था की जाए। कोर्ट को ये भी बताया गया था कि परिक्रमा वाले मार्ग पर मस्जिद कमिटी वालों ने लोहे की बैरिकेडिंग कर रखी है। साथ ही कोर्ट ने व्यास परिवार की वंशावली और वसीयत का भी जिक्र किया। इस फैसले के बाद काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में महादेव का दर्शन करने जाने वाले भक्त ज्ञानवापी में भी पूजा-पाठ कर सकेंगे।

मुकदमे की सुनवाई के दौरान भी कई बार पूछा गया कि ज्ञानवापी में बैरिकेडिंग किसके आदेश पर हुई और श्रृंगार गौरी का पूजन बंद हुआ, लेकिन कोई स्पष्ट जवाब नहीं आया। दिसंबर 1993 में जब पूजा रुकी, तब केंद्र में कॉन्ग्रेस की सरकार थी और नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे। उत्तर प्रदेश सरकार का कहना था कि इस संबंध में कोई लिखित आदेश नहीं मिला है। पहले बाँस, फिर लोहे की बैरिकेडिंग की। स्वयंभू विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की तरफ से वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने 1991 में बताया था कि बैरिकेडिंग से पहले चारों तरफ 4 फ़ीट का परिक्रमा पथ था।

न सिर्फ माँ श्विंगर गौरी की पूजा होती थी, बल्कि ज्ञानवापी मंदिर की परिक्रमा भी करते थे। हिन्दुओं के प्रवेश पर रोक लगने के बाद अदालत का रुख किया गया। अब माँग है कि शिवलिंग को नुकसान पहुँचाए बिना ASI द्वारा सर्वे कराया जाए। फ़िलहाल ये क्षेत्र सील है और इसे छोड़ कर बाकी के ढाँचे का सर्वे हो चुका है। मस्जिद पक्ष ने हिन्दू पक्ष की माँगों को चुनौती देते हुए भी याचिकाएँ दायर कर रखी हैं। वाराणसी की जिला अदालत से लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक में इससे जुड़े मामले चल रहे हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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