सोशल मीडिया पर रविवार (26 अप्रैल ,2025) को ‘मुस्लिम पीड़ित’ की झूठी कहानी फैलाई गई, जिसमें दावा किया गया कि कोलकाता की एक स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ चंपाकली सरकार ने एक मुस्लिम मरीज का इलाज करने से इनकार कर दिया। आरोप था कि कस्तूरी दास मेमोरियल सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर चंपाकली ने कंगकोना खातून नामक महिला को उसके मजहब के चलते चिकित्सा सेवा देने से मना कर दिया।
रिपोर्ट में डॉ सरकार को विलेन दिखाने के लिए एक अपुष्ट कॉल रिकॉर्डिंग भी पेश की गई। यह उल्लेख करना ज़रूरी है कि उस ऑडियो क्लिप की अब तक कोई फॉरेंसिक जाँच नहीं हुई है और उसकी असलियत की पुष्टि नहीं हो सकी है।
हालाँकि, यह दावा पूरी तरह झूठा और भ्रामक निकला। यह घटना पहलगाम आतंकी हमले के बाद सामने आई उन कई फर्जी खबरों में से एक है, जो सोशल मीडिया और कुछ मीडिया संस्थानों द्वारा फैलाई जा रही हैं। इसके पीछे की मंशा इस्लामी आतंकवादियों द्वारा किए गए हिंदुओं के नरसंहार जैसे गंभीर मुद्दों से ध्यान भटकाना और हिंदुओं को गलत तरीके से खलनायक के रूप में प्रस्तुत करना प्रतीत होता है।
‘द क्विंट’ और कुछ अन्य मीडिया संस्थानों द्वारा इन फर्जी कहानियों को पुनः प्रकाशित कर तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया, जिससे सांप्रदायिक तनाव और गलतफहमियों को बढ़ावा मिला।
वामपंथी प्रोपेगेंडा आउटलेट ‘द क्विंट’ ने डॉ चंपाकली सरकार के हवाले से यह बयान दिया, “आपके मजहब के लोग मेरे धर्म के लोगों को मार रहे हैं, आप लोग हत्यारे हैं।”

इसमें आगे आरोप लगाया गया है, “डॉक्टर ने कहा – आपके पति को हिंदुओं द्वारा मार दिया जाना चाहिए ताकि आप उस दर्द को महसूस कर सकें जो हिंदुओं ने झेला है। आपको अपने इलाज के लिए केवल मदरसों और मस्जिदों में जाना चाहिए, जहाँ मुस्लिमों को आतंकवादी बनना सिखाया जाता है।”
डिजिटल मीडिया पोर्टल ‘द क्विंट’ के हवाले से, ये बात सामने आई है जिसमें डॉ सरकार को एक कथित कॉल रिकॉर्डिंग के आधार पर खलनायक के रूप में दिखाया गया है। आरोप है कि यह रिकॉर्डिंग असत्यापित है और इसे बिना पुष्टि के रिपोर्ट में प्रमुखता दी गई। रिपोर्ट में कंगकोना खातून, उनके पति और भाभी महफूजा (जो पेशे से वकील हैं) के बयानों को गलत रूप में प्रस्तुत किया गया है।
वहीं, डॉ सरकार के पक्ष को बहुत ही सीमित जगह दी गई, जबकि पूरी रिपोर्ट उन्हीं के इर्द-गिर्द केंद्रित थी। रिपोर्ट के अनुसार, पत्रकार अलीज़ा नूर ने इस ख़बर को लिखा, जिन पर पहले भी ‘मुस्लिम पीड़ित’ की कहानी को स्थापित करने के लिए एक फर्जी खबर फैलाने के आरोप लग चुके हैं।

‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्टस के अनुसार, डॉक्टर को मरीज के मजहब का पता नहीं था और उसके सरनेम ‘खातून’ की जानकारी मिलने के बाद डॉक्टर नाराज हो गई।
शिकायत के अनुसार, डॉक्टर पिछले 7 महीनों से महिला का इलाज कर रही थी, डॉक्टर मरीज का पहला नाम कोंकणा से जानती थी। आरोप लगाया गया है कि उसका सरनेम ‘खातून’ देखकर डॉक्टर ने कथित तौर पर कहा की वो मुस्लिम महिला का इलाज नहीं करेंगी। बकौल रिपोर्ट, डॉक्टर ने हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले का हवाला दिया और मजहबी कट्टरता के आरोप लगाए।
इस फर्जी खबर को मुस्लिम मिरर, डेक्कन क्रॉनिकल, मकतूब मीडिया और सियासत जैसी इस्लामी प्रचार साइटों द्वारा प्रोपेगंडा के तहत फैलाने का काम किया गया।

दावे बनाम सच्चाई, क्या था असल मामला?
कंगकोना खातून पिछले 7 महीने से अपनी नियमित जाँच के लिए डॉ सरकार के पास जा रही थीं। इतने लंबे समय तक इलाज के दौरान डॉक्टर को मरीज की मजहबी पहचान का पता न चलना असंभव सा लगता है। यदि डॉक्टर पूर्वाग्रही होतीं, तो शुरुआत से ही इलाज करने से इनकार कर देतीं। खातून का कहना है कि डॉक्टर को उसके उपनाम के बारे में हाल ही में जानकारी मिली और तभी से उनके व्यवहार में बदलाव आया।
दिलचस्प बात यह है कि यह खुलासा पहलगाम आतंकी हमले के दो दिन बाद हुआ। उसके मुताबिक, गुरुवार (24 अप्रैल, 2025) को डॉक्टर ने उसका इलाज करने से मना कर दिया, जिसके बाद 25 अप्रैल को उसने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। हालाँकि, जब जाँच शुरू हुई और तथ्य सामने आए, तो उसके आरोपों की बुनियाद कमजोर पड़ गई।

कोलकाता के प्रसिद्ध एनेस्थेसियोलॉजिस्ट डॉ प्रमोद रंजन रॉय ने गुरुवार (24 अप्रैल 2025) को सोशल मीडिया पर एक स्क्रीनशॉट साझा किया, जिसमें दिखाया गया था कि कंगकोना खातून ने डॉ चंपाकली सरकार को परामर्श शुल्क का भुगतान किया था। यह स्क्रीनशॉट उसी दिन का था जिस दिन खातून ने आरोप लगाया था कि उनका उचित इलाज नहीं किया गया और उनके साथ अभद्र व्यवहार किया गया।
यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब किसी तरह का इलाज किया ही नहीं गया, तो मरीज ने डॉक्टर को जाँच के लिए परामर्श शुल्क क्यों अदा किया?
इस मुद्दे पर अब और भी स्पष्टता आ गई है। मंगलवार, (29 अप्रैल, 2025) को ‘पश्चिम बंगाल डॉक्टर्स फोरम’ (WBDF) द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि उन्होंने डॉ चंपाकली सरकार द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों की समीक्षा की है, और उस समीक्षा के आधार पर उनके बयान को सही और विश्वसनीय माना है।

WBDF ने अपने बयान में कहा, “संबंधित डॉक्टर से सीधे संपर्क करने और तथ्यों की पुष्टि करने के बाद, हमने पाया कि बताए गए तथ्य प्रसारित किए जा रहे आरोपों के विपरीत हैं। वास्तव में, जिस मरीज़ की बात हो रही है, उसे मरीज़ के अनुरोध पर डॉक्टर ने उसके घर पर देखा था। सबूत के तौर पर, हमने परामर्श शुल्क की ऑनलाइन भुगतान रसीद की पुष्टि की है, जिस पर उचित समय और दिनांक अंकित है, जो बताता है कि परामर्श वास्तव में हुआ था।” WBDF के बयान ने कंगकोना खातून के झूठ की हवा निकाल दी।
यह बताया गया है कि खातून ने डॉ चंपक और सरकार के बीच एक निजी बातचीत सुनी थी, जो उनके खातून से संबंधित नहीं थी।
इसमें यह भी बताया गया है कि पहले भी डॉक्टरों को झूठे आरोपों के तहत इसी तरह निशाना बनाया गया है। ऑपइंडिया ने इस मामले को लेकर ‘पश्चिम बंगाल डॉक्टर्स फोरम’ (WBDF) के सदस्य डॉ. कौशिक चाकी से संपर्क किया, जिन्होंने प्रेस विज्ञप्ति की प्रामाणिकता की पुष्टि की।
डॉ चंपाकली सरकार का क्या कहना है
डॉ प्रमोद रंजन रॉय द्वारा शेयर किए गए वीडियो में पीड़िता डॉ चंपाकली सरकार ने अपना बयान दिया है।
उन्होंने अपने बयान में लिखा, “मैं डॉ CK सरकार हूँ। मैं पिछले 30 सालों से बेहाला, साउथ 24 परगना में प्रैक्टिशनर हूँ। मैं मेडिकल नैतिकता में विश्वास रखती हूँ। मेरे लिए सभी मरीज एक समान हैं। मैं अपने सभी मरीजों को समान प्राथमिकता देती हूँ। मेरी नजर में जाति, धर्म और नस्ल का कोई महत्व नहीं है। मैं मरीजों का सही और नैतिक तरीके से इलाज करने की पूरी कोशिश करती हूँ। कुछ लोगों को मुझसे दिक्कत थी। आप लोग अफवाहों पर ध्यान न दें। मेरे करियर को बर्बाद करने की कोशिश की गई है। मुझे सोशल मीडिया और न्यूज रिपोर्ट से जानकारी मिली है। संकट के समय में इस तरह की अफवाहें फैलाई जाती हैं। मुझे उम्मीद है कि आप लोग इस पर विश्वास नहीं करेंगे।”
साथ ही, डॉक्टर ने निजी कारणों से अपने 3 दशक लंबे करियर को बर्बाद करने की कोशिश करने के लिए खातून के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की बात भी कही है।
डॉ चंपाकली सरकार ने ‘द टेलीग्राफ’ को बताया, “मेरे 80 प्रतिशत मरीज़ मुस्लिम हैं। क्या मैं कुछ ऐसा कहूँगी जिससे मुझे सबसे ज़्यादा दुःख पहुँचे? मैंने परनाश्री पुलिस स्टेशन में शिकायत भी दर्ज कराई है कि मुझे बदनाम किया जा रहा है।”
डॉक्टर ने यह भी कहा की यह असत्यापित ऑडियो कॉल रिकॉर्डिंग फ़र्जी है। उन्होंने ‘द क्विंट’ से कहा, “नहीं, यह सब फ़र्ज़ी है, यह मेरी कॉल रिकॉर्डिंग नहीं है।”
यह हिंदू समुदाय को बदनाम करने का पहला प्रयास नहीं है। हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद, ऐसी साजिशों की कोशिश हुई हैं जिनका इस्तेमाल आकर आतंकी हमलों के पीछे मजहबी घृणा वाली वास्तविकता से ध्यान बँटाया जा सके, कश्मीरियों और मुस्लिमों को हिन्दुओं द्वारा निशाना बनाए जाने की झूठी कहानी गढ़ी जा सके।
इस रणनीति के तहत ‘मुस्लिम पीड़ित’ कार्ड का इस्तेमाल किया गया, ताकि बहस का केंद्र आतंकवाद से हटकर सांप्रदायिक पीड़ाओं की ओर मोड़ा जा सके। इसी सिलसिले में, एक और फ़र्ज़ी खबर सोशल मीडिया पर फैलाई गई, जिसमें दावा किया गया कि बेंगलुरु में एक मुस्लिम कॉर्पोरेट कर्मचारी की मौत उसके हिंदू सहकर्मियों द्वारा ‘गायत्री मंत्र’ ज़बरदस्ती जपवाने और पहलगाम हमले पर प्रतिक्रिया न देने के कारण हुई।
इस फर्जी खबर का पर्दाफाश ऑपइंडिया ने किया। यह कहानी मूल रूप से एक लिंक्डइन यूजर इशान सक्सेना की मनगढ़ंत पोस्ट पर आधारित थी, जिसे तथाकथित पत्रकार अलीजा नूर ने बिना किसी तथ्य की जाँच के रिपोर्ट किया। इस खबर को वामपंथी मीडिया प्लेटफॉर्म ‘द क्विंट‘ ने प्रमुखता से प्रकाशित किया, लेकिन जब सच्चाई सामने आई, तो बिना किसी माफ़ीनामे के चुपचाप हटा दिया गया। यह दिखाता है कि किस तरह तथ्यों की पुष्टि किए बिना ‘नैरेटिव’ गढ़ने की कोशिश की जाती है, और जब वो फिट नहीं बैठती, तो उसे दबा दिया जाता है।
'Journalist' at @TheQuint deletes her X & Instagram account days after being exposed for peddling fake news.
— Dibakar Dutta (দিবাকর দত্ত) (@dibakardutta_) April 29, 2025
Aliza Noor had published the fake story of 'assault' on a Muslim corporate worker in Bengaluru for not commenting on Pahalgam terror attack & not chanting Gayatri Mantra pic.twitter.com/T6b0Z2VFW9
नूर, जिन्होंने पहले कोलकाता के डॉक्टर की कहानी लिखी थी, अब ताज़ा खुलासे के बाद अपने एक्स (Twitter) और इंस्टाग्राम अकाउंट डिलीट कर चुकी हैं। इसी प्रोपेगेंडा तंत्र ने जामिया मिलिया इस्लामिया की एक कश्मीरी छात्रा के साथ छेड़छाड़ की घटना को भी बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया था। लेकिन जब बाद में मामला सामने आया कि आरोपित मेवात का मोहम्मद आबिद है, तो यह पूरा नैरेटिव अचानक शांत हो गया।