Sunday, September 29, 2024
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50% नहीं, केवल 5 बूथों पर करो औचक VVPAT जाँच: सुप्रीम कोर्ट

चुनाव व्यवस्था और ईवीएम में विश्वास बहाली की तरफ एक बड़ा कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने औचक VVPAT मिलान की संख्या एक से बढ़ाकर पांच कर दी है। यानि अब हर लोकसभा सीट के एक नहीं बल्कि पाँच बूथों पर चुनाव आयोग का उड़न दस्ता छापा मारकर औचक जाँच करेगा कि वहाँ ईवीएम ठीक से काम कर रही है या नहीं। अभी तक यह केवल एक बूथ प्रति लोकसभा क्षेत्र होता था। इसके अलावा अदालत ने इसे आगामी लोकसभा चुनावों से ही लागू करने का भी आदेश केन्द्रीय चुनाव आयोग को दिया है।

विपक्षी नेताओं की याचिका पर हो रही थी सुनवाई

ईवीएम की शुचिता पर कई मौकों पर सवालिया निशान खड़े कर चुके दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल समेत विपक्ष के कई नेताओं ने याचिका दायर की थी, जिस पर सर्वोच्च न्यायालय सुनवाई कर रहा था। अन्य याचिकाकर्ताओं में थे तेदेपा (तेलुगु देशम पार्टी) के चंद्रबाबू नायडू, द्रमुक नेता एमके स्टालिन, नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और तृणमूल नेता डेरेक ओ’ब्रायन।

‘हम वर्तमान प्रणाली में कोई दोष नहीं घोषित कर रहे’

विपक्षी नेताओं के उलट उच्चतम न्यायलय ने ईवीएम सहित चुनाव आयोग की वर्तमान प्रणाली में कोई दोष निकालने या पाने से साफ़ इंकार कर दिया। उसे अपनी जाँच का दायरा बढ़ाने का आदेश देने के बावजूद भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह साफ़ किया कि उसे वर्तमान प्रणाली में कोई खोट नहीं दिखता और यह एक से पाँच की बढ़ोतरी केवल चुनाव प्रणाली में भरोसा बढ़ाने के लिए हो रही है।

विपक्षी नेताओं की माँग लगभग खारिज

याचिका में विपक्षी नेताओं ने माँग की थी हर लोकसभा क्षेत्र के 50% बूथों पर VVPAT ऑडिट किया जाए। चुनाव आयोग ने इसे अव्यवहारिक बताते हुए इसका विरोध किया था और यह कहा था कि इससे तो मानवीय भूल द्वारा गलत नतीजे आने की सम्भावना बढ़ जाएगी। इसके अलावा इससे चुनावों के नतीजे आने में भी लगभग एक सप्ताह तक की देर हो सकने का अंदेशा आयोग ने जताया था।

अभी तक एक बूथ प्रति लोकसभा क्षेत्र के हिसाब से 0.44% बूथों की जाँच होती थी, जिसे उच्चतम न्यायलय के आदेश के बाद बढ़ाकर 2% करना होगा। इसके बाद भी नतीजे एक दिन के भीतर आने का चुनाव आयोग को भरोसा है।

अब तक कहीं नहीं निकली गड़बड़ी

चुनाव आयोग ने अपने जवाब में यह भी साफ़ किया कि उसने अब तक जिन 1,500 बूथों पर जाँच की है, उनमें से एक में भी उसे गड़बड़ी नहीं मिली है

Times Now-VMR सर्वे: NDA को मिलेगा पूर्ण बहुमत, 150 से भी कम पर सिमटेगी UPA

टाइम्स नाउ-वीएमआर के सर्वे में भी राजग को पूर्व बहुमत मिलता दिख रहा है। वैसे आधिकारिक नतीजे तो 23 मई को आने वाले हैं लेकिन कई सर्वे में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में फिर से एनडीए की सरकार बनती दिख रही है। टाइम्स नाउ के सर्वे की मानें तो राजग को जहाँ 279 सीटें आने का अनुमान है वहीं यूपीए सिर्फ़ 149 सीटों पर सिमट जाएगी। इस दौरान केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि तमिलनाडु, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में भाजपा को भारी फायदा होने जा रहा है।

असम की 14 सीटों में से भाजपा ने 2014 में 7 सीटें जीती थीं। इस ओपिनियन पोल की मानें तो इस बार भाजपा यहाँ 8 तथा कॉन्ग्रेस 4 सीटें जीत सकती हैं। वहीं एआईयूडीएफ के खाते में 2 सीटें जा सकती हैं। अगर बिहार की बात करें तो यहाँ भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन को 40 में से 29 सीटें मिलती नज़र आ रही हैं। वहीं कॉन्ग्रेस, राजद और रालोसपा के महागठबंधन को महज 11 सीटों से संतोष करना पड़ेगा।

भाजपा ने पश्चिम बंगाल में 42 में से 22 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। टाइम्स नाउ के ओपिनियन पोल के मुताबिक यहाँ भाजपा को 2014 की 2 सीटों के मुकाबले 7 सीटों का फ़ायदा मिलता हुए दिख रहा है और पार्टी को यहाँ 9 सीटें मिलती दिख रही हैं। हालाँकि, भाजपा का दावा है कि ये आँकड़ा और ज्यादा होगा।

उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से सपा-बसपा गठबंधन को 27 तथा भाजपा के नेतृत्व वाली वाले एनडीए गठबंधन को 50 सीटें मिल सकती हैं। यहाँ यूपीए को 3 सीटें मिलती दिख रही है। ये चौंकाने वाला है क्योंकि जिस उत्तर प्रदेश के लिए प्रियंका गाँधी को जोर-शोर से लॉन्च किया गया है, उसी यूपी में कॉन्ग्रेस गठबंधन को 80 में से महज 3 सीटें मिलेंगी।

वहीं दिल्ली में आम आदमी पार्टी का खाता तक नहीं खुलेगा। पिछले आम चुनाव की तरह इस बार भी भाजपा सातों सीटों पर कब्ज़ा करेगी। टाइम्स नाउ के सर्वे के मुताबिक, दिल्ली में कॉन्ग्रेस और आप का एक बार फिर सफाया होना तय है।

इंडियन नेवी अफसर ने डूबते व्यक्ति की बचाई जान, इंटरनेट ने किया नमन!

फेसबुक पर भारतीय नौसेना के आधिकारिक पेज पर आज एक युवा नौसैन्यकर्मी का कारनामा शेयर हुआ है, जिसे हर तरफ से वाहवाही मिल रही है। लेफ्टिनेंट राहुल दलाल ने केरल के वाईपिन तट पर एक डूबते हुए व्यक्ति की जान बचाई, जिसके बाद उन्हें नायक की प्रशस्ति मिल रही है। अपनी पत्नी के साथ लेफ्टिनेंट दलाल 5 अप्रैल को बीच पर साईट-सीइंग के लिए पहुंचे थे जब उन्होंने देखा कि एक आदमी डूब रहा है और मदद की गुहार लगा रहा है। बाद में बचाए गए व्यक्ति ने अपनी पहचान औरंगाबाद के दिलीप कुमार के रूप में की।

वहाँ हालाँकि और भी लोगों की भीड़ इकट्ठा थी पर वे या तो पानी में कूदने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे या उनमें से कोई भी ऐसा करने में सक्षम नहीं था। लेफ्टिनेंट दलाल तुरंत पानी में कूद गए और डूबते इन्सान की ओर बढ़ने लगे।

अपनी ही जान साँसत में आ गई थी

सोशल मीडिया के अनुसार लेफ्टिनेंट दलाल को दिलीप तक पहुँचने में कुछ मिनट ही लगे पर पानी के तेज बहाव के चलते उन्हें दिलीप को लेकर वापस आने में लगभग 20 मिनट लग गए।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार दिलीप इतने डरे और घबराए हुए थे कि वह लेफ्टिनेंट दलाल को ही जकड़कर नीचे खींचने लगे, जिससे दोनों पर ही डूबने का खतरा मंडराने लगा था। लेफ्टिनेंट दलाल ने दिलीप को शांत किया और उनसे कहा कि वे (दिलीप) दलाल के केवल कंधे ही पकड़े रहें। जब दिलीप ने ऐसा किया तो लेफ्टिनेंट दलाल ने वापस तट की तरफ तैरना प्रारंभ कर दिया। स्थानीय व्यक्तियों की सहायता से तट पर पहुँचने के बाद उन्होंने पाया कि दिलीप बेहोश हो गए हैं और उनकी साँसें भी नहीं चल रही हैं।

लेफ्टिनेंट दलाल ने उनका मुँह खोला तो पाया कि कुछ पौधे दिलीप के साँस के रास्ते में फँसे हुए हैं। उन्हें निकाल कर दलाल ने दिलीप को Cardio Pulmonary Resuscitation (कृत्रिम श्वास) दी, जिसके बाद दिलीप की चेतना लौटी। इसके बाद सूचना पाकर पहुँची पुलिस ने दिलीप को सरकारी अस्पताल पहुँचाया जहाँ से उन्हें पूर्ण रूप से स्वस्थ होने के बाद छुट्टी दे दी गई।

शाबाशियों और बधाइयों का सैलाब  

सोशल मीडिया पर यह खबर आते ही लेफ्टिनेंट दलाल को बधाई देने और उनकी प्रशंसा करने वालों का हुजूम उमड़ पड़ा। सभी ने जी भरकर उनकी वीरता को सराहा।

‘मैंने नौसेना का सिखाया ही आजमाया’

भारतीय नौसेना ने आज सुबह फेसबुक पर इस घटना के विवरण के साथ बचाव अभियान के ठीक बाद की तस्वीरें जारी की हैं, जिनमें लेफ्टिनेंट दलाल को दिलीप के साथ देखा जा सकता है। उनकी दिलीप को कृत्रिम श्वास देते हुए तस्वीर भी नौसेना ने जारी की है। खबर लिखे जाने तक फेसबुक पर इस पोस्ट को 6,000 से ज्यादा बार लाइक किया गया है, 350 से ज्यादा इस पर कमेंट्स आए हैं, और 600 के करीब लोगों ने इसे शेयर किया है।


एक स्वतन्त्र पत्रकार से बात करते हुए लेफ्टिनेंट दलाल ने बताया कि उनकी बाद में भी दिलीप से बात हुई है, और उस व्यक्ति की आवाज़ सुनना सही में अद्भुत अनुभूति है, जिसकी उन्होंने जान बचाई हो। ‘उसने मुझे हॉस्पिटल से फ़ोन किया। जो संतोष मुझे महसूस हो रहा है, उसे शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता।’ लेफ्टिनेंट ने यह भी कहा कि यदि हम खुद पर विश्वास रखें तो अपनी सीमाओं को तोड़ किसी की जान बचाना एक बहुत खूबसूरत पल होता है। उन्होंने यह भी कहा कि उस दिन उन्होंने जो कुछ किया वह उन्हें भारतीय नौसेना और उनके वरिष्ठों ने सिखाया था, और वे भारतीय नौसेना का अंग होने पर गर्व करते हैं।

गौरव का क्षण: सेना को मिली स्वदेशी ‘धनुष’ Artillery Guns, 38Km रेंज के साथ यह है बोफोर्स का अपग्रेडेड वर्जन

भारतीय सेना को आज जबलपुर स्थित ‘Gun Carriage Factory’ में बनी ‘धनुष’ आर्टिलरी गन्स की पहली खेप सौंप दी गई। स्वदेश निर्मित ‘धनुष’ को स्वीडन निर्मित बोफोर्स गन्स का स्वदेशी वर्जन माना जाता है। Ordnance Factory Board (OFB) द्वारा ये आर्टिलरी गन्स जीसीएफ में केन्द्र सरकार के रक्षा सचिव (उत्पादन) डॉक्टर अजय कुमार के मुख्य आतिथ्य में आयोजित कार्यक्रम में भारतीय सेना के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल पीके श्रीवास्तव को औपचारिक रूप से सौंपी गई। रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि अब तक इन गन्स का 81% स्वदेशीकरण हो चुका है और 2019 ख़त्म होने तक ये आँकड़ा 91% तक पहुँच जाएगा।

जबलपुर गन कैरिज फैक्ट्री में हुए इस कार्यक्रम में ऐसे 6 आर्टिलरी गन्स सेना को सौंपे गए। ऐसे 18 गन्स के साथ साल ख़त्म होने तक एक धनुष रेजिमेंट तैयार हो जाएगा। 18 फरवरी 2019 को जीसीएफ को सेना से ऐसे 114 गन्स के निर्माण के लिए बल्क प्रोडक्शन क्लीयरेंस मिला था। ‘धनुष’ 155mm का 45-calibre towed आर्टिलरी गन है, जिसका रेंज 36 किलोमीटर है। विशेष गोला-बारूद के साथ ये रेंज 38 किलोमीटर हो जाता है। अभी जो 39 calibre Bofors FH 77 बोफोर्स गन भारतीय सेना के पास है, ‘धनुष’ को इसका अपग्रेडेड वर्जन माना जा रहा है। जबलपुर में हुए कार्यक्रम के बाद नव निर्मित धनुष आर्टिलरी गन को हरी झंडी दिखाकर फैक्टरी से रवाना किया गया।

‘धनुष’ 13 सेकंड में तीन फायर कर सकती है। फायर करने के बाद गन अपनी पोजिशन चेंज कर सकती है। इस आर्टिलरी गन का वजन 13 टन है। बोफोर्स तथा धनुष के कुछ फंक्शन समान हैं। यह रात के समय भी लक्ष्य पर निशाना साध सकती है। भारतीय सेना ने ऐसे कुल 414 गन की माँग की है। 2012 में इस पर कार्य शुरू किया गया था। इसमें अपग्रेडेड कम्यूनिकेशन सिस्टम लगाया गया है। ये आर्टिलरी गन्स सेटेलाइट के जरिए न केवल दुश्मन के ठिकानों की पोजीशन हासिल कर सकती है, बल्कि खुद गोले लोड कर फायर करने में भी सक्षम है।

इन गन्स के वजन के कारण पहाड़ी व सुदूर इलाकों में इनका सुगम इस्तेमाल किया जा सकता है। पाकिस्तान व चीन से लगी सीमा पर इसकी तैनाती की जाने की उम्मीद है। जुलाई 2016 से जून 2018 के बीच पोखरण सहित अन्य क्षेत्रों में इन गन्स के कई ट्रायल किए गए। पाँच जगहों पर हुए कई परीक्षणों में इसे अलग-अलग तापमान पर परखा गया। इस से अब तक 4599 बार फायर किया जा चुका है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत में निर्मित होने वाली लंबी रेंज की पहली आर्टिलरी गन है।

‘क़सम अल्लाह की, धारा 370 हटाया तो कोई नहीं उठाएगा तिरंगा, हम होंगे आज़ाद’

जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने फिर से कश्मीर की कथित आज़ादी का राग अलापा है। जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने भाजपा के घोषणापत्र पर ज़हर उगलते हुए चुनौती स्वरूप कहा कि देखते हैं, कौन धारा 370 हटाता है। इतना ही नहीं, उन्होंने कश्मीर में अपनी प्रतिद्वंद्वी महबूबा मुफ़्ती के झंडा वाले बयान को लगभग दुहराते हुए कहा कि अगर ऐसा हुआ तो कश्मीर में कोई तिरंगा झंडा नहीं उठाएगा। महबूबा मुफ़्ती ने भी कहा था कि अगर ऐसा हुआ तो न सिर्फ जम्मू कश्मीर बल्कि पूरा देश जलेगा। अब्दुल्ला ने कहा:

“बाहर से लाएँगे, बसाएँगे और सोते रहेंगे? हम इसका मुक़ाबला करेंगे। धारा 370 को कैसे ख़त्म करोगे? अल्लाह की क़सम कहता हूँ। अल्लाह को यही मंज़ूर होगा कि हम इनसे आज़ाद हो जाएँ। करें, धारा 370 हटाएँ, हम भी देखते हैं। देखते हैं फिर कौन इनका झंडा उठाने के लिए तैयार होता है।”

जिस तरह अब्दुल्ला ने भारत और भारतीयों के लिए (जिसमें जम्मू-कश्मीर भी शामिल है) ‘इन’, ‘इनका’ और ‘इन्हें’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया, उससे लगता है कि वो ख़ुद को भारत का नागरिक नहीं मानते। उन्होंने तिरंगे को भी ‘इनका झंडा’ कहा। साथ ही उन्होंने जम्मू कश्मीर से बाहर अन्य भारतीयों के लिए ‘बाहरी’ शब्द का प्रयोग कर अपने देशविरोधी रवैये का परिचय दिया। वैसे फ़ारूक़ के बेटे उमर अब्दुल्ला भी जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। कुछ दिनों पहले उन्होंने भी कश्मीर के लिए अलग प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की माँग की थी।

उमर अब्दुल्ला के बयान पर पीएम मोदी ने उन्हें ललकारा था और कहा था कि मोदी के रहते कोई देश को विभाजित नहीं कर सकता। उमर अब्दुल्ला ने एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए कहा था:

“आज हमारे ऊपर तरह-तरह के हमले हो रहे हैं। हमारे ख़िलाफ़ कई तरह की साज़िशें हो रही हैं। कई ताक़तें लगी हुई हैं जम्मू-कश्मीर की पहचान मिटाने के लिए। कल की बात है जब अमित शाह साहब ने किसी इंटरव्यू में कहा कि हम 2020 तक जम्मू-कश्मीर से 35ए को खत्म कर देंगे। जम्मू-कश्मीर बाकी रियासतों की तरह नहीं है। बाकी रियासतें बिना शर्त रखे हिंदुस्तान में मिल गईं, लेकिन हमने शर्त रखी और मुफ़्त में नहीं आए। हम बिना शर्त मुल्क़ में नहीं आए। हमने अपनी पहचान बनाए रखने के लिए आईन (संविधान) में कुछ चीजें दर्ज कराईं और कहा कि हमारा संविधान और झंडा अपना होगा। उस वक्त हमनें अपना सदर-ए-रियासत और वजीर-ए-आजम भी रखा था, अब हम उसे भी वापस ले आएँगे।”

इसी तरह जम्मू कश्मीर के एक और पूर्व मुख्यमंत्री और कॉन्ग्रेस नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद ने भी जम्मू कश्मीर पुलिस को दुश्मन बताते हुए कहा था कि वो निहत्थे लोगों की हत्या करती है। आज़ाद ने कहा था:

“जम्मू कश्मीर पुलिस भी कम दुश्मन नहीं है। उन्होंने कोई कम ज़्यादतियाँ नहीं की हैं। मैं उन पुलिसवालों को तो सलाम करता हूँ जिन्होंने अपनी जानें दी, लेकिन उसमें भी कुछ नासूर ऐसे थे जो अपने प्रमोशन और पैसे के लिए निहत्थे लोगों का क़त्ल करते थे। क्या वजह है कि 2014 तक हालात ठीक हो गए थे? क्या वजह है कि 2014 से लेकर आज तक हालात 1990-91 वाले हो गए हैं। उसके लिए अगर कोई ज़िम्मेदार है तो वो है देश का पीएम नरेंद्र मोदी।”

भाजपा के घोषणापत्र में धारा 370 और 35A को लेकर कही गई बातें


बता दें कि हाल ही में जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने भी आर्टिकल 35A को लेकर कुछ ऐसा ही विवादित बयान दिया था। उन्होंने केंद्र सरकार को धमकी भरे अंदाज में कहा था कि अगर इस आर्टिकल से छेड़छाड़ की गई तो देश वो देखेगा जो उसने कभी नहीं देखा। साथ ही उन्होंने कहा था कि उसके बाद कश्मीर के लोग तिरंगा छोड़कर कौन सा झंडा उठाएँगे, उन्हें नहीं पता। मुफ़्ती ने कहा था:

“आग से मत खेलो, अनुच्छेद -35 A के साथ छेड़छाड़ न करें, अन्यथा आप वो देखेंगे जो आपने 1947 से अभी तक नहीं  देखा है। अगर उस पर (अनुच्छेद-35 A) हमला होता है तो मुझे नहीं पता कि जम्मू-कश्मीर में तिरंगे की जगह कौन से झंडे लोग लहराने को मजबूर होंगे।” “

हर समय PM मोदी पर निजी हमलों से कुछ न होगा ‘दीदी’, चुनावी माहौल है कोई नई चाल सोचो या पैंतरा बदलो

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर लोकसभा चुनाव का भूत इस क़दर चढ़ा हुआ है कि वो कुछ भी कहने से नहीं चूकतीं। हद तो तब पार हो जाती है जब वो अपनी भद्दी राजनीति में देश के प्रधानमंत्री मोदी तक को नहीं छोड़तीं। आए दिन उनकी ख़िलाफ़त में व्यक्तिगत हमले करती रहती हैं। किसी पर निजी हमले इंसान तब करता है जब उसके पास कहने के लिए कुछ बचे ही न। आए दिन केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेना तो उनकी पुरानी आदत है जिसमें आरोपों का दौर कभी थमता ही नहीं।

अपने विरोधी सुरों में सुर मिलाते हुए वो कभी बीजेपी को बैलेट पेपर पर जवाब देने की धमकी दे डालती हैं तो कभी न्यूज़ चैनल द्वारा उनकी धरने देने वाली कवरेज़ पर मीडिया संस्थान को (रिपब्लिक टीवी) नोटिस थमा देती हैं। बड़ी ही विलक्षण और फ़र्ज़ी प्रतिभा की धनी हैं ममता दीदी।

अपने विरोधी स्वभाव के चलते उन्हें केवल आरोप पर आरोप ही लगाना आता है, फिर चाहे वो कवरेज को लेकर हो या चुनावी वादे के लेकर या केंद्र को घेरने के लिए हो। आरोप लगाने की उनकी कला दिनों-दिन निखरती जा रही है। अभी हाल ही में उन्होंने पीएम मोदी पर आरोप लगाया था कि उन्होंने अपनी पत्नी की देखभाल नहीं की तो जनता की देखभाल कैसे करेंगे। इस पर मेरा तो यही कहना है कि जनता की देखभाल कैसे करेंगे वो जनता ने बीते पाँच वर्षों में देख लिया, लेकिन आप फ़िलहाल ये बताइये कि आपने बंगाल में ऐसा कौन-सा विकास कर दिया जिसके चर्चे दुनिया भर में हो रहे हैं? आप तो अपने राज्य में एक फ़िल्म के प्रदर्शन तक पर तो रोक लगा देती हैं कि कहीं उस फ़िल्म का व्यंग्य आपके ऊपर सटीक न बैठ जाए। क्या यही है आपकी राजनीति?

आज फिर ममता ने पीएम मोदी पर तीखा हमला किया और कहा कि भारत में बड़े परिवारों को अलग-अलग धर्मों के लोगों को एक साथ रहते हुए देखा है, लेकिन पीएम मोदी इस बात को नहीं समझेंगे क्योंकि न तो उनका कोई परिवार है और न ही वो आप लोगों को अपना परिवार समझते हैं।

इतना ही नहीं ममता तो यहाँ तक बोल गईं कि पीएम मोदी के मुँह पर टेप चिपका देनी चाहिए। अब ऐसे में अगर यह पूछ लिया जाए कि पश्चिम बंगाल उस सेवानिवृत्त भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी के बारे में क्या कहेंगी, जिन्होंने आत्महत्या कर ली थी। अपने सुसाइड नोट में उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर उकसाए जाने का आरोप लगाया था और आत्महत्या के लिए ममता बनर्जी को ही ज़िम्मेदार ठहराया था? इस सवाल पर ममता का बस चले तो हर शख़्स के मुँह पर टेप चिपकवा दें।

ममता को पीएम मोदी की वो छवि कभी नज़र नहीं आती जिसमें वो व्यक्तिगत स्वार्थ से हमेशा दूर खड़े नज़र आते हैं। पीएम मोदी कभी निजी स्वार्थ को तवज्जोह नहीं देते उन्होंने हमेशा ‘सबका साथ, सबका विकास‘ का नारा दिया। इस नारे में व्यक्तिगत स्वार्थ और निजी लोगों को लाभ पहुँचाना कहीं भी शामिल नहीं है। यह बात अलग है कि ममता जैसे कुटिल राजनेता इस बात को नहीं समझ पाएँगे क्योंकि उनके क़रीबी तो घोटालों में नाम कमाते नज़र आते हैं।

चुनावी घमासान में ख़ुद को चमकाने की राजनीति में वो यह भूल जाती हैं कि उनके ख़ुद के दामन पर कितने दाग लगे हुए हैं। कभी तो वो शारदा चिट फंड मामले में पुलिस कमिश्नर के ख़िलाफ़ हो रही कार्रवाईयों पर अपना विरोध जताती हैं और रात भर धरने पर बैठ कर अपने अड़ियल रवैये का परिचय देती हैं, तो कभी  घोटाले की जाँच में अड़ंगा डालती हैं, इसकी शिक़ायत ख़ुद CBI द्वारा की गई थी। बंगाली फ़िल्म प्रोड्यूसर श्रीकांत मोहता को ₹17,450 करोड़ के रोज़ वैली चिटफंड घोटाले में गिरफ़्तार किया गया था, जोकि उनके क़रीबी थे।

वहीं पीएम मोदी की बात करें तो साल 2014 में उनके भाई प्रह्लाद मोदी ने बीबीसी को बताया था कि काश वह (पीएम मोदी) हमारे परिवार की आगे की पीढ़ी के लिए मदद करते, लेकिन वो ऐसा नहीं करेंगे। बता दूँ कि बेशक इस लाइन में पीएम मोदी के भाई का दर्द झलकता हो, लेकिन दूसरी तरफ पीएम मोदी का वो चरित्र दिख रहा है कि जिसमें व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए कोई जगह नहीं है। ऐसे में ममता का यह कह देना कहाँ तक उचित है कि पीएम मोदी का तो परिवार ही नहीं है जबकि उनके लिए तो पूरा देश ही एक परिवार के समान है जिसमें सबका विकास करना उनकी प्राथमिकता रहा है, जिसके परिणाम सकारात्मक रुप से उजागर भी हुए।

पाकिस्तान और मीडिया गिरोह का झूठ बेनकाब: IAF ने जारी किया F-16 को मार गिराने का रडार वाला सबूत

भारतीय वायुसेना ने अमेरिकी मैगजीन के फर्जी दावे और पाकिस्तान के झूठ को एक बार फिर से बेनकाब कर दिया है। वायुसेना ने मैगजीन के दावे को झूठा करारा देते हुए कहा कि हमारे पास न सिर्फ इस बात का सबूत है कि पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ F-16 का इस्तेमाल किया था, बल्कि इस बात का भी पक्का सबूत है कि मिग बाइसन ने F-16 फाइटर जेट को मार गिराया था।

भारतीय वायुसेना ने इसका सबूत देते हुए रडार के जरिए मिली उस तस्वीर को भी जारी कर दिया, जिसमें F-16 फाइटर जेट को साफ तौर पर एयरबोर्न वॉर्निंग ऐंड कंट्रोल सिस्टम ने लिया था।

गौरतलब है कि अमेरिकी पत्रिका ‘फॉरेन पॉलिसी’ ने दावा किया था कि उसके देश द्वारा की गई गिनती में पाकिस्तान का कोई भी F-16 लड़ाकू विमान लापता नहीं पाया गया है और उनमें से किसी को भी नुकसान नहीं पहुँचा है, जो भारत के उन दावों को खारिज करती है कि वायु सेना ने 27 फरवरी को हवाई संघर्ष के दौरान एक पाकिस्तानी F-16 लड़ाकू विमान को मार गिराया था। अब अमेरिकी कुछ बोलें (खासकर देश विरोधी बातें) और हमारे देश का मीडिया गिरोह शांत रह जाए, यह संभव नहीं। गिरोह के इन लोगों ने सोशल मीडिया से आगे बढ़कर ख़बरों में भी अपनी ही सरकार से सबूत माँगना शुरू कर दिया था। आज का यह सबूत उनके मुँह पर जोरदार तमाचा है।

इस आरोप को लेकर वायु सेना के वाइस एयर मार्शल आरजीके कपूर ने कहा, “हमारे पास इसके और भी पक्के सबूत और सटीक तथ्य हैं कि पाकिस्तान ने हवाई लड़ाई में अपना F-16 विमान खो दिया है, लेकिन सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा होने की वजह से हम कुछ महत्वपूर्ण सबूतों को सार्वजनिक नहीं कर रहे हैं।”

इतना ही नहीं, पाकिस्तान के झूठ का पर्दाफाश करते हुए वायुसेना ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि 27 फरवरी को हवाई लड़ाई में 2 विमान गिरे थे, जिसमें से एक मिग 21 बाइसन और दूसरा पाकिस्तान वायुसेना का विमान F-16 था। इस विमान की पहचान इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर और रेडियो पर हुई बातचीत के आधार पर सुनिश्चित हुई थी।

इससे पहले 28 फरवरी को भी भारतीय थल सेना, वायु सेना और नौसेना ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर F-16 के मार गिराने के सबूत पेश किए थे। भारत सरकार ने बालाकोट के आतंकी शिविरों पर हमले के एक दिन बाद 27 फरवरी को कहा था कि वायु सेना के पायलट अभिनंदन ने एक पाकिस्तानी F-16 को मार गिराया है, जो भारतीय सैन्य ठिकाने पर हमला करने की कोशिश कर रहा था। सेना ने F-16 में लगने वाले मिसाइल के टुकड़े भी मीडिया को दिखाए थे।

भारतीय वायु सेना के मुताबिक, पाकिस्तानी वायु सेना ने भारत के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की कोशिश की थी। हालाँकि पाकिस्तान के प्रयासों को भारत ने असफल कर दिया था। पाकिस्तानी वायुसेना ने भारत की कई जगहों पर बमबारी की थी, लेकिन भारतीय सैन्य ठिकानों को नुकसान पहुँचाने में वे असफल रहे थे।

शेख पल्टू: मंगल पांडे को पकड़ने, अंग्रेज अफसर को बचाने वाला मुस्लिम सिपाही, हुआ था mob lynching का शिकार

दुष्ट गौभक्त-ब्राह्मणवादी-पितृसत्तावादी ‘चाउविनिस्ट’ मंगल पांडे को आज भारत को क्रिकेट और अंग्रेजी की नियामतें देने वाले महान अंग्रेजों ने मौत के घाट उतार दिया था। और बिलकुल सही किया- क्योंकि अंग्रेज पहले से इस बात की आकाशवाणी सुन चुके थे कि 150 साल बाद मंगल पांडे के नाम का इस्तेमाल 2-4 हिंसक गौरक्षकों के कर लेने से भारत का लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा। इसलिए उन्होंने भारत को लोकतंत्र बाद में दिया, पर उसके लिए खतरा बन सकने वाले गौ-रक्षक को 90 साल पहले ही दण्डित कर दिया।

पर इस दुष्ट गौरक्षक को रोकने के पीछे एक नाम उस शांतिदूत का भी था, जिस बेचारे को अंग्रेजों ने इतिहास में दबा के गुमनाम कर दिया, और गौरक्षकों की आफत रोकने में उसका सब योगदान बिसर गया। पर इतिहास के पन्नों से उखाड़ कर हम इस वीर की वीरगाथा लाए हैं, जिसे पूरा पढ़ने के लिए आपको चाचा नेहरू, जिल्लेलाही अकबरे आजम और सम्राट अशोक के सेक्युलरिज्म की कसम!

न जाने कितने मार लेता मंगल पांडे, अगर शांतिदूत पल्टू न होता

जैसा कि शांतिदूत शेख पल्टू के नाम से जाहिर है, वो ‘यूनेस्को-सर्टिफाइड सबसे शांतिप्रिय मज़हब’ का शांतिप्रिय बाशिंदा था।

29 मार्च, 1857 के दिन बैरकपुर में तैनात अंग्रेज साहब लेफ्टिनेंट बॉघ को पता चला कि मंगल पांडे नाम का कोई सैनिक कारतूसों में गाय की चर्बी होने के कारण हिन्दुओं और सूअर की चर्बी के कारण समुदाय विशेष को, उनके इस्तेमाल से इंकार करने के लिए उकसा रहा है। उनके कोमल-वीर कानों में यह बात भी पड़ी कि परेड ग्राउंड में खड़े मंगल पांडे ने यह कदम यही कह कर उठाया है कि इससे आने वाले समय में मोदी नामक प्रधानमंत्री के शासन में गौरक्षकों को उसके कारनामे से बल मिलेगा, और इसलिए वह उनके लिए उदाहरण पेश कर रहा है। मंगल पांडे ने पहले गोरे (हाउ रेसिस्ट??) को देखते ही गोली मार देने की धमकी दी है, ऐसा भी उन्होंने सुना।

परेड ग्राउंड में पहुँचे सार्जेंट-मेजर ह्यूसन ने जमादार ईश्वरी प्रसाद को आगे ठेला कि वो मंगल पांडे को काबू में करे और गिरफ्तार करे। ईश्वरी प्रसाद ने हाथ खड़े कर दिए कि उसके सारे सिपाही मदद माँगने गए हैं और वह अकेले मंगल पांडे को नहीं गिरफ्तार कर सकता।

तभी लेफ्टिनेंट बॉघ हथियारों से लैस हो वहाँ घोड़ा टपाते पहुँच गया। उन्हें देखते ही दुष्ट मंगल पांडे ने उनके घोड़े पर निशाना लगाकर गोली चला दी, और लेफ्टिनेंट जी धराशायी हो गए। बॉघ जी ने मंगल पांडे पर निशाना लगाया पर चूक गए और निर्दयी मंगल पांडे ने अपनी तलवार निकाल ली। और उसने तो बेचारे लेफ्टिनेंट जी को चलता ही कर दिया होता अगर हमारे वीर सिपाही शेख पल्टू ने हस्तक्षेप न किया होता।

शेख पल्टू ने मंगल पांडे को धर लिया, और तब तक धरे रहा जब तक लेफ्टिनेंट बॉघ जी और सार्जेंट-मेजर ह्यूसन जी अंगड़ाईयाँ ले उठ खड़े नहीं हुए।

अपने ही लोगों ने साथ नहीं दिया बेचारे शेख पल्टू का

शेख पल्टू जब दुष्ट काफ़िर गौभक्त मंगल पांडे के साथ दंगल-दंगल कर रहे थे, तभी उनके साथ के सिपाही चुपचाप टीएनए मैच की तरह देख रहे थे। शेख पल्टू चिल्लाते रहे मदद के लिए, मगर किसी भी बेदर्द के दिल में उनकी ‘स्वामीभक्ति’ के लिए सम्मान नहीं जगा।

जब एक-दो बड़े साहबों के धमकियाने पर वह आगे बढ़े भी तो भी उन्होंने दुष्ट मंगल पांडे की बजाय शेख पल्टू जी पर हमला बोल दिया, उन पर जूते और पत्थर फेंके (जिसके लिए मोदी को त्यागपत्र दे सरदार पटेल की मूर्ति के ऊपर से छलांग लगा देनी चाहिए), और उन्हें गोली मार देने की धमकी दी। पर वे संत आदमी काफ़िर पांडे को धरे रहे।

Mob-lynching से हुआ शेख पल्टू जैसे जांबाज वीर का अंत: दुखद!

शेख पल्टू जी की स्वामिभक्ति जताने की निन्जा टेक्नीक से प्रभावित हो 9 अप्रैल को उन्हें हवलदार बना दिया गया, और काफ़िर मंगल पांडे को 18 अप्रैल बोल कर 8 को ही फांसी दे कर ‘एप्रिल फूल’!!

पर इस देश के लिए यह बहुत ज्यादा शर्म की बात है कि शेख पालतू पल्टू जी अपना हवलदारत्व ज्यादा दिन तक ‘एन्जॉय’ नहीं कर पाए। 34 बंगाल नेटिव इन्फैंट्री, जिसके मंगल पांडे सैनिक थे और लेफ्टिनेंट बॉघ जी अफसर – इस पूरी इन्फैंट्री को बर्खास्त कर दिया गया था। क्यों? क्योंकि वो चुपचाप इस हृदय-विदारक गौभक्त-हिंसा को देखते रहे थे, अफसरों का कहना नहीं माना था। उसी 34 बंगाल नेटिव इन्फैंट्री के कुछ दुष्ट पूर्व-सैनिकों ने (गुप्त सूत्र बताते हैं कि वे सभी सवर्ण, मनुवादी, गौभक्त हिन्दू थे) धोखे से शेख पल्टू जैसे निश्छल वीर को ‘खोपचे’ में बुलाया और इनकी mob-lynching कर दी… और इस तरह शेख पल्टू गौभक्तों के आतंक को रोकने वाले पहले वीर भी थे, और mob lynching के पहले शहीद भी!

(जिन्हें इस कहानी पर शक है, उन्हें पूरा निमंत्रण है कि निम्नलिखित किताबों को खंगालें…)

  • The Indian Mutiny of 1857: Colonel George Bruce Malleson
  • Eighteen Fifty-Seven: Surendra Nath Sen

‘जीजाजी’ बने प्रचार समिति के अध्यक्ष: कई बड़े कॉन्ग्रेसी नेता इनके नीचे, जानें उनके Qualifications

रॉबर्ट वाड्रा पूरे भारत में कॉन्ग्रेस पार्टी के लिए चुनाव प्रचार करने का ऐलान कर चुके हैं। अपनी सास सोनिया गाँधी, बीवी प्रियंका गाँधी और साले राहुल गाँधी की सफलता के लिए वाड्रा भारत भ्रमण पर निकलेंगे। वाड्रा ने कहा है कि यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गाँधी और कॉन्ग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गाँधी के नामांकन पत्र भरने के बाद वह पूरे भारत में कॉन्ग्रेस पार्टी के लिए प्रचार करेंगे।

रॉबर्ट वाड्रा ने रविवार (अप्रैल 7, 2019) को कहा कि वह अमेठी और रायबरेली में राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी के नामांकन भरते समय उनके साथ मौजूद रहेंगे। वह इन दोनों नेताओं के लोकसभा क्षेत्रों में जाकर चुनाव प्रचार भी करेंगे। राहुल गाँधी 10 अप्रैल को अमेठी में तो सोनिया गाँधी 11 अप्रैल को रायबरेली लोकसभा सीट से नामांकन पत्र दाखिल करेंगी।

कॉन्ग्रेस के लिए रॉबर्ट वाड्रा के चुनाव प्रचार में शामिल होने की खबर पर केंद्रीय वित्त मंत्री और वरिष्‍ठ भाजपा नेता अरुण जेटली ने कहा, “मुझे नहीं पता यह कॉन्ग्रेस के चुनाव प्रचार के लिए फायदेमंद होगा या फिर भाजपा के चुनाव प्रचार के लिए।” वहीं, अरुण जेटली के अलावा केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने भी रॉबर्ट वाड्रा के इस ऐलान पर चुटकी ली है। स्मृति ईरानी ने वाड्रा के इस बयान पर टिप्पणी करते हुए कहा, “मैं इतना ही कहना चाहूँगी कि जहाँ-जहाँ रॉबर्ट वाड्रा प्रचार करने जाना चाहते हैं, वहाँ की जनता आगाह हो जाए और अपनी जमीनें बचा ले।”

वाड्रा की चुनाव प्रचार समिति में ये नेता हो सकते हैं

हमारे गुप्त सूत्रों से पता चला है कि कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने वाड्रा की अध्यक्षता में एक चुनाव प्रचार समिति भी गठित कर दी है। 10 जनपथ में सेंध लगाए ऑपइंडिया के गुप्त सूत्रों ने हमें एक लिस्ट भी भेजी है जिसमे वाड्रा की चुनाव प्रचार समिति के संभावित सदस्यों के नाम हैं। आगे हम आपको बताएँगे कि इस सूची में किन नेताओं के नाम हैं और उन्हें क्या ज़िम्मेदारियाँ सौंपी जाएँगी। साथ ही, उनको क्यों चुना गया, इसपर भी हम चर्चा करेंगे। सबसे पहले देर न करते हुए उस गुप्त सूची को निकाल कर दुनिया के सामने पेश करते हैं:

मणि शंकर अय्यर: मोदी को कॉन्ग्रेस की सभा में चाय बेचने की सलाह देकर ही मणि शंकर अय्यर वाड्रा की गुड बुक्स में आ गए थे। ऊपर से पाकिस्तान में मोदी को हराने की अपील कर तो मानो उन्होंने वाड्रा का दिल ही जीत लिया। गदगद वाड्रा ने उन्हें चुनाव प्रचार समिति का उपाध्यक्ष बनाया है। गुप्त सूत्रों ने बताया कि एक साल तक जब अय्यर कॉन्ग्रेस से निलंबित थे, तब उनका दाना-पानी वाड्रा ही चला रहे थे। भगवान राम के जन्म पर संदेह करने वाले अय्यर की वफादारी पर वाड्रा को कोई संदेह नहीं है।

नवजोत सिंह सिद्धू: वाड्रा ने सिद्धू को अपनी चुनाव प्रचार समिति की विदेश विंग का प्रमुख बनाया है। उन्हें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से उनके अच्छे संबंधों का फ़ायदा मिला। वो जल्द ही पाकिस्तान रवाना होंगे। इस्लामाबाद और रावलपिंडी में उनकी रैली प्रस्तावित भी हो चुकी है। जब सिद्धू ने सोनिया गाँधी का चरण स्पर्श किया था, तभी से वाड्रा उनके फैन हो गए थे।

जगदीश टाइटलर: जगदीश टाइटलर को वाड्रा अपने गुरु की तरह मानते हैं। शायद इसीलिए उन्हें चुनाव प्रचार समिति में रखा गया है। अदालतों और जाँच एजेंसियों का चक्कर लगाते-लगाते टाइटलर को क़ानून से बचने के सारे तरकीबों का ज्ञान हो चुका है और वाड्रा उनसे अक्सर सीखते रहते हैं। टाइटलर की दाढ़ी उन्हें एक इलीट लुक देती है और वाड्रा को इलीट लोग पसंद हैं।

दिग्विजय सिंह: दिग्गी राजा ने जबसे दूसरी शादी की है, तभी से वाड्रा को उनमें अच्छी काबिलियत नज़र आ रही है। पुरुषों एवं महिलाओं के बीच उनकी लोकप्रियता को देखते हुए दिग्विजय को इस चुनाव प्रचार समिति का मार्गदर्शक बनाया गया है। गुप्त सूत्रों ने विशेष जानकारी देते हुए कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान वाड्रा की सारी सुख-सुविधाओं का ख्याल रखने की जिम्मेदारी भी दिग्विजय को ही दी गई है। मीनाक्षी नटराजन को ‘टंच माल’ कह चुके दिग्गी वाड्रा की समिति में टंच एंट्री लेंगे। दिग्विजय समय-समय पर वाड्रा को रिलेशनशिप सलाह देते रहते हैं।

कपिल सिब्बल: इन्हे वाड्रा की चुनाव समिति में इसीलिए रखा गया है ताकि अगर बीच में उनके ख़िलाफ़ अदालत से कोई समन वगैरह आता है तो स्थिति को संभाला जा सके। सुबह अनिल अम्बानी को गाली देकर दोपहर में उसी अनिल अम्बानी के लिए अदालत में पेश होने वाले सिब्बल वाड्रा की चुनाव प्रचार समिति के अकेले ऐसे सदस्य होंगे जो चुनाव प्रचार नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें देखकर आदमी तो दूर, जानवर भी भाग जाते हैं। चुनावी दौरों में इन्हे बुर्के में रखा जाएगा।

इन सबके अलावा कुछ ऐसे नेता भी हैं, जिन्होंने वाड्रा की चुनाव प्रचार समिति में शामिल होने के लिए आवेदन तो दिया था लेकिन उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया। शशि थरूर इस समिति में आना चाहते थे लकिन वाड्रा को उनकी अंग्रेजी से आपत्ति है। वाड्रा का मानना है कि देश की अधिकतर जनता उनकी तरह ही किसान है और किसान इतनी ज्यादा अंग्रेजी नहीं जानते। नरेंद्र मोदी को अनपढ़ और गँवार कह चुके संजय निरुपम के आवेदन को वाड्रा इसीलिए रिजेक्ट कर दिया क्योंकि उनका मानना है कि मोदी भले ही जो भी हों लेकिन वो भी उनकी ही तरह काफ़ी नीचे से ऊपर आए हैं। इसलिए ऐसे कमेंट्स का वाड्रा विरोध करते हैं।

वाड्रा की चुनाव प्रचार समिति का टैगलाइन होगी ‘मोदी के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसका देंगे!!

ज़मीन से जुड़े, ज़मीन-प्रेमी वाड्रा ने मोदी के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसकाने की ठान ली है।

वाड्रा धरती को माता मानते हैं। वो रोहित शेट्टी की ‘ज़मीन’ (2003) की एक सीडी हमेशा अपने पास रखते हैं, जो उनकी फेवरिट फ़िल्म है। हमारे गुप्त सूत्र दिग्वजय सिंह से वाड्रा के बारे में अन्य जानकारी निकलवाने में लगे हुए हैं।

भारतीय संस्कृति का रंग जब विदेशियों पर चढ़ता है, तो पहुँच जाते हैं भारत के आंगन में

भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वाधिक प्राचीन और समृद्ध संस्कृतियों में से एक है। भारत को विश्व की सभी संस्कृतियों की जननी माना जाता है। अब इसमें चाहे जीने की कला हो या तकनीकी क्षेत्र का विकास हो या फिर राजनीति और समाजिक विकास ही क्यों न हो, इन सभी में भारतीय संस्कृति का हमेशा से ही एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। भारतीय संस्कृति आज भी अपने परंपरागत अस्तित्व के साथ अजर-अमर बनी हुई है। तमाम कमियों (भौतिक) के बावजूद कुछ अच्छाइयाँ या यूँ कह लें कि यहाँ का जीवन-दर्शन ऐसा है कि भारत की सीमाओं से बाहर रहने वाले लोग एक न एक बार यहाँ आने के ख़्वाहिश पाले रहते हैं। कुछ तो आकर ऐसे घुल-मिल जाते हैं जैसे उनका कुछ नाता हो यहाँ से।

विल स्मिथ की भारत-यात्रा

हाल ही में हॉलीवुड के सुपरस्टार माने जाने वाले विल स्मिथ भारत आए थे। उन्होंने हरिद्वार जाकर पूजा-पाठ भी किया। उनका कहना है कि भारत आना उनके लिए बेहद सुखद अनुभव होता है। 50 वर्षीय स्मिथ ने भारत यात्रा से जुड़ी कई तस्वीरें इंस्टाग्राम पर पोस्ट की। अपनी तस्वीर शेयर करते हुए उन्होंने एक कैप्शन भी दिया, जिसमें उन्होंने लिखा, “मेरी दादी कहती थीं कि भगवान अनुभव के माध्यम से सिखाते हैं।” वो कहते हैं कि भारत की यात्रा और रंगों से उन्हें अपनी कला और दुनिया की सच्चाई को जानने के लिए एक नई समझ मिलती है।

हरिद्वार में पूजा करते विल स्मिथ

ख़बर के अनुसार, स्मिथ जल्द ही एक वेब सीरीज़ ‘बकेट लिस्ट’ में नज़र आने वाले हैं और इस सीरीज़ में वो अपनी भारत से जुड़ी सभी ख़्वाहिशों को पूरा करते नज़र आएँगे। भारत के प्रति उनका यह लगाव पहली बार नहीं है बल्कि वो पहले भी भारत के प्रति अपना लगाव जता चुके हैं।

जूलिया रॉबर्ट के लिए हिन्दू धर्म

ऐसी ही भावनाएँ हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट की भी हैं, जो हिन्दू धर्म से इतना प्रभावित थीं कि उन्होंने हिन्दू धर्म ही अपना लिया। इसके पीछे उन्होंने वजह बताई थी कि हिन्दू धर्म में शांति और सुकून है। दरअसल वो अपनी एक फ़िल्म ‘ईट प्रे लव’ की शूटिंग के लिए भारत आई थीं और वो तभी से हिन्दू बन गईं। ऑस्कर पुरस्कार विजेता जूलिया ने कहा था कि अब वह अपने कैमरामैन पति डेनियल मोडर और तीन बच्चों हैजल, फिनायस और हेनरी के साथ भजन-कीर्तन तथा प्रार्थना करने के लिए मंदिरों में जाती हैं। भारत की आध्यात्मिक शक्ति ने जूलिया को भारत का दीवाना बना दिया।

योग साधना में लीन जूलिया रॉबर्ट्स

जापान की मयूमी ने जब छोड़ दी थी जॉब

राजस्थान की कला और संस्कृति से दुनिया भली-भाँति परिचित है। यहाँ के महल और हवेलियों ने विदेशी पर्यटकों को हमेशा से ही अपनी ओर आकर्षित किया है। जापान की एक महिला मयूमी मारवाड़ के कालबेलिया डांस की ऐसी दीवानी हुईं की वो पिछले कई सालों से जोधपुर में नृत्य सीखने आ रही हैं। ख़बर के अनुसार, जोधपुर की एक बेटी ने मयूमी को अपने पारम्परिक नृत्य कला सिखाई।

जापान की मयूमी अब हैं कालबेलिया डांसर

मारवाड़ के कालबेलिया डांस को सीखने के बाद मयूमी जापान के टोक्यो और सपोरो शहर में कालबेलिया डांस सिखा रही हैं। अब तक वो कम से कम 50 जापानियों को मारवाड़ का यह नृत्य सिखा चुकी हैं। मयूमी को राजस्थान का यह डांस तो भाया ही, साथ ही उन्हें राजस्थानी कल्चर भी ख़ूब भाया। बता दें कि जोधपुर की कालबेलिया डांसर आशा ने मयूमी को कड़ी मेहनत और लगन से यह डांस और गाना सिखाया। मयूमी ने अपना ये शौक अपनी जापानी जॉब छोड़कर पूरा किया था। कालबेलिया डांस सीखने के बाद उन्होंने जॉब छोड़कर जापान के दो शहरों में कालबेलिया डांस की क्लास लेना शुरू कर दिया।

जॉर्ज हैरिसन: हरे कृष्ण आंदोलन और हिन्दू धर्म

जॉर्ज हैरिसन भी एक ऐसा ही नाम है, जिन्होंने 1960 के मध्य में हिन्दू धर्म को अपनाया था। पेशे से वो बीटल संगीतकार थे। साल 2001 में जब उनका देहांत हुआ था तो उनका अंतिम संस्कार हिन्दू परम्परा के अनुसार किया गया और उनकी अस्तियों को गंगा-यमुना नदी में प्रवाहित किया गया था। ख़बरों के अनुसार हैरिसन के बारे में कहा जाता है कि हरे कृष्णा आंदोलन से जुड़ने के बाद उन्होंने हिन्दू धर्म अपनाया था।

अपने जमाने के मशहूर बीटल बैंड वाले जॉर्ज हैरिसन रामनामी चादर ओढ़े

रसेल ब्रांड की हिन्दू शादी

हिंदू धर्म अपनाने वालों में एक नाम ब्रिटिश अभिनेता रसेल ब्रांड का भी है। पहले वो ड्रग्स के शिका थे। हिंदू धर्म अपनाने के बाद उनकी यह लत छूट गई। वो हिंदू धर्म से इतना प्रभावित थे कि उन्होंने अपनी शादी भी हिंदू रीति-रिवाज़ से की थी। 23 अक्टूबर 2010 में उन्होंने राजस्थान के रणथंभोर टाइगर रिज़र्व में मशहूर सिंगर केटी पेरी से शादी रचाई थी। रसेल का कहना है कि हिंदू धर्म इंसान की आत्मा को मुक्ति की तरफ ले जाता है, जबकि दूसरे धर्म व्यक्ति को सांसारिक रूप से ग़ुलाम बनाने की कोशिश करते हैं। वो मंदिरों में जाकर घंटों ध्यान लगाते हैं और भगवान कृष्ण का भजन गाते हैं।

भारतीय होना अपने-आप में बड़े गर्व की बात है। यहाँ हर तरह की कला-संस्कृति को फलने-फूलने का एक समान अवसर मिलता है। यह गर्व की बात और बड़ी हो जाती है जब कोई विदेशी नागरिक भारत के संदर्भ में अपने उच्च विचार साझा करता है। ऐसे बहुत से विदेशी नागरिक हैं, जो भारतीय परंपराओं को सर्वोपरि मानते हैं और उसे आत्मसात करने का पूरा प्रयास करते हैं। हमारे देश की सभ्यता का गुणगान जब दूसरे देश के लोग करते हैं तो शायद ही ऐसा कोई भारतीय होगा जिसका सिर गर्व से ऊँचा नहीं उठेगा।