Tuesday, April 23, 2024
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हिन्दुओं, ब्राह्मणों, प्राचीन इतिहास की घृणा से सनी हैं ‘विश्व बुक्स’ की किताबें, धर्मग्रंथों का घोर अपमान

तुलसीदास के साहित्य को 'आडम्बर' घोषित कर दिया गया है और उन्हें हिन्दुओं को पुरुषार्थ छोड़ कर राम भरोसे रहने के लिए प्रेरित करने वाला व्यक्ति बताया गया है। इस पुस्तक में इन चीजों का 'पोल खोलने' का दावा किया गया है। इसी लेखक की "हम हिन्दुओं में क्या नैतिकता है?" नामक पुस्तक में पूछा गया है कि भारत में अवतार क्यों पैदा हुए हैं और उनकी लम्बी लाइनें क्यों लग गई हैं?

हमारे देश में कई ऐसी पुस्तकें लिखी जाती हैं, जिनमें हमारी अपनी ही विरासत का मखौल उड़ाया जाता है। इनमें से एक ‘विश्व बुक्स’ प्रकाशन संस्थान भी है, जिसकी किताबें हिंदुत्व का मजाक बनाने के लिए ही लिखी जाती हैं। ‘विश्व बुक्स’ की अधिकतर पुस्तकें बच्चों और छात्रों के लिए लिखी जाती है। वो लोग ही इसे ज्यादा पढ़ते हैं। कई पुस्तकें वयस्कों के लिए भी हैं। इनमें से अधिकतर हिन्दूघृणा से सनी हुई किताबें हैं।

उदाहरण के लिए इसके एक किताब का शीर्षक देखिए- “धार्मिक कर्मकांड- पंडों का चक्रव्यूह“, जिसमें ब्राह्मणों का मजाक बनाया गया है। इसमें हिन्दू धर्म की पूजा पद्धतियों को नकारते हुए इसे ब्राह्मणों की साजिश बताया गया है। यानी, ब्राह्मणों, साधुओं, हिन्दू धर्म और मंदिरों को बदनाम करने का ‘विश्व बुक्स’ ने बीड़ा उठाया हुआ है। राकेश नाथ द्वारा लिखित इस पुस्तक के कवर पर ही भगवा वस्त्रों में एक ब्राह्मण को कमण्डल लेकर भागते हुए दिखाया गया है।

जब छात्र व बच्चे इन चीजों को पढ़ते होंगे तो क्या वो अपने ही धर्म और समाज के प्रति हीन भावना से ग्रसित नहीं हो जाते होंगे? ब्राह्मणों को इस तरह से पेश किया गया है जैसे वो समाज के सबसे बड़े विलेन्स हों। इसी तरह इसने जयप्रकाश यादव द्वारा लिखित पुस्तक ‘धर्म: एक धोखा’ नामक पुस्तक का प्रकाशन किया है, जिसमें धर्म को छल-कपट का विषय बताया गया है। इसके कवर पेज पर भी कमंडल लिए एक ब्राह्मण को दिखाया गया है।

राकेश नाथ की ही एक और पुस्तक है- “धर्म का शाप- आतंक, विभत्स्ता, क्रूरता, व बर्बरता का जनक”, जिसमें व्यक्ति को धर्म के कारण दबे-कुचले होने की बात कही गई है। इसके अलावा हिन्दू समाज को अपने ही प्रति ‘हीनता’ से भरने के लिए हिन्दुओं को हार जाने वाला समुदाय बता कर एक पुस्तक में समेटा गया है और उसे नाम दिया गया है- :द हिस्ट्री ऑफ़ हिंदूज- द सागा ऑफ़ डिफिट्स, जिसमें हिन्दू समाज को डरपोक प्रदर्शित किया गया है।

इससे पहले एक ट्विटर यूजर अंजी ने खुलासा किया था कि उन्होंने अमेजॉन के जरिए विश्व बुक्स से श्रीमद्भगवद्गीता मँगाने का ऑर्डर दिया था लेकिन साथ में हिन्दूघृणा से सनी किताब भी आई। जब उनके ऑर्डर की डिलीवरी हुई, तो उसके साथ एक और बुक थी जिसका शीर्षक था- “भागवत पुराण कितना अप्रासंगिक” उक्त पुस्तक पुराण का प्रतिवाद है और पाठकों को पुराण पढ़ने से रोकने के लिए स्पष्ट रूप से लक्षित है।

बाद में पता चला कि इस तरह की घटना कई उपभोक्ताओं के साथ हो चुकी है। कई लोगों को ऐसी किताबें भेजी गई हैं। किसी ने सुपरहीरोज की किताब ऑर्डर की तो उन्हें ये मिला, किसी ने अंग्रेजी की किताब मँगाई तो उन्हें बाइबल पहुँची। जाहिर है, वो भले ही मुफ्त में चीजें दे दें लेकिन उन्हें हिन्दुओं के ख़िलाफ़ घृणा को भड़काना ही है, हर हाल में। ऐसे पाठकों को ख़ासकर निशाना बनाया जा रहा है, जो आस्तिक हैं, धर्म में विश्वास रखते हैं।

इसी तरह की एक पुस्तक है “हम अध्यात्मवादी होते हैं“, जिसमें डॉक्टर सुरेंद्र कुमार शर्मा नामक व्यक्ति ने दावा किया है कि हिन्दू अपनी प्राचीन संस्कृति का ढोल पीटते रहते हैं और उनका अलग अध्यात्मवाद है। साथ ही इसमें लिखा है कि अध्यात्मवादी होना एक ‘षड्यंत्र’ था, जिसे ऋषियों, नायकों, अवतारों और मुनियों ने बुना था। दावा किया गया है कि उन्होंने ऐसा इसीलिए किया, ताकि विशेष वेश बना कर अपने स्वार्थों की पूर्ति कर सकें।

इस पुस्तक के डिस्क्रिप्शन में लिखा है कि ये पाठकों को ‘अध्यात्मवाद की भूलभुलैया’ से बाहर लेकर आएगा। राकेश नाथ की एक अन्य पुस्तक में रामचरितमानस की रचना करने वाले कवि तुलसीदास को ही बदनाम किया गया है। इस पुस्तक का ही नाम है, “तुलसीदास- द मिसगाईडर ऑफ हिन्दू सोसाइटी“, अर्थात उन्हें हिन्दू समाज को पथभ्रष्ट करने वाला व्यक्ति बताया गया है। इसमें लिखा है कि हिन्दुओं को विदेशी सलीमशाहियीं के जूतों के नीचे कीड़े-मकोड़ों की तरह रौंदा जाता था।

तुलसीदास के साहित्य को ‘आडम्बर’ घोषित कर दिया गया है और उन्हें हिन्दुओं को पुरुषार्थ छोड़ कर राम भरोसे रहने के लिए प्रेरित करने वाला व्यक्ति बताया गया है। इस पुस्तक में इन चीजों का ‘पोल खोलने’ का दावा किया गया है। इसी लेखक की “हम हिन्दुओं में क्या नैतिकता है?” नामक पुस्तक में पूछा गया है कि भारत में अवतार क्यों पैदा हुए हैं और उनकी लम्बी लाइनें क्यों लग गई हैं? इसमें विदेशी आक्रांताओं के हमले का कारण हिन्दुओं के विवेकहीन पाखंडों, आडम्बरों और मान्यताओं को बताया गया है।

इस पुस्तक में हिन्दुओं की सही स्थिति का आकलन करने का दावा करते हुए नैतिकता सिखाने की बात कही गई है। इसी लेखक की एक अन्य पुस्तक ‘ब्राह्मण यूनियन‘ को भी ‘विश्व बुक्स’ ने ही पब्लिश किया है और इसमें भी ब्राह्मणों को बदनाम किया गया है। “क्या हिन्दू नारी आज भी उपेक्षित है?“- इस पुस्तक में स्त्रियों की स्थिति को जबरदस्ती धर्म से जोड़ कर दिखाने की कोशिश की गई है। “धर्म का धंधा” भी ऐसी ही एक पुस्तक है।

एक पुस्तक में तो हिन्दुओं के धर्मग्रंथों को ही हमारे ऊपर लादा गया एक बोझ बता दिया गया है। “कितने अप्रासंगिक हैं धर्मग्रन्थ?” में हमारी अपनी ही प्राचीन पुस्तकों को कूड़ा-करकट की तरह दिखाया गया है। “जैन धर्म ग्रंथों की कितनी वास्तविकता?” नामक पुस्तक में रीति-रिवाजों को मनुष्य को विवेकहीन बनाने का एक जरिया बताया गया है। लिखा है कि आदेश और प्रवचन इत्यादि अनुयायियों को बरगलाने का एक जरिया हैं।

बता दें कि ‘विश्व बुक्स’ दिल्ली प्रेस ग्रुप का ही एक एसोसिएट है, ऐसा उसकी ही वेबसाइट पर बताया गया है। दिल्ली प्रेस 9 भाषाओं में 32 मैगजीन्स का प्रकाशन करता है। ‘विश्व बुक्स’ का मुख्यालय गाजियाबाद के साहिबाबाद में स्थित है। अब आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ये किस नेक्सस का काम है। ऐसी किताबों को जबरदस्ती लोगों को पढ़वाना एक ऐसी मुहिम का हिस्सा है, जिससे लोग अपने ही धर्म और इतिहास से विमुख हो जाएँ।

इससे पहले चंपक पत्रिका के अक्टूबर 2019 संस्करण के एक हिस्से में पत्रिका बच्चों से कश्मीर में अपने जैसे अन्य बच्चों के नाम पत्र लिखने और उनसे वहाँ की स्थिति के बारे में पूछने के लिए अपील की गई थी। पत्रिका के इस संस्करण में कहा गया है कि कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त किए जाने के बाद घाटी में स्थिति ठीक नहीं है। हजारों सैनिकों और सेना की बटालियनों को कश्मीर भेजा गया है और जगह-जगह कर्फ्यू लगा हुआ है।

लिखा गया था कि यहाँ तक कि टेलीफोन लाइनों और इंटरनेट सेवाओं को भी निलंबित कर दिया गया है। मतलब उनपर बड़ा अत्याचार हो रहा है। आप हमें पत्र भेंजे हम उन्हें निश्चित रूप से कश्मीर के बच्चों तक पहुँचाएँगे। ऐसा करके बच्चों में ये जहर बोने की कोशिश है कि देखिए वहाँ के बच्चे किस हाल में हैं। कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं है कि इससे पहले वहाँ के क्या हालात थे। इसी तरह ‘दिल्ली प्रेस ग्रुप्स’ की किताबें प्रपंच फैलाती हैं।

इसकी सबसे पुरानी पत्रिका ‘द कारवाँ’ के एज़ाज अशरफ की एक घटिया रिपोर्ट में, उन्होंने हमारे शहीद सैनिकों की ‘जाति का विश्लेषण’ किया था। कारवाँ का एजेंडा तो ऐसा है, जिसमें उन्होंने उन बलिदानी सैनिकों को भी नहीं छोड़ा, जिनकी पाकिस्तान जैसे आतंकी स्टेट द्वारा प्रायोजित आतंकी संगठन जैश द्वारा निर्मम हत्या कर दी गई थी। इसने अमित शाह, पीएम मोदी, एनएसए डोभाल और उनके बेटे पर कई घटिया आधारहीन रिपोर्ट प्रकाशित किए हैं। 

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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