Wednesday, November 6, 2024
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पुलवामा हमले की पहली बरसी: वीरगति की 11 कहानियाँ, कोई जन्मदिन मनाकर लौटा था तो किसी की थी सालगिरह

वीरगति को प्राप्त बिहार के संजय कुमार सिन्हा को अपनी बड़ी बेटी रूबी की शादी की फ़िक्र सता रही थी। वापस ड्यूटी पर जाते वक़्त उन्होंने घरवालों से वादा किया था कि घर लौटने पर उसकी शादी के लिए लड़का देखने जाएँगे। लेकिन, किसे पता था वह तिरंगे में लिपटे घर लौटेंगे।

14 फरवरी 2019। जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर सीआरपीएफ का काफिला सामान्य दिनों की तरह ही गुजर रहा था। अचानक एक कार ने सड़क की दूसरी तरफ से आकर काफिले के साथ चल रहे वाहन में टक्‍कर मार दी। इसके साथ ही एक जबरदस्‍त धमाका हुआ। मौके पर ही सीआरपीएफ के करीब 40 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए। हमले की पहली बरसी पर पूरा देश उन वीर जवानों को याद कर रहा है। हम आपके लिए लेकर आए हैं हमले में वीरगति को प्राप्त करने वाले जवानों की कुछ चुनिंदा कहानियॉं,

जन्मदिन मनाकर लौटे ही थे नसीर अहमद

पुलवामा में बलिदान हुए नसीर अहमद फिदायीन हमले से एक दिन पहले ही अपना 46 वाँ जन्मदिन मनाकर ड्यूटी पर वापस लौटे थे। 22 साल सेना को दे चुके नसीर उस बस के कमांडर थे, जिसे आत्मघाती हमले में निशाना बनाया गया। नसीर का पार्थिव शरीर जब उनके गाँव पहुँचा तो दोदासन देशभक्ति के नारों से गूँज उठा था। वहाँ मौजूद हर शख्स के चेहरे पर आतंकियों को लेकर गुस्सा था। नसीर का बेटा बार-बार बस यही दोहरा रहा था कि पहले वो पापा की मौत का बदला लेगा फिर अपना जन्मदिन मनाएगा।

संजय ने खुद बढ़वाई थी नौकरी के 5 साल

पुलवामा में वीरगति को प्राप्त हुए संजय राजपूत 20 साल की सेवा पूरी करने के बाद भी देश के लिए अपनी सेवा को पाँच वर्ष के लिए आगे बढ़वाया था। मगर उन्हें क्या मालूम था उनका यह फ़ैसला उन्हें हमेशा के लिए परिवार से दूर कर देगा। संजय के दो बच्चे हैं, जिनकी उम्र 13 और 10 साल है। उनके परिवार में चार भाई और एक बहन हैं। एक भाई को पहले ही परिवार एक्सिडेंट में खो चुका है।

‘बेटे को करूँगी सेना को समर्पित’

अपने घर के इकलौते कमाने वाले नितिन राठौर 14 फरवरी को हुए आत्मघाती हमले में वीरगति को प्राप्त हो गए। महज 23 की उम्र में साल 2006 में सीआरपीएफ में शामिल होने वाले नितिन के घर में उनकी पत्नी वंदना, बेटा जीवन, बेटी जीविका माँ सावित्री बाई, पिता शिवाजी, भाई प्रवीण समेत दो बहनें हैं। नितिन के वीरगति के प्राप्त होने की ख़बर सुनने के बाद गाँव के लोगों ने अपने घरों में खाना नहीं बनाया। वहीं वीर की पत्नी ने हिम्मत दिखाते हुए कहा था कि वो अपने बेटे को भी सेना को समर्पित करेंगी क्योंकि यह उनके पति (नितिन) का सपना था।

वीर कुलविंदर की अंतिम यात्रा में पहुँचीं थी मंगेतर

कुलविंदर सिंह 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में आतंकियों के कायरतापूर्ण हमले में वीरगति को प्राप्त हो गए। कुलविंदर अपने माता-पिता के इकलौती संतान थे। कुलदीप की आठ नवंबर को शादी होनी तय थी। इस खबर को सुनकर उनकी मँगेतर अमनदीर कौर ससुराल आई और भारत माता के वीर सपूत की अंतिम यात्रा में शामिल हुई। उन्होंने वीरगति को प्राप्त अपने मंगेतर के पार्थिव शरीर को सैल्यूट ठोक शत्-शत् नमन किया। कुलविंदर सिंह के पिता दर्शन सिंह यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि उन्होंने अपने जवान बेटे को सदा के लिए खो दिया है। उन्होंने हमले वाले दिन से ही अपने बेटे की वर्दी पहन रखी थी। उनके इस जोश को देख कर अन्य लोग भी अभिभूत थे।

छिन गया सबसे छोटा बेटा

अश्वनी कुमार काछी भी पुलवामा में हुए हमले में वीरगति को प्राप्त हो गए। अश्वनी कुमार काछी परिवार के सबसे छोटे बेटे थे। चार भाइयों में सबसे छोटे अश्वनी की पहली पोस्टिंग साल 2017 में श्रीनगर में हुई थी। उनके बुज़ुर्ग पिता ने कहा कि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु पर गर्व है, लेकिन यक़ीन नहीं होता कि वो अब इस दुनिया में नहीं है। अश्वनी कुमार घर के एकमात्र कमाऊ पूत थे। अश्वनी की माँ अपने पाँचों बच्चों के भरण-पोषण के लिए बीड़ी बनाने का कार्य किया करती थी। जब अश्विनी की नौकरी लगी, तब उन्होंने अपनी माँ से बीड़ी बनाने वाला कार्य छुड़वा दिया था।

बेटी की शादी के लिए लड़का देखने जाने वाले थे संजय

पुलवामा आतंकी हमले में वीरगति को प्राप्त बिहार के संजय कुमार सिन्हा को अपनी बड़ी बेटी रूबी की शादी की फ़िक्र सता रही थी। वापस ड्यूटी पर जाते वक़्त उन्होंने घरवालों से दोबारा आने का वादा किया था। संजय ने कहा था कि वह घर लौटते ही बेटी के लिए लड़का देखने जाएँगे। घरवाले भी उनका बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। लेकिन जब उनके वीरगति को प्राप्त होने की सूचना मिली, पूरा परिवार ही स्तब्ध रह गया और गाँव में मातम पसर गया। जब उनकी मृत्यु का समाचार आया, तब उनकी पत्नी बबीता भोजन कर रही थी। यह दुःखद सूचना मिलते ही थाली उनके हाथों से गिर पड़ी और वह दहाड़ मार कर रोने लगी।

सालगिरह के दिन वीरगति को प्राप्त हुए थे तिलक राज

हिमाचल प्रदेश स्थित कांगड़ा के सीआरपीएफ जवान तिलक राज 14 फ़रवरी को पुलवामा हमले में वीरगति को प्राप्त हो गए। जिस दिन उन्होंने मातृभूमि के लिए प्राण न्योछावर किए, उसी दिन उनकी चौथी मैरिज एनिवर्सरी भी थी। जब तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा तिलक के परिजनों से मिलने पहुँचे, तब सावित्री ने उनसे कहा- ‘साहब, मुझे भी सीआरपीएफ की नौकरी दे दो।‘ एक माह से भी कम उम्र के बच्चे को अपनी गोद में लेकर बैठी सावित्री की आवाज़ में गज़ब की दृढ़ता थी।

सबको सिसकियाँ भरने के लिए छोड़ गए विजय

पुलवामा आतंकी हमले में जान गँवा बैठे जवानों में एक नाम देवरिया के सीआरपीएफ जवान विजय कुमार मौर्य का भी है। विजय के इस हमले में शिकार होने के बाद उनके कई रिश्ते ताउम्र सिसकियाँ भरने के लिए पीछे छूट गए। इस हमले में सिर्फ़ देश की सेना का एक जवान ही नहीं बलिदान हुआ बल्कि बुजुर्ग पिता ने विजय के रूप में अपने घर के सबसे होनहार बेटे को गवाँ दिया। उस पत्नी का सुहाग भी उजड़ गया जिसके पास विजय की तीन साल की मासूम बच्ची है, जो अभी अपने पिता को ढंग से जान भी नहीं पाई थी। इसके अलावा दो भतीजियों की आस भी टूट गई, जिनकी जिम्मेदारी उनके पिता की मौत के बाद विजय ने ही उठाई हुई थी।

गर्भवती पत्नी को अकेला छोड़ गए वीर रतन ठाकुर

14 फरवरी को पुलवामा आतंकी हमले में वीरगति को प्राप्त हुए रतन ठाकुर अपनी गर्भवती पत्नी को अकेला छोड़कर चले गए थे। रतन के पिता निरंजन ने बताया कि दोपहर डेढ़ बजे रतन ने पत्नी राजनंदनी को फोन करके यह बताया था कि वो श्रीनगर जा रहे हैं और शाम तक वहाँ पहुँच जाएँगे। रतन ठाकुर ने अपनी पत्नी से होली पर आने का वादा किया था और इसी इंतज़ार में उनकी पत्नी के दिन कट रहे थे। बता दें कि रतन सिंह का चार साल का बेटा भी है जो कहता है कि उसके पिता ड्यूटी पर हैं। चार साल के इस बच्चे को हर पल अपने पिता का इंतज़ार रहता है।

4 दिन पहले ही ड्यूटी पर लौटे थे वीर अजीत कुमार

14 फरवरी को हुए आतंकी हमले में अजीत कुमार को उनके घरवालों ने हमेशा के लिए खो दिया। अजीत की उम्र मात्र 38 साल थी। चार दिन पहले ही अजीत अपनी छुट्टियाँ बिताकर ड्यूटी पर वापस लौटे थे। अजीत कुमार सीआरपीएफ की 115वीं बटालियन में तैनात थे। अजीत के वीरगति के प्राप्त होने की सुनने के बाद घर में कोहराम मच गया। अजीत के भाई रंजीत ने बताया कि एक महीने पहले ही उनके बड़े भाई अजीत छुट्टियों में घर आए थे, लेकिन 10 फरवरी को छुट्टी समाप्त होने पर वो जम्मू वापस लौट गए थे। किसे मालूम था कि अजीत के घरवालों की मुलाकात उनसे आखिरी है, इसके बाद वो तिरंगे में लिपट कर ही वापस आएँगे।

वीरगति को प्राप्त हुआ बनारस का लाल, माँ को है कैंसर

इस आतंकी हमले में अवधेश यादव भी वीरगति को प्राप्त हो गए थे। अवधेश यादव की माँ को कैंसर है। उनके बलिदान की सूचना पाकर तो जैसे परिजनों पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा। अवधेश साल 2006 में सीआरपीएफ की 145वीं बटालियन में शामिल हुए थे। उनकी शादी तीन साल पहले ही हुई थी। उनकी पत्नी शिल्पी यादव ने बताया कि अवधेश तीन दिन पहले ही जल्दी लौटने का वादा कर ड्यूटी के लिए रवाना हुए थे। शिल्पी अपने तीन वर्ष के बेटे निखिल को कलेजे से लगा कर रो रही थी। रोती बिलखती शिल्पी यादव का रोते-रोते इतना बुरा हाल था कि वो बार-बार बेहोश हो रही थी। उनका बार-बार यही कहना था कि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा कि उनके पति अब इस दुनिया में नहीं रहे।

हमले के बरसी पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा, “मैं पुलवामा हमले के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। भारत हमेशा हमारे बहादुरों और उनके परिवारों का आभारी रहेगा जिन्होंने हमारी मातृभूमि की संप्रभुता और अखंडता के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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