Friday, April 19, 2024
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‘इस तरह की तुच्छ याचिका कैसे दायर कर सकते हैं’: राम जन्मभूमि पर SC ने 2 याचिका खारिज की, लगाया ₹1-1 लाख जुर्माना

"आप इस तरह की तुच्छ याचिका कैसे दायर कर सकते हैं? इस तरह की याचिका से आपका तात्पर्य क्या है? क्या आप यह कहना चाहते हैं कि कानून का शासन नहीं है और न्यायालय के पाँच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले का कोई पालन नहीं करेगा।"

सुप्रीम कोर्ट (SC) ने अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर खुदाई के दौरान मिली कलाकृतियों को संरक्षित करने के लिए दायर दो जनहित याचिकाएँ सोमवार (जुलाई 20, 2020) को खारिज कर दी। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने इन याचिकाओं को गंभीरता से विचार करने योग्य नहीं पाया।

याचिका को खारिज करने के साथ ही पीठ ने याचिकाकर्ताओं पर एक-एक लाख रुपए का जुर्माना लगाते हुए उन्हें एक महीने के भीतर यह राशि जमा करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जनहित के नाम पर ऐसी बेकार याचिकाएँ कैसे दायर नहीं की जा सकती है। वे दंड के भागी हैं। वे दोबारा ऐसी गलती ना करें इसलिए जुर्माना लगाया गया है।

अदालत ने कहा कि पाँच सदस्यीय पीठ इस मामले में अपना फैसला सुना चुकी है। इन जनहित याचिकाओं के माध्यम से इस निर्णय को खत्म करने का प्रयास हो रहा है। पीठ ने याचिकाकर्ताओं से जानना चाहा कि उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत शीर्ष अदालत में याचिका क्यों दायर की।

पीठ ने कहा, “आप इस तरह की तुच्छ याचिका कैसे दायर कर सकते हैं? इस तरह की याचिका से आपका तात्पर्य क्या है? क्या आप यह कहना चाहते हैं कि कानून का शासन नहीं है और न्यायालय के पाँच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले का कोई पालन नहीं करेगा।”

केन्द्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि न्यायालय को याचिकाकर्ता पर अर्थदंड लगाने के बारे में विचार करना चाहिए। पीठ ने कहा कि प्रत्येक याचिकाकर्ता पर एक-एक लाख रुपए का अर्थदंड लगाया जाता है, जिसका भुगतान एक महीने के भीतर किया जाना चाहिए।

बता दें कि ये याचिकाएँ सतीश चिंदूजी शंभार्कर और डॉ. आम्बेडकर फाउण्डेशन ने दायर की थीं। इनमें इलाहाबाद उच्च न्यायालाय में सुनवाई के दौरान अदालत की निगरानी में हुई खुदाई के समय मिली कलाकृतियों को संरक्षित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

इन याचिकाओं में नए राम मंदिर के लिए नींव की खुदाई के दौरान मिलने वाली कलाकृतियों को भी संरक्षित करने तथा यह काम पुरातत्व सर्वेक्षण की निगरानी में कराने का अनुरोध किया गया था।

गौरतलब है कि बौद्ध समुदाय से जुड़े लोगों ने राम जन्मभूमि पर अपना दावा जताया था। बिहार से आए दो बौद्ध मतावलंबियों ने राममंदिर के समतलीकरण के दौरान मिले प्रतीक चिह्नों को सार्वजनिक करने की माँग करते हुए राम जन्मभूमि पर अपना दावा बताया था।

बिहार से अयोध्या पहुँचे अखि‍ल भारतीय आजाद बौद्ध धम्म सेना संगठन के भंते बुद्धशरण केसरिया ने कहा था, “अयोध्या में बन रहे राममंदिर निर्माण के लिए हुए समतलीकरण के दौरान बौद्ध संस्कृति से जुड़ी बहुत सारी मूर्तियाँ, अशोक धम्म चक्र, कमल का फूल एवं अन्य अवशेष मिलने से स्पष्ट हो गया है कि वर्तमान अयोध्या बोधि‍सत्व लोमश ऋषि की बुद्ध नगरी साकेत है।”

इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा था, “अयोध्या मसले पर हिंदू मुस्लिम और बौद्ध तीनों पक्षों ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की थी, लेकिन सारे सबूतों को दरकिनार कर एकतरफा फैसला हिंदुओं के पक्ष में राम जन्मभूमि के लिए दे दिया गया। इसके लिए हमारे संगठन ने राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट समेत कई संस्थाओं को पत्र लिखकर वास्तविक स्थि‍ति से अवगत कराया है।”

उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत ने पिछले साल नौ नवंबर को अपने ऐतिहासिक फैसले में अयोध्या में जन्मभूमि स्थल पर राम मंदिर निर्माण के लिये एक न्यास गठित करने का निर्णय दिया था। न्यायालय ने इसके साथ ही मस्जिद के लिये पाँच एकड़ भूमि आवंटित करने का निर्देश भी सरकार को दिया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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