Friday, October 4, 2024
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10 सालों में गाँवों में आई समृद्धि, अधिक खर्च कर रहे लोग, शहरों के मुकाबले ज्यादा खरीद रहे, गरीबी अब 5% के आसपास

सर्वे के अनुसार, देश के गाँवों में बसने वाली आबादी में प्रति व्यक्ति मासिक खर्च ₹3773 है जबकि शहर में रहने वाला एक आदमी औसतन ₹6459 प्रति माह अपने ऊपर खर्च करता है। यह खर्च 2011-12 में किए गए सर्वे की तुलना में लगभग 2.5 गुना है।

देश में बीते 10-11 वर्षों में गाँव और शहर के बीच की खाई कम हुई है। अब गाँव के लोग भी शहरों की तरह ही खर्च कर रहे हैं। इस दौरान लोगों का खाने पर खर्च कम हुआ है जबकि बाकी चीजों पर बढ़ा है। इस दौरान देश में गरीबी भी कम हुई है। यह सभी जानकारी केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में सामने आई हैं।

केंद्र सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वन मंत्रालय (MoSPI) ने कल (25 फरवरी, 2024) को देश के परिवारों द्वारा किए जाने खर्चे को लेकर किए गए पारिवारिक उपभोग व्यय सर्वे के आँकड़े जारी किए हैं। यह सर्वे अगस्त 2022 से जुलाई 2023 के बीच में किया गया था। यह इस सर्वे का 76वाँ संस्करण था। इसमें कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ निकल कर आई हैं। इस रिपोर्ट में एक व्यक्ति के प्रतिमाह खर्च को लेकर जानकारी दी गई है। इसमें गाँवों में रहने वाले और शहरों में रहने वाले लोगों का अलग अलग आँकड़ा दिया गया है।

गाँव में भी बढ़ रहा खर्च, शहर की तुलना में कम हुआ अंतर

सर्वे के अनुसार, देश के गाँवों में बसने वाली आबादी में प्रति व्यक्ति मासिक खर्च ₹3773 है जबकि शहर में रहने वाला एक आदमी औसतन ₹6459 प्रति माह अपने ऊपर खर्च करता है। यह खर्च 2011-12 में किए गए सर्वे की तुलना में लगभग 2.5 गुना है। 2011-12 में गाँव में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने ऊपर ₹1430 जबकि शहरी व्यक्ति ₹2630 खर्च करता था। गाँवों में रहने वाला व्यक्ति अपने कुल खर्चे का 46% जबकि शहरों में रहने वाला व्यक्ति 39% खर्च खाने-पीने पर करता है।

गाँव शहर खर्च तुलना
खर्चे के विषय में बताती रिपोर्ट (बैकग्राउंड: Bing AI)

नई रिपोर्ट के आँकड़े दर्शाते हैं कि गाँव और शहर के खर्चे के बीच की खाई भी कम हुई है। अब दोनों के खर्चे में 71% का अंतर है जबकि 2011-12 में यह लगभग 84% था। इसका अर्थ यह निकलता है कि अब गाँवों में भी वह सुविधाएँ पहुँच रही है जो पहले मात्र शहरों में उपलब्ध थी और लोग इन पर खर्च भी कर रहे हैं।

रिपोर्ट बताती है कि शहरों में 5% सबसे अधिक खर्च करने वाले लोग महीने में ₹20,824 खर्च कर रहे हैं जबकि गाँवों में यह शीर्ष 5% लोग ₹10,501 खर्च कर रहे हैं। सबसे निचले तबके के शहरी 5% महीने में ₹2001 जबकि ग्रामीण 5% लोग ₹1373 खर्च कर रहे हैं। खाने को लेकर खर्च देखा जाए तो गाँवों में एक व्यक्ति महीने में ₹1750 जबकि शहर में ₹2530 खर्च करता है। रिपोर्ट से पता चलता है कि देश लोगों के खर्च में खाने पर किए गए खर्च का हिस्सा सिमट रहा है।

इसके अनुसार, वर्ष 1999-2000 में जहाँ एक ग्रामीण व्यक्ति के कुल खर्चे का 59% खर्च सिर्फ खाने पर ही होता था, सबसे ताजे सर्वे में यह 46% हो चुका है। शहरों में यह इसी दौर में 48% था जो कि 39% हो गया है। इस रिपोर्ट में राज्यवार आँकड़े भी दिए गए हैं।

किस राज्य के लोग अधिक खर्चीले?

रिपोर्ट के अनुसार, राज्यों में सबसे अधिक खर्च सिक्किम के लोग कर रहे हैं। सिक्किम में एक ग्रामीण व्यक्ति ₹7731 जबकि शहरी व्यक्ति ₹12,105 खर्च करता है। इसके उलट छतीसगढ़ में खर्च सबसे कम है। यहाँ एक ग्रामीण व्यक्ति ₹2466 जबकि शहरी व्यक्ति ₹4483 खर्च करता है। उत्तर प्रदेश में यही खर्च ₹3191 और ₹5040 है। बिहार में यह ₹3384 और ₹4768 है। इन आँकड़ों में अलग अलग रोजगार वाले कितना खर्च करते हैं यह भी बताया गया है।

गाँवों में खेती में लगे लोग महीने में ₹3702 जबकि नौकरीपेशा ₹4533 खर्च करते हैं। दूसरी तरफ शहरों में खुद का रोजगार करने वाले ₹6067 जबकि नौकरीपेशा ₹7146 खर्च करते हैं। सामाँजिक ताने-बाने के हिसाब से देखा जाए तो देश की अनुसूचित जनजातियों के लोग महीने में ग्रामीण क्षेत्र में ₹3016 जबकि शहरी क्षेत्र में ₹5414 खर्च करते हैं। अन्य पिछड़े वर्ग के लिए यही खर्च गाँवों में ₹4392 जबकि शहरों में ₹7333 है।

गाँव-शहर दोनों में अनाज-सब्जियों पर कम हुआ खर्च, कोल्ड ड्रिंक-फलों पर बढ़ा

सर्वे में लोगों के खर्च के तरीके को भी बताया गया है। इसके अनुसार, गाँवों में 2011-12 के दौरान लोग अपने खर्च का 10.6% हिस्सा अनाज पर खर्च कर रहे थे, यह अब घट कर 4.89% हो गया है। इसी तरह दालों पर खर्च 2.76% से घट कर 1.77% हो गया है। सब्जियों का खर्च 6.6% से घटकर 5.38% रह गया है। इसके उलट फलों पर खर्च 2.25 से बढ़ कर 2.54 और पेय पदार्थों, पके हुए खाने के सामानों पर खर्च 7.9% से बढ़ कर 9.62% हो गया है।

शहरों में भी यही चलन देखने को मिला है। शहरों में रहने वाले लोग 2011-12 के दौरान अनाज पर 6.6% खर्च कर रहे थे जो अब 3.62% रह गया है। दालों पर खर्च 1.93% से घट कर 1.21% रह गया है। इसके उलट पके हुए खाने और पेय पदार्थों पर खर्च 8.9% से बढ़ कर 10.6% हो गया है।

देश में गरीबी की हकीकत बता रहा यह आँकड़ा

इस सर्वे में सामने आए आँकड़े देश में गरीबी की असल तस्वीर भी पेश कर रहे हैं। NITI आयोग के सीईओ बी वी आर सुब्रमन्यम ने कहा है कि इन आँकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो देश में गरीबी का स्तर 5% या उससे कम हो सकता है। उनका कहना है कि इस आँकड़े के अनुसार, गाँवों में अब भुखमरी की स्थिति नहीं है। उन्होंने इस दावे को खारिज कि गाँवों में खर्च कम हो रहा और उनकी स्थिति नहीं बदली है।

उन्होंने कहा, “मुझे विश्वास है कि देश में गरीबी अब ईकाई आँकड़े में आ गई है और इस आँकड़े के हिसाब से जाएँ तो यह 5% है।” उन्होंने कहा कि 2011-12 के मुकाबले लोग 2.5 गुना अधिक खर्च कर रहे हैं और यह भारत की सफलता की कहानी है, यह दिखाती है कि देश की समृद्धि कुछ लोगों तक नहीं बल्कि बड़ी जनसंख्या को फायदा पहुँचा रही है। गौरतलब है कि इससे पहले भी एक रिपोर्ट में बीते 9 वर्षों में 25 करोड़ लोगों के गरीबी से बाहर आने की बात कही गई थी।

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