केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने नागपुर सीट पर नामांकन दाखिल कर दिया है। बता दें कि गडकरी अपना क़िला बचाने के लिए पूरे दमखम से नागपुर के चुनावी मैदान में उतर गए हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय होने के कारण नागपुर संघ और भाजपा, दोनों के लिए ही प्रतिष्ठा का विषय बना हुआ है। पार्टी ने गडकरी पर एक बार फिर भरोसा जताया है। 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में नितिन जयराम गडकरी ने कॉन्ग्रेस के अपने प्रतिद्वंदी को पौने तीन लाख से भी अधिक मतों ने मात दी थी। गडकरी को 5,87,000 से भी अधिक वोट मिले थे जबकि उनके प्रतिद्वंदी विलास मुत्तेमवार को क़रीब तीन लाख वोट ही मिले। 54% वोट हासिल कर गडकरी ने यहाँ से लगभग एकतरफा जीत दर्ज की थी।
अब गडकरी ने कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं के भी अपने साथ होने का दावा किया है। पूर्व भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि उनके पास कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं के रोज फोन कॉल्स आते हैं, जिनमें वो गडकरी को वोट देने और उनका समर्थन करने की बात कहते हैं। गडकरी ने कहा कि शारीरिक रूप से भले ही कॉन्ग्रेसी कार्यकर्तागण अपनी पार्टी के लिए प्रचार-प्रसार करें लेकिन मानसिक रूप से वो सभी उनके साथ हैं। अपने संसदीय क्षेत्र में एक विशाल जनसभा को सम्बोधित करते हुए गडकरी ने कहा, “कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता मुझे बुला रहे हैं और कह रहे हैं कि मैं लोकसभा चुनाव जरूर जीतूँगा। उनका कहना है कि वह मेरे साथ हैं।“
Union Minister Nitin Gadkari in Nagpur: Congress workers are calling me and saying that I’m sure to win (Lok Sabha elections) and that they are with me. They say that physically they might be campaigning for Congress but mentally they are with me. #Maharashtrapic.twitter.com/EwCJ3iZB19
अभी हाल ही में कुछ दिनों पहले गडकरी ने दलबदलू नेताओं पर भी निशाना साधा था। चुनावी माहौल में नेतागण का टिकट के लिए एक दल से दूसरे दल में शामिल होने पर गडकरी ने सवाल उठाया था और दल-बदल को ग़लत ठहराया था। गडकरी ने कहा था कि उन्हें पहले कई लोगों ने कहा था कि वो भाजपा में फिट नहीं बैठते हैं लेकिन उनकी एक विचारधारा है और वो आज भी अपनी विचारधारा पर अडिग हैं। नितिन गडकरी अपने सीधे-सपाट जवाब और व्यवहार के कारण जाने जाते हैं। मीडिया के सवालों का जवाब देते वक्त भी वह राजनीति से हटकर विचारधारा और अपने द्वारा किए गए कार्यों की बात करते हैं।
कई लोग मज़ाक में गडकरी को सड़क एवं परिवहन के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए कार्यों की वजह से उन्हें रोडकरी भी कहते हैं। अपने इन्हीं विकास कार्यों की बदौलत गडकरी को उम्मीद है कि आगामी चुनाव में भी वह नागपुर के गढ़ में भाजपा का झंडा बुलंद रखने में कामयाब होंगे। नामांकन के दौरान दाखिल हलफनामे में गडकरी ने 25.12 करोड़ रुपए की चल और अचल संपत्ति का विवरण दिया है। अपने हलफनामे में उन्होंने जानकारी दी कि उन्हें 1,57,21,753 रुपए का क़र्ज़ भी चुकाना है। उनके पास कुल छह कारें हैं, जिनमें से चार उनकी पत्नी के नाम पर हैं।
फेसबुक ने भारत के अभिन्न अंग जम्मू कश्मीर को अलग देश बताने के बाद अपनी इस हरकत पर माफ़ी माँग ली है। सोशल नेटवर्किंग साइट के सिक्योरिटी पॉलिसी प्रमुख नैथनियल ग्लेचर ने बुधवार (मार्च 27, 2019) को एक ब्लॉग के माध्यम से कश्मीर को अलग देश बताया था। उन्होंने कश्मीर को भारत से स्वतंत्र एक अलग राष्ट्र बताया था। लोगों द्वारा आपत्ति जताने के बाद फेसबुक ने इस ब्लॉग को हटा दिया। इस पर सफाई देते हुए कम्पनी ने कहा:
“दरअसल, हम ऐसे देश और क्षेत्रों को सूचीबद्ध कर रहे थे, जिन पर ईरानी नेटवर्क का प्रभाव था। ऐसे में हमने गलती से कश्मीर को भी इस सूची में शामिल कर लिया। ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था। हमने ब्लॉग में सुधार कर लिया है। हम किसी भी तरह की ग़लतफ़हमी को लेकर माफ़ी माँगना चाहते हैं।”
गलेचार ने अपने ब्लॉग में कश्मीर को भारत से अलग सत्ता बताते हुए उसे एक अलग देश की तरह सम्बोधित किया था। उन्होंने बताया कि ऐसे हज़ारों फ़र्ज़ी पेजेज व एकाउंट्स को हटाया गया है, जिनके द्वारा आपत्तिनजक सामग्रियाँ पोस्ट की जा रही थी। इनमें ऐसे 513 पेजेज व एकाउंट्स शामिल हैं जो अलग-अलग देशों में चल रहे थे। ये मिस्त्र, भारत, इंडोनेशिया, इजरायल, इटली, कश्मीर, कजाकिस्तान, मिडिल ईस्ट और कुछ अफ़्रीकी देशों से ऑपरेट किए जा रहे थे।
आपत्ति जताने के बाद फिलहाल फेसबुक ने कश्मीर का नाम इस सूची से हटा दिया है। फेसबुक ने बताया कि ईरानी नेटवर्क के प्रभाव से ऐसा हुआ। बकौल फेसबुक, इसके लिए जिम्मेदार लोगों ने छिपने की कोशिश की लेकिन उसने इसका सिरा ईरान में ढूँढ निकाला है। बता दें कि कश्मीर को भारत से अलग दिखाना भारतीय अखंडता और सम्प्रभुता का अपमान तो है ही, साथ ही लोकतंत्र के भी विरुद्ध है। पाकिस्तान कुछ ऐसा ही दावा करता रहा है लेकिन विश्व समुदाय भी कश्मीर को भारत के अंग के रूप में स्वीकार करता आया है।
दैनिक भास्कर में प्रकाशित एक ख़बर के अनुसार, फेसबुक के भारत में 30 करोड़ यूजर्स हैं, जो दुनिया में सबसे ज्यादा हैं। फेसबुक के मुताबिक उसके द्वारा 2632 पेज, समूह और अकाउंट्सपर कार्रवाई की है, जिनमें ईरान, रूस, मेसेडोनिया, कोसोवो जैसे देशों से आपत्तिजनक पोस्ट्स की जा रही थी। ये अकाउंट्स इंस्टाग्राम पर भी सक्रिय थे। ज्ञात हो कि फेक न्यूज़ और आपत्तिजनक सामग्रियों के दुष्प्रभाव को लेकर भारत सरकार पहले ही फेसबुक को फटकार लगा चुकी है।
बता दें कि चुनाव आयोग ने आगामी लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान सोशल मीडिया के प्रयोग को लेकर भी दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इस दौरान चुनाव आयोग फेसबुक, ट्विटर सहित तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर पैनी नज़र रखेगा। राजनीतिक पार्टियों व उम्मीदवारों द्वारा सोशल मीडिया पर किए जा रहे विज्ञापन भी अब उनके चुनावी ख़र्च में शामिल होंगे। नेता व राजनीतिक दलों को अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर विज्ञापन जारी करने से पहले चुनाव आयोग से उसका सत्यापन कराना होगा। अर्थात, अब सोशल मीडिया पर असत्यापित विज्ञापन पोस्ट करने पर आयोग कार्रवाई करेगा।
भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने लो अर्थ ऑर्बिट (Low Earth Orbit) में मौजूद एक सैटेलाइट को मिसाइल से मार गिराया है। अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है। इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन यह कर चुके हैं। आज दिन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में यह घोषणा की। पीएम मोदी ने कहा कि यह ऑपरेशन बेहद मुश्किल था, लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों और DRDO की टीम ने यह कर दिखाया है। सिर्फ तीन मिनट में लो अर्थ ऑरबिट सैटेलाइट (Low Earth Orbit Satellite) को ध्वस्त कर दिया गया।
इस ऑपरेशन को मिशन शक्ति नाम दिया गया। पीएम नरेंद्र मोदी ने आज राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा, “ऐंटी सैटलाइट वेपन A-SAT सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया। मैं इसके लिए डीआरडीओ के सभी वैज्ञानिकों को इसके लिए बधाई देना चाहता हूँ।”
देश की घास से लेकर भारत के अंतरिक्ष और आकाश तक में विचरते बिगबैंग से निकले पार्टिकल तक, हर चीज नेहरू, इंदिरा या राजीव गाँधी की ही देन हैं, ऐसा कॉन्ग्रेस पार्टी मानती आई है। हाल ही में, अपने समय में मुंबई हमलों के बाद एयर स्ट्राइक करने के वैश्विक डर से झुकने की नीति अपनाने वाले कॉन्ग्रेस ने बालाकोट स्ट्राइक का क्रेडिट मोदी को देने से इनकार कर दिया था। उनके अनुसार वो तो एयर फ़ोर्स ने किया।
उसी तर्ज़ पर इसरो जैसे संस्थानों की हर उपलब्धि पर ये लोग तुरंत ये बताने लगते हैं कि नेहरू जी इसरो के कैम्पस में करनी से सीमेंट को बराबर किया करते थे। वैज्ञानिक कुछ करें तो तुरंत बताते हैं कि वो जिस बिल्डिंग में काम करते हैं वो कॉन्ग्रेस काल में बनी थी। उसी तर्ज़ पर आज जब डीआरडीओ द्वारा विकसित स्वदेशी तकनीक से लैस एंटी सैटेलाइट मिसाइल (ASAT) ने धरती से 300 किमी ऊपर एक सक्रिय उपग्रह को तीन मिनट में मार गिराया, तो कॉन्ग्रेस ने नेहरू और इंदिरा को इसका श्रेय दिया।
इनकी बातों का विरोधाभास देखिए कि इनके अनुसार ये काम वैज्ञानिकों ने किया, तो वो बधाई के पात्र हैं। अगर ऐसा है तो फिर नेहरू ने कौन-सी मिसाइल तकनीक विकसित की थी? या, इंदिरा गाँधी ने कब इसरो जाकर कंट्रोल रूम सँभाला था? वैसे भी, मोदी ने तो कहीं भी, एक भी बार, यह नहीं कहा कि इस उपलब्धि के लिए वो अपने कैबिनेट, पार्टी और गठबंधन को बधाई देते हैं।
जब मोदी ने इसरो को बधाई दी, देश के हर नागरिक को शुभकामनाएँ दी, तो फिर इसमें राहुल गाँधी का ‘वर्ल्ड थिएटर डे’ कहना कहाँ तक उचित है? ये बात सबको पता है कि राहुल गाँधी के वश की बात नहीं है दिनों की ऐतिहासिकता या प्रासंगिकता को याद रखना। उनकी एक टीम होगी जो उनके नाम से यह सारी बातें लिखती है, और वो ख़बर बनती है। फिर भी, जब नाम उनका है, और पार्टी उसे डिफ़ेंड करती है, तो फिर उन्हें ये बताना चाहिए कि उनकी समस्या क्या है। क्योंकि, समस्या बता देंगे तो फिर आयुष्मान योजना में कुछ व्यवस्था की जा सकेगी।
राहुल गाँधी या कॉन्ग्रेस पार्टी हर दूसरे दिन मोदी और भाजपा से पिट रही है। उनके पास ‘रिडिक्यूल’ के अलावा और कुछ नहीं बचा। उनकी पार्टी स्वघोषित रूप से भारतीय राष्ट्र मीम्स आयोग बन कर नाम कमा रहा है। उनके पार्टी के प्रवक्ता ये नहीं सोच पा रहे कि अध्यक्ष ने जो बात कह दी है, उसमें से गणित कहाँ है, और उसे कैसे जस्टिफाय किया जाए।
इसलिए, जिन्हें यह समझ में नहीं आ रहा कि सेटैलाइट सूट करना कितनी बड़ी उपलब्धि है, वो आज की लीडरशिप को तो इसका क्रेडिट नहीं दे रहे, लेकिन अपनी दादी और उनके पिता को ज़रूर सामने ला रहे हैं। अब यही कहना बचा है कॉन्ग्रेस के लिए कि नेहरू के प्रधानमंत्रीत्व में ही भारतीय परिवारों में बच्चे हुए, अतः उनकी तमाम उपलब्धियाँ बाय डिफ़ॉल्ट नेहरू जी की हैं।
जबकि, नेहरू की एक उपलब्धि राहुल गाँधी भी हैं। इससे राहुल गाँधी भी इनकार नहीं कर सकते। इससे सोनिया गाँधी भी इनकार नहीं कर सकती। इससे कॉन्ग्रेस प्रवक्ता से लेकर कोई भी समर्थक भाग नहीं सकता।
राहुल गाँधी ने ऐसे हर मौक़े पर देश की तमाम संस्थाओं का अपमान किया है। सर्जिकल स्ट्राइक पर सबूत माँगते रहे, एयर स्ट्राइक पर सबूत माँगते रहे और अब इस तकनीक का भी सबूत वो शायद एक-दो दिन में माँग ही लेंगे। यही पैटर्न है उनका और तमाम महागठबंधन की पार्टियों का। पहले दिन वो संस्था को बधाई देते हैं, लेकिन ज्योंहि उन्हें पता चलता है कि ‘अरे, अभी तो मोदी ही पीएम है’, वो फ़टाक से सबूत माँगने लगते हैं सबूत। इनके कहने का तरीक़ा भले ही अलग हो, मूल में बात वही होती है कि सरकार जो उपलब्धि गिना रही है, उसे वो मानने को तैयार नहीं है।
उसके बाद एक गिरोह सक्रिय हो जाता है। राहुल गाँधी और कॉन्ग्रेस की नौटंकी के साथ ही ममता बैनर्जी टाइप के लोग बेकार की बातें कहने लगे हैं। इनका स्क्रिप्ट भी एक ही रहता है: ये चुनावों के समय हुआ है, इसका पोलिटिकल मायलेज लिया जा रहा है। इनका तर्क इतना वाहियात है कि इन सबकी सामूहिक मानसिक क्षमता पर आप आँख मूँदकर सवाल उठा सकते हैं।
कहना है कि ये काम तो वैज्ञानिकों का है, उन्हें आकर यह बताना था। सही बात है। फिर सरकार करती क्या है आखिर? सड़क मज़दूर और इंजीनियरों के सहयोग से बनता है, फ़ीता ममता जी काटती हैं। पुलिस अपराधियों को पकड़ती है, ममता जी कहती हैं कि उनकी सरकार कानून व्यवस्था पर… सॉरी, वो ऐसा नहीं कहतीं क्योंकि बंगाल में कानून व्यवस्था नाम की चीज है ही नहीं।
मेरे कहने का मतलब यह है कि सेना कुछ करे तो सैनिक प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर लें, सड़क बने तो इंजीनियर, पुलवामा हमला हो तो सीआरपीएफ़ बयान दे दे, गंगा साफ हो तो उसमें काम करने वाले लोग बताएँ। सरकार कुछ न करे, क्योंकि सरकारों का इसमें रोल है ही क्या? अंततः, ममता जी के लॉजिक से चलेंगे तो आप कन्विन्स हो जाएँगे कि चुनावों की क्या ज़रूरत है, जबकि हर काम तो अंत में मज़दूर, इंजीनियर, शिक्षक, डॉक्टर या सैनिक कर रहा होता है!
इसमें सवाल उठाने वाले और टेढ़ा बोलने वालों की कमी नहीं है। मिलिट्री कू की फर्जी स्टोरी से अपनी समझदारी साबित कर चुके शेखर गुप्ता के लिए ये कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है। गुप्ता जी को लिखने या सेंसिबल बातें कहने की कोशिश से संन्यास ले लेना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि इस उम्र में उनका दिमाग ठीक से काम कर रहा है क्योंकि किसी देश के पास सैटेलाइट को मार गिराने की क्षमता आ जाना उन्हें एक एयर स्ट्राइक जैसी आम ख़बर लगती है।
बात यह भी है कि अब ये लोग इस तकनीक को नीचा तो दिखा नहीं सकते क्योंकि इसमें वैज्ञानिक और इसरो जैसी संस्था का नाम जुड़ा है। फिर बचता यही है कि इसे पोलिटिकल डेस्पेरेशन कह दिया जाए। जबकि ऐसा ट्वीट करने के बाद पिन करके टॉप में लगाए रखना बताता है कि आप कितने डेल्यूजनल हैं इस ट्वीट में कही बातों को लेकर।
ये शेखर गुप्ता जैसों का डेस्पेरेशन है कि हम हैं एडिटर, हमको करना पड़ेगा टाइप, उसमें कुछ ज्ञान देने जैसे शब्द होने चाहिए, और फिर कुछ भी लिख दिया जाता है जिसका तर्क से कोई लेना-देना नहीं होता। ये वही गिरोह है जो शाम होने तक यह कहने ज़रूर आएगा कि भारत में इतने लोग गरीब हैं, और मोदी आकाश में सैटेलाइट उड़ा रहा है।
कुल मिलाकर बात यह है कि ये लोग मोदी के आर्मर में चिंक नहीं ढूँढ पा रहे। राफेल घोटाला वाला मुद्दा क्रैश कर चुका है। नोटबंदी और जीएसटी के बावजूद इकॉनमी स्वस्थ है, रोजगार लगातार बढ़ें हैं, टैक्स कलेक्शन बढ़ा है, किसान बेहतर स्थिति में है, सड़कें बन रही हैं, गंगा साफ हो रही है, विदेश में भारतीय छवि बेहतर हुई है, पाकिस्तान को उसकी भाषा में लगातार जवाब दिया गया है, अतंरिक्ष में हम नए कीर्तिमान बना रहे हैं।
और, हर बार की तरह न तो विपक्ष के पास, न ही पत्रकारिता के समुदाय विशेष के पास कुछ भी ढंग का है कहने को। इसलिए ममता इस बात पर चुनाव आयोग जाने की धमकी देती हैं, गुप्ता जी इसे डाउनप्ले करते हैं जैसे उनके लौंडे ने बीयर की बोतल में बीस रुपए का रॉकेट रखकर आग लगाई हो, राहुल गाँधी को इसमें थिएटर डे की याद आती है, और कॉन्ग्रेस को याद आता है कि नेहरू जी तो इसरो में ही बीड़ी पीने जाया करते थे।
इससे मोदी या भाजपा की छवि को दो पैसा फ़र्क़ नहीं पड़ता। इससे फ़र्क़ पड़ता है वैसे लोगों को जो जनता की नज़रों में स्वयं ही कपड़े उतार कर नंगे हो रहे हैं। आम जनता को भले ही मिसाइल की ट्रैजेक्ट्री कैलकुलेट करने न आए लेकिन वो इतना समझता है कि अंतरिक्ष में चल रहे सैटेलाइट का मार गिराना कितनी बड़ी बात है।
विपक्ष और मीडिया में बैठे तथाकथित निष्पक्ष लम्पट पत्रकार मंडली को यह जानना चाहिए कि दौर अख़बारों का नहीं है। दौर वह है जहाँ हाथ में रखे फोन पर, शेखर गुप्ता के ज्ञानपूरित ट्वीट से पहले पाँचवी के बच्चे तक को ASAT का अहमियत समझाने वाले विडियो उपलब्ध हो जाते हैं। दौर वह है जहाँ मोदी की सात मिनट की स्पीच के आधार पर इस तकनीक से जुड़े दस-दस लेख, हर पोर्टल, हर भाषा में उपलब्ध करा रहा है।
इसलिए, जनता को विवेकहीन मानकर एकतरफ़ा संवाद करने वाले नेताओं, पत्रकारों और छद्मबुद्धिजीवियों को याद रखना चाहिए कि वो चैनल और सोशल मीडिया से भले ही कैम्पेनिंग करते रहें, लेकिन जनता के सामने हर तरह के विकल्प मौजूद हैं। इनके तर्क इनकी बुद्धि की तरह ही खोखले हैं।
इंतजार कीजिए, कोई मूर्ख नेता और धूर्त पत्रकार जल्द ही यह पूछेगा कि जो सेटैलाइट मार गिराया गया, उसका धुआँ तो आकाश में दिखा ही नहीं, उसके पुर्ज़े तो कहीं गिरे होंगे, उसका विडियो कहाँ है। और इन मूर्खतापूर्ण बातों पर भी प्राइम टाइम में बैठे पत्रकार गम्भीर चेहरा लिए कह देंगे, “आप कहते हैं कि आपने सेटैलाइट मार गिराया। जब आपके पास इतनी उन्नत तकनीक है, तो फिर मारते समय विडियो लेने की भी तो तकनीक होगी। सबूत दिखाने में क्या हर्ज है?”
अपने घरों से दरबदर कश्मीरी हिन्दुओं को कम-से-कम अब अपने राज्य और लोकसभा क्षेत्र के चुनाव में भागीदारी का मौका बिना जान खतरे में डाले मिलेगा। चुनाव आयोग ने अपने घरों से तीस साल से निर्वासित कश्मीरी पण्डितों के लिए विशेष चुनावी बूथों का प्रबंध किया है। यह बूथ उनके निवास के लोकसभा क्षेत्रों में ही खोले जाएँगे।
केन्द्रीय चुनाव आयोग ने इसके अलावा उन्हें डाक के जरिए मतपत्र (पोस्टल बैलट) भी उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है।
असिस्टेंट रिटर्निंग अफसर (प्रवासी) अनिरुद्ध राय के अनुसार इन सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए इच्छुक व्यक्तियों को फॉर्म-एम/फॉर्म-12सी (form-M/form-12C) भरना होगा।
घर पर क्यों वोट नहीं डाल सकते
कश्मीरी हिन्दू घर जाकर अपने विधानसभा क्षेत्रों में वोट इसलिए नहीं दे सकते क्योंकि कश्मीर घाटी में इस्लामी चरमपंथ और हिंसा पूरे जोरों-शोरों से जारी है- 1947 में भारत के आजाद होने के समय से ही। और कश्मीर की राजनीतिक ‘आजादी’ की आड़ में घाटी से हिन्दुओं का सफाया ही इनका मकसद है। इसका सबसे वीभत्स रूप तब देखने को मिला जब 1989 में यासीन मलिक के नेतृत्व में जेकेएलएफ नामक आतंकवादी दस्ते ने हिन्दुओं का कत्ले-आम और बलात्कार शुरू कर दिया, और उनके पास जिन्दा बचने के लिए केवल दो सूरतें दीं- या तो वे इस्लाम अपनाएँ, या घाटी छोड़ दें। लाखों कश्मीरी हिन्दुओं को गिरते-पड़ते, घरबार आदि छोड़कर जान बचाकर भागना पड़ा।
महत्त्वपूर्ण है क्योंकि…
इस कदम को महत्वपूर्ण इसलिए माना जा रहा है क्योंकि इसके पूर्व पोस्टल बैलेट की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। कश्मीरी हिन्दुओं को मतदान के लिए दिल्ली या जम्मू तक की यात्रा करनी पड़ती थी। कईयों के यह यात्रा न कर पाने के कारण चुनावी गणित में हिन्दुओं का पलड़ा हल्का पड़ता था, और इस्लामी कट्टरता को हवा देने वालों के लिए चुनाव जीतना आसान हो जाता था।
जम्मू-कश्मीर के मुख्य चुनाव अधिकारी के पास 20 साल से ज्यादा समय से पंजीकरण कराए कश्मीरी पण्डित सालों से अपनी चुनावी भागीदारी आसान करने की माँग कर रहे थे। कश्मीरी हिन्दुओं का एक प्रतिनिधि मण्डल कुछ ही दिन पूर्व चुनाव आयोग से मिला और अपनी माँग रखी, जिस पर यह फैसला हुआ है।
अब उम्मीद की जा सकती है कि घाटी और बाकी देश, दोनों ही जगह पर मताधिकार से वंचित होने के कारण नजरअंदाज कश्मीरी हिन्दुओं की समस्याओं को राजनीतिक दल गंभीरता पूर्वक लेंगे।
जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव 5 चरणों में होंगे- 11, 18, 23, 29 अप्रैल, और 6 मई को। चुनाव आयोग ने मतगणना 23 मई को कराने की भी घोषणा की है।
आत्ममुग्ध बौने के नाम से चर्चा में आए अरविन्द केजरीवाल इस बार चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जाने की अपनी बात को सही साबित करते हुए नजर आ रहे हैं। कभी वो लोगों को फोन कर के गुमराह करने की कोशिश करते हैं। तो कभी उनके खत चुनाव आयोग की नजर में आ रहे हैं। नई वाली राजनीति का उनका हर पैंतरा जनता के सामने बेनकाब होता जा रहा है, जो कि उनकी IIT की डिग्री से प्रभावित हुए प्रशंसकों के लिए दुखद खबर हैं।
कॉन्ग्रेस से लगातार गठबंधन की भीख माँगने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नाम से सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल करके भेजी जाने वाली चिट्ठियों को चुनाव आयोग के अधिकारियों ने सील कर दिया है। यह चिट्ठी पानी के बिलों के साथ भेजे जाने की तैयारी की गई थी। अरविंद केजरीवाल दिल्ली जल बोर्ड के अध्यक्ष हैं। चिट्ठियाँ जल बोर्ड के नरेला कार्यालय के कमरे में रखी गईं थीं। इस मामले की शिकायत भाजपा नेता ने चुनाव आयोग से की थी।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. रणवीर सिंह ने बताया कि नरेला जल बोर्ड ऑफिस से संबंधित एक शिकायत मिली थी, उसमें कहा गया था कि इन चिट्ठियों को पानी के बिल के साथ भेजने की तैयारी की जा रही है। चिट्ठी में केजरीवाल दिल्ली में पानी और सीवर की पुराने समय की बदहाली का जिक्र कर के वर्तमान में किए गए कार्यों को उपलब्धि के तौर पर गिनवा रहे थे, जो कि आचार संहिता का उल्लंघन है।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय से जुड़े अधिकारियों ने छापा मारा, वहाँ बड़ी संख्या में ऐसी चिट्ठियाँ मिलीं और इसके बाद अधिकारियों ने उस कमरे को सील किया।
दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता ने मंगलवार (मार्च 27, 2019) को दिल्ली BJP दफ्तर में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि कॉन्ग्रेस ने भी हाल ही में वोटरों को गुमराह करने के लिए कुछ झूठे, आपत्तिजनक और अभद्र भाषा वाले विडियोज जारी किए हैं। उन्होंने कहा कि हताशा के चलते कॉन्ग्रेस और AAP, दोनों ही आपा खो चुकी हैं और इस कारण दोनों पार्टियाँ अब आचार संहिता का खुलेआम उल्लंघन करने पर उतर आईं हैं। गुप्ता ने दावा किया कि उनकी शिकायत पर दिल्ली जल बोर्ड के नरेला स्थित दफ्तर सहित कुछ अन्य दफ्तरों पर चुनाव आयोग ने रेड डालकर आपत्तिजनक प्रचार सामग्री भी जब्त की है और यह प्रक्रिया अब भी जारी है।
हाल ही में पड़ोसी देश पाकिस्तान में 2 हिंदू लड़कियों के अपहरण और जबरन धर्मांतरण की ख़बर चर्चा का विषय बनी रही, जिसने पूरे विश्व को पाकिस्तान में हिंदुओं की स्थिति पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया। लेकिन सोचने की बात ये है कि ऐसे ही पाकिस्तान जैसे देश में और कितने ही मामले हैं, जिन्हें कभी आवाज तक नहीं मिल पाई होगी।
पाकिस्तान में काफी समय से नाबालिग हिंदू लड़कियों को अगवा कर उनका धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। एक हफ्ते से भी कम समय में ऐसे करीब 8 मामले सामने आ चुके हैं। सिंध प्रांत में होली के अवसर पर घोटकी से 2 नाबालिग हिंदू बहनों रवीना और रीना को अगवा कर उनका धर्म परिवर्तन कराया गया। इसके बाद दोनों की इस्लामिक रिवाज के अनुसार निकाह करा दी गई।
इस घटना के अगले दिन सिंध से सोनिया भील नाम की लड़की का अपहरण किया गया। जिसके बाद उसका जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया। इसी दौरान सिंध से ही 16 साल की माला कुमारी नाम की एक अन्य हिंदू लड़की का अपहरण किया गया। अपराधी हथियार सहित माला के घर में घुसे और उसे अगवा करके ले गए।
अगर 1947 के बँटवारे के बाद से इस मामले को देखें तो ये सूची बेहद लंबी है। नाबालिग हिंदू लड़कियों को अगवा कर उनका धर्म परिवर्तन कराया जाता है, फिर कानून से बचने के लिए लड़कियों से झूठे बयान दिलवाए जाते हैं। लेकिन जब ये देखा जाता है कि हिंदू लड़कियों का धर्म परिवर्तन कराने के पीछे सबसे बड़ा हाथ किसका है, तो मियाँ मिट्ठू नाम के व्यक्ति का नाम सामने आता है।
कौन है मियाँ मिट्ठू?
पाकिस्तान में हिंदुओं का गुस्सा सबसे ज्यादा पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के पूर्व सांसद पीर अब्दुल हक पर है, जो ठेके पर धर्म परिवर्तन का काम करता है। इसी व्यक्ति को यहाँ मियाँ मिट्ठू के नाम से जाना जाता है। 2016 के आँकड़ों के अनुसार उसके खिलाफ 117 मामले दर्ज हो चुके हैं। पाकिस्तान में हिंदू लोग मियाँ मिट्ठू के खिलाफ कई बार सड़कों पर भी उतरे हैं। लोगों की माँग है कि उसे गिरफ्तार किया जाए। पाकिस्तान में ये इस्लामी कट्टरता खुलेआम चल रही है, जिसमें मियाँ मिट्ठू नाम के लोग बिना डरे अपराध करते हैं।
मियाँ मिट्ठू की तस्वीर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के साथ भी देखी जा सकती है।
नया पाकिस्तान का दावा करने वाले और भारत को शांति का पाठ समझाने का दिखावा करने वाले पाकिस्तान में हिन्दू अल्पसंख्यक सरकार से मियाँ मिट्ठू के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाने की माँग कर चुके हैं। लेकिन, इसके बाद भी सरकार कुछ नहीं करती। पाकिस्तान का मानना है कि वह अपने यहाँ अल्पसंख्यकों के साथ अच्छा व्यवहार करती है। लेकिन जब ऐसे मामले सामने आते हैं, तो पाकिस्तान की पोल खुल जाती है।
300 हिंदू लड़कियों का अपहरण
पाकिस्तान में हिंदुओं पर अत्याचार हर दिन बढ़ रहे हैं। धीरे-धीरे उनके पूजा स्थल और मंदिर भी नष्ट किए जा रहे हैं। हिंदुओं की संपत्ति पर जबरन कब्जे के कई मामले सामने आ रहे हैं। वहीं हिंदू लड़कियों का अपहरण कर उनका धर्म परिवर्तन कराना भी आम हो गया है। पाकिस्तान जैसे मक्कार देश की सहिष्णुता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वहाँ पर हर साल 300 हिंदू लड़कियों का अपहरण कर लिया जाता है। ये बात पाकिस्तान की संस्था ‘मूवमेंट फॉर सॉलिडेरिटी एंड पीस’ द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में कही गई है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इन अगवा हिंदू लड़कियों में ज्यादातर की उम्र 12 से 15 साल के बीच होती है। इन लड़कियों की शादी कराकर इनसे जबरन इस्लाम कबूल करवाया जाता है। हालाँकि, माना जाता है कि असल संख्या 300 से भी अधिक है। वर्तमान में पाकिस्तान में हिंदू धर्म का अनुसरण करने वालों की संख्या कुल जनसंख्या का 1.6% है, यानि करीब 36 लाख।
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि बीते 50 सालों में पाकिस्तान में बसे 90% हिंदू देश छोड़ चुके हैं। ऐसे में भारत में बैठे पाक अकुपाइड पत्रकार के मीडिया गिरोहों को इमरान खान के लिए शान्ति के नोबल पुरस्कार की अपील करने से पहले इस तरह के आँकड़ों पर भी ध्यान देना चाहिए। शायद जिस तरह से उनकी आवाज हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने सुनी है, हो सकता है कि इस समस्या पर भी इमरान खान कोई सख्त कदम उठा दें।
भारत के मिशन शक्ति पर पाकिस्तान-चीन की वैसी ही प्रतिक्रिया आई है, जैसी की उम्मीद की जा सकती थी। दोनों ने ही भारत से सीधा टकराव लेने से बचते हुए यह जता दिया कि भारत की ताकत में बढ़ोतरी उन्हें फूटी आँख नहीं सुहा रही है।
किताबों-किरदारों की आड़ में पाकिस्तान
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि अन्तरिक्ष मानवता की साझी विरासत है और हर देश की यह जिम्मेदारी है कि वह ऐसी हरकतों से बचे, जिनसे कि अंतरिक्ष में सैन्यीकरण को बढ़ावा मिले। हालाँकि इस बयान में पाकिस्तान भारत का सीधे-सीधे नाम लेने से बचता हुआ दिखा।
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि वह देश जिन्होंने अतीत में दूसरों की ऐसी ताकतों के प्रदर्शन की कड़ी निंदा की थी, वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसे उपायों के विकास में सहयोग करेंगे, जिनसे अन्तरिक्ष में सैन्य खतरों को रोका जा सके।”
अपने बयान में उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी क्षमताओं का प्रदर्शन डॉन क्विक्सोट के पवन चक्कियों को धकेलने की याद दिलाता है। उनका इशारा 17वीं शताब्दी के स्पेनिश उपन्यास के भ्रमित नायक की ओर था। उपन्यास के लेखक मिगुएल दे सेरवान्तेस थे।
इस प्रतिक्रिया के बाद पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाने की भी खबर आई, जिसका एजेण्डा पाकिस्तान की सुरक्षा को लेकर चर्चा ही माना जा रहा है।
Prime Minister @ImranKhanPTI today chaired a high level meeting at Prime Minister’s Office; Security matters were discussed during the meeting pic.twitter.com/kExrixExy5
चीन का जवाब पाकिस्तान के मुकाबले अधिक सधा हुआ और डिप्लोमैटिक रहा। समाचार एजेंसी पीटीआई के प्रश्न का लिखित उत्तर देते हुए चीनी विदेश मंत्रालय ने बयान दिया, “हमने रिपोर्टें देखी हैं और हम उम्मीद करते हैं कि हर देश अंतरिक्ष में शांति बनाए रखेगा।”
चीन का इतना सधा हुआ जवाब दो कारणों से महत्वपूर्ण है। एक इसलिए क्योंकि एशिया में एंटी-सैटलाइट होड़ शुरू करने का श्रेय चीन को ही जाता है। 2007 में अपने एक ख़राब मौसमी उपग्रह को एंटी-सैटलाइट मिसाइल से उड़ाकर चीन ने अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया था।
दूसरा इसलिए क्योंकि इस समय चीन, रूस और अमेरिका के साथ जिनेवा में दूसरों देशों को ऐसी ही तकनीक पाने से रोकने के लिए नूराकुश्ती में लगा हुआ है। माना जा रहा है कि अंतिम ध्येय इस नूराकुश्ती के बिना पर अन्य देशों के हाथ यह तकनीक लगने या उनके इसे खुद विकसित करने को रोकना है, ताकि यह तीन देश इस तकनीक पर एकछत्र राज स्थापित करके अपने स्वार्थ साधने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकें। ऐसे में भारत ने ऐन मौके पर यह परीक्षण कर के इनके मंसूबों पर कुछ हद तक पानी फेर दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आज बुधवार (मार्च 26, 2019) को भारत के अंतरिक्ष महाशक्ति बनने की घोषणा की गई। उन्होंने कहा कि भारत ने आज एक अभूतपूर्व सिद्धि हासिल की है। भारत ने आज अपना नाम ‘स्पेस पॉवर’ के रूप में दर्ज करा लिया है। अब तक रूस, अमेरिका और चीन को ये दर्जा प्राप्त था, अब भारत ने भी यह उपलब्धि हासिल कर ली है।
भारत ने आज अपना नाम ‘स्पेस पावर’ के रूप में दर्ज करा दिया है। अब तक दुनिया के 3 देशों अमेरिका, रूस, और चीन को ये उपलब्धि हासिल थी। अब भारत चौथा देश है, जिसने आज यह सिद्धि प्राप्त की है: PM @NarendraModi जी #MissionShaktipic.twitter.com/GraQf4VWJS
मोदी ने एक महत्वपूर्ण घोषणा में राष्ट्र को बताया कि भारत ने एंटी-सैटेलाइट मिसाइल (एएसएटी) विकसित किया है जिससे अंतरिक्ष में दुश्मन के उपग्रहों को मार गिराया जा सकता है।
लेकिन भारत में बैठे कॉन्ग्रेस के कुछ नेताओं, लिबरल पत्रकारों ने इस उपलब्धि पर भी नेहरू, इंदिरा से लेकर पूरा कॉन्ग्रेसी खानदान को श्रेय दे डाला। कुछ ने तो इसे सिर्फ DRDO की उपलब्धि बता डाला। ठीक वैसे ही जैसे सर्जिकल स्ट्राइक पर सेना और एयर फोर्स को पूरा क्रेडिट देने के चक्कर में, प्रधानमंत्री के नेतृत्व को पूरी तरह नकारना चाहा।
While a successful A-SAT launch is a bold strategic move, PM making such a big deal of it personally shows a poll-eve desperation we hadn’t yet detected/suspected. It’s just a frantic new national security headline as Balakot has faded in a month.
कॉन्ग्रेस के राजनेता और चाटुकार पत्रकार तो चरण वंदना में इतने प्रवीण हैं कि आज के इस शानदार उपलब्धि के लिए वैज्ञानिकों और वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व के बजाय जवाहरलाल नेहरू को श्रेय देने में अपनी पूरी ऊर्जा झोंक रहे हैं। अगर अभी उन्हें याद दिलाया जाए कि कश्मीर में जो हो रहा है, चीन ने भारत का भूभाग हड़प लिया, भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थाई सदस्य किसकी वजह से नहीं बना… तो इन्हें नेहरू और कॉन्ग्रेस के नाम पर साँप सूँघ जाता।
I congratulate our space scientists in ensuring that we continue to reach new heights in space missions! Burn moment for bhakts who keep cursing Pt. Nehru,it was his&Dr.Homi Bhabha’s far sightedness that has got us where we are today,in shorter span of time than any other nation.
जबकि सदैव चरण वंदन में संलग्न उन लिबरल पत्रकारों और कॉन्ग्रेस के नेताओं को ये अच्छी तरह पता है कि उन्होंने हर क्षेत्र में लूटपाट और घोटालों की संस्कृति को बढ़ावा देकर भारत के संभावित विकास को कितना पीछे धकेल दिया है। कॉन्ग्रेस शासन का पूरा इतिहास ऐसे काले अध्याओं से भरा है कि भारत की लगभग हर स्वायत्त संस्था को बर्बाद करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। अगर आपने न पढ़ा हो तो पढ़िएगा इसरो वैज्ञानिक नाम्बी नारायणन के बारे में कि कैसे कॉन्ग्रेसियों ने मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए उनकी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी और वैज्ञानिक शोध को वर्षों पीछे धकेल दिया।
आज की कामयाबी, DRDO और ISRO के साथ ही यह वर्तमान सरकार की वैश्विक राजनीति में भारत के बढ़ते कद को भी दर्शाता है कि वह इस तरह की कोशिश करने का साहस भी कर सकता है। हमारे वैज्ञानिक 2010 से कह रहे हैं कि हमारे पास ASAT मिसाइलों को विकसित करने के लिए अपेक्षित क्षमताएँ हैं लेकिन उन्हें इस पर काम करने का मौका नहीं दिया गया। स्पष्ट रूप से, यह राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी थी।
इस बात से इनकार नहीं किया जा रहा है कि भारत को अपने इस महत्वाकांक्षी मिशन को आगे बढ़ाने से प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता था। फिर भी ये नरेंद्र मोदी जैसे ग्लोबल पहुँच वाले नेता के नेतृत्व क्षमता की ही बात है कि वैश्विक दबाव को अपने पक्ष में मोड़ते हुए आज भारत को सफलता के इस शिखर पर पहुँचाया। जहाँ भारत एक वैश्विक शक्ति बनकर उभरा है। इससे पहले एलिट मानसिकता के लोग हमारे मंगल जैसे बेहद सस्ते और सफल प्रोजेक्ट का मजाक उड़ाने से नहीं चुके थे। आज उनमें भी हलचल होगा और ये डर भी कि मोदी अगर इसी तरह देश को आगे बढ़ाता रहा तो आने वाले दिनों में कोई भी हमारी तरफ आँख उठा कर देखने से पहले सौ बार सोचेगा।
लाइवफिस्ट के अनुसार, 2010 में, भारत के एडवांस्ड सिस्टम्स लेबोरेटरी (एएसएल) के निदेशक डॉ अविनाश चंदर ने कहा था, “हमने ऐसे प्रौद्योगिकी ब्लॉक विकसित किए हैं, जिन्हें एक उपग्रह-रोधी हथियार (anti-satellite weapon) बनाने के लिए एकीकृत किया जा सकता है। अंतरिक्ष में ऐसे कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए हमें जो तकनीक चाहिए वह है, जिसे हमने अग्नि मिसाइल कार्यक्रम के साथ बहुत मजबूती से साबित किया है।” फिर भी कॉन्ग्रेस ने इस तरह के शोध और भारत को शक्तिशाली बनाने पर ध्यान न देकर घोटालों से खुद की झोली भरने पर ध्यान दिया।
डीआरडीओ प्रमुख डॉ वीके सारस्वत ने कहा था, ”हमारे पास पहले से ही इस तरह के एक हथियार का डिजाइन है, लेकिन इस स्तर पर, देश को अपने सामरिक शस्त्रागार में इस तरह के हथियार की आवश्यकता है या नहीं, यह निर्णय सरकार को करना होगा। इस तरह के हथियार का परीक्षण करने पर बहुत सारे परिणामों का सामना करना पड़ सकता हैं, जिन्हें ध्यान में रखा जाना चाहिए। लेकिन परीक्षण एक मुद्दा नहीं है- हम हमेशा सिमुलेशन और जमीनी परीक्षण पर भरोसा कर सकते हैं। हम भविष्य में देख सकते हैं कि क्या सरकार ऐसा कोई हथियार चाहती है। यदि हाँ, तो हमारे वैज्ञानिक इसे देने के लिए पूरी तरह से सक्षम हैं।”
2012 में, इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में, डॉ सारस्वत ने रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में कुछ साल पहले दिए गए बयानों को दोहराया था। उन्होंने कहा था, “आज, भारत में जगह-जगह एक एंटी-सैटेलाइट सिस्टम के लिए सभी बिल्डिंग ब्लॉक्स मौजूद हैं। हम अंतरिक्ष को हथियार नहीं बनाना चाहते हैं लेकिन बिल्डिंग ब्लॉक्स जगह पर होना चाहिए। क्योंकि आप उस समय इसका उपयोग कर सकें जब आपको इसकी आवश्यकता होगी।”I
चीन ने 2007 में जब ऐसी क्षमता हासिल कर ली थी तब से भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान द्वारा ASAT मिसाइलों के निर्माण करने की तत्काल आवश्यकता महसूस की जा रही थी। जबकि सारस्वत ने कहा था कि भारत के पास आवश्यक क्षमताएँ हैं। लेकिन भारत की स्पेस क्षमता के आलोचकों को संशय था। इसके अलावा, यह कहा जा रहा था कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत के साथ बहुत अलग तरह से व्यवहार करेगा जबकि चीन के साथ ऐसे परीक्षणों के बाद भी व्यवहार बहुत नहीं बदला था।
पड़ोसी देश की बढ़ती ताकत को देखते हुए भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान को अंतरिक्ष में चीन की क्षमताओं का मुकाबला करने के लिए ASAT मिसाइलों को विकसित करने की आवश्यकता महसूस हुई थी। डीआरडीओ प्रमुख ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया था कि भारत के पास ऐसी मिसाइलों को विकसित करने और परीक्षणों को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक क्षमताएँ हैं। ASAT मिसाइलों का निर्माण करने की क्षमताओं के बावजूद, इस मिशन पर तत्कालीन नेतृत्व ने ध्यान नहीं दिया।
वास्तव में, अप्रैल 2012 में, सारस्वत ने कहा था कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने उन्हें इस तरह के कार्यक्रमों को विकसित करने के लिए अनुमति नहीं दी थी। जबकि उन्होंने तत्कालीन नेतृत्व को बार-बार यह यकीन दिलाया था कि अग्नि-V का सफल प्रक्षेपण करने बाद, भारतीय वैज्ञानिकों में एंटी-सैटेलाइट मिसाइल विकसित करने की क्षमता थी।
Former DRDO Chief Dr VK Saraswat on #MissionShakti: We made presentations to National Security Adviser&National Security Council, when such discussions were held, they were heard by all concerned, unfortunately, we didn’t get positive response (from UPA), so we didn’t go ahead. pic.twitter.com/qJDMtc3Kf2
चूँकि, यूपीए सरकार ने इस तरह के कार्यक्रमों को मंजूरी नहीं दी। इसलिए, आज हम निश्चित रूप से यह कह सकते हैं कि यूपीए शासन के लिए उस समय की प्राथमिकता कुछ और थी या वे उस समय घोटालों और देश को दिवालिया करने में इतने व्यस्त थे कि देश को आगे बढ़ाने वाले कार्यक्रमों के लिए नैतिक बल खो चुके थे। और आज जब वैश्विक स्तर पर मजबूती से अपना स्थान बनाने वाले वर्तमान प्रधानमंत्री ने इस शोध, निर्माण और परीक्षण को उसके मुकम्मल अंजाम तक पहुँचाया तो कॉन्ग्रेस अपनी विफलता छिपाने के लिए देश को बरगलाने की कोशिश कर रही है। और उसके इस काम में उसके सभी दरबारी लिबरल पत्रकार जी जान से जुट गए हैं।
भारत ने प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में परमाणु क्षमता विकसित की। भारत ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में अन्य उन्नति के साथ ASAT मिसाइलों का विकास किया। दोनों ही मिशन अपार राजनीतिक जोखिम से जुड़े थे। वाजपेयी ने तब और नरेंद्र मोदी ने अब, दोनों ने अपनी काबिलियत के भरोसे राजनीतिक जोखिम लिया। दोनों बार रिस्क बड़ा था, अगर कुछ भी गड़बड़ हो जाता तो नुकसान बड़ा होता।
पर अब जब यह साफ दिखने लगा है कि यह एक बड़ी सफलता है, अचानक से, हर कॉन्ग्रेसी चाटुकार पत्रकार और नेता सक्रीय हो गए हैं। क्रेडिट लूटने के लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। कॉन्ग्रेस ने 60 सालों तक देश का बेड़ा गर्क किया। हर जगह सत्ता और वोट बैंक की राजनीति करते रहे। देश को कंगाली के कगार पर खड़ा कर दिया और वह भी इसमें न सिर्फ अपना हिस्सा चाहती है बल्कि सारा श्रेय ही नेहरू, इंदिरा तक सीमित कर देना चाहती है। हर्रे लगे न फिटकरी रंग चोखा, कुछ करना भी न पड़े और श्रेय पूरा। पर अब देश उनके इस छल को समझता है। अब जनता कॉन्ग्रेस की हर चाल को विफल करने में देर नहीं लगा रही।
मिशन शक्ति वैश्विक राजनीति में भारत की बढ़ती धाक का भी एक वसीयतनामा है। नरेंद्र मोदी ने पिछले पाँच वर्षों के दौरान जिन कूटनीतिक रिश्तों को मजबूती दी है, वे सभी सरकार को परीक्षण करने का विश्वास दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया क्या होगी, ये अभी देखना बाकी है। लेकिन इस बात की प्रबल संभावना है कि नरेंद्र मोदी अपने विशेष कौशल से मुश्किल परिस्थितियों में भी रास्ता निकाल लेंगे। हालाँकि, विश्व ये भली-भाँति जानता है कि अब भारत की स्थिति 5 साल पहले वाली नहीं रही। आज नेतृत्व हर मोर्चे पर सशक्त और तैयार है। बेशक, आज इस उपलब्धि का श्रेय काफी हद तक नरेंद्र मोदी की विदेश नीति को जाना चाहिए।
कुछ लोग जो सवाल कर रहे हैं कि ठीक चुनाव से पहले इसका परीक्षण क्यों किया गया। उनके लिए बता दें कि भारत के परीक्षण की घोषणा का समय भी महत्वपूर्ण है। वर्तमान में जिनेवा में 25 देशों द्वारा एक अंतरिक्ष शस्त्र संधि (Space Arms Treaty) पर चर्चा की जा रही है। इस बात की बहुत अधिक संभावना व्यक्त की जा रही थी कि अगर इस तरह की संधि पर बातचीत किसी अंजाम तक पहुँचती है तो पहले से परीक्षण कर चुके 3 देशों के अलावा किसी अन्य राष्ट्र के लिए एएसएटी बनाने और परीक्षण का रास्ता बहुत कठिन होगा। क्योंकि ये 3 राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय कानून द्वारा ऐसे किसी भी निर्माण-परीक्षण को अवैध बना देंगे। लेकिन अब, ऐसे किसी भी प्रयास को अंजाम देने से पहले भारत को भी ध्यान में रखना होगा।
ये सही मायने में राष्ट्र के प्रति समर्पित, दूरदृष्टि से युक्त राजनेता के लक्षण हैं। जिस समय लोग वोट बैंक और चुनावी गणित में उलझे हैं, उस समय भी कोई है जिसके लिए देश सर्वोपरि है। सही मायने में प्रधानमंत्री वैज्ञानिकों के साथ पूरे क्रेडिट के हक़दार हैं। प्रधानमंत्री ने मिशन में शामिल सभी वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा, “आपने अपने कार्यों से दुनिया को ये सन्देश दिया है कि हम भी कुछ कम नहीं हैं।”
#WATCH: PM Narendra Modi interacts with scientists involved with “Mission Shakti”; says, “you have given this message to the world “ki hum bhi kuch kam nahin hai.” pic.twitter.com/IJ3Bzo4CbS
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आज बुधवार (मार्च 26, 2019) को भारत के अंतरिक्ष महाशक्ति बनने की घोषणा की गई। उन्होंने कहा कि भारत ने आज एक अभूतपूर्व सिद्धि हासिल की है। भारत ने आज अपना नाम ‘स्पेस पावर’ के रूप में दर्ज करा लिया है। अब तक रूस, अमेरिका और चीन को ये दर्जा प्राप्त था, अब भारत ने भी यह उपलब्धि हासिल कर ली है। दरअसल, हमारे वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में 300 किलोमीटर दूर LEO (Low Earth Orbit) में एक सक्रिय सैटेलाइट को मार गिराया है। ये लाइव सैटेसाइट जो कि एक पूर्व निर्धारित लक्ष्य था, उसे एंटी सैटेलाइट मिसाइल (A-SAT) द्वारा मार गिराया गया है।
ऐसे में आपके मन में ऐसे प्रश्न ज़रूर उठ रहे होंगे कि क्या ऐसा करने से भारत ने किसी अंतरराष्ट्रीय संधि का उल्लंघन किया है? इसका सपाट जवाब है, नहीं। भारत ने अंतरराष्ट्रीय दायरे में रहते हुए सबकुछ किया है। भारत और चीन में यही अंतर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सारी जानकारी देश-दुनिया को दे दी है। बता दें कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंतरिक्ष के नियम-क़ानून पर जो संधि है, उसे बाह्य अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty) नाम दिया गया है। ये चन्द्रमा सहित सभी खगोलीय पिंडों पर लागू होता है। इसे 1967 में ड्राफ्ट किया गया था। अंतरिक्ष में हथियारों के प्रयोग को लेकर भी इस संधि में नियम-क़ानून बनाए गए थे।
#MissionShakti किसी देश के विरुद्ध नहीं है। यह किसी भी अंतरराष्ट्रीय कानून या संधि समझौतों का उल्लंघन नहीं करता है। हम आधुनिक तकनीक का उपयोग देश के 130 करोड़ नागरिकों की सुरक्षा के लिए किया है। एक मजबूत भारत का होना बेहद जरूरी है। हमारा मकसद युद्ध का माहौल बनाना नहीं है।
— Chowkidar Birender Singh (@ChBirenderSingh) March 27, 2019
अगर ये संधि नहीं होती तो हो सकता है कुछ देश विध्वंसक मिसाइलों या हथियारों को चन्द्रमा पर तैनात कर देते। यही वो संधि है, जो देशों को ऐसा करने से रोकती है। यहाँ तक कि आउटर स्पेस में भी हथियारों की तैनाती से रोकती है। इस संधि में कहा गया है कि कोई भी देश चाँद या किसी खगोलीय पिंड पर अपना अधिकार नहीं जता सकता। इन पर किसी भी प्रकार के सैनिक केंद्र की स्थापना नहीं कर सकता। कुल मिलकर सार यह कि बाह्य अंतरिक्ष में कोई भी देश अपना प्रभुत्व नहीं जता सकता।
अंतरिक्ष में परमाणु-शस्त्र और सामूहिक विनाश के दूसरे साधनों से सुसज्जित उपग्रहों, अंतरिक्ष यानों आदि के छोड़ने पर प्रतिबंध है। यह संधि इस बात की भी व्यवस्था करती है कि गलती से किसी दूसरे देश के सीमा क्षेत्र में उतर जाने वाले अंतरिक्ष यात्री उस देश को सौंप दिए जाएँगे जिसके वे नागरिक होंगे। अक्सर आपने सुना होगा कि फलाँ कम्पनी चाँद पर ज़मीन बेच रही है या फलाँ उद्योगपति ने वहाँ ज़मीन ख़रीदी। यह सब आउटर स्पेस ट्रीटी की अस्पष्टता के कारण होता है।
दुनिया की कोई भी सरकार चाँद पर ज़मीन के टुकड़ों के व्यापार की वैधता की गारंटी नहीं देती है, लेकिन चाँद पर ज़मीन की ख़रीद-बेच कर रही कंपनियों का मानना है कि 1967 की संयुक्त राष्ट्र बाह्य अंतरिक्ष संधि के एक अस्पष्ट प्रावधान के कारण उनका धंधा पूरी तरह क़ानून के अनुरूप है। दरअसल इस संधि में बाह्य अंतरिक्ष पिंड पर किसी देश या सरकार के दावे को तो ख़ारिज़ किया गया है, लेकिन इसमें यह सुनिश्चित नहीं किया गया है कि ऐसे किसी पिंड पर व्यक्तिगत या कंपनी विशेष के दावे की क्या क़ानूनी स्थिति होगी। संयुक्त राष्ट्र के वकीलों ने भी साफ़ किया है कि चाँद पर कंपनियों के दावे में कोई दम नहीं है।
While international experts meeting in #Geneva clash over how to prevent an #armsrace in outer #Space, Europe is hoping that efforts to replace an ageing #ColdWar treaty will find a way to rein in space pollution. https://t.co/JKIrqLGfU2
ताजा हालात में भारत ने अंतरराष्ट्रीय दायरे में रह कर कार्य किया है। भारत ने अपने ही सैटेलाइट को मार गिराया है। इसके लिए जिस तकनीक का प्रयोग किया गया, उसे भी भारत में ही विकसित किया गया है। सबसे बड़ी बात यह कि भारत की इस कार्यवाही से किसी भी दूसरे देश के एयरस्पेस का कुछ भी लेना-देना नहीं है। प्रधानमंत्री ने यह भी साफ़ कर दिया है कि भारत अंतरिक्ष में शांति का वाहक है और तकनीकों का उपयोग कृषि, मेडिकल और विज्ञान आदि से सम्बंधित अच्छे कार्यों में होना चाहिए।