पी चिदंबरम की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। आईएनएक्स मीडिया मामले में पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने के लिए CBI को सरकार से अनुमति मिल गई है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पूर्व वित्त मंत्री के ख़िलाफ़ जल्द ही चार्जशीट दायर की जाएगी। कुछ दिन पहले कानून मंत्रालय ने भी इस मामले में मुक़दमा चलाने की मंजूरी दी थी।
बता दें कि सीबीआई ने 21 जनवरी को इस संबंध में एक अनुरोध पत्र भेजा था। बीते 8 फरवरी को आईएनएक्स मीडिया से जुड़े मनी लांड्रिंग के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम से लंबी पूछताछ की थी। चिदंबरम पर आरोप है कि नियमों को ताक पर रखकर आईएनएक्स मीडिया को विदेशी निवेश की मंजूरी दी गई और इसके बदले करोड़ों रुपये की घूस ली गई।
दरअसल यह पूरा मामला 2007 का है, जब पी चिदंबरम वित्त मंत्री थे। आरोप है कि कार्ति चिदंबरम ने अपने पिता के जरिए आईएनएक्स मीडिया को विदेशी निवेश प्रमोशन बोर्ड से विदेशी निवेश की मंजूरी दिलाई थी। ज्ञात हो कि आईएनएक्स मीडिया को 305 करोड़ रुपए का विदेशी निवेश हासिल हुआ था।
मामला कुछ यूँ है कि कार्ति चिदंबरम ने ही आईएनएक्स मीडिया की प्रमोटर इंद्राणी मुखर्जी और पीटर मुखर्जी को पी चिदंबरम से मिलवाया था। इसके बदले कार्ति चिदंबरम ने घूस के तौर पर करोड़ो रुपए लिए थे। जबकि ऐसे मामलों में स्पष्ट निर्देश है कि विदेशी निवेश के लिए कैबिनेट की आर्थिक मामलों की सलाहकार समिति की इजाज़त लेना जरूरी है।
बता दें कि इस मामले में पी चिदंबरम पर आरोप है कि उन्होंने वित्त मंत्री (साल 2007) रहते हुए गलत तरीके से विदेशी निवेश को मंजूरी दी थी। उन्हें 600 करोड़ रुपए तक के निवेश की मंजूरी देने का अधिकार था, लेकिन यह सौदा करीब 3500 करोड़ रुपए निवेश का था। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अपने अलग आरोप पत्र में कहा है कि कार्ति चिदंबरम के पास से मिले उपकरणों में से कई ई-मेल मिली हैं, जिनमें इस सौदे का जिक्र है।
इसी मामले में पूर्व टेलिकॉम मंत्री दयानिधि मारन और उनके भाई कलानिधि मारन भी आरोपित हैं। सीबीआई ने 2017 में मुक़दमा दर्ज किया था और कार्ति चिदम्बरम की गिरफ़्तारी भी हुई थी। हालाँकि बाद में कीर्ति चिदंबरम को ज़मानत मिल गई थी। फिर ईडी ने मनी लॉड्रिंग का केस दर्ज कर जाँच शुरू की और कार्ति चिदम्बरम की करीब 54 करोड़ रुपए की संपत्ति अटैच कर ली।
इतना ही नहीं इस मामले में इंद्राणी मुखर्जी, पीटर मुखर्जी और कार्ति के सीए भी सह आरोपी हैं। इंद्राणी मुखर्जी कोर्ट के सामने सरकारी गवाह बनने की इच्छा भी ज़ाहिर कर चुकी हैं।
पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार के सख्त रुख को देखते हुए पाकिस्तान सरकार ने आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के बहावलपुर स्थित मुख्यालय को अपने कब्जे में ले लिया है। यह जानकारी पाकिस्तान के आंतरिक मंत्रालय ने शुक्रवार (फरवरी 22, 2019) शाम को दी। पाकिस्तान सरकार की इस कार्रवाई को वहाँ की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के आदेश का असर माना जा रहा है। भारत और अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तान सरकार ने बहावलपुर स्थित जैश-ए-मोहम्मद के हेडक्वार्टर के साथ ही एक मदरसे और मस्जिद को भी कब्जे में ले लिया।
The Government of Punjab has taken over the control of a campus comprising Madressatul Sabir and Jama-e-Masjid Subhanallah in Bahawalpur: Spokesman of the Ministry of Interior
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के साथ कल बैठक की थी।पाकिस्तान के आंतरिक मंत्रालय की ओर से कहा गया कि पंजाब सरकार ने बहावलपुर में मदरसातुल साबिर और जामा-ए-मस्जिद सुभानल्लाह के परिसर को अपने नियंत्रण में ले लिया है। इसके साथ वहाँ स्थिति नियंत्रित करने के लिए एक व्यवस्थापक की नियुक्ति की गई है।बयान में बताया गया है कि इस परिसर में 70 शिक्षक हैं और वर्तमान में यहाँ 600 छात्र पढ़ रहे हैं। परिसर में सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए पंजाब पुलिस तैनात है।
जैश-ए-मोहम्मद के फिदायीन ने 14 फरवरी को CRPF के काफिले पर हमला किया था। इस हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए कई कड़े कदम उठाए हैं। इमरान खान CRPF जवानों पर हुए इस हमले में पाकिस्तान का हाथ होने से इनकार कर चुके हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, POK में 40 गाँव खाली कराए गए और 127 गाँवों में अलर्ट जारी किया गया है।
पुलवामा में हुई आतंकी घटना के बाद प्रोपेगैंडा-परस्त मीडिया के प्रपंचों की वजह से जनता और मीडिया तंत्र का ध्यान देहरादून जैसे छोटे शहरों में कश्मीरी युवकों की मौजूदगी पर केंद्रित हो गया है। लोग सोचने लगे हैं कि देहरादून में इतने कश्मीरी छात्र कहाँ से आ गए? पहले तो ऐसा नहीं था। फिर अचानक कौन सी लहर आई? क्या है ये सारा मामला?
दरअसल एक दौर आया था वर्ष 2006 के आस-पास, जब इंजीनियरिंग और पैरामेडिकल की पढ़ाई अचानक से डिमांड में आ गई थी। उस समय देहरादून में कुकुरमुत्तों की तरह प्राइवेट कॉलेज खुले। क्वालिटी हो या नहीं, कॉलेजों में जमकर एडमिशन हुआ करते थे। सीटें फुल और कॉलेज के मालिकों की जेबें भी भरी रहा करती थीं। सब मजे में चल रहा था। फिर आया साल 2008 की मंदी का दौर। जनता को भी समझ आ गया कि भेड़-बकरियों की तरह डिग्री लेने से कोई फायदा नहीं होने वाला।
प्राइवेट कॉलेज में आई इस मंदी के दौर में इंस्टीटूट्स में एडमिशन कम होने लगे। कल तक जिन कॉलेज मालिकों की जेबें ठसा-ठस भरा करती थीं, उन्हें एक-एक सीट पर एडमिशन के लाले पड़ने लगे। शिक्षकों को सेलरी तक देने के लिए बगलें झाँकनी पड़ रही थीं।
ऐसे में किसी मास्टरमाइंड ने सुझाव दिया कि क्यों न कश्मीर के छात्रों को फ़ार्मा और इंजीनियरिंग की सीटों का प्रलोभन दिया जाए। इसमें कॉलेज वालों के कई फायदे थे। सीटें तो भरनी ही थीं। साथ ही कश्मीरी छात्रों से फीस की मशक्कत भी इन्हें नहीं करनी थी। कश्मीरी छात्रों के लिए प्रावधान है कि यदि वे कोई प्रोफेशनल कोर्स करते हैं, तो उनकी फीस में सहायता केंद्र सरकार करती है।
बस, ये आइडिया चल निकला। शिक्षकों से कहा जाने लगा कि सेलरी चाहिए तो सीटों पर एडमिशन करवाओ। ‘एजेंट्स’ श्रीनगर भेजे जाने लगे। इंजीनियरिंग और फार्मा सेक्टर में बेहतरीन जॉब के सपने बेचे जाने लगे।
जो लड़के-लड़कियाँ कश्मीर में सेना पर पत्थर फेंका करते थे, उन्हें फ्री की डिग्री लेने में भला क्या हर्ज होता। छात्र चाहे आसमानी किताब पढ़ें या एनाटॉमी पढ़ें, कॉलेज प्रशासन को उससे फर्क पड़ने वाला नहीं था।
खैर, सीटें भरने लगीं। मास्टरों को तनख्वाह भी मिलने लगी। सख्त हिदायत जाने लगी थी कि सभी को पास करना है। किसी की ‘इयर बैक’ न लगे। कॉलेज कैम्पस के बागों में बहार घुल गई। कॉलेज के आस-पास के लोगों को बढ़े हुए रेट पर किरायेदार मिलने लगे।
कीमत क्या चुकानी पड़ेगी, किसी ने भी नहीं सोचा। आज देहरादून में यही छात्र देश-विरोधी नारे लगा रहे हैं। फार्मा कंपनियों को इन ‘गुड फ़ॉर नथिंग’ एम्प्लॉईज को ‘एन्टी-नेशनल’ नोटिस भेजना पड़ रहा है। कौन जानता है कि IMA जैसे संस्थानों पर भी ये शांतिदूत नजरें रखे हुए हों और आर्मी की गतिविधियों की सूचना कहीं भेजते हों। देहरादून में ही DRDO और आयुध निर्माण फ़ैक्ट्री भी हैं, जिन्हें बेहद संवेदनशील माना जाता है।
मुझे याद है कि मेरे एक मित्र ने नवोदय विद्यालय में पंजाब से माइग्रेशन से लौटने के बाद बताया था कि किस तरह साल 2002-03 के आस-पास पंजाब के नवोदय विद्यालय में माइग्रेशन पॉलिसी के तहत आए एक कश्मीरी छात्र ने बाथरूम में विस्फोटक रख दिया था। खतरा किस कदर है, इस एक उदाहरण से ही आप गंभीरता का अंदाजा लगा सकते हैं। ऐसा भी नहीं है कि हर कश्मीरी यही करता है, लेकिन ऐसे उदहारण मिलते हैं तो आम जनता का रवैया बदल ही जाता है।
अगर देहरादून में देश विरोधी तत्वों की कोई भी हरकत होती है, तो ऐसे छात्रों को एडमिशन देने वाले कॉलेज प्रशासन की भी जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए। साथ ही उन मकान-मालिकों पर भी गाज गिरनी चाहिए, जो बिना किसी वेरिफिकेशन के देश-विरोधी तत्वों को पनाह देते हैं।
पोस्ट को फर्जी सेकुलर मीडिया अन्यथा न ले, इसलिए कुछ बातों को स्पष्ट किया जाना अति आवश्यक है:
इस लेख का उद्देश्य यह नहीं है कि किसी भी व्यक्ति को धर्म, जाति या स्थान के आधार पर वर्गीकृत किया जाए। शिक्षा सबका अधिकार है। यहाँ सिर्फ नीयत पर सवाल उठाए हैं। सवाल उठाने के पीछे इन ‘विद्यार्थियों’ का इतिहास और दैनिक क्रियाकलाप ही जिम्मेदार भी हैं।
इस लेख में कॉलेज प्रशासन पर सवाल उठाए गए हैं। क्या उनकी नीयत शिक्षा देने की है? कॉलेज प्रशासन को सिर्फ फीस से मतलब होता है। ये पूछा जाना भी आवश्यक है कि क्या वे सही में क्वालिटी एजुकेशन दे रहे हैं।
सबसे मुख्य हिस्सा अब आता है। यदि आप शिक्षक हैं, और आपसे कहा जाए कि जो फेल भी हो रहा है, उसे किसी भी हाल में पास करो। कैसा लगेगा आपको? उन विद्यार्थियों को कैसा लगेगा जो मेहनत करते हैं और जिनके माता-पिता किसी तरह मुश्किल से फीस का जुगाड़ कर पाते हैं?
फिर से प्रश्न उठता है कि क्या देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ सेना की है? जब भी आपकी या हमारी जिम्मेदारी पर सवाल उठाए जाते हैं, तब हम बगलें झाँकने लगते हैं या फिर अतार्किक प्रश्न करने लगते हैं।
यहाँ पर सिर्फ सिचुएशन की समीक्षा की गई है। लेख यह नहीं कहता है कि कॉलेज किसी खास व्यक्ति या समुदाय को एडमिशन न दे या फिर कश्मीरियों को पढ़ने का अधिकार नहीं है।
देश में सबको बराबर अधिकार हैं, लेकिन देश के खिलाफ बोलने वाले अवांछित तत्वों को बाहर किया जाना भी जरूरी है।
देश की एकता और अखंडता को हानि पहुँचाने वाले मीडिया गिरोह और सूँघकर प्रोपेगैंडा बना लेने की क्षमता रखने वाले लोग बहुत ही बड़े स्तर पर अपनी विषैली मानसिकता के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं। पुलवामा आतंकी हमले के बाद देहरादून पुलिस ने ऐसे कुछ ‘विद्यार्थियों’ की धर-पकड़ शुरू की, जो भारतीय सैनिकों के बलिदान पर उत्सव मना रहे थे।
लेकिन JNU की फ्रीलॉन्स प्रोटेस्टर शहला राशिद ने अपने मीडिया गिरोह की घातक टुकड़ियों की मदद से अपने प्रोपेगैंडा को नया रंग दे दिया। मीडिया के इस समुदाय विशेष ने देहरादून जैसे छोटे शहर की हवा में भी जहर घोलने का काम किया और इस अफ़वाह को राष्ट्रीय खबर बना कर पेश किया कि देहरादून में कश्मीरी छात्रों पर जुर्म किए जा रहे हैं। अफ़वाह फैलाने और भीड़ को उकसाने को लेकर शहला रासिद के ख़िलाफ़ FIR भी दायर की गई। लेकिन वो वामपंथी ही क्या जिसकी पूँछ सीधी हो जाए!
पूरे देश मे देहरादून की छवि एक बेहद पढ़े-लिखे संपन्न और ‘हेट्रोजिनस कल्चर’ वाले शहर की रही है। भारत देश के सबसे शानदार शैक्षणिक संस्थानो के अलावा दूसरे बेहद महत्वपूर्ण सरकारी संस्थान भी यहाँ पर मौजूद हैं। पूरे देश से पढ़ाई की खातिर लोग देहरादून जाते हैं, जिससे काफी हद तक यहाँ की अर्थव्यवस्था को भी सहारा मिलता है। देहरादून के निवासी का इन प्रोपेगैंडा-परस्त गिरोहों से सिर्फ एक निवेदन है कि वो इस शहर की बेदाग छवि को ख़राब करने की कोशिशों को रोक दें।
भारत की कूटनीतिक पहल से पाकिस्तान, चीन और सऊदी अरब तीनों की बेचैनी बढ़ने लगी है। बढ़ना लाज़मी भी है, आख़िर कब तक आतंक पर दोहरी नीति अपनाई जाती रहेगी? पुलवामा आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के लेने के बावजूद भी उसका प्रमुख मौलाना मसूद अज़हर खुलेआम पाकिस्तान में वहाँ के सुरक्षा बलों के साये में घूम रहा है। पुलवामा आतंकी हमले के बाद से ही भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक दबाव बनाने की शुरुआत कर दी थी और अब भारत को अपेक्षित सफलता मिलती नज़र आ रही है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को बड़ी कूटनीतिक सफलता मिली है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का नाम लेते हुए पुलवामा आतंकी हमले की कड़ी निंदा की है। सुरक्षा परिषद ने अपने बयान में इसे एक जघन्य और कायराना हरकत करार दिया है। साथ ही, सुरक्षा परिषद ने कहा कि इस निंदनीय हमले के जो भी दोषी हैं, उन्हें दंड मिलना चाहिए। इसे पाकिस्तान के लिए तगड़ा झटका माना जा रहा है। सुरक्षा परिषद ने अपने बयान में कहा:
“इस घटना के अपराधियों, षडयंत्रकर्ताओं और उन्हें धन मुहैया कराने वालों को इस निंदनीय कृत्य के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और उन्हें दंड मिलना चाहिए । सुरक्षा परिषद के सदस्य 14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर में जघन्य और कायराना तरीके से हुए आत्मघाती हमले की कड़ी निंदा करते हैं जिसमें भारत के अर्धसैनिक बल के 40 जवान शहीद हो गए थे और इस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी।”
ख़ास बात ये है कि संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद (UNSC) ने इस हमले की निंदा की है जिसका अनुमोदन करने वालों में चीन भी शामिल है। चीन लंबे समय से मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की भारत के प्रस्ताव का विरोध करता आ रहा था। लेकिन इस बार चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस हमले की निंदा का विरोध नहीं करते हुए इस प्रस्ताव पर सहमति जताई। सुरक्षा परिषद द्वारा पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश का नाम लेना भी भारत के लिए बड़ी सफलता है क्योंकि जैश के सरगना मसूद अज़हर को सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित कराने की भारत की कोशिशें अब तक विफल रही हैं।
इस पूरे घटना क्रम में 1267 के प्रस्ताव की काफी चर्चा रही है जिसको लेकर इन दिनों पाकिस्तान, चीन, सऊदी अरब तीनों देश असहज हैं। क्यों? क्या है चीन के इस प्रस्ताव में शामिल होने का मतलब? आइए, इस प्रस्ताव के कौन से दूरगामी परिणाम हैं, क्यों हैं असहज़ आतंक पर दोहरी नीति अपनाने वाले देश? इन सभी विन्दुओं को विस्तार से देखते हैं।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य हैं जो किसी भी संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव को वीटो कर ख़ारिज कर सकते हैं। इनमें चीन, अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस शामिल हैं। पुलवामा हमले के निंदा प्रस्ताव को चीन वीटो कर सकता था लेकिन इससे यह पुनः संदेश जाता कि वह आतंकवाद के ख़िलाफ़ नहीं है। वह पाकिस्तानी आतंक को बढ़ावा दे रहा है। इसीलिए मजबूरन उसे इस प्रस्ताव को सहमित देनी पड़ी। पाकिस्तान भी इस बात से वाकिफ़ है कि चीन इस बार निंदा प्रस्ताव में वीटो नहीं कर पाएगा।
पाकिस्तान को यह भी पता है कि इस समय कोई भी देश उसका खुलकर साथ नहीं दे पाएगा। खुद को अलग-थलग पड़ता हुआ देख, सुरक्षा परिषद की बैठक से पहले ही पाकिस्तान ने 2008 मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के संगठन जमात-उद-दावा और उसकी सिस्टर संस्था फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन पर एक बार फिर प्रतिबंध लगा दिया था। हैरत की बात ये है कि खुलेआम जिम्मेदारी लेने के बावजूद पाकिस्तान ने जैश-ए -मुहम्मद के सरग़ना मौलाना मसूद अज़हर पर कोई कार्रवाई नहीं की। वहीं चीन जो अब तक सुरक्षा परिषद के आतंक से सम्बंधित लगभग हर प्रस्ताव का विरोध करता रहा है जिसमें सुरक्षा परिषद की 1267 प्रतिबंध सूची में मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करना भी शामिल है। इस बार बैकफुट पर है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का 1267 संकल्प, 15 अक्टूबर 1999 को परिषद ने आम सहमति से अपनाया था। उस समय उस लिस्ट में तालिबान, अलकायदा और दुनिया भर में फैले आतंकवादियों और आतंकी संगठनों को प्रतिबंधित करने के लिए उन्हें सूचीबद्ध किया गया था।
इस प्रस्ताव के तहत सुरक्षा परिषद किसी आतंकवादी या आतंकी संगठन को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी या आतंकवादी संगठन घोषित कर सकती है और उस पर व्यापक प्रतिबंध लगा सकती है। इस सूची में नाम शामिल होते ही संयुक्त राष्ट्र के सभी देश उसे आतंकवादी या आतंकी संगठन के रूप में सत्यापित मानकर कठोर रवैया अपनाते हैं। भले ही ऐसे आतंकी या आतंकवादी संगठन दुनिया में कहीं भी स्थित क्यों न हों।
1267 के तहत संयुक्त राष्ट्र का कोई भी देश किसी आंतकवादी को वैश्विक आतंकवादी की सूची में शामिल करने का निवेदन कर सकता है, जिस पर सुरक्षा परिषद के स्थाई समिति का अनुमोदन करना जरूरी है। अगर सुरक्षा परिषद का कोई एक भी स्थाई सदस्य देश इस प्रस्ताव का वीटो करता है तो वह निवेदन पारित नहीं होगा। इससे पहले चीन भारत के इस प्रस्ताव को 2016 में वीटो कर चुका है।
भारत 1267 के तहत कई आतंकियों को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने में सफलता प्राप्त कर चुका है। जिसका पाकिस्तान विरोध भी कर चुका है। क्योंकि ज़्यादातर आतंकियों की शरण स्थली पाकिस्तान है, इससे पाकिस्तान की वैश्विक छवि आतंक को प्रश्रय देने वाले देश के रूप में और मजबूत होती जा रही है। मुंबई हमलों में भी हाफ़िज़ सईद के शामिल होने के बावजूद वह भी पाकिस्तान में खुलेआम घूमता रहा।
वहीं चीन की नीति दिखावे के लिए भारत के साथ होने के बावजूद, पाकिस्तान समर्थक की है। चीन, भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले लगभग हर विवाद में पाकिस्तान का साथ देता है। ऐसें में कई बार चीन ने 1267 प्रस्तावों में पाकिस्तान का साथ दिया है। चीन और पाकिस्तान का 1267 को लेकर सहज नहीं दिखाई देना उनकी नीति में साफ नज़र आता है। चीन के लिए 1267 का विरोध अब तक भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोकने का एक जरिया है।
यहाँ तक की चीन खुलकर भारत की स्थायी सदस्यता का विरोध करता रहा है। इसके अलावा वह भारत के NSG (राष्ट्रीय सुरक्षा समूह) में शामिल होने पर भी खुल कर आपत्ति जताता रहा है, जबकि इस मामले में भारत को दुनिया के ज्यादातर देशों का समर्थन हासिल है।
हाल ही में पुलवामा हमले के बाद सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान ने पाकिस्तान की यात्रा की और वहाँ 20 बिलियन डॉलर का निवेश भी करने की घोषणा की। इसके अलावा दोनों देशों ने अपने संयुक्त बयान में यह कहा कि ‘संयुक्त राष्ट्र में किसी को आतंकवादी घोषित करने की प्रक्रिया का राजनीतिकरण से बचने की जरूरत है।’ इस बयान की सफाई में यह भी कहा जा रहा है कि सउदी अरब ने पाकिस्तान को खुश करने के लिए बयान दिया है। क्योंकि सऊदी अरब यमन के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई में पाकिस्तान का समर्थन चाहता है। हालाँकि, सऊदी अरब ने इस संयुक्त बयान में बड़ी सावधानी बरती है। उसने इस बयान में यह ध्यान रखा है कि ऐसा न लगे कि वह किसी आतंकवादी घटना के ख़िलाफ़ नहीं है।
भारत अगर इस प्रस्ताव को पारित करवाने में क़ामयाब होता है तो इससे पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग कर, पाकिस्तान और उसकी आतंक की फैक्ट्री पर रोकथाम लगाने के लिए उठाए गए कठोर कदमों को वैश्विक समर्थन हासिल होगा।
पुलवामा हमले के बाद देश भर के लोगों के दिलों में पाकिस्तान पोषित आतंकियों के प्रति भारी आक्रोश है। क्या महानगर और क्या गाँव- हर जगह बलिदानी जवानों के लिए शोक सभाएँ आयोजित की जा रही हैं और साथ ही पाकिस्तान के ख़िलाफ़ नारे भी लगाए जा रहे हैं। इसी क्रम में छत्तीसगढ़ के एक ढाबे ने एक अनोखा ऑफर निकाला है। वहाँ जाने वाले ग्राहकों को ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ बोलने पर चिकेन लेग पीस पर ₹10 की छूट दी जा रही है।
छत्तीसगढ़ स्थित जगदलपुर में फूड स्टॉल चलाने वाले अंजल सिंह ने ग्राहकों के लिए विशेष ऑफर रखा है। इतना ही नहीं, उन्होंने इस ऑफर की जानकारी देते हुए अपने फूड स्टॉल पर एक पोस्टर भी लगा रखा है। ‘पकिस्तान मुर्दाबाद’ लिखे इस पोस्टर को सोशल साइट्स पर काफ़ी शेयर किया जा रहा है और लोग इसके लिए अंजल सिंह की प्रशंसा कर रहे हैं। उनके ढाबे का नाम ‘झटका चिकेन तंदूर’ है।
Chhattisgarh: A food stall owner in Jagdalpur is offering a discount of ₹10 on chicken leg piece to customers who say ‘Pakistan Murdabad’. Anjal Singh, stall owner says,”Pak never valued humanity&they never will.That’s why everyone should say Pakistan Murdabad from their hearts” pic.twitter.com/ugEN8N5L5E
समाचार एजेंसी ANI से बात करते हुए अंजल सिंह ने कहा, “पाकिस्तान न तो कभी मानवता को महत्व देता है और न कभी देगा। इसलिए सभी को दिल से पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाने चाहिए।” अंजल सिंह के अलावा ऐसे और भी लोग हैं जिन्होंने पाकिस्तान के विरोध का अलग-अलग तरीक़ा ईजाद किया है। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरपुर में लोगों ने पाकिस्तान का बड़ा सा झंडा देहरादून जाने वाली सड़क पर बना दिया। उस झंडे पर लोगों ने चप्पल-जूते की बौछार कर दी। कुत्तों को लाकर पाकिस्तानी झंडे पर चलवाया गया।
हिंदुस्तान बोडर पे हो रहे जवान शहीद के समर्थन में 07.02.2018 को कमपनीबाग़, मुजफ्फरपुर में पाकिस्तान के विरूद इंसानियत मंच के तरफ से रैली निकाली, नारा लगाये और पाकिस्तान का झंडा जलाये। भारत के 4 के बदले, पाकिस्तान के 40 ले.. pic.twitter.com/tRMwkmjzx0
पूरे देश में इसी तरह का आक्रोश का माहौल है और लोग सरकार से इस हमले का बदला लेने की माँग कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने भी एक रैली के दौरान कहा कि जो आग देशवासियों के दिलों में लगी है, वही आग उनके दिल में भी लगी है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि दोषी छोड़े नहीं जाएँगे। उधर पाकिस्तान ने भी भारत द्वारा संभावित हमले की आशंका से अपने अस्पतालों को किसी आपात स्थिति में तैयार रहने के निर्देश दिए हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान की ख़ूब किरकिरी हो रही है।
पुलवामा हमले के बाद भारत समेत विश्व के अधिकांश राष्ट्रों की नज़र पाकिस्तान पर लगातार बनी हुई है। भारत ने कई कड़े फैसलों के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की घेराबंदी करनी भी शुरू कर दी है। इसी दिशा में अब फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने भी स्पष्ट किया है कि अगर साल 2019 के अक्टूबर तक पाकिस्तान ने आतंकवाद को फंडिंग के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं की तो उसे ब्लैक लिस्ट में डाल दिया जाएगा। यह फैसला शुक्रवार (फरवरी 22, 2019) को पेरिस में 17 से 22 फरवरी तक चली बैठक के बाद लिया गया है। इस बैठक में 38 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए।
बता दें कि FATF की सूची में पाकिस्तान पहले से ही ग्रे लिस्ट में शामिल है और उसके पास अब अक्टूबर तक का समय है। अगर पाकिस्तान अक्टूबर तक कोई कदम उठाकर सुधार नहीं करता है तो उसे ब्लैक लिस्ट में डाल दिया जाएगा। फिलहाल उत्तर कोरिया और ईरान ब्लैक लिस्ट में शामिल हैं। पाकिस्तान को इससे बचने के लिए अभी 200 दिन का समय दिया गया है। पाकिस्तान को चेतावनी दी गई है कि आतंकी फंडिंग रोकने के एक्शन प्लान को वह मई तक पूरा कर ले, FATF जून और अक्टूबर में फिर से इसकी समीक्षा करेगा।
अगर पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट कर दिया जाता है तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर इसका बड़ा असर पड़ेगा। ब्लैक लिस्ट होते ही अंतर्राष्ट्रीय बैंक पाकिस्तान से बाहर चले जाएँगे और पाकिस्तान के राजस्व में जो घाटा हो रहा है वो और भी अधिक बढ़ जाएगा।
पुलवामा में हुए भयावह हमले के बाद पाकिस्तान द्वारा आतंकी गतिविधियों के लिए फंडिंग करने की बात और भी अधिक पुष्ट हुई थी। भारत द्वारा यह अपील की गई थी कि इस मामले में पाकिस्तान पर खासतौर से नज़र रखा जाए और सुनिश्चित हो कि पाकिस्तान इन आंतकियों को दी जाने वाली फंडिंग रोके।
इस माँग को उठाते समय भारत ने पुलवामा का हवाला दिया था जिसकी जिम्मेदारी स्वयं पाकिस्तान समर्थित जैश-ए-मोहम्मद संगठन ने ली। खबरें हैं कि भारत ने इस मामले में सबूत भी पेश किए कि कैसे पाकिस्तान आतंकी गतिविधियों को रोकने असफल रहा है।
FATF के बारे में आपको बता दें कि यह एक इंटर गवर्नमेंटल एजेंसी है। 1989 में इसका गठन किया गया था। 2001 में इस एजेंसी की शक्ति को बढ़ाते हुए मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी गतिविधियों के लिए होने वाली फंडिंग के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के अधिकार भी दिए गए थे।
पुलवामा आत्मघाती हमले के बाद देश में आक्रोश और मातम का माहौल पसरा हुआ है। जहाँ एक तरफ देश की जनता अपने 40 CRPF के जवानों को खो देने के ग़म में है वहीं दूसरी तरफ कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को गुजरात के किसी कार्यक्रम में नाचते हुए देखा गया। हालाँकि कॉन्ग्रेस ने उस वीडियो को हटाने का भरसक प्रयास किया।
जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में जहाँ प्रधानमंत्री गए थे, उस जगह को लेकर कॉन्ग्रेस ने झूठ फैलाया कि वहाँ नरेंद्र मोदी सेल्फी क्लिक कर रहे थे। कॉन्ग्रेस ने ट्विटर के जरिए प्रधानमंत्री मोदी के ख़िलाफ़ प्रोपेगंडा फ़ैलाने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का भी आयोजन किया। ख़बर सामने आने पर ऑपइंडिया ने इस झूठ की तह तक जाकर सच का पता लगाया।
बता दें कि कॉर्बेट राष्ट्रीय पार्क में मोदी की यात्रा की तस्वीरें दोपहर 2 बजे के आसपास मीडिया द्वारा प्रकाशित की गई थीं, जिसका अर्थ है कि तस्वीरें वास्तव में 2 बजे से पहले ली गई थीं। जबकि पुलवामा हमले की घटना 3 बजे के बाद की है। प्रधानमंत्री मोदी ने वहाँ वन क्षेत्र में लगभग आधे घंटे का समय बिताया, इसका मतलब यह है कि हमले की सूचना मिलने से पहले ही वो अपनी वन यात्रा से लौट आए थे। इसलिए यह स्पष्ट होता है कि कॉन्ग्रेस के आरोप मनगढ़ंत और बेबुनियादी है।
राहुल गाँधी द्वारा फैलाए गए झूठ और पुलवामा आतंकी हमले पर राजनीति करने के बाद, कॉन्ग्रेस ने एक ट्वीट को हटा दिया है।
4:45 बजे, कॉन्ग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल ने राहुल गाँधी के गुजरात में अपनी राजनीतिक रैली के बाद डांस करने और जश्न मनाने का एक वीडियो ट्वीट किया। इस वीडियो को पोस्ट करने के साथ ही कॉन्ग्रेस ने ट्वीट में लिखा कि वाह @RahulGandhi जी आपने तो दिल जीत लिया। इस वीडियो में राहुल का न सिर्फ़ कपटी चेहरा सामने आया बल्कि वो लोगों के साथ नाचते हुए जश्न मनाते नज़र आए।
ऑपइंडिया ने इस बात का पता लगाया कि राहुल गाँधी का भाषण कब शुरू हुआ था। कई स्रोतों से पता चला कि राहुल गाँधी का भाषण दोपहर 3 बजे के बाद शुरू हुआ था।
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, रैली में राहुल गाँधी का भाषण लगभग 3:18 बजे शुरू हुआ।
ANI ने 3:14 बजे अपनी वलसाड रैली में राहुल गाँधी को चूमती एक महिला से संबंधित ट्वीट किया था। इस गतिविधि का ज़िक्र राहुल गाँधी द्वारा रैली में बोलने से पहले शुरू हुई थी और मंच पर बैठी हुई थी।
बता दें कि इससे पहले भी राहुल गाँधी की संवेदनहीनता तब सामने आई थी जब मुंबई में 26/11 के आतंकी हमले के बाद राहुल गाँधी कथित रूप से अपने दोस्तों के साथ दिल्ली फार्महाउस में पार्टी में मशगूल थे।
प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ कॉन्ग्रेस के झूठ का पर्दाफ़ाश होने के बाद, कॉन्ग्रेस ने बड़ी सफ़ाई से नाचने और जश्न मनाने वाले उस ट्वीट को ही डिलीट करने का प्रयास किया। लेकिन सोशल मीडिया के सामने उनकी यह चालाकी नहीं चली और गुजरात के कॉन्ग्रेस के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल पर अभी भी यह वीडियो मौजूद है।
कॉन्ग्रेस और उसके अध्यक्ष राहुल गाँधी की इस हरक़त पर कई राजनीतिक पंडितों ने टिप्पणी की।
यह बड़े शर्म की बात है कि कॉन्ग्रेस और राहुल गाँधी हमेशा से ही प्रधानमंत्री मोदी पर बेवजह ही हमलावर रहते हैं बावजूद इसके कि वो ख़ुद ऐसी भयंकर ग़लतियाँ करते हैं जो माफ़ी के भी लायक नहीं होती।
मुंबई फ़िल्म सिटी में शूटिंग करने से पाकिस्तानी कलाकारों को बैन करने का निर्णय लिया गया है। पुलवामा आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान का बचाव करने वाले सिद्धू ‘द कपिल शर्मा शो’ से पहले ही निकाले जा चुके हैं। अब मुंबई फ़िल्म सिटी में भी उनकी एंट्री प्रतिबंधित कर दी गई है। यह निर्णय फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने इम्पलोयी (FWICE) द्वारा लिया गया।
फेडरेशन ने गोरेगाँव के दादा साहब फाल्के फ़िल्म सिटी के प्रबंधक को लिखे गए पत्र में कहा कि वह अपने स्टूडियो में नवजोत सिंह सिद्धू और पाकिस्तानी कलाकारों एवं गायकों के प्रवेश पर पूरी तरह रोक लगाएँ और उन्हें वहाँ किसी भी प्रकार की शूटिंग करने की अनुमति न दें। बता दें कि यह एक बड़ा संगठन है जिसके अंतर्गत कुल 29 यूनियन हैं। इन यूनियन के सदस्यों की सँख्या लाखों में है।
navjot singh sidhu will stop from entering film city as federation of western india cine employees send a letter https://t.co/ZnIt3OM7nU
सिद्धू द्वारा पाकिस्तान की पैरवी करने के बाद उनका सोशल मीडिया से लेकर राजनैतिक गलियारे तक, हर जगह विरोध किया गया। लोगों ने सोनी चैनल का बायकॉट करने की धमकी दी, जिसके बाद चैनल से सिद्धू को शो से बाहर निकाल दिया।
FWICE के अलावा फ़िल्म डिविजन बोर्ड ने भी पाकिस्तानी कलाकारों को बैन करने का निर्णय लिया है। फ़िल्म सिटी और फ़िल्म बोर्ड के उपाध्यक्ष और राज्यमंत्री अमरजीत मिश्रा ने पाकिस्तानी कलाकारों को भारतीय फ़िल्मों में लेने पर कड़ी आपत्ति जताई। साथ ही, उन्होंने सभी फ़िल्म निर्माताओं और निर्देशकों को पाकिस्तानी कलाकारों के साथ काम ना करने की सलाह दी।
पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद पिछले कुछ दिनों में लगा था कि देश शायद तमाम राजनीतिक पूर्वग्रहों, विचारधारा के मनमुटावों से ऊपर उठकर एकजुट होने का निर्णय ले चुका है। लेकिन हम सबने एक-दूसरे को निराश कर दिया। हम उन ‘चराक्षर’ और ‘गराक्षर’ के दानव को आतंकवाद से ऊपर लाकर भारत माता को समर्पित करने लगे जो जनता ने हमें हमारे कारनामों के लिए हमें पुरस्कार स्वरुप सौंपे। हमारे विरोध के तरीके बदल चुके हैं। TRP की कुंठा में हम सब आत्मग्रस्त हो चुके हैं। हमने साबित कर दिया है कि हमारी विषैली विचारधारा का योगदान बलिदान हुए 40 सैनिकों के योगदान से कहीं बढ़कर है।
व्हाट्सएप्प पर भेजी जाने वाली जननांग की तस्वीर से लोगों की राष्ट्रभक्ति पहचान ली गई हैं, सैनिकों के आरक्षण पर डिबेट को हवा दे दी जा चुकी है, ताकि हम चुपके से उस मानसिकता को कोसने से बच जाएँ, जो आतंकवाद को जन्म देती है। यह शायद इस मीडिया गिरोह के अनुसार इस चर्चा का सबसे उपयुक्त समय है। ‘कश्मीरियत’ की दंगाई, उपद्रवी हरकतों और उनके पत्थरबाजों के प्रति अश्रुपूरित सत्संग लिखे जा चुके हैं।
सांप्रदायिक भेदभाव और उन्माद बढ़ाने के लिए मौके की तलाश में बैठे वामपंथी गिरोहों ने जता दिया कि सैनिकों का बलिदान सिर्फ और सिर्फ अपनी विषैली मानसिकता के बीजारोपण का एक सुन्दर अवसर है। पुलिस के स्पष्टीकरण के बावजूद मीडिया में इन गिरोहों ने ये कहकर खूब तांडव मचाया कि कश्मीरी युवाओं को परेशान किया जा रहा है। फिर भी इन गिरोहों का एक अच्छा खासा वर्ग समाज में पनप रहा है और तंदुरुस्त हो रहा है।
कारवाँ के एजाज़ अशरफ़ ने ऐसे समय में सैनिकों की जाति ढूँढ निकाली, जिस समय सारा देश बलिदानी सैनिकों के शोक में डूबा था। ये वही कारवाँ है, जिसका ज़िक्र अपने प्राइम टाइम से लेकर फेसबुक पोस्ट तक में रवीश कुमार ‘सनसनीखेज खुलासों’ के लिए किया करते हैं। मीडिया गिरोह की इन षड्यंत्रकारी घातक टुकड़ियों के झूठ के बाजार और इनकी विश्वसनीयता के बारे में हम पहले भी बता चुके हैं।
अब नया मुद्दा इन मीडिया गिरोहों का कंगना रानौत की देशभक्ति है। अपनी बात खुलकर कहने और अपने साहसी बयानों के कारण चर्चा में रहने वाली कंगना रानौत को एक ऐसे गुट से निशाना बनाया जा रहा है, जो सीमा पर मरने वाले जवानों पर बनाए जाने वाले चुटकुलों पर हँसता आया है। कॉमेडी के नाम पर ऐसे चुटकुलों को दिशा देने वाले AIB समूह की दुकान आज व्हाट्सएप्प पर ‘न्यूड’ माँगने और महिला उत्पीड़न के मामलों के कारण बंद हो चुकी है। ख़ास बात ये है कि इनसे सहानुभूति रखने वाला अभी भी एक बड़ा वर्ग समाज में इन्हें सम्मान की नज़र से देखता है।
ये करिश्माई प्रतिभा हो सकती है कि जो आतंकवाद को आतंकवाद कहने से हिचकिचाते हैं, जो धर्म के नाम पर पनप रहे जिहाद को आज तक जिहाद नहीं बता पाए, उन्होंने व्हाट्सएप्प पर मिलने वाले जननांग की तस्वीर और शूटिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले घोड़े से राष्ट्रवाद को तुरंत पहचान लिया।
कंगना रानौत की हाल ही में आई फ़िल्म मणिकर्णिका को दर्शकों को खूब सराहा है। लेकिन 1857 की क्रांति को स्वतंत्रता की पहली क्रांति न मानने वालों की आपत्ति का कारण सिर्फ यही नहीं है। पुलवामा आतंकी घटना के बाद कंगना रानौत ने कहा था, “विपक्ष वाले फ़र्ज़ी शोक न मनाएँ, उन्हें तो गधे पर बिठाकर थप्पड़ मारा जाना चाहिए।” अक्सर सामाजिक और राजनीतिक घटनाक्रमों पर बेबाकी से अपने विचार रखने वाली कंगना रानौत के साहसिक यानी ‘बोल्ड’ अंदाज के कारण उनको निशाना बनाया जा रहा है। आप सोचिए कि ये वही लोग हैं जो अक्सर स्वरा भास्कर पर फिल्माए गए हस्तमैथुन के दृश्यों को महिला सशक्तिकरण का पहला चरण बताते हैं। इसके लिए सहारा लिया जा रहा है उनकी फिल्म मणिकर्णिका की शूटिंग के दौरान फ़िल्माए जा रहे एक ऐसे दृश्य से जिसमें वो नकली घोड़े पर सवार हैं।
किसी की अभिव्यक्ति के अधिकार को छीनने के लिए और उसके मनोबल को गिराने के लिए इस तरह के सस्ते हथकंडों का इस्तेमाल करना इन मीडिया गिरोहों को और भी ज्यादा हास्यास्पद बनाता है और उससे भी ज्यादा हास्यास्पद इस वीडियो को कंगना रानौत की देशभक्ति (नेश्नलिज़्म) से जोड़ना है। आप कह सकते हैं कि और कितना गिरोगे भाई Scroll ?
जाहिर सी बात है कि फिल्मों के किसी भी दृश्य में जानवरों का इस्तेमाल प्रतिबंधित है और असली घोड़े का इस्तेमाल ना ही कँगना कर सकती हैं, ना शाहरुख खान और ना ही प्रियंका चोपड़ा! लेकिन शूटिंग के दौरान बनाए गए इस वीडियो को लेकर न्यूज़ बना देना यही दर्शाता है कि इन मीडिया गिरोहों के पास प्रोपेगैंडा फैलाने का ‘कच्चा सामान’ दिनों-दिन कम पड़ता जा रहा है।
कुंठित ट्विटर ट्रॉल्स को उन्हीं की भाषा में जवाब देने के लिए ‘@squintneon’ नाम के यूज़र ने आमिर खान की धूम फिल्म की शूटिंग के दौरान की वीडियो क्लिप पोस्ट कर सवाल पूछा है कि अगर कंगना के वीडियो से उसके नेश्नलिज़्म का पता चल जाता है तो फिर इस वीडियो के माध्यम से आमिर खान को असहिष्णुता का सिपाही बताकर दिखाइए।
ज़ाहिर सी बात है कि राष्ट्रवाद से घृणा में यह ट्रॉल-दल इतना कुंठित हो चुका है कि इसके हाथ जो कुछ लग रहा है ये उसी को जरिया बनाकर अपनी भड़ास निकाल रहा है। शायद कंगना रानौत के खिलाफ यह मुहिम सिर्फ इस वजह से भी है कि वो AIB जैसे समूहों के घटिया चुटकुलों का हिस्सा न बनकर देश और समाज के विषयों में रूचि रखती हैं। उम्मीद है कि ‘राष्ट्रवाद से नफरत’ की मानसिकता के कारण इस तरह की मुहिम चलाने वालों के भी कभी अच्छे दिन जरूर आएँगे, जब ये यकीन करना शुरू कर देंगे कि जुरासिक पार्क की फिल्मों के लिए असली डायनासौर और सुपरमैन फिल्म बनाने के लिए असली सुपरमैन की सहायता नहीं ली गई थी। तब तक हम इनके लिए प्रार्थना कर सकते हैं कि इन्हे एक विपरीत विचारधारा और राष्ट्रवाद से नफरत में इन्हे अपनी बात रखने के लिए इतने ‘सस्ते तरीकों’ का सहारा नहीं लेना पड़ेगा।
जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफ़िले पर हुए भयानक आतंकवादी हमले के एक हफ्ते बाद, राहुल गाँधी ने एक ट्वीट पोस्ट किया जिसमें दावा किया गया कि हमले के 3 घंटे बाद पीएम नरेंद्र मोदी फोटो शूट में भाग ले रहे थे। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष ने 14 फ़रवरी को मोदी की कॉर्बेट नेशनल पार्क की यात्रा की तस्वीरें भी पोस्ट कीं, और एक फोटो में दिखाया गया है कि मोदी एक कैमरामैन द्वारा फोटो खिंचवा रहे हैं।
पुलवामा में 40 जवानों की शहादत की खबर के तीन घंटे बाद भी ‘प्राइम टाइम मिनिस्टर’ फिल्म शूटिंग करते रहे।
इसी आरोप को कॉन्ग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने भी उठाया। कल (फ़रवरी 21, 2019) को सुरजेवाला ने दावा किया कि 14 फ़रवरी को 3:10 बजे जिस समय आतंकी हमला हुआ था, नरेंद्र मोदी डिस्कवरी चैनल के कैमरा क्रू के साथ नाव की सवारी का आनंद ले रहे थे। उसके बाद, कॉन्ग्रेस समर्थक सोशल मीडिया पेजेज और कॉन्ग्रेस समर्थकों के द्वारा आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरू हुआ, इस खेल को हवा देने में कॉन्ग्रेस समर्थक कुछ प्रमुख पत्रकार भी शामिल रहें।
यहाँ असली सवाल ये है कि क्या मोदी वास्तव में पुलवामा आतंकी हमले के तीन घंटे बाद तक फोटो शूट करवा रहे थे जैसा कि राहुल गाँधी ने दावा किया? आइए उन सभी के दावों की सत्यता की जाँच करें।
पुलवामा आत्मघाती हमला लगभग 3:10 बजे हुआ और दावे के हिसाब से मोदी शाम 6 बजे के बाद तक भी फोटो खिंचवा रहे थे। अगर हम मोदी की फोटो खींचते हुए देंखे, तो हम साफ़ देख सकते हैं कि जब यह फोटो ली गई है यह दिन का समय है, क्योंकि फोटो की पृष्ठभूमि में खिली हुई धूप और साफ नीला आकाश देखा जा सकता है। अगर ये शाम की होती तो क्या बैकग्राउंड में इतनी खिली धूप होती? जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में सूर्यास्त का समय टाइम एंड डेट वेबसाइट के अनुसार 14 फ़रवरी को शाम 6:02 बजे था। इसका मतलब यह है कि अगर हमले के 3 घंटे बाद भी शूटिंग जारी होती तो बैकग्रॉउंड में अंधेरा हो गया होता। यहाँ तो ये स्पष्ट है कि जब ये तस्वीर ली गई है वह समय सूर्यास्त से पहले का है। न कि हमले के 3 घंटे बाद का समय था।
चलिए ठीक से उस दिन का पूरा घटनाक्रम समझते हैं, यहीं से इस वाकये का सच भी समझ आएगा। पहला सवाल ये है कि उस दिन वास्तव में मोदी राष्ट्रीय उद्यान में कब पहुँचे? प्रधानमंत्री 14 फ़रवरी को दोपहर 3 बजे उत्तराखंड के रुद्रपुर में एक रैली को संबोधित करने वाले थे। इसके लिए, वह लगभग 7 बजे सुबह देहरादून के जॉली ग्रांट हवाई अड्डे पर पहुँचे, जहाँ से उन्हें हेलीकॉप्टर द्वारा आगे की यात्रा करनी थी। लेकिन खराब मौसम के कारण हेलीकॉप्टर उड़ान नहीं भर सका। इसलिए मोदी ने वहाँ करीब तीन घंटे इंतजार किया। वहाँ से उनका हेलिकॉप्टर सुबह 11:15 बजे कालागढ़ के लिए रवाना हुआ और वहाँ से सड़क के रास्ते जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के ढिकाला जोन जाना था। वह दोपहर लगभग 12 बजे टाइगर रिज़र्व पहुँचे थे और ग्लोबल टाइगर रिजर्व की बैठक में भाग लिया। बैठक के बाद, उन्होंने लगभग 1 बजे जंगल के ढिकाला क्षेत्र में पहुँचने के लिए एक नाव पर सवार होकर रामगंगा नदी को पार किया। क्योंकि उसके कुछ ही समय बाद उनके आगमन की सूचना मीडिया द्वारा दी गई थी।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोदी ने वन क्षेत्र में केवल 30 मिनट बिताए, जहाँ से वह खिन्नौली वन विश्राम गृह गए। जिसका मतलब है कि पीएम ने पुलवामा में हमले से लगभग एक घंटे पहले ही अपनी वन यात्रा पूरी कर ली थी। उस दौरान कुछ फ़ोटोग्राफ़रों ने उनकी कुछ तस्वीरें लीं। गेस्ट हाउस में, उन्होंने अधिकारियों के साथ बाघ संरक्षण प्रयासों पर चर्चा की और बाद में रुद्रपुर में रैली को फोन से संबोधित किया क्योंकि मौसम में सुधार नहीं हुआ था। भाषण को डीडी न्यूज द्वारा लाइव किया गया था। और लाइव वीडियो के यूट्यूब मेटाडेटा विश्लेषण से, यह देखा जा सकता है कि भाषण का प्रसारण शाम 5:17 बजे शुरू हुआ। इसका मतलब है, हमले के 2 घंटे बाद, मोदी फोन करके रैली को संबोधित कर रहे थे, ताकि उन हजारों लोगों को निराश न करें जो उन्हें सुनने के लिए 5-6 घंटे से इंतजार कर रहे थे। यहाँ भी ये साफ है कि वह फोटो शूट नहीं करवा रहे थे।
कॉर्बेट राष्ट्रीय पार्क में मोदी की यात्रा की तस्वीरें पहले ही 2 बजे के आसपास मीडिया द्वारा प्रकाशित कर दी गई थीं, जिसका साफ अर्थ यह भी है कि तस्वीरें वास्तव में 2 बजे से पहले ली गई थीं। और जैसा कि मोदी ने वन क्षेत्र में लगभग आधे घंटे का समय बिताया, इसका मतलब यह है कि हमले के बारे में सत्यापित जानकारी पहुँचने से पहले ही वह अपनी वन यात्रा से लौट आए थे। इसलिए, नाहक सनसनी बनाकर ये आरोप लगाना कि पुलवामा हमले के बाद पीएम मोदी जिम कॉर्बेट पार्क में एक फोटोशूट करवा रहे थे, यह राहुल गाँधी, उनके ट्रोल सोशल मीडिया के यूजर और फुल टाइम प्रचारक पत्रकारों द्वारा प्रचारित एक और झूठ, उनकी कभी न खत्म होने वाली महाझूठ और प्रोपेगंडा का हिस्सा है। इस तरह से राहुल के इस झूठ को मीडिया गिरोह ने एक बार फिर फैलाकर अपनी विश्वसनीयता को कलंकित किया है।