विचार
क्योंकि न्यूज़ के साथ चाहिए व्यूज़ भी
‘रवीश को आज अपना मुँह काला करवा लेना चाहिए, क्योंकि जो गिरफ्तार हुआ वो शाहरुख ही है’
"सोशल मीडिया पर यूजर्स का कहना है कि शाहरुख की गिरफ्तारी के बाद एनडीटीवी पर मातम छा गया है। रवीश ने बहुत मेहनत की थी उसे अनुराग मिश्रा बताने में। लेकिन अब हकीकत का खुलासा होने के बाद हो सकता है कि रवीश कुमार स्क्रीन काली कर दे।"
दिल्ली दंगों पर कपिल मिश्रा से अजीत भारती की बातचीत | Ajeet Bharti with Kapil Mishra on Delhi Riots
दिल्ली में हुए दंगों के लिए जिस तरह से तमाम वामपंथी मीडिया कपिल मिश्रा को जिम्मेदार बताने पर तुला है, वो बताता है कि फर्जी नैरेटिव गढ़ना...
Thappad से सीख: हर बार थप्पड़ हिन्दुओं के ही गाल पर क्यों? सेक्युलरिज़्म सिर्फ हिंदुओं की जिम्मेदारी नहीं
यह संभव नहीं है कि एक समुदाय विशेष हिन्दुओं के घरों को जलाने के लिए उन्हें चिन्हित करे, जलाए और बदले में हिन्दू जाकर उसे गले लगा आए। यह दंगा-साहित्य कुछ पुरस्कार जीतने के लिए लिखी गई किताबों तक सीमित रहे, मानवता के लिए उनका योगदान उतना ही काफी माना जाएगा।
तब ब्रिटिश थे, अब कॉन्ग्रेस है: बंगाल विभाजन से दिल्ली दंगों तक यूँ समझें ‘मजहब’ वालों का किरदार
कॉन्ग्रेस जैसे राजनैतिक दल पहले समुदाय विशेष को भड़काते हैं, फिर तुष्टिकरण को सत्ता का जरिया बनाते हैं। इसके बाद मुस्लिम नेता ऐसे मौके का नाजायज ‘फायदा’ उठाने के लिए पहले अलग संविधान, फिर अलग देश की माँग करने लगते हैं।
न अमन की खोखली बातों से बुझेगी ये आग, न जीते-जी भरेंगे घाव: बारूद के ढेर को चिंगारी से बचाने की मुश्किल
एक भारत की व्यवस्था को चीनी माओवादी बनाना चाहता है। दूसरा भारत को चूस-चूस के शरिया की ओर ले जाना चाहता है। वैश्विक स्तर पर एक-दूसरे को फूटी आँख ना सुहाने वाले इन दो दुश्मन गुटों का भारत में याराना देखिए।
आप अपना धैर्य खो बैठे हैं और विपक्ष के अजेंडे में उलझ कर अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं
वो चाहते हैं कि आप हिंसा की बात करें, वो चाहते हैं कि आप कानून को हाथ में ले जिस से उनके किए गए कामों को एक कारण मिल सके। क्यों करना है आपको राणा अयूब की ट्वीट को कोट और जवाब देना है? क्यों आपको स्वरा को गद्दार कहना है? राजदीप को क्यों गाली देना है आपको?
दिल्ली दंगों की 8 कहानियाँ, जिसे मीडिया छुपा रहा: अजीत भारती के सवाल | Ajeet Bharti on Delhi Riots and Media Hiding Facts
वामपंथी मीडिया ये कहानियाँ नहीं दिखाएगा क्योंकि ये कहानियाँ महत्वपूर्ण नहीं। हिन्दुओं की मौत से इस देश की मीडिया को कोई फर्क नहीं पड़ता है।
‘दोनों तरफ के लोग हैं’: ‘दंगा साहित्य’ के दोगले कवियों से पूछिए कि हिन्दू ने कहाँ दंगा किया, कितने दिन किया?
इस नैरेटिव से बचिए और पूछिए कि जिसकी गली में हिन्दू की लाश जला कर पहुँचा दी गई, उसने तीन महीने से किसका क्या बिगाड़ा था। 'दंगा साहित्य' के कवियों से पूछिए कि आज जो 'दोनों तरफ के थे', 'इधर के भी, उधर के भी' की ज्ञानवृष्टि हो रही है, वो तीन महीने के 89 दिनों तक कहाँ थी, जो आज 90वें दिन को निकली है?
बिना रिसर्च के हैप्पीनेस क्लास: केजरीवाल का प्रपंच, मेलानिया को बेचा जा रहा है प्रोपेगेंडा
एक तरफ अघोषित नीति के तहत फेल होने वाले बच्चों का एडमिशन नहीं लिया जाता। दूसरी तरफ कहानियॉं सुनाकर उनको खुश दिखाने का प्रोपेगेंडा रचा जा रहा है। पर दुर्भाग्य से यह कसरत भी आधी-अधूरी ही है।
‘पिंचर’ बनाने वालों से डर नहीं लगता साहब, ‘IIT-IIM वालों से’ लगता है: एंटी CAA से जलता भारत
ओवैसी, शरजील इमाम, हुसैन हैदरी, इकबाल, जिन्ना, लादेन की फेहरिश्त में आप नाम जोड़ते जाइए उन सबका भी जो शायद आपके आसपास बैठा हो, जो आपके साथ काम करता हो, जिनका पेशा कुछ भी क्यों न हो लेकिन वो लगे हों उम्मत के लिए ही।