मीडिया हलचल
मीडिया से जुड़ी खबरों और पत्रकारों के बयानों का विश्लेषण
भारतीय मीडिया में विदेशी संपादक… देश-विरोधी बातें छापना और प्रोपेगेंडा फैलाना है जिसका एकमात्र काम
सही मायने में भारत को अगर किसी से खतरा है तो वो यही फेक न्यूज और प्रोपेगेंडा चलाने वालों तथा देश का अपमान करने वाले सम्पादकों से है जो...
क्या हिन्दू गौमांस खाते थे? वामपंथी कारवाँ मैग्जीन ने संस्कृत के अज्ञान के कारण फिर दिखाई मूर्खता
अन्य धर्मों के विपरीत, हिंदू सोचते-मानते हैं कि प्रत्येक जीव की आत्मा होती है। सिर्फ खाने के लिए किसी पशु को मारना वेदों द्वारा स्वीकार्य...
कभी PPE किट की कमी तो कभी वेंटिलेटर्स में खोट: जानिए कैसे मीडिया गिरोह ने चीन के लिए की खुलेआम बैटिंग
भारत में पत्रकारों का एक गिरोह सरकार को बदनाम करने और चीन के महिमामंडन में लगा हुआ है। हर चीज में खोट निकाल कर देशी कम्पनियों को...
SatyaHindi की एजेंडा पत्रकारिता… जहाँ सत्य एवं तथ्य को नजरअंदाज करते हैं आशुतोष
आशुतोष जैसे पत्रकार इस वैश्विक महामारी में भी अपने एजेंडा पत्रकारिता से बाज नहीं आ रहे। इनके पोर्टल में जाकर देखा जा सकता है कि...
Zee न्यूज की मरकज के साथ तुलना केवल कुंठा… जमात के गुनाहों पर पर्दा डालने का और तरीका तलाशो लिबरलों
Zee न्यूज के कर्मचारियों का कोरोना संक्रमित होना वह संकट है, जिससे पूरी दुनिया आज जूझ रही है। जमातियों की तरह उन्होंने इसे छिपाने की कोशिश नहीं की।
ऑपइंडिया और इनके सम्पादकों के हालिया उत्पीड़न पर CEO राहुल रौशन का संदेश
हमले हमें परेशान नहीं करते हैं, वास्तव में, अगर वे हम पर हमला नहीं करते हैं, तो हमें ऐसा लगता है कि हम कुछ सही नहीं कर रहे हैं, कुछ दमदार काम नहीं है। इसलिए सबसे पहले, ऐसे नफरत करने वालों को धन्यवाद, वे हम पर हमला करते रहें।
मजदूरों के आँसू बेच रहा इंडिया टुडे, भरता है नैतिकता का दम्भ: दूसरों को पत्रकारिता सिखाने वालों का सच
कैपिटलिज़्म का मॉडल और सोशलिज्म का दिखावा... इंडिया टुडे को हम उनकी ही परिभाषाओं पर तौल रहे हैं, जो मजदूरों की तस्वीरें बेच कर कमा रहे।
ब्रा, पैंटी, योनि, सेक्स, लिंग, वीर्य से करियर बनाने वाले संपादक के पत्रकारिता वाले कुछ लल्लनटॉप प्रयोग
ब्रा, पैंटी, लिंग, लिपस्टिक.. इन जैसे ही कुछ मिलते-जुलते विषयों में अगर आप रूचि रखते हैं तो आपकी पहली मंजिल दिल्ली पालिका बाजार या सरोजिनी मार्किट नहीं बल्कि दी लल्लनटॉप होना चाहिए।
रुबिका लियाकत के मजहब पर प्रिंट का हमला: मुस्लिम वो है जो देश से पहले मजहब देखे?
द प्रिंट जैसे वामपंथी पोर्टल की दिक्कत यह है कि रुबिका लियाकत मुस्लिम होकर भी 'मजहबी वजूद' के उनके एजेंडे को आगे नहीं बढ़ा रहीं।
प्रिय शेखर गुप्ता! 21वीं सदी के मनमोहन सिंह पता नहीं, लेकिन भारतीय मीडिया के जवाहर तुम ही हो
शेखर गुप्ता जैसे लोग सिर्फ एक ऐसे मौके के इन्तजार में रहते हैं कि कब वो मुस्लिमों के आतंक को ढकने के लिए इसके समानांतर......