राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा है कि क्या कोर्ट राष्ट्रपति और राज्यपाल को ये बता सकता है कि उन्हें कितने समय में विधानसभा से पास हुए बिलों को मंजूरी देनी है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से संविधान के अनुच्छेद 200, 201, 361, 143, 142, 145(3) और 131 से जुड़े सवाल पूछे हैं।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा था कि अगर राष्ट्रपति या राज्यपाल तय समय में बिल को मंजूरी नहीं देते, तो मान लिया जाएगा कि बिल पास हो गया। इसे ‘डीम्ड असेंट’ यानी ‘अपने-आप मंजूरी‘ कहते हैं।
ऐसे में राष्ट्रपति ने पूछा है कि जब राज्यपाल के पास कोई बिल आता है तो उनके पास क्या विकल्प होता है और क्या राज्यपाल मंत्री परिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य है?
राष्ट्रपति का मानना है कि कोर्ट का ये फैसला उनके और राज्यपाल के संवैधानिक अधिकारों को कम करता है। इसलिए उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में राय माँगी है। अनुच्छेद 143(1) राष्ट्रपति को ये अधिकार देता है कि वो किसी बड़े कानूनी या सार्वजनिक महत्व के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट की राय ले सकते हैं। इसे प्रेसिडेंशियल रेफरेंस भी कहते हैं।
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को कुल 14 सवाल भेजे हैं। इन सवालों का जवाब देने के लिए सुप्रीम कोर्ट को कम से कम पाँच जजों की एक संवैधानिक पीठ बनानी होगी। ये सवाल बहुत अहम हैं क्योंकि ये राष्ट्रपति और राज्यपाल के अधिकारों, उनकी भूमिका और कोर्ट की शक्तियों से जुड़े हैं।
राष्ट्रपति ने ये भी कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 200 और 201, जो बिलों को मंजूरी देने की प्रक्रिया बताते हैं, उनमें कोई ऐसा कोई नियम नहीं है जिसमें बिल को मंजूरी देने के लिए कोई समय-सीमा लिखी हो। न ही संविधान में ‘डीम्ड असेंट’ जैसी कोई बात कही गई है।
राष्ट्रपति ने पूछे हैं ये 14 अहम सवाल
- जब राज्यपाल के पास बिल आता है, तो उनके पास क्या-क्या विकल्प होते हैं?
- क्या बिल पर फैसला लेते वक्त राज्यपाल को मंत्रियों की सलाह माननी ही पड़ती है?
- क्या राज्यपाल का फैसला कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है?
- क्या संविधान का अनुच्छेद 361 कहता है कि राज्यपाल के फैसले को कोर्ट में नहीं ले जाया जा सकता?
- जब संविधान में कोई समय-सीमा नहीं है, तो क्या कोर्ट ये तय कर सकता है कि राज्यपाल को कब तक फैसला लेना है?
- क्या राष्ट्रपति का फैसला भी कोर्ट में चुनौती दी जा सकता है?
- क्या कोर्ट ये बता सकता है कि राष्ट्रपति को बिल पर कब और कैसे फैसला लेना है?
- अगर राज्यपाल कोई बिल राष्ट्रपति को भेजता है, तो क्या राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट से राय लेनी पड़ती है?
- क्या बिल के कानून बनने से पहले कोर्ट उसमें दखल दे सकता है?
- क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत राष्ट्रपति या राज्यपाल के फैसले को बदल सकता है?
- क्या बिना राज्यपाल की मंजूरी के विधानसभा से पास बिल कानून बन सकता है?
- क्या संविधान कहता है कि बड़े कानूनी सवालों को पाँच जजों की बेंच को भेजना जरूरी है?
- क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत ऐसा आदेश दे सकता है जो संविधान या कानून के खिलाफ हो?
- क्या केंद्र और राज्य सरकारों के बीच झगड़े सिर्फ अनुच्छेद 131 के तहत ही सुलझाए जा सकते हैं, या कोर्ट के पास और भी रास्ते हैं?
ये सवाल सिर्फ समय-सीमा तय करने की बात नहीं हैं। ये राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक भूमिका, उनके अधिकारों और कोर्ट की शक्तियों के दायरे से जुड़े हैं। अब सुप्रीम कोर्ट को इन सवालों पर गहराई से विचार करना होगा और एक साफ राय देनी होगी। इस फैसले का असर देश की संवैधानिक व्यवस्था और केंद्र-राज्य संबंधों पर भी पड़ सकता है। इसलिए ये मामला बहुत अहम माना जा रहा है।