Monday, September 30, 2024
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MCU के 20 प्रोफेसरों पर FIR, राकेश सिन्हा ने कहा ‘शिक्षाविदों की आवाज़ दबा रहे कमलनाथ’

भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के 19 प्रोफेसरों व पूर्व कुलपति के ख़िलाफ़ एफआईर दर्ज की गई है। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय (एमसीयू) के 19 प्रोफेसरों व एक पूर्व कुलपति के ख़िलाफ़ ये एफआईआर आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) द्वारा दर्ज की गई। सभी प्रोफेसरों पर धोखाधड़ी एवं आपराधिक षड़यंत्र का आरोप दर्ज किया गया है। एफआईआर में कहा गया है कि 2003 से 2018 तक संस्थान में यूजीसी के नियमों को ताक पर रखते हुए नियुक्तियाँ की गई हैं। इन 15 वर्षों में मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार थी।

विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार दीपेंद्र सिंह बघेल ने पत्र लिखकर इस बात की शिकायत दर्ज कराई थी लेकिन इस कार्रवाई के बाद उन्होंने भी कहा कि ईओडब्ल्यू को जाँच के बाद ही कोई क़दम उठाना चाहिए था। पूर्व कुलपति बृजकिशोर कुठियाला और 19 अन्य प्रोफेसरों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है। वहीं इस पूरे घटनाक्रम पर राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने मुख्यमंत्री कमलनाथ पर निशाना साधा है। सिन्हा ने कहा कि कमलनाथ सरकार शिक्षाविदों की आवाज़ दबाने का कार्य कर रही है।

आरएसएस विचारक सिन्हा ने कहा कि नए कुलपति दीपक तिवारी की नियुक्ति में मध्य प्रदेश की कॉन्ग्रेस सरकार ने तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया। जैसा कि नियम है, महापरिषद की बैठक बुलाकर अनुमोदन करना होता है, जो इस मामले में नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि ये नियुक्ति ग़लत तरीके से हुई है। अकेडमिशियन्स फॉर फ्रीडम के बैनर तले बोलते हुए सांसद सिन्हा ने कमलनाथ सरकार पर एकपक्षीय कार्रवाई करने और आरोपितों का पक्ष नहीं सुनने का आरोप भी मढ़ा।

इस मामले को लेकर उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू और राज्यपाल आनंदी बेन पटेल को ज्ञापन सौंपने के बाद राकेश सिन्हा ने पूरे मामले पर मुख्यमंत्री कमलनाथ को घेरते हुए कहा:

“कमलनाथ सरकार के सात विधायक विद्रोह पर उतर आए हैं। ये सातों विधायक विवि के ख़िलाफ़ कार्रवाई से नाखुश हैं। कॉन्ग्रेस के तीन अन्य विधायक भी मुझसे मिलने वाले हैं। यह लड़खड़ाती हुई सरकार कभी भी गिर सकती है। अगर विवि के प्रोफेसरों पर से एफआईआर वापस नहीं हुई तो पूरे देश के शैक्षणिक संस्थाओं के साथ आंदोलन करेंगे।”

माखनलाल चतुर्वेदी यूनिवर्सिटी में गेस्ट फैकल्टी के रूप में कार्य कर चुके सिन्हा ने कहा कि ये दिल्ली विश्वविद्यालय और एमसीयू के बीच सर्विसेज के ट्रांसफर का मामला है। उनके इसके लिए दोनों जगहों से कोई सैलरी नहीं मिली। उन्होंने बताया कि उन्हें राष्ट्रपति की तरफ से पाँच लाख रुपए ज़रूर मिले लेकिन उन्होंने इन रुपयों से अपनी बीमार माँ का उपचार कराने की जगह एक एक दलित परिवार की मदद की। उन्होंने बताया कि उन्होंने इस राशि को दलित परिवार को दान दे दिया।

राकेश सिन्हा ने कमलनाथ सरकार पर राज्य में आपातकाल जैसा माहौल पैदा करने का आरोप लगाया। राकेश सिन्हा पर बिना पढ़ाई भुगतान लेने का मामला दर्ज किया गया है। एफआईआर में कहा गया है कि कुठियाला ने अपने कार्यकाल के दौरान एबीवीपी, राकेश सिन्हा सहित अन्य संस्थाओं व व्यक्तियों को फायदा पहुँचाया। सिन्हा ने कहा कि संघ से जुडी किसी भी संस्था को वित्तीय फ़ायदा नहीं पहुँचाया गया। उन्होंने कहा कि कमलनाथ दलित विरोधी हैं क्योंकि इन 20 प्रोफेसरों में से कई दलित भी हैं।

इस्लाम बनाम ईसाई: श्री लंका बम धमाके, चर्च, 200 लाशें, जाहरान हाशिम, अबु मुहम्मद…

जुम्मे की नमाज़ पढ़ी जा रही थी, और न्यूज़ीलैंड में एक ईसाई आतंकवादी ने मस्जिदों को निशाना बनाया। बात लगभग एक महीने पहले की है। उसके बाद इंग्लैंड के बर्मिंघम इलाके के कुछ मस्जिदों पर कुछ लोगों ने हथौड़े चला दिए। बयान आया कि समुदाय विशेष की जनता डर कर जी रही है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार 2016-17 में कुल 80,393 हेट क्राइम, यानी घृणाजन्य अपराध, के मामले सामने आए जो कि 2015-16 में 62,518 थे।

न्यूज़ीलैंड के ईसाई आतंकी ने साफ शब्दों में लिखा था, “मुस्लिम शरणार्थी हमारी भूमि पर अतिक्रमण कर रहे हैं। यह भूमि श्वेतों की है।” उसने यह चिंता जताई थी कि बाहर से आए मुस्लिम अधिक प्रजनन करके पश्चिमी देशों की धार्मिक जनसांख्यिकी को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं और पश्चिमी देशों की संस्कृति व शांति भंग कर रहे हैं। उसने इस्लामी आतंक द्वारा यूरोप में मची तबाही का भी ज़िक्र किया था।

जब मार्च में यह हमला हुआ और 50 लोग मरे, तब से यह एक शुरुआत की तरह देखा जाने लगा। हमें पोलिटिकली करेक्ट होकर स्वीकारने में भले ही अनंत काल लग जाए, लेकिन सत्य यही है कि बड़े आतंकी हमलों के केन्द्र में इस्लामी विचारधारा और आईसिस का झंडा है। विचारधारा से मतलब यह नहीं है कि पूरा मज़हब और हर मुस्लिम ही आतंकवादी हो गया, बल्कि यह कि जितनी भी ऐसी आतंकी घटनाएँ होती हैं, उसका सूत्रधार एक ही मज़हब का होता है। मैं मजहबी आतंक की बात कर रहा हूँ, न कि आतंक की परिभाषा में जाकर नक्सली और स्थानीय हिंसक झड़पों को इसमें शामिल कर रहा हूँ।

क्राइस्टचर्च की घटना के तुरंत बाद बर्मिंघम के मस्जिदों पर हमला और आज श्री लंका के चर्चों को निशाना बनाकर 200 जानें ले लेना, यह बताता है कि जो साम्राज्यवादी मज़हब, अब खुल कर सामने आ गए हैं। भले ही तमाम मीडिया हाउस और अतंरराष्ट्रीय संस्थाएँ श्री लंका की घटना को कवर करते हुए अंत में ‘लिट्टे’ आतंकी संगठन की बात कर देते हैं, लेकिन जाहरान हाशिम और अबु मुहम्मद नाम के आत्मघाती हमलावर, इसे मजहबी बात ही बनाते दिखते हैं। बाकी हमलावरों के नाम भी धीरे-धीरे सामने आएँगे, लेकिन अभी तक की सूचना के हिसाब से ये मसला इस्लाम बनाम ईसाई का ही लग रहा है।

दो मज़हब, जिनका इतिहास आक्रमण, उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद, हिंसा, युद्धों और आतंकी वारदातों से सना हुआ है, अब एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े दिखते हैं। आज भी इनका केन्द्रीय उद्देश्य लोगों को ईसाई और मुस्लिम बनाना ही है। भारत जैसा देश इन दोनों मज़हबों के लिए फ़ाइनल फ़्रंटियर रहा है जहाँ सैकड़ों सालों के शासन और अत्याचार के बाद भी इन दोनों मज़हबों के शासकों को यहाँ की हिन्दू आबादी को कन्वर्ट करा कर पूरी तरह से ईसाई या इस्लामी बनाने में बहुत ज़्यादा सफलता नहीं मिली।

लेकिन, कोशिशें जारी हैं। आतंकी वारदातों के आलोक में, आज आलम यह है कि यूरोप जैसे महादेश के लगभग हर बड़े शहर में इस्लामी आतंक की छाप पड़ चुकी है, और पोलिटिकली करेक्ट होने के चक्कर में ये देश न सिर्फ इस्लामी आतंक को इस्लामी कहने में शर्माते रहे बल्कि सीरिया जैसे मुल्कों के शरणार्थियों को अमेरिकी स्टेट-स्पॉन्सर्ड आतंक के बाद अपने देश में जगह देते रहे।

हालात ऐसे बिगड़े कि जर्मनी में नए साल पर इन शरणार्थियों ने महिलाओं के साथ रेप किया, छेड़छाड़ किया और स्वीडन को विश्व का रेप कैपिटल बना दिया। स्वीडन दुनिया के शांत जगहों में से एक था, फिर उन्होंने मानवतावश शरणार्थियों को जगह दी, और आज की तारीख़ में हर एक लाख की आबादी पर बलात्कार के प्रतिशत में यह दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल हो चुका है।

पैटर्न वही रहा, पहले शरण माँगी, फिर अपने इलाके बनाए, फिर इलाकों में दूसरों को आने से मना किया, फिर अपने अधिकारों की बात करने लगे, और फिर अपराध अचानक से बढ़ गए। फ़िलहाल, स्वीडन ने अब इन्हें स्किल ट्रेनिंग देकर कहीं और भेजने की नीति अपनाई है ताकि वो कहीं और जाकर रोजगार कर सकें, उन्हें स्वीडन की नागरिकता या रेज़िडेंसी नहीं दी जाती।

ज़ाहिर है कि यूरोप अपने ख़ूनी इतिहास के दौर से बाहर आने के बाद, पूरी दुनिया को लूटने और ग़ुलाम बनाने के बाद, आज स्वयं क़रीब-क़रीब निगेटिव ग्रोथ का शिकार है, जहाँ हर देश अपने अस्तित्व को बचाने के लिए लड़ रहा है। लूट का माल ब्रिटेन और स्पेन जैसों को पचास साल से ज्यादा मदद नहीं कर पाया। ग्रीस, इटली, स्पेन और बाकी कई देशों में बेरोज़गारी चरम पर है, लोग सरकारों से नाराज हैं।

और इन्हीं मौक़ों पर बेल्जियम से लेकर फ़्रांस तक, मैड्रिड, बार्सीलोना, मैन्चेस्टर, लंदन, ग्लासगो, मिलान, स्टॉकहोम, फ़्रैंकफ़र्ट एयरपोर्ट, दिजों, कोपेनहेगन, बर्लिन, मरसाई, हनोवर, सेंट पीटर्सबर्ग, हैमबर्ग, तुर्कु, कारकासोन, लीज, एम्सटर्डम, अतातुर्क एयरपोर्ट, ब्रुसेल्स, नीस, पेरिस में या तो बम धमाके हुए या लोन वूल्फ अटैक्स के ज़रिए ट्रकों और कारों से लोगों को रौंद दिया गया। हर बार आईसिस या कोई इस्लामी संगठन इसकी ज़िम्मेदारी लेता रहा और यूरोप का हर राष्ट्र अपनी निंदा में ‘इस्लामोफोबिक’ कहलाने से बचने को लिए इसे सिर्फ आतंकी वारदात कहता रहा।

पिछले पाँच सालों में यूरोप में 20 से ज़्यादा बड़े आतंकी हमले हुए हैं, जिसमें महज़ 18 महीने में 8 हमले सिर्फ फ़्रान्स में हुए। इस्ताम्बुल में तीन बार बम विस्फोट और शूटिंग्स हुईं। बेल्जियम, जर्मनी, रूस और स्पेन इनके निशाने पर रहे। यूरोपोल द्वारा 2017 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार आईसिस ने यूरोप में आतंकी हमलों के लिए वहाँ शरण पाने वाले मुस्लिमों की मदद ली। स्वीडन की न्यूज एजेंसी टिडनिन्गारनास टेलिग्रामबायरा के अनुसार पश्चिमी यूरोप में हुए 37 हमलों में दो तिहाई हमलावर (68 में से 44) घृणा फैलाने वाले लोगों के प्रभाव में आकर हमला करने को तैयार हुए। उनका रेडिकलाइजेशन ऑनलाइन नहीं था, बल्कि उन्हें निजी तौर पर मिलने के बाद ऐसा करने को कहा गया, और वो तैयार हुए।

ज़ाहिर है कि जो लोग सताए गए हैं, वो एक समय पर इन सबसे पक जाएँगे। शायद बड़ी संस्थाएँ भी पक जाएँगी क्योंकि दोनों में होड़ लगी है कि किसके मज़हब को सबसे ज़्यादा लोग अपनाएँ। ऐसे में पीड़ित आबादी का एक व्यक्ति व्हाइट सुप्रीमेसिज्म या ‘श्वेतों की धरती’ के लिए हथियार उठा कर, अगर न्यूज़ीलैंड के मस्जिदों पर हमला कर देता है, तो ज़ाहिर है कि वैसे लोगों को बल मिलेगा जो ऐसा करना चाहते थे।

कल को यह पता चले कि जैसे आईसिस एक आतंकी समूह की तरह दुनिया हर गैरमुस्लिम आबादी को निशाना बना रहा है, वैसे ही ईसाई भी इस्लामी मुल्कों की आबादी को अपना निशाना बनाने लगें। ऐसी स्थिति कोई नहीं चाहता लेकिन बर्मिंघम में पाँच मस्जिदों पर लोगों ने क्यों हमला किया? आखिर एक साल में हेट क्राइम में लगभग 30% की बढ़ोतरी क्यों हो गई?

आज श्री लंका में चर्चों को निशाना बनाया गया। यहाँ तो उद्देश्य स्पष्ट है कि ईसाई निशाने पर थे। कुछ बड़े होटलों को भी निशाना बनाया गया जहाँ ईस्टर की प्रार्थनाएँ हो रही थीं, और कुछ विदेशी मौजूद थे। श्री लंका के लोग तो बाहर जा कर किसी दूसरे देश में आतंक नहीं मचाते, फिर इनके यहाँ के ईसाईयों को क्यों निशाना बनाया गया?

ज़ाहिर है कि यहाँ देश तो पिक्चर में है ही नहीं, यहाँ दूसरे मज़हब को टार्गेट करना था, वो जहाँ मिला इन्होंने कर दिया। श्री लंका जैसा छोटा देश ऐसी वारदातों के लिए उपयुक्त लगा होगा क्योंकि उन्हें लिट्टे की समाप्ति के बाद कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं झेलना पड़ा था, और उन्हें इसकी भनक भी न लगी हो।

इसी समय, एक और बात ज़रूरी है कहनी। वो यह कि हमें हर ऐसी आतंकी घटना के बाद अपने देश की सुरक्षा एजेंसियों को धन्यवाद देना चाहिए कि हमारे यहाँ वैसा हमला नहीं हुआ। ऐसे हमले हर दिन होते हैं, और कहीं न कहीं दसियों लोग मारे जाते हैं। चूँकि हमारी सुरक्षा में हमारे देश का सूचना तंत्र और एजेंसियाँ लगी होती हैं, तो हम ऐसे ख़तरों से बच जाते हैं। दो सालों में एक चूक होती है, और पुलवामा घटित हो जाता है। आतंकियों को एक दिन चाहिए आरडीएक्स का कार लेकर भिड़ जाने में, सरकारों को हर दिन मुस्तैद होना पड़ता है क्योंकि हमले की योजना हर दिन बनती है।

टीम मोदी बनाम ‘महामिलावट’: BJP ने जारी किए कुछ मजेदार एनिमेटेड वीडियो

सात चरणों के लोकसभा चुनाव में तीसरे चरण का चुनाव प्रचार लगभग थमने वाला है। भाजपा अभी तक अपनी बढ़त बनाए हुए है न सिर्फ राजनीतिक धरातल पर बल्कि प्रचार अभियान में भी। जबकि विपक्षी गठबंधन के भीतर नेतृत्व की कमी साफ दिखाई दे रही है। जिसे टारगेट करते हुए बीजेपी ने कुछ अनूठे एनिमेटेड वीडियो जारी किए हैं।

भाजपा के ट्विटर हैंडल ने अवसरवादी महागठबंधन के निहित विचारों को लक्षित करने के लिए एनिमेटेड वीडियो की एक श्रृंखला पोस्ट की है। भाजपा ने आईपीएल और विश्व कप के साथ क्रिकेट की थीम और फुटबॉल जैसे अन्य खेलों का उपयोग करते हुए अपने सन्देश को आसान कर मतदाताओं को यह बताने की कोशिश की है कि कैसे भाजपा के पास एक निश्चित नेतृत्व और महागठबंधन के भीतर नेतृत्व शून्यता है।

वीडियो की एक श्रृंखला में, भाजपा ने उन्हें मिलावटी गठबंधन बताते हुए महागठबंधन पर कटाक्ष किया है। एनिमेटेड वीडियो में दर्शाया गया है कि गठबंधन के नेता बनने के लिए अवसरवादी क्षेत्रीय नेता आपस में कैसे लड़ रहे हैं। वीडियो की टैगलाइन है – “ये महामिलावट की टीम जाएगी हार, फिर एक बार मोदी सरकार।

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी पर कटाक्ष करते हुए, भाजपा ने उनके अदूरदर्शी और दिशाहीन नेतृत्व को लेकर भी कुछ वीडियो जारी किए हैं।

अपने वीडियो के माध्यम से, भाजपा ने लोगों को यह बताने का प्रयास किया है कि पीएम मोदी के नेतृत्व में, सरकार ने पाकिस्तान में आतंकी शिविरों पर हमले करने के साथ आतंक पर कड़ी कार्रवाई की है। इसमें मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली पिछली सरकार की भी आतंक और पाकिस्तान के प्रति नरमी बरतने के लिए आलोचना की गई है।

कल कॉन्ग्रेस ने ‘भक्त चरित्र’ जारी कर बीजेपी पर वॉर करना चाहा था लेकिन कॉन्ग्रेस का वह वीडियो बीजेपी कम हिंदुत्व पर प्रहार ज़्यादा था – और यही बैक फायर कर गया। आज बीजेपी ने खेल-खेल में विपक्ष पर करारा हमला भी किया और खेलों का प्रचार भी। जिसे सोशल मीडिया पर हाथों-हाथ लिया गया। अभी तो चुनाव प्रचार के चार महत्वपूर्ण चरण बाकी हैं। पता नहीं बीजेपी ने अभी कितने रहस्य बचाकर रखे हैं। लेकिन जो भी हो 2019 का लोकसभा चुनाव धीरे-धीरे और दिलचस्प होता जा रहा है।

जनता से छिपा कर अखिलेश के मंच पर यूँ लगाए जाते हैं दो-दो AC, तस्वीरें वायरल

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की तस्वीरें वायरल हो रही हैं। इन तस्वीरों में अखिलेश यादव को भाषण देते हुए देखा जा सकता है। भाषण देते हुए अखिलेश यादव के बगल में एक नहीं बल्कि दो एयर कंडीशनर (AC) इनस्टॉल किए गए देखे जा सकते हैं। इन एयर कंडीशनरों को इस तरह छिपा कर फिट किया जाता है जिससे जनता की नज़र इन पर न पड़े। बड़ी चालाकी से एक छोटी-सी दीवार बनाकर इन्हें फिट कर दिया जाता है जिससे भाषण देने वाले नेताओं को गर्मी नहीं लगे। धूप में परेशान हो रही जनता यही समझती है कि उनकी तरफ उनके नेता भी भरी गर्मी में मेहनत कर रहे हैं, भाषण दे रहे हैं लेकिन होता इसके उलट ही है।

पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश की इन तस्वीरों के वायरल होने के बाद उनके चाचा और सपा से बग़ावत कर अलग पार्टी बना चुके शिवपाल यादव ने निशाना साधा है। शिवपाल ने पूछा कि अगर समाजवाद एसी केबिन्स तक ही सीमित है तो अखिलेश ज़मीन पर कैसे काम कर पाएँगे? अखिलेश यादव की तस्वीर उनकी मैनपुरी में हुई रैली से वायरल हुई है। इस रैली में वहाँ से लोकसभा चुनाव लड़ रहे मुलायम सिंह यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती भी शामिल थी। जहाँ से इन नेताओं को भाषण देना था, वहीं पर दो एसी एक के ऊपर एक लगाए गए थे

इन तस्वीरों के वायरल होने के बाद सोशल मीडिया में लोगों ने अखिलेश यादव पर जमकर निशाना साधा। लोगों ने कहा कि अखिलेश समाजवाद की नई परिभाषाएँ गढ़ रहे हैं। कुछ लोगों ने सवाल किया कि ख़ुद हर जगह एसी लेकर चलने वाले अखिलेश आख़िर ग़रीबों के लिए काम करने का वादा कैसे कर सकते हैं? बता दें कि सपा-बसपा गठबंधन होने के बाद मैनपुरी में पहली बार माया और मुलायम ने एक साथ मंच साझा किया। मुलायम सिंह मैनपुरी से सपा प्रत्याशी हैं। वहीं सपा छोड़ चुके शिवपाल यादव फ़िरोज़ाबाद से चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने सपा से अलग होकर गतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया का गठन किया है।

मुलायम सिंह के तेवरों से अक्सर पता चलता रहा है कि वो सपा-बसपा गठबंधन होने और उसके बाद शून्य लोकसभा सीटों वाली बसपा को सीट शेयरिंग के तहत अधिक सीटें देने से नाराज़ हैं। उन्होंने एक बार कहा था कि अपने ही लोग पार्टी को बर्बाद कर रहे हैं। मुलायम सिंह यादव संसद में मोदी के फिर से प्रधानमंत्री बनने की बात भी कह चुके हैं

‘लिबरलों’ की ट्रोलिंग से Vistara ने किया ट्वीट डिलीट, मेजर जनरल के अभिनंदन का किया था ‘गुनाह’

पत्रकारिता का समुदाय विशेष, जो अपने-आप को ‘लिबरल’ कहता है, की दुर्भावनापूर्ण ट्रोलिंग के चलते विस्तारा एयरलाइन्स ने अपना वह ट्वीट हटा दिया है, जिसमें उन्होंने भारत के युद्ध नायक मेजर जनरल जीडी बख्शी का अभिनन्दन किया था। मेजर जनरल बख्शी विस्तारा के हवाई जहाज से यात्रा कर रहे थे और एयरलाइन्स ने उनका स्वागत करते हुए एक ट्वीट किया था, जिसमें उनकी देश सेवा के लिए उन्हें धन्यवाद किया गया था।

नहीं आया पत्रकारिता के समुदाय विशेष को रास, जमकर की ट्रोलिंग

एक युद्ध नायक का इतना सा सम्मान भी वाम-चरमपंथी ‘लिबरल’ धड़े के लिए असह्य हो गया, और उन्होंने बुरी तरह ट्रोल कर विस्तारा को अपमानित करना शुरू कर दिया। खुद को ‘समाज का पथ-प्रदर्शक’ कहने वाले पत्रकार आम ट्रोलों की आलोचना तो दूर की बात, एक सुर में गाते नजर आए। हर समय मॉब-लिंचिंग का खटराग छेड़ने वाले देश के ही सैनिक की मॉब-लिंचिंग में शामिल होने कूद पड़े।

हटाया विस्तारा ने ट्वीट  

अंततः लगातार ट्रोलिंग और बहिष्कार की धमकी इतने ‘बड़े’ और ‘ताकतवर’ पत्रकारों द्वारा दिए जाने के बाद विस्तारा ने यह ट्वीट हटा दिया।

विस्तारा के ट्वीट की लिंक पर जाने पर यह आ रहा है

कुछ देर पहले ही ऑप इंडिया ने “Vistara एयरलाइन्स ने भूतपूर्व मेजर जनरल का किया सम्मान, ‘लिबरल’ ट्रॉल्स को लगी मिर्ची” शीर्षक से खबर चलाई थी। उस खबर में विस्तारा के ट्वीट को एम्बेड किया गया था। नीचे आप उस ट्वीट को देख सकते हैं।

क्यों नहीं पसंद करता है जीडी बख्शी को पत्रकारिता का समुदाय विशेष?

पत्रकारिता के समुदाय विशेष का पसंदीदा देश है पाकिस्तान- और उसके खिलाफ मेजर जनरल बख्शी दो-दो युद्धों (1971 व 1999) में भाग ले चुके हैं। यही नहीं, कारगिल के युद्ध में उनके सैन्य नेतृत्व का अभिनन्दन करते हुए उन्हें विशिष्ट सेवा पदक से भी नवाजा गया था। उनके बड़े भाई भी 1965 के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे।

इसके अलावा सेवानिवृत्त होने के बाद भी मेजर जनरल बख्शी पाकिस्तान और आतंकवाद के साथ कठोरतम बर्ताव करने के पक्षधर हैं। वह खुलकर खुद को राष्ट्रवादी भी कहते हैं- यह भी इस ‘समुदाय विशेष’ के लिए असह्य है।

‘मैं अपने पापा की लाडली हूँ, लेकिन अब वो मेरा चेहरा तक नहीं देख पाते’

अभी कुछ दिन पहले मेघना गुलज़ार के निर्देशन में बन रही फ़िल्म ‘छपाक’ का पहला पोस्टर जारी किया गया। दीपिका पादुकोण अभिनीत यह फ़िल्म एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की ज़िदगी पर बन रही है। 15- 16 साल की रही होंगी लक्ष्मी जब उनके चेहरे पर एसिड से हमला किया गया।

लक्ष्मी अग्रवाल एसिड अटैक सर्वाइवर हैं!

जी! सर्वाइवर हमें अपने शब्दकोश को भी दुरुस्त करना होगा, सर्वाइवर: जिसमें जीने की इच्छा, लड़ने की ताक़त इतनी हो की धातु को गलाने वाला एसिड भी उसकी जीवटता को ना गला पाया हो। पीड़िता न लिखिएगा कभी, पीड़िता लिखकर ऐसा लगने लगता है कि मैं ‘उसे’ कमज़ोर कर रही हूँ! उसकी जीवटता के सामने उसकी पीड़ा का समर्पण है। वह सर्वाइवर है!!!!

बिहार भागलपुर की बच्ची जो अभी अस्पताल में है उसे एसिड से नहलाया गया है! महिला-विरोधी हर घटना अपनी पिछली घटना से भयावह होती है। क्योंकि साधन (विशेष तौर पर तकनीकी) तो बढ़ते चले गए लेकिन प्रशासन की भूमिका आज भी घटना के बाद ही शुरू होती है!

एसिड से नहलाना, मैं बार-बार पढ़ती हूँ ‘नहला दिया गया’ क्योंकि एसिड डाला गया है उस बच्ची पर, उसका गैंग रेप उसके घर में हो रहा था, हथियार के बल पर वो भी उसकी माँ के सामने। मना करने पर ऊपर से नीचे तक उसके शरीर को एसिड से भिगो दिया गया।

इसके बाद मैं क्या लिखूँ! जो धातु को गला दे उसकी बूँद जब शरीर पर पड़ेगी तो उस असहनीय तक़लीफ़ को आप क्या कहेंगे? मैं कोई शब्दों की जादूगर नहीं, इसलिए उस दर्द को बयाँ कर पाना मेरे बस की बात नहीं।

एक इंटरव्यू में लक्ष्मी कह रहीं थीं कि एसिड डालने के बाद त्वचा वैसे ही गलना शुरू होती है जैसे आग में प्लास्टिक, जिसकी गंध भी बिल्कुल वैसी ही होती है।

टीवी पर दिए गए साक्षात्कार में रेशमा क़ुरैशी (चेहरे के साथ-साथ एसिड अटैक में रेशमा की आँख चली गई) कहती हैं, “मैं अपने पापा की लाडली हूँ, पापा ने मेरी सारी ख़्वाहिशें पूरी कीं, लेकिन अब वे मेरा चेहरा नहीं देख पाते उन्हें लगता है मेरी बेटी को आँख मिल जाए।”

भागलपुर की बच्ची को तो एसिड से नहला दिया गया, अगर हम योनि के साथ पैदा नहीं होतीं तो बलात्कार नहीं होता? एसिड अटैक नहीं होता?

मेरा मन कहता है तब भी होता।

ऐसा क्यों कह रही हूँ मैं?

क्योंकि ‘आपको’ ना/ NO सुनने की आदत नहीं।

अगर ना बोला तो बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, एसिड अटैक। यह एक तरह की कुंठा ही है जो ‘उन्हें’ NO नहीं सुनने देती।

अंग्रेज़ी में ‘Consent’ बोलते हैं और हिन्दी में सहमति। पति, ब्वॉयफ्रेंड, दोस्त या दफ़्तर का बॉस हो संबंध में बाप/ भाई/ चाचा/ मामा लगता हो किसी को हक़ नहीं कि वह उसकी सहमति के बिना उसे छुए। यह देह हमारी है, जो किसी के भोग की वस्तु नहीं।

भागलपुर में 12वीं में पढ़ने वाली उस बच्ची के साथ घर में ही गैंग रेप हो रहा था। प्रतिरोध के बदले एसिड! क्या हम लोग हाथ जोड़ माफ़ी माँगने के भी क़ाबिल हैं कि हमें माफ़ करो हमने अपने पुरुषों को ‘ना’ सुनना नहीं सिखाया। हमने अपनी कौन-सी ज़िम्मेदारी निभाई है?

एसिड बेचने से पहले कुछ गाइडलाइन्स हैं। गाइडलाइन्स तो हमसे फॉलो होगा नहीं। हम उन लोगों में से हैं जो ट्रेन में पॉटी कर बिना पानी दिए उठ जाएँ तो गाइडलाइन्स कौन याद रखेगा! और प्रशासन तो घटना के बाद मुआवज़ा बाँटने के लिए है!

एसिड अटैक वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कुछ गाइडलाइन्स जारी कर रखे हैं जो काग़ज़ो में ही सीलबंद है, जिसका आमतौर पर मज़ाक ही बनाया जाता है। गाइडलाइन्स इस प्रकार हैं:

  • 18 वर्ष से कम आयु वर्ग को एसिड नहीं बेचा जाएगा
  • एसिड ख़रीदने वाले को फोटो आईडी देना अनिवार्य है
  • दुकानदार को ख़रीददार का ब्योरा रजिस्टर में दाखिल करना होगा
  • एसिड ख़रीदने वाले को उसे ख़रीदने का उद्देश्य भी बताना होगा
  • एसिड की बिक्री सिर्फ़ लाइसेंसी दुकानों से ही हो सकती है
  • दुकानों पर मौजूद एसिड के स्टॉक की जानकारी स्थानीय प्रशासन को देनी होगी और ‘प्रशासन को जानकारी लेनी होगी’
  • स्कूल लैब आदि जहाँ अधिक मात्रा में एसिड की ज़रूरत होती उन्हें प्रशासन से अनुमति लेनी होगी
  • ग़ैर-क़ानूनी तरीके से एसिड बेचने वालों पर जुर्माना और जेल भी जाना पड़ सकता है

लेकिन बाक़ी प्रदेशों की तो बात छोड़ दें देश की राजधानी दिल्ली में साइकिल में कोकाकोला की बोतल में एसिड खुलेआम बेचा जा रहा है। किसी को नहीं पता कि एसिड बेचने के लिए कोई गाइडलाइन्स भी हैं!

सो गाइडलाइन्स तो हम फॉलो कर नही पाएँगे क्योंकि उसकी हमें आदत नहीं और न ही प्रशासन करवा पाएगी। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि प्रशासन को तो आदत ही है घटना के बाद आने की। अत: तात्कालिक उपाय यही है कि एसिड बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया जाए। किसी भी काम के लिए एसिड मिलना ही नहीं चाहिए!!!

अब धातु गलाने के लिए सर्राफ़ा व्यापारी क्या करेंगे यह वही लोग जानें, स्कूलों की लैब में अगर एसिड नहीं उपलब्ध रहेगा तो हमें यह परिस्थितियाँ भी स्वीकार्य हैं, लेकिन हम धातु गलाने की एवज में अपनी बच्चियों की देह नहीं गला सकते! ऐसा इसलिए क्योंकि हमें अपने देश-समाज में और सर्वाइवर नहीं चाहिए!!

लेखिका: प्रीति परिवर्तन

ईसाई परिवार ने कराया था धर्मान्तरण, रात में धोखे से बुलाया: सुबह लहूलुहान मिली बहन, अस्पताल में मौत

पटना से एक चौंकाने वाली ख़बर सामने आई है। शहर के बुद्धा कॉलोनी इलाक़े में स्थित क्वालिटी एन्क्लेव अपार्टमेंट परिसर में एक छात्रा अधमरी मिली। उसके शरीर पर घाव के कई निशान थे। उसके जांघ की हड्डियाँ भी टूटी हुई थी। उसके हाथ, कलाई, पीठ और ललाट पर गहरी चोट और खरोंच के निशान थे। लहूलुहान अवस्था में तड़पती मिली छात्रा को इलाज के लिए बाद में पीएमसीएच ले जाया गया, जहाँ उसकी मृत्यु हो गई। स्थानीय लोगों का मानना है कि पीड़िता के साथ पहले दुष्कर्म किया गया, विरोध करने पर बुरी तरह पीटा गया और अपार्टमेंट की छत से फेंक दिया गया। छात्रा अपनी सहेली यूनिश के घर गई थी। पुलिस यूनिश के भाई बोया व एक अन्य युवक को हिरासत में लेकर पूछताछ कर रही है।

दैनिक जागरण अख़बार के स्थानीय संस्करण में छपी ख़बर

पूरे घटनाक्रम की जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार, छात्रा कविता (बदला हुआ नाम) और यूनिश सहेलियाँ थीं। यूनिश को वो कई दिनों से जानती थी। यूनिश का ईसाई परिवार पहले भी लोगों का धर्म परिवर्तन कराता रहा है। आसपास के लोगों से इस परिवार का व्यवहार सही नहीं है। स्थानीय लोगों ने बताया कि चीन कोठी की रहने वाली एक लड़की की इस परिवार ने मदद की थी और बदले में उसका धर्म परिवर्तन करा लिया था। इतना ही नहीं, उस लड़की की शादी एक ऐसे ईसाई लड़के से करा दी थी, जो उसे गर्भवती कर छोड़ गया था।

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घटना की रात कविता (बदला हुआ नाम) यूनिश के बुलाने पर उसके अपार्टमेंट में गई थी। यूनिश से प्रभावित होकर उक्त छात्रा ने भी अपना धर्म बदल लिया था। रात 2 बजे यूनिश ने छात्रा को अपने पिता के हॉस्पिटल में भर्ती होने की बात कह अपने घर बुलाया था। उसने अकेले होने और डर लगने की बात कह उसे घर बुलाया और कहा कि उसका भाई उसे फिर वापस उसके घर छोड़ देगा। सीसीटीवी फुटेज के अनुसार, रात के ढाई बजे छात्रा को गेट फांदकर अपार्टमेंट में घुसते हुए देखा गया। वहाँ एक युवक उसे सहारा दे रहा था।

इसके बाद डस्टर गाड़ी से चार लड़के आए थे। पीड़िता का भाई भी अपने बहन की वहाँ होने की सूचना मिलने पर अपार्टमेंट में पहुँचा लेकिन गार्ड ने उसे अंदर नहीं जाने दिया। थोड़ी देर बाद किसी के गिरने की आवाज़ आई। जब उसका भाई अंदर घुसा तो उसने देखा कि उसकी बहन ज़मीन पर पड़ी तड़प रही है। जब कोई भी मदद के लिए सामने नहीं आया तो भाई अपनी अधमरी बहन को कंधे पर उठाकर अपार्टमेंट से बाहर लाया। राहगीरों की मदद से पीड़िता को अस्पताल पहुँचाया गया, जहाँ उसने दम तोड़ दिया। घटना के बाद बेकाबू भीड़ ने अपार्टमेंट के बाहर व अंदर घुसकर तोड़फोड़ की और पुलिस मूकदर्शक बनी रही।

यूनिश की माँ एनजीओ चलाती है। ये परिवार मिजोरम का रहने वाला है। यूनिश के फ्लैट से छात्रा का दुपट्टा बरामद किया गया है। उसका मोबाइल छत पर पड़ा था तो चप्पल सीढ़ियों पर पड़े मिले। गार्ड रूम में भी ख़ून के धब्बे मिले। अब तक पुलिस किसी फाइनल नतीजे पर नहीं पहुँची है। असल में पीड़िता के भाई ने रात को यूनिश के फोन पर कॉल भी किया था। यूनिश ने कहा था कि खुशबू उसके साथ है और दोनों पढ़ रही हैं लेकिन छात्रा से उसके भाई की बात नहीं कराई थी। तभी उसके भाई को शक हो गया था।

डिप्रेशन में नहीं थे मेरे पति, उन्हें जल्द ढूँढ कर लाएँ: बंगाल से लापता चुनाव अधिकारी की पत्नी ने लगाई गुहार

पश्चिम बंगाल के नादिया ज़िले के रानाघाट से लापता चुनाव अधिकारी अर्नब रॉय की पत्नी अनिशा जैन ने कहा कि उनके पति अवसादग्रसित नहीं थे। सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया गया है, जिसमें उन्होंने इस बात को पूरी तरह से नकार दिया कि उनके पति डिप्रेशन में थे। उन्होंने अपने पति को ढूँढने और न्याय की अपील भी की।

ख़बर के अनुसार, नदिया के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि 30 वर्षीय अर्णब रॉय नामक अधिकारी चुनाव ड्यूटी के लिए अपने सरकारी आवास से बृहस्पतिवार (18 अप्रैल) की सुबह बिप्रदास चौधरी पॉलिटेक्निक कॉलेज के लिए निकले लेकिन दोपहर बाद से उन्हें नहीं देखा गया। अधिकारी ने बताया कि अर्णब का वाहन कॉलेज के बाहर पार्क किया हुआ पाया गया।

जिला पुलिस ने बताया कि उनके दोनों मोबाइल फोन बंद थे और उनकी अंतिम लोकेशन नदिया ज़िले में शांतिपुर के पास बताई गई। एक अन्य पुलिस अधिकारी ने बताया कि शांतिपुर के बाद उनकी लोकेशन का पता नहीं चल पाया क्योंकि वहाँ से उनका फोन बंद आ रहा है।

जिला मजिस्ट्रेट के साथ भी हुआ था कुछ दिन पहले झगड़ा

प्रारंभिक जाँच में यह पता चला था कि रॉय का नदिया के ज़िला मजिस्ट्रेट सुमित गुप्ता के साथ कुछ दिनों पहले कथित रूप से झगड़ा हुआ था। गुप्ता और रॉय का झगड़ा निर्वाचन के सिलसिले में ड्यूटी को लेकर हुआ था। इस बीच आयोग ने रॉय की जगह नए अधिकारी को तैनात कर दिया। उल्लेखनीय है कि राणाघाट संसदीय क्षेत्र को तृणमूल कॉन्ग्रेस का गढ़ माना जाता है और वहाँ चौथे चरण में 29 अप्रैल को मतदान होगा।

गुप्ता ने झगड़े की बात से किया मना

गुप्ता से जब इस संबंध में संपर्क किया गया तो उन्होंने रॉय के साथ किसी प्रकार का झगड़ा होने से इनकार किया। गुप्ता ने पीटीआई को बताया था, “जिस किसी ने आपको यह सूचना दी है, उसने झूठी जानकारी दी है। हमारे बीच कुछ नहीं हुआ था। हमने उनकी तलाश के लिए पहल की है।” विफल खोज अभियान के बाद जिला प्रशासन द्वारा कृष्णानगर कोतवाली में उनके लापता होने की शिकायत दर्ज कराई गई थी।

पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा की कई ख़बरें

गुरुवार को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के शुरू होते ही, पश्चिम बंगाल से बड़े पैमाने पर लगातार राजनीतिक हिंसा और चुनावी हिंसा की ख़बरें सामने आईं। एक ख़बर यह भी आई थी कि राज्य के रायगंज निर्वाचन क्षेत्र में एक मुस्लिम बहुल गाँव के हिन्दू निवासियों को मतदान करने से रोक दिया गया था।

एक अन्य मामले में, दार्जिलिंग निर्वाचन क्षेत्र के चोपरा में व्यापक हिंसा देखी गई थी, जहाँ उपद्रवियों ने मतदाताओं को वोट डालने से रोकने की कोशिश की थी। एक अन्य घटना में, 22 वर्षीय भाजपा कार्यकर्ता शिशुपाल शाहिश की हत्या कर दी गई थी और उनके शव को पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में एक पेड़ पर लटका दिया गया था।

अगर एक हत्या करने वाला गोडसे आतंकी है तो ‘अल्लाहु अकबर’ बोलकर लाशें बिछाने वाले कौन?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगस्त 2015 में दुबई के दौरे पर थे। जैसा कि वो अधिकतर विदेशी दौरों में करते हैं, इस समृद्ध राष्ट्र के दौरे पर भी प्रधानमंत्री ने वहाँ रह रहे भारतीय समुदाय को सम्बोधित किया। इस दौरान उन्होंने एक बहुत ही गंभीर मसला उठाया, जो किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा शायद ही पहले उठाया गया हो। इस रैली में प्रधानमंत्री ने वैश्विक समुदाय द्वारा अभी तक आतंकवाद को परिभाषित नहीं किए जाने को लेकर नाराज़गी जताई। उन्होंने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र में लम्बे समय से ऐसा प्रस्ताव अटका पड़ा है लेकिन इसपर आम सहमति नहीं बन पा रही है। प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र को इसीलिए आड़े हाथों लिया था क्योंकि संयुक्त राष्ट्र अभी तक यह निर्णय नहीं कर पाया है कि आतंकवाद क्या है। इसके अलावा उन्होंने पूछा था कि आतंकवाद का समर्थक कौन सा देश है और किस देश को आतंकवाद से पीड़ित माना जाए?

अब फ़िल्म निर्देशक विशाल भारद्वाज ने आतंकवाद को लेकर नई परिभाषा गढ़ी है। उन्होंने आज़ाद भारत के पहले आतंकवादी के नाम की भी घोषण कर दी। इसमें कोई शक़ नहीं कि विशाल एक अच्छे फ़िल्म निर्माता एवं निर्देशक हैं और शेक्सपियर के नाटकों का फ़िल्मी चित्रण करने में उन्हें महारत हासिल है। लेकिन, इसका अर्थ ये कतई नहीं है कि आतंकवाद को लेकर वो ऐसी परिभाषा बना दें, जिससे हर अपराधी ‘आतंकी’ ही कहलाए। विशाल भारद्वाज ने अपनी ट्वीट में लिखा कि नाथूराम गोडसे आज़ाद भारत का प्रथम आतंकवादी था। इसके लिए स्पष्टीकरण देते हुए उन्होंने बहुत अजीब सा कारण दिया। भारद्वाज के अनुसार अगर वैचारिक मतभेदों के आधार पर कोई किसी की हत्या करता है तो वो उन सभी को आतंकित करता है जो उससे सहमत नहीं हैं।

विशाल भारद्वाज की ये परिभाषा उसी प्रोपेगंडा और वामपंथी मानसिकता का द्योतक है, जो उनकी फ़िल्म हैदर में देखने को मिला था। विशाल की परिभाषा के अनुसार, एक हत्या करने वाला नाथूराम गोडसे आतंकवादी था। भारत में अधिकतर हत्याएँ मतभेदों के कारण ही होती हैं। कभी ज़मीन को लेकर मतभेद तो कभी आपराधिक दुनिया में मतभेद, कभी राजनीतिक मतभेद तो कभी कोई अन्य विवाद। अगर आतंकी गतिविधियों को हटा भी दें तो हर साल विश्व में लाखों लोगों की हत्या हो जाती है। क्या आतंकवाद इतना नॉर्मल और सामान्य शब्द है जिसका प्रयोग हर हत्या जैसे अपराध में किया जाना चाहिए? क्या इस्लामिक आतंकवाद, जो हर साल दुनिया में सबसे ज्यादा आतंकी वारदातों और मौतों की वजह बनता है, उसके खतरे को कमतर आंकते हुए विशाल भारद्वाज ऐसा कह रहे हैं?

भारत की सुप्रीम कोर्ट ने आतंकवाद की जिस परिभाषा को स्वीकार किया है, उसके हिसाब से गोडसे उसमें फिट नहीं बैठते। भारत में आतंकवाद की परिभाषा के अनुसार, बार-बार ऐसी सुनियोजित ढंग से की जाने वाली हिंसक कार्रवाई जिसमें किसी व्यक्ति, समुदाय या सत्ता को आतंकित करने का प्रयास किया जाता रहा हो, आतंकवाद के अंतर्गत आती है। इसमें यह भी कहा आगया है कि इस कृत्य में घातक हथियारों, डाइनामाइट, बम, रासायनिक गैस इत्यादि का इस्तेमाल किया गया हो। नाथूराम गोडसे इस परिभाषा में फिट नहीं बैठते। गोडसे को एक व्यक्ति विशेष से नाराज़गी थी और उन्होंने गाँधी की हत्या कर दी। अगर गोडसे ने गाँधीवादी विचारधारा के लोगों को बार-बार निशाना बनाया होता तो शायद उन्हें आतंकी कहा जा सकता था।

नाथूराम गोडसे के ख़िलाफ़ महात्मा गाँधी की हत्या का केस चला था। उनकी एफआईआर कॉपी में कहीं भी आतंकवाद का ज़िक्र नहीं था। कहा जाता है कि गोडसे के बयान इतने ज्यादा विश्वसनीय और असरदार होते थे कि भारत सरकार को इसपर प्रतिबन्ध लगाना पड़ा। गोडसे गाँधी का हत्यारा था लेकिन आतंकी नहीं। अगर हत्या की सैंकड़ों वारदातों को आतंकवाद के चश्मे से देखा जाने लगे तो आतंकवाद और हत्या की वारदातों में कोई अंतर ही नहीं रह जाएगा। क्या विशाल भारद्वाज इस्लामिक मज़हबी उन्माद द्वारा प्रेरित आतंकवाद को ढँकने के लिए ऐसा कह रहे हैं? उनकी इस मानसिकता को हैदर फ़िल्म से समझा जा सकता है। भारद्वाज की परिभाषा को मानें तो पारिवारिक मतभेदों में भाई ही भाई की हत्या कर देता है तो वो भी आतंकवाद है।

विशाल भारद्वाज पहले भी कह चुके हैं कि अगर वो वामपंथी नहीं हैं तो वो कलाकार भी नहीं हो सकते। हैदर में भारतीय सेना द्वारा कश्मीरी जनता पर किए जा रहे कथित ‘अत्याचार’ को दिखाने की कोशिश की गई थी। अरुंधति रॉय के मानवाधिकार को लेकर की जाने वाली टिप्पणियों से प्रेरित नज़र आने वाली फ़िल्म हैदर में दिखाया गया था कि कैसे भारतीय सेना निर्दोष कश्मीरियों को पकड़ कर ले जाती है और उन्हें टॉर्चर करती है। विशाल भारद्वाज को ख़ूब पता है कि भारत इस्लामिक और वामपंथी आतंक से ग्रसित है और उनके द्वारा गोडसे को आतंकी साबित करने का प्रयास करना पिछली कॉन्ग्रेस सरकार के ‘हिन्दू आतंकवाद’ वाले नैरेटिव का ही एक छोटा सा हिस्सा है।

गोडसे ने ‘जय श्री राम’ बोलकर गाँधी की हत्या नहीं की। लेकिन, आज विश्व भर में ‘अल्लाहु अकबर’ चिलाते हुए आतंकी वारदातों को अंजाम दिया जाता है। अगर गाय से घृणा करनेवाला एक मुस्लिम युवक पुलवामा में हमारे 40 जवानों की जान ले लेता है तो क्यों न इसे मज़हबी आतंकवाद माना जाए? अगर हाफिज सईद अल्लाह की मर्ज़ी और हुक्म बताकर कश्मीर में आतंक फैलाता है तो क्यों न इसे इस्लामिक आतंकवाद माना जाए? असल में इस्लामिक आतंकवाद और आतंकवाद अब पर्यायवाची हो गए हैं, जिस कारण अलग-अलग नैरेटिव बनाकर इसे ढँकने की कोशिश की जा रही है। इस कोशिश में वामपंथी शामिल हैं क्योंकि छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड और महाराष्ट्र साहित्त अन्य राज्यों में दशकों तक चले नक्सली आतंकवाद को ढँका जा सके।

इस कोशिश में कॉन्ग्रेस शामिल है क्योंकि उसे जबरन हिन्दुओं को आतंकवादी बताकर यह दिखाना है कि केवल मुस्लिम ही आतंकी नहीं होते। इस कोशिश में पाकिस्तान भी शामिल है जहाँ के नेता कश्मीर में चल रही ज़ंग को क्रांतिकारी बनाम सत्ता के रूप में देखते हैं। वो तो अच्छा हुआ कि विशाल भारद्वाज ने आज़ादी के पहले की बात नहीं की वरना कहीं वो भगत सिंह का भी नाम ले सकते थे। आज दुनिया जब मज़हबी उन्माद और मज़हब के नाम पर लोकतान्त्रिक सत्ताओं के ख़िलाफ़ आतंकी वारदातों को झेल रही है, ऐसे में हत्या जैसे अपराधों को आतंकवाद की श्रेणी में रखकर हिन्दुओं को आतंकी साबित करने का यह प्रयास किया जा रहा है।

आतंकवाद को सामान्य बनाने की कोशिश हो रही है। कल यही लोग अपहरण, चोरी-चकारी और डकैती जैसी वारदातों को भी आतंकवाद कहने लगेंगे सिर्फ इसीलिए ताकि ‘इंशाअल्लाह’ बोलकर धमकाने और बम विस्फोट करनेवालों का ज़िक्र कम हो। लोगों का ध्यान उनसे भटक जाए। विशाल भारद्वाज को अकादमिक व प्रशासनिक व्यवस्था द्वारा समय-समय पर स्पष्ट की गई आतंकवाद की परिभाषाओं को पढ़ना चाहिए। अगर उन्होंने गोडसे को आतंकी कहा ही है कि उन्हें इस बात को साबित करने के लिए स्पष्ट तर्क देने चाहिए। उन्हें शायद आतंकित करना और आतंकवादी घटना के बीच का फ़र्क़ समझ नहीं आ रहा। जब एक पति अपनी पत्नी को रोज़ पीटता है और उसे आतंकित करता है तो इसका अर्थ वो आतंकवादी नहीं हो जाता। वह अपराधी है, आतंकी नहीं।

भारद्वाज के अनुसार, मतभेदों के आधार पर एक व्यक्ति की हत्या से विपरीत विचारधारा वाले सभी लोग आतंकित होते हैं और अतः ये आतंकी वारदात है। लेकिन, गोडसे ने भी ट्रायल के दौरान कहा था कि ये कोई षड्यंत्र नहीं था। आतंकी वारदातें सुनियोजित ढंग से अंजाम दी जाती है, क्षणिक मज़हबी आवेश में अंजाम दी जा सकती है, इस्लामिक ब्रेनवाश से अंजाम दी जा सकती है, लोकतान्त्रिक सत्ता के ख़िलाफ़ लगातार हिंसक गतिविधियाँ इसका रूप हो सकती है। आजकल दुनियाभर में हो रही आतंकवादी वारदातों को देखते हुए इतना तो कहा ही जा सकता है कि गोडसे द्वारा एक व्यक्ति विशेष की हत्या और जैश, लश्कर, आईएस, जमात द्वारा लगातार सैनिकों, नागरिकों की हत्या और सत्ता प्रतिष्ठानों पर हमले में कितना अंतर है।

श्रीलंका में 8वाँ धमाका: 187+ मौतें, 500 से ज्यादा जख्मी – हाशीम, मोहम्मद थे आत्मघाती हमलावरों में शामिल

ईस्टर संडे की सुबह ने श्रीलंका को हिला कर रख दिया। 21 अप्रैल 2019 को श्रीलंका में इस्लामी आतंक का कहर बरपा है। नज़ारा बेहद वीभत्स और दिल दहला देने वाला है। अब तक लगातार आठ बम धमाके हो चुके हैं। और कितने बाकी हैं, पता नहीं। साल के अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले में मौतों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। अभी तक की जानकारी के अनुसार जाहरान हाशीम और अबु मोहम्मद नामक आत्मघाती हमलावरों की पुष्टि हो चुकी है। पुलिस का कहना है कि ताजा धमाके में दो लोग मारे गए हैं। अब तक इन धमाकों में 187 से ज्यादा मौतें हुई हैं। और करीब 500 ज्यादा लोग बुरी तरह जख्मी हैं।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ये हमले श्रीलंका के 3 अलग-अलग चर्च और 4 होटल में हुए हैं। इस बीच हमले को लेकर एक हैरान कर देने वाली जानकारी सामने आ रही है। धमाके से 10 दिन पहले यानी 11 अप्रैल को श्रीलंका के पुलिस प्रमुख पुजुथ जयसुंदर ने देश के प्रमुख चर्चों पर हमले को लेकर एक अलर्ट जारी किया था। अलर्ट में कहा गया था कि आत्मघाती हमलावरों द्वारा प्रमुख चर्चों पर हमला करने की साजिश रची गई है। पुलिस प्रमुख ने ये अलर्ट शीर्ष अधिकारियों को भेजा था।

बता दें कि जिस NTJ का नाम पुलिस प्रमुख ने अपने अलर्ट में लिया है वो एक वह कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन है। पिछले साल भी यह संगठन सुर्खियों में तब आया था जब वहाँ के कुछ बौद्ध धर्मस्थलों पर आतंकी हमला किया गया था।

अलर्ट में कहा गया था कि एक विदेशी खुफिया एजेंसी ने रिपोर्ट दी है कि NTJ (नेशनल तौहीत जमात) आत्मघाती हमलों को अंजाम दे सकता है। इस आतंकी संगठन के निशाने पर प्रमुख चर्चों के साथ-साथ कोलंबो में भारतीय उच्चायोग भी है।

श्रीलंका पुलिस के मुताबिक कोलंबो में सेंट एंथनी चर्च, नौगोंबो में सेंट सेबेस्टियन चर्च और बट्टिकलोबा में एक चर्च को निशाना बनाया गया। इसके अलावा होटल शांग्री-ला, सिनामोन ग्रैंड, किंग्सबरी समेत एक और होटल में भी धमाका हुआ है। सीरियल धमाके से श्रीलंका में हड़कंप मच गया है। पूरे देश में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है। एयरपोर्ट पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। शाम 6 बजे के बाद से कर्फ्यू लगाने का आदेश दिया जा चुका है। सोशल मीडिया पर फिलहाल पाबंदी लगा दी गई है। लिट्टे संकट से उबरने के बाद श्रीलंका में पहली बार इतने बड़े आतंकी हमले हुए हैं। श्रीलंका के राष्ट्रपति ने धमाकों पर शोक जताते हुए लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है।

पीएम मोदी और विदेश मंत्री ने की आतंकी हमले की निंदा

श्रीलंका में चर्च और होटल पर हुए हमले की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निंदा की है। पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा कि श्रीलंका में हुए भयानक विस्फोटों की कड़ी निंदा करते हैं। हमारे क्षेत्र में इस तरह के बर्बरता के लिए कोई जगह नहीं है। भारत श्रीलंका के लोगों के साथ एकजुटता के साथ खड़ा है।

श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में हुए सीरियल ब्लास्ट पर भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ट्वीट किया, “मैं कोलंबो में भारतीय उच्चायुक्त के लगातार संपर्क में हूँ, हम स्थिति पर पूरी नज़र बनाए हुए हैं।”

कुछ भी हो, पुलिस प्रमुख के अलर्ट के बाद अगर इस तरह का हमला हुआ है तो ये श्रीलंकाई प्रशासन के लिए चिंता का विषय है। अगर समय रहते पुलिस प्रमुख के अलर्ट पर कार्रवाई होती तो आज 187 से अधिक लोगों की जान नहीं जाती और श्रीलंका धूमधाम से ईस्टर मना रहा होता। आज पूरा विश्व श्रीलंका के साथ खड़ा है। आखिर कब तक इस्लामी आतंक का यह नासूर फलता-फूलता रहेगा और कब तक मानवता को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ेगी।