Thursday, June 5, 2025
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13000+ प्रॉपर्टी, कीमत ₹1 लाख करोड़… जानिए क्या होती है शत्रु संपत्ति, कैसे हड़पना चाहता था वक्फ बोर्ड: यदि कॉन्ग्रेस सांसदों की चलती तो आज नीलाम नहीं हो पाती परवेज मुशर्रफ की जमीन

कॉन्ग्रेस सरकार ने 2005 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राजा महमूदाबाद को हजारों करोड़ की संपत्ति लौटाई थी, लेकिन मोदी सरकार ने इसे रोका। नए कानूनों ने वक्फ बोर्ड की मनमानी पर लगाम लगाई और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत किया।

उत्तर प्रदेश के बागपत में 2 दिन पहले पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह परवेज मुशर्रफ की जमीन सरकार ने नीलाम कर दी। कुछ दिन पहले उत्तराखंड में राजा महमूदाबाद की संपत्ति को सरकार ने पार्किंग प्लेस में बदल दिया, तो बीते साल दिसंबर में पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की संपत्ति (जिसमें 1918 में बनी मस्जिद भी शामिल थी) को कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया।

इस जमीन को लेकर दावा किया गया था कि देश की आजादी से पहले ही इसे वक्फ कर दिया गया था, जो दावा फर्जी निकला। ऐसे में मस्जिद होने और वक्फ के दावे के बावजूद ये जमीन सरकार को मिली, क्योंकि ये जमीन एनिमी प्रॉपर्टी (शत्रु संपत्ति) के दायरे में आती थी।

तीनों मामलों को देखें तो इनमें एक लिंक कॉमन था। वो था शत्रु संपत्ति का होना और अब ऐसी संपत्तियों को भारत सरकार अपने हितों के मुताबिक इस्तेमाल कर सकती है। ऐसा इसलिए हो पाया, क्योंकि साल 2017 में मोदी सरकार एक कानून लाई थी, जिसका नाम शत्रु संपत्ति (संशोधन और सत्यापन) विधेयक 2016 था। इस कानून के मुताबिक, सिर्फ दुश्मन देश में गया व्यक्ति ही नहीं, दुश्मन देश गए व्यक्ति के वारिस भी दुश्मन की श्रेणी में आएँगे और वो दुश्मन संपत्ति यानी शत्रु संपत्ति पर कोई दावा नहीं कर पाएँगे।

मोदी सरकार के इस कदम से देश भर की 13 हजार से अधिक संपत्तियाँ, जिनकी कीमत 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक है, वो अब सरकार की होंगी। इस बारे में आगे विस्तार से बताएँगे… फिलहाल ये बता दें कि मोदी सरकार जो वक्फ संसोधन कानून लेकर आई है, जिसमें भी एविक्टी (शत्रु संपत्ति) पर वक्फ के दावों को नकार दिया गया है। इसका असर दूरगामी है।

मोदी सरकार ने दोनों कानून लाकर वो काम किया है, जो कॉन्ग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारें तमाम वजहों से करने से बचती रही हैं। कॉन्ग्रेस का जिक्र आया ही है और शत्रु संपत्ति के मामले में, तो एक अहम जानकारी आपको जो होनी चाहिए- वो दे देते हैं। लेकिन उससे पहले बताते हैं कि आखिर शत्रु संपत्ति है क्या और कैसे मोदी सरकार वो कानून लेकर आई, जिसे न लाकर कॉन्ग्रेस नीत यूपीए सरकार ने हजारों करोड़ की संपत्ति देश के दुश्मनों के वारिसों दे दी थी।

शत्रु संपत्ति क्या है?

शत्रु संपत्ति वो संपत्तियाँ हैं, जो उन लोगों के पास थीं, जिन्होंने 1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान या 1962 (चीन के साथ युद्ध), 1965 और 1971 (पाकिस्तान के साथ युद्ध) के बाद भारत छोड़कर पाकिस्तान या चीन की नागरिकता ले ली। भारत सरकार ने इन्हें ‘शत्रु’ माना, क्योंकि ये लोग उन देशों के साथ चले गए, जो भारत के खिलाफ युद्ध में थे। ऐसी संपत्तियों को जब्त करने का मकसद था कि इनका इस्तेमाल देश की सुरक्षा और विकास के लिए हो।

शत्रु संपत्ति अधिनियम 1968 के तहत इन संपत्तियों की देखरेख के लिए कस्टोडियन ऑफ एनिमी प्रॉपर्टी फॉर इंडिया (CEPI) बनाया गया, जो गृह मंत्रालय के अधीन काम करता है। देश भर में ऐसी 13,252 संपत्तियाँ हैं, जिनमें से 12,485 पाकिस्तानी नागरिकों और 126 चीनी नागरिकों की हैं। इनकी कुल कीमत 1.04 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है। इसमें भी सबसे ज्यादा संपत्तियाँ उत्तर प्रदेश (6,255) और पश्चिम बंगाल (4,088) में हैं।

उदाहरण के लिए, मुजफ्फरनगर में पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की आठ बिसवा जमीन थी, जिस पर मस्जिद और दुकानें बनी थीं। जाँच में पाया गया कि ये शत्रु संपत्ति थी। इसी तरह भोपाल में नवाब हमीदुल्लाह खान की बेटी आबिदा सुल्तान (जो 1950 में पाकिस्तान चली गई थीं) की संपत्तियाँ- जैसे फ्लैग स्टाफ हाउस और नूर-उस-सबाह पैलेस (कीमत 15,000 करोड़ रुपये से ज्यादा) भी शत्रु संपत्ति घोषित हुईं। परवेज मुशर्रफ की बागपत में 13 बीघा जमीन को 2024 में 1.38 करोड़ रुपये में नीलाम किया गया। ये सारी संपत्तियाँ भारत सरकार के कब्जे में हैं, ताकि इनका दुरुपयोग न हो।

शत्रु संपत्ति और वक्फ का टकराव

अब सवाल ये है कि शत्रु संपत्ति और वक्फ संपत्ति का आपस में क्या झगड़ा है? दरअसल, कई बार ऐसा हुआ कि जो संपत्तियाँ शत्रु संपत्ति थीं, उन्हें वक्फ बोर्ड ने अपने कब्जे में लेने की कोशिश की। इसका सबसे बड़ा कारण 1984 और 1995 के वक्फ कानूनों में कुछ खामियाँ थीं।

1984 में इंदिरा गाँधी सरकार ने वक्फ कानून में एक संशोधन किया, जिसके तहत ‘इवैक्यूई प्रॉपर्टी’ (यानी वो संपत्तियाँ जो विभाजन के दौरान छोड़ी गई थीं) को वक्फ घोषित करने की छूट दी गई। अगर कोई संपत्ति पहले वक्फ थी, लेकिन बाद में शत्रु संपत्ति बन गई, तो उसे फिर से वक्फ में बदला जा सकता था। इसका मतलब ये हुआ कि जो संपत्तियाँ देश छोड़कर गए लोगों की थीं, उन्हें वक्फ बोर्ड अपने नाम कर सकता था।

मोदी सरकार ने साल 2017 में कानून में किया संशोधन: 2017 में शत्रु संपत्ति (संशोधन और सत्यापन) अधिनियम लाया गया, जिसने इस कानून को और सख्त किया। इस संशोधन ने कई अहम बदलाव किए-

शत्रु की परिभाषा का विस्तार: अब शत्रु के वारिस, भले ही वे भारत के नागरिक हों, इन संपत्तियों पर दावा नहीं कर सकते।

कस्टोडियन का मालिकाना हक: शत्रु संपत्ति का मालिक अब कस्टोडियन (भारत सरकार) है।

सिविल कोर्ट की भूमिका खत्म: शत्रु संपत्ति से जुड़े मामले अब सिविल कोर्ट में नहीं, बल्कि खास ट्रिब्यूनल में सुने जाएँगे।

बिक्री की अनुमति: सरकार अब ऐसी संपत्तियों को बेच सकती है, और इसका पैसा देश के खजाने (Consolidated Fund of India) में जाएगा।

राजा महमूदाबाद की हजारों करोड़ की संपत्तियों का मामला

राजा महमूदाबाद, यानी मोहम्मद अमीर अहमद खान एक प्रमुख शिया मुस्लिम परिवार से थे। महमूदाबाद एस्टेट के तहत उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में विशाल साम्राज्य था। उनके अब्बू महाराजा सर मोहम्मद अली मोहम्मद खान ने 1931 में अपनी मृत्यु के बाद विशाल संपत्ति छोड़ी, जिसमें लखनऊ का बटलर पैलेस, हजरतगंज में महमूदाबाद मेंशन, नैनिताल में मेट्रोपोल होटल और सीतापुर में 956 एकड़ जमीन, एक चीनी मिल, पॉलिटेक्निक संस्थान और डिग्री कॉलेज शामिल थे।

मोहम्मद अमीर अहमद खान 1945 में इराक चले गए और 1957 में पाकिस्तानी नागरिकता ले ली। वे मुस्लिम लीग के कोषाध्यक्ष और मोहम्मद अली जिन्ना के करीबी सहयोगी थे, जिन्होंने पाकिस्तान आंदोलन को वित्तीय और राजनीतिक समर्थन दिया। खास बात ये है कि अमीर अहमद खान ने अपनी सारी संपत्तियाँ पाकिस्तान को दान दे दी थी, जो उनके पास थी। लेकिन भारत में उनकी संपत्तियाँ छूटी हुई थी। ऐसे में भारत सरकार ने उनकी संपत्तियों को शत्रु संपत्ति अधिनियम 1968 के तहत जब्त कर लिया

उनके बेटे मोहम्मद अमीर मोहम्मद खान (जिन्हें सुलैमान मियाँ भी कहा जाता था) भारतीय नागरिक थे और उन्होंने 1974 से अपनी पैतृक संपत्तियों को वापस पाने के लिए कानूनी लड़ाई शुरू की। यह लड़ाई 37 साल तक चली, जिसमें जिला अदालत, बॉम्बे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट शामिल थे। साल 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला दिया, जिसमें कहा गया कि सुलैमान मियाँ भारतीय नागरिक हैं और ‘शत्रु’ नहीं हैं। कोर्ट ने उनकी सभी संपत्तियों को वापस करने का आदेश दिया, जिनकी कीमत उस समय 20,000 से 50,000 करोड़ रुपये बताई गई। इनमें लखनऊ का बटलर पैलेस, हजरतगंज की प्राइम रियल एस्टेट, महमूदाबाद का किला और सीतापुर की विशाल जमीनें शामिल थीं।

संपत्तियाँ लौटाने के खेल में कॉन्ग्रेस सरकार की भूमिका

साल 2005 में जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, तब केंद्र में मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व में कॉन्ग्रेस नीत यूपीए सरकार थी। इस फैसले ने सरकार को असहज स्थिति में डाल दिया, क्योंकि इतनी विशाल संपत्तियाँ एक ऐसे परिवार को लौटाना, जिसके अब्बा ने पाकिस्तान आंदोलन का समर्थन किया था, राष्ट्रीय सुरक्षा और जनभावना के लिए संवेदनशील मुद्दा था। लेकिन यूपीए सरकार ने इस फैसले को प्रभावी ढंग से लागू करने की दिशा में कदम उठाए। लखनऊ जिला प्रशासन ने 21 दिसंबर 2005 को बटलर पैलेस की चाबी और छह अन्य संपत्तियों के दस्तावेज सुलैमान मियाँ को सौंप दिए।

कॉन्ग्रेस सरकार की इस कार्रवाई की कई वजहें थीं। जिनमें…

  1. सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू करना कानूनी रूप से जरूरी था।
  2. सुलैमान मियाँ खुद 1985 और 1989 में कॉन्ग्रेस के टिकट पर महमूदाबाद से विधायक रह चुके थे, जिससे उनका पार्टी के साथ गहरा रिश्ता था।
  3. उस समय कॉन्ग्रेस की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक को मजबूत करने की रणनीति थी।

कई लोग मानते हैं कि कॉन्ग्रेस ने इस मामले में ढील बरती और सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से अपना पक्ष नहीं रखा, जिसके कारण इतनी बड़ी संपत्तियाँ राजा महमूदाबाद को लौटाने का रास्ता साफ हुआ।

हालाँकि, इस फैसले के बाद भारी विवाद हुआ। कई राजनीतिक दलों खासकर बीजेपी ने इसे राष्ट्रीय हितों के खिलाफ बताया। इसके जवाब में यूपीए सरकार ने 2010 में एक आकस्मिक अध्यादेश (Ordinance) लाने की कोशिश की, जिसमें कहा गया कि शत्रु संपत्तियों पर केवल सरकार का अधिकार होगा। लेकिन यह अध्यादेश संसद में विधेयक के रूप में पेश नहीं हो सका, क्योंकि कॉन्ग्रेस के भीतर और बाहर से दबाव था। इस दबाव में सलमान खुर्शीद की अहम भूमिका थी, जिसने सुप्रीम कोर्ट वाले केस में राजा महमूदाबाद की पैरवी की थी और अगले ही साल वो यूपीए की केंद्र सरकार में कानून मंत्री जैसी हैसियत में था।

सलमान खुर्शीद की पर्दे के पीछे की भूमिका

वरिष्ठ वकील और कॉन्ग्रेस नेता सलमान खुर्शीद उस समय केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री थे। वे राजा महमूदाबाद के वकील के तौर पर सुप्रीम कोर्ट में उनके पक्ष में लड़े। इस केस में उनके सामने पी. चिदंबरम, अरुण जेटली और राम जेठमलानी जैसे दिग्गज वकील थे, जो सरकार की तरफ से थे। खुर्शीद ने तर्क दिया कि सुलैमान मियाँ भारतीय नागरिक हैं और उनके पिता की गतिविधियों के आधार पर उन्हें ‘शत्रु’ नहीं माना जा सकता। उनकी दलीलों ने 2005 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में अहम भूमिका निभाई।

लेकिन सलमान खुर्शीद की भूमिका सिर्फ कोर्टरूम तक सीमित नहीं थी। 2010 में जब यूपीए सरकार ने शत्रु संपत्ति अधिनियम को संशोधित करने के लिए अध्यादेश लाने की कोशिश की, तो खुर्शीद ने इसका विरोध किया। उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात कर एक मुस्लिम सांसदों के समूह का नेतृत्व किया, जिसमें लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और मोहम्मद अदीब जैसे नेता शामिल थे। इस समूह ने तर्क दिया कि शत्रु संपत्ति कानून में संशोधन ‘मुस्लिम विरोधी’ है और इससे भारतीय मुस्लिम समुदाय की भावनाएँ आहत होंगी।

खुर्शीद की अगुआई में इस दबाव के चलते अध्यादेश को संसद में विधेयक के रूप में पेश नहीं किया गया। इसके अलावा अध्यादेश में एक प्रावधान था कि शत्रु संपत्ति के वारिस को 120 दिनों के भीतर अपनी भारतीय नागरिकता साबित करनी होगी। लेकिन जब विधेयक तैयार हुआ, तो इस प्रावधान को हटा दिया गया, जिससे शत्रु संपत्तियों पर दावे आसान हो गए। कई विश्लेषकों का मानना है कि खुर्शीद ने अपनी कानूनी और राजनीतिक पहुँच का इस्तेमाल कर राजा महमूदाबाद के पक्ष में माहौल बनाया और कॉन्ग्रेस सरकार को इस मामले में नरम रुख अपनाने के लिए मजबूर किया।

इसके पीछे की वजहें थीं, जिसमें…

  1. सलमान खुर्शीद का कॉन्ग्रेस में मजबूत प्रभाव और उनकी मुस्लिम समुदाय के बीच लोकप्रियता।
  2. राजा महमूदाबाद का कॉन्ग्रेस से पुराना रिश्ता, क्योंकि सुलैमान मियाँ दो बार कॉन्ग्रेस विधायक रह चुके थे।
  3. यूपीए सरकार की वह रणनीति, जिसमें वह मुस्लिम वोट बैंक को खुश रखना चाहती थी।

इस पूरे मामले में खुर्शीद की भूमिका को साफ तौर पर ‘वोट बैंक की राजनीति’ से जोड़कर देखा जा सकता है, क्योंकि उन्होंने इसे मुस्लिम समुदाय के हितों से जोड़ा, भले ही इसका राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर पड़ता।

मोदी सरकार का वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024, शत्रु संपत्तियों को वक्फ बनने से रोकना

मोदी सरकार ने वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 में शत्रु संपत्तियों को वक्फ बनने से रोकने के लिए कई सख्त कदम उठाए। पुराने वक्फ अधिनियम 1995 में कुछ खामियाँ थीं, जिनके चलते वक्फ बोर्ड मनमाने तरीके से संपत्तियों को वक्फ घोषित कर सकता था। उदाहरण के लिए, धारा 40 के तहत बोर्ड बिना ठोस सबूत के किसी भी संपत्ति को वक्फ बता सकता था और इसे केवल वक्फ ट्रिब्यूनल में चुनौती दी जा सकती थी। इससे कई शत्रु संपत्तियाँ जैसे मुजफ्फरनगर में लियाकत अली खान की जमीन, वक्फ के दावे में फँस गई थीं।

वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 ने इन खामियों को दूर किया और इन अहम प्रावधानों के जरिए शत्रु संपत्तियों को वक्फ बनने से रोका..

धारा 40 का खात्मा: पुराने कानून में धारा 40 वक्फ बोर्ड को अनियंत्रित शक्ति देती थी। अब इसे हटा दिया गया है, जिससे बोर्ड बिना दस्तावेजी सबूत के किसी संपत्ति को वक्फ नहीं बता सकता। इससे शत्रु संपत्तियों पर वक्फ का दावा करना लगभग असंभव हो गया है। उदाहरण के लिए – भोपाल में नवाब की संपत्तियाँ जो शत्रु संपत्ति हैं, अब वक्फ नहीं बन सकतीं।

केंद्रीय वक्फ संपत्ति पोर्टल: इस विधेयक ने एक केंद्रीय पोर्टल की व्यवस्था की है, जहाँ सभी वक्फ संपत्तियों का रिकॉर्ड पारदर्शी तरीके से रखा जाएगा। इससे केवल वैध दस्तावेजों वाली संपत्तियाँ ही वक्फ मानी जाएँगी। शत्रु संपत्तियों जैसे लियाकत अली खान की जमीन अब वक्फ के नाम पर कब्जा नहीं किया जा सकेगा।

शत्रु संपत्ति को वक्फ में बदलने पर रोक: पुराने कानून की धारा 108 और 108A जो शत्रु संपत्तियों को वक्फ में बदलने की छूट देती थीं, अब खत्म कर दी गई हैं। इससे यह सुनिश्चित हुआ है कि कोई भी शत्रु संपत्ति वक्फ नहीं बन सकती। उदाहरण के लिए -विजयपुरा (कर्नाटक) में 123 एकड़ जमीन पर वक्फ बोर्ड का दावा खारिज हुआ, क्योंकि वह शत्रु संपत्ति थी।

जिला कलेक्टर की जाँच: अब जिला कलेक्टर को वक्फ संपत्तियों की जाँच का अधिकार है। अगर कोई संपत्ति शत्रु संपत्ति निकलती है, तो कलेक्टर उसे वक्फ घोषित होने से रोक सकता है। यह प्रावधान वक्फ बोर्ड की मनमानी को रोकता है।

मुतवल्ली की जवाबदेही: विधेयक में मुतवल्ली (वक्फ संपत्ति के प्रबंधक) की जवाबदेही बढ़ाई गई है। अगर कोई मुतवल्ली रिकॉर्ड नहीं रखता या संपत्ति का दुरुपयोग करता है, तो उसे हटाया जा सकता है। इससे शत्रु संपत्तियों को गलत तरीके से वक्फ बताने की कोशिशें रुकेंगी।

मोदी सरकार ये प्रावधान न करती तो क्या होता?

अगर वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 में ये प्रावधान न किए जाते तो शत्रु संपत्तियाँ वक्फ बोर्ड के कब्जे में जा सकती थीं। उदाहरण के लिए – महमूदाबाद की संपत्तियाँ, जिनकी कीमत 50,000 करोड़ रुपये से ज्यादा थी, वक्फ के नाम पर जा सकती थीं। इससे न सिर्फ आर्थिक नुकसान होता, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरा हो सकता था, क्योंकि ऐसी संपत्तियों का दुरुपयोग देश के खिलाफ हो सकता था। साथ ही वक्फ बोर्ड की अनियंत्रित शक्तियाँ और बढ़ जातीं, जिससे आम लोगों की संपत्तियों पर भी गलत दावे हो सकते थे। जैसे, विजयपुरा में 123 एकड़ जमीन और मुनंबम (केरल) में कई संपत्तियों पर वक्फ बोर्ड ने दावे किए थे, जो शत्रु संपत्तियाँ थीं।

कॉन्ग्रेस नीत यूपीए सरकार ने 2005 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राजा महमूदाबाद को हजारों करोड़ रुपये की संपत्तियाँ लौटाने में अहम भूमिका निभाई। इस प्रक्रिया में सलमान खुर्शीद की भूमिका निर्णायक थी, जिन्होंने न सिर्फ कोर्ट में सुलैमान मियाँ का पक्ष मजबूती से रखा, बल्कि 2010 में अध्यादेश को कमजोर करने के लिए मुस्लिम सांसदों का नेतृत्व कर सरकार पर दबाव बनाया। लेकिन वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 और शत्रु संपत्ति (संशोधन) अधिनियम 2017 ने ऐसी संपत्तियों को वक्फ बनने से रोकने के लिए सख्त कदम उठाए।

मोदी सरकार ने राजा महमूदाबाद की संपत्तियों को वापस करने से इनकार कर दिया है। ये मामला कोर्ट में लंबित है और अब मौजूदा कानूनों के तहत इनका वापस राजा महमूदाबाद के वारिसों तक पहुँचना असंभव दिखता है। ऐसे में साफ है कि मोदी सरकार के लाए इन कानूनों ने न सिर्फ वक्फ बोर्ड की मनमानी पर लगाम लगाई, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि शत्रु संपत्तियाँ देश के हित में रहें। मोदी सरकार का यह कदम न सिर्फ आर्थिक और कानूनी पारदर्शिता को बढ़ाते हैं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी मजबूत करते हैं।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
I am Shravan Kumar Shukla, known as ePatrakaar, a multimedia journalist deeply passionate about digital media. Since 2010, I’ve been actively engaged in journalism, working across diverse platforms including agencies, news channels, and print publications. My understanding of social media strengthens my ability to thrive in the digital space. Above all, ground reporting is closest to my heart and remains my preferred way of working. explore ground reporting digital journalism trends more personal tone.

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