Wednesday, April 23, 2025
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कश्मीरी पंडितों की केवल घर वापसी ही नहीं, पुश्तैनी संपत्ति पर कर सकेंगे दावा: सम्मान में सड़कों और कॉलेजों के नाम

पोर्टल के जरिए घर छोड़कर भागने को मजबूर किए गए कश्मीरी पंडित अपनी उन संपत्तियों पर दावा कर सकते हैं, जिस पर कब्जा कर लिया गया अथवा उन्हें बेचने को मजबूर किया गया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने पिछले कुछ सालों में जम्मू-कश्मीर में जमीनी बदलावों की शुरुआत की है। इससे केंद्र शासित प्रदेश के विकास के नए रास्ते खुले हैं। इसने दशकों पहले इस्लामिक आतंकवाद के कारण अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए कश्मीरी पंडितों की वापसी की राह भी खोली है। इसी कड़ी में सरकार ने दो महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं। पहला, श्रीनगर की प्रसिद्ध सड़कों, इमारतों और कॉलेजों का नाम इन हिंदुओं के सम्मान में रखने का फैसला। दूसरा, एक ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च किया गया है, जिसके जरिए कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी संपत्तियों पर दावा कर सकते हैं।

टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने प्रमुख कश्मीरी हिंदू और भारतीय समकालीन नाटककार मोनी लाल खेमू के नाम पर एक कॉलेज का नाम रखने का फैसला किया है। इसके अलावाएक सड़क का नाम कश्मीरी कवि और लेखक पंडित जिंदा कौल के नाम पर रखा जाएगा, जिन्हें ‘मास्टरजी’ के नाम से जाना जाता है।

हालाँकि, जैसा कि पहले से अपेक्षित था सरकार के इस कदम की कई राजनीतिक दलों ने आलोचना की है। ये दल इसे ‘टोकनवाद‘ के तौर पर देख रहे हैं। इन दलों का आरोप है कि सरकार घाटी को रहने योग्य बनाने के लिए गंभीर नहीं है।

ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने एक ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च किया है। इसके जरिए घर छोड़कर भागने को मजबूर किए गए कश्मीरी पंडित अपनी उन संपत्तियों पर दावा कर सकते हैं, जिस पर कब्जा कर लिया गया अथवा उन्हें बेचने को मजबूर किया गया था। कश्मीरी हिंदुओं ने सरकार के इस पहल की सराहना की है। फिल्म निर्माता और कश्मीरी हिंदू अशोक पंडित ने कहा कि जमीन को दोबारा हासिल करना और कश्मीरी हिंदुओं का पुनर्वास एक थका देने वाला काम है। उन्होंने सरकार से पूरी प्रक्रिया में समुदाय को शामिल करने का भी आग्रह किया।

एक अन्य कश्मीरी हिंदू कार्यकर्ता सुशील पंडित ने खुलासा किया कि संपत्ति हासिल करने के लिए एक कानून हिन्दुओं के पलायन के एक दशक बाद भी लाया गया था। हालाँकि, उससे केवल उत्पीड़न ही हुआ था। उन्होंने कहा, “अगर एक कश्मीरी पंडित अपनी संपत्तियों को बेचना चाहता था तो उससे पहले उसे यह साबित करना होता था कि वो किसी संकट में नहीं है। ऐसे में यह उत्पीड़न की एक और वजह बन गई, क्योंकि पैसे की जरूरत के लिए जो व्यक्ति अपनी जमीन बेच रहा होता था, उसे इसके बाद सरकारी अधिकारियों को भी रिश्वत देनी होती थी। इस तरह के आधे-अधूरे कानून समस्या से कहीं अधिक बदतर थे।”

पोर्टल लॉन्च करके कश्मीरी पंडितों के लिए अचल संपत्ति अधिनियम को पूरी तरह से लागू करते हुए सरकार ने जिला आयुक्तों को शक्तियों का हस्तांतरण भी सुनिश्चित किया है। इसके अतिरिक्त जिला आयुक्त यह भी सुनिश्चित करेंगे कि कश्मीरी पंडितों की संपत्तियों पर कोई कब्जा न हो, भले ही उसकी कोई शिकायत दर्ज न की गई हो।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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