Sunday, October 13, 2024
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हल्द्वानी जल गया, पर रवीश कुमार की नहीं बुझी है प्यास: चाहते हैं अब मौके पर पहुँचकर आग भड़काए विपक्ष, दंगाइयों की बने ढाल

रवीश कुमार का आरोप है कि चुनावी ध्रुवीकरण हो रहा है। उनका कहना है कि बहुसंख्यक आबादी 'गोदी मीडिया' और Whatsapp के सहारे है। यानी, अवैध अतिक्रमण करने वाले मुस्लिम, हिंसा करने वाले मुस्लिम - लेकिन दोष बहुसंख्यक हिन्दुओं का।

उत्तराखंड के हल्द्वानी में गुरुवार (8 फरवरी, 2024) को हिंसा भड़क गई। थाना फूँक दिया गया, पेट्रोल पंप जला दिया गया, महिला पुलिसकर्मियों को घायल अवस्था में इलाज कराते हुए देखा गया, पत्थरबाजी-गोलीबारी हुई और 6 जिलों की पैरामिलिट्री के अलावा भारतीय सेना को भी बुलाया गया है। हल्द्वानी का बनभूलपुरा अवैध अतिक्रमण के लिए कुख्यात है, जहाँ 4000 से भी अधिक घर सरकारी जमीन पर अवैध कब्ज़ा कर के बनाए गए हैं।

इतनी हिंसा हो गई लेकिन इसके बावजूद NDTV के पत्रकार रहे रवीश कुमार जो अब यूट्यूबर हैं, वो दंगाइयों के बचाव में उतर आए। रवीश कुमार को दुःख है कि हल्द्वानी में 6 लोगों की मौत हुई है और 300 घायल हैं। उनका कहना है कि विपक्ष के बड़े नेताओं को बनभूलपुरा जाना चाहिए और वहाँ ठहर कर चीजों का पता लगाना चाहिए। रवीश कुमार को वहाँ जो भी हुआ है उसमें कब्ज़ा हटाने के नाम पर कुछ और होता हुआ नज़र आ रहा है। पता नहीं उन्होंने किस रंग का चश्मा लगा रखा है।

DM वंदना सिंह ने स्पष्ट कहा है कि भीड़ ने न सिर्फ थाने को जलाने की कोशिश की, बल्कि पुलिसकर्मियों को ज़िंदा जलाने का भी प्रयास किया। रवीश कुमार जैसे तथाकथित पत्रकारों को यही तरीका आता है – भाजपा शासित राज्य में कुछ गलत हो तो सरकार की आलोचना करो, अपराधियों पर कार्रवाई हो तो उन अपराधियों को ही पाक-साफ़ साबित करने का प्रयास करो। रवीश कुमार यही कर रहे हैं। दंगाइयों का बचाव कर रहे हैं, आग और भड़के इसकी जुगत लगा रहे हैं।

दंगों के बीच विपक्षी नेताओं को कहीं डेरा डालने के लिए कहने का क्या अर्थ है? विपक्षी नेता जाएँगे तो उनके लिए अतिरिक्त सुरक्षा की व्यवस्था करनी पड़ेगी, उनके समर्थक वहाँ पर जुटेंगे, नारेबाजी-विरोध प्रदर्शनों का माहौल बनेगा, प्रशासन पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा – ये सब करवा के रवीश कुमार क्या हासिल करना चाहते हैं? जो इलाका पहले से ही हिंसा का अड्डा बन चुका है, उसे अब राजनीति का अड्डा क्यों बनाना चाहते हैं? क्या वो अपने साथी राजदीप सरदेसाई की तर्ज पर ‘गिद्ध पत्रकारिता’ को बढ़ावा दे रहे हैं?

रवीश कुमार लिखते हैं कि कब्ज़ा हटाने के नाम पर कुछ और हो रहा है। ऐसा कर के वो उस न्यायालय का भी अपमान कर रहे हैं, जिसके आदेश पर प्रशासन अवैध अतिक्रमण हटाने पहुँचा था। मुस्लिम कह रहे हैं कि मस्जिद और मदरसे को तोड़ा गया, जबकि डीएम वंदना सिंह का कहना है कि वो संरचनाएँ धार्मिक के रूप में पंजीकृत ही नहीं थीं। क्या रवीश कुमार अवैध अतिक्रमण का समर्थन कर रहे हैं? भारत का विपक्ष जब अभी के संवेदनशील मुद्दों पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आता, उसे आग भड़काने की सलाह देना सचमुच घातक है।

रवीश कुमार का आरोप है कि चुनावी ध्रुवीकरण हो रहा है। उनका कहना है कि बहुसंख्यक आबादी ‘गोदी मीडिया’ और Whatsapp के सहारे है। यानी, अवैध अतिक्रमण करने वाले मुस्लिम, हिंसा करने वाले मुस्लिम – लेकिन दोष बहुसंख्यक हिन्दुओं का। जब राष्ट्रपति भवन में इफ्तार पार्टी होती थी और NDTV के कार्यक्रम होते थे, तब इस ‘ध्रुवीकरण’ की याद नहीं आई? क्या हिन्दू मूर्ख हैं? रवीश की मानें तो मुस्लिम समाज संविधान का कोई अनुच्छेद पढ़ कर उसके हिसाब से अतिक्रमण और हिंसा कर रहा है, जबकि इसका विरोध करने वाले हिन्दू भ्रमित हैं।

क्या अवैध अतिक्रमण का विरोध का मतलब है ‘गोदी मीडिया’ से प्रभावित होना या फिर Whatsapp संदेशों के हिसाब से राय बनाना? या फिर हिंसा का विरोध करने वाले मूर्ख हैं और हिंसा करने वाले पाक-साफ़? रवीश कुमार युवाओं को भड़का रहे हैं कि उन्होंने गलत रास्ता चुन लिया है। भारतीय सेना की ‘अग्निवीर’ योजना के खिलाफ भी ऐसे ही माहौल बनाया गया था, लेकिन इस गिरोह को अफ़सोस है कि देश में आग क्यों नहीं लगी। अब ये युवाओं से नाराज़ हैं, हिंसा क्यों नहीं तेज़ हो रही।

रवीश कुमार को हिंदी समाचारपत्रों से भी शिकायतें हैं। उनमें मस्जिदों के नीचे मंदिर होने की खबर होती है, जिससे रवीश को समस्या है। क्या रवीश कुमार को संतुष्ट करने के लिए इतिहास बदल दिया जाए? अगर बाबरी ढाँचे के नीचे राम मंदिर था तो क्या एक व्यक्ति की संतुष्टि के लिए इसे बदल दिया जाए? आर्कियोलॉजिस्ट KK मुहम्मद के शोध में भी यही मिला। केके मुहम्मद भी झूठे हैं? काशी, मथुरा या भोजशाला जैसे ऐसे कई मंदिर हैं, जिन पर कब्ज़ा किया गया। इस पर बात क्यों न हो, जब इतिहास के तथ्य मौजूद हैं, सबूत मौजूद हैं?

रवीश कुमार को इन सब में वोट बैंक दिख रहा है। रवीश कुमार ने तो इस पोस्ट में अदालतों तक को सांप्रदायिक बता दिया है। उन्होंने इसे ‘अदालती सांप्रदायिकता’ करार दिया है। फ़िलहाल सुप्रीम कोर्ट उनकी नज़र में क्लीन है, इसीलिए वो सुप्रीम कोर्ट से इस पर ध्यान देने के लिए कह रहे हैं। कल को सुप्रीम कोर्ट को भी वो इसी तरह गाली देंगे। मतलब निचली अदालतों को खत्म कर दिया जाए? रवीश को हर उस व्यवस्था और व्यक्ति से दिक्कत है, जो मुस्लिम तुष्टिकरण के हिसाब से काम नहीं करता।

रवीश कुमार को घायल पुलिसकर्मियों के चेहरे नज़र नहीं आते। उन्हें थाना और पेट्रोल पंप फूँकने वाली भीड़ नहीं दिखती, उस भीड़ के मजहबी इरादे नहीं दिखते। दिखते भी होंगे तो उन्हें इसका बचाव करना है। रवीश कुमार को सरकारी जमीन पर कब्ज़ा ठीक लगता है। रवीश कुमार को ये भी ठीक लगता है कि हिंसक भीड़ महिलाओं-बच्चों को आगे कर के ढाल बनाए। रवीश कुमार को ये नहीं दिख रहा कि उत्तराखंड को ‘देवभूमि’ कहा जाता है, यहाँ हिन्दू धर्म से संबंधित कई तीर्थ स्थल हैं और वहाँ अमानुषिक गतिविधियों की अनुमति नहीं दी जा सकती।

असल में रवीश कुमार इतिहास को नकार देना चाहते हैं। वर्तमान को नकार देना चाहते हैं। उनका कहना है कि दिल्ली में मस्जिद ध्वस्त कर दिया गया। नहीं, दिल्ली और यूपी में कई मंदिरों को भी हटाया गया जो अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई का ही हिस्सा था। कहीं किसी प्रकार की हिंसा नहीं हुई। झंडेवालान मंदिर ने तो खुद अपना गेट तोड़ा। प्रशासन के साथ सहयोग किया। लेकिन, मस्जिदों-मजारों के नाम पर अवैध अतिक्रमण की इजाजत क्यों दी जाए?

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अनुपम कुमार सिंह
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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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