Tuesday, June 17, 2025
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नेट FDI में गिरावट पर कॉन्ग्रेस और मीडिया ने फैलाया भ्रम: जानें 2014 से 2025 के बीच कैसे मजबूत हुई भारतीय अर्थव्यवस्था, मोदी सरकार के प्रयासों से विदेशी कंपनियों का विश्वास बढ़ा

कॉन्ग्रेस पार्टी, उससे जुड़े पत्रकारों और मीडिया पारिस्थितिकी तंत्र ने भारत में एफडीआई फ़्लो की साल-दर-साल वृद्धि की अनदेखी की। उन्होंने केवल शुद्ध एफडीआई में आई गिरावट को अलग-थलग करके प्रस्तुत किया और इसके आधार पर भारतीय अर्थव्यवस्था की नकारात्मक तस्वीर पेश करने की कोशिश की।

कॉन्ग्रेस पार्टी और भारत के कई मीडिया संस्थानों ने शुक्रवार, (23 मई 2025) को देश में फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट (FDI) में आई ‘भारी’ गिरावट को लेकर रिपोर्ट्स की। इन रिपोर्टों में उन्होंने ऐसे दिखाया जैसे भारत में FDI का गिरना मतलब मोदी सरकार की नीतियों में बड़ी गड़बड़ी है जिसके कारण विदेशी कंपनियाँ अब विश्वास नहीं कर रहीं।

कॉन्ग्रेस की केरल इकाई ने मौके का फायदा उठाते हुए इस पर प्रतिक्रिया दी। एक ट्वीट में उन्होंने कहा, “भारत में विदेशी निवेशकों और देश के भीतर भारतीय निवेशकों के भरोसे में गिरावट एक गंभीर तस्वीर पेश करती है। सभी ने भारत से उम्मीदें छोड़ दी हैं, यह 11 वर्षों की विभाजनकारी राजनीति और अविवेकपूर्ण नीति निर्माण का नतीजा है।”

कॉन्ग्रेस के केरल हैंडल द्वारा किए गए ट्वीट का स्क्रीनशॉट

वामपंथी प्रचार आउटलेट ‘द वायर’ से जुड़ी पत्रकार सीमा चिश्ती ने आरोप लगाया कि भारत का शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 96.5% की भारी गिरावट के साथ रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुँच गया है।

टीएमसी के पूर्व सांसद जवाहर सरकार, जिन्हें फर्जी खबरें फैलाने के लिए जाना जाता है, उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा, “विदेशी निवेशक संघियों, भक्तों और गोदी मीडिया के दुष्प्रचार से प्रभावित नहीं होते। वे निवेश से पहले देश की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति का आँकलन करते हैं। मोदी के भारत में उनका विश्वास खत्म हो चुका है, यह नेट एफडीआई में आई भारी गिरावट से साफ झलकता है।”

नेट एफडीआई में 96% की गिरावट की खबर मुख्यधारा मीडिया में व्यापक रूप से छाई रही, लेकिन आम पाठकों को इसके प्रभावों और अर्थ को लेकर बहुत कम या कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई। कुछ रिपोर्टों में यह आरोप लगाया गया कि भारत की अर्थव्यवस्था गिरावट की ओर बढ़ रही है और मौजूदा मोदी सरकार के तहत आर्थिक प्रगति की कोई आशा नहीं बची है।

‘नेट एफडीआई’ में गिरावट के बारे में समाचार रिपोर्टों का स्क्रीनशॉट

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

इन्वेस्टोपेडिया के अनुसार, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) किसी कंपनी या सरकार द्वारा किसी विदेशी परियोजना या फर्म में किया गया दीर्घकालिक और महत्वपूर्ण निवेश होता है। भारत में इसका मतलब भारतीय कंपनियों में किया गया विदेशी निवेश है।

वित्तीय वर्ष 2014-2015 से भारत में FDI प्रवाह लगातार बढ़ा है। ऑपइंडिया ने RBI और PIB के आँकड़ों के आधार पर जो चार्ट तैयार किया है, उसके अनुसार 2014-2015 में भारत में FDI प्रवाह 45.15 बिलियन डॉलर (3.75 लाख करोड़) था, जो 2024-2025 में बढ़कर 81 बिलियन डॉलर (6.72 लाख करोड़) हो गया।

वर्ष दर वर्ष तुलना करें तो वित्तीय वर्ष 2015-2016 में FDI में 23.05% की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई, जबकि 2024-2025 में यह वृद्धि 13.60% रही।

(स्रोत: प्रेस सूचना ब्यूरो और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा प्रकाशित आंकड़े – यहाँ, यहाँ और यहाँ)

वित्तीय वर्ष 2022-2023 और 2023-2024 में शुद्ध एफडीआई में गिरावट देखी गई, हालाँकि इन वर्षों में सकल एफडीआई प्रवाह अभी भी महत्वपूर्ण था।

इसके बावजूद, कुल मिलाकर भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मजबूत बना हुआ है और दीर्घकालिक प्रवृत्ति के अनुसार यह साल-दर-साल बढ़ रहा है, जो दर्शाता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था स्थिर और बेहतर स्थिति में है।

आरबीआई के अनुसार, “लगभग सभी क्षेत्रों को चरणबद्ध तरीके से 100% एफडीआई के लिए खोल दिया गया है। अब लगभग 90% एफडीआई स्वचालित मार्ग के तहत आता है। हाल के वर्षों में हमने रक्षा, बीमा, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, दूरसंचार और अंतरिक्ष जैसे प्रमुख क्षेत्रों में उदारीकरण के कई उपाय लागू किए हैं, ताकि अर्थव्यवस्था को और अधिक खोला जा सके।”

‘नेट एफडीआई’ को लेकर विवाद

नेट एफडीआई वह अंतर होता है जो ग्रोस एफडीआई फ़्लो और भारतीय कंपनियों द्वारा किए गए विदेशी निवेश, विनिवेश तथा विदेशी संस्थाओं द्वारा धन की वापसी के बाद बचता है।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मई 2025 के लिए जारी अपने बुलेटिन में बताया कि वित्तीय वर्ष 2024-2025 में शुद्ध एफडीआई 0.4 बिलियन डॉलर रहा, जबकि पिछले वित्तीय वर्ष 2023-2024 में यह 10.1 बिलियन डॉलर था।

कुछ मीडिया रिपोर्टों ने इन दोनों आँकड़ों के बीच के अंतर को निकालते हुए दावा किया है कि नेट एफडीआई में 96.5% की गिरावट आई है, और इसे भारत की आर्थिक स्थिति में गंभीर गिरावट के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

आरबीआई द्वारा जारी मई 2025 बुलेटिन का स्क्रीनशॉट

जैसा कि दिए गए ग्राफ से स्पष्ट है, वित्तीय वर्ष 2024-2025 में ग्रोस एफडीआई पफ़्लो 81 बिलियन डॉलर रहा, जो कि 2023-2024 के 71.3 बिलियन डॉलर की तुलना में 13.6% अधिक है।

इसी समय अंतराल में भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशी निवेश और विनिवेश में भी वृद्धि देखी गई। यह दर्शाता है कि भारतीय कंपनियाँ अब विदेशों में रणनीतिक निवेश और अधिग्रहण कर रही हैं, और भारत में निवेश करने वाली विदेशी कंपनियों के लिए भी निकालना आसान हुआ है, यह दोनों ही आर्थिक परिपक्वता और मजबूती के संकेत हैं।

RBI ने अपने बुलेटिन में बताया, “इस अवधि में नेट FDI फ़्लो में गिरावट अधिक प्रत्यावर्तन और बाहरी निवेश के कारण हुई, जो इस बात का संकेत है कि भारत एक परिपक्व बाजार बन चुका है, जहाँ विदेशी निवेशक आसानी से प्रवेश और निकास कर सकते हैं। यह भारतीय अर्थव्यवस्था की सकारात्मक स्थिति को दर्शाता है।”

निष्कर्ष

उल्लेखनीय ग्रोस एफडीआई फ़्लो भारत में निवेशकों के मजबूत विश्वास को दर्शाता है, जो इस तथ्य से और भी पुष्ट होता है कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार 686.1 बिलियन डॉलर (56.95 लाख करोड़) है, जो 11 महीने से अधिक के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त है।

हालाँकि, कॉन्ग्रेस पार्टी, उससे जुड़े पत्रकारों और मीडिया पारिस्थितिकी तंत्र ने भारत में एफडीआई फ़्लो की साल-दर-साल वृद्धि की अनदेखी की। उन्होंने केवल शुद्ध एफडीआई में आई गिरावट को अलग-थलग करके प्रस्तुत किया और इसके आधार पर भारतीय अर्थव्यवस्था की नकारात्मक तस्वीर पेश करने की कोशिश की।

इन चुनिंदा और भ्रामक दावों के बावजूद, सच ये है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से कहीं अधिक मजबूत स्थिति में है और देश दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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