ऐसे दौर में जब बुनियादी ढाँचा किसी देश की वैश्विक स्थिति को परिभाषित करता है, भारत के इंजीनियरिंग चमत्कार अब सिर्फ़ सुर्खियाँ नहीं बटोर रही हैं, बल्कि जीवन बदलने वाली वास्तविकताएँ बन गई हैं। जम्मू-कश्मीर में हाल ही में दुनिया के सबसे ऊँचे रेलवे पुल, चेनाब रेल ब्रिज से लेकर तमिलनाडु में वर्टिकल-लिफ्ट पम्बन रेलवे सी ब्रिज तक, ये महत्वाकांक्षी परियोजनाएँ न केवल परिदृश्य बदल रही हैं, बल्कि लोगों के जीवन को भी जोड़ रही हैं। चाहे वह आवागमन को आसान बनाना हो, पर्यटन को बढ़ावा देना हो या रणनीतिक उपस्थिति दर्ज कराना हो, भारत का मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर राष्ट्रीय विकास का एक नया अध्याय लिख रहा है।
चिनाब रेल ब्रिज जीवन बदलने वाला है
चेनाब रेल ब्रिज जम्मू और कश्मीर में चिनाब नदी से 359 मीटर ऊपर है। यह दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज है। यह एफिल टॉवर से भी ऊँचा है। यह कश्मीर घाटी और देश के बाकी हिस्सों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है। चिनाब रेल ब्रिज सिर्फ़ एक इंजीनियरिंग उपलब्धि से कहीं ज़्यादा है क्योंकि यह उस क्षेत्र में बदलाव का वादा करता है जो लंबे समय से भूभाग, मौसम और संघर्ष के कारण अलग-थलग पड़ा हुआ है।

देश में ऐसा कोई पुल नहीं था जो चिनाब ब्रिज बनाने वाली टीम के लिए मिसाल बन सके। पुल के स्टील आर्च को हर चरण में नवाचार की आवश्यकता थी। पुल के पीछे के इंजीनियरों ने अस्थिर हिमालयी भूविज्ञान से निपटने के लिए एक डिजाइन-एज़-यू-गो दृष्टिकोण अपनाया। पुल को 63 मिमी मोटी स्टील का उपयोग करके बनाया गया है जो विस्फोट प्रतिरोधी है और कंक्रीट के खंभे हैं। यह पुल भूकंप, तेज़ हवाओं और तोड़फोड़ को झेलने में सक्षम है।
दो दशकों से अधिक समय से क्षेत्र बेहतर परिवहन बुनियादी ढांचे की प्रतीक्षा कर रहा था। यह पुल 35,000 करोड़ रुपए की USBRL परियोजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ये दूरदराज के गाँवों तक बेहतर पहुँच प्रदान करेगा, जहाँ सिर्फ पैदल या नाव के माध्यम से पहुँचा जा सकता था। 2,015 किलोमीटर की सड़क से लगभग 70 गाँव लाभान्वित होंगे और आर्थिक गतिविधि, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के लिए रास्ते खोलेंगे।
इसके अलावा, यह कश्मीर और लद्दाख में भारतीय रक्षा बलों के लिए एक रणनीतिक मार्ग भी प्रदान करता है। चूंकि यह सभी मौसम में रेल के आवागमन की सुविधा देगा, इसलिए सैनिकों को अब बर्फबारी या राजमार्ग बंद होने से परेशानी नहीं होगी।
स्थानीय लोगों के लिए, यह सेब और अखरोट जैसे खराब होने वाले सामानों के परिवहन के लिए एक अच्छा मार्ग है। नए रेल लिंक से पर्यटन में तेजी आएगी।
ढोला-सादिया ब्रिज: असम को अरुणाचल से जोड़ने वाला पूर्वोत्तर का अहम ब्रिज
ढोला-सादिया पुल का उद्घाटन मई 2017 में प्रधानमंत्री मोदी ने किया था। यह 9.15 किलोमीटर लंबा है और असम में ब्रह्मपुत्र नदी पर बना है। यह नदी पर बना भारत का सबसे लंबा पुल है। ये असम के ऊपरी हिस्सों और अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी जिलों के बीच चौबीसों घंटे हर मौसम में संपर्क बनाए रखता है। इसने असम के रूपई और अरुणाचल प्रदेश के मेका के बीच यात्रा की दूरी को 165 किलोमीटर कम कर दिया है। पुल की वजह से अब इन दोनों क्षेत्रों के बीच की दूरी पहले के छह घंटे के बजाय सिर्फ़ एक घंटे में तय की जा सकती है।

पुल से पहले, परिवहन प्रणाली नौकाओं पर निर्भर थी जो अक्सर बाढ़ से प्रभावित होती थीं। इसने क्षेत्र के भीतर नागरिक और सैन्य दोनों तरह की यात्रा के तरीके को बदल दिया है। यह माल और सेवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के साथ-साथ सीमावर्ती क्षेत्रों की ओर रक्षा बलों की तेजी से आवाजाही के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस कनेक्टिविटी ने क्षेत्र में आर्थिक विकास में योगदान दिया है, साथ ही पूर्वोत्तर और भारत की मुख्य भूमि के बीच की खाई को पाटा है।
विझिनजाम अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह: भारत के समुद्री भविष्य के लिए एक नया प्रवेश द्वार
विझिनजाम अंतर्राष्ट्रीय गहरे पानी का बहुउद्देशीय बंदरगाह केरल में बनाया गया है। इस पर सरकार को 8,800 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। यह भारत के समुद्री बुनियादी ढांचे के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इसे मई 2025 में पीएम मोदी ने राष्ट्र को समर्पित किया। विझिनजाम अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह भारत का एकमात्र गहरा जल कंटेनर ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह है, जिसे कंटेनर और बहुउद्देशीय कार्गो के लिए डिजाइन किया गया है।

यह बंदरगाह भारत के आत्मनिर्भर भारत विजन को मजबूत करता है। इससे विदेशों में खर्च होने वाले पैसे की बचत होगी।
बंदरगाह की गहराई 20 मीटर है, जो दुनिया के सबसे बड़े मालवाहक जहाजों को आसानी से फिट कर सकती है। यह एक आधुनिक समय का ट्रांसशिपमेंट हब है जो बिना किसी जटिलता के बड़े पैमाने पर कार्गो वॉल्यूम को संभाल सकता है। आने वाले वर्षों में बंदरगाह अपनी क्षमता बढ़ाएगा, जिससे केरल एक प्रमुख व्यावसायिक केन्द्र बन जाएगा।
यह कोलंबो, सिंगापुर और दुबई जैसे वैश्विक ट्रांसशिपमेंट केंद्रों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने की स्थिति में है, जिससे विदेश जानेवाली कंटेनर आवाजाही की लागत कम हो जाएगी।
यह आर्थिक अवसर और रोजगार सृजन लाता है। कोच्चि के निकट एक जहाज निर्माण और मरम्मत क्लस्टर का निर्माण कार्य चल रहा है। इससे हजारों रोजगार के अवसर खुलेंगे, खास तौर पर युवाओं और स्थानीय प्रतिभाओं के लिए। समुद्री गतिविधियों में वृद्धि से पर्यटन, एमएसएमई और मत्स्य पालन जैसे संबद्ध क्षेत्रों का विकास होगा।
पम्बन ब्रिज: भारत का पहला वर्टिकल लिफ्ट सी ब्रिज
तमिलनाडु में नए पम्बन ब्रिज का उद्घाटन अप्रैल 2025 में किया गया था। यह भारत का पहला वर्टिकल लिफ्ट रेलवे सी ब्रिज है। यह पाक जलडमरूमध्य में लगभग 2.07 किमी तक फैला है और रामेश्वरम द्वीप को मुख्य भूमि भारत से जोड़ता है। इसने 1914 के कैंटिलीवर ब्रिज की जगह ली है जो लंबे समय से तीर्थयात्रियों और व्यापारियों की सेवा कर रहा था।
पुल का निर्माण रेल विकास निगम लिमिटेड ने किया है। इसके 72.5 मीटर के नौवहन क्षेत्र को 17 मीटर तक उठाया जा सकता है, जिससे बड़े समुद्री जहाज रेल यातायात को बाधित किए बिना इसके नीचे से गुजर सकते हैं। इसे जंग-रोधी स्टेनलेस स्टील, विशेष पॉलीसिलोक्सेन कोटिंग और हाई-ग्रेड सुरक्षात्मक पेंट का उपयोग करके बनाया गया है। इसका जीवनकाल 100 वर्ष है।

नया पुल पुराने पुल से 3 मीटर ऊँचा है। इसमें डबल-ट्रैक उपयोग के लिए तैयार एक सबस्ट्रक्चर है। उन्नत निर्माण कठोर समुद्री मौसम, भूकंपीय गतिविधि और चक्रवातों का सामना कर सकता है।
तमिलनाडु के लोगों और रामेश्वरम के तीर्थयात्रियों के लिए, यह तेज़, सुरक्षित और निर्बाध यात्रा की गारंटी देता है। यह क्षेत्र में समुद्री नौवहन को भी मजबूत करता है, जिससे नौका-आधारित परिवहन पर निर्भरता कम होती है।
अटल सुरंग: हिमालय की कनेक्टिविटी को बदलने वाली भारत की सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग
अटल सुरंग का उद्घाटन अक्टूबर 2020 में किया गया था। यह आधुनिक इंजीनियरिंग का एक चमत्कार है। यह हिमालय की पीर पंजाल रेंज के नीचे 9.02 किमी तक फैली है। अटल सुरंग 10,000 फीट से ऊपर दुनिया की सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग है। पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर इसका नामकरण किया गया है। यह मनाली और सुदूर लाहौल-स्पीति घाटी के बीच सालभर संपर्क सुनिश्चित करता है। पहले भारी बर्फबारी के कारण साल में 6 महीने मुख्य भूमि से कट जाता था।

सुरंग का निर्माण सीमा सड़क संगठन द्वारा किया गया था। इसने मनाली और लेह के बीच की दूरी 46 किलोमीटर कम कर दी और यात्रा का समय 4 से 5 घंटे कम कर दिया। दक्षिण पोर्टल मनाली से 25 किलोमीटर दूर 3,060 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, जबकि उत्तर पोर्टल 3,071 मीटर की ऊँचाई पर सिस्सू गाँव के पास से निकलता है।
यह घोड़े की नाल के आकार की, सिंगल-ट्यूब, डबल-लेन संरचना है जिसमें 8 मीटर की सड़क और 5.525 मीटर की ओवरहेड क्लीयरेंस है। इसमें एक अंतर्निहित आपातकालीन भागने वाली सुरंग भी है। यह 80 किमी/घंटा तक की गति से प्रतिदिन 3,000 कारों और 1,500 ट्रकों का समर्थन कर सकती है।
जेड-मोड़ सुरंग, सोनमर्ग और करगिल दोनों तक पहुँचना हुआ आसान
जेड-मोड़ सुरंग दो दिशाओं में है, जो 6.5 किमी लंबी है। इसमें सड़क की लंबाई 5.6 किमी शामिल है। यह सुरंग गंदेरबल के गगनगीर और सोनमर्ग के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है। सुरंग 8,500 फीट से अधिक की ऊँचाई पर बनाई गई है। यह सड़क के Z-आकार वाले हिस्से के लिए एक विकल्प प्रदान करती है जहाँ हिमस्खलन की वजह से सर्दियों में सोनमर्ग तक पहुँचना असंभव होता था। अब सोनमर्ग पर्यटक स्थल तक पूरे साल पहुँचना लोगों के लिए आसान हो गया है। सुरंग रक्षा के नजरिए से भी महत्वपूर्ण है। Z-मोड़ सुरंग कश्मीर घाटी और लद्दाख दोनों के लिए रणनीतिक और आर्थिक रूप से भारत के लिए महत्वपूर्ण है।

सुरंग श्रीनगर-लेह राजमार्ग का हिस्सा है। लद्दाख तक पहुँच को सुगम बनाने के मामले में यह कनेक्टिविटी काफी अहम है। इससे कश्मीर घाटी में आर्थिक विकास और पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। यह दो-लेन वाली सड़क सुरंग है। उसमें इमरजेंसी सिचुएशन में बचने के लिए समानांतर 7.5 मीटर चौड़ा रास्ता है।
अटल सेतु: भारत का सबसे लंबा समुद्री पुल
मुंबई में ‘अटल बिहारी वाजपेयी सेवारी-न्हावा शेवा अटल सेतु’ आधिकारिक तौर पर जनवरी 2024 में खोला गया था। यह देश का सबसे लंबा पुल और सबसे लंबा समुद्री पुल है और कुल 21.8 किलोमीटर को जोड़ता है। इसमें 16.5 किलोमीटर खुले समुद्र पर हैं, क्योंकि छह लेन वाला मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक (एमटीएचएल) मुंबई में सेवरी से नवी मुंबई में न्हावा शेवा के बीच 3.4 किलोमीटर की दूरी को जोड़ता है।

यह पुल दक्षिण मुंबई से भारत की मुख्य भूमि तक परिवहन के लिए एक सीधा और विश्वसनीय संपर्क है, जो मुंबई और नवी मुंबई के बीच यात्रा के समय को कम करता है। यह मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे और नवी मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे तक जाने का आसान मार्ग है। साथ ही, पुणे, गोवा और दक्षिण भारत के प्रवेश द्वार तक यात्रा के समय को भी कम करता है।
इस पुल का आर्थिक महत्व भी काफी है, क्योंकि यह मुंबई बंदरगाह और जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह के बीच माल की ढुलाई के लिए आसान मार्ग है।
इस पुल के बेस में आईसोलेशन बियरिंग का इस्तेमाल किया गया है, जो भूकंप के 6.5 तीव्रता को भी झेल सकता है। इस पुल में नॉइस बैरियर का इस्तेमाल किया है, जो किनारों पर लगाए हैं। इसमें साइलेंसर है जो ध्वनि की तीव्रता को कम करता है। इससे समुद्री जीवों को शोर-शराबे का सामना नहीं करना पड़ेगा।
अपने आकार, भौगोलिक महत्व और इंजीनियरिंग की श्रेष्ठता के साथ अटल सेतु एक पुल से कहीं ज़्यादा है। यह आधुनिक भारत की महत्वाकांक्षा का प्रतीक है जो अपने विकास को समायोजित करने वाले बुनियादी ढाँचे का निर्माण करता है।
भारत की मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएँ दरअसल राष्ट्रीय परिवर्तन के साधन हैं। दूरदराज के गाँवों को जोड़ने से लेकर यात्रा के समय को कम करने और व्यापार को बढ़ावा देने तक, प्रत्येक पुल, सुरंग और बंदरगाह समावेशी विकास के लिए देश की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। ये पहल न केवल रणनीतिक तत्परता और आर्थिक एकीकरण को बढ़ाती हैं, बल्कि नागरिकों के जीवन में रोजमर्रा की ज़िंदगी को भी आसान बनाती हैं।