Monday, October 14, 2024
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‘जय श्री राम’ का उद्घोष भी अपराध, महिलाओं के गहने तक लूट लेती थी पुलिस: जन्मभूमि से 26 km दूर जो गाँव, वहाँ के लोगों ने पूछा – हमारे परिजनों का नरसंहार क्यों?

राजकरन सिंह का कहना है कि 22 अक्टूबर की घटना के बाद पुलिस उनके गाँव में कई बार आई। इस दौरान पुलिस ने न सिर्फ महिलाओं के गहने और पैसे लूटे थे बल्कि उन ग्रामीणों के लाइसेंसी अस्त्र भी जब्त कर लिए जिनका कोई भी दोष नहीं था।

एक तरफ पूरी दुनिया के हिन्दू सोमवार (22 जनवरी, 2024) को धर्मनगरी अयोध्या में रामजन्मभूमि पर होने वाली प्राण प्रतिष्ठा का बेसब्री से इंतजार कर रही है। दूसरी तरफ I.N.D.I. गठबंधन के दल आए दिन ऐसी हरकतें और बयानबाजी कर रहे हैं जिससे रामभक्तों की आस्था को चोट पहुँच रही है। ताजा बयान समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल यादव का है जिन्होंने 30 अक्टूबर व 2 नवंबर, 1990 में अपनी सरकार के दौरान अयोध्या में हुए कारसेवकों के नरसंहार को सही ठहराया है।

उस दौरान शिवपाल यादव के बड़े भाई मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। सफाई के तौर पर शिवपाल यादव ने ‘विवादित ढाँचे की रक्षा’ का बहाना बनाया है। हालाँकि, शिवपाल यादव या किसी अन्य समाजवादी पार्टी के नेता की रामजन्मभूमि से लगभग 26 किलोमीटर दूर बस्ती जिले में आने वाले गाँव सांडपुर में पुलिस द्वारा किए गए कत्लेआम पर अभी तक कोई सफाई नहीं आई।

तब गाँव सांडपुर में 30 अक्टूबर से लगभग हफ्ते भर पहले रामभक्तों की तलाश में घुसी पुलिस ने 4 ग्रामीणों को गोली मार दी थी। इसमें से राम चन्दर यादव व सत्यवान सिंह ने मौके पर ही और जयराज यादव ने बाद में प्राण त्याग दिए थे। घायल महेंद्र सिंह के हाथों में आज भी गोली के घाव दिखते हैं। गोलियाँ बरसाने के बाद सामान्य, SC/ST व OBC वर्ग की महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को निर्ममता से पीटा गया था। घरों में लूटपाट हुई थी।

इतने में भी मन नहीं भरा तो 40 ग्रामीणों पर गंभीर धाराओं में FIR दर्ज कर के उन्हें जेल में ठूस दिया गया था। इनमें वो ग्रामीण भी शामिल थे जिन्हें पुलिस की गोली से बलिदान हुए अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करना था। तब लाशों को भी गाँव नहीं आने दिया गया था।

न्याय के लिए हर चौखट पर गुहार, लेकिन कहीं नहीं हुई सुनवाई

आज दुर्दांत गैंगस्टरों और आतंकियों की मौत पर भी मानवाधिकार की दुहाई देते हुए पुलिस पर कार्रवाई की माँग की जाती है। खास बात ये है कि तब संविधान के तथाकथित रक्षकों की चौखट पर ग्रामीणों ने महीनों तक न्याय की गुहार लगाई पर उनके शिकायत पत्र भी नहीं रिसीव किए गए थे। सांडपुर गाँव के वो तमाम पीड़ित आज शिवपाल यादव से सवाल कर रहे हैं कि न तो वहाँ विवादित ढाँचा था और न ही किसी कोर्ट का स्टे। फिर उनके परिजनों की पुलिस ने हत्या क्यों की? ऑपइंडिया ने 23 अक्टूबर, 1990 को दर्ज वो FIR खोज निकाली है। आइए नजर डालते हैं नरसंहार के एक दिन बाद दर्ज उस FIR पर।

पुलिस थी शिकायतकर्ता, सभी वर्गों के 40 आरोपित

इस FIR में दुबौलिया के तत्कालीन थाना प्रभारी राम चन्दर राय शिकायतकर्ता हैं। 22 अक्टूबर, 1990 को दी गई तहरीर में उन्होंने सांडपुर, हेंगापुर, टेढ़वा आदि गाँवों के 40 ग्रामीणों को नामजद किया है। इन सभी पर FIR संख्या- 132/1990 में IPC की धारा 147, 149, 307, 332, 333, 353, 224, 225 और 336 के अलावा 7 क्रिमिनल एक्ट के तहत कार्रवाई की गई थी। यह मुकदमा सरकार बनाम राजकरन सिंह के नाम से आज भी बस्ती की जिला अदालत अदालत में विचाराधीन है।

23 अक्टूबर 1990 में दर्ज FIR

इन नामजदों में रामकरन सिंह, राघवेंद्र प्रताप सिंह, सत्य प्रकाश सिंह, राज बहादुर सिंह, अर्जुन सिंह, श्रवण कुमार सिंह, सुरेंद्र कुमार सिंह, सुभाष सिंह, माता प्रसाद सिंह, तीरथ सिंह, राम नरेश सिंह, गंगाराम, दोढी, भुक्कुर, चंद्रभान सिंह, राम शंकर श्रीवास्तव, भुनाई, गिजू, राधेश्याम यादव, राजित, नंदू, कृष्ण चन्दर सिंह, काशीनाथ तिवारी, हरिवंश सिंह, हरिभान, सूरत सिंह, राम सँवारे, राम सूरत सिंह, कोले सिंह, शत्रुघ्न सिंह और जयराज यादव आदि हैं। इनमे से गंगाराज, दोढी, भुक्कुर, भुनाई, गिजू, राजित, नंदू और राम सँवारे अनुसूचित जाति (SC) समुदाय से हैं।

‘राम मंदिर बन कर रहेगा’ सुन कर भड़क गया था थानेदार

जो FIR थाना प्रभारी राम चन्दर राय ने दर्ज करवाई थी, उसमें सारा दोष ग्रामीणों पर ही मढ़ दिया गया है। इस FIR में थानाध्यक्ष ने बताया कि उन्हें मुखबिर से सूचना मिली थी कि सांडपुर गाँव में ‘विश्व हिन्दू परिषद’ (VHP) के कार्यकर्ता रामकरन सिंह के घर पर कुछ लोग जमा हैं। रामकरन सिंह पर नदी के किनारे लगी नावों को ज़बरदस्ती छीन पर कारसेवकों को अयोध्या में पहुँचाने का भी आरोप लगाया गया है। इसी सूचना पर पुलिस ने गाँव में सुबह 5 बजे दबिश दी। बकौल थाना प्रभारी, रामकरन सिंह ने कहा, “सबको इकठ्ठा कर लो। ऐसा ही उत्साह हर गाँव के हिन्दुओं में रहेगा तो राम मंदिर बन कर रहेगा।”

थानेदार की तहरीर

FIR में पुलिस ने दावा किया है कि नाव से ग्रामीणों के अयोध्या जाने की तैयारी थी। जब उन्हें रोका गया तब रामकरन सिंह ने सबका नेतृत्व करते हुए कहा कि वो हर हाल में अयोध्या जाएँगे चाहे जो हो जाए। पुलिस ने इस स्थिति को शांतिभंग की आशंका करार दिया है। पुलिस ने स्वीकार किया है कि उन्होंने तब रामकरन सिंह सहित उनके कुछ अन्य साथियों को 151/107/116 धारा के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। इनकी तलाशी में एक रजिस्टर मिला जिस पर रामजन्मभूमि की मुहर लगी हुई थी। पुलिस ने उस रजिस्टर को भी जब्त कर लिया।

थानेदार की तहरीर 2

पुलिस का दावा है कि जब वो गिरफ्तार हुए आरोपितों को पकड़ कर ले जा रहे थे तभी कुछ लोग पकड़ से फरार हो गए। आरोप है कि गाँव से ले जाते हुए रामकरन सिंह ने ललकारते हुए कहा, “गाँव वालों को बुलाओ। रामजन्मभूमि पर बलिदान होने का समय आ गया है।” पुलिस का दावा है कि इतना सुन कर गाँव के लगभग 2 हजार लोग हाथों में हथियार ले कर जमा हो गए थे। शिकायत में आगे थाना प्रभारी राम चन्दर राय ने ग्रामीणों पर लाठी-डंडों और पत्थरों से पुलिस पर हमला करने और अपने हथियार छीनने की कोशिश का आरोप लगाया है।

थानेदार की तहरीर 3

थाना प्रभारी राम चंदर राय ने आगे बताया कि इस आपाधापी के बीच अतिरिक्त फ़ोर्स पहुंची। इसके बाद पुलिस ने ग्रामीणों पर गोलियाँ चला दीं। गोली लगने से सत्यवान सिंह और राम चन्दर यादव नाम के 2 ग्रामीणों की मौत मौके पर ही हो गई। जयराज यादव को घायल अवस्था में ही गिरफ्तार किए जाने का भी जिक्र FIR में है। पुलिस ने यह भी दावा किया है कि मृतक सत्यवान सिंह के पास से उन्होंने कट्टा और कारतूस बरामद किया था। थानेदार ने ग्रामीणों के हमले में अपने 3 सिपाहियों को भी गंभीर चोटें लगने का आरोप लगाया है।

पुलिस ने अपने बचाव में लगाए फर्जी आरोप

23 अक्टूबर, 2018 को मुख्य आरोपित रामकरन सिंह ने उत्तर प्रदेश सरकार के तत्कालीन कानून मंत्री से इस केस को वापस लेने की माँग की थी। तब उन्होंने अपने पत्र में यह केस पुलिस द्वारा कारसेवकों के नरसंहार के बाद अपने बचाव में दर्ज करवाने का आरोप लगाया था। इसी पत्र में रामकरन सिंह ने बताया था कि सभी आरोपितों में महज 23 लोग जीवित बचे हैं। शेष की अलग-अलग दिनों में मृत्यु हो चुकी है। तब कानून मंत्री से यह भी बताया गया था कि जीवित बचे आरोपित न सिर्फ आर्थिक रूप से टूट चुके हैं बल्कि वो चलने-फिरने में भी अक्षम हैं। आरोपितों ने खुद को गलत फँसाए जाने की दलील देते हुए इस केस को राजनैतिक द्वेष भावना से दर्ज बताया है।

ग्रामीणों की कानून मंत्री से गुहार

भाजपा सांसद द्वारा केस वापस लेने की माँग

भारतीय जनता पार्टी के बस्ती से सांसद हरीश द्विवेदी ने भी इस मुकदमे को पूरी तरह से राजनैतिक द्वेष भावना से प्रेरित बताया है। 23 अक्टूबर, 2018 को सांसद हरीश द्विवेदी उत्तर प्रदेश सरकार के कानून मंत्री को पत्र लिख कर इस मुकदमे को वापस लेने की माँग कर चुके हैं। उन्होंने केस में नामजद आरोपितों को भाजपा का सक्रिय कार्यकर्ता बताया है और कानून मंत्री से मुकदमा वापस लेने की अपील की है। पत्र के विषय में सांसद ने लिखा, “निहत्थे कारसेवकों के ऊपर पुलिस द्वारा रामजन्मभूमि आंदोलन के तहत दिनांक 22/10/1990 को गोलीबारी के तहत 2 लोगों की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद भी सरकार द्वारा कारसेवकों पर दर्ज फर्जी मुकदमे को वापस लेने के संदर्भ में।”

भाजपा सांसद द्वारा शासन से केस वापसी की अपील

गोलियाँ बरसाने वालों पर कोई एक्शन नहीं

22 अक्टूबर, 1990 को हुई इस पुलिसिया बर्बरता की शिकायत तत्कालीन सेना के एक मेजर ने बस्ती के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक IPS सुभाष चंद्र गुप्ता से की थी। मुसाफिर सिंह नाम के सैन्य अधिकारी ने खुद को गाँव सांडपुर का निवासी बताया था। उन्होंने आरोपित पुलिस वालों पर हत्या की धाराओं में केस दर्ज करने की माँग की थी। हालाँकि, बकौल रामकरन सिंह, इस माँग पर कोई भी कार्रवाई आरोपित पुलिस वालों पर नहीं हुई। मृतकों की तरफ से भी SP बस्ती से कई बार गुहार लगाई गई। हालाँकि, यह गुहार बेअसर रही। मृतकों के परिजनों के पास आज भी अपनी उन गुहार के सबूत मौजूद हैं।

1990 में आरोपित पुलिसकर्मियों के खिलाफ सेना मेजर द्वारा लिखा गया शिकायती पत्र

SP से ले कर सिपाही तक पर एक्शन की माँग

जिन पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज करवाने की माँग उठी थी उनकी लिस्ट आज भी गाँव वालों के पास है। इनके नाम राम चंदर राय (तत्कालीन थाना प्रभारी दुबौलिया), दयाशंकर सिंह (तत्कालीन थाना प्रभारी छावनी), सब इंस्पेक्टर श्रीराम अरुण उर्फ़ सियाराम अरुण, सब इंस्पेक्टर सुरेंदर राय, सिपाही राधेश्याम, सिपाही रामनाथ ओझा, सिपाही मुरलीधर दुबे, सिपाही ओम प्रकाश गौड़, सिपाही रामनयन यादव, सिपाही बृजनंदन सिंह, सिपाही अशोक कुमार, सिपाही हरिश्चंद्र और 12 अन्य सिपाही अज्ञात जिनके हाथों में रायफलें मौजूद बताई गईं।

तत्कालीन विधायक राणा कृष्ण किंकर सिंह (अब दिवंगत) ने भी एक गवाह के तौर पर इन पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की माँग उठाई थी।

इन पुलिसकर्मियों के खिलाफ मांगी गई है कार्रवाई

हालाँकि, इन माँगों का कोई असर किसी भी स्तर पर नहीं हुआ। ऑपइंडिया से बात करते हुए राजकरन सिंह ने बताया कि यह नरसंहार तत्कालीन पुलिस अधीक्षक बस्ती IPS सुभाष चंद्र गुप्ता के आदेश पर हुआ था। ग्रामीणों को उम्मीद है कि योगी सरकार में उन सभी पुलिसकर्मियों को किए की सजा मिलेगी जिन्होंने निरपराध लोगों की हत्या कर के उन्हें ही मुल्जिम भी बना दिया है। आज नहीं तो कल न्याय की उम्मीद में सत्यप्रकाश सिंह ने अपने भाई सत्यवान सिंह की पोस्टमार्टम रिपोर्ट तक सुरक्षित रखी है।

हालाँकि, राम चन्दर यादव के परिजन पुलिस की बर्बरता के चलते अंतिम बार मृतक का चेहरा भी नहीं देख पाए। इसी वजह से आज राम चंदर यादव की कोई तस्वीर मौजूद नहीं है।

न्याय की धुंधली आस में आज भी सहेज कर रखी हुई है सत्यवान की पोस्टमार्टम रिपोर्ट

जब्त लाइसेंसी अस्त्र आज तक नहीं लौटाए गए

राजकरन सिंह का कहना है कि 22 अक्टूबर की घटना के बाद पुलिस उनके गाँव में कई बार आई। इस दौरान पुलिस ने न सिर्फ महिलाओं के गहने और पैसे लूटे थे बल्कि उन ग्रामीणों के लाइसेंसी अस्त्र भी जब्त कर लिए जिनका कोई भी दोष नहीं था। 9 नवंबर, 1990 को गाँव सांडपुर के 69 वर्षीय बुजुर्ग जगदीश सिंह का प्रार्थना पत्र आज भी ग्रामीणों के पास मौजूद है जिसमें वो बस्ती जिले के तत्कालीन जिलाधिकारी से पुलिस द्वारा ले जाए गए अपना लाइसेंसी हथियार वापस देने की गुहार लगा रहे हैं।

1990 में गुहार लगाने के दौरान खुद को बेहद बीमार बताने वाले जगदीश सिंह अब दुनिया में नहीं हैं। उनका लाइसेंसी हथियार उन्हें वापस नहीं दिया गया था। वो अस्त्र अब कहाँ है ये किसी को भी नहीं पता।

गुहार लगाते हुए चल बसे जगदीश पर वापस नहीं मिला हथियार

घर, खेत और जेवर बेच कर आज भी लड़ रहे हैं मुकदमा

बताते चलें कि FIR संख्या – 132/90 पर दर्ज मुकदमा ग्रामीणों की तमाम मिन्नतों, पूर्व विधायक राणा कृष्ण किंकर और वर्तमान सांसद हरीश द्विवेदी की वापसी की अपील के बावजूद आज भी अदालत में चल रहा है। 33 साल से चल रहे इसी मुकदमे को लड़ते हुए जयराज यादव दवाओं तक के मोहताज हो गए और आखिरकार उनके प्राण निकल गए। रामकरन सिंह का यह भी दावा है कि आज भी लगभग 23 से अधिक आरोपित लगातार अदालतों पर जा रहे हैं। उनमें से कई लोग बीमार हैं और आर्थिक हालत खराब होने के चलते कईयों के खेत और गहने तक बिक गए।

बस्ती की जिला अदालत में आज भी चल रहा मुकदमा

ग्रामीणों को आशा है कि वर्तमान सरकार न सिर्फ उन्हें 33 साल से चल रहे अन्याय से मुक्ति दिलाएगी बल्कि 22 अक्टूबर, 1990 की घटना में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल पुलिस अधीक्षक से ले कर सिपाही पर कठोर कार्रवाई करेगी। मुकदमे में नामजद आरोपितों को यह भी उम्मीद है कि राम के नाम पर अगर उन्हें दंडित किया गया था तो यह भी इतिहास निर्माणाधीन रामजन्मभूमि के किसी कोने में दर्ज होगा।

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राहुल पाण्डेय
राहुल पाण्डेयhttp://www.opindia.com
धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।

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