Friday, October 11, 2024
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झूठ है इस्लाम में ‘भाईचारा’, आपस में मारकाट करनी हो तो भाई ही होता है ‘चारा’: बस काफिरों के खिलाफ जगता है मुस्लिमों का ‘उम्माह’

दुनिया भर में हमास के लिए झकझोर कर रख देने वाला समर्थन सामने आया है। पूरी दुनिया के मुस्लिमों ने हमास द्वारा किए गए महिलाओं, बच्चों और सैकड़ों नागरिकों की क्रूर हत्याओं का समर्थन किया। ये मुस्लिम पश्चिमी देशों में लोकतंत्र का मजा लेते हुए अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का गजब मजा उठा रहे हैं और इजरायल के खात्मे का ऐलान कर रहे हैं।

फिलिस्तीन स्थित इस्लामी आतंकी संगठन हमास के हजारों आतंकवादियों ने इजरायल में घुसकर सैकड़ों निर्दोषों की जान ले ली और कुछ को बंधक बनाकर गाजा पट्टी ले गए। उन्होंने हर तरफ तबाही मचाई। इजरायल ने जैसे ही हमास के खिलाफ युद्ध की घोषणा की, वैसे ही अधिकांश मुस्लिम मुल्क फिलिस्तीन के समर्थन में एकजुट हो गए। इन देशों का फिलिस्तीन को समर्थन देने का एक लंबा इतिहास है।

हालाँकि, उनका समर्थन दीनी या सामान्य भाईचारे की कथित धारणा से उत्पन्न नहीं होता है, जिसे सामान्यतया ‘उम्माह‘ कहा जाता है। यह भाईचारा गैर-इस्लामी लोगों के प्रति घृणा से प्रेरित है। गैर-इस्लामी लोगों को मुस्लिमों द्वारा अपमानजनक रूप से ‘काफिर’ कहा जाता है। इन्हें ही वो साझा तौर पर ‘शत्रु’ के तौर पर देखते हैं।

गैर-इस्लामी लोगों पर मुस्लिमों के अत्याचारों पर अरब जगत चुप्पी साधे रहता है, लेकिन जैसे ही कोई पलटवार करता है ये ‘विक्टिम कार्ड’ खेलने लगते हैं। इस लेख के माध्यम से हम ये समझाने की कोशिश करेंगे कि कैसे फिलिस्तीनियों की या अन्य मुस्लिमों की जान का इस्तेमाल दुनिया को ‘दार-उल-इस्लाम‘ बनाने के उपकरण के रूप में किया जाता है।

फिलिस्तीन को अरब जगत का समर्थन मुस्लिमों के लिए नहीं, ‘यहूदी’ देश से लड़ने के लिए है

इजरायल-फिलिस्तीन के पड़ोसी देश सीरिया, मिस्र और जॉर्डन ने फिलिस्तीनियों के मुद्दे का हवाला देते हुए इजरायल से लड़ाइयाँ लड़ी हैं। ये तो सत्य है, लेकिन ये भी उतना ही सत्य है कि इन देशों ने अपनी जमीनों पर फिलिस्तीनियों का ही कत्लेआम किया है। इजरायल पर फिलिस्तीनी मुस्लिमों के कत्लेआम का आरोप लगाने वाले इन देशों का अपना एक काला अध्याय है।

इनमें से एक घटना जॉर्डन की है। सितंबर 1970 में जॉर्डन ने पाकिस्तान की मदद से हजारों फिलिस्तीनियों को मौत के घाट उतार दिया था। ये घटना इतिहास में ‘ब्लैक सितंबर‘ के नाम से जानी जाती है। करीब 53 साल पहले हुए इस भयावह नरसंहार में फिलिस्तीनियों को जॉर्डन से भागकर लेबनान में शरण लेना पड़ा था।

इस घटना में जॉर्डन के शाह हुसैन ने अपनी सेना से राजधानी अम्मान के आसपास स्थित फिलिस्तीनी शरणार्थी शिविरों को तबाह करने और सभी फिलीस्तीनियों को मारने का आदेश जारी किया था। इसमें जॉर्डन की सेना ने पीएलओ (फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन) के कब्जे वाले इलाकों को खाली करा लिया था और उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर दिया था।

साल 2015 की जनगणना के मुताबिक, जॉर्डन की कुल आबादी 95 लाख थी, जिसमें से 6.34 लाख लोग फिलिस्तीनी हैं। हालाँकि, मानवाधिकार संगठनों का दावा है कि जॉर्डन की आधी आबादी फिलिस्तीनी है। जॉर्डन के सत्तारूढ़ ‘हशमत सल्तनत’ को डर है कि फिलिस्तीनियों की बढ़ती आबादी उन्हें सत्ता से बेदखल कर सकती है। ये डर 1970 में करीब-करीब सच होने जा ही रहा था कि उन्होंने फिलिस्तीनियों को मार डालने का आदेश दे दिया था।

इस मामले में पाकिस्तान ने जॉर्डन की सेना को ट्रेनिंग से लेकर पूरी ताकत से समर्थन दिया था, वो भी तब, जब पाकिस्तान खुद को फिलिस्तीन का पक्का समर्थक साबित करता है। ब्लैक सितंबर की घटनाओं में पाकिस्तान की सेना का सीधा हाथ था। उस समय जॉर्डन की सेना की अगुवाई करने वाले जियाउल हक को पाकिस्तान में तरक्की मिली और फिर वो इन्हीं तरक्कियों की वजह से पाकिस्तान का तानाशाह बनकर कई सालों तक बतौर राष्ट्रपति राज करता रहा।

फिलिस्तीन का एक अन्य पड़ोसी सीरिया, जो हमास की मदद करता था। उसने फिलिस्तीनी नेताओं को आश्रय दिया। हालाँकि, साल 2011 में जब सीरिया के गृहयुद्ध में फिलिस्तीनियों ने बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया तो सीरिया ने फिलिस्तीनी लीडरशिप को देश से निकाल दिया, लेकिन वह आम फिलिस्तीनियों के लिए काल बन गया। सीरिया ने आम फिलिस्तीनियों को मौत के घाट उतार दिया।

सीरिया में फिलिस्तीनियों के लिए काम कर रहे एक्शन ग्रुप (Action Group for Palestinians of Syria- AGPS) के आँकड़ों के मुताबिक, सीरिया में युद्ध के दौरान 4,013 फिलिस्तीनियों की मौत की बात कही गई है। इनमें से 614 लोगों को जेलों में टॉर्चर करके मारा गया तो 205 लोगों की जान दमिश्क के यरमौक शिविर में यातना और चिकित्सकीय देखभाल में चली गई।

इजरायली राजनीतिज्ञ गोल्डा मेर ने एक बार कहा था, “अरबों के साथ हमारी शांति तब होगी, जब वे हमसे नफरत करने की तुलना में अपने बच्चों को अधिक प्यार करेंगे”। यह बात सिर्फ इस्लामी देशों पर ही लागू नहीं होती, यह हमास (हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया) पर भी लागू होती है, जो यहूदियों के प्रति नफरत के चलते गाजा के नागरिकों को ढाल के तौर पर इस्तेमाल करता है।

ऐसा खासकर तब होता है, जब हमास के रॉकेट हमलों के जवाब में इजरायल अपने तोपखाने और मिसाइलों से हमले करता है। चूँकि हमास के आतंकी अस्पतालों, मस्जिदों, स्कूलों का इस्तेमाल इजरायल पर रॉकेट हमले के लिए करता है। ऐसे में जवाबी हमले वाली मिसाइलों का शिकार आम मुस्लिम जनता होती है।

हाल ही में इजरायली सेना ने एक वीडियो जारी किया है, जिसमें बताया गया है कि आतंकवादी किन जगहों से हमला करते हैं और कैसे वो मस्जिदों की आड़ लेकर इजरायल पर हमले को अंजाम दे रहे हैं। हमास के हमले के जवाब में इजरायल ने उस मस्जिद को ही उड़ा दिया था। अगर हमास के हमलावर वहाँ से भाग निकले थे तो फिर मिसाइलों का निशाना कौन बना? जाहिर है आम जनता।

गाजा की नाकेबंदी करने पर मिस्र की सेना पर फिलिस्तीनियों के आतंकी हमले

राफा बॉर्डर क्रॉसिंग को राफा क्रॉसिंग पॉइंट के रूप में भी जाना जाता है। यह मिस्र और गाजा पट्टी के बीच एकमात्र क्रॉसिंग पॉइंट है। यह गाजा-मिस्र की सीमा पर स्थित है, जिसे 1979 की मिस्र-इजरायल शांति संधि द्वारा मान्यता दी गई है।

हालाँकि, मिस्र लंबे समय से अपने देश में गाजा के लोगों को घुसने नहीं देता, क्योंकि वो इस चेक प्वॉइंट की वजह से अपने देश में इस्लामिक स्टेट (ISIS) के आतंकियों के हमलों को झेल चुका है। आईएस या दाएश के आतंकी गाजा के निवासियों की आड़ लेकर मिस्र में घुसपैठ करते हैं।

इस बार भी हमास के आतंकियों ने जब इजरायल पर हमला किया तो मिस्र ने तुरंत राफा बॉर्डर क्रॉसिंग को बंद कर दिया। दरअसल, हमास पर हमला करने से पहले इजरायल ने गाजा के लोगों से कहीं और चले जाने के लिए कहा था। बड़ी संख्या में फिलिस्तीनियों के आवग को देखते हुए मिस्र ने क्रॉसिंग को बंद कर दिया।

बता दें कि जून 2007 में जब हमास ने गाजा पट्टी पर कब्जा किया था, तभी से मिस्र ने राफा क्रॉसिंग को बंद कर रखा है। हालाँकि, मिस्र यहाँ से मेडिकल हेल्प के लिए लोगों को अपने देश आने देता है। जिन लोगों के पास मिस्र आने-जाने का परमिट होता है, वे भी आ-जा सकते हैं। मिस्र और गाजा की 12 किलोमीटर लंबी सीमा है।

चूँकि हमास के आतंकी बॉर्डर क्रॉसिंग पर ही हमला करके उसकी दीवार को उड़ा चुके हैं और मिस्र के सुरक्षाकर्मियों पर हमले कर चुके हैं, ऐसे में मिस्र इस क्रॉसिंग को बंद ही रखता है, ताकि उसके देश में आतंकी न घुस जाएँ। आधिकारिक रिपोर्ट्स के मुताबिक, हमास के आतंकियों ने 2003 में राफा बॉर्डर क्रॉसिंग की दीवार को धमाके करके उड़ा दिया था। इस समय गाजा के लोग पूरी तरह से कैद हो चुके हैं, क्योंकि इजरायल ने चारों तरफ से नाकाबंदी कर दिया है।

वैसे, हमास के आतंकी सुरंगों के जरिए मिस्र से होने वाले सामानों की तस्करी से हर महीने 1.20 करोड़ डॉलर (करीब 100 करोड़ रुपए) की रकम उगाहते थे, लेकिन साल 2013 में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने इन सुरंगों को नष्ट करने के आदेश दे दिया। इससे हमास की यह कमाई भी खत्म हो गई। अल-सीसी हमास को मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे आतंकी संगठन का विस्तार मानते थे। मिस्र ने मुस्लिम ब्रदरहुड पर बैन लगा रखा है।

इस्लामी देशों ने ही मुस्लिम शरणार्थियों को शरण देने से किया इनकार

जॉर्डन, जिसने ‘मुस्लिम भाईचारे’ के नाम पर अब तक लाखों विदेशी नागरिकों, चाहे वो फिलिस्तीनी रहे हों या फिर सीरियाई या ईराकी, उन्हें निकालने की तैयारी कर रहा है। मई 2023 में ‘जॉर्डन इनीशिएटिव’ लागू होने के बाद अब तक जो जॉर्डन मुस्लिम शरणार्थियों का स्वागत करता था, वो विदेशी मुस्लिमों का विस्थापन करने की तैयारी कर रहा है। मानवाधिकार संगठनों ने इस पर चिंता जताई है।

इसी तरह से लेबनान और तुर्किये ने अपने ‘उम्माह समर्थक’ देश की छवि को बदलने की कोशिश की है। अप्रैल 2023 से इन देशों। ने सीरियाई शरणार्थियों को जबरन उनके देश भेजने की प्रक्रिया तेज कर दी है।

इस तरह, उम्माह का कट्टर समर्थक पाकिस्तान भी अपना रंग बदल चुका है। तालिबान का कब्जा होने के बाद अफगानिस्तान छोड़कर भागे लाखों मुस्लिम अफगानियों को कुछ दिनों में अपने देश लौटने या फिर जबरन निर्वासित करने का फैसला सुना दिया है। इसके लिए उसने महज 4 सप्ताह का ही समय दिया है।

वैसे, उम्माह के आधार पर युद्धग्रस्त यमन के लोगों को भी मुस्लिम देशों में शरण मिलनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि मुस्लिम देशों के बीच उन्हें पीड़ित नहीं दिखाया जा सकता। पीड़ित वो तब होते हैं, जब मामला दूसरे धर्म के लोगों से जुड़ा हो।

सीरियाई, सूडानी और लीबियाई शरणार्थियों के लिए भी यही बात लागू होती है। अफ्रीका और अन्य जगहों पर आतंकवाद द्वारा सताए जा रहे मुस्लिमों को समर्थन देने की कोई सुगबुगाहट भी नहीं मिलती, क्योंकि वो ‘साझे दुश्मन’ नहीं हैं। वे आपस में लड़ने वाले सभी मुस्लिम ही हैं। यमन के हालात पर भी किसी मानवाधिकार संगठनों ने मुँह नहीं खोला।

हकीकत ये है कि पाकिस्तान, ईरान, तुर्किये, फ़िलिस्तीन, लेबनान आदि जैसे इस्लामी राष्ट्रों ने मुस्लिमों की ही हत्याएँ की हैं। पाकिस्तान में स्थानीय मुस्लिम संप्रदायों – अहमदिया, बलूच और सिंधियों पर बेहिसाब अत्याचार किए जा रहे हैं। गाजा पट्टी में हमास ने खुद से असहमत मुस्लिमों और फ़तह पार्टी से जुड़े नेताओं की हत्याएँ कीं। साथ ही इन कुकृत्यों को दबा भी दिया गया।

इसके उलट, गैर-इस्लामी लोगों को निशाना बनाने के लिए मुस्लिमों को ट्रेनिंग दी गई। यहूदियों से घृणा में सारे मुस्लिम देश एक साथ खड़े हैं। ईरानी संसद में यहूदियों के होलोकास्ट की माँग और अमेरिका के खात्मा का ऐलान किया जाता है तो पाकिस्तान में खुलेआम हिंदुओं को सताया जाता है। ‘साझा दुश्मन’ की धारणा इन मुस्लिमों देशों में इतनी मजबूत है कि हमास ने सैकड़ों इजरायली बच्चों, बुजुर्गों, महिलाओं को मौत के घाट उतार डाला, लेकिन एक भी अरब देश ने अब तक हमास की निंदा नहीं की।

बता दें कि 7 अक्टूबर 2023 को हमास के आतंकवादियों ने रॉकेट हमले के साथ ही इजरायल में घुसकर खुलेआम यहूदियों का खून बहाया। उन्होंने गाँव के गाँव तबाह कर दिए। महिलाओं का बलात्कार किया और उन्हें बंधक बनाकर गाजा पट्टी ले गए। उस दौरान बच्चों के सिर कलम कर दिए गए और बुजुर्गों को गोली मार दी गई। ये हमला उस दिन किया गया, जब यहूदियों का त्यौहार था।

निष्कर्ष

दुनिया भर में हमास के लिए झकझोर कर रख देने वाला समर्थन सामने आया है। पूरी दुनिया के मुस्लिमों ने हमास द्वारा किए गए महिलाओं, बच्चों और सैकड़ों नागरिकों की क्रूर हत्याओं का समर्थन किया। ये मुस्लिम पश्चिमी देशों में लोकतंत्र का मजा लेते हुए अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का गजब मजा उठा रहे हैं और इजरायल के खात्मे का ऐलान कर रहे हैं।

वहीं, दूसरी ओर ये मुस्लिम यमन के युद्ध पीड़ितों, अफगानिस्तान में महिलाओं और बच्चियों की हालत की कभी परवाह नहीं की, क्योंकि वो साझे दुश्मन यानि हिंदू-ईसाई-यहूदी नहीं हैं। ये तभी इकट्ठे होते हैं, जब उनके सामने ये विधर्मी लोग होते हैं।

इस बीच, राजनीतिक तौर पर भी देखें तो पूरी दुनिया दुनिया आतंकवादी संगठन हमास के समर्थन में खड़ी है तो भारत-अमेरिका समेत तमाम गैर-इस्लामी देश इजरायल के साथ खड़े हैं। फर्क आपको भी समझ में आ रहा होगा कि इन मुस्लिम देशों के लिए मुस्लिम उम्माह नाम की बात सिर्फ ढकोसला भर है।

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Paurush Gupta
Paurush Gupta
Proud Bhartiya, Hindu, Karma believer. Accidental Journalist who loves to read and write. Keen observer of National Politics and Geopolitics. Cinephile.

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