Sunday, September 29, 2024
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शिवलिंग का ‘अपमान’, फिल्म का हीरो सलमान खान: BJP चाहती है दर्ज हो FIR

मध्य प्रदेश में एक जगह है – महेश्वर। नर्मदा नदी के किनारे बसे हुए इस शहर का नाम भगवान शिव के ऊपर रखा गया है। 1-2 दिनों से यह शहर चर्चा में है। चर्चा में क्योंकि यहाँ सलमान खान ‘पधारे’ हैं। दबंग-1 और दबंग-2 की अपार सफलता के बाद अब वो दबंग-3 बनाने के लिए यहाँ पूरे लाव-लश्कर के साथ आ पहुँचे हैं।

फिल्म बननी शुरू हो, उससे पहले ही उसका प्रचार हो जाए, इसको मार्केटिंग कहते हैं। महेश्वर में फिल्म के डायरेक्टर प्रभु देवा की ओर मुँह किए, नीले रंग की शर्ट पहने, पीछे कॉलर में ऐविएटर चश्मा खोंसे सलमान ने अपनी फोटो इंस्टाग्राम पर डाल कर 14 लाख लोगों (और ट्विटर पर लगभग 60000 लोग) को अपने ‘दबंग’ होने का अहसास भी करा दिया। लेकिन फिल्म की यूनिट से एक गलती हो गई और सारी मार्केटिंग पर भारी पड़ गई।

शिवलिंग के सामने पैर करके बैठा शूटिंग क्रू का बंदा (फोटो साभार: भास्कर)

हुआ यह कि जिस जगह शूटिंग चल रही थी, वहाँ एक शिवलिंग है। शूटिंग आराम से हो, इसके लिए क्रू के लोगों ने शिवलिंग के ऊपर तखत (टेबल के आकार का, हाइट में कम) रख दिया। और तो और क्रू के दो मेंबर उस तखत के ऊपर चढ़कर बड़े आराम से प्री-शूटिंग का काम कर रहे थे। शूटिंग देखने गए लोगों ने इस सीन का वीडियो बना लिया, कुछ ने फोटो ले ली। बस फिर क्या था, सोशल मीडिया में यह बात आग की तरह फैल गई।

शिवलिंग के ऊपर रखे तखत पर चढ़ कर काम करते शूटिंग क्रू के लोग (फोटो साभार: नई दुनिया)

ख़बर वायरल हो गई। भगवान शिव का अपमान हो और लोग चुप बैठें! स्थानीय लोग और मीडिया शूटिंग रुकवाने पहुँच गए। बात बिगड़ती देख कर सलमान खान ने भावनात्मक अपील की। उन्होंने कहा कि वो बड़े शिव भक्त हैं और मुख्यमंत्री कमल नाथ के कहने पर शूटिंग करने आए हैं। यह स्वीकार भी किया कि शिवलिंग का सम्मान करते हुए उसके ऊपर तखत उन्होंने ही रखवाया था और जब कुछ लोगों ने उसका दुरुपयोग किया तो तत्काल हटवा भी दिया।

पब्लिक के गुस्से को शांत करने के लिए उन्होंने स्टार फीलिंग वाली अपील की। उन्होंने लोगों से कहा कि शूटिंग से पहले और बाद में वो जितनी चाहे उतनी फोटो उनकी ले सकते हैं, बस शूटिंग के दौरान न लें। अपने आप को लोगों और मीडिया से जुड़ा दिखाने के लिए उन्होंने अपने ही बाउंसर को एक थप्पड़ भी मार दिया। स्थानीय पुलिस और फैन का शुक्रिया अदा करने के लिए ट्विटर पर छोटा सा एक वीडियो भी डाल दिया। ठीक ही कहा है किसी ने – बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हुआ!

यह मामला तब और बिगड़ गया जब भाजपा के विधायक रामेश्वर शर्मा ने सलमान खान के खिलाफ केस दर्ज करने की माँग की। विधायक रामेश्वर शर्मा का कहना है कि जब से राज्य में कॉन्ग्रेस की सरकार आई है, तब से हिन्दू धर्म और प्रतीकों को नीचा दिखाने का खेल खेला जा रहा है। एक अन्य भाजपा नेता हितेश वाजपेयी ने तो यहाँ तक कह दिया कि जो ‘लोग’ वंदे मातरम बोलने तक से परहेज करते हैं, वो अब शिवलिंग के ऊपर चढ़ कर नाचेंगे!

अगस्ता वेस्टलैंड डील: ED का दावा, 2004 से 2016 के बीच ‘RG’ को मिले ₹50 करोड़

प्रवर्तन निदेशालय ने दावा किया है कि संक्षिप्त रूप से ‘RG’ के नाम से जाने जाने वाले व्यक्ति को अगस्ता वेस्टलैंड सौदे के संबंध में 2004 से 2016 के बीच ₹50 करोड़ मिले हैं।

इंडिया टुडे की एक ख़बर के अनुसार, प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने आरोपी सुशेन गुप्ता को हिरासत में लेते हुए एक चौंकाने वाला ख़ुलासा किया है। सुशेन को ED ने मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम (PMLA) के तहत 25 मार्च की देर रात को गिरफ़्तार किया था।

ED के आवेदन में कहा गया है, “सुशेन गुप्ता जानबूझ कर अपनी डायरी में ग़लत संक्षिप्त विवरण देकर जाँच को ग़लत ठहरा रहे हैं, जिसमें ‘RG’ का इस्तेमाल एक एब्रिवेशन (संक्षिप्त विवरण) के तौर पर कई पन्नों के अलावा पेन ड्राइव डेटा में भी मिला है।”

ED ने अपने आवेदन में कहा, “2004 से 2016 के बीच ₹50 करोड़ से अधिक की राशि ‘RG’ द्वारा प्राप्त की गई है, जबकि सुशेन गुप्ता द्वारा ‘RG’ की पहचान रजत गुप्ता के रूप में की गई, जिसके द्वारा 2007 से सुशील गुप्ता के साथ नकद लेन-देन स्वीकार किया गया था।

प्रवर्तन निदेशालय का मानना ​​है कि सुशील गुप्ता जानबूझकर उस व्यक्ति की वास्तविक पहचान का ख़ुलासा नहीं कर रहे हैं, जिसे ‘RG’ कहा जाता है। सुशेन गुप्ता ने दावा किया है कि उक्त “RG” एक रजत गुप्ता, जो राम हरि राम ज्वैलर्स का निदेशक है।

कथित तौर पर, ED ने सुशेन गुप्ता के दावों को प्रमाणित करने के प्रयास किया और रजत गुप्ता से भी पूछताछ की। हालाँकि, रजत गुप्ता ने ED को यह कहते हुए जवाब दिया कि उन्हें ’RG’ के संक्षिप्त नाम से कोई सरोकार नहीं है और इसे केवल सुशेन गुप्ता ही बता सकते हैं।

इससे पहले, ED ने एक बम गिराते हुए यह उल्लेख किया था कि केस के सिलसिले में क्रिश्चियन मिशेल से पूछताछ के दौरान श्रीमती गाँधी का भी नाम सामने आया था।

हाल ही में, सीबीआई की विशेष अदालत ने मामले में राजीव सक्सेना की याचिका को मंज़ूर कर लिया था। 1973 की दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 306 के तहत अपने आवेदन में, राजीव सक्सेना ने पूर्ण और सच्चे प्रकटीकरण के मामले में क्षमा के लिए प्रार्थना की थी।

बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल को दुबई से भारत लाए जाने के बाद से ही अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलिकॉप्टर घोटाले की जाँच में बड़ा घटनाक्रम देखने को मिला है। “इटैलियन लेडी”, “इटैलियन लेडी का बेटा R”, के नाम से, क्रिश्चियन मिशेल यूरोफाइटर की पैरवी कर रहे थे और राफ़ेल सौदे के ख़िलाफ़, कैसे उसने कॉन्ग्रेस के शासनकाल में पीएमओ तक अपनी पहुँच बनाई थी, इससे संबंधित अनेकों ख़ुलासे हुए।

‘स्पीडब्रेकर’ ममता के बंगाल में भाजपा बूथ कार्यालय पर लटकी मिली मज़दूर की लाश

सिलिगुड़ी में अभी नरेंद्र मोदी की विशाल जनसभा को हुए एक दिन भी नहीं बीता कि वहाँ से आज (अप्रैल 4, 2019) सुबह खबर आ गई कि 42 साल के एक व्यक्ति का शव बीजेपी के बूथ ऑफिस में लटका हुआ मिला है।

मीडिया खबरों के मुताबिक ये घटना म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन वॉर्ड नम्बर 36 में हुई है। मृतक की पहचान नित्या मंडल के रूप में की गई है, जो वहाँ मज़दूर का काम करता था। पुलिस अभी तक मौत के कारण की पुष्टि नहीं कर पाई है, लेकिन मामले की जाँच शुरू कर दी गई है।

यहाँ बता दें कि कल (अप्रैल 3, 2019) ही पीएम मोदी ने सिलीगुड़ी जनसभा को संबोधित करने के दौरान ममता बनर्जी को राज्य के विकास में ‘स्पीडब्रेकर’ बताया था। और ठीक एक दिन बाद बीजेपी को अपने कार्यालय में मज़दूर की मौत का ऐसा दृश्य देखने को मिल गया।

वैसे तो पश्चिम बंगाल हमेशा से राजनैतिक हिंसा और हत्याओं के कारण खबरों में रहा है। लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल विशेष रूप से भाजपा के खिलाफ गंभीर राजनीतिक हिंसा के लिए जाना गया। इसका हालिया उदाहरण- कुछ समय पहले पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर में भाजपा कार्यकर्ता अपूर्बा चक्रवर्ती को टीएमसी के गुंडों ने बेरहमी से पीटा था। जिसके बाद से चक्रवर्ती की हालत अब भी गंभीर है और वह वर्तमान में उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज में भर्ती हैं।

इतना ही नहीं मालदा में, भाजपा ग्राम पंचायत के सदस्य उत्पाल मंडल के भाई पटानू मंडल को भी टीएमसी के गुंडों ने उनके घर में गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके अलावा टीएमसी के एक अन्य विधायक सोवन चटर्जी और उनके मित्र बैशाखी चटर्जी को भी कथित तौर पर एक बंगले में सिर्फ़ इसलिए कैद रखा गया था क्योंकि उनके भाजपा में शामिल होने की अटकलें थीं। इतना ही नहीं पिछले साल पंचायत के चुनावों में बीजेपी उम्मीदवार की एक गर्भवती रिश्तेदार का टीएमसी के कार्यकर्ताओं द्वारा रेप तक कर दिया गया था।

स्मृति ईरानी पर अश्लील बयानबाजी मामले में महागठबंधन नेता गिरफ्तार, बेल पर रिहा

स्मृति ईरानी पर अभद्र बयान देने वाले महागठबंधन नेता जयदीप कवाडे को इसी मामले में गिरफ्तार कर लिया गया है। उन पर अश्लीलता फैलाने, मानहानि, और चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन जैसी गंभीर धाराओं में मामला दर्ज हुआ है। बाद में पुलिस ने बयान दिया कि उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया है।

मालूम हो कि पीपल्स रिपब्लिकन पार्टी के नेता कवाडे ने नागपुर के बगाड़गंज में एक चुनावी सभा में बयान दिया था कि केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी लगातार पति बदलतीं हैं, और पति बदलने के साथ उनकी बिंदी का आकार बढ़ता जाता है। इस बयान पर भाजपा और राजग ने कड़ी आपत्ति दर्ज की थी।

कवाडे पार्टी के अध्यक्ष जोगेंद्र कवाडे के सुपुत्र हैं और उनकी पार्टी शरद पवार की राकांपा और कॉन्ग्रेस के साथ महाराष्ट्र में महागठबंधन में है।

भाजयुमो ने दर्ज कराया मामला, शिवसेना नेत्री का स्मृति को समर्थन और चुनाव आयोग से गुज़ारिश

नागपुर लोकसभा क्षेत्र के भाजयुमो (भारतीय जनता युवा मोर्चा) कार्यकर्ताओं ने चुनाव अधिकारी मदन सूबेदार के पास यह शिकायत दर्ज कराई थी। सूबेदार ने मामला आईपीसी की धाराओं 295(A) [दूसरों की मजहबी भावनाओं को जानबूझ कर ठेस पहुँचाने की दुर्भावना से कार्य करना], 500 [मानहानि], 294 [अभद्र कृत्य अथवा गाने], और 171(G) [चुनावों के सम्बन्ध में झूठ बोलना] के तहत मामला दर्ज किया है।

शिवसेना नेत्री नीलम गोढ़े ने इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताते हुए केन्द्रीय चुनाव आयोग से ऐसा तंत्र विकसित करने की अपील की जिसके अंतर्गत नेत्रियों के व्यक्तिगत जीवन पर आक्षेप करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई की जा सके। उन्होंने यूरोप का उदाहरण दिया जहाँ ऐसे तंत्र स्थापित और क्रियाशील हैं।

मौजूद कॉन्ग्रेस नेताओं ने नहीं तोड़ी चुप्पी

भाजयुमो का यह भी आरोप है कि जब कवाडे ने यह हरकत की तो वहाँ राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और कॉन्ग्रेस नेता अशोक चव्हाण, कॉन्ग्रेस नेता विलासराव मुत्तेमवार, कॉन्ग्रेस उम्मीदवार नाना पटोले समेत पार्टी के कई नेता मौजूद थे पर किसी ने इस पर आपत्ति दर्ज नहीं की।

यदि भाजयुमो का यह आरोप सही है तो यह कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी की महिला सशक्तिकरण की राजनीति पर गंभीर सवाल उठाता है।

लॉ स्टूडेंड का दावा मुस्लिम होने के कारण किया गया परेशान, फैकल्टी ने आरोपों से किया इनकार

ट्विटर पर एक लॉ स्टूडेंट, उमाम खानम ने अपने साथी छात्रों और अपने फैकल्टी के सदस्यों के ख़िलाफ़ परेशान किए जाने संबंधी गंभीर आरोप लगाए। अपने ट्वीट्स में खानम ने दावा किया कि परेशान करने वाले छात्र शराब के नशे में थे।

खानम ने आरोप लगाया कि छात्रों ने उसे बीजेपी की टोपी पहनने के लिए मजबूर किया। इसी के लिए उसे परेशान किया गया क्योंकि खानम ने वो टोपी पहनने से इनकार कर दिया था। खानम ने अपने ट्वीट में यह भी लिखा कि जब वो छात्र उसे टोपी पहनने के लिए मजबूर कर रहे थे और परेशान कर रहे थे तो वहाँ मौजूद पुरुष अध्यापकों ने इस तथ्य को नज़रअंदाज़ किया।

इस मामले की जाँच करने पर चिंतित नेटिजन्स ने पाया कि उनके ट्वीट थ्रेड में जिन पुरुष अध्यापकों का उल्लेख किया गया है, वह मेरठ के दीवान लॉ कॉलेज के विभागाध्यक्ष थे। कॉमेडियन अहमद शरीफ के साथ रेड पिल्स पॉडकास्ट के साथ चाई के सह-होस्ट दुष्यंत दुबे ने H.O.D से संपर्क किया। दूबे की अंबुज शर्मा से फोन पर हुई बातचीत से पता चला कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था। कॉल की रिकॉर्डिंग OpIndia.com द्वारा एक्सेस की गई है।

दुबे से बात करते हुए, शर्मा ने पुष्टि की कि खानम वास्तव में कॉलेज की छात्रा हैं और वह ख़ुद इस ट्रिप पर जाने वाले शिक्षकों में से एक था। उन्होंने यह भी दावा किया कि खानम के आरोप बेबुनियादी हैं उसका सच से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था।

एक अन्य व्यक्ति जिसने H.O.D से संपर्क किया। मधुर सिंह हैं जो हैंडल @ThePlacardGuy के तहत ट्वीट करते हैं। सिंह से बात करते हुए, शर्मा ने कहा, “नहीं, इसमें से ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बच्चों ने एक ट्रिप का आयोजन किया इसलिए हम इनके साथ गए। बच्चों ने इस ट्रिप का आनंद लिया।” पुरुष फैकल्टी के वहाँ मौजूद होने के बावजूद पूरी बात को नज़रअंदाज़ करने की बात पर, शर्मा ने कहा,” अगर वह ऐसा कह रही है, तो वह ग़लत हैं।”

OpIndia.com ने भी शर्मा से मामले की जानकारी लेने के लिए संपर्क किया। शर्मा ने हमसे बात करते हुए पूरी घटना से इनकार किया और कहा कि वह इस मामले को देखेंगे जब वह कॉलेज में जाएँगे। उन्होंने इस बात से भी इनकार किया कि किसी छात्र ने शराब का सेवन किया था।

TikTok बैन से ध्रुव राठी, कुणाल कामरा, केजरीवाल आदि के मानवाधिकार हनन की योजना बना रही है मोदी सरकार- सूत्र

मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता के बाद अखंड भारत में सीधा आजादी के बाद 2 ऐसी सभ्यताओं का उदय हुआ था, जिनके कारण आम जनमानस का जीवन सुलभ हो सका था, पहली थी नेहरुवियन सभ्यता, जिसके साक्ष्य आज भी मौजूद हैं और यदाकदा पुरस्कार वापसी के दौरान खुदाई में वो नजर भी आते हैं और दूसरी है टिकटॉक सभ्यता। आम चुनावों के बीच टिकटॉक जैसे क्रिएटिव प्लेटफॉर्म पर प्रतिबन्ध लगाने जैसी ख़बरें निराशाजनक और निहायत ही दुखदायी हैं।

मद्रास हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि टिकटॉक एप्लीकेशन की डाउनलोडिंग और मीडिया द्वारा प्रसारण पर भी प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। पिछले 4-5 सालों में तमाम तरह की कॉन्सपिरेसी थ्योरी का प्रतिपादन कर चुके तर्कशास्त्री भी ये बात नहीं जान पाए कि टिकटॉक को प्रतिबंधित करना फासिस्ट मोदी सरकार की एक दीर्घकालीन योजना है, जिसके जरिए वो विपक्ष को लगभग शोले फिल्म के ठाकुर जैसा बना देने पर उतर आई है। पत्थरबाजों की कुटाई और आतंकवादियों पर सर्जिकल स्ट्राइक कर के लोकतंत्र की जमकर हत्या करने के कारण चर्चा में आई मोदी सरकार अब नई साजिश लेकर आई है, जिसे समझना जरुरी है।

वास्तव में, इस टिकटॉक नाम की एप्प ने जितना रोजगार सृजन का अवसर लोगों को दिया है, वो आँकड़े चकित करने वाले हैं। हालाँकि, ये आँकड़े विभिन्न भाषाओं में फेसबुक पोस्ट का अनुवाद करने वाले पत्रकारों के स्रोतों ने नहीं जारी किए हैं, इसलिए इनकी विश्वसनीयता पर शक करना गलत होगा। जिस उम्र में हम गाँव में मिट्टी घरों में खोदकर मिट्टी खाया करते थे उस उम्र में आज का युवा पेसिफिक मॉल की पार्किंग में अपने लायक स्पेस तलाश कर ‘तूतक तूतक तूतिया’ गाने पर कदमताल कर के दुनिया के सामने अपनी प्रतिभा साबित कर रहा है तो इसमें नरेंद्र मोदी सरकार का हाईकोर्ट के जरिए हस्तक्षेप करवाना क्या उन युवाओं की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर हमला नहीं है?

जो युवा सप्ताह और महीने भर तक एक कमरे से दूसरे में उठकर नहीं जाते थे वो भी अब सुबह नहा-धोकर टिकटॉक पर अपने वीडियो पोस्ट करने के लिए मेकअप कर के, तरह-तरह के बालों डिजाइन से पिरामिड और मीनारें बनाकर लोगों को दिखाने लगे हैं, तो इस राष्ट्रवादी सरकार को इस तरक्की से समस्या होनी शुरू हो गई है। स्पष्ट है कि यह युवा विरोधी सरकार है।

टिकटॉक ने सिर्फ इन मनचले युवाओं को ही नहीं बल्कि कुछ ऐसे कॉमेडियंस को भी रोजगार और प्लेटफॉर्म दिया है, जिन्हें कभी अर्चना पूरण सिंह बात-बात पर टीवी पर ‘स्टैंडिंग ओवेशन्स’ दिया करती थी। जिस दिन स्टैंडिंग ओवेशन देने के तरीकों की शॉर्टेज पड़ी थी, उसी दिन से कॉमेडी के नाम पर चल रहे इन कॉमेडी प्रोग्राम्स को बंद करना पड़ा था।

लेकिन राजनीति के नजरिए से भी यह एप्प बहुत सहायक साबित होने वाली है। मई में आम चुनाव निपट जाने के बाद ये महागठबंधन के सामूहिक रोजगार के काम आ सकती है।

संकट की घड़ी में किन लोगों का सच्चा साथी साबित हो सकता है टिकटॉक

केजरीवाल एंड पार्टी के जमानत जब्त वालंटियर्स

वो सभी नेता, जिनकी इस बार भी जमानत जब्त होने के प्रबल आसार बन रहे हैं (यदि गठबंधन हो पाया तो) उनके लिए तो ख़ासतौर से अपनी प्रतिभा के विस्तार के लिए टिकटॉक ही एकमात्र क्रिएटिव जरिया बाकी रह जाएगा। देखा जाए तो टिकटॉक एप्प के आविष्कार की प्रेरणा चीन ने आम आदमी पार्टी और इसके अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल से ही ली होगी। गुप्त सूत्रों का तो यहाँ तक मानना है कि नई वाली राजनीति के नाम पर जो चकल्लस आम आदमी पार्टी ने जनता के बीच प्रस्तुत की है, असल में टिकटॉक का मूल वर्जन और प्रस्तावना उसी से प्रेरित है। लेकिन इस सरकार ने कभी क्रेडिट और दर्जा देना नहीं सीखा है।

चिरयुवा नेता राहुल गाँधी एवं समस्त ईष्ट मित्रगण

विपक्ष के कद्दावर नेता और रॉबर्ट वाड्रा के साले राहुल गाँधी की चुनावी तैयारियों को देखकर तो अब तक यही लग रहा है कि वो अगले स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर के बजाए वो टिकटॉक की प्राचीर से राष्ट्र के नाम सम्बोधन देते हुए हुँकार भरते हुए देखे जाएँगे। क्योंकि जो तीव्र छटपटाहट सत्ता में बने रहने की नेहरुवियन सभ्यता में पली-बढ़ी गाँधी परिवार के भीतर है, मुझे नहीं लगता है कि एक और हार के बाद वो खुद को संभाल पाने की स्थिति में रहेंगे भी। ऐसे में टिकटोक पर तो कम से कम राहुल गाँधी प्रधानमंत्री बनने का अभिनय करने की अपनी तीव्र इच्छा पूरी कर सकेंगे। इसलिए मद्रास हाईकोर्ट को इस एप्प पर बैन लगाने का तुगलकी फरमान वापस लेना चाहिए।

महागठबंधन

अपनी सरकार बनाने से ज्यादा नरेंद्र मोदी को हराने के लिए लड़ रहे विपक्ष का सबसे बड़ा आविष्कार महागठबंधन नामक प्लेटफॉर्म है। लेकिन अगर नरेंद्र 2019 में फिर एक बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते हैं, तो इस महागठबंधन के पदाधिकारी अपनी संतुष्टि के लिए एक-दूसरे को टिकटॉक पर आपस में विभाग बाँटकर आपस में किए गए अपने वायदों को पूरा कर सकते हैं। इस तरह से यह भी उनकी मनोवैज्ञानिक जीत ही मानी जाएगी, इसलिए सरकार को महागठबंधन के अरमानों का गला निर्ममता से नहीं घोंटना चाहिए।

सस्ते कॉमेडियंस और अनुवादक

कॉन्ग्रेस द्वारा हायर किए गए कुछ कॉमेडियन्स, जो कि मोदी सरकार के दौरान हुए काल्पनिक घोटालों को साबित करने के लिए दूसरी आकाशगंगाओं से आँकड़े जुटाकर लोगों का मनोरंजन करने के लिए कुख्यात हैं, उनके लिए भी टिकटॉक एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। क्योंकि जिस तरह के मनगढंत तथ्य और घटनाक्रम जुटाकर वो मोदी सरकार को घेरने का प्रयास करते हैं, उन पर हँसने और उन्हें सत्य मानने वाले तर्कशास्त्रियों की टिकटॉक जैसी कालजयी सभ्यता में कोई कमी नहीं है। इसलिए इन सस्ते कॉमेडियंस को डेडिकेटेड ‘फैनक्लब’ जो टिकटॉक पर मिल सकता है वो अन्यत्र कहीं संभव नहीं है।

पेड ट्रॉल ध्रुव राठी और कॉमेडी के नाम पर स्वयं कॉमेडी कुणाल कामरा

मोदी सरकार के दौरान अस्तित्व में आए कुछ नामों में ये 2 नाम लोगों के प्रिय बहुत प्रिय रहे हैं। कुणाल कामरा सड़कों पर लोगों द्वारा कूटे जाने के कारण, (जो कि निंदनीय व्यवहार था) और इंटरनेट पर दैनिक सस्ते इंटरनेट डाटा की मेहरबानी से वायरल हुए महागठबंधन के प्रॉपेगैंडा मंत्री ध्रुव राठी विशेष चर्चा में रहे हैं। इनकी ख़ास बात ये है कि इन लोगों को रोजगार सिर्फ इस बात को दिन में 5 बार पढ़ने और लोगों को रटाने के कारण मिला है कि मोदी सरकार में रोजगार नहीं मिला।

अगर टिकटॉक प्रतिबंधित कर दिया जाता है और विपक्ष मोदी सरकार को हराने में नाकामयाब रहता है, तो ऐसे हालातों में इनके अच्छे दिन सिर्फ टिकटॉक पर अपने सस्ते वीडियोज़ बेचकर और बैकग्राउंड में बादशाह और नेहा कक्कड़ के रैप संगीत बजाकर ही आ सकेंगे। हालाँकि, जनमत संग्रह और सॉल्ट न्यूज़ फैक्ट चेकर्स का दावा है कि इनका काम अभी भी मनोरंजन करना ही है, लेकिन इन्हें अभी इनकी योग्यतानुसार ठीक प्लेटफॉर्म नहीं मिल पा रहा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि टिकटॉक पर इनके द्वारा जारी किए जाने वाले खुलासों के ज्यादा कद्रदान नेहरुवियन सभ्यता के दौरान अस्तित्व में आए समाचार चैनलों में नहीं, बल्कि टिकटॉक पर मौजूद हैं। इसलिए सरकार को चाहिए कि वो टिकटॉक सभ्यता को सुरक्षित रखने की दिशा में प्रयास करे, ना कि इसके दमन पर।

सबसे ‘रईस’ उम्मीदवार: ₹1.76 लाख करोड़ कैश, वर्ल्ड बैंक से ₹4 लाख करोड़ का लोन!

चुनावों के नज़दीक आते-आते राजनैतिक पार्टियों और राजनेताओं की हक़ीकतों का सामने आना अब जैसे आम हो चुका है। ख़बरों के अनुसार इसी कड़ी में पेरम्बुर में विधानसभा उपचुनाव के नामांकन के दौरान एक प्रत्याशी के हलफ़नामे से एक अजीबोगरीब ख़ुलासा हुआ।

निर्दलीय उम्मीदवार जे मोहनराज ने अपने हलफ़नामे में इस बात की घोषणा की कि उन्होंने ₹4 लाख करोड़ का क़र्ज़ा विश्व बैंक से लिया है। जबकि ₹1.76 लाख करोड़ इनके पास कैश के रूप में मौजूद है। वहीं मोहनराज की पत्नी के पास ₹20,000 कैश और ₹2 लाख 50 हज़ार के क़ीमती गहने हैं।

ग़ज़ब की बात तो तब हुई जब मोहनराज ने अपने इस हलफ़नामे में बताया कि उन्होंने विश्व बैंक को सारा पैसा लौटा दिया है। जेबामणि जनता पार्टी के उम्मीदवार जे मोहनराज चेन्नई के पेरम्बुर विधानसभा क्षेत्र में कार्यालय के लिए लड़ रहे हैं। खबरों के मुताबिक मोहनराज ने अपने नाम पर भारतीय बैंकों से भी ₹3 लाख की बकाया राशि के कुछ ऋण लिए हैं। चुनाव आयोग द्वारा उनका हलफ़नामा स्वीकार लिया गया है।

मोहनराज के इस हलफ़नामे में एक और घोषणा हुई है कि उन्होंने आख़िरी बार आयकर रिटर्न 2002-03 में किया था। बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है मोहनराज ने इस तरह की घोषणा की हो। हिन्दुस्तान टाइम्स में 2009 में प्रकाशित ख़बर के अनुसार उन्होंने साल 2009 के चुनावों में भी खुद को सबसे अमीर व्यक्ति दर्शाते हुए बताया था कि उनके पास ₹1,977 करोड़ की जमापूँजी है।

मोहनराज सोचते हैं कि ईमानदारी से अपनी सारी संपत्ति के बारे में बताना देशहित का कार्य है। उनके ऐसा करने के पीछे यह दर्शाना है कि किस तरह अन्य नेताओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट का मज़ाक बनाया जा रहा है और साथ ही सभी चुनावी नियमों और मानदंडों का उल्लंघन भी हो रहा है।

मोहनराज का कहना है- “अगर उच्च राजनेताओं ने अपनी पूँजी को सही घोषित किया है तो मेरी घोषणा भी सही है। मैं कहूँगा कि मेरी सारी संपत्ति स्विस बैंक में है और अगर आप काला धन वापस लाएँगे तो मेरा नाम भी उस सूची में होगा।” आपको बता दें कि मोहनराज ऐसी झूठी जानकारी केवल एक संदेश के तहत देना चाहते हैं। उनका कहना है, “2016 में मैंने दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ा था और हलफनामे में गलत जानकारी दी थी। कोई जांच नहीं हुई। जब बड़े-बड़े नेता अपने एफिडेविट में गलत जानकारी दे सकते हैं तो मैं क्यों नहीं?”

मध्यम वर्ग स्वार्थी न बने, ज़्यादा टैक्स देने के लिए कमर कसे: कॉन्ग्रेस के सैम पित्रोदा

कॉन्ग्रेस नेता सैम पित्रोदा ने मध्यम वर्ग को ज्यादा टैक्स देने के लिए तैयार रहने को कहा है। यह टैक्स राहुल गाँधी की महत्वाकांक्षी समाजवादी योजना ‘न्याय’ के लिए आर्थिक बंदोबस्त करने के लिए लगेगा। साथ ही उन्होंने मध्यम वर्ग की इस योजना को लेकर टैक्स बढ़ने की आशंका को ‘स्वार्थी’ भी करार दिया।

बता दें कि राहुल गाँधी ने इस योजना के तहत गरीबों को ₹72,000 प्रति वर्ष देने का वादा किया था। उसके बाद इसके अमल को लेकर जहाँ कॉन्ग्रेस नेताओं के बयानों में आपसी विरोधाभास रहा है, वहीं मध्यम वर्ग से लेकर भाजपा तक इस योजना की आलोचना कर इसे माध्यम वर्ग पर आर्थिक बोझ बढ़ाने वाली करार दे रहे हैं। नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविन्द पानगढ़िया ने तो इस योजना का खर्च भारत के रक्षा बजट से भी ज्यादा पहुँच जाने की आशंका जताई है।

Guilt-tripping है कॉन्ग्रेस की चुनावी रणनीति?

India Ahead News नामक समाचार पोर्टल के संवाददाता से बात करते हुए सैम पित्रोदा ने यह बात कही। साथ ही उनका मध्यम वर्ग की टैक्स बढ़ने की चिंता को ‘स्वार्थी’ कहना मध्यम वर्ग की ग्लानि-ग्रंथि को जगाने की कोशिश (guilt-tripping) प्रतीत होता है।

वामपंथ और समाजवाद में इस नीति को काफी प्रभावी माना जाता है और लोकतान्त्रिक देशों में लोकतान्त्रिक तरीके से कम्युनिज्म (साम्यवाद) के एजेण्डे की राजनीति करने वाली पार्टियाँ अक्सर इसका प्रयोग करतीं हैं।

उन्होंने हालाँकि बढ़े टैक्स की कड़वी गोली को मीठा करने के लिए और रोजगार और संभावनाओं का वादा किया, और मोदी-राज में नौकरियों के न होने का कॉन्ग्रेस का दावा भी दोहराया, पर यह रोजगार और संभावनाएँ कॉन्ग्रेस कहाँ से बढ़ाएगी, इसका उन्होंने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया।

अभिजित बनर्जी भी यह कह चुके हैं

कॉन्ग्रेस की न्याय योजना का खाका खींचने में महत्वपूर्ण सलाह देने वाले MIT, अमेरिका के अर्थशास्त्री अभिजित बनर्जी भी यह बात पहले ही साफ़ कर चुके हैं कि कॉन्ग्रेस की यह स्कीम टैक्स बढ़ाने पर टिकी है।

टीवी समाचार चैनल Times Now के टीवी डिबेट में अभिजित ने न केवल टैक्स बढ़ाने की वकालत की थी, बल्कि आवश्यकता होने पर महँगाई बढ़ा कर भी इस योजना के लिए पैसा जुटाए जाने का भी संकेत दिया था।

निजी कहकर खारिज करना मुश्किल होगा

अन्य सभी राजनीतिक दलों की भांति कॉन्ग्रेस भी अकसर अपने नेताओं के विवादित बयानों को निजी कहकर उनसे किनारा कर लेती है- शशि थरूर का प्रधानमंत्री मोदी को ‘शिवलिंग पर बैठा बिच्छू’ कहना, दिग्विजय सिंह का 26/11 में आरएसएस के हाथ का आरोप लगाना, मणि शंकर अय्यर का मोदी को हराने की गुजारिश पाकिस्तान से करना आदि। पर पित्रोदा के इस बयान से पल्ला झाड़ना कॉन्ग्रेस के लिए दो कारणों से मुश्किल हो सकता है- पित्रोदा कॉन्ग्रेस की घोषणापत्र तैयार करने वाली समिति के सदस्य हैं

गोरखपुर में बदल गई बिसात, जिसके लिए एक हुए थे सपा-बसपा, वही BJP में शामिल

गोरखपुर का हाई प्रोफाइल उपचुनाव तो आपको याद ही होगा। वही चुनाव, जिसका मीडिया ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा से जोड़ते हुए विश्लेषण किया था। उस चुनाव में सपा उम्मीदवार प्रवीण कुमार निषाद को जिताने के लिए बसपा ने सपा को समर्थन दे दिया था। उसी के बाद से यूपी महागठबंधन की नींव पड़नी शुरू हो गई थी। अब महागठबंधन का वो सेनानी अपनी पूरी निषाद सेना के साथ भाजपाई हो गया है। गोरखपुर इसीलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह योगी की कर्मभूमि है और वो पाँच बार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।

1989 के बाद पहली बार 2017 में भाजपा ने इस सीट को खोया था। निषाद पार्टी के प्रवीण को सपा ने गोरखपुर से अपना उम्मीदवार बनाया था। अब निषाद पार्टी का भी भाजपा में विलय हो गया है। ये इसीलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि गोरखपुर में जनसंख्या के मामले में निषाद समाज दूसरे स्थान पर आता है। प्रवीण निषाद ने भाजपा के दिल्ली स्थित मुख्यालय में पार्टी की सदस्यता ली। इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने भाजपा में उनका स्वागत किया।

प्रवीण के पिता व निषाद पार्टी के संस्थापक संजय निषाद ने कहा कि यूपी में रामराज के साथ निषाद राज होगा। निषाद पिता-पुत्र ने नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाने का संकल्प लिया। प्रवीण निषाद को भाजपा द्वारा गोरखपुर से लड़ाए जाने की उम्मीद है। 3.5 लाख निषाद जनसंख्या वाली गोरखपुर सीट के लिए पार्टी के भाजपा में विलय से पार्टी ने राहत की साँस ली है। अगर पूरे उत्तर प्रदेश की बात करें तो 14% निषाद, मल्लाह व केवट समाज किसी भी पार्टी की हार-जीत में बड़ी भूमिका निभाता है।

इसके अलावा आज उत्तर प्रदेश में विपक्ष के कई नेता भाजपा में शामिल हुए जिनमें निम्नलिखित प्रमुख नाम हैं:

निर्मल तिवारी, पूर्व सांसद प्रत्याशी, बसपा

कन्नौज में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ चुके निर्मल तिवारी ने भाजपा ज्वॉइन कर ली। 2014 आम चुनाव में बसपा ने उन्हें डिंपल यादव से मुक़ाबला करने के लिए उतारा था। हालाँकि, डिंपल ने इस सीट से जीत दर्ज की थी, सवा लाख से भी अधिक वोटों के साथ निर्मल तिवारी तीसरे नंबर पर रहे थे।

मोहम्मद मुस्लिम, पूर्व विधायक, तिलोई

डॉक्टर मोहम्मद मुस्लिम अमेठी ज़िला स्थित तिलोई के विधायक रहे हैं। उन्होंने 2012 में 61,000 से भी अधिक मत पाकर कॉन्ग्रेस पार्टी के टिकट से इस सीट पर जीत दर्ज की थी। 2016 में उन्हें कॉन्ग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवार कपिल सिब्बल के विरुद्ध वोट करने के कारण पार्टी से निलंबित कर दिया गया था। 2002 और 2007 के विधानसभा चुनाव में वो दूसरे स्थान पर रहे थे। वो विधानसभा में कॉन्ग्रेस के मुख्य सचेतक भी रहे हैं। तिलोई विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिमों की प्रभावी संख्या होने के कारण उनके जुड़ने से भाजपा को फ़ायदा मिलने की उम्मीद है।

सुरेश पासी, पूर्व सांसद, कौशाम्बी

कौशाम्बी (तब चायल) लोकसभा क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर 1999 में संसद पहुँचे थे। 2014 आम चुनाव में उन्होंने सपा के टिकट पर सांसद का चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें तीसरे नंबर से संतोष करना पड़ा था। उन्हें उस चुनाव में 2 लाख से भी अधिक वोट मिले थे। अंदेशा लगाया जा रहा था कि वह 2019 आम चुनाव में कौशाम्बी से महागठबंधन का चेहरा होते। लेकिन उनके भाजपा में शामिल होने से विपक्ष को इलाक़े में झटका लगा है।

नित्यानंद शर्मा, पूर्व राज्यमंत्री

भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए पूर्व राज्यमंत्री नित्यानंद शर्मा। आपको बताते चलें कि नित्यानंद शर्मा समाजवादी पार्टी मे मुलायम सिंह के बहुत क़रीबी माने जाते थे लेकिन वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा बार-बार नज़रअंदाज़ किए जाने से वह काफी आहत थे।

राम सकल गुर्जर (आगरा), पूर्व मंत्री

आगरा के जाने-पहचाने चेहरे व अखिलेश सरकार में स्वतंत्र प्रभार मंत्री रहे राम सकल गुर्जर ने भी भाजपा का दामन थाम लिया। उनके साथ पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह भी भाजपा में शामिल हुए। सपा शासनकाल में खेल मंत्री रहे गुर्जर की गिनती मुलायम सिंह यादव के करीबियों में होती है। उनके आने से इलाक़े में गुर्जर समाज के भी भाजपा का रुख़ करने की उम्मीद है। सपा सरकार में इन्हें ‘मिनी मुख्यमंत्री’ भी कहा जाता था।

प्रयागराज: BJP के मास्टरस्ट्रोक से कॉन्ग्रेस में ‘भगदड़’, रीता की एंट्री से बदला चुनावी गणित

भाजपा ने इलाहबाद लोकसभा क्षेत्र से अपने सबसे बड़े ट्रम्प कार्ड्स में से एक प्रोफेसर रीता बहुगुणा जोशी को उतारा है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में पर्यटन मंत्री के तौर पर काम कर रहीं जोशी उत्तर प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक घराने से आती हैं। उनके पिता हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और चरण सिंह सरकार में केंद्रीय वित्त मंत्री रहे हैं। उनकी माँ कमला बहुगुणा फूलपुर से सांसद थीं। उनके भाई विजय बहुगुणा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे हैं। ऐसे में, रीता बहुगुणा जोशी को राजनीति विरासत में मिली लेकिन उन्होंने अपने बलबूते कई मुकाम हासिल किए। हालाँकि, यूपी में जिस पार्टी को सँवारने के लिए उन्होंने ख़ासी मेहनत की, उन्हें वहाँ उचित सम्मान नहीं मिला और अंततः उन्होंने कॉन्ग्रेस पार्टी छोड़ दी।

रीता बहुगुणा जोशी एक समय उत्तर प्रदेश कॉन्ग्रेस संगठन की सर्वेसर्वा मानी जाती थीं। कार्यकर्ताओं के बीच उनका अच्छा-ख़ासा प्रभाव हुआ करता था। महिला कॉन्ग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुकीं रीता 2009 में उत्तर प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनीं। अपने राजनीतिक करियर के ढाई दशक कॉन्ग्रेस में गुज़ारने के बाद उन्होंने अक्टूबर 2016 में भाजपा का रुख़ किया। उन्हें मंत्री रहते इलाहाबाद से उतारना इलाहबाद सीट के महत्व और पार्टी की आगामी रणनीति को दिखाता है। हो सकता है कि अगर चुनाव बाद राजग सरकार बनती है तो उन्हें केंद्रीय मंत्री के रूप में काम करने का मौका मिले। लेकिन फिलहाल, हम यहाँ चर्चा करेंगे कि इलाहाबाद में रीता बहुगुणा जोशी के आने के बाद समीकरणों में क्या बदलाव आए हैं?

इलाहबाद सीट से ही उनके पिता ने भी 1977 के आम चुनाव में जीत दर्ज की थी। उस समय उन्हें कुल मतों का 58% प्राप्त हुआ था, यही 1,42,000 से भी ज्यादा। हालाँकि, 1984 के चुनाव में उन्हें बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा था। इलाहबाद से उन्हें उतारने के पीछे की एक वजह यह भी है कि वो यहाँ की मेयर रह चुकी हैं। भाजपा ने उनके इसी स्थानीय प्रभाव और राज्य स्तरीय लोकप्रियता को भुनाने के लिए इलाहबाद जैसी महत्वपूर्ण सीट से उतारा है। 2017 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्होंने लखनऊ कैंट से मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव को 33,000 से भी अधिक मतों से पराजित किया था। 2012 में उन्होंने यही सीट कॉन्ग्रेस के टिकट पर जीती थी।

प्रियंका गाँधी कहाँ से चुनाव लड़ेंगी, ये अभी तय नहीं हुआ है। वाराणसी, इलाहाबाद और अयोध्या में से किसी एक सीट से उनके लड़ने की चर्चाएँ चल रही हैं। इलाहाबाद के स्थानीय कॉन्ग्रेस नेताओं ने रीता बहुगुणा जोशी के वहाँ से उतरने की ख़बर सुनते ही प्रियंका को वहाँ से लड़ाने की विनती की है। कॉन्ग्रेस के अंदर ये चर्चा ज़ोरो पर है कि अगर वो नहीं लड़ीं तो ये सीट आसानी से भाजपा के खाते में चली जाएगी। उनका ऐसा मानना बेजा नहीं है। इसके पीछे की वजह समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। आज से 24 वर्ष पहले, जब वो इलाहाबाद की मेयर बनी थीं।

उन्होंने पाँच वर्ष तक मेयर का पद संभाला। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतिहास का प्रोफेसर होने के कारण पढ़े-लिखे लोगों के प्रोफशनल समूह में उनका अच्छा प्रभाव है और दो दशक बाद वो उस जगह लौट रही हैं,जहाँ उन्होंने मेयर के रूप में पाँच वर्षों तक (1995-2000) काम किया था। लेकिन, आप चौंक जाएँगे जब आपको पता चलेगा कि रीता बहुगुणा जोशी ने अब तक जो 4 लोकसभा चुनाव लड़ा हैं, उन्हें उन सभी में हार मिली है। लेकिन, फिर भी कॉन्ग्रेस के अंदर उनकी वापसी से व्याप्त भय को देख कर कोई भी सकते में आ जाए कि 4 लोकसभा चुनाव हार चुकी उम्मीदवार से कैसा भय? लेकिन नहीं, इसमें एक पेंच है जो आगामी चुनाव में इलाहाबाद की दशा एवं दिशा तय करने वाला है।

लोकसभा उम्मीदवारी तय होने के बाद रीता जैसे ही इलाहाबाद पहुँचीं, वहाँ कार्यकर्ताओं का हुजूम उमड़ पड़ा। लेकिन, आश्चर्य की बात यह थी कि वहाँ भाजपा और कॉन्ग्रेस, दोनों ही पार्टी के कार्यकर्ता एक साथ उनका स्वागत कर रहे थे। आम कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं की तो बात ही छोड़िए, जिला कॉन्ग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष संत प्रसाद पांडेय भी भाजपा समर्थकों के साथ जोशी के स्वागत में उपस्थित थे। प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी ने आगामी ख़तरे की आहट को पहचानते हुए जोशी का स्वागत करने वाले अपने पदाधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी करने का ऐलान किया है। उपाध्यक्ष और ब्लॉक प्रभारी समेत कम से कम 20 पार्टी पदाधिकारियों को पार्टी से निकाला जा चुका है, तो कुछ ने ख़ुद ही कॉन्ग्रेस को टा-टा कर दिया। ज़िला कॉन्ग्रेस कमेटी के महामंत्री और प्रवक्ता तक ने पार्टी छोड़ दिया।

लगभग दो दर्जन अन्य कार्यकर्ता और पदाधिकारी अभी भी कॉन्ग्रेस के रडार पर हैं, जिन्हे बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। रीता के पहुँचते ही पार्टी यहाँ लगभग बिखर चुकी है और प्रत्याशी चयन में फूँक-फूँक कर क़दम रख रही है। दरअसल, इलाहाबाद में ऐसे कई कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता हैं जिन्हे रीता की बदौलत पद मिला था। प्रदेश कॉन्ग्रेस अध्यक्ष रहते रीता ने इन्हे पद और सम्मान दिया था। ऐसे में, ये कार्यकर्ता और पदाधिकारी कॉन्ग्रेस के कम और रीता के ज़्यादा वफ़ादार हैं। अब जब वो इलाहाबाद लौट चुकी हैं, इन्हे नए उत्साह का संचार हुआ है और वो फिर से अपनी पुरानी नेता के आवभगत में मशगूल हो गए हैं।

रीता बहुगुणा जोशी के भाजपा में शामिल होने के बाद इलाहाबाद के कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता लगभग हाशिए पर थे। अब रीता ने लौटते ही अपनी पुरानी टीम को सक्रिय कर दिया है, जिसका सबसे ज़्यादा नुकसान कॉन्ग्रेस पार्टी को उठाना पड़ रहा है। 1999 में रीता को इलाहाबाद से हार मिली। उन्हें 1,33,000 से ज़्यादा मत मिले थे। उनके सामने भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी और इलाहाबाद राजपरिवार के कुँवर रेवती रमन सिंह थे। मुरली मनोहर इलाहाबाद से 3 बार सांसद रहे जबकि कुँवर साहब ने भी 2 बार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। दिग्गजों के इस खेल में फँसी रीता उस समय तो संसद नहीं पहुँच पाई, लेकिन बदले समय और हालत में अब वो नए उत्साह के साथ उतर रही हैं।

1998 में सपा के टिकट पर अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ रही रीता को भाजपा के देवेंद्र बहादुर राय ने हरा दिया था। 2004 में उन्हें लखनऊ से भाजपा के लालजी टंडन ने हराया था। चूँकि लखनऊ वाजपेयी का गढ़ रहा है, उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं होने की स्थिति में उनके संसदीय क्षेत्र इंचार्ज लालजी टंडन ने चुनाव लड़ा और जीते। 2014 में मोदी लहर के बीच रीता को इसी सीट से उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने हरा दिया। इस तरह से 4 लोकसभा चुनावों में हार के बावजूद जिस तरह से रीता बहुगुणा जोशी ने इलाहाबाद में एंट्री ली है, उस से ऐसा लगता है जैसे कोई दिग्गज राष्ट्रीय नेता वहाँ से चुनाव लड़ रहा हो।

कभी संयुक्त राष्ट्र द्वारा सबसे प्रतिष्ठित दक्षिण एशियाई मेयर का पुरस्कार पा चुकीं रीता इस बार मोदी-योगी का चेहरा बनाने के साथ-साथ इलाहाबाद को मेयर के रूप में शुरू किए गए विकास कार्यों की याद दिलाएँगी। अभी हाल ही में संपन्न हुए प्रयागराज कुम्भ महापर्व को सफल बनाने में भी उनकी अहम भूमिका रही है। अब कॉन्ग्रेस से इलाहाबाद सीट पर प्रियंका आए या कोई और, देखना यह है कि अपनी उम्मीदवारी के ऐलान मात्र से कॉन्ग्रेस में हड़कंप मचा देने वाली रीता अपने पिता की सीट पर जीत का पताका लहरा पाती हैं या नहीं।