मद्रास हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि अंतर-धार्मिक विवाहों में एक पति या पत्नी को धर्मांतरण करने के लिए मजबूर करना क्रूरता है। फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए हाई कोर्ट ने तलाक की इजाजत दे दी। अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाली हिंदू पत्नी ने अपने मुस्लिम पति पर इस्लाम में धर्मांतरण करने के लिए दबाव डालने और मारपीट करने का आरोप लगाया था।
जस्टिस एन शेषासायी (अब सेवानिवृत) और जस्टिस विक्टोरिया गौरी की खंडपीठ ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि धर्मांतरण के लिए मजबूर करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का सीधा उल्लंघन है। अदालत ने कहा, “किसी के धर्म का पालन करने के अधिकार से वंचित करना और दूसरे धर्म में धर्मांतरण के लिए मजबूर करना पीड़ित को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करेगा।”
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कहा कि जब किसी अपना धर्म स्वतंत्रता के साथ पालन करने की अनुमति नहीं दी जाती है तो यह उसके जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती है। इससे उसकी जिंदगी गरिमाहीन हो जाती है। जब किसी को अपने विवाह को बचाने के लिए ऊपरवाले के नाम पर धर्मांतरण के लिए मजबूर किया जाता है तो वह विवाह नाम की संस्था की नींव को हिला देता है।
अदालत ने कहा, “हर व्यक्तिगत कानून के तहत विवाह की संस्था दो आत्माओं का पवित्र मिलन है। विवाह प्रणाली को पवित्र माना जाता है और इसे संरक्षित किया जाना चाहिए।” इसके बाद हाई कोर्ट ने पत्नी की याचिका स्वीकार करते हुए उसे अपने मुस्लिम पति से तलाक की इजाजत दे दी। फैमिली कोर्ट ने यही निर्णय दिया था, जिसके खिलाफ मुस्लिम पति ने हाई कोर्ट में अपील की थी।
पत्नी ने फैमिली कोर्ट में याचिका डालकर अपने मुस्लिम पति से तलाक की माँग की थी। इसके लिए उसने क्रूरता और परित्याग का आधार बताया था। पत्नी ने कहा था कि उसका मुस्लिम पति उसे धर्मांतरण करके इस्लाम अपनाने के लिए लगातार मजबूर कर रहा है। जब वह मना करती है तो उसे उसकी जाति को लेकर उसका पति उसे गाली देता है। पत्नी ने बताया कि वह अनुसूचित जाति की हिंदू महिला है।
पति ने तर्क दिया कि यह मामला किसी उद्देश्य से दर्ज किया गया है। पति ने कहा कि उसकी पत्नी ने दावा किया कि उसे बेरहमी से पीटा गया और उसने इलाज करवाया था, लेकिन इसको साबित करने के लिए उसने कोई दस्तावेजी सबूत नहीं पेश किया। पति ने यह भी तर्क दिया कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि उसके पत्नी को मुस्लिम बनने के लिए मजबूर किया था।
कोर्ट ने माना कि दोनों ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत प्रेम विवाह किया था, लेकिन उसे धर्मांतरण के लिए शारीरिक एवं मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया। कोर्ट ने यह भी माना कि पति ने अपनी पत्नी का हिंदू नाम भी बदल दिया था। इतना ही नहीं, पति अपनी बीवी को छोड़कर पिछले दो साल से वह अपनी बहन के पास रह रहा था। इसको कोर्ट ने क्रूरता बताते हुए तलाक के लिए पर्याप्त आधार माना।