सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न और क्रुरता का आरोप लगाने वाली महिला को चेतावनी देते हुए पति और ससुराल वालों को बरी कर दिया है। कोर्ट का कहना है कि क्रूरता के लिए लगे आईपीसी की धारा 498ए का दुरुपयोग किया गया है क्योंकि इसके सबूत नहीं मिले हैं कि महिला के साथ ‘क्रूरता’ की गई।
कोर्ट ने कहा कि किसी खास दिन, समय या घटना का उल्लेख किये बिना इन धाराओं को जोड़ना अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर करता है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एससी शर्मा की खंडपीठ ने पति की अपील पर सुनवाई करते हुए पति और ससुरालवालों को बरी करने का आदेश दिया। पति का पक्ष ये था कि केवल 12 दिन साथ रहने के बाद पत्नी उसे छोड़कर चली गई थी। इसके कोई मेडिकल सबूत नहीं है कि उसने पत्नी के साथ मार-पीट की जिससे उसका गर्भपात हुआ।
साल 1999 में दर्ज एफआईआर में पत्नी ने पति और ससुरालवालों पर शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाया था। पत्नी ने अपनी शिकायत में कहा था कि उससे 2 लाख रुपए दहेज की माँग की गई थी। उसे लात-धूँसे मारे गए, जबरन नशीले पदार्थ का सेवन कराया गया। इसकी वजह से उसका गर्भपात हो गया।
कोर्ट ने ये भी कहा कि शिकायतकर्ता मेडिकल साक्ष्य भी देने में असर्मथ रही है जिसमें उसके गर्भपात की बात हो। कोर्ट का कहना है कि बगैर सबूत के केवल भावनात्मक या मानसिक परेशानी, आईपीसी की धारा 498ए के तहत आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि आपराधिक कानून में संदेह के आधार पर फैसला नहीं होता बल्कि सबूत की आवश्यकता होती है।
दारा लक्ष्मी नारायण एवं अन्य बनाम तेलंगाना राज्य एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले का हवाला भी दिया गया। कोर्ट ने कहा कि ससुराल के किसी भी सदस्य के खिलाफ ‘क्रूरता करने का’ सबूत दिये बिना उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता और अभियोजन पक्ष उसे आधार नहीं बना सकते
कोर्ट ने पुख्ता सबूत के बिना वैवाहिक विवादों में परिवार के सदस्यों को फँसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता जाहिर किया और इस बात पर जोर दिया कि इस तरह आईपीसी की धारा 498ए का दुरुपयोग इसकी सुरक्षात्मक प्रवृति को कमजोर करता है।
हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के दलील को खारिज करते हुए पति और ससुरालवालों को बरी कर दिया।